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वाच्य किसे कहते हैं। –
वाच्य के भेद या प्रकार –
हिन्दी व्याकरण में वाच्य के तीन प्रकार होते हैं जो की नीचे बताया गया हैं –
1 . कर्तृवाच्य।
2 . कर्मवाच्य।
3 . भाववाच्य।
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1 . कर्तृवाच्य -
इसमें कर्त्ता प्रधान होता है और क्रिया का सीधा और प्रधान संबंध कर्त्ता से होता है।
जैसे – ‘मोहन पत्र लिखता है।’ इस वाक्य में ‘लिखता है’ क्रिया का प्रधान उद्देश्य ‘मोहन’ कर्त्ता है।
क्रिया का रूप मोहन के जेण्डर( लिंग) के अनुसार है ।
मोहन लिखता है – यह मुख्य वाक्य है, इसीलिए यह वाक्य कर्तृवाच्य है।
दूसरा उदाहरण
"मीरा भजन गाती है ।
तो इस वाक्य में गाती" क्रिया का रूप मीरा के जेण्डर( लिंग) के अनुसार है ।
— कर्तृवाच्य में क्रिया के लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार ही होते हैं। कर्तृवाच्य में सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया के भी वाक्य होते हैं।
जैसे –
(क.) सकर्मक-श्याम पत्र लिखता है।
अकर्मक- —– श्याम रोता है।
(ख.) सकर्मक-
लड़कियाँ लेख लिखती हैं।
अकर्मक- लड़के सोते हैं।
(ग.) सकर्मक
सीमा किताब पढ़ती हैं। —अकर्मक– राधा हंसती है।
2 . कर्मवाच्य -
इसमें कर्म प्रधान होता है अर्थात कर्म कर्त्ता की स्थिति में होता है और क्रिया का संबंध सीधा कर्म ही से होता है। क्रिया के लिंग और वचन भी कर्म के अनुसार ही होते हैं।
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उदाहरण –
१-देवेंद्र द्वारा पुस्तक लिखी जाती है।
२-हरीश से पत्र पढ़ा गया।
३-ओमप्रकाश के द्वारा भोजन किया गया।
3 . भाववाच्य
इसमें भाव/ (क्रिया) के अर्थ) की ही प्रधानता होती है, कर्त्ता या कर्म की नहीं। इसमें क्रिया सदा एकवचन, पुल्लिंग और अन्य पुरुष में रहती है।
इसका अधिक प्रयोग बहुधा निषेधार्थक वाक्यों में होता है।
जैसे – ‘चला नहीं जाता,’ ‘बैठा नहीं जाता।’ इसमें केवल अकर्मक क्रिया के वाक्य ही हो सकते हैं, सकर्मक क्रिया के नहीं।
— कर्मवाच्य में केवल सकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है। क्योंकि भाववाच्य में क्रिया अकर्मक होती है, इसीलिए कर्म नहीं होता। कर्म न होने के कारण (क्रिया के भाव) को कर्त्ता बना लिया जाता है।
प्रधान कर्त्ता सामने ‘से’ शब्द लगा दिया जाता है।
जैसे –
लड़का पढता है। कर्तृवाच्य-
लड़के (से पढ़ा) जाता है। भाववाच्य-
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कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य और भाववाच्य परिवर्तन के नियम
— कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाने की विधि :-
1 .कर्तृवाच्य में कर्त्ता के साथ कोई विभक्ति लगी हो तो उसे हटाकर ‘से’, ‘द्वारा’ या ‘के द्वारा’ विभक्ति लगा दी जाती है और क्रिया आत्मनेपदीय हो जाती है।।
कर्मवाच्य में कर्त्ता की अपेक्षा कर्म को प्रधानता दी जाती है।
2 . कर्तृवाच्य की क्रिया को सामान्य भूतकाल में परिवर्तित कर दिया जाता है और इस परवर्तित क्रिया के साथ ‘जाना’ क्रिया का काल, पुरुष, वचन और लिंग के अनुसार रूप जोड़ दिया जाता है।
3 .यदि कर्म के साथ विभक्ति लगी हो तो उसे हटा दिया जाता है।
4 . आवश्यकतानुसार निषेधात्मक ‘नहीं’ का प्रयोग किया जाता है।
परन्तु कभी कभी सकारात्मक वाक्य भी भाव वाच्य में होता है।
जैसे-
१- फागुन के महीने में (फाग गाये )जाते हैं ।
२-मुझे यहाँ (सताया) जाता है।
जैसे –
कर्तृवाच्य — कर्मवाच्य
क. पिता ने पुत्री को सुला दिया।
— पिता द्वारा पुत्र को( सुला) दिया गया।
ख. आप फूल तोड़ोगे। — आपसे फूल तोड़ा जाएगा।
ग. सोहन किताब पढ़ता है। — सोहन से किताब पढ़ी जाती है।
घ. श्याम खत लिखता है। — श्याम से खत लिखा जाता है।
च. आप क्रिकेट खेलेंगे। — आपसे क्रिकेट खेली जाएगी।
— कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाने की विधि :-
1 . कर्त्ता के आगे ‘से’ अथवा ‘के द्वारा’ लगा दें।
2 . मुख्य क्रिया को सामान्य भूतकाल की क्रिया के एकवचन में बदलकर उसके साथ ‘जाना’ धातु के एकवचन, पुल्लिंग, अन्य पुरुष का वही काल लगा दें जो कर्तृवाच्य की क्रिया का है।
जैसे –
कर्तृवाच्य — भाववाच्य
क. लड़का बाग में सो रहा था। — लड़के द्वारा बाग में सोया जा रहा था।
ख. पक्षी आकाश में उड़ते हैं। — पक्षियों द्वारा आकाश में उड़ा जाता है।
ग. लड़के पढ़ेंगे। — लड़कों द्वारा पढ़ा जाएगा।
घ. मैं यह किताब नहीं पढ़ सकूँगा। — मुझसे यह किताब नहीं पढ़ी जा सकेगी।
च. अब चलें। — अब चला जाए।
छ. मोहन पानी नहीं पी रहा है। — मोहन से पानी नहीं पिया जा रहा है।
ज. सर्दियों में खूब खाते हैं। — सर्दियों में खूब खाया जाता है।
— क्रिया के प्रयोग —
क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कहीं तो कर्त्ता के अनुसार होते हैं, कहीं कर्म के अनुसार और कहीं इन दोनों में से किसी के अनुसार भी नहीं होते। इस तरह क्रिया का प्रयोग तीन तरह से होता है –
(क.) कर्तृ प्रयोग – श्याम किताब पढ़ेगा।
(ख.) कर्मणि प्रयोग – श्याम को किताब पढ़नी पड़ेगी (होगी)।
(ग.) भावे प्रयोग – श्याम से अब पढ़ा नहीं जाएगा।
(क.) कर्तृ प्रयोग – जिसमें क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्त्ता के अनुसार होते हैं, क्रिया के उस प्रयोग को ‘कर्तृ प्रयोग’ कहते हैं। इसमें वर्तमान काल और भविष्यत काल में कर्त्ता विभक्ति-चिन्ह रहित होता है।
जैसे –
गुप्ता खत लिखता है।
सुशीला फूल तोड़ेगी।
लता गीत गा रही है।
(ख.) कर्मिणी प्रयोग – इसमें क्रिया के पुरुष और वचन कर्म के अनुसार होते हैं। कर्मिणी प्रयोग में कर्तृवाच्य में भूतकाल में कर्त्ता के साथ (ने) और कर्मवाच्य में सभी कालों में (से, के द्वारा) लगते हैं। इसमें कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति-चिन्ह नहीं लगता।
जैसे –
सुरेन्द्र ने पुस्तक पढ़ी।
शीला ने फूल तोड़ा।
(ग.) भावे प्रयोग – इसमें क्रिया के पुरुष, लिंग और वचन कर्त्ता या कर्म के आश्रित नहीं होते, अपितु क्रिया सदा अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन में होती है।
भाववाच्य की सभी क्रियाएँ भावे प्रयोग में आती हैं। जैसे–गायक से गाया नहीं गया।
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प्रस्तुति करण: यादव योगेश कुमार "रोहि"
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