रोहि सुधरेगा नहीं , सदियों तक ये देश।।
अनपढ़ बैठे दे रहे , मंचों पर उपदेश।।
मंचों पर उपदेश पंच बैठे हैं अन्यायी ।
वारदात के बाद पुलिस लपके से आयी।।
राजनीति का खेल , विपक्षी बना है द्रोही।
जुल्मों का ये ग्राफ क्रम बनता आरोहि ।।
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पाखण्डी इस देश में , पाते हैं सम्मान ।
अन्ध भक्त बैठे हुए, लेते उनसे ज्ञान ।।
लेते उनसे ज्ञान मति गयी उनकी मारी ।
दौलत के पीछे पड़े, उम्र बीत गयी सारी
स्वर" ईश्वर बिकते जहाँ ,दुनियाँ ऐसी मण्डी।
भाँग धतूरा ,कहीं चिलम फूँक रहे पाखण्डी।।
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रोहि सुधरेगा नहीं ,सदियों तक अपना देश।।
अनपढ़ बैठे दे रहे पढने वालों को उपदेश।।
पढने वालों को उपदेश राजनीति है गन्दी।
बेरोजगारी भी बड़ी और पड़ी देश में मन्दी।।
अपराधी ज़ालिम बड़े और लड़े देश में द्रोही।
किसी की ना सुनता कोई , जुल्म बना आरोहि।।
भाई कमाल के आशिक थे तुम भी
मुद्दतों ये मुद्दा सरफराज करते हैं।
दिल में उमड़ते मोहब्बत के बादल
आज भी बयाने अंदाज करते है।।
बवाल की परम्परा को आप संजोये हुए हैं।
खाम खां इश्क में रोये हुए हैं।
मोहब्बत में कहीं तुम सहादत न करना
उलफत की जंग बहुत तो खोए हुए हैं।
बवाल की परम्परा को आप संजोये हुए हैं।
खाम खां इश्क में रोये हुए हैं।
मोहब्बत में कहीं तुम सहादत न करना
उलफत की जंग बहुत तो खोए हुए हैं।
मजबूरियाँ हालातों के जब से साथ हैं।
सफर में सैकड़ों हजारों फुटपाथ हैं।।
सम्हल रहा हूँ जिन्दगी की दौड़ में गिर कर !
किस्मतों को तराशने वाले भी कुछ हाथ हैं।
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