बुद्धो नाम्नां जनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥२४॥
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहय सुरदिशाम् ।
बुद्धो नाम्नांजनसुतः कीकटेषु भविष्यति ॥(1/ 3 / 24)
बुद्धो नाम्नांजनसुतः कीकटेषु भविष्यति ॥(1/ 3 / 24)
भागवत पुराण-|1.3.24||
अर्थ:
1: फिर, कलियुग के आरंभ के दौरान , सुरों (देवों) से शत्रुता रखने वालों को अपमानित करने के लिए , 2: भगवान का अवतार
बुद्ध के नाम से अजिन के पुत्र के रूप में कीकट" नामक स्थान पर हुआ ।
इसी से सम्बन्धित तथ्य अग्निपुराण में भी है।
जिसमें बुद्ध और महावीर दौंनों को विष्णु का अवतार वर्णित किया गया है।
संस्कृत्य यादवान् पार्थो दत्तोदकधनादिकः।
स्त्रियोष्टावक्रशापेन भार्य्या विष्णोश्च याः स्थिताः।७।
पुनस्तच्छापतो नीता गोपालैर्लगुडायुधैः।
अर्जुनं हि तिरस्कृत्य पार्थः शोकञ्चकार ह ।८।
(अग्निपुराण अध्यायः १५)
गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार के प्रमाण इन ग्रंथों में
वर्णित है – हरिवंश पर्व (1.41) , विष्णु पुराण (3.18), भागवत
पुराण (1.3.24, 2.7.37, 11.4.23) , गरुड़ पुराण (1.1, 2.30.37, 3.15.26) , अग्निपुराण (16), नारदीय पुराण (2.72) , लिंगपुराण (2.71) और पद्म पुराण (3.252) आदि।
बुद्ध भगवान के अवतार
इसका प्रमाण भी पुराणों में प्राप्य इस रुप में व्यक्त है।
एतस्मिनैव काले तु कलिना संस्मृतो हरिः।
काश्यपादुद्भवो देवो गौतमो नाम विश्रुतः।
बौद्धधर्मं समाश्रित्य पट्टणे प्राप्तवान्हरिः।
(भविष्य पुराण)
कलियुग की प्रार्थना पर काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनःयोद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हारकर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया। इस प्रकार से सभी प्रमाणों को एक साथ देखा जाय तो बुद्ध कई हैं, तथा सभी अवतार ही हैं जो उद्देश्य विशेष से यथासमय आते हैं। यदि प्रकाश में व्यक्ति हत्या कर रहा हो तो जान बचाने वाला अन्धकार कर देता है। वैसे ही जब धर्म का नाम लेकर
म्लेच्छों में ब्राह्मण बन कर अधर्म प्रारम्भ किया तो उन्हें ठीक करने के लिए भगवान ने बुद्ध के रूप में आकर कहा कि जिस ईश्वर और धर्म के नाम पर तुम ये सब कर रहे हो, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। बाद में जयदेव कवि आदि ने भी कारुण्यमातान्वते, निन्दसि यज्ञविधे,सदय पशुघातम् आदि शब्दों के द्वारा इसी बात को प्रमाणित किया कि श्रीहरि का ही अवतार भिन्न भिन्न समयों में बुद्ध को रूप में हुआ था ।
काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर
बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
“शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे।
वर्णित है – हरिवंश पर्व (1.41) , विष्णु पुराण (3.18), भागवत
पुराण (1.3.24, 2.7.37, 11.4.23) , गरुड़ पुराण (1.1, 2.30.37, 3.15.26) , अग्निपुराण (16), नारदीय पुराण (2.72) , लिंगपुराण (2.71) और पद्म पुराण (3.252) आदि।
बुद्ध भगवान के अवतार
इसका प्रमाण भी पुराणों में प्राप्य इस रुप में व्यक्त है।
एतस्मिनैव काले तु कलिना संस्मृतो हरिः।
काश्यपादुद्भवो देवो गौतमो नाम विश्रुतः।
बौद्धधर्मं समाश्रित्य पट्टणे प्राप्तवान्हरिः।
(भविष्य पुराण)
कलियुग की प्रार्थना पर काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनःयोद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हारकर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया। इस प्रकार से सभी प्रमाणों को एक साथ देखा जाय तो बुद्ध कई हैं, तथा सभी अवतार ही हैं जो उद्देश्य विशेष से यथासमय आते हैं। यदि प्रकाश में व्यक्ति हत्या कर रहा हो तो जान बचाने वाला अन्धकार कर देता है। वैसे ही जब धर्म का नाम लेकर
म्लेच्छों में ब्राह्मण बन कर अधर्म प्रारम्भ किया तो उन्हें ठीक करने के लिए भगवान ने बुद्ध के रूप में आकर कहा कि जिस ईश्वर और धर्म के नाम पर तुम ये सब कर रहे हो, उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। बाद में जयदेव कवि आदि ने भी कारुण्यमातान्वते, निन्दसि यज्ञविधे,सदय पशुघातम् आदि शब्दों के द्वारा इसी बात को प्रमाणित किया कि श्रीहरि का ही अवतार भिन्न भिन्न समयों में बुद्ध को रूप में हुआ था ।
काश्यप गोत्र में भगवान विष्णु ने गौतम के नाम से अवतार लेकर
बौद्धधर्म का विस्तार करते हुए पटना चले गये। पुनः लोग यह शंका करेंगे कि हमें राजा शुद्धोदन का भी नाम चाहिये, तो इसका प्रमाण भी उपलब्ध होता है।
“शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे।
शुद्धोदनस्तमालोक्य महासारं रथायुतैः प्रावृतं तरसा
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हार कर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया।
मायादेवीमानेतुमाययौ ३. बौद्धा शौद्धोदनाद्यग्रे कृत्वा तामग्रतः पुनः योद्धुं समागता म्लेच्छकोटिलक्षशतैर्वृताः” (कल्कि पुराण,)
इस प्रसंग में वर्णन है कि जब कल्कि जी बौद्धों और म्लेच्छों का
विनाश करने लगेंगे तो बुद्ध, उनके पिता शुद्धोदन तथा माता मायादेवी पुनः प्रकट होंगे तथा म्लेच्छों के साथ मिलकर कल्कि जी से युद्ध करेंगे। इसी युद्ध के वर्णन के अंतर्गत वर्णन है कि जब शुद्धोदन हार कर मायादेवी को बुलाने चला गया तो बौद्धों ने शुद्धोदन के पुत्र का आश्रय लेकर लाखों करोड़ों म्लेच्छों कि सहायता से युद्ध करना आरम्भ किया।
आधुनिक मान्यता के अनुसार गौतम बुद्ध को ही बुद्धावतार माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे। पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में ब्राहमण परिवार में हुआ बताया गया है। उनके माता का नाम अंजना और पिता का नाम हेमसदन बताया गया है।
पुराणों में भगवान् विष्णु के चैबीस समान्य अवतार बतलाए गए हैं। इनमें बुद्ध का स्थान तेइसवां है। 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते है।
पुराणों में भगवान् विष्णु के चैबीस समान्य अवतार बतलाए गए हैं। इनमें बुद्ध का स्थान तेइसवां है। 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते है।
ब्रह्मा का जन्म होता हैं और ये भगवान का दूसरा अवतार हैं। अब ये भी स्थापित हो गया हैं कि विष्णु जी भी भगवान के अवतार हैं।
शंकराचार्य ने भगवान बुद्ध व गौतम बुद्ध को अलग-अलग व्यक्ति बताया
श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध अलग-अलग व्यक्ति थे। दोनों का जन्म अलग-अलग काल में हुआ था। जिस गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार घोषित किया गया था, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके सैकड़ों साल बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध क्षत्रिय राजकुमार थे।
ब्राह्मण काल के थे भगवान बुद्ध
कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। इनकी चर्चा वेदों में भी हुई है। भगवान के ये अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत में है। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था।
शंकराचार्य ने भगवान बुद्ध व गौतम बुद्ध को अलग-अलग व्यक्ति बताया
श्रीगोवर्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध अलग-अलग व्यक्ति थे। दोनों का जन्म अलग-अलग काल में हुआ था। जिस गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अंशावतार घोषित किया गया था, उनका जन्म कीकट प्रदेश (मगध) में ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके सैकड़ों साल बाद कपिलवस्तु में जन्मे गौतम बुद्ध क्षत्रिय राजकुमार थे।
ब्राह्मण काल के थे भगवान बुद्ध
कर्मकांड में जिस बुद्ध की चर्चा होती है वे अलग हैं। इनकी चर्चा वेदों में भी हुई है। भगवान के ये अंशावतार हैं। इनकी चर्चा श्रीमद्भागवत में है। इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था।
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