शनिवार, 16 अगस्त 2025

वैदिक ऋचाओं में उद्धृत कृष्ण!






सम्पूर्ण जीवन संघर्षरत रहकर न्याय, नीति और धर्म की संस्थापना करनेवाले कर्मयोगी श्रीकृष्ण का देवराज इन्द्र से वैचारिक विरोध सर्वविदित है। 
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 श्रीमद्भागवत में गोवर्धन लीला के नाम से ख्याति प्राप्त है। इसके साथ ही प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद में भी इन्द्र और कृष्ण के वैर-भाव का वर्णन है।
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प्रस्तुत है ऋग्वेद में से कृष्ण और इनद्रका युद्ध-

सम्पूर्ण जीवन संघर्षरत रहकर न्याय, नीति और धर्म की संस्थापना करने वाले कर्मयोगी श्रीकृष्ण का देवराज इन्द्र से वैचारिक व सांस्कृतिक विरोध सर्वविदित है। 
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  इस विरोध की प्रतिध्वनि श्रीमद्भागवत  देवीभागवत महापुराण हरिवंश पुराण आदि पुराणों  में गोवर्धन लीला के नाम से ख्याति प्राप्त है। इसके साथ ही प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेद-8/96/13 अथर्ववेद-(20/137/7) आदि   में भी इन्द्र और कृष्ण के वैर-भाव का वर्णन है।
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प्रस्तुत है ऋग्वेद में से कृष्ण और इन्द्र का युद्ध-

अव द्रप्सो अंशुमतीमतिष्ठदियानः कृष्णो दशभिः सहस्रैः.
आवत्तमिन्द्रः शच्या धमन्तमप स्नेहितीर्नृमणा अधत्त।१३।

 अनुवाद:-
 
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भावार्थ-हे कृष्ण आप यमुना के तट पर स्थित इस जल की रक्षा करने वाले हैं आप इसकी रक्षा करो ! कृष्ण दश हजार गोपों से घिरे हुए हैं। इन्द्र ने अपनी पत्नी शचि के साथ अग्नि से संयोजित होते हुए अर्थात् दैदीप्यमान उस हुंकारते हुए  कृष्ण से युद्ध किया  जो  जल में भीगे हुए और मानवीय विचार या मन वाले थे।
१३।

 भाष्य--
कृष्णो दशसहस्रैर्गोपैर्विड्भिर्वा परिवृत: सन् अँशुमतीनामधेयाया नद्या: यमुनाया: तटेऽतिष्ठत् ।
तत्र कृष्णस्य नाम्न: प्रसिद्धं तं गोपं नद्यार्जले पुलिने वा मध्ये स्थितं इन्द्रो ददर्श स इन्द्र: स्वपत्न्या शच्या सार्धं आगत्य जले स्निग्धे तं गोपं कृष्णं तस्यानुचरानुपगोपाञ्च युद्धोपरान्तोऽतीवानि धनानि अदात्।१३।

भाष्य का
अनुवाद:-
कृष्ण दश हजार गोपों से घिरे हुए हैं । इन्द्र ने अञ्शुमती अथवा यमुना के तट पर स्थित  जल में ( पुलिन) में कृष्ण नाम से प्रसिद्ध उस गोप को देखा जो यमुना नदी के जल में स्थित है। जो मानवीय विचार धारण किए हुए है। अथवा धन धारण किए हुए है। जिसके अनुचर गोप भी बहुत सा धन लिए हुए हैं।१३।
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पदार्थ- का व्याकरणिक विश्लेषण-
(इयानः) चलता हुआ (अंशुमतीम्) यमुना नदी को। (अव अतिष्ठत्) ठहरा है। (नृमणाः) नरों के समान मनवाले अथवा धनों का (इन्द्रः) इन्द्र ने (तम् धमन्तम्) कृष्णं-  उस हुँकारते हुए कृष्ण को (शच्या) शचि के साथ (आवत्)- युद्ध किया।
लङ्(अनद्यतन भूत)
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथमपुरुषः
आवत्=युद्ध किया
युद्ध किया और (स्नेहितीः) भिगो दिया (अप अधत्त) नीचे छोड़ दिया ॥१३॥    
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(धमन्तम्) हुङ्कृतम्कुुर्वन्तम् । (स्नेहितीः) स्नेहतिः क्लेदयते।क्लिद आर्द्रीभावे
(क्लिद्यति(नृमणाः) नेतृतुल्यमनस्कः (अप अधत्त) दूरे धारितवान् ॥

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द्रप्समपश्यं विषुणे चरन्तमुपह्वरे नद्यो अंशुमत्याः नभो न कृष्णमवतस्थिवांसमिष्यामि वो वृष्णो युध्यताजी।१४।
पदपाठ-द्रप्सम् । अपश्यम् । विषुणे । चरन्तम् । उपऽह्वरे । नद्यः । अंशुऽमत्याः । नभः । न । कृष्णम् । अवतस्थिऽवांसम् । इष्यामि । वः । वृषणः । युध्यत । आजौ ॥१४।

अनुवाद-
इन्द्र कहता है कि विभिन्न रूपों में मैंने यमुना के जल को देखा और वहीं अंशुमती नदी के निर्जन प्रदेश में चरते हुए बैल अथवा साँड़ को भी देखा और इस साँड को युद्ध में लड़ते हुए मैं चाहूगा । अर्थात यह साँड अपने स्थान पर अडिग खडे़ कृष्ण को संग्राम में युद्ध करे ऐसा होते हुए मैं चाहूँगा। जहाँ जल और- (नभ) बादल भी न हो
(अर्थात कृष्ण की शक्ति मापन के लिए इन्द्र यह इच्छा करता है )।१४।

विशेष=असुर शब्द का प्रयोग तो कृष्ण के लिए सायण ने अपने भाष्य में ही किया है । अन्यथा मूल ऋचा में असुर पद न होकर अदेवी: पद है ।
यद्यपि वैदिक काल के पूर्वार्द्ध में असुर शब्द शक्तिशाली ( प्राणवन्त) और प्रज्ञावान् का विशेषण था। असुर लोगों की सभ्यता का जीवन्त रूप प्राचीन-ईराक-ईरान (मेसोपोटामिया) का असीरिया देश साक्षी है।
अशुर एक प्रमुख प्राचीन मेसोपोटामिया सभ्यता थी जो 21वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक एक नगर-राज्य के रूप में अस्तित्व में था,

फिर एक क्षेत्रीय राज्य, और अंततः 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक एक साम्राज्य के रूप में अस्तित्व में रही ____

पदार्थ का व्याकरणिक विश्लेषण----
तुरीयपादो मारुतः । मरुतः प्रति यद्वाक्यमिन्द्र उवाच तदत्र कीर्त्यते । हे मरुतः “द्रप्सं द्रव्यं“अपश्यम् =अदर्शम् । कुत्र वर्तमानम् ।“विषुणे= विष्वगञ्चने सर्वतो विस्तृते देशे । यद्वा । विषुणो विषमः । विषमे परैरदृश्ये गुहारूपे देशे। “चरन्तं =परितो गच्छन्तम् ग्रासं चरन्तम् । किंच “अंशुमत्याः एतन्नामिकायाः “नद्यः =नद्याः “उपह्वरे= अत्यन्तं गूढे स्थाने “नभो “न नभसि यथादित्यो दीप्यते तद्वत्तत्र दीप्यमानम् “।।१४

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अध॑ द्र॒प्सो अं॑शु॒मत्या॑ उ॒पस्थेऽधा॑रयत्त॒न्वं॑ तित्विषा॒णः।विशो॒ अदे॑वीर॒भ्या॒३॒॑चर॑न्ती॒र्बृह॒स्पति॑ना यु॒जेन्द्र: ससाहे ॥१५।

पदार्थ का व्याकरणिक विश्लेषण-
1-“अध= अथ 
2-“द्रप्सः =जल बिन्दु । 3-“अंशुमत्याः= नद्याः 4-“उपस्थे = क्रोडे। 5-“तित्विषाणः= दीप्यमानः सन्
 6-“तन्वम् =आत्मीयं शरीरम्
 7-“अधारयत् । = बिभर्ति  तत्र “इन्द्रः गत्वा “बृहस्पतिना एतन्नामकेन देवेन 
8-“युजा= सहायेन 9-“अदेवीः =अद्योतमानाः । कृष्णरूपा इत्यर्थः । 
 10-“आचरन्तीः= आगच्छन्तीः 
11-“विशः= गोपगणा "अभि 12-"ससहे =  शशास ॥१४ 

अनुवाद:-
यमुना नदी के जल में नीचे  उसके अंक में (गोद में) अपने देदीप्यमान शरीर को धारण किए हुए गोप को जो देवों को नहीं मानता है  गोपों के समूह के साथ चलते हुए.  उन सबको  बृहस्पति के साथ इन्द्र ने अपने शासन में किया।१५।

प्रस्तुति -योगेश रोहि -8077160219

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