स्वभाव प्रवृति के वशी ।
प्रवृति स्थितियों के आधीन।
मानव जाति एक है ।
इनके रूप नहीं दो तीन।।
छोड़ो कल की बातें
कल बात पुरानी
नया वक्त नया भक्त है ।
गलती होतीं अनजानी।।
जिद या हो देवी फिर हठ
इसे धारण करते हैं शठ ।।
संकल्प ज्ञान का दृढ़ निश्चय ।।
यही विद्वानों का आश्रय
परन्तु जिद मूर्खाशय।।
अब क्या सत्य और क्या असत्य
ये आपको करना बस तय-
ये हैं संकल्पों के निश्चयी ।
उदुभुत है ये पागलपन
एक तमन्ना लेकर के
तपता रहा ये तपस्वी मन।।
कुछ करने के यों मरने के
इनके भी अद्भुत इरादे है।
हर फन नें माहिर हैं बन्धु !
नहीं ये सीधे -सादे है -
बस एक तपन ने झुलसा डाला-
जलकर भी खुद को है सम्हाला।।
जिसको जहाँ में भले ठुकरा दे।
उसका रहवर है बंशीवाला।।
कभी किसी का कद ,वजन
और मत देखो लम्बी काया।
शक्ति का एक पुञ्ज प्रभु!
छोटे परमाणु में समाया।।
गलत आकलन करना केवल,
विद्वानों की नहीं है रीति-
अपने मन को ही झुलसाना है
औरों से अगर ना हो प्रीति!!
दुनियावी पैमाने भी अजीब होते है ।
हम उनको ही अजीब कहते है
जो बाकई में सजीव होते हैं !
इस जमाने में नजर भी कभी बहक जाती हैं ।
जबानी का दोष है ये सब वह गैरों पर हक़ जमाती हैं।
जख्मों को संजोकर रखा है अब की हमने'
जिन्दगी धीरे धीरे यों ही अपनी बीत जाती है।।
ये चंचल मन आत्मा व्यथित ,
कहीं ढूँढ रही अपने पन को !
लाँछित आक्षेपों से धूमिल बन
अब हम स्वच्छ कर रहे जीवन को !!
ये चंचल मन आत्मा व्यथित ,
कहीं ढूँढ रही अपने पन को !
लाँछित आक्षेपों से धूमिल बन
अब हम स्वच्छ कर रहे जीवन को !!
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