शनिवार, 2 अगस्त 2025

गायत्री

🙏           गायत्री माता और यदुवंश          🙏

सृष्टि के प्रारंभ से वैदिक सभ्यता की धरोहर

ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।

यदुवंश, चंद्रवंश की शाखा और श्रीकृष्ण के अनुयायियों की गौरवशाली सभ्यता, सृष्टि के प्रारंभ से ही वैदिक ज्ञान, गोपालन, और आध्यात्मिकता की संवाहक रही है। वेदों, पुराणों, और उपनिषदों में वर्णित पुष्कर यज्ञ की कथा इस सभ्यता की प्राचीनता का अमर प्रमाण है, जिसमें गायत्री माता, आभीरकन्या के रूप में, वेदमाता बनकर विश्व को आलोकित करती हैं। गायत्री माता ने भगवान विष्णु को अहीर कुल में जन्म लेने का आशीर्वाद देकर यदुवंश की महत्ता को और सशक्त किया। यह लेख यदुवंश की प्राचीन सभ्यता, गायत्री माता की आभीर-यादव पहचान, और उनके वैदिक योगदान को श्लोकों और प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करता है, ताकि यह जन-जन के हृदय में आनंद और गौरव का संचार करे।

1. यदुवंश- सृष्टि के प्रारंभ से वैदिक सभ्यता का आधार
यदुवंश, यदु के वंशज और श्रीकृष्ण के नेतृत्व में पनपा, सृष्टि के प्रारंभ से ही वैदिक संस्कृति का आधार रहा। महाभारत के बाद, 1700 कुलों में संगठित यह समाज विश्व के विभिन्न भागों में फैला, अपनी गोपालन, कृषि, और आध्यात्मिक परंपराओं को साथ ले गया। गाय, यदुवंश की कुलदेवता, इस सभ्यता की आत्मा है, और गायत्री माता इसकी आध्यात्मिक प्रेरणा हैं।

वैदिक योगदान- यदुवंश ने वेदों और उपनिषदों को संरक्षित किया, जिसमें गायत्री मंत्र उनकी आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है।  

गाय की पवित्रता- गाय को कुलदेवता मानकर यदुवंश ने गोपालन को विश्व में समृद्ध किया।  
श्रीकृष्ण की प्रेरणा: कृष्ण, यदुवंश के आदर्श, ने गायत्री मंत्र का जप किया और गाय को अहीर समुदाय की देवता घोषित किया।  

प्रमाण:  
हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, अध्याय-16:  
 गावोऽस्मद् दैवतम्। (श्लोक 2)  
अर्थ: गाय हमारी (यादवों की) देवता है।  
 गावाश्चास्माकं कुलदेव्य इति ता एवं सेव्यातामहोत्तः।  
अर्थ- गाय अहीर समुदाय की कुलदेवता है।  
भागवत पुराण, 10/39/44: कृष्ण द्वारा गायत्री मंत्र का जप।  
महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय-150: रघु-कुरु वंश और कृष्ण द्वारा गायत्री मंत्र का जप।  

2. पुष्कर यज्ञ- गायत्री माता और यदुवंश की प्राचीनता
सृष्टि रचना के पश्चात, पुष्कर में ब्रह्मा द्वारा आयोजित यज्ञ में सावित्री के देरी करने पर गायत्री, एक आभीरकन्या, को वेदमाता के रूप में चुना गया। यह कथा यदुवंश की सृष्टि के प्रारंभ से उपस्थिति को दर्शाती है।

कथा का सार-  
स्कंध पुराण, नागरखंड, अध्याय-181 के अनुसार, ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री के देरी करने से मुहूर्त बीत गया। इंद्र को आदेश दिया गया कि वे एक उपयुक्त कन्या लाएँ। इंद्र एक दूध-दही बेचने वाली आभीरकन्या को लाए, जिन्हें देवताओं (महादेव, विष्णु, आदि) के आशीर्वाद से गायत्री के रूप में स्थापित किया गया। ब्रह्मा ने उनके साथ गांधर्व विवाह किया।  

प्रमाण-  
स्कंध पुराण, नागरखंड, अध्याय-181:  
 
वदन्तु ब्राह्मणाः सर्वे गोपकन्याप्यसौ यदि। सम्भूय ब्राह्मणीश्रेष्ठा यथा पत्नी भवेन्मम। (श्लोक 71)  
  अर्थ- ब्रह्मा ने पूछा कि गोपकन्या कैसे श्रेष्ठ ब्राह्मणी बन सकती है।  

गोपकन्यकाम् ॥
जगृहे त्वरया युक्तस्तक्रं चोत्सृज्य भूतले ॥ ६१ ॥
अथ तां रुदतीं शक्रः समादाय त्वरान्वितः ॥
गोवक्त्रेण प्रवेश्याथ गुह्येनाकर्षयत्ततः ॥ ६२ ॥
एवं मेध्यतमां कृत्वा संस्नाप्य सलिलैः शुभैः ॥
ज्येष्ठकुण्डस्य विप्रेन्द्राः परिधाय्य सुवाससी ॥ ६३॥
ततश्च हर्षसंयुक्तः प्रोवाच चतुराननम् ॥
द्रुतं गत्वा पुरो धृत्वा सर्वदेवसमागमे ॥ ६४ ॥
कन्यकेयं सुरश्रेष्ठ समानीता मयाऽधुना ॥
तवार्थाय सुरूपांगी सर्वलक्षणलक्षिता ॥ ६५ ॥
गोपकन्या विदित्वेमां गोवक्त्रेण प्रवेश्य च ॥
आकर्षिता च गुह्येन पावनार्थं चतुर्मुख ॥ ६६ ॥

           ॥ श्रीवासुदेव उवाच ॥
गवां च ब्राह्मणानां च कुलमेकं द्विधा कृतम् ॥
एकत्र मन्त्रास्तिष्ठंति हविरन्यत्र तिष्ठति ॥ ६७॥

धेनूदराद्विनिष्क्रान्ता तज्जातेयं द्विजन्मनाम् ॥
अस्याः पाणिग्रहं देव त्वं कुरुष्व मखाप्तये ॥६८।।

यावन्न चलते कालो यज्ञयानसमुद्भवः ॥ ६९ ॥

              ॥ रुद्र उवाच॥
प्रविष्टा गोमुखे यस्मादपानेन विनिर्गता ॥
गायत्रीनाम ते पत्नी तस्मादेषा भविष्यति ॥ ६.१८१.७० ॥

             ॥ ब्रह्मोवाच ॥
_________

एवं चिन्तापराधीना यावत्सा गोपकन्यका।
तावद्ब्रह्मा हरिं प्राह यज्ञार्थं सत्वरं वचः।१८४।

देवी चैषा महाभागा गायत्री नामतः प्रभो।
एवमुक्ते तदा विष्णुर्ब्रह्माणं प्रोक्तवानिदम्१८५।
तदेनामुद्वहस्वाद्य मया दत्तां जगत्प्रभो।
गान्धर्वेण विवाहेन विकल्पं मा कृथाश्चिरम्१८६।

तच्छ्रुत्वा वचनं तस्य पुलस्त्यस्य पितामहः।५३।समीपस्थं तदा शक्रं प्रोवाच वचनं द्विजाः

                    ब्रह्मोवाच

शक्र नायाति सावित्री सापि स्त्री शिथिलात्मिका ५४।

अन्यया भार्यया साकं यज्ञोऽयं क्रियतां ग्रयापितामहवचः श्रुत्वा तदर्थं कन्यका द्विजाः ।५५

शक्रेणासादिता शीघ्रं भ्रममाणा समीपतः अथ तत्र घटव्यग्रमस्तका तेन वीक्षिता। ५६।

कन्यका गोपजा तन्वी चन्द्रा स्या पद्मलोचनाकुमारी वा सनाथा वा सुता कस्यब्रवीहिनः ।५७।

                  कन्योवाच

गोपकन्यास्मि भद्रं ते तक्रं विक्रेतुमागता परिगृह्णासि चेन्तक्रं मूल्यं मेदेहि माचिरम् ।५८।

तच्छ्रुत्वा त्रिदिवेन्द्रो पि नत्वा तां गोपकन्यकाम्जगृहे त्वरया युक्तस्तक्रञ्चोत्सृज्य भूतले ।५९।

नान्दीमुखैश्च विप्रैश्च समादिष्टस्तदा हिसःअथ तां रुदतीं शक्रः समादाय त्वरान्वितः गोवक्त्रेण प्रवेश्याऽथ गुह्येनाकर्षयत्ततः ।६०।

एवं मेध्यतमां कृत्वा संस्नाप्य सलिलैः शुभैः ज्येष्ठकुण्डस्य विप्रेन्द्रा: ! परिधाय सुवाससी ।६१।

ततश्च हर्षसंयुक्तः प्रोवाच चतुराननम्द्रुतं गत्वा पुरो धृत्वा सर्वदेवसमागमे ।६२।

कन्येयं च सुरश्रेष्ठ समानीता मया शुभा तवार्थाय सुरूपाङ्गी सर्वलक्षणलक्षिता ।६३।

गोपकन्यां विदित्वेमां गोवक्त्रेण प्रविश्य च आकर्षिता च गुह्येन पावनार्थं चतुर्मुख ।६४।

            'वासुदेव उवाच'

गवां च ब्राह्मणानां च कुलमेकं द्विधा कृतम् एकत्र मन्त्रास्तिष्ठन्ति हविरेकत्र तिष्ठति ।६५।

धेनूदराद्विनिष्क्रान्ता तज्जातेयं द्विजन्मनाम्-अस्याः पाणिग्रहं देव त्वं कुरुष्व यथाविधि ।६६।

यावन्न चलते कालो यज्ञयानसमुद्भवः

रुद्र उवाच

प्रतिष्ठा गोमुखे यस्मादपानेन विनिर्गता ६७

गायत्री नाम ते पत्नी तस्मादेषा भविष्यति

ब्रह्मोवाच

वदन्तु ब्राह्मणाः सर्वे गोपकन्याप्यसौ यदि ।६८।

सम्भूय ब्राह्मणी श्रेष्ठा यथा पत्नी भवेन्मम

            नान्दीमुखा ऊचुः

एषा स्याद्ब्राह्मणी श्रेष्ठा गोपजाति विवर्जिता ।६९।

अस्माद्वाक्याच्चतुर्वक्त्र कुरु पाणिग्रहं द्रुतम्

वह्निरुवाच

ततः पाणिग्रहं चक्रे तस्या देवः पितामहः ७०


युवतीं सुकुमारीं च पप्रच्छ काऽसि कन्यके ।
गोपकन्येति सा प्राह तक्रं विक्रेतुमागता ।।४५।।
परिगृह्णासि चेत् तक्रं देहि मूल्यं द्रुतं मम ।
इन्द्रो जग्राह तां तक्रसहितां गोपकन्यकाम् ।।४६।।
गोर्वक्त्रेणाऽऽवेशयित्वा मूत्रेणाऽऽकर्षयत् ततः ।
एवं मेध्यतमां कृत्वा संस्नाप्य सलिलैः शुभैः ।।४७।।


सुवाससी धारयित्वा नीत्वा धृत्वाऽजसन्निधौ ।
आनीतेयं त्वदर्थं वै ब्रह्मन् सर्वगुणान्विता ।।४८।।
गवां च ब्राह्मणानां च कुलमेकं द्विधा कृतम् ।
एकत्र मन्त्रस्तिष्ठन्ति हविरेकत्र तिष्ठति ।।४९।।
गोरुदराद् विनिष्क्रान्ता प्रापितेयं द्विजन्मताम् ।
पाणिग्रहं कुरुष्वास्या यज्ञपानं समाचर ।।1.509.५० ।।


रुद्रः प्राह च गोयन्त्रनिष्क्रान्तेयं ततः खलु ।
गायत्रीनामपत्नी ते भवत्वत्र मखे सदा ।।५१ ।।
ब्राह्मणास्तु तदा प्राहुरेषाऽस्तु ब्राह्मणीवरा ।
गोपजातिवर्जितायास्त्वं पाणिग्रहणं कुरु ।।५२।

श्रीहरेराज्ञयाऽऽनर्ते जातावाभीररूपिणौ ।
गवां वै पालकौ विप्रौ पितरौ च त्वया हि तौ ।।७८।।
कर्तव्यौ गोपवेषौ वै वस्तुतो ब्राह्मणावुभौ ।
मदंशौ तत्र सावित्रि! त्वया द्वितीयरूपतः ।।७९।।
अयोनिजतया पुत्र्या भाव्यं वै दिव्ययोषिता ।
दधिदुग्धादिविक्रेत्र्या गन्तव्यं तत्स्थले तदा ।।1.509.८०।


श्री लक्ष्मी नारायणी संहिता

 धेनूदराद्विनिष्क्रांता गायत्रीति मया कृता। (श्लोक 68)  
  अर्थ- गायत्री गाय के उदर से निकलीं, और वासुदेव ने उनका नाम गायत्री रखा।  

पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 133  
 आभीरकन्यां तां दृष्ट्वा ब्रह्मा कामेन संनादति।  
  अर्थ- ब्रह्मा ने आभीरकन्या गायत्री को देखकर विवाह किया।  

तर्कसंगत व्याख्या-  
पुष्कर यज्ञ की कथा यदुवंश की प्राचीनता को प्रमाणित करती है, क्योंकि आभीरकन्या गायत्री को वेदमाता के रूप में चुना गया। यह यदुवंश की वैदिक परंपरा में महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।  

3. गायत्री माता- आभीर-यादव पहचान और वैदिक महत्ता
गायत्री माता, वेदमाता और गायत्री मंत्र की अधिष्ठात्री, यदुवंश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर की प्रतीक हैं। उनकी आभीर-यादव पहचान वैदिक ज्ञान और गोपालन परंपरा का संगम है।

गायत्री की पहचान-  
वेदमाता- गायत्री वेदों की जननी हैं (पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 279)।  
आभीरकन्या: गायत्री को गोपजा, गोपसंज्ञितः, और आभीरसुता कहा गया (पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 133; स्कंध पुराण, नागरखंड, श्लोक 59)।  

यादवी- गायत्री यदुवंश समुद्भवा और यादवार्चिता हैं (देवी भागवत पुराण, स्कंध-12, अध्याय-6; गायत्री महातंत्रम)।  

गायत्री मंत्र:  
श्लोक: ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्। (ऋग्वेद, 3.62.10; यजुर्वेद, 36.3)  
शब्दार्थ: ॐ: प्रणव; भूर्भुवः स्वः तीनों लोक; तत्: वह; सवितुः सविता (सूर्य/देव); वरेण्यं: श्रेष्ठ; भर्गः तेज; देवस्य: देव का; धीमहि: ध्यान करते हैं; धियः बुद्धि; यो: जो; नः हमें; प्रचोदयात्: प्रेरित करे।  
अर्थ- हम उस सविता के श्रेष्ठ तेज का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को प्रेरित करे।  
महत्व- यह मंत्र ज्ञान, प्रेरणा, और पापमोचन प्रदान करता है (विष्णु धर्मोत्तर पुराण, 5/43)।  

प्रमाण-  
पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 279: गायत्री को अष्टाक्षरा कहा गया।  
बृहदारण्यकोपनिषद: गायत्री प्राणों (गयाः) की रक्षक।  
शतपथ ब्राह्मण- गायत्री वैदिक मंत्रों की आधारशिला।  

4. गाय और अहीर- श्रीकृष्ण से उत्पत्ति और यदुवंश का गौरव
यदुवंश की आत्मा गाय और अहीर (यादव) हैं, जो श्रीकृष्ण से उत्पन्न हुए और शरीर और आत्मा की तरह अटूट रूप से जुड़े हैं। गाय, अहीर समुदाय की कुलदेवता, यदुवंश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को दर्शाती है।

गाय की उत्पत्ति- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, गाय (सुरभि) श्रीकृष्ण के वाम पार्श्व और रोमकूपों से उत्पन्न हुई।  
अहीर की उत्पत्ति- अहीर (गोप/यादव) भी कृष्ण के रोमकूपों से उत्पन्न हुए।  
गाय कुलदेवता- गाय अहीर समुदाय की कुलदेवता है, जिसे यदुवंश ने विश्व में पूज्य बनाया।  

प्रमाण-  
ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड, अध्याय-47:  
ससृजे सुरभीं देवीं लीलया वामपार्श्वतः। (श्लोक 6)  
  अर्थ- श्रीकृष्ण ने वाम पार्श्व से सुरभि धेनु को उत्पन्न किया।  
 तासां पुत्राश्च पौत्राश्च संबभूवुरसंख्यकाः। (श्लोक 12)  
  अर्थ- सुरभि के रोमकूपों से लाखों-करोड़ों गायें उत्पन्न हुईं।  
ब्रह्मवैवर्त पुराण, अचाय-काला:  
- कृष्णस्य लोमकूपेभ्यः सद्यश्चाऽऽविर्वभूव ह। (श्लोक 44)  
  अर्थ- कृष्ण के रोमकूपों से गायें उत्पन्न हुईं।  
- कृष्णस्य लोमकूपेभ्यः सद्योगोपनामो मुने। (श्लोक 42)  
  अर्थ- कृष्ण के रोमकूपों से गोप (अहीर) उत्पन्न हुए।  
हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, अध्याय-16:  
 गावोऽस्मद् दैवतम्। (श्लोक 2)  
  अर्थ- गाय हमारी (यादवों की) देवता है।  
 गावाश्चास्माकं कुलदेव्य इति ता एवं सेव्यातामहोत्तः।  
  अर्थ- गाय अहीर समुदाय की कुलदेवता है।  

तर्कसंगत व्याख्या-  
गाय और अहीर की कृष्ण से उत्पत्ति और कुलदेवता संबंध यदुवंश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गहराई को दर्शाता है। यह गायत्री माता की आभीर-यादव पहचान को और सशक्त करता है।  

5. गायत्री का आशीर्वाद- विष्णु का अहीर कुल में जन्म
गायत्री माता ने पुष्कर यज्ञ के बाद भगवान विष्णु को अहीर कुल में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया, जो श्रीकृष्ण के रूप में साकार हुआ। यह यदुवंश की प्राचीनता और महत्ता का सर्वोच्च प्रमाण है।

प्रमाण-  
स्कंध पुराण, नागरखंड, अध्याय-193:  
- तत्कृत्वा रूपद्वितयं तत्र जन्म त्वमाप्स्यसि। यत्तया कथितो वंश ममायं गोपसंज्ञितः। (श्लोक 12)  
  अर्थ- गायत्री ने कहा कि सावित्री ने मुझे गोपकुल में उत्पन्न कहा। आप (विष्णु) मेरे गोपकुल में जन्म लेंगे।  
- एकः कृष्णाभिधानस्तु द्वितीयोऽर्जुनसंज्ञितः। (श्लोक 13)  
  
अर्थ- विष्णु के दो रूप कृष्ण और अर्जुन।  
 यत्र यत्र च वत्स्यन्ति मद्वंशप्रभवा नराः। तत्र तत्र श्रियो वासो वनेऽपि प्रभविष्यति। (श्लोक 15)  
  अर्थ- मेरे गोपवंश के लोग जहाँ रहेंगे, वहाँ लक्ष्मी और देवगण का वास होगा।  

तर्कसंगत व्याख्या-  
गायत्री ने गोपवंश को मद्वंश कहकर यदुवंश की महत्ता को स्थापित किया। विष्णु का कृष्ण के रूप में अहीर कुल में जन्म लेना यदुवंश की सृष्टि के प्रारंभ से उपस्थिति और उनकी वैदिक व सांस्कृतिक भूमिका को प्रमाणित करता है।  

 6. गायत्री मंत्र- यदुवंश की आध्यात्मिक धरोहर
गायत्री मंत्र, यदुवंश की आध्यात्मिक धरोहर, विश्व को ज्ञान, प्रेरणा, और आनंद प्रदान करता है।

महत्व-  
वेदमाता गायत्री वेदों की जननी हैं (पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 279)।  
पापमोचन: नियमित जप से पाप नष्ट होते हैं (विष्णु धर्मोत्तर पुराण, 5/43)।  

प्रेरणा- यह मंत्र बुद्धि को प्रेरित करता है (बृहदारण्यकोपनिषद)।  
जपकर्ता श्रीकृष्ण (भागवत पुराण, 10/39/44) और रघु-कुरु वंश (महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय-150) ने इसका जप किया।  

प्रमाण-  
पद्म पुराण, सृष्टिखंड, श्लोक 279: गायत्री को अष्टाक्षरा कहा गया।  
भागवत पुराण, 10/39/44: कृष्ण द्वारा जप।  

7. निष्कर्ष- यदुवंश और गायत्री माता का अमर संदेश
यदुवंश, सृष्टि के प्रारंभ से ही वैदिक सभ्यता का आधार रहा, जिसका प्रमाण पुष्कर यज्ञ में गायत्री माता की आभीरकन्या के रूप में स्थापना है। गायत्री माता, वेदमाता और यदुवंश समुद्भवा, ने विष्णु को अहीर कुल में जन्म लेने का आशीर्वाद देकर यदुवंश को अमर गौरव प्रदान किया। गाय और अहीर की कृष्ण से उत्पत्ति और उनका अटूट नाता इस सभ्यता की आत्मा है। गायत्री मंत्र का जप और गाय की सेवा यदुवंश को उनकी गौरवशाली विरासत से जोड़ती है।

यदुवंश की इस अमर गाथा विरासत को जन-जन तक पहुँचाएँ। गायत्री माता और श्रीकृष्ण की कृपा से यदुवंश अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्ता को पुनर्जनन देगा, और विश्व को ज्ञान, प्रेम, और सामंजस्य का संदेश देगा।

                        🙏🌺🌺ॐ तत्सत्🌺🌺🙏

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