रविवार, 2 जनवरी 2022

गाँधी जी की क्षमा और क्षमता-


महात्मा गांधी  के बारे में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने वाले आर.एस.एस" की विचार धारा के  प्रतिनिधि "कालीचरण  ही नही अपितु
जिन दलितों के उद्धार के लिए महात्मा गाँधी ने स्वयं को रूढ़िवादी ब्राह्मणों कि  विरोधी बनाया और एक वर्णव्यवस्था वादी के द्वारा अपने जीवन का बलिदान कर दिया।

 उन महात्मा गाँधी के वर्चस्व से कुछ दलितों के नेताओं ने भी गाँधी को अमर्यादित भाषा में अपशब्द कहे हैं ।

 किस पर सहानुभूति की जाय किस के उत्थान के लिए लड़ा जाय- 

संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष बी.आर. अम्बेडकर  से लेकर वामन मेश्राम तक ने गांधी को महात्मा मानने से इनकार कर अनेक प्रकार से उनको आलोचना का शिकार बनाया  था.
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 डाँ अम्बेडकर की श्रृंखला में ही  "बामन मेश्राम ने तो बेशर्म होकर गाँधी जी को एक मंच से पाखण्डी कहते हुए उनकी समाधि को तोड़ डालने की भी बात कह डाली।

वर्तमान में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपशब्द कहने के मामले में फरार चल रहे  कालीचरण  को गिरफ्तार कर लिया गया है.

 कालीचरण ने इस मामले में" एफआईआर" दर्ज होने के बाद एक वीडियो जारी कर कहा था कि 'मैं डरने वाला नही हूं.। 

फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा, तो भी मैं अपनी बात पर कायम रहूंगा.

मैं गांधी से नफरत करता हूं.' खजुराहो से गिरफ्तार किए गए कालीचरण  पर देशद्रोह समेत कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है.
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आम्बेडकर साहब ने तो गांधी जी को चालाक बताने में भी संकोच नहीं किया था.
चालाकी को समझने वाला भी चालाक ही होता यह सर्वविदित ही है ।

 उन्होंने कहा कि गाँधी के चरित्र में ईमानदारी से ज्यादा चालाकी है -  

बाबा साहेब भीराव आंबेडकर के महात्मा गांधी के बारे में विचार किसी से छिपे नही हैं.।
क्या एक महान व्यक्ति भी द्वेष से दूषित होकर किसी की बुराई कर सकता है ।

सायद नहीं ये शब्द ही किसी की महानता के पैमाने माने जा सकते हैं ।

डॉ० आंबेडकर ने अपने कई भाषणों में खुले तौर पर महात्मा गांधी की आलोचना की  थी.

 उन्होंने महात्मा गांधी को महात्मा मानने से इनकार कर दिया था. 

यहां तक कि आंबेडकर ने गांधी को ईमानदार की तुलना में अधिक चालाक बता दिया था.

ट्विटर पर आनंद रंगनाथन ने महात्मा गांधी को लेकर "बीआर आंबेडकर द्वारा कही कुछ बातें शेयर कीं.
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बीआर आंबेडकर ने कहा था कि भारत में किसी के लिए भी महात्मा बनना बहुत आसान है, इसके लिए केवल उसे अपने कपड़े बदलने होते हैं.
जबकि गाँधी ने कभी स्वयं को महात्मा नहीं कहा 
यह उपाधि तो उन्हें रविंद्र नाथ टैगोर ने दी थी । जो एक बंगाली ब्राह्मण थे ।

12 अप्रैल 1919 को रविंद्र नाथ टैगोर ने गांधीजी को एक पत्र लिखा था.
 उस पत्र में उन्होंने गांधीजी को सबसे पहले  महात्मा कहकर संबोधित किया था.
सदा जीवन उच्च विचार कि नारा गाँधी जी के जीवन में चरितार्थ था ।
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अगर आप एक साधारण पोशाक पहन रहे हैं और एक सामान्य जीवन जी रहे हैं, तो भले ही आप असाधारण नेक काम कर रहे हों, कोई भी आप पर ध्यान नहीं देता है.
परन्तु वेशभूषा को लोग उपाधि देते हैं ।

 लेकिन, जो व्यक्ति सामान्य तरीके से व्यवहार नहीं करता है और अपने चरित्र में कुछ अजीबोगरीब प्रवृत्ति और असामान्यता दिखाता है, 
वह संत या महात्मा बन जाता है.
भले ही उसके वस्त्र उसके कर्म के अनुरूप न हों ।

 परन्तु गाँधी ने कभी दिखावा और दावा नहीं किया।

 फिर भी "बीआर आंबेडकर ने गांधी और गांधिवादियों पर भी सवाल खड़े किए थे.

 उन्होंने कहा था कि क्या यह सच नहीं है कि हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया था? 

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आंबेडकर ने गांधी को चालाक बताने में भी संकोच नहीं किया था. 
उन्होंने कहा था कि जब मैं गांधी के चरित्र का गंभीरता से अध्ययन करता हूं, तो मुझे विश्वास हो जाता है कि उनके चरित्र में गंभीरता या ईमानदारी की तुलना में चालाकी अधिक स्पष्ट है.

(बीआर आंबेडकर) ने गांधी के लिए ये भी कहा था कि छल और कपट दुर्बलों के हथियार हैं. 
और, गांधी ने हमेशा इन हथियारों का इस्तेमाल किया है।

आंबेडकर ने 'मुंह में राम, बगल में छुरी' वाली कहावत का उदाहरण देते हुए कहा था कि अगर ऐसे व्यक्ति को महात्मा कहा जा सकता है, तो गांधी को भी महात्मा कहा जाए.

 मेरे हिसाब से वह एक साधारण मोहनदास करमचंद गांधी से ज्यादा कुछ नहीं हैं.

 उन्होंने महात्मा गांधी की राजनीति को बेईमान राजनीति की संज्ञा दी थी. 

आंबेडकर ने कहा था कि गांधी राजनीति से नैतिकता को खत्म करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति थे. 

और, उन्होंने भारतीय राजनीति में व्यावसायिकता की शुरुआत की. बीआर आंबेडकर के अनुसार, समाज के कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों ने जानबूझकर जनता को अज्ञानी और अनपढ़ रखा. 

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वस्तुत:, तर्क और तर्कवाद के बल पर महात्मा के विरुद्ध लड़ना असंभव है.
 यह चमत्कारों और मूर्खताओं के खिलाफ बौद्धिकता की लड़ाई भी नहीं  है.
क्यों सत्य को जानने के लिए खुद को सच्चा होना चाहिए ।

 केवल तर्क ही महात्माओं चमत्कारों के सम्मोहन प्रभाव को मिटा नहीं सकता.

भारत में महात्माओं की कोई कमी नहीं है.

इसी परम्परा नें दलितों का नायक बनने का उपक्रम करने वाले एक दलित विचारक ने पूर्वदुराग्रह वश एक मंच से कहा-

"मैं गांधी को महात्मा नहीं बदमाश मानता हूं- वामन मेश्राम बहुजन क्रांति मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक और दलित विचारक वामन मेश्राम भी कई मंचों से महात्मा गांधी के खिलाफ अपमानजनक भाषा और अपशब्दों का इस्तेमाल करते नजर आए हैं. जो कि घोर निन्दनीय है ।

ललित नारायण झा नाम के एक यूजर ने वामन मेश्राम का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा है। 

कि वामन मेश्राम का बोल तो सुन लीजिए भूपेश बघेल साहब. बस इतना पूछना चाहते हैं ।गांधीवादी और अम्बेडकरवादियों से कि आप इसको कितना उचित मानते हैं?

 दरअसल, वीडियो में वामन मेश्राम कहते नजर आ रहे हैं कि गांधी ने हमारा (
यानि दलितों का साथ लेकर अपने लोगों को आजाद कराया.  
 

आज दो अक्टूबर के दिन ही ये शैतान पैदा हुआ.
मैंने कांग्रेस के नेताओं से कहा कि मैं गांधी को शैतान मानता हूं, तो मुझे गलत साबित करो.

लेकिन, कांग्रेस नेताओं ने कहा कि नेताओं से गलतियां हो जाती हैं.
लेकिन, आप बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं.

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और इसी श्रृंखला में दलित विचार धारा के घोर विरोधी वर्णव्यवस्था वादी आर.एस.एस (स्वयंसेवक संघ और तमाम कट्टर हिन्दु मंचों से देश के एक महान बलिदानी की हत्या करने के बाद भी गाली दें तो ये दुर्भाग्य पूर्ण ही नही राष्ट्रीय अस्मिता की हानि है ।

जैसा कि अभी हाल में 
शिव ताण्डव करने का अभिनय करने वाले,  हिन्दू और हिन्दुत्व का नारा देने वाले कालीचरन सरागी" सन्त कि वेशभूषा में  "गोडसे को नमन करते हुए गाँधी को सार्वजनिक रूप से धार्मिक मंच से सरेआम गोलियाँ देने वाला कप कृत्य करते हुए दिखाई देते हैं ।
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ये वही लोग हैं जो साम्प्रदायिकता का गाँजा फूँकते हुए भारतीय संस्कृति कि उस भावना को धूमिल करते हैं ।

जिसमें उद्घोष है कि ---यह पूरी पृथ्वी एक परिवार है ।
 
"वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा माना है।

जो महा-उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। 
इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एव कुटुम्बकम्)।
यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।

संसार में केवल भारतीय संस्कृति ही इस प्रकार सम्पूर्ण मानवता को आत्मवत् मानने की पक्षधर है।
परन्तु सत्तासीन पार्टी विशेष- के लोग-भारतीय संस्कृति कि इस गुणवत्ता को दूषित कर रहे हैं ।
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अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
 उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
 (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१)

अर्थ - यह अपना है और यह दूसरे का है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (तुच्छ) वाले लोग करते हैं। 
उदार हृदय वाले (उच्च) लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

भारतीय संस्कृति कि यही उद्घोष उसे दुनियाभर नें श्रेष्ठ सिद्ध करता था ।

परन्तु आज ये तुच्छ लोग  भारतीय संस्कृति की आत्मा कि हनन करने का दुस्साहस कर रहे हैं ।

ये घोर जातिवादी  लोग वही लोग हैं जिन्हें वर्ण- व्यवस्था में आस्था है ; 
और केवल हिन्दुत्व के नाम पर रूढिवादी परम्पराओं से नाता है ।

उस वर्ण-व्यवस्था को लागू करने का  जो जन्म सिद्ध बन जाती है

यद्यपि एक 'दो अपवादों को छोड़कर कालीचरण के समर्थन में आने वाले बहुतायत"भाजपा" के चिर-प्राचीन समर्थक हैं (आरएसएस) को हिन्दू एजेण्डा को पोषक हैं ।
जिसके मूल में घोर ब्राह्मणवाद निहित है ।
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दु:शीलोऽपि द्विज: पूजयेत् न न विजितेन्द्रिय: क:परीतख्य दुष्टांगा दोहिष्यति शीलवतीं खरीम् ।।
 (पाराशर-स्मृति (192) 

अर्थात् व्यभिचारी ब्राह्मण भी पूजना चाहिए परन्तु शूद्र संयमी और जितेन्द्रीय भी हो तब ही वह सम्मान के योग्य नहीं ! 

कौन दुषित अंगों वाली गाय को छोड़कर शील वती गधी को दुहेगा ।।

कालीचरन भी जो स्वयं को "भारतीय जनता पार्टी का सदस्य बताते हैं ।-
और गाँधी जी की हत्या करने वाले को महान मानते हैं ।
सन्त के लिबास नें कैसे आ गये ।
नाथूराम को अपना आदर्श यही लोग मानते हैं ।
नाथूराम विनायकराव गोडसे का जन्म एक मराठी चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

उनके पिता, विनायक वामनराव गोडसे, एक डाक कर्मचारी थे;। जो वर्णव्यवस्था के पोषक थे

पं० गोडसे पुन: ब्राह्मण वाद की  प्रतिष्ठा में प्रयास रत थे ।
नाथूराम विनायक गोडसे (19 मई 1910 - 15 नवंबर 1949) महात्मा गांधी के हत्या की थी। 
क्योंकि गाँधी जी ने दलितों को हरिजन का खिताब देकर मन्दिर नें पूजा कराने का प्रयास किया। 
और हिन्दू मुस्लिम, सिख ,ईसाई को भाई- भाई बताया।
गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में बिंदु रिक्त सीमा पर देखे से गांधी को तीन बार सीने में गोली मार दी थी। 

हे राम कहते हुए जिनकी अन्तिम श्वास निकली-
महात्मा गाँधी रामराज्य के उस रूप को समर्थक थे जहाँ सबको सुख और न्याय मिले। 
परन्तु गोडसे भारत को हिन्दू-देश बनाने को पक्ष में थे ।

ये गोडसे, पुणे के एक हिंदू राष्ट्रवादी, थे जो मानते थे कि गांधी ने भारत के विभाजन के दौरान भारत के मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन किया था और शूद्रों को भी ईश्वर की पूजा का अधिकार दे दिया। 

नारायण आप्टे और छह अन्य लोगों के साथ मिलकर गोडसे ने गांधी की हत्या की साजिश रची ये सभी  कट्टर ब्राह्मण थे ।

बापू ने जब दलितों और मुसलमानों के प्रति उदारता दिखाई तो कुछ ब्राह्मण वादियों को बुरा लगा था ।

गाँधी हत्या के बाद एक साल तक चले मुकदमे के बाद, गोडसे को 8 नवंबर 1949 को मौत की सजा सुनाई गई थी।
ये दुश्मन को भी क्षमा करने को पक्ष नें रहते थे ।
इनकी सन्तानें भी इनकी इस परम्परा या पालन करती थीं ।
सजा के रूपान्तरण के लिए गांधी के दो बेटे मणिलाल गांधी और रामदास गांधी, ने दलील दी, लेकिन वह भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, उप प्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल, और गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी द्वारा ठुकरा दिया गया। 

अन्तत:गोडसे को 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।
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गोडसे हाई स्कूल से बाहर हो गया और हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन) और हिंदू महासभा के साथ एक कार्यकर्ता बन गया, हालांकि उसकी सदस्यता की सही तारीख अनिश्चित हैं।

"आरएसएस "की सदस्यता-
गोडसे 1932 में एक संघी (महाराष्ट्र) कार्यकर्ता के रूप में सांगली (महाराष्ट्र) में आरएसएस में शामिल हो गए, और एक साथ दोनों दक्षिणपंथी संगठनों के हिंदू महासभा के सदस्य बने रहे।

उन्होंने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए अक्सर अखबारों में लेख लिखे।
 इस दौरान, गोडसे और एमएस गोलवलकर,(जो बाद में आरएसएस प्रमुख बने), अक्सर एक साथ काम करते थे, 

और उन्होंने बाबाराव सावरकर की पुस्तक "राष्ट्र मीमांसा" का अंग्रेजी में अनुवाद किया।

कालीचरण जी के शाब्दिक तांडव से भी 
विचलित कथित गांधीवादियों की ही नहीं अपितु प्रत्येक अहिंसा वादी का व्यथित होना स्वाभाविक ही है ।  

धार्मिक होने कि नाटक करने वाले भगवाधारी (जय श्रीराम) वाक्याँश का  उग्रवाद और आतंकवाद के उपोदघात और मानवता को आघात में रूढ़ार्थ करने वाले लोग नहीं जानते कि महात्मा गाँधी ने अपनी आत्मकथा में कहा कि "धर्म रहित जीवन पतवार विहीन नौका के सदृश है। 

धर्म जीवन को सन्मार्ग पर ले जाने ,व्यवस्थित जीवन जीने का माध्यम है "।
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धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

शास्त्रों में धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शोच, इंद्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध-धर्म के ये दश लक्षण हैं।

 जिसमें ये लक्षण विद्यमान हों उसो को धर्मात्मा समझना चाहिए ।

"धृति" सबसे पहला धर्म का लक्षण है। 

धर्म-पथ में अग्रसर होने के लिये सबसे प्रथम धृति का पाथेय चाहिए।

धर्ममंदिर में प्रविष्ट होने के समय सबसे पहले धृतिमान की ही पात्रता होती है। 

जिसके पास धृति नहीं, उसके पास धर्म भी नहीं होता । 
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क्षमा आदि सब गुणों से प्रथम 'धृति' का नाम लेकर महर्षियों ने इसी बात को सूचित किया है। इसलिये आज हम भी और लक्षणों से प्रथम इसी का विचार करते हैं।

स्मृति के टीकाकारों ने धृति शब्द का अर्थ बहुधा संतोष किया है और किसी किसी ने इसका अर्थ धैर्य भी लिखा है।

सन्तोष और धैर्य सम्पूरक ही नहीं अपितु  क्रमश चमक और प्रकाश से समान हैं सन्तोष धैर्य कि शैशवावस्था है ।
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धर्म "धृ धातु से मनिन् प्रत्यय करने पर बना कृदन्त शब्द है। 
जिसका उद्देश्य सद्गुणों के धारण करने से है ।ऋषियों ने जिन सद्गुणों के वर्णन किये है ।
उसमें क्षमा प्रमुख है । 

क्षमा व्यक्ति कि क्षमताओं का प्रतिमान है ।
क्षमा वीरो का आभूषण है।
गान्धी क्षमाशील थे।

रामधारी सिंह 'दिनकर' ने कुरुक्षेत्र खण्ड काव्य में
कहा है –

"कि विषधर सर्प को ही क्षमा शोभा देती है। आशय यह है कि जिसके पास शक्ति होती है तथा जो शक्ति के द्वारा शत्रु का दमन करने में सक्षम होता है, ।
क्षमा करने का अधिकारी भी वही होता है, शक्तिहीन व्यक्ति की क्षमा निरर्थक होती है। उसका कोई मूल्य नहीं होता।
और अग्र पंक्ति में कहा -
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अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है,
पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है ।
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क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो ,
उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो ।
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क्षमा शोभती उसी भुजंग को ,जिसके पास गरल हो।
उसको क्या जो दन्त हीन विषहीन विनीत सरल हो।।

हिन्दुत्व के नाम पर उग्रवाद और वितण्डावाद करने वाले बताऐं कि हिन्दू किस धर्म ग्रन्थ में है ।
हिन्दू कोई धर्म नहीं अपितु  एक भू -सांस्कृतिक अवधारणा है । हिन्दू शब्द या  प्रयोग ईसा पूर्व ५०० में अपने पुरालेख मे दारा प्रथम ने किया था।

ईरानी धर्मग्रन्थ "अवेस्ता ए जन्द" में हफ्तहिन्दव को रूप में भारत कि सात नदीयों का उल्लेख किया है।
सप्त सिंधव अथवा 'सप्त सिन्धु' देव संस्कृति को अनुयायी लोगों का प्रारम्भिक निवास स्थान माना जाता है।

 वेदों में१- गंगा,२- यमुना, ३-सरस्वती, ४-सतलुज, ५-परुष्णी, ६-मरुद्वधा और ७-आर्जीकीया सात नदियों का उल्लेख है। 

सप्त सिंधव भारतवर्ष का उत्तर पश्चिमी भाग था। 

सप्त सिंधव देश का फैलाव कश्मीर, पाकिस्तान और पंजाब के अधिकांश भाग में था। 

देवसंस्कृति को उपासक उत्तरीध्रुव , मध्य एशिया अथवा किसी अन्य स्थान से भारत आये हों, 

 ये सात नदियाँ इस प्रकार हैं 

१-सिंधु 
२-विपासा(व्यास)
३-आतुल(सतलुज)शतद्रु
४-वितस्ता(झेलम)
५-अस्क्नी(चिनाव)
६-परूसी(रावी)
७-सरस्वती
हिन्दू शब्द कि जन्म-

और आज ईरानी धर्मग्रन्थ "अवेस्ता ए जन्द" में प्रयुक्त शब्द हिन्द ही जब यूनानी "सरजमीं पर पहुँचा तो  वहाँ इसका रूप इन्दिया" हो गया जिसे अंग्रेज़ी हुकूमत मनेर इण्डिया' बना दिया और जो आज मात्र राजनेताओं की कण्डिया' बनकर रह गयी है ।

महात्मा गाँधी से पहले देश अंग्रेज़ी हुकूमत का गुलाम था।
गाँधी ने अपना बलिदान देकर हमे हें आजादी दी 
   
महात्मा क्षमाशीलता के प्रतिमूर्ति थे । 
एक गाल पर चाटा मारने वाले के समक्ष दूसरे गाल को प्रस्तुत करने को आदर्श मानते थे। 

स्वाधीनता के उग्र आंदोलन के जगह सविनय अहिंसात्मक आंदोलन में विश्वास करते थे।
      

आवश्यकता गांधी वाद को आत्मसात करने की है यदि आज  महात्मा जीवित होते तो वे कीचड़ से कीचड़ नही धोते ,कालीचरण को क्षमा कर देते है 

लेकिन गांधी जी  राम राज्य के आदर्श और मानवता वादी रूप को समर्थक व पेरौकार थे। 
 परन्तु "जयश्रीराम" को रूप में आतंकवादी गतिविधियों को अन्जाम देने वाले महात्मा गाँधी को राम राज्य के आदर्श को क्या जाने ?
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महात्मा गाँधी और उनकी निर्मला" बकरी की महानता जिसे शास्त्रों ने भी स्वीकारा-  शास्त्रों में बकरी को गाय से भी श्रेष्ठ पशु बताया-

विश्व के जन्तु वैज्ञानिकों ने जब बकरी के दूध की गुणवत्ता का अनुसन्धान किया तो वे चमत्कृत हो गये ।
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ब्रह्मा ने  अपने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं और वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया ।

ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने को कारण ही बकरियाँ  पशुओं में मुख्य( श्रेष्ठ) हैं ।

मुखे आदौ भवः यत् प्रथमकल्पे अमरः कोश - श्रेष्ठे च ।
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और दोनों पैरों से घोड़ो और तुरंगो, गदहों और नील गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य  जातियाँ उत्पन्न हुईं ।

बकरी ब्राह्मणों की सजातीय  इसीलिए है कि 
ब्राह्मण भी ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न हुए हैं।

 अग्नि, इन्द्र ,ब्राह्मण और अजा ये सभी पहले उत्पन्न हुए और विराट पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए इसी लिए इन्हें मुख्य कहा गया।
 "अग्रजायते ब्रह्मण:मुखात् इति अजा।

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(ऋग्वेद मण्डल दश सूक्त नवति ऋचा द्वादश)
१०/९०/ १ से १२ तक ऋग्वेद मैं वर्णन है कि

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥१॥

पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥

तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥६॥

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥७॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान्ग्राम्याश्च ये॥८॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥९॥
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तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजा अवयः।१०॥
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यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते।११।

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥१२॥

मुखतोऽजाः सृजन्सो वै वक्षसश्चावयोऽसृजत् गावश्चैवोदराद्ब्रह्मा  पुनरन्याँश्च निर्ममे ।1.107.३० । 

पादतोऽश्वांस्तुरङ्गांश्च रासभान्गवयान्मृगान् ।उष्ट्रांश्चैव वराहांश्च श्वानानन्यांश्च जातयः 1.107.३१।

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ब्रह्मा ने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं ।
वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया   
।३०।
और दोनों पैरों से घोड़ो और तुरंगो गदहों और नील गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य जातियाँ उत्पन्न हुईं ।३१।
 सन्दर्भ-(विष्णु धर्मोत्तर पुराण खण्ड प्रथम अध्याय (१०७)

अन्य बहुतायत पुराणों में भी वेदों के सन्दर्भों का ही हवाला दिया गया है ।
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अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजाः स सृष्टवान् ।
सृष्टवानुदराद्गाश्च पार्श्वभ्यां च प्रजापतिः ।४८।

पद्भ्यां चाश्वान्समातङ्गान्रासभान्गवयान्मृगान्।
उष्ट्रानश्वतरांश्चैव न्यङ्कूनन्याश्च जातयः। ४९।

विष्णु पुराण प्रथमाँश पञ्चमो८ध्याय (५) 
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में भी बकरी और ब्राह्मण ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न हुए हैं ।
ततः स्वदेहतोऽन्यानि वयांसि पशवोऽसृजत् ।
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मुखतोऽजाः ससर्जाथ वक्षसश्चावयोऽसृजत्॥४८.२५॥
गावश्चैवोदराद् ब्रह्मा पार्श्वाभ्याञ्च विनिर्ममे ।
पद्भ्याञ्चाश्वान् स मातङ्गान् रासबान् शशकान् मृगान्॥४८.२६॥

बकरी को शास्त्रों में सर्वाधिक श्रेष्ठ पशु माना गया है ब्राह्मण भी प्रारम्भिक काल में बकरी ही पालते थे ।क्यों कि बकरी ब्रह्मा के मुख से निकली- जो ब्राह्मणों की सजातीय है।

दु:ख तो तब होता है जब बकरी पालने वाले हजरत ईसा' हजरत मूसा और राम,और  भगवान श्रीकृष्ण भी थे  परन्तु आज के जाहिल बकरी को तुच्छ पशु मानते हैं और कहते हैं की बकरी तो पाल (गड्ढरि) समाज के  लोगों का पालने का काम रिवाज सदीयों पुराना है ।

गड्डरिक, प्राकृत गड़डरि -एक जाति जो भेड़ें पालती और उनके ऊन से कंबल बुनती हैं । 
हिब्रू भाषा नें गडेरी जिसका अर्थ ईश्वर का भक्त होता है ।

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महात्मा गाँधी शास्त्रों के सार को जानते थे 
इसी लिए बकरी माता को पालने का उनका कार्य उनके  शास्त्रों का तत्वज्ञानी होने कि प्रमाण है ।

सांख्य दर्शन में बकरी( अजा) को ही संसार की आदि माता कहा है ।
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अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां वह्वी: प्रजा सृजामानां सरूपा:।

अजो हि एको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्य:॥

सन्दर्भ-श्वेताश्वेतरउपनिषद-४/५]

यहाँ लोहित शुक्ल कृष्ण रंग ( वर्ण)क्रमश: रजस, सत्त्व तथा तमस-त्रिगुण के लिए प्रयुक्त है। इन तीन रंगों वाली अथवा

इन तीन गुणों से युक्त एक अजा ( बकरी)  है ; इसका भोग करता हुआ  एक अज (बकरा) है।

तथा भोग रहित एक और अज तत्त्व (परमात्मा) है। 

इस प्रकार यह उपनिषदवाक्य त्रिगुणात्मक प्रसवधर्मि (सृजन करने वाली) प्रकृति का उल्लेख भी  अजा के रूप में करता है।
 


परमात्मा को मायावी कहकर प्रकृति को ही माया कहा गया है। इस प्रसंग में पुन: मायावी और माया से बन्धे हुए अन्य तत्त्व जीवात्मा का उल्लेख भी है।

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बकरी सदीयों से अनके संस्कृतियों में पाली जाती रही है। इसका दूध प्राणी मात्र को लिए अमृत तुल्य व आसानी से पच जाने वाला है।

बकरी के दूध में (लिपिड कण) प्रचुर जबकि गाय के दूध में काफी छोटे होते हैं। 

लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है। ... इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है।

बड़ी संख्या में छोटे व्यास के साथ वसा' ग्लोबुल्स होने से बकरी का दूध अधिक सुपाच्य होता है। 
इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फोस्फोरस की उच्च मात्रा सम्यक होती है।

इसमें पॉलीअनसेचुरेटेड वसा( PUFA )की उच्च मात्रा है। 

जो (LDL) एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है।

यह हृदय रोग, जठरांत्र रोगों और एलर्जी की रोकथाम में मददगार है।
इसके अलावा पाचन विकार, दमा, अल्सर, एलर्जी, सूखा रोग, क्षय रोग में भी बकरी सा दूध लाभकारी है।
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शोधों को अनुसार-
बकरी का दूध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे शरीर को कोई बीमारी अटैक नहीं कर पाती है। 
यह एलर्जी के लिए भी फायदेमंद है।

बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन( ए) की मात्रा ज्यादा होती है। विटामिन( ए) ही प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।
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बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा जैसे तत्व गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है।

यही तत्व आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।

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बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है 
और बिमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| महात्मा गाँधी इस गुणवत्ता को जानते थे ।

बकर सा दूध पचाने में आसान है –जबकि कुछ लोगों को गाय के दूध से गैस और सूजन या फुलावट की समस्या होती है| 

बकरी का दूध इन उदर से सम्बंधित विकारों का समाधान है| 
ऐसा इसलिए है क्योंकि बकरी के दूध में फैट के तत्व छोटे होते हैं और ये गाय के दूध की अपेक्षा जल्दी टूट या पच भी जाते हैं|

 इसके अलावा बकरी के दूध में मौजूद पोटेशियम की मात्रा मानव शरीर में क्षारीय गुण पैदा करता है|

 जबकि गाय के दूध में इन पोषक तत्वों की कमी होती है जिससे गैस जैसी समस्या पैदा होती है|
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इसका प्राकृतिक रूप से एकरूप होने का गुण अर्थात होमाजनाइज़्ड जिसका मतलब है एक रूपता  बकरी को दूध में प्रचुर रूप नें पाया जाता है| 

गाय के दूध में फैट होता है जिसकी पानी जैसी परत इसकी सतह पर आ जाती है| 

इसको दूर करने के लिए गाय के दूध के साथ एक प्रक्रिया करनी होती है जिसे "होमाजनाइजेशन कहा जाता है, इससे फैट के अणु ख़त्म हो जाते हैं| 

इससे क्रीम बनती है और दूध होमोजेनेस और अच्छी तरह मिला हुआ बनता है|
होमाजनाइजेशन के नुकसान भी हैं| 

इससे दूध में तथा साथ ही साथ हमारे शरीर में फ्री रेडिकल्स इकट्ठे होते हैं| 
ये आगे चलकर स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानियां पैदा करते हैं| 

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जबकी बकरी का दूध प्राकृतिक रूप से होमोग्नाइज़्ड होता है और इसके साथ अन्य कोई प्रक्रिया करने की आवश्यकता नहीं होती है|

इसलिए बकरी का दूध आपको होमाजनाइजेशन से दूर रखता है|

इससे एलर्जी कम होती है-  गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे "कैसिइन" कहते हैं| 

गाय के दूध से बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|

परन्तु इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है| 
बकरी के दूध में 'कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

 इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|

 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है
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बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा होती है।
विटामिन ए प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।

बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है। 

यह आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।
यह हम पूर्व में ही बता चुके हैं ।

बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है और बिमारियों  से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| 

बकरी का दूध कई रोगों के उपचार एवं रोकथाम में लाभदायक है, जैसे कि-
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अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन "ए" की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है|

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है | 

बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। 
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 
शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है ।
जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है!

इससे एलर्जी कम होती है- गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे कैसिइन कहते हैं| 
बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|
 इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है|

बकरी के दूध में कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|
 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है|

अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन ए की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है| 

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

 बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है|

 बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है। 

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं। 

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

एचआईवी के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीडि़त मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। 

सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध। 

जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

11.इम्यूनिटी -
बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर को बढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण——

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।
एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

इस तरह से बकरी का दूध डेंगू से बचने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। 

हरे पौधों और पत्ति‍यों को आहार के रूप में ग्रहण करने के कारण इसके दूध में भी औषधीय गुण होते हैं, और यह कई तरह की बीमारियों को दूरकरने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

यही कारण है कि जो व्यक्ति नियमित तौर पर बकरी का दूध पीता है, उसे बुखार जैसी समस्याएं नहीं होती।

बकरी के दूध में विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं।

विटामिन बी6, बी12, विटामिन डी, फोलिक एसिड और प्रोटीन से भरपूर बकरी का दूध शरीर को पुष्ट कर, प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करता है, 

जिससे बीमारियों की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।

एक अन्य शोध के अनुसार किसी बच्चे को बकरी का दूध पिलाने पर उसकी रोधप्रतिरोधक क्षमता में इस कदर इजाफा होता है,

 कि उसके बीमार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है।

हालांकि 1 साल से छोटे बच्चों को बकरी का दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्यों‍कि इससे उन्हें एलर्जी का खतरा होता है।

बकरी के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन, गाय या भैंस के दूध में मौजूद प्रोटीन की तुलना में बेहद हल्का होता है। 
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जहां गाय के दूध का पाचन लगभग 8 घंटे में होता है, वहीं बकरी का दूध पचने में महज 20 मिनट का समय लेता है।

बकरी का दूध अपच की समस्या को दूर कर शरीर में उर्जा का संचार करता है। 

इसके अलावा इसमें मौजूद क्षारीय भस्म आंत्र तंत्र में अम्ल का निर्माण नहीं करता जिससे थकान, मसल्स में खिंचाव, सिर दर्द आदि की समस्या नहीं होती।

डेंगू के इलाज व डेंगू से बचाव में बकरी का दूध बेहद कारगर उपाय है।

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं।
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।

शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

"एचआईवी" के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीड़ित मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध।

 जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर को बढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
 बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण———

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 

एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक हैं।

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प्रस्तुति- करण 
यादव योगेश कुमार" रोहि" - 8077160219 हैं।




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