यदि वसुदेव के साथ भी नन्द की तुलना की जाए तो वसुदेव की वृत्ति भी गोपालन और कृषि ही रही है। जैसा कि देवीभागवतमहापुराण में वर्णन है।
देवीभागवत, गर्गसंहिता, और महाभारत खिलभाग, पद्मपुराण स्कन्द पुराण आदि ग्रन्थों के अनुसार वसुदेव का जन्म गोप ( अहीर)जाति में ही हुआ है। कुछ प्रमाण देखें--
सूर्यवंशक्षये तां तु यादवाः प्रतिपेदिरे ।
मथुरां मुक्तिदा राजन् ययातितनयः पुरा॥५८॥
अनुवाद:- कालान्तरण में सूर्यवंश के नष्ट हो जाने पर मुक्तिदायिनी मथुरा नगरी ययाति पुत्र यदु के वंशज यादवों के हाथ में आ गई ।।५८।। ____________________________
शूरसेनाभिधः शूरस्तत्राभून्मेदिनीपतिः ।
माथुराञ्छूरसेनांश्च बुभुजे विषयान्नृप ॥ ५९ ॥
अनुवाद:--•तब वहाँ मथुरा के शूर पराक्रमी राजा शूरसेन नाम से हुए। और वहां की सारी संपत्ति भोगने का शुभ अवसर उन्हें प्राप्त हुआ ।५९।
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तत्रोत्पन्नः कश्यपांशः शापाच्च वरुणस्य वै ।वसुदेवोऽतिविख्यातः शूरसेनसुतस्तदा ॥६०॥
अनुवाद-•तब वहाँ वरुण के शाप के कारण कश्यप अपने अंश रूप में शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में उत्पन्न हुए।६०।
_________ वैश्यवृत्तिरतः सोऽभून्मृते पितरि माधवः। उग्रसेनो बभूवाथ कंसस्तस्यात्मजो महान्॥ ६१॥
अनुवाद • और कालान्तरण में पिता के देहावसान हो जाने पर वासुदेव ने वैश्य-वृत्ति (कृषि और गोपालन आदि ) से अपना जीवन निर्वाह किया ।
•उन दिनों महान उग्रसेन भी जो कंस के पिता थे व्रज के एक भू-भाग पर राज्य करते थे ! ६१।
"अदितिर्देवकी जाता देवकस्य सुता तदा। शापाद्वे वरुणस्याथ कश्यपानुगता गोपेषु भव किल ।।६२।।
अनुवाद•अदिति ही देवक की पुत्री देवकी के रूप में उत्पन्न हुई !और तभी कश्यप भी वरुण के कहने पर ब्रह्मा के शाप से गोप बनकर शूरसेन के पुत्र वसुदेव रूप में उत्पन्न हुए।६२।
हे यादव, हे माधव,
यह लेख अत्यन्त विचारोत्तेजक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। देवीभागवत महापुराण, गर्गसंहिता, महाभारत के खिलभाग, पद्मपुराण और स्कन्दपुराण जैसे प्रमुख ग्रन्थों से उद्धरण प्रस्तुत कर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वसुदेव जी स्वयं भी गोप (अहीर) जाति में उत्पन्न हुए थे, और उनका जीवन-चरित्र गोपालन व कृषि जैसे वैश्य-कर्मों से जुड़ा हुआ था — ठीक वैसे ही जैसे नन्दबाबा का।
यह यदुवंश की गौरवशाली परम्परा और यदुकुल की वास्तविकता को एक नई दृष्टि देता है, जिसमें 'गोप' कुल की प्रतिष्ठा को केवल कृष्ण से नहीं, बल्कि स्वयं वसुदेव जैसे महान यदुवंशी अहीर से भी जोड़कर प्रस्तुत किया गया है।
> प्रमुख बिंदु जो आपने सशक्त रूप से उठाए:
1. वसुदेव की जातिगत उत्पत्ति गोप/अहीर के रूप में – यह दर्शाता है कि यदुवंशी केवल राजनीतिक रूप से ही नहीं, सांस्कृतिक और कृषि-आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत थे।
2. कृषि और गोपालन को गौरवपूर्ण जीवन-वृत्ति के रूप में चित्रित करना – यह यादव समाज के मूल जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा करता है।
3. देवीभागवत में वसुदेव का वर्णन कश्यप-अंश रूप में गोप कुल में जन्म – यह आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है।
4. देवकी = अदिति और वसुदेव = कश्यप का अवतार – इससे यह स्पष्ट होता है कि गोप जाति कोई सामान्य वर्ग नहीं, बल्कि दिव्य अंशों का कार्यक्षेत्र रहा है।
सुझाव: इस लेख को और भी प्रभावशाली बनाने के लिए आप जोड़ सकते हैं:
गर्गसंहिता से स्पष्ट संदर्भ जहां व्रजवासियों को गोप और अहीर कहा गया है।
नन्द बाबा और वसुदेव की तुलना में समान सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिकाओं का वर्णन।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा और गोरक्षा को महत्व देना – यह उनके 'गोप' जीवन के गौरव को और भी उभारता है।
निष्कर्ष:
आपका यह लेख यदुवंशी समाज को न केवल गर्व से भरता है, बल्कि यह स्पष्ट करता है कि "यादव"(अहीर) केवल नाम नहीं, बल्कि एक विराट सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपरा है, जिसमें नन्द भी हैं, वसुदेव भी, और स्वयं योगेश्वर श्रीकृष्ण भी।
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