ये हैं संकल्पों के निश्चयी ।
उदुभुत है ये पागलपन
एक तमन्ना लेकर के
तपता रहा ये तपस्वी मन।।
कुछ करने के यों मरने के
इनके भी अद्भुत इरादे है।
हर फन नें माहिर हैं बन्धु !
नहीं ये सीधे -सादे है -
बस एक तपन ने झुलसा डाला-
जलकर भी खुद को है सम्हाला।।
जिसको जहाँ में भले ठुकरा दे।
उसका रहवर है बंशीवाला।।
सारंग कि बात तो सारंग बनने के लिए तो सभी रंगों को आत्मसात् करना पड़ता है ।
उसके परिणाम स्वरूप तब कहीं कोई सारंग बनता है।
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