क्या हिन्दुओं को हिन्दू नाम ईरानी मुस्लिमों ने दिया?
हिन्दू शब्द के बारे में बहुत से लोगों में भ्रम है और बहुत से लोग भ्रम फैलाने का कार्य भी करते हैं।
ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ नदी या जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और पाक से बहती है।
भाषाविदों का मानना है कि हिंद-आर्य भाषाओं की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में बदल जाती है।
आज भी भारत के कई इलाकों में 'स' को 'ह' उच्चारित किया जाता है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा (पारसियों की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित हो गया (अवेस्ता : वेंदीदाद, फर्गर्द 1.18)।
इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। पारसी मुस्लिम नहीं थे, लेकिन आज ईरान (फारस देश) के पारसी लोग मुस्लिम बन गए हैं।
लेकिन फिर सवाल उठता है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को आज भी सिंधू या सिंधी कहा जाता है।
सिंधू नदी को आज भी सिंधू ही कहा जाता है उसका नाम क्यों नहीं अप्रभंश हुआ?
ईरानी अर्थात पारस देश के पारसियों की धर्म पुस्तक 'अवेस्ता' में 'हिन्दू' और 'आर्य' शब्द का उल्लेख मिलता है।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ईरानियों के कारण यह नाम नहीं पड़ा। वे 'ह' और 'स' में फर्क समझते थे।
यह भी कहा जाता है कि जब ईरानी या पारसी लोग मुस्लिम हो गए तो उन्होंने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को 'हिन्दू' नाम दिया।
ईरान के पतन के बाद जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलंबियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। ऐसा भी कहा जाता है कि जब अरब, तुर्की या ईरानी लोग भारत में दाखिल हुए तो उनका सामना सबसे पहले हिन्दूकुश पर्वत से हुआ।
'बृहस्पति आगम'
इसके एक श्लोक में कहा गया है:- ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:। हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
अनुवाद:-
'ॐकार' जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है।
श्लोक:
'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥'
(बृहस्पति आगम)
अर्थात: हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
यह माना जा सकता है कि 'हिन्दू' शब्द 'इन्दु' जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है, से बना है। चीन में भी 'इन्दु' को 'इंतु' कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष चन्द्रमा को बहुत महत्व देता है।
राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इंतु' या 'हिन्दू' कहने लगे।
मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही 'हिन्दू' शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम पारसियों या मुसलमानों की देन नहीं है।
एक अन्य विचार के अनुसार हिमालय के प्रथम अक्षर 'हि' एवं 'इन्दु' का अंतिम अक्षर 'न्दु'। इन दोनों अक्षरों को मिलाकर शब्द बना 'हिन्दू' और यह भू-भाग हिन्दुस्थान कहलाया। 'हिन्दू' शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रूप में प्रयुक्त होता था।
सिन्धुक्षित की दो ऋचाओं (10.75.5.6) में उन सभी नदियों का उल्लेख किया गया है, जो उस पूरे क्षेत्र में प्रवाहित होती है। इसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, सतलुज से लेकर कुभा (काबुल) और मेहलू नदियों तक के नाम हैं। हिरण्यस्तूप आंगिरस सविता की स्तुति करते हुये एक ऋचा में कहते हैं — पृथिवी की आठों दिशायें, परस्पर संयुक्त हुये तीनों लोक और सप्तसिन्धु को सविता देव ने प्रकाशित किया है। स्वर्णिम आंखों वाले सविता देव (हिरण्याक्ष: सविता देव:) हव्यदाता राजमान को वरणीय दान देकर यहां आवें। (1.35.8) सप्तसिन्धु कई जनपदों का सम्मिलित नाम था।
भारतीय परम्परा आकाश को पिता और धरती को माता मानने की रही है। आदि काल से इस परम्परा का निर्वाह होता रहा है। ऋग्वेद के ऋषि दीर्घतमा औचथ्य ने छावापृथिवी को पिता और माता के रूप में आह्वान किया है – मैंने आह्वान मंत्र द्वारा पुत्र के प्रति द्रोहहीन और पितृस्थानीय द्युलोक के उदार और सदय मन को जाना है। मातृस्थानीय पृथिवी के मन को भी जाना है। पिता—माता (द्यावापृथिवी) अपनी शक्ति से यजमानों की रक्षा करते हुये पर्याप्त अमृत देते हैं। (1.159.2)
आकाश को पिता और पृथिवी को माता की परम्परा हिन्दू धार्मिक मान्यता का अपरिहार्य अंग है। भारतीयों में हर दिन प्रात: काल सोकर उठने के बाद धरती पर पैर रखने के पहले धरती से क्षमा मांगने की प्रथा थी —
“समुद्रवसने देवि, पर्वत स्तन मंडले। विष्णु पत्रि नमस्तुभ्यं पाद स्पर्श क्षमस्व मे।”
भारत देश के अर्थ में सिन्धु शब्द का प्रयोग पाणिनी (5वीं सदी ई. पू.) की अष्टाध्यायी (4.3.93) में हुआ है।
सिन्धु देश के लोगों को सैन्धव कहा गया है। खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख (पहली शताब्दी ई. पू. के आसपास) में भारतवर्ष शब्द आया है। विष्णुपराण में भारत की सीमा का उल्लेख किया गया है। उसमें कहा गया है
“उत्तरं यत्समुदस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षंतद् भारतं नाम भारती यत्र संतति:।।”
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