धाम:- शब्द से तात्पर्य लौकिक जगत में उन सिद्धपीठों से है जहाँ लौकिक
मान्यताओं के अनुसार किसी ईश्वरीय अवतार ने अपनी तपश्चर्या अथवा साधना पूर्ण की हो । यद्यपि धाम शब्द परब्रह्म के जोतिर्मय स्थान का
वाचक है। इस लिए इस शब्द का
वज़न तीर्थ शब्द की अपेक्षा अधिक है।
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मन्दिर :- वह निश्चित स्थान जहाँ अपने इष्ट की प्रतिमा के समक्ष उस निराकार को साकार मानकर उसकी स्तुति की जाए। दूसरा अर्थ उस गृह स्थान से है जहाँ व्यक्ति दिन भर को परिश्रम से थका हुआ विश्राम और शयन करता है।
"मन्द्यते सुप्यतेऽत्र इति मन्दिर = जहाँ पर विश्राम अथवा शयन किया जाए वह मन्दिर है।
यह निम्न व्युत्पत्ति गृह के अर्थ को चरितार्थ करती है। और पूर्व वाली व्युत्पत्ति " मन्दिर शब्द की इस प्रकार है।
"यत्र आत्मनः इष्टस्य मन्द्यते (स्तूयते) इति मन्दिरम् कथ्यते । अर्थात् जहाँ अपने इष्ट की स्तुति की जाए वह निर्धारित स्थान मन्दिर है।
वैदिक धातु मद्= स्तुति स्वप्न मोद मद(नशा) गति आदि अर्थो की वाचक है।( मन्द् /मदि+ किरच्)=मन्दिर ।
मदि= स्वपने स्तुतौ च +“इषि मदिमुदीति। उणादि सूत्र।१। १५२।
इति किरच् ) गृहम्। अमर कोश। २।२।५।
“मदि ङ स्वपने जाड्ये मदे मोदे स्तुतौ गतौ नाम्नीति इरः ।
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तीर्थ:- वह पवित्र वा पुण्य स्थान जहाँ धार्मिक भाव से लोग यात्रा, पूजा या स्नान आदि के लिये जाते हों तीर्थ कहलाता है। तीर्थ किसी पवित्र नदी के तीर( किनारे ) पर स्थित होने से सम्बन्धित हुआ करते थे। इसमें संसार सागर से तारण करने का आध्यात्मिक भाव होने से यह तीर्थ कहलाते थे -
प्रस्तुतिकरण:-
यादव योगेश कुमार रोहि-
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