रविवार, 18 दिसंबर 2022

राजपूतों की उत्पत्ति-


राजपूतों की उत्पत्ति और मुगलों से उनके वैवाहिक सम्बन्ध-

"भारतीय धरापर अनादि काल से अनेक जनजातियों का आगमन हुआ।

छठी सातवीं ईस्वी में भी अनेक जन-जातीयाँ का भारत में आगमन हुआ। जो या तो यहाँ व्यापार करने के लिए आये अथवा इस देश को लूटने के लिए आये। कुछ चले भी गये तो कुछ अन्त में यहीं के होकर रह गये। 

________

वास्तव में भारतीय प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों में ग्रन्थों के मिथकों के प्राचीनतम होने से उन आगन्तुक मानव जातियों का वर्णन भी नहीं मिलता है । कालान्तर में जब भारतीय संस्कृति में अनेक विजातीय तत्वों का समावेश हुआ तो परिणाम स्वरूप उनकी वंशावली का निर्धारण हुआ ताकि उन्हें  किसी प्रकार भारतीयता से सम्बद्ध किया जाये  ?  अथवा इन वंशों को प्राचीनता का पुट देने के लिए सूर्य और चन्द्र वंश की कल्पना इनके साथ कर दी गयी ।
जो  वास्तविक रूप से  हिब्रू संस्कृति के साम और हाम का ही भारतीय रूपान्तरण  है ।
भारतीय धरा पर उभरती नवीन जातियों ने भी राजपूतों के रूप में कभी अपने को सूर्यवंश से जोड़ा तो कभी चन्द्रवंश से  यद्यपि यादवों को सोमवंश और राम के  वंशजो को सूर्यवंश से सम्बन्धित होना तो भारतीय पुराणों में वर्णित किया गया है । परन्तु राम का वंश और जीवन चरित्र प्रागैतिहासिकता के गर्त में समाविष्ट है । फले ही जातीय स्वाभिमान के लिए कोई स्वयं को राम से जोड़ ले परन्तु राम का वर्णन अनेक संस्कृतियों में मिथकीय रूप में हुआ है।
राम के जीवन " जन्म तथा वंश का कोई कालक्रम भारतीय सन्दर्भ में समीचीन या सम्यक्‌  रूप से नहीं हैं ।
अनेक पूर्वोत्तर और पश्चिमी देशों की संस्कृति में राम का वर्णन उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुरूप है ।
मिश्र, थाइलैंड, खेतान, ईरान- ईराक (मेसोपोटामिया) दक्षिणी अमेरिका, इण्डोनेशिया तथा भारत में भी राम कथाओं का विस्तार अनेक रूपों में हुआ है। भले ही भारत में आज कुछ लोग स्वयं को राम का वंशज कह कर सूर्य वंश से जोड़े परन्तु यह सब निराधार ही है।
हाँ चन्द्र वंश या कहें सोम वंश जिसके  सबसे प्राचीन वंश धारक यादव लोग हैं।
साम से सोम शब्द कि रूपांतरण हुआ जिसे दैवीय रूप देने को लिए सोम( चन्द्र) बना दिया
वे आज भी अहीरों, गोपों और घोष आदि के रूप में गोपालक को रूप में अब तक पशुपालन में संलग्न हैं। पौराणिक सन्दर्भों से विशेषत: पद्मपुराण सृष्टि- खण्ड स्कन्दपुराण (नागर-खण्ड ) तथा नान्दीपुराण से प्राप्त जानकारी के अनुसार वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री एक आभीर जाति के परिवार से सम्बन्धित कन्या थी।



117. वही (सहस्रबाहू) पशुओ का पालक (रक्षक) और भूमि में बीज वपन करने वाला हुआ; वही निश्चित रूप ही खेतों का रक्षक और कृषक था; वह अकेले ही अपने योगबल के माध्यम से वर्षा के लिए बादल बन गया सब कुछ अर्जन करने से अर्जुन बन गया।
(पद्मपुराण सृष्टिखण्ड अध्याय १२)-
इस प्रकार आर्य शब्द भी कृषि से सम्बन्धित था। जैसा कि वैदिक सन्दर्भों में अब भी है।
_____________________________

आधुनिक राजपूत शब्द एक जाति से अब संघ या वाचक बन गया है।
जबकि क्षत्रिय आज भी एक वर्णव्यवस्था का अंग है।  पुराणों में राजपूतों का वर्णन होने से ये छठी सातवीं सदी के तो हैं ही अधिकतर पुराण इस काल तक लिखे जाते रहे हैं। परन्तु पद्मपुराण का सृष्टि खण्ड सबसे प्राचीन है। जिसमें वर्णन है कि अहीर (आभीर) जाति कि कन्या गायत्री सा विवाह यज्ञ कार्य हेतु विष्णु भगवान द्वारा पुष्कर क्षेत्र में ब्रह्मा से पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न कराया गया  और अन्त में सभी अहीरों को विदाई के समय विष्णु भगवान द्वारा आश्वस्त करते हुए अहीर जाति के यदुवंश में द्वापर युग में अपने अवतरण लेने की बात कहीं।
तथा अन्य पुराण देवीभागवत मार्कण्डेय और हरिवंश पुराण आदि में वरुण प्रेरित ब्रह्मा के आदेश द्वारा कश्यप को वसुदेव गोप के रूप में मथुरा नगरी में जन्म लेने के लिए कहा ।
देवीभागवत पुराण के द्वादश स्कन्ध में वसुदेव स्वयं पिता कि मृत्यु के पश्चात कृषि और गोपालन से जीविका निर्वहन करते हैं।
___________
परन्तु आज जो जनजातियाँ पौराणिक सन्दर्भों में वर्णित नहीं हैं ।वे स्वयं को कभी सूर्य वंश से जोड़ती हैं तो कभी चन्द्र वंश से और  इस प्रकार पतवार विहीन नौका के समान इधर से उधर भटकते हुए किनारों से परे ही रहती हैं। 
आज ये जनजातियाँ स्वयं को राजपूत मानती हैं और यदुवंश से सम्बन्धित करने के लिए पूरा जोर लगा रहीं हैं । सम्भव है अहीरों से ही जिनकी निकासी हुई हो परन्तु वे इस बात को मानने के पक्षधर नहीं हैं। हम आपके संज्ञान में यह तथ्य प्रेषित कर दें कि ययाति के शाप के परिणाम-स्वरूप यादवों में लोकतन्त्र शासन की व्यवस्था का परम्परागत स्थापन हुआ ।
"प्रसन्नशुक्रवचनाज्व जरां संकामयितुं ज्येष्ठं पुत्रं यदुमुवाच,--त्वन्माता महशापादियमकालेनैव जरा मामुपस्थिता । तानहं तस्यैवानुग्रहादू भवतः सञ्च रायाम्येकं वर्षसहस्त्रम्, त तृप्तोऽस्मि विषयेषु, त्वदूयसा विषयानह भोक्तुमिच्छामि ।। ४-१०-४ ।।

नात्र भवता प्रत्याख्यानं कर्त्तव्यमित्युक्तः स नैच्छत् तां जरामादातुम ।तञ्चपि पिता शशाप,--त्वत प्रसूतिर्न राज्यार्हा भविष्यतीति ।। ४-१०-५ ।।                    (विष्णु पुराण 

चतुर्थांश अध्याय दस)

न हि राज्येन मे कार्यं नाप्यहं नृप काङ्क्षितः ।

न चापि राज्यलुब्धेन मया कंसो निपातितः । ४८।
किं तु लोकहितार्थाय कीर्त्यर्थं च सुतस्तव ।
व्यङ्गभूतः कुलस्यास्य सानुजो विनिपातितः । ४९।
अहं स एव गोमध्ये गोपैः सह वनेचरः ।
प्रीतिमान् विचरिष्यामि कामचारी यथा गजः । 2.32.५० ।
एतावच्छतशोऽप्येवं सत्येनैतद् ब्रवीमि ते ।
न मे कार्यं नृपत्वेन विज्ञाप्यं क्रियतामिदम् । ५१ ।
भवान राजास्तु मान्यो मे यदूनामग्रणीः प्रभुः ।
विजयायाभिषिच्यस्व स्वराज्ये नृपसत्तम ।५२ ।।
यदि ते मत्प्रियं कार्यं यदि वा नास्ति ते व्यथा ।
मया निसृष्टं राज्यं स्वं चिराय प्रतिगृह्यताम् ।५३ 
।( हरिवंशपुराण विष्णुपर्व अध्याय ३२)।
"नरेश्वर! मुझे राज्य से कोई प्रयोजन नहीं है। न तो मैं राज्य का अभिलाषी हूँ और न राज्य के लोभ से मैंने कंस को मारा ही है। मैंने तो केवल लोकहित के लिये और कीर्ति के लिये भाई सहित तुम्हारे पुत्र को मार गिराया है। जो इस कुल का विकृत (सड़ा हुआ) अंग था। मैं वही वनेचर होकर गोपों के साथ गौओं के बीच प्रसन्नतापूर्वक विचरूंगा, जैसे इच्छानुसार विचरने वाला हाथी वन में स्वच्छन्दक घूमता है मैं सत्य की शपथ खाकर इन बातों को सौ-सौ बार दुहराकर आपसे कहता हूं, मुझे राज्य से कोई काम नहीं है, आप इसका विज्ञापन कर दीजिये आप यदुवंशियों के अग्रगण्य स्वामी तथा मेरे लिये भी माननीय हैं, अत: आप ही राजा हो। नृपश्रेष्ठ! अपने राज्यों पर अपना अभिषेक कराइये, आपकी विजय हो यदि आपको मेरा प्रिय कार्य करना हो अथवा आपके मन में मेरी ओर से कोई व्यथा न हो तो मेरे द्वारा लौटाये गये इस राज्य को दीर्घकाल के लिये ग्रहण करें।' ।श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/पूर्वार्धः/अध्यायः ४५
←  श्रीमद्भागवतपुराणम्
       अध्यायः ४५

वसुदेवदेवकी सान्त्वनम्; उग्रसेनस्य राज्याभिषेकः; रामकृष्णयोरुपनयनं विद्याध्ययनं, गुरुर्मृतपुत्रस्यानयनं च -

अथ पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः
श्रीशुक उवाच
पितरावुपलब्धार्थौ विदित्वा पुरुषोत्तमः
मा भूदिति निजां मायां ततान जनमोहिनीम् ।१।
उवाच पितरावेत्य साग्रजः सात्वर्षभः
प्रश्रयावनतः प्रीणन्नम्ब तातेति सादरम्। २।
नास्मत्तो युवयोस्तात नित्योत्कण्ठितयोरपि
बाल्यपौगण्डकैशोराः पुत्राभ्यामभवन्क्वचित् ।३।
न लब्धो दैवहतयोर्वासो नौ भवदन्तिके
यां बालाः पितृगेहस्था विन्दन्ते लालिता मुदम् ।४।
सर्वार्थसम्भवो देहो जनितः पोषितो यतः
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मर्त्यः शतायुषा। ५।
यस्तयोरात्मजः कल्प आत्मना च धनेन च
वृत्तिं न दद्यात्तं प्रेत्य स्वमांसं खादयन्ति हि ।६।
मातरं पितरं वृद्धं भार्यां साध्वीं सुतं शिशुम्
गुरुं विप्रं प्रपन्नं च कल्पोऽबिभ्रच्छ्वसन्मृतः ।७।
तन्नावकल्पयोः कंसान्नित्यमुद्विग्नचेतसोः
मोघमेते व्यतिक्रान्ता दिवसा वामनर्चतोः ।८।
तत्क्षन्तुमर्हथस्तात मातर्नौ परतन्त्रयोः
अकुर्वतोर्वां शुश्रूषां क्लिष्टयोर्दुर्हृदा भृशम् ।९।
श्रीशुक उवाच
इति मायामनुष्यस्य हरेर्विश्वात्मनो गिरा
मोहितावङ्कमारोप्य परिष्वज्यापतुर्मुदम् ।१०।
सिञ्चन्तावश्रुधाराभिः स्नेहपाशेन चावृतौ
न किञ्चिदूचतू राजन्बाष्पकण्ठौ विमोहितौ ।११।
एवमाश्वास्य पितरौ भगवान्देवकीसुतः
मातामहं तूग्रसेनं यदूनामकरोन्नृपम् ।१२।
आह चास्मान्महाराज प्रजाश्चाज्ञप्तुमर्हसि
ययातिशापाद्यदुभिर्नासितव्यं नृपासने ।१३।
मयि भृत्य उपासीने भवतो विबुधादयः
बलिं हरन्त्यवनताः किमुतान्ये नराधिपाः ।१४।
सर्वान्स्वान्ज्ञातिसम्बन्धान्दिग्भ्यः कंसभयाकुलान्

_______

यदु वंश में कभी भी कोई पैत्रक या वंशानुगत रूप से राजा नहीं हुआ राजतन्त्र प्रणाली को यादवों ने कभी नही आत्मसात् किया चाहें वह त्रेता युग का सम्राट सहस्रबाहू अर्जुन हो अथवा शशिबिन्दु  ये सम्राट अवश्य बने परन्तु लोकतन्त्र प्रणाली से अथवा अपने पौरुषबल से ही बने पिता की विरासत से नही इसी प्रकार वर्ण -व्यवस्था भी यादवों ने कभी नहीं स्वीकार की । अत: राजा सम्बोधन यादवों के लिए कभी नहीं रहा कृष्ण को कब राजा कहा गया 
राजपूतों की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे इतिहास में कई मत प्रचलित हैं।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजपूत संस्कृत के राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है; राजपुत्र शब्द हिन्दू धर्म ग्रंथों में कई स्थानों पर देखने को मिल जायेगा लेकिन वह जातिसूचक के रूप में नही होता अपितु  किसी भी राजा के संबोधन सूचक शब्द के रूप में होता है । 
परन्तु  अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि पुराणों में एक स्थान पर राजपुत्र जातिसूचक शब्द के रूप में आया है जो कि इस प्रकार है-👇
____________________________________ 
भावार्थ:- क्षत्रिय से करण-कन्या(वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से ) में राजपुत्र और राजपुत्र की कन्या में करण द्वारा 'आगरी' उत्पन्न हुआ।
राजपुत्र के क्षत्रिय पुरुष द्वारा करण कन्या के गर्भ में उत्पन्न होने का वर्णन (शब्दकल्पद्रुम) में भी आया है- "करणकन्यायां क्षत्त्रियाज्जातश्च इति पुराणम् ॥" अर्थात:- क्षत्रिय पुरुष द्वारा करण कन्या में उतपन्न संतान...
यूरोपीय विश्लेषक मोनियर विलियमस् ने भी लिखा है कि-
A rajpoot,the son of a vaisya by an ambashtha or the son of Kshatriya by a karan...
~A Sanskrit English Dictionary:Monier-Williams, page no. 873
शब्दकल्पद्रुम व वाचस्पत्य में भी एक अन्य स्थान पर भी राजपुत्र शब्द जातिसूचक शब्द के रूप में आया है; जो कि इस प्रकार है:-
 ३- वर्णसङ्करभेदे राजपुत्र “वैश्यादम्बष्ठकन्यायां
राजपुत्रस्य सम्भवः” इति पराशरःसंहिता ।
अर्थात:- वैश्य पुरुष के द्वारा अम्बष्ठ कन्या में राजपूत उतपन्न होता है।
राजपूत सभा के अध्यक्ष श्री गिर्राज सिंह लोटवाड़ा जी के अनुसार राजपूत शब्द रजपूत शब्द से बना है जिसका अर्थ वे मिट्टी का पुत्र बतलाते हैं। थोड़ा अध्ययन करने के बाद ये रजपूत शब्द हमें स्कंद पुराण के सह्याद्री खण्ड में देखने को मिलता है जो कि इस प्रकार एक वर्णसंकर जाति के अर्थ में है-
___________________________________
 उपर्युक्त सन्दर्भ:-(स्कन्दपुराण- आदिरहस्य सह्याद्रि-खण्ड- व्यास देव व सनत्कुमार का संकर जाति विषयक संवाद नामक २६ वाँ अध्याय-श्लोक संख्या- ४७,४८,४९ पर राजपूतों की उत्पत्ति वर्णसंकर के रूप में है ।भावार्थ:-क्षत्रिय से शूद्र जाति की स्त्री में राजपूत उत्पन्न होता है यह भयानक, निर्दय , शस्त्रविद्या और रण में चतुर तथा शूद्र धर्म वाला होता है ;और शस्त्र- वृत्ति से ही अपनी जीविका चलाता है )
कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है। लेकिन अमरकोष में राजपूत और क्षत्रिय शब्द को परस्पर पर्यायवाची नही बतलाया है; स्वयं देखें-
अर्थात:मूर्धाभिषिक्त,राजन्य,बाहुज,क्षत्रिय,विराट्,राजा,राट्,पार्थिव,क्ष्माभृत्,नृप,भूप,और महिक्षित ये क्षत्रिय शब्द के पर्याय है।
इसमें 'राजपूत' शब्द या तदर्थक कोई अन्य शब्द नहीं आया है।



पुराणों के निम्न श्लोक को पढ़ें-
-ब्रह्मवैवर्तपुराणम्/खण्डः १ (ब्रह्मखण्डः)/अध्यायः १०/श्लोकः (९९)
भावार्थ:-क्षत्रिय के बीज से राजपुत्र की स्त्री में तीवर उतपन्न हुआ।वह भी व्याभिचार दोष के कारण पतित कहलाया।
यदि क्षत्रिय और राजपूत परस्पर पर्यायवाची शब्द होते तो क्षत्रिय पुरुष और राजपूत स्त्री की संतान राजपूत या क्षत्रिय ही होती न कि तीवर या धीवर ! इसके अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम में राजपुत्र को वर्णसंकर जाति लिखा है जबकि क्षत्रिय वर्णसंकर नही...
Manohar Laxman  varadpande(1987). History of Indian theatre: classical theatre. Abhinav Publication. Page number 290
"The word kshatriya is not synonyms with Rajput."
अर्थात- क्षत्रिय शब्द राजपूत का पर्यायवाची नहीं है। मराठी इतिहासकार कालकारंजन  ने अपनी पुस्तक (प्राचीन- भारताचा इतिहास) के हर्षोत्तर उत्तर भारत नामक विषय के प्रष्ठ संख्या ३३४ में राजपूत और वैदिक क्षत्रिय भिन्न भिन्न बतलाये हैं। वैदिक क्षत्रियों द्वारा पशुपालन करने का उल्लेख धर्म ग्रंथों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है जबकि राजपूत जाति पशुपालन को अत्यंत घृणित दृष्टि से देखती है और पशुपालन के प्रति संकुचित मानसिकता रखती है...
महाभारत में जरासंध पुत्र सहदेव द्वारा गाय भैंस भेड़ बकरी को युधिष्ठिर को भेंट करने का उल्लेख मिलता है;युधिष्ठिर जो कि एक क्षत्रिय थे पशु पालन करते होंगे तभी कोई भेंट में पशु देगा-
~महाभारत सभापर्व(जरासंध वध पर्व)अध्याय: २४श्लोक: ४१-सहदेव ने कहा- प्रभो! ये गाय, भैंस, भेड़-बकरे आदि पशु, बहुत से रत्न, हथी-घोड़े और नाना प्रकार के वस्त्र आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं। गोविन्द! ये सब वस्तुएँ धर्मराज युधिष्ठिर को दीजिये अथवा आपकी जैसी रुचि हो, उसके अनुसार मुझ सवा के लिये आदेश दीजिये। इसके अतिरिक्त कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता ७/१/४/९ में क्षत्रिय को भेड़ पालने के लिए कहा गया है
कुछ विद्वानों के अनुसार राजपूत एक संघ है 
जिसमें अनेक जन-जातियों का समायोजन है-
Brajadulal Chattopadhyay 1994; page number 60- प्रारंभिक मध्ययुगीन साहित्य बताता है कि इस नवगठित राजपूत में कई जातियों के लोग शामिल थे। भारतीय तथा यूरोपीय विद्वानों ने इस ऐतिहासिक तथ्य का पूर्णतः पता लगा लिया है कि जिस काल में इस जाति का भारत के राजनैतिक क्षेत्र में पदार्पण हुआ था, उस काल में यह एक नवागन्तुक जाति समझती जाती थी। बंगाल के अद्वितीय विद्वान स्वर्गीय श्री रमेशचंद्र दत्त महोदय अपने (Civilization in Ancient India) नामक प्रसिद्ध ग्रंथ के भाग-२ , प्रष्ठ १६४ में लिखते है-
आठवीं शताब्दी के पूर्व राजपूत जाति हिंदू आर्य नहीं समझी जाती थी। देश के साहित्य तथा विदेशी पर्यटकों के भृमण वृत्तान्तों में उनके नाम का उल्लेख हम लोगों को नहीं मिलता और न उनकी किसी पूर्व संस्कृति के चिन्ह देखने में आते हैं। डॉक्टर एच० एच० विल्सन् ने यह निर्णय किया है कि ये(राजपूत)उन शक आदि विदेशियों के वंशधर है जो विक्रमादित्य से पहले,सदियों तक भारत में झुंड के झुंड आये थे।
विदेशी जातियां शीघ्र ही हिंदू बन गयी।वे जातियाँ अथवा कुटुम्ब जो शासक पद को प्राप्त करने में सफल हुए हिंदुओं की राज्यशासन पद्धति में क्षत्रिय बनकर तुरन्त प्रवेश कर गए।इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तर के परिहार तथा अनेक अन्य राजपूत जातियों का विकास उन बर्बर विदेशियों से हुआ है, जिनकी बाढ़ पाँचवीं तथा छठी शताब्दीयों में भारत में आई थी।
इतिहास-विशारद स्मिथ साहब अपने Early History of India including Alexander's Compaigns, second edition,page no. 303 and 304 में लिखते हैं-
आगे दक्षिण की ओर से बहुत सी आदिम अनार्य जातियों ने भी हिन्दू बनकर यही सामाजिक उन्नति प्राप्त कर ली,जिसके प्रभाव से सूर्य और चंद्र के साथ सम्बन्ध  जोड़ने वाली वंशावलियों से सुसज्जित होकर गोड़, भर,खरवार आदि क्रमशः चन्देल, राठौर,गहरवार तथा अन्य राजपूत जातियाँ बनकर निकल पड़े।
इसके अतिरिक्त स्मिथ साहब अपने The Oxford student's history of India, Eighth Edition, page number 91 and 92 में लिखते हैं- उदाहरण के लिए अवध की प्रसिद्ध राजपूत जाति जैसों को लीजिये।ये भरों के समीपी सम्बन्धी अथवा अन्य इन्हीं की संतान हैं।आजकल इन भरों की प्रतिनिधि, अति ही नीची श्रेणी की एक बहुसंख्यक जाति है।
जस्टिस कैम्पबेल साहब ने लिखा है कि प्राचीन-काल की रीति-रिवाजों (आर्यों की) को मानने वाले जाट, नवीन हिन्दू-धर्म के रिवाजों को मानने पर राजपूत हैं। जाटों से राजपूत बने हैं न कि राजपूतों से जाट। जबकि स्व० प्रसिद्ध इतिहासकार  शूरवीर पँवार ने अपने एक शोध आलेख में गुर्जरों को राजपूतों का पूर्वज माना है।
मुहम्मद कासिम फरिश्ता ने भी राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में फ़ारसी में अपनी पुस्तक
"तारीक ऐ फरिश्ता" में अपना मत प्रस्तुत किया है इस पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद किया -
Lt Colonel John Briggs ने जो मद्रास आर्मी में थे, किताब के पहले वॉल्यूम ( Volume - 1 ) के Introductory Chapter On The Hindoos में पेज नंबर 15 पर लिखा है-
The origion of Rajpoots is thus related The rajas not satisfied with their wives, had frequently children by their female slaves who although not legitimate successors to the throne ,were Rajpoots or the children of the rajas "अर्थात:- राजा अपनी पत्नियों से संतुष्ट नहीं थे, उनकी महिला दासियो द्वारा अक्सर बच्चे होते थे, जो सिंहासन के लिए वैध उत्तराधिकारी नहीं थे, लेकिन इनको राजपूत या राजा के बच्चे या राज पुत्र कहा जाता था । प्रसिद्ध इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद जी ने अपनी पुस्तक- "A Short History Of Muslim Rule In India" के पेज नंबर 19 पर बताया है की राजपुताना में किसको बोला जाता है राजपूत-
The word Rajput in comman paralance,in certain states of Rajputana is used to denote the illegitimate sons of a Ksatriya chief or a jagirdar.-अर्थात:-राजपुताना के कुछ राज्यों में आम बोल चाल में राजपूत शब्द का प्रयोग एक क्षत्रिय मुखिया या जागीरदार के नाजायज बेटों को सम्बोधित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। विद्याधर महाजन जी ने अपनी पुस्तक "Ancient India" जो की 1960 से दिल्ली विश्वविद्यालय में पढाई जा रही है ,  के पेज 479 पर लिखा है:-The word Rajput is used in certain parts of Rajasthan to denote the illegitimate sons of a Kshatriya Chief ar Jagirdar. अर्थात:- राजपूत शब्द राजस्थान के कुछ हिस्सों में एक क्षत्रिय प्रमुख या जागीरदार के नाजायज बेटों को निरूपित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
History of Rise of Mohammadan power in India, volume 1, chapter 8
The Rajas, not satisfied with their wives, had frequently children by their female slaves, who, although not legitimate successors to the throne,were styled rajpoots, or the children of the rajas. 
The muslim Invaders took full advantage of this realy bad and immoral practice popular among indian kings, to find a good alley among hindoos and to also satisfy their own lust and appointed those son of kings as their Governors.
History of Rajsthan book "He was son of king but not from the queen."
राजस्थान का इतिहास भाग-1:-गोला का अर्थ दास अथवा गुलाम होता है। 
भीषण दुर्भिक्षों के कारण राजस्थान में गुलामों की उत्पत्ति हुई थी। इन अकालों के दिनों में हजारों की संख्या में मनुष्य बाजारों में दास बनाकर बेचे जाते थे। पहाड़ों पर रहने वाली पिंडारी और दूसरी जंगली जातियों के अत्याचार बहुत दिनों तक चलते रहे और उन्हीं जातियों के लोगों के द्वारा बाजारों में दासों की बिक्री होती थी, वे लोग असहाय राजपूतों को पकड़कर अपने यहाँ ले जाते थे और उसके बाद बाजारों में उनको बेच आते थे। इस प्रकार जो निर्धन और असहाय राजपूत खरीदे और बेचे जाते थे, उनकी संख्या राजस्थान में बहुत अधिक हो गयी थी और उन लोगों की जो संतान पैदा होती थी, वह गोला के नाम से प्रसिद्ध हुई। इन गुलाम राजपूतों को गोला और उनकी स्त्रियों तथा लड़कियों को गोली कहा जाता था। इन गोला लोगों में राजपूत, मुसलमान और अनेक दूसरी जातियों के लोग पाये जाते हैं।
बाजारों में उन सबका क्रय और विक्रय होता है। बहुत से राजपूत सामन्त इन गोला लोगों की अच्छी लड़कियों को अपनी उपपत्नी बना लेते हैं और उनसे जो लड़के पैदा होते हैं, वे सामन्तों के राज्य में अच्छे पदों पर काम करने हेतु नियुक्त कर दिये जाते हैं। देवगढ़ का स्वर्गीय सामन्त जब उदयपुर राजधानी में आया करता था तो उसके साथ तीन सौ अश्वारोही गोला सैनिक आया करते थे। उन सैनिकों के बायें हाथ एक-एक साने का कडा होता था । जैसा कि राजस्थान का इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है कि इन्हें अच्छे पदों पर काम करने के हेतु नियुक्त किया जाता था और history of Rise of Mohammadan में भी लिखा कि मुगल काल में ये शक्तिशाली होने लगे तब इन्होंने सत्ता के लिए लड़ना प्रारम्भ कर दिया जैसा कि ऐतिहासिक ग्रंथो में ऐसे राजाओं के प्रमाण मिल जायेंगे जो जीवन भर सत्ता के लिए लड़ते रहे जैसा कि कर्नल टॉड की किताब राजस्थान का इतिहास में कन्नौज और अनहिलवाडा के राजाओं ने सत्ता के लिए पृथ्वीराज चौहान को शक्तिहीन करने के लिए गजनी के शाहबुद्दीन को आमंत्रित किया !
और अजीत सिंह ने सत्ता के लिए राजा दुर्गादास राठौर को राज्य से निष्कासित करवा दिया।
राणा सांगा के बड़े भाई पृथ्वीराज के दासी पुत्र बनवीर ने सत्ता के लिए विक्रमादित्य की हत्या करवाई... इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा की एक पुस्तक में प्रताप सिंह द्वारा सत्ता के लिए जगपाल को मारने का उल्लेख मिलता है।
पृथ्वीराज उड़ाना और राणा सांगा के मध्य सत्ता के लिए खुनी झगड़ा होने का ऐतिहासिक पुस्तको में जिक्र मिलता है और इसी झगड़े में राणा सांगा अपनी एक आँख और हाथ खो देते है और पृथ्वीराज उड़ाना को मरवा देते है।
कैसे सत्ता के लिए राजकुमार रणमल राठौर राणा मोकल को रेकय से निकलवा देता है और राणा राघव देव की हत्या करवा देता है!!
ऐसे करके ये सत्ता में बने रहे और इनकी वित्तीय स्थिति काफी मजबूत हो गयी...
भावार्थ:-कलयुग में जिसके पास धन होगा,उसी को लोग कुलीन,सदाचारी और सद्गुणी मानेंगे।जिसके हाथ में शक्ति होगी वही धर्म और न्याय की व्यवस्था अपने अनुकूल करा सकेगा।
राजपूतों ने मुगलों को तो अपनी बेटियाँ दीं राजसत्ताओं के लालच में क्यों कन्या अथवा स्त्री इनके लिए भोग के ही साधन थे हिन्दु स्मृति- ग्रन्थों को आधार मानकर स्त्रियों के प्रति तत्कालीन पुरोहित और राजपूत समाज का दृष्टि कोण  समतामूलक नहीं था लैंगिक स्तर पर स्त्री का बजूद सन्तान उत्पादिका और उपभोग हेतु था।
जब राजपूत और राजपूताना के इतिहास पर चर्चा होती है तो उस काल मे राजपूत शासकों के आश्रित एवं स्वतन्त्र रूप से लिखी गई ख्यातों से तमाम ऐतिहासिक साक्ष्य लिए जाते हैं ।
तथा उनकी पुष्टि करण हेतु अन्य स्रोतों से साम्य करने के बाद उसे इतिहास की शक्ल या प्रारूप दिया जाता है। 
ऐसी ही एक ख्यात का ज़िक्र लेखक और पत्रकार नज़ीर मलिक साहब के हरा ले की जानिब से है जिसमें राष्ट्रकवि "रामाधारी सिंह दिनकर" ने अपनी पुस्तक 
"संस्कृति के चार अध्याय' के पृष्ठ संख्या 232-33 पर दिया है , जिससे पता चलता है कि मुगलों की इच्छा के बाद भी उनकी लड़कियाँ राजपूतों से क्यों नही ब्याही जा सकीं, जब कि राजपूतों की लड़कियां मुगकों के घर आती रहीं।
स्वर्गीय दिनकर जी ने राजस्थान की प्रसिद्ध ख्यात "वीर विनोद" के हवाले से लिखा है कि जब हुमायूँ  अचानक सूरी से हार कर ईरान में शरण लिए हुए था तो एक दिन शेरशाह ने ईरान में हुमायूं से पूछा कि मुगल अपनी बेटियों की शादियां हिन्दुस्न की किसी वीर जाति से की है या नहीं।  
इस पर मुगल शासक हुमायूँ ने बादशाह से कहा कि पठान तो हमारे शत्रु हैं,  और राजपूत हमसे बेटी लेंगे नहीं।  
ये बात हुमायूँ को खटक रही  थी अतः मरने से पूर्व उसने अकबर को आदेश दिया कि वह राजपूतों से दोस्ती करने के लिए उससे रोटी-बेटी का सम्बंध बनाने का प्रयास ज़रूर करे। 
हुमायूँ की इसी वादीयत के मुताबिक अकबर ने कई राजपूत सरदारों से कहा कि वे मुगलों की बेटी से शादिया करें। 
लेकिन अकबर का यह प्रस्ताव राजपूत सरदारों के गले नही उतरा। 

राजपूतों का विचार था। कि अगर उन्होंने मुगल शहज़ादियों से शादियां की तो हिन्दू शास्त्र के अनुसार वे सब भ्रष्ट हो जाएँगे और मुसलमान मान लिए जाएँगे। 

"इसलिए आपस मे सोच विचार कर उन्होंने निर्णय लिया कि राजपूत भले अपनी बेटी मुगलों को व्याह कर उसे त्याग देंगे मगर वे मुगलों की बेटी नही लाएंगे। 
सन्दर्भ- (वीर विनोद, द्वितीय खंड, भाग एक, पृष्ठ 170 की पाद टिप्पणी से )

वीर विनोद नामक ख्यात में लिखी बात की पुष्टि करते हुए राजपूतों की वीरता और वफादारी पर कुछ और भी लिखा है जिसे अकबरकालीन किताब "महसिरुल उमरा" से लिया है।

इन बातों से पता चलता है कि मुगलो की ज़्यादातर शहजादियाँ कुँवारी क्यों राह जाती थी ? दूसरी बात यह कि तत्कालीन हिन्दू धर्म पर बंदिशें कितनी सख्त थीं कि वहाँ किसी मुलिम को हिन्दू धर्म मे शामिल करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी।                                                  जबकि हिन्दू मुस्लिम तो बन सकता था ।
सती प्रथा बालकन्याविवाह आदि कुप्रथाऐं उपभोगात्मक और निज भोगारक्षण को दृष्टि गत करके बनायी गयी थीं ।
________

16वीं शताब्दी के मध्यकालीन समय के बाद, कई राजपूत शासकों ने मुगल सम्राटों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और विभिन्न क्षमताओं से उनकी सेवा की। राजपूतों के समर्थन के कारण ही अकबर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखने में सक्षम हुआ था।राजपूत रईसों ने अपने राजनैतिक उद्देश्यों के लिए मुगल बादशाहों और उनके राजकुमारों से अपनी बेटियों की शादी करवाई थी।

 उदाहरण के लिए, अकबर ने अपने लिए और अपने पुत्रों व पौत्रों के लिए 40 शादियां सम्पन्न कीं, जिनमें से 17 राजपूत-मुगल गठबंधन थे। मुगल सम्राट अकबर के उत्तराधिकारी, उनके पुत्र जहाँगीर और पोते शाहजहाँ की माताएँ राजपूत थीं।

मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत परिवार ने मुगलों के साथ वैवाहिक संबंधों में नहीं जुड़ने को सम्मान की बात बना दिया और इस तरह से वे अन्य सभी राजपूत कुलों से विपरीत खड़े रहे थे।

इस समय के पश्चात राजपुतों और मुगलों के बीच वैवाहिक संबंधों में कुुछ कमी आई।

राजपूतों के साथ अकबर के संबंध तब शुरू हुए थे जब वह 1561 में आगरा के पश्चिम में सीकरी के चिस्ती सूफी शेख की यात्रा से लौटा था। तभी बहुत राजपूत राजकुमारियों ने अकबर से शादी रचाई थी।

राजपूत-मुग़ल वैवाहिक संबंधों की सूची-

मुख्य राजपूत-मुग़ल वैवाहिक संबंधों की सूची

  • जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की. (कछवाहा-अंबेर)
  • 15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)
  • 1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया. (राठौर-जोधपुर)
  • 1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)
  • मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
  • 1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)
  • 16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)
  • 1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)
  • 2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
  • 28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)
  • 1 फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेलाओर्छा)
  • अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)
  • 1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह(राठौर-नागौर)
  • 17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से(राठौर-किशनगढ़)
  • 5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे. (कछवाहा-आंबेर)
  • 30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए(शेखावत-मनोहरपुर)[13][14][15]

सन्दर्भ★-

  1.  Richards, John F. (1995). The Mughal Empire. Cambridge University Press. पपृ॰ 22–24. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-25119-8.
  2.  Bhadani, B. L. (1992). "The Profile of Akbar in Contemporary Literature". Social Scientist20 (9/10): 48–53. JSTOR 3517716डीओआइ:10.2307/3517716.
  3.  Chaurasia, Radhey Shyam (2002). History of Medieval India: From 1000 A.D. to 1707 A.D. Atlantic Publishers & Dist. पपृ॰ 272–273. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-269-0123-4.
  4.  Dirk H. A. Kolff 2002, पृ॰ 132.
  5.  Smith, Bonnie G. (2008). The Oxford Encyclopedia of Women in World History. Oxford University Press. पृ॰ 656. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-514890-9. मूल से 2 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जुलाई 2020.
  6.  Richards, John F. (1995). The Mughal Empire. Cambridge University Press. पृ॰ 23. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-56603-2. मूल से 16 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जुलाई 2020.
  7.  Lal, Ruby (2005). Domesticity and Power in the Early Mughal World. Cambridge University Press. पृ॰ 174. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-85022-3.
  8.  Vivekanandan, Jayashree (2012). Interrogating International Relations: India's Strategic Practice and the Return of History War and International Politics in South Asia. Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-136-70385-0.
  9.  Hansen, Waldemar (1972). The peacock throne : the drama of Mogul India (1. Indian ed., repr. संस्करण). Delhi: Motilal Banarsidass. पपृ॰ 12, 34. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-0225-4.
  10.  Barbara N. Ramusack 2004, पृ॰प॰ 18–19.
  11.  Chandra, Satish (2007). Medieval India: From Sultanat to the Mughals Part-II. Har Anand Publications. पृ॰ 124. मूल से 23 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जुलाई 2020.
  12.  David O. Morgan, Anthony Reid, (2010). The New Cambridge History of Islam: Volume 3, The Eastern Islamic World, Eleventh to Eighteenth Centuries. Taylor and Francis. पृ॰ 213.
  13.  "मुगल नहीं राजपूत थे शाहजहां, ताज पर सवाल क्‍यों?"News18India. 2017-11-01. मूल से 14 मई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-12.
  14.  "राजपूत मां का बेटा शाहजहां सिर्फ़ मुसलमान कैसे"News18India. 2017-10-30. मूल से 11 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-07-12.
  15.  "पद्मावती : जिनके लिए लड़ रहे हो वो तो आपस में मौज से रहते थे"iChowk.in. 2017-11-26. अभिगमन तिथि 2020-07-12.
____________________________________


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें