गाँधी जी के विषय में उनके विरोधीयों ने अनेक अफवाहे फैलायीं विशेषत: उन लोगों ने जो सदियों से आपस में एक दूसरे को शत्रु थे ।
जो आज ब्राह्मण और दलित अपने को कहते थे । वे गाँधी जी धृष्टतापूर्ण शब्दों में - गाँधी जी को अंग्रेजों और मुसलमानों का वफादार कहकर अपना विरोध प्रकट करते हैं ।
परन्तु गाँधी जी का विरोध अथवा उनके लिए अनुरोध करने का मेरा कोई तात्पर्य नहीं
विदित हो कि गाँधी शब्द संस्कृत गन्धिक का तद्भव. है ।
अर्थात् गाँधी सुगन्ध इत्र और सुगंधित तेल आदि का व्यवसाय करने वाले गुजराती वेश्यों की एक जाति थी जिसमें गाँधी का जन्म हुआ।
इसी लिए एक वैश्य को राष्ट्र के पिता के रूप में
किसी ब्राह्मण ने स्वीकार नहीं किया।
इतना ही नहीं ब्राह्मण वाद कि चपेट में आये हुए हिन्दुत्व कि भाँग पीने वाले - गुप्ता , अग्रवाल और महाजन आदि बनिया महात्मा गाँधी को गाली देने वालों या समर्थन कर रहे हैं।
इसी लिए गाँधी की महानता को रूढ़िवादी और जातवादी कट्टर ब्राह्मण पं० नाथूराम गोडसे सहन नहीं कर पाये। गोडसे चित-पावन ब्राह्मण" थे
विदित हो कि " चितपावन उत्तर भारत के ब्राह्मणों का एक समूह है जिनका वर्तमान निवास स्थान मुख्यतः महाराष्ट्र एवं कोंकण क्षेत्र है।
छठी-सातवीं सदी के आस-पास बिहार से भूमिहार ब्राह्मणों का एक जत्था चलकर महाराष्ट्र के कोंकण में जा बसा और आगे चलकर यही चितपावन कहलाए ।
पुनः 13 वीं सदी के आस-पास कोंकण के चितपावनों का एक जत्था वहां से निकल कर अविभाजित बिहार के दक्षिणी हिस्सों में जा बसे और आज वे भूमिहार ब्राह्मण के नाम से जाने जाते हैं।
स्थानीय भाषा में इन्हें ही चितपौनिया भूमिहार ब्राह्मण कहा जाता है।
अर्थात्
बिहार झारखंड मे बसे भूमिहार(बाभन) की उपजाति चितपौनिया भूमिहार
अत; एक रूढ़िवादी ब्राह्मण गोडसे ये कैसे स्वीकार करते इसीलिए इन्होंने हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व करते हुए मानवता को पुजारी महात्मा गाँधी को वर्णव्यवस्था को नष्ट करने वाला और भंगी शूद्र आदि निम्न जातियों का हरिजन के रूप नें नामकरण कर उत्थान करने को अपराध करने वाला मानकर उनकी हत्या कर दी !
उसके बाद आज तक ये लोग गाँधी को मारने के बाद भी " भगवा मँचों से गाँधी जी को गाली देते ही रहते हैं
इनकी महानता तो देखिए !
यद्यपि गाँधी एक अस्थियों का ढाँचा था परन्तु उनके आत्माबल कमाल का था ।
सुमित्रानन्दन पन्त ने गाँधी के विषय में सही लिखा-
तुम मांस-हीन, तुम रक्तहीन,
हे अस्थि-शेष! तुम अस्थिहीन,।
तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल,
हे चिर पुराण, हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन;।
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन!
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भारत के उन लाखों मजदूरों, किसानों भूखे नंगों के लिए जो अंग्रेजों की दमनकारी नीतियाँ थी इसका विरोध करते हूए के
गाँधी ने अंग्रेजों को समक्ष कहा था ।
आज गांधी जी का मूल्यांकन ठीक से नहीं हो रहा है । राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी ने कहा था कि "भारत की आत्मा गांवों में पाये।
है"
वह भी किसने को शरीर मे
"The soul of India resides in the villages.
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