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संस्कृतस्य व्याकरणे प्रत्यया: विधानमस्ति!
( धातु अथवा प्रातिपदिक (मूल शब्द) के पश्चात् जिसका प्रयोग किया जाता है; वह प्रत्यय कहा जाता है।)
प्रत्यानां भेदाः – प्रत्ययानां मुख्यरूपेण त्रयो भेदाः सन्ति ते क्रमश: इमे सन्ति- (प्रत्ययों के मुख्य रूप से तीन भेद हैं जो क्रमशः ये हैं-)
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यथा- (जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया के मूल) के पश्चात् किया जाता है वे कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं । जैसे -)
कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम् = करना चाहिए।
पठ् + अनीयर् = पठनयीम् = पढ़ना चाहिए।
पा+ अनीयर् =पानीयम् = पीना चाहिए।
यथा – (जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण आदि शब्दों के पश्चात् किया जाता है वे तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं । जैसे-
शिव + अण् = शैवः।
उपगु + अण् = औपगवः(उपगतोगौरस्य उपगुर्गोपः तस्यापत्यम् -अण् =(गोपालकपुत्र: )
दशरथ + इ = दाशरथिः
धन + मतुप् = धनवान्
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– (जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुँल्लिङ्ग शब्दों को स्त्रीलिङ्ग में परिवर्तित करने के लिये किया जाता है वे स्त्री प्रत्यय कहे जाते हैं। जैसे-)
कुमार + ङीप् = कुमारी।
अज + टाप् = अजा।
राध्+ अच्+ ङीप्= राधा।
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1. कृत-प्रत्ययाः
(1) शतृप्रत्ययः
वर्तमानकालार्थे अर्थात् गच्छन् (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) इत्यस्मिन् अर्थे परस्मैपदिधातुभ्यः शतृप्रत्ययः भवति । अस्य ‘अत्’ भाग: अवशिष्यतेः शकारस्य ऋकारस्य च लोप: भवति ।
अस्य रूपाणि पुँल्लिङ्गे पठत्वत्, स्त्रीलिङ्गगे नदी-वत्, नपुंसकलिङ्गे च जगत्-वत् चलन्ति।
(वर्तमान काल के अर्थ में ‘गच्छन्’ (जाते हुए), लिखन् (लिखते हुए) अर्थात् ‘हुआ’ अथवा ‘रहा’, ‘रहे इस अर्थ में (इस अर्थ का बोध कराने के लिए) परस्मैपदी धातुओं में ‘शतृ’ प्रत्यय होता है।
जिसका (शतृ का) ‘अत्’ भाग शेष रहता है, शकौर और ऋकार का लोप होता है।
‘शतृ’ प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग क्रिया विशेषण की तरह होता है।
इसके रूप पुँल्लिङ्ग में पठत्-वत्, स्त्रीलिङ्ग में नदी–वत् और नपुसंकलिङ्ग में जगत-वत् चलते हैं।)
(वर्तमानकाल के अर्थ में आत्मनेपदी धातुओं में "शानच् प्रत्यय होता है। इसके (शानच् के) शकार और चकार का लोप होता है। ‘आन’ यह शेष रहता है।
शानच् प्रत्ययान्त शब्द का प्रयोग क्रिया -विशेषण की तरह होता है। इसके रूप पुँल्लिङ्ग में राम-वत् स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत्, और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।
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(3) तव्यत्-प्रत्ययः★
तव्यत् प्रत्ययस्य प्रयोग: हिन्दीभाषायाः ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इत्यस्मिन् अर्थे भवति ।
(तव्यत् प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है। इसका (तव्यत् का) ‘तव्य’ शेष रहता है और तकार का लोप होता है।
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अयं प्रत्ययः कर्मवाच्ये अथवा भाववाच्ये एव भवति ।
अनीयर्-प्रत्ययान्त-पदानां रूपाणि पुँल्लिङ्ग रामवत्, स्त्रीलिङ्गे रमावत्, नपुंसकलिङ्गे च फलवत् चलन्ति। (‘अनीयर् प्रत्यय ‘तव्यत्’ प्रत्यय का समानार्थक है।
इसका प्रयोग हिन्दी भाषा के ‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ इस अर्थ में होता है।
इसका (अनीयर् का) ‘अनीय’ भाग शेष रहता है और रेफ का लोप होता है।
यह प्रत्यय कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य में ही होता है। अनीयर् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुँल्लिङ्ग में राम-वत्, स्त्रीलिङ्ग में रमा-वत् और नपुंसकलिङ्ग में फल-वत् चलते हैं।)
(‘वह इसका है’ अथवा ‘वाला’ अथवा ‘इसमें’ इन अर्थों में तद्धित का ‘मतुप्’ प्रत्यय होता है।
इसका (मतुप् का) ‘मत्’ शेष रहता है, और उकार तथा पकार का लोप होता है। ‘मत्’ के स्थान पर कहीं ‘वत्’ भी होता है।
मतुप् प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुँल्लिङ्ग में ‘भगवत्-वत्’, स्त्रीलिङ्ग में ‘ई’ (ङीप्) प्रत्यय जोड़कर नदीवत्’ और नपुंसकलिङ्ग में ‘जगत्-वत्’ चलते हैं।
इदमत्र अवगन्तव्यम्=(यहाँ इसको जान लेना चाहिए।
‘वत्’ इत्यस्य प्रयोगः प्रायः इयन्तशब्देभ्यः अथवा झकारान्तशब्देभ्यः भवति ।
यथा-(‘वत्’ इसका प्रयोग प्रायः झकारान्त शब्दों अथवा अकारान्त शब्दों में होता है
जैसे-)
झयन्तेभ्यः – विद्युत् + मतुप् = विद्युत्वत्
अकारान्तेभ्य – धन + मतुप् = धनवत् ।
‘मत्’ इत्यस्य प्रयोग: प्रायः झकारान्तशब्देभ्यः भवति ।
यथा- (‘मत्’ इसका प्रयोग प्रायः इकारान्त शब्दों के साथ होता है।
जैसे-)
श्री + मतुप् – श्रीमत् ।
बुद्धि + मतुप् + बुद्धिमत्
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(‘वह इसका है’ अथवा ‘इसमें’ इस अर्थ में अकारान्त प्रातिपदिक (संज्ञा शब्दों) से ‘इन्’-‘ठन्’ प्रत्यय होते हैं ।)
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इनि-प्रयोगकाले ‘इनि’ प्रत्ययस्य ‘इन्’ अवशिष्यते, स च प्रथमाविभक्त्यर्थके ‘सु’ प्रत्यये ‘इ’ रूपे परिवर्तते ।
यथा-दण्डम् अस्य अस्तीति = दण्ड + इन् = दण्डिन् सु = दण्डी।
ठन्- प्रयोगकाले ‘ठन्’ प्रत्ययस्य ‘ठ’ इति शिष्यते
(‘इनि’ के प्रयोग में ‘इनि’ प्रत्यय का ‘इन्’ शेष रहता है और वह प्रथमा विभक्ति के अर्थ में ‘सु’ प्रत्यय ‘ई’ रूप में परिवर्तित हो जाता है। जैसे- ‘दण्डम्’ इसको होता है दण्ड + इन = दण्डिन् प्रथमा विभक्ति में ‘सु’ प्रत्यय लगने पर- ‘दण्डिन् + सु’ ‘सु’ ‘ई’ रूप में परिवर्तित होकर दण्डी यह रूप बना।
‘ठन्’ का प्रयोग करने में ‘ठन्’ प्रत्यय का ‘ठ’ शेष रहता है।
‘ठ’ के स्थान पर ‘इक’ आदेश ‘ठस्येक’ सूत्र से होता है।)
यथा- दण्डम् अस्य अस्तीति- दण्ड + ठन् (ठ) दण्ड + इ = दण्डिकोः ।
उदाहरणानि
(जैसे- ‘दण्डम्’ इसका होता है – दण्ड + ठन् (ठ) का (इक) आदेश = दण्ड + इक = दण्डिकः। उदाहरण-)
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(3) त्व-तल् प्रत्ययौ- ‘तस्य भावस्त्वतलौ’- षष्ठीसमर्थात् प्रातिपदिकात् भाव इत्येतस्मिन्नर्थे त्व-तलौ प्रत्ययो भवतः। प्रयोगस्थलेषु त्व प्रत्ययान्तशब्दस्य रूपाणिं फलवत् नपुंसकलिङ्गमनुसरन्ति।
यथा- (तस्य भावस्त्वतलौ’ षष्ठी से समर्थित प्रातिपदिक (संज्ञा शब्द) से भावाचक के अर्थ में त्व-तल दौनो प्रत्यय होते हैं।) अर्थात् भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल् (ता) प्रत्यय लगाते हैं।) प्रयोग स्थलों में ‘तल्’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप फल-वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं। उसी प्रकार ‘तल्’ प्रत्यन्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिङ्ग में चलते हैं।
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अकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्दों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए उनके आगे टाप् (आ) प्रत्यय होता है । अर्थात् भाववाचक संज्ञा बनाने के लिये किसी शब्द में त्व अथवा तल् (ता) प्रत्यय लगाते हैं। प्रयोग स्थलों में त्व’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप में फल-वत् नपुंसकलिङ्ग में चलते हैं।
उसी प्रकार ‘तल्’ प्रत्ययान्त शब्द के रूप लता-वत् स्त्रीलिंग में चलते हैं। परन्तु
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(2) ङीप् प्रत्ययः – ‘ऋन्नेभ्यो ङीप्’ – ऋन्नेभ्यो डीप् – नकारान्तेभ्यः प्रातिपादिकेभ्यः (शब्देभ्यः) स्त्रियाम् (स्त्रीलिङ्ग) ङीप् प्रत्ययो भवति । ङीप् प्रत्ययस्य ‘ई’ अवशिष्यते ।
(‘ऋन्नेभ्यो ङीप्’ – ऋकारान्त और नकारान्त (पुंल्लिङ्ग) शब्दों में स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय होता है।
ङीप् प्रत्यय का ‘इ’ शेष रहता है।
सामान्य प्रयोग स्थल में छात्रों द्वारा डीबन्त ईकारान्त शब्दों के रूप में स्मरण किये जाते हैं।
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‘
(ऐसे प्रतिपादिकों से जिनमें उकार और ऋकार का लोप होता है
(मतुप्, वतुप्, इयसु, तवतु, शतू से बने हुए शब्दों से) स्त्रीलिङ्ग बनाने में डीप् (ई) प्रत्यय होता है।
जिन प्रत्ययों में ‘उ, ऋ, लू’ इन वर्षों की इत्संज्ञा होकर लोप हो जाता है वे ‘उगित’ प्रत्यय हैं। उन प्रत्ययों से जो शब्द निर्मित होते हैं वे उगिदन्त शब्द अथवा प्रातिपदिक होते हैं, उन उगिदन्तों से स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय होवे।)
‘टिड्ढाणद्वयसज्दध्नमात्रच्तयप्टक्ठकञ्क्वरपः’ -टित्, ढ, अण्, अब, द्वयसच्, दध्नच्, मात्र, तयप्, ठक्, ठ, कम्, क्वरप्, इत्येवमन्तेभ्यः अनुपसर्जनेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति ।
उदाहरणानि- (टित्, ढ, अण्, अञ् द्वयसच्, दध्नच्, मात्रच्, तयप्, ठक्, ठ, कञ्, क्वरप् इनसे अन्त होने वाले शब्दों के अनन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए डीप्(ई) प्रत्यय होता है। जैसे-)
‘वयसि प्रथमे’ – प्रथमे वयसि वर्तमानेभ्यः उपसर्जनरहितेभ्यः अदन्तेभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति । उदाहरणानि-
(प्रथम वयस् (अन्तिम अवस्था को छोड़कर) का ज्ञान कराने वाले अदन्त शब्दों के अन्तर स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। ।
‘द्विगोः’ – द्विगुसंज्ञाकाद् अनुपसर्जनाद् अदन्तात् प्रातिपदिकात स्त्रियां ङीप् प्रत्ययो भवति ।
अयमर्थः – अदन्ताः ये द्विगुसंज्ञकाः शब्दः तेभ्यः स्त्रीलिङ्गे ङीप् प्रत्यय: स्यात् । –
(अदन्त जो द्विगुसंज्ञक शब्द हैं उनसे स्त्रीलिङ्ग में (स्त्रीलिङ्ग बनाने के लिए) ङीप् प्रत्यय होता है।
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अभ्यासः
(1) प्रदत्तेषु उत्तरेषु प्रत्ययानुसार यत् उत्तरम् शुद्धम् अस्ति, तत् चित्वा लिखत
(दिए गये उतरों में प्रत्यय के अनुसार जो उत्तर शुद्ध हो, उसे चुनकर लिखिए)
1. (i) गुरवः ……………. (वन्द् + अनीयर्)
(अ) वन्दनीयः
(ब) वन्दनीयम्
(स) वन्दनीयाः।
(ii) मानवसेवा ……………. (कृ + शानच्) वृक्षाः केषां न हितकराः ।।
(अ) कुर्वाणः
(ब) कुर्वाणाः
(स) कुर्वाणा।
(iii) ……………. (छाया + मतुप्) वृक्षाः आश्रयं यच्छन्ति ।
(अ) छायावान्
(ब) छायावन्तौ
(स) छायावन्तः ।
(iv) (कोकिल + टाप्) ……………. आम्रवृक्षे मधुरं गायति ।।
(अ) कोकिला
(ब) कोकिले
(स) कोकिलाः ।।
(v) ……………. (बल + इन) निर्बलान् रक्षन्ति।
(अ) बलिन्
(ब) बलिनौ
(स) बलिनः।
उत्तराणि:
(i) (स) वन्दनीयाः
(ii) (ब) कुर्वाणा:
(iii) (स) छायावन्तः
(iv) (अ) कोकिला
(v) (स) बलिनः।
2. (i) अस्माभिः परस्परं स्नेहेन ……………. (वस् + तव्यत्) ।
(अ) वसितव्यः
(ब) वसितव्या
(स) वसितव्यम् ।
(ii) उद्यमस्य ……………. (महत् + त्व) सर्वविदितम् एव ।।
(अ) महत्त्वः
(ब) महत्त्वम्
(स) महत्त्वा ।
(iii) …………….. (वर्ष + ठक् + ङीप्) परीक्षा समीपम् एव ।।
(अ) वार्षिकी
(ब) वार्षिकी
(स) वार्षिकम् ।
(iv) त्वं कर्तव्यनिष्ठः ……………. (अधिकार + इन्) असि ।।
(अ) अधिकारी
(ब) अधिकारिन्
(स) अधिकारिणी।
(v) छात्रैः अनुशासनम् ……………. (पाल् + अनीयर्) ।।
(अ) पालनीयः
(ब) पालनीया
(स) पालनीयम् ।
उत्तराणि:
(i) (स) वसितव्यम्
(ii) (ब) महत्त्वम्
(iii) (अ) वार्षिकी
(iv) (अ) अधिकारी
(v) पालनीयम् ।
3. (i) मानव: ……………. (समाज + ठक्) प्राणी अस्ति ।।
(अ) सामाजिकः
(ब) सामाजिकी
(स) सामाजिकम् ।
(ii) ……………. (लौकिक + ङीप्) उन्नतिः यशः वर्धयति ।
(अ) लौकिकः
(ब) लौकिकी
(स) लौकिकम् ।
(iii) (शिष्य + टाप्) ……………. जलेन लताः सिञ्चति ।।
(अ) शिष्या
(ब) शिष्ये
(स) शिष्या।
(iv) गुरोः (गुरु + त्व) वर्णयितुं न शक्यते ।
(अ) गुरुत्वम्
(ब) गुरुत्व:
(स) गुरुत्वम् ।
(v) मा भव …………….. (मान + णिनि)।
(अ) मानी
(ब) मानिनौ
(स) मानिनः।
उत्तराणि:
(i) (अ) सामाजिकः
(ii) (ब) लौकिकी
(iii) (अ) शिष्या
(iv) (अ) गुरुत्वम्
(v) (स) मानी।
4. (i) (उदार + तल्) ……………. गुण: न सुलभः ।
(अ) उदारतम्
(ब) उदारता
(स) उदारतः ।
(ii) ……………. (राजन् + ङीप्) प्रासादं गच्छति ।
(अ) राजनी
(ब) राजिनी
(स) राज्ञी।
(iii) गता रेल …………… (गन्तृ + ङीप्) ।
(अ) गन्त्रौ
(ब) गन्त्री
(स) गन्त्र्यः ।
(iv) एकं …………… (सप्ताह + ठक्) पत्रम् आनय ।
(अ) साप्ताहिक
(ब) साप्ताहिकी।
(स) साप्ताहिकम् ।
(v) …………… (योग + इनि) ईश्वरं भजन्ते ।
(अ) योगी
(ब) योगिनो
(स) योगिनः।
उत्तराणि:
(i) (अ) उदारता
ii) (स) राज्ञी
(iii) (ब) गन्त्री
(iv) (स) साप्ताहिकम् ।
(v) (स) योगिनः।
(2) स्थूलपदानाम् ‘प्रकृतिप्रत्ययः’ पृथक् संयोगं कृत्वा उत्तर-पुस्तिकायां लिखत
(मोटे शब्दों के प्रकृति-प्रत्यय अलग करके उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)।
1. (i) अद्य मानवः सेवाया महत्त्वं न जानाति । (आज मनुष्य सेवा का महत्त्व नहीं जानता है ।)
(ii) समाजसेवा करणीया । (समाज सेवा की जानी चाहिए ।)
(iii) बालकोऽयं गुणवान् अस्ति । (यह बालक गुणवान् है ।)
(iv) लोभी न भवेत् । (लोभी नहीं होना चाहिए ।)
(v) सा बुद्धिमती अचिन्तयत् । (वह बुद्धिमती सोचने लगी ।)
उत्तराणि:
(i) महत् + त्व
(ii) कृ + अनीयर् + टाप्
(iii) गुण + मतुप् (वत्)
(iv) लोभ + इनि
(v) बुद्धि + मतुप् + ङीप् ।
2. (i) गुरुः वन्दनीयः । (गुरु वन्दना के योग्य होता है ।)
(ii). ज्ञानवान् एव गुरुत्वं प्राप्नोति । (ज्ञानवान् ही गुरुत्व को प्राप्त करता है ।)
(iii) देशे अनेकानि दर्शनीयानि स्थानानि सन्ति। (देश में अनेक दर्शनीय स्थान हैं ।)
(iv) गुणी एव सर्वत्र पूज्यः । (गुणी ही सब जगह पूज्य होता है ।)
(v) शिक्षिका गणितं पाठयति । (शिक्षिका गणित पढ़ाती है।)
उत्तराणि:
(i) वन्द् + अनीयर्
(ii) गुरु + त्व
(iii) दृश् + अनीयर्
(iv) गुण + इन्
(v) शिक्षक + टाप् ।
3. (i) पुस्तकानां महत्ता कः न जानाति ? (पुस्तकों की महत्ता को कौन नहीं जानता ?)
(ii) गायिका मधुरं गायति । (गायिका मधुर गाती है ।)
(iii) कार्यं कुर्वाणाः छात्राः अङ्कान् लभन्ते । (कार्य करते हुए छात्र अंक प्राप्त करते हैं ।)
(iv) बालकैः गुरवः नन्तव्याः । (बालकों द्वारा गुरु को नमस्कार किया जाना चाहिए ।)
(v) अश्वा धावति । (घोड़ी दौड़ती है ।)
उत्तराणि:
(i) महत् + तल्
(ii) गायक + टाप्
(iii) कृ – शानच्
(iv) नम् + तव्यत्
(v) अश्व + टाप् ।
4. (i) सः वेत्रासने आसीनः । (वह कुर्सी पर बैठा है ।)
(ii) राज्ञी राजानम् अपृच्छत् । (रानी ने राजा से पूछा ।)
(iii) इन्द्राणी इन्द्रं पृच्छति । (इन्द्राणी इन्द्र से पूछती है ।)
(iv) मन्त्रिणः संसदि भाषन्ते । (मन्त्री संसद में बोलते हैं ।)
(v) अजाः क्षेत्रे चरन्ति । (बकरियाँ खेत में चरती हैं ।)
उत्तराणि:
(i) आस् + शानच्
(ii) राजन् + ङीप्
(iii) इन्द्र + ङीप्
(iv) मन्त्र + इन्
(v) अज + टाप् ।
5. (i) मासिक पत्रम् आनय । (मासिक पत्र लाईए ।)
(ii) सुखार्थिनः कुतो विद्या । (सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ ?)
(iii) वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्। (रेलगाड़ी शोर बाँटती हुई दौड़ रही है ।)
(iv) जगति शुद्धिकरणं करणीयम् । (संसार में शुद्धिकरण करना चाहिए ।)।
(v) ललितलतानां माला रमणीया । (सुन्दर लताओं की माला रमणीय है।)
उत्तराणि:
(i) मास + ठक्
(ii) सुख + अर्थ + इन्
(iii) वितरत् + ङीप्
(iv) कृ + अनीयर्
(v) रम् + अनीयर् + टाप् ।
6. (i) लक्षणवती कन्यां विलोक्य सः पृच्छति (लक्षणवाली कन्या को देखकर वह पूछता है ।)
(ii) अन्योऽपि बुद्धिमान् लोके मुच्यते महतो भयात् । (और भी बुद्धिमान् लोक के महान् भय से मुक्त हो जाते हैं।)
(iii) शृगालः सन् आहे । ( शृगाल ने हँसते हुए कहा ।)
(iv) मया सा चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा । (मैंने उसे थप्पड़ से हार करती हुई देखा है ।)
(v) तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः । (तो तुम मुझे मार देना ।)
उत्तराणि:
(i) लक्षणवत् + ङीप्
(ii) बुद्धि + मतुप्
(iii) हस् + शतृ
(iv) प्रहरत् + ङीप्
(v) हन् + तव्यत् ।
7. (i) शुनी सर्वम् इन्द्राय निवेदयति । (कुतिया सब कुछ इन्द्र से निवेदन कर देती है।)
(ii) आचार्यं सेवमानः शिष्यः विद्यां लभते । (आचार्य की सेवा करता हुआ शिष्य विद्या प्राप्त करता है।)
(iii) श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् । (श्रद्धावान् ज्ञान प्राप्त करता है।)
(iv) अद्य अस्माकं वार्षिकी परीक्षा आरभते। (आज हमारी वार्षिक परीक्षा आरम्भ है।)
(v) सः कार्यं कुर्वन् पठति अपि । (वह कार्य करता हुआ भी पढ़ता है ।)
उत्तराणि:
(i) श्वन् + ङीप्
(ii) सेव + शानच्
(iii) श्रद्धा + मतुप् (वत्)
(iv) वर्ष + ठक् + ङीप् ।
(v) कृ + शतृ ।
8. (i) जीवने विद्यायाः अपि महत्त्वं वर्तते । (जीवन में विद्या का भी महत्त्व है।)
(ii) तर्हि त्वया सद्ग्रन्थाः अपि पठनीयाः । (तो तुम्हें सद्ग्रन्थ भी पढ़ने चाहिए।)
(iii) पठनेन नर: गुणवान् भवति । (पढ़ने से मनुष्य गुणवान् होता है ।)
(iv) किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? (क्या तुम समय का महत्त्व जानते हो ?)
(v) काल: तु सततम् चक्रवत् परिवर्तमान: वर्तते । (समय तो निरन्तर चक्र की तरह बदलता रहता है।)
उत्तराणि:
(i) महत् + त्व
(ii) पठ् + अनीयर्
(iii) गुण + मर्तुप् (वत्)
(iv) महत् + त्व
(v) परिवृत् + शानच् ।
9. (i) ये जनाः अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति ते एव बुद्धिमन्तः
(जो लोग अस्थिरता का अनुभव करके अपने कार्य समय पर करते हैं, वे ही बुद्धिमान् हैं ।)
(ii) ते जना: वन्दनीयाः भवन्ति । (वे लोग वन्दना करने योग्य होते हैं ।)
(iii) जनाः तीव्र धावन्तः गच्छन्ति । (लोग तीव्र दौड़ते हुए जाते हैं ।)
(iv) गृहं गच्छन्त्यः छात्राः प्रसीदन्ति । (घर जाती हुई छात्राएँ प्रसन्न होती हैं ।)
(v) काल: परिवर्तमानः वर्तते । (समय बदलता रहता है ।)
उत्तराणि:
(i) अस्थिर + तल्, बुद्धि + मतुप्
(ii) वन्द् + अनीयर् + टाप्
(iii) धावू + शतृ
(iv) गच्छत् + ङीप्
(v) परिवृत् + शानच्।
10. (i) कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम् । (कार्य सदैव ध्यान से ही करना चाहिए ।)
(ii) फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति । (फल वाले वृक्ष ही सदा झुकते हैं ।)
(iii) शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव । (शिक्षा का महत्त्व तो अद्वितीय है ।)
(iv) वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति । (बढ़ती हुई बालाएँ नाचती हैं ।)
(v) अजाः शनैः शनैः चलति ।। (बकरी धीरे-धीरे चलती है ।)
उत्तराणि:
(i) कृ + अनीयर्
(ii) फल + इन्
(iii) महत् + त्व
(iv) वृध् + शानच्
(v) अज + टाप् ।
11. (i) कार्यं सदैव शीघ्रं परन्तु धैर्येण कर्त्तव्यम् । (कार्य सदैव शीघ्र परन्तु धैर्यपूर्वक करनी चाहिए ।)
(ii) वर्धमाना बालिका शीघ्रं शीघ्रं धावति । (बढ़ती बालिका जल्दी-जल्दी दौड़ती है । )
(iii) गुणिनः जनाः सदा वन्दनीयाः । (गुणी लोग सदैव वन्दना करने योग्य हैं ।)
(iv) वृक्षाणां महत्त्वं कः न जानाति ? (वृक्षों का महत्त्व कौन नहीं जानता ?)
(v) कोकिला मधुर स्वरेण गायति । (कोयल मधुर स्वर से गाती है ।)
उत्तराणि:
(i) के + तव्यत्
(ii) वृध् + शानच् + ङीप्
(iii) गुण + इन्
(iv) मेहत् + त्व
(v) कोकिल + टाप् ।।
12. (i) पुस्तकानाम् अध्ययनं करणीयम् । (पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए ।)
(ii) मन्त्रिणः सदसि भाषन्ते । (मन्त्री सभा में भाषण करते हैं ।)
(iii) वर्तमाना शिक्षापद्धति: सुकरा । (वर्तमान शिक्षा पद्धति सरल है ।)
(iv) त्वं स्व अज्ञानतां मा दर्शय । (तुम अपनी अज्ञानता को मत दिखाओ ।)
(v) नर्तकी शोभनं नृत्यति । (नर्तकी सुन्दर नाचती है ।)
उत्तराणि:
(i) कृ + अनीयर्
(ii) मन्त्र + इन्
(iii) वृत् + शानच् + टाप्
(iv) अज्ञान + तल्
(v) नर्तक+ङीप् ।
13. (i) अस्माभिः सेवकाः पोषणीयाः । (हमें सेवकों का पोषण करना चाहिए ।)
(ii) पक्षिणः वृक्षेषु तिष्ठन्ति । (पक्षी वृक्ष पर बैठते हैं ।)।
(iii) पृथिव्याः गुरुत्वं सर्वे जानन्ति । (पृथ्वी की गुरुता को सभी जानते हैं ।)
(iv) सेवमानाः सेवकाः धनं लभन्ते । (सेवा करते हुए सेवक धन पाते हैं ।)
(v) अश्वा वरं धारयति । (घोड़ी वर को धारण करती है ।)
उत्तराणि:
(i) पुष् + अनीयर्
(ii) पक्ष + इन्
(iii) गुरु + त्व
(iv) सेव् + शानच्
(v) अश्व + टाप् ।
14. (i) बालकैः गुरवः नन्तव्याः । (बालकों को गुरुजनों का नमन करना चाहिए ।)
(ii) कार्यं कुर्वाणाः छात्रा: अङ्कान् लभन्ते । (कार्य करते छात्र अंक प्राप्त करते हैं ।)
(iii) भाग्यशालिनः जनाः विश्रामं कुर्वन्ति । ( भाग्यशाली लोग आराम करते हैं ।) |
(iv) गायिका मधुरं गायति । (गायिका मधुर गाती है ।)
(v) पुस्तकानां महत्तां कः न जानाति । (पुस्तकों की महत्ता कौन नहीं जानता ।)
उत्तराणि:
(i) नम् + तव्यत्
(ii) कृ + शानच्
(iii) भाग्यशाल + इन्
(iv) गायक + टाप् ।
(v) महत् + तल् ।
(3) कोष्ठकेषु प्रदत्तैः शब्दैः प्रकृति-प्रत्ययानुसारं रिक्तस्थानपूर्तिः करणीया ।।
| (कोष्ठकों में दिए गए शब्दों से प्रकृति-प्रत्यय के अनुसार रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए ।)
1. (i) पाठः तु सदैव ध्यानेन एव ……………… । (पठ् + अनीयर्)
(ii) छात्रैः समये विद्यालयः ……………… ।(गम् + तव्यत्)
(iii) ……………. पुरुष: सफलतां लभते । (यत् + शानच्)
(iv) ……………. बालकः हसति । ( गम् + शतृ)
(v) वाराणस्याम्……………. पुरुषाः निवसन्ति । ( धर्म + ठक्)
उत्तराणि:
(i) पठनीयः
(ii) गन्तव्यः
(iii) यतमान:
(iv) गच्छन्
(v) धार्मिका:।
2. (i) (विद्या + मतुप्) ……………… सर्वत्र सम्मान्यते ।
(ii) पुत्रेण अनुशासनम् (पाल् + अनीयर्) ……………
(iii) सदा (सुख + इन्) …………… भव ।।
(iv) शस्त्रहीन: न (हन् + तव्यत्) ……………… ।।
(v) जीवने (महत् + त्व) ……………… लभस्व।।
उत्तराणि:
(i) विद्यावान्
(ii) पालनीयम्
(iii) सुखी
(iv) हन्तव्यः
(v) महत्त्वम् ।
3. (i) बालिकाभिः राष्ट्रगीतं ……………… (गै + तव्यत्) ।
(ii) छात्रैः ……………… (उपदेश) पालनीयाः ।
(iii) ……………… (युष्मद्) शुद्धं जलं पातव्यम्
(iv) मुनिभिः ……………… (तपस्) करणीयम् ।
(v) न्यायाधीशेन न्यायः……………..(कृ + अनीयर्) ।
उत्तराणि:
(i) गातव्यम्
(ii) उपदेशा:
(iii) युष्माभिः
(iv) तपः
(v) करणीयः।
4. (i) ……………… (भवति) पाठः लेखनीयः।
(ii) विद्वद्भिः कविताः ……………… (रच् + अनीयर्) ।
(iii) अस्माभिः लताः ……………… आरोपयितव्याः ।
(iv) पत्रवाहकेन पत्राणि ……………… । (आ + नी + तव्यत्)
(v) ……………… (राजन्) प्रजाः पालनीयाः ।
उत्तराणि:
(i) भक्त्या
(ii) रचनीयाः
(iii) लता:
(iv) आरोपयितव्याः
(v) राज्ञा ।
5. (i) त्वया सन्तुलित आहारः (कृ + तव्यत्) ……………… ।
(ii) तव (कृश + तल्) ……………… मां भृशं तुदति ।
(iii) विद्याया: महत्त्वमपि ………………. (स्मृ + तव्यत्) ।
(iv) सद्ग्रन्थाः सदैव ……………… (पठ् + अनीयर्) ।
(v) अध्ययनेन मनुष्यः (गुण + मतुप्) ……………… भवति
उत्तराणि:
(i) कर्त्तव्यः
(ii) कृशता
(iii) स्मर्तव्यम्
(iv) पठनीयाः
(v) गुणवान् ।
6. (i) अस्याः ……………… (अनुज + टाप्) दीपिका अस्ति ।
(ii) दीपिका क्रीडायाम् ……………… (कुशल + टाप्) अस्ति ।
(iii) प्रभादीपिकयो: माता ……………… (चिकित्सक + टाप्) अस्ति ।
(iv) सा समाजस्य ……………… (सेवक + टाप्) अस्ति ।
(v) सा तु स्वभावेन अतीव ……………… (सरल + आप्) अस्ति ।
उत्तराणि:
(i) अनुजा
(ii) कुशला
(iii) चिकित्सिका
(iv) सेविका
(v) सरला ।
7. (i) छात्रैः समये विद्यालयः (गम् + तव्यत्) .. ……………. ।
(ii) अद्य अस्माकं (वर्ष + ठक् + ङीप्) ……………… परीक्षा आरभते ।
(iii) पर्यावरणस्य (महत् + त्व) ……………… सर्वे जानन्ति ।
(iv) (बुद्धि + मतुप्) ……………… नरः सर्वत्र मानं लभते ।
(v) जनकं (सेव् + शानच्) ……………… पुत्र: प्रसन्नः अस्ति ।
उत्तराणि:
(i) गन्तव्यः
(ii) वार्षिकी
(iii) महत्त्वम्
(iv) बुद्धिमान्
(v) सेवमानः।
8. (i) मम ……………… (कीदृश + ङीप्) इयं क्लेशपरम्परा ।
(ii) मारयितुम् ……………… (इष् + शतृ) स कलशं गृहाभ्यन्तरे क्षिप्तवान् ।
(iii) छलेन अधिगृह्य ……………… (क्रूर + तल्) भक्षयसि ।
(iv) अधुना ……………… (रमणीय + टाप्) हि सृष्टिरेव ।
(v) अनेकानि अन्यानि ……………… (दृश् + अनीयर्) स्थलानि अपि सन्त ।
उत्तराणि:
(i) कीदृशी
(ii) इच्छन्
(iii) क्रूरतया
(iv) रमणीया
(v) रमणीयता।
9. (i) नृपेण प्रजा (पाल् + अनीयर्) ………………
(ii) आचार्यस्य (गुरु + त्व) ……………… वर्णयितुं न शक्यते ।
(iii) पुरस्कार (लभ् + शानच्) ……………… छात्र: प्रसन्न: भवति ।
(iv) मनुष्यः (समाज + ठक्) ……………… प्राणी अस्ति ।
(v) प्रकृते (रमणीय + तल्) …………….. दर्शनीया अस्ति ।
उत्तराणि:
(i) पालनीया
(ii) गुरुत्वम्
(iii) लभमान:
(iv) सामाजिकः
(v) रमणीयता ।
(4) कोष्ठके दत्तान् प्रकृतिप्रत्ययान् योजयित्वा अनुच्छेदं पुनः उत्तर-पुस्तिकायां लिखत
(कोष्ठक में दिए हुए प्रकृति-प्रत्ययों को जोड़कर अनुच्छेद को पुनः उत्तर-पुस्तिका में लिखिए)
1. पर्यावरणस्य (महत् + त्व) (i) ……………… कः न जानाति ? परं निरन्तरं (वृध् + शानच्) (ii) ………… प्रदूषणेन मानव जातिः विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति ।
अस्माभिः (ज्ञा + तव्यत्) (iii) …………… यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम् । एतदर्थम् (जन + तल्) (iv) …………… जागरूका कर्त्तव्या । स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् (कृ + अनीयर्) (v) …………… । यतो हि वृक्षा: पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति ।
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उत्तरम्:
पर्यावरणस्य महत्त्वं कः न जानाति ? परं निरन्तरं वर्धमानेन प्रदूषणेन मानवजाति: विविधैः रोगैः आक्रान्ता अस्ति । अस्माभिः ज्ञातव्यम् यत् पर्यावरणस्य रक्षणे एव अस्माकं रक्षणम् । एतदर्थम् जनता जागरूका कर्तव्यो । स्थाने स्थाने वृक्षारोपणम् अवश्यम् करणीयम् । यतो हि वृक्षा: पर्यावरणरक्षणे अस्माकं सहायकाः सन्ति ।
2. ओदनं पचन्ती (i) ……………… (पुत्र + ङीप्) कथितवती – किं त्वं जानासि कालस्य (ii) (महत् + त्व) ? काल: तु सततं चक्रवत् (iii) …………….. (परिवृत् + शानच्) वर्तते । ये जनाः अस्य अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव (iv) ……………… (बुद्धि + मतुप्) । ते जनाः (v) ……. (वन्द् + अनीयर्) भवन्ति ।
उत्तरम्:
ओदनं पचन्ती पुत्री कथितवती-किं त्वं जानासि कालस्य महत्त्वम् ? कालः तु सततं चक्रवत् परिवर्तमानः वर्तते । ये जनाः अस्य अस्थिरताम् अनुभूय स्वकार्याणि यथासमयं कुर्वन्ति, ते एव बुद्धिमन्तः । ते जनाः वन्दनीयाः भवन्ति ।
3. जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि (कृ + तव्यत्) (i) …………….. ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं (पाल् + अनीयर्) (ii) ……………… । सर्वैः सहपाठिभिः सह (मित्र + तल्) (iii) ……………… आचरणीया । छात्रजीवने परिश्रमस्य (महत् + तल्) (iv) ……………… वर्तते । सत्यम् एव उक्तम् (सुखार्थ + इन्) (v) कुतो विद्या?
उत्तरम्:
जानासि अस्माकं विद्यार्थिनां कानि कर्तव्यानि ? अस्माभिः विद्यालयस्य अनुशासनं पालनीयम् । सर्वैः सहपाठिभिः सह मित्रता आचरणीया । छात्रजीवने परिश्रमस्य महत्ता वर्तते । सत्यम् एव उक्तम् – सुखार्थिनः कुतो विद्या ?
4. कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव (i) ………………. (कृ + अनीयर्) । (ii) ……………… (फल + इन्) वृक्षा: एव सदैव नमन्ति । शिक्षायाः (iii) ……………… (महत् + त्व) तु अद्वितीयम् एव । (iv) ……………… (वृध् + शानच्) बालाः नृत्यन्ति । (v) ……………. (अज + टा) शनैः शनैः चलति ।
उत्तरम्:
कार्यं तु सदैव ध्यानेन एव करणीयम् । फलिनः वृक्षाः एव सदैव नमन्ति । शिक्षायाः महत्त्वं तु अद्वितीयम् एव। वर्धमानाः बालाः नृत्यन्ति । अजा शनैः शनैः चलति ।
5. एकदा पितरं (सेव् + शानच्) (i) ……………… पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पित:! संसारे के: पूज्यते ?’ पिता अवदत् – (गुण + मतुप्) (ii) ……………… सर्वत्र पूज्यते । यः सेवाया: (महत् + त्व) (iii) ……………… सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा (वन्द् + अनीयर्) (iv) ……………… भवति । अत: सर्वे: (मानव + तल्) (v) ………… सेवितव्या ।
उत्तरम्:
एकदा पितरं सेवमानः पुत्रः तम् अपृच्छत् – ‘हे पित:, संसारे कः पूज्यते ?’ पिता अवदत् – ‘ गुणवान् सर्वत्र पूज्यते । यः सेवाया: महत्त्वं सम्यक् जानाति, सः समाजे सदा वन्दनीयः भवति । अतः सर्वैः मानवता सेवितव्या ।
6. त्वं (गुण + भतुम्) (i) ……………… असि । तव प्रकृति: (शोभन + टाप्) (ii) ……………… अस्ति । अत: (विनय + इन्) (ii) ……………… अपि भव । सदैव (समाज + ठक्) (iv) ……………. कार्यमपि (कृ + शतृ) (v) ……………… त्वं लोके यशः प्राप्स्यसि ।
उत्तरम्:
त्वं गुणवान् असि । तव प्रकृति: शोभना अस्ति । अत: विनयी अपि भव । सदैव सामाजिक कार्यमपि कुर्वन् त्वं लोके यश: प्राप्स्यसि ।।
7. छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्य: (i) …………………. (कृ + तव्यत्) । ये छात्राः अध्ययनस्य (ii) ……………… (महत् + त्व) न जानन्ति तेषां कृते (iii) ……………… (सफल + तल्) सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्रा: आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते (iv) ………………. (वर्ष + ठक् + ङीप्) परीक्षा भयं न जनयति । (v) …………. (बुद्धि + मतुप्) छात्रा: पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये । अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये (vi) ……………… (कृ + अनीयर्) ।
उत्तरम्:
छात्रैः यथाकालम् एव विद्यालयस्य कार्यः कर्त्तव्यम् । ये छात्राः अध्ययनस्य महत्त्वं न जानन्ति तेषां कृते सफलता सन्दिग्धा भवति, परञ्च ये छात्राः आलस्यं विहाय अहर्निशं परिश्रमं कुर्वन्ति तेषां कृते वार्षिकी परीक्षा भयं न जनयति । बुद्धिमन्तः छात्रा: पुरुषार्थे विश्वसन्ति न तु केवलं भाग्ये । अतः सर्वैः स्वकार्याणि समये करणीयानि ।
8. पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्ग: (i) .. ……………. (त्यज् + तव्यत्) (ii) …………….. (प्र + यत् + शानच्) जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति । यः नरः सत्यवादी (ii) …………….. (निष्ठा + मतुप्) च सः एव श्रेष्ठः । वृक्षारोपणम् अस्माकं (iv) ………………. (नीति + ठक्) कर्त्तव्यम् । मातृभूमिः सदैव (v) ……………… (वन्दनीय + टाप्) भवति ।
उत्तरम्:
पिता पुत्रम् उपादिशत् यत् त्वया कुमार्गः त्यक्तव्यः प्रयतमानाः जनाः साफल्यं प्राप्नुवन्ति । य: नरः सत्यवादी निष्ठावान् च सः एव श्रेष्ठः । वृक्षारोपणम् अस्माकं नैतिक कर्त्तव्यम् । मातृभूमि: सदैव वन्दनीया भवति ।
9. एकः कैयट: नाम विद्वान् आसीत् । स: प्रात: (i) ……………. (काल + इ) शास्त्राणाम् अध्ययने रत: भवति स्म । एकदा राजा तं (ii) …..
…………… (बुद्धि + मतुप्) द्रष्टुं तस्य कुटीरं (iii) ………………. (गम् + तव्यत्) इति निश्चितवान् । तत्र गत्वा तस्य (iv) ……………… (दरिद्र + तल्) दूरीकर्तुं सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत् । कैयट: अवदत्- “धनस्य (v) ……………… (लोभ + इन्) जनाः आसक्ताः भूत्वा दु:खिन: भवन्ति । अतः मम आनन्दं मा नाशयतु इति ।”
उत्तरम्:
एकः कैयट: नाम विद्वान् आसीत् । सः प्रात:काले शास्त्राणाम् अध्ययने रतः भवति स्म । एकदा राजा तं बुद्धिमन्तं द्रष्टुं तस्य कुटीरं गन्तव्यम् इति निश्चितवान् । तत्र गत्वा तस्य दरिद्रता दूरीकर्तुं सः तस्मै स्वर्णमुद्राः अयच्छत् । कैयटः अवदत् – “धनस्य लोभिनः जनाः आसक्ताः भूत्वा दु:खिनः भवन्ति । अत: मम आनन्दं मा नाशयतु इति ।”
10. प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु (i) ……………… (दृश् + अनीयर्) । शीघ्रं-शीघ्रं (ii) ……………… (चल् + शतृ) जनाः प्रसन्नाः भवन्ति । ते वायोः (iii) ……………… (शीतल + तल्) अनुभवन्ति । (iv) ……………… (पक्ष + इन्) मधुर स्वरेण गायन्ति । बालकाः (v) ……………… (बालक + टाप्) च कन्दुकेन क्रीडन्ति ।
उत्तरम्:
प्रात:काले उद्यानस्य शोभा खलु दर्शनीया । शीघ्र-शीघ्रं चलन्तः जनाः प्रसन्नाः भवन्ति । ते वायो: शीतलताम् अनुभवन्ति । पक्षिणः मधुरस्वरेण गायन्ति । बालका: बालिकाः च कन्दुकेन क्रीडन्ति
11. जीवने शिक्षायाः सर्वाधिकं (i) ……………… (महत् + त्व) वर्तते । बालः भवेत् (ii) …………. (बालक + टाप्) वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः (iii) ……………… (कृ + तव्यत्) । शिक्षिताः (iv) (प्राण + इन्) परोपकारं (v) … (कृ + शानच्) देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति ।
उत्तरम्:
जीवने शिक्षायाः सर्वाधिक महत्त्वं वर्तते । बालः भवेत् बालिका वा भवेत्, ज्ञान प्राप्तुं सर्वैः एव प्रयत्नः कर्तव्यः । शिक्षिताः प्राणिनः परोपकारं कुर्वाणाः देशस्य सर्वदा हितमेव चिन्तयन्ति ।
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