बुधवार, 5 जनवरी 2022

महात्मा गाँधी का बकरी पालन - और उनके जीवन के अन्तिम दिन-




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 (न जायते न म्रियते वर्द्धते न च विश्वसृक्।
मूलप्रकृतिरव्यक्ता गीयते वैदिकैरजः।। ३८.७६।

ततो निशायां वृत्तायां सिसृक्षुरखिलञ्जगत्।


‘प्रकृति पुरुषं चौव विद्धयनादी उभावपि’[सन्दर्भ]श्री मद्भगवद्गीता१३/९

प्रकृति एवं पुरुष दोनों ही अनादि हैं। तात्पर्य कि पुरुष अज है तो प्रकृति भी अजा है।

श्वेताशवेतरो- उपनिषद  और साँख्यदर्शन व उसकी प्रतिपादिका सांख्य कारिका में वर्णन है:-

‘अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां सरूपाः।
अजोह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोन्य।।

( श्वेताशवेतरोपनिषद्-४/५) 

अजामेकां  लोहितशुक्लकृष्णां                  बह्वीः  प्रजाः  सृजमानां  सरूपाः ।

 अजो  ह्येको  जुषमाणोऽनुशेते     जहात्येनां  भुक्तभोगामजोऽन्यः ॥४।५॥

(इस ब्रह्माण्ड में) एक अजन्मी, या उपमा से, एक अजा = बकरी  है जिसे सांख्यदर्शन नें (प्रकृति) कहा है जो कि लाल, सफेद और काले रंग (रज, सत्त्व और तम) रंग वाली है । वह अपने जैसे रूप में बहुत प्रजाओं सन्तानों को जन्म देती है।

 एक अज = बकरा जिसे साख्यदर्शन में

 पुरुष( ईश्वर) कहा गया है। वह  उस अजा का भोग करता हुआ लेटता शयन करता  है, जबकि दूसरे एक बकरे (जीवात्मा), ने पहले ही   उस बकरी का भोग करके उसको त्याग दिया है। जहां यह उपमा जीव और प्रकृति के सम्बन्ध में स्पष्ट है ही, वहां यह देखने योग्य है कि विरक्त आत्मा का ब्रह्म से एकत्व नहीं कहा गया है – उसे अलग ही माना गया है । ’अजन्मा’ होने का भी अर्थ है कि आत्मा किन्हीं वस्तुओं के संयोग या परिणाम से नहीं उत्पन्न नहीं हुआ है, परन्तु उसकी सत्ता भी अनादि है। 

यदि जीवात्मा परमात्मा का विकार होता तो उसे जन्म-वाला ही मानना पड़ता, जिस प्रकार प्रकृति के सभी विकारों का ’जन्म’ बताया गया है ।   इसी प्रकार प्रकृति को भी ’अजा’ कहा गया है। 

अन्य एक श्लोक तीनों सत्ताओं में भेद बताता है – 

ज्ञाज्ञौ  द्वावजावीशनीशा –

     वजा  ह्येका  भोक्तृभोग्यार्थयुक्ता  ।अनन्तश्वात्मा  विश्वरूपो  ह्यकर्ता   त्रयं      यदा  विन्दते  ब्रह्मेतत्॥ १।९ ॥

अर्थात् दो अज हैं, एक तो ज्ञ है – जानने वाला है, सर्वज्ञ है; दूसरा अज्ञ है – कम जानता है ; एक सब पदार्थों का प्रभु है, दूसरा उसके वश में रहता है ; और तीसरी एक अजा भोक्ता के भोग के लिए युक्त होती है । 

जब यह जीव, जो कि अनन्त आत्मा है, अनेक शरीर धारण करने से ’विश्वरूप’ है और अकर्ता है (क्योंकि शरीर ही कर्ता है), इन तीनों सत्ताओं को जान लेता है, तब वह ब्रह्म को पा लेता है । इससे स्पष्ट रूप से और क्या कहा जा सकता है ?

अन्य एक सुप्रसिद्ध श्लोक परमात्मा का स्वरूप बताता है –

 न  तस्य  कार्यं  करणं  च  विद्यते

त्समश्चाभ्यधिकश्च  दृश्यते ।

  परास्य  शक्तिर्विविधैव  श्रूयते     स्वाभाविकी  ज्ञानबलक्रिया च ।६।८।

अर्थात् उस परमात्मा का न कार्य, न करण है । उसके बराबर ही कोई नहीं दिखता, तो उससे अधिक का तो कहना ही क्या ! 

उसकी शक्ति सबसे अधिक है और विविध प्रकार की है, ऐसा वेदादि शब्द प्रमाण हैं । उसमें ज्ञान, बल और क्रिया स्वाभाविक रूप से वर्तमान है । जैसे जीव में प्रकृति के सहारे से ज्ञान, बल और क्रिया होती है, ऐसा परमात्मा के विषय में सत्य नहीं है । इस पूरे ही वर्णन से स्पष्ट है कि जीवात्मा कभी भी परमात्मा का विकार नहीं हो सकता । जिसका कार्य ही नहीं है, तो विकार कैसे मानें ?! 

जिसका कोई सहाय के लिए उपकरण नहीं है, जिसके कोई बराबर नहीं है, जिसकी शक्ति अपार है, जिसका ज्ञान, बल और क्रिया अपने स्वरूप से ही है, वह एक क्षुद्र प्राणी में कैसे संकुचित हो जायेगा ?

तथापि एक श्लोक है जिसमें यह सन्देह होता है कि सम्भवतः अद्वैतवाद का ऋषि समर्थन कर रहे है  –

सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः प्रकृतेर्महान् महतोऽहंकारोऽहंकारात् पञ्चतन्मात्रण्युभयमिन्द्रियं पञ्चतन्मात्रेभ्यः स्थूलभूतानि पुरुष इति पञ्चविशतिर्गणः।। -सांख्यसूत्र।।

(सत्त्व) शुद्ध (रजः) मध्य (तमः) जाड्य अर्थात् जड़ता तीन वस्तु मिलकर जो एक संघात है उस का नाम प्रकृति है। उस से महत्तत्त्व बुद्धि, उस से अहंकार, उस से पांच तन्मात्र सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्रओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चौबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर हैं। 

इन में से प्रकृति अविकारिणी और महत्तत्त्व अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूलभूतों का कारण है। पुरुष न किसी की प्रकृति उपादान कारण और न किसी का कार्य्य है।______________________________

तं मां वित्त महात्मानं ब्रह्माणं विश्वतो मुखम्।
महान्तं पुरुषं विश्वमपां गर्भमनुत्तमम् ।३८.७८

न तं जानीथ जनकं मोहितास्तस्य मायया ।
देवदेवं महादेवं भूतानामीश्वरं हरम् ।। ३८.७९

एष देवो महादेवो ह्यनादिर्भगवान् हरः ।
विष्णुना सह संयुक्तः करोति विकरोति च ।। ३८.८०

चतुर्वेदश्चतुर्मूर्त्तिस्त्रिमूर्त्तिस्त्रिगुणः परः ।
एकमूर्त्तिरमेयात्मा नारायण इति श्रुतिः ।७५।
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रेतोऽस्य गर्भो भगवानापो मायातनुः प्रभुः ।
स्तूयते विविधैर्मन्त्रैर्ब्राह्मणैर्मोक्षकांक्षिभिः ।। ७६।

संहृत्य सकलं विश्वं कल्पान्ते पुरुषोत्तमः ।
शेते योगामृतं पीत्वा यत् तद् विष्णोः परं पदम् ।।.७७
न जायते न म्रियते वर्द्धते न च विश्वसृक् ।
मूलप्रकृतिरव्यक्ता गीयते वैदिकैरजः ।।७८।।
ततो निशायां वृत्तायां सिसृक्षुरखिलञ्जगत् ।
अजस्य नाभौ तद् बीजं क्षिपत्येष महेश्वरः ।७९।

तं मां वित्त महात्मानं ब्रह्माणं विश्वतो मुखम् ।
महान्तं पुरुषं विश्वमपां गर्भमनुत्तमम् ।८०।

(कूर्मपुराण-उत्तर-भाग).  अध्याय (३८)
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माया से विविध शरीर धारण करने वाले समस्त जगत के जीवन -जल को अपने आयतन( आकार) को रूप नें स्वीकार करने वाले जल स्वरूप भगवान कर्म -फल को एक मात्र अधिष्ठाता हैं।

धर्म और मोक्ष कि इच्छा रखने वाले ब्राह्मण लोग-विविध मन्त्रों के द्वारा उनकी स्तुति करते हैं। कल्पनान्त में समस्त विश्व की प्रलय करने को उपरान्त योगामृत का पान कर वह विष्णु जो परम पद है वहाँ शयन करते हैं। 
विश्व की सृष्टि करने वाले ये महान ईश्वर न तो जन्मते नाही मरते हैं। और न वृद्धि को प्राप्त होते हैं । वैदिक विद्वान इसी ईश्वर को "अज"  (बकरा) कहते है ।७८-७९।।

प्रलय रूपी रात्रि के बीत जाने पर सम्पूर्ण जगत का सृजन करने की  इच्छा से अज -(बकरे) की नाभि में सृष्टि -बीज  को स्थापित करता है यह महान ईश्वर (महेश्वर)।।८०।

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न तस्य विद्यते कार्यं न तस्माद् विद्यते परम् ।
स वेदान् प्रददौ पूर्वं योगमायातनुर्मम ।। ३८.८१

स मायी मायया सर्वं करोति विकरोति च ।
तमेव मुक्तये ज्ञात्वा व्रजेत शरणं भवम् ।। ३८.८२

इतीरिता भगवता मरीचिप्रमुखा विभुम् ।
प्रणम्य देवं ब्रह्माणं पृच्छन्ति स्म सुदुः खिताः ।। ३८.८३

इति अष्टाचत्वारिंशोध्यायः ॥ 
कूर्मपुराऩउत्तरभाग-
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यदि च छागी याग साधनं भवति तदा अयं मन्त्रः संगताथो भवति नान्यथा 

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गांधीजी के अंतिम दस मिनट!

गोडसे ने गोली मारने के पहले गांधी को प्रणाम नहीं किया था! उसने गांधीजी को सही से निशाने पर लेने के लिए अपनी पोजीशन बनाई थी!

गोडसे ने गांधीजी के बचाव में आई मनु बेन को धक्का मार कर गिराया!

आज के दिन 30 जनवरी 1948 में गांधीजी की हत्या की गई। नाथूराम गोडसे ने किस बर्बरता से गांधीजी को मारा वह पूरा विवरण पढ़ें और गांधी जी के भारत के बारे में सोचें।

"अब गांधी जी प्रार्थना सभा के बीच रस्सियों से घिरे रास्ते पर चलने लगे। उन्होंने प्रार्थना में शामिल होने वाले लोगों के नमस्कार का जवाब देने के लिए लड़कियों के कंधों से अपने हाथ उठा लिए। एकाएक भीड़ में से कोई ( नाथूराम गोडसे) दाहिनी और से भीड़ को चीरता हुआ उस रास्ते पर आया। मनु ने यह सोचा कि वह आदमी (गोडसे) बापू के पांव छूने को आगे बढ़ रहा है। इसलिए उसने उसको ऐसा करने के लिए झिड़का, क्योंकि प्रार्थना में पहले से ही देर हो चुकी थी। उसने(मनु ने) रास्ते में आने वाले आदमी का हाथ पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश की। लेकिन उसने ( गोडसे ने) जोर से मनु को धक्का दिया, जिससे उसके हाथ की आश्रम - भजनावली, माला और बापू का पीकदान नीचे गिर गए। ज्योंही वह बिखरी हुई चीजों को उठाने के लिए झुकी, वह आदमी बापू के सामने खड़ा हो गया - इतना नजदीक खड़ा था कि पिस्तौल से निकली हुई गोली का खोल बाद में बापू के कपड़ों की परत में उलझा हुआ मिला।"

"सात कारतूसों वाले ऑटो मैटिक पिस्तौल से जल्दी जल्दी तीन गोलियां छूटीं। पहली गोली नाभी के ढाई इंच ऊपर और मध्य रेखा से साढ़े तीन इंच दाहिनी तरफ पेट की बाजू में लगी। दूसरी गोली, मध्य रेखा से एक इंच की दूरी पर दाहिनी तरफ घुसी और तीसरी गोली छाती की दाहिनी तरफ लगी। 
पहली और दूसरी गोली शरीर को पर कर पीठ के बाहर निकल आई। तीसरी गोली उनके फेफड़े में ही रुकी रही।"

"पहले वार में उनका पांव, जो गोली लगने के वक्त आगे बढ़ रहा था, नीचे आ गया। दूसरी गोली छोड़ी गई तब तक वे अपने पांवों पर ही खड़े थे, उसके बाद वे गिर गए।"

"उनके मुंह से आखिरी शब्द "हे राम" निकले। उनका चेहरा राख की तरह सफ़ेद पड़ गया। उनके सफेद कपड़ों पर गहरा सुर्ख धब्बा फैलता हुआ दिखाई दिया।"

अगर देश को ऐसे ही गहरे सुर्ख खून में नहला नहीं देना है तो सोचिए की किसका भारत बनाना है। गांधीजी का या उनके हत्यारे गोडसे का?

आज भी देश में दोनों अपने अपने विचारों के साथ उपस्थित और सक्रिय है! चुनाव आपको करना है!

विवरण: प्यारेलाल
किताब: गांधी श्रद्धांजलि ग्रंथ 
संपादक: सर्वपल्ली राधकृष्णन
प्रकाशन वर्ष: 1955




वायसराय "लार्ड माउन्ट बेटन "ने  महात्मा -गांधी जी की हत्या पर कहा था, 

"ब्रिटिश हुकुमत अपने काल पर्यन्त महात्मा की।
 हत्या से  कलंक से बच गई , आपकी हत्या आपके अपने  देश, आपके राज्य,आपके लोगों ने की है।
 यदि इतिहास आपका निष्पक्ष मूल्यांकन कर सका, तो वह  आपको ईसा मसीह और महात्मा- बुद्ध की कोटि में रखेगा। 

कोई कौम इतनी कृतघ्न और खुदगर्ज कैसे हो सकती है?  जो अपने पिता तुल्य मार्गदर्शक की छाती छलनी कर दे । ये तो नृशंस बर्बर नरभक्षी कबीलों में भी नहीं होता है, और उस पर निर्लज्जता ये कि हमें इस कृत्य का अफसोस तक नहीं है।"

समझ नही आता इस आदमी को मारने का पाप कोई कैसे कर पाया,,,,,इस बूढ़ी देह में क्या बचा था,,,,
इस देश को बनाते, सुधारते और आजादी की लड़ाई लड़ते हुए खोखली हुई इस देह को कोई गोली कैसे मार सकता है,,,
जो सबका था मनुष्य को मनुष्य समझने का पक्षपाती था,,अहिंसक था,,,और एक महान हिन्दू था,,इतना हिन्दू तो कोई नही हुआ इस देश मे,,,,
पर नफरत आपको ऐसा बना देती है।
आरएसएस और हिन्दू महासभा ने जो नफरत बेची थी गोडसे उसका खरीददार था, 
इस देश के हिंदुओ पर इस हत्या का कलंक हमेशा रहेगा।



गाँधी जी के विषय में उनके विरोधीयों अनेक अफवाहे फैलायीं विशेषत: उन लोगों ने जो सदियों से आपस नें एक दूसरे को शत्रु थे 
ब्राह्मण और दलित जो अपने को कहते थे । गाँधी जी ये लोग अंग्रेजों और मुसलमानों का वफादार  कहकर अपना विरोध प्रकट करते हैं ।
परन्तु गाँधी जी का विरोध अथवा उनके लिए अनुरोध करने कि मेरा कोई तात्पर्य नहीं ।

[ गन्धिक]गाँधी सुगन्ध  इत्र और सुगंधित तेल आदि बेचता हो या व्यवसाय करने वाले   गुजराती वेश्यों की एक जाति में जन्में थे । इसी लिए गाँधी की महानता को रूढ़िवादी ब्राह्मण पं० नाथूराम गोडसे जो चित पावन ब्राह्मण" थे कैसे स्वीकार करते इसीलिए इन्होंने हिन्दुत्व का प्रतिनिधित्व करते हुए  महात्मा गाँधी को वर्णव्यवस्था को नष्ट करने वाला और भंगी शूद्र आदि निम्न जातियों का हरिजन के रूप नें नामकरण कर उत्थान करने को अपराध नें हत्या कर दी  ! 

उसके बाद आज तक ये लोग मारने को बाद भी भगवामँचों से गाँधी जी को गाली देते रहते हैं 
इनकी महानता तो देखिए !


गाँधी जी भारती संस्कृति को अनन्य उपासक थे पारसीयों को वे अपना सजातीय मानते थे जो पारसी अपने उपासना गृहों में अनवरत अग्नि सी उपासना करते जैसा कि ऋग्वेद में भी अग्नि सी प्रथम रूप में स्तुति की गयी है ।

"अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्" ऋग्वेद १/१/१

एक बार जब पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा प्रियदर्शिनी जी जब भी चुनाव प्रचार के लिए गुजरात में लोगों के बीच पहुंचती थीं तो साड़ी के पल्लू से सिर ढांकना नहीं भूलती थीं। 
वे खुद को हमेशा गुजरात की बहू बताती थीं। इंदिरा ‘नेहरू’ से ‘गांधी’ तब बनीं, जब उन्होंने गुजरात के पारसी युवक फिरोज से शादी की।

फिरोज मुसलमान नहीं अपितु एक पारसी शुद्ध आर्य युवक था ।
इसका नाम भी पारसी भाषा का है ।
दरअसल ये लोग "असुर-महत्" को मानने वाले अग्नि की अखण्ड उपासना करने वाले लोग थे ।

उस वक्त एक हिंदू और पारसी के संबंध से भारतीय राजनीति में भूचाल न आए, इसके लिए महात्मा गांधी ने इन्हें ‘गांधी’ नाम दे दिया।
बाद में यह परिवार राजनीति में इसी नाम से मशहूर हुआ। 

क्योंकि देव संस्कृति के इन्द्रोपासक लोग जो सदी यों से ईरानी आर्यों के विरोधी थे।

कदाचित् इसीलिए "अवेस्ता ए जन्द" में देव शब्द "दएव " को रूप में उपस्थित होकर दुष्ट अर्थ को प्रकट करता है ।
उसी देव संस्कृति में असुर शब्द या अर्थ दुष्ट कर दिया गया है ।
महात्मा गाँधी शास्त्रों को जानकार थे श्रीमद्भगवद्गीता उनका अध्याय(अध्ययन योग्य) ग्रन्थ था । 
जो उनके हाथ में अक्सर सुशोभित होती थी। 
हिन्दुस्तान की टाटा कम्पनी जो पारसीयों कि ही कम्पनी है जो विश्व में भारत सी आर्थिक और तकनीकी प्रतिनिधित्व करती है ।
गाँधी जी प्राचीन ईरानी और भारतीय संस्कृति को जानकार थे ।


फिरोज के पिता   मरीन एक  इंजीनियर थे 
- देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी के बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था।
- 19 नवंबर 1917 को यूपी के इलाहाबाद में उनका जन्म हुआ था।
 उनके घर का नाम 'इंदू' था और वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं।
- इंदिरा का नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरू ने रखा था। 
इसका मतलब होता है कांति, लक्ष्मी और शोभा।
- वहीं 12 सितंबर 1912 को मुंबई के फोर्ट तेमुलजी नरिमान हॉस्पिटल में जन्में फिरोज गांधी मूल गुजराती हैं।
- फिरोज के पिता का नाम जहांगीर और मां का नाम रतिबाई था। 

फिरोज के पिता जहांगीर मरीन इंजीनियर की पढ़ाई के बाद मुंबई शिफ्ट हो गए थे। 
और इस तरह फिरोज का जन्म मुंबई में हुआ।
- परिवार में पांच संतानें थीं, जिसमें फिरोज सबसे छोटे थे। पिता की मौत के बाद फिरोज की मां सभी बच्चों के साथ अपनी मां के घर इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) आ गई थीं।

- फिरोज ने कॉलेज की पढ़ाई इलाहाबाद में की और आगे की पढ़ाई के लिए वे लंदन चले गए, लेकिन कुछ समय बाद ही वे भारत लौट आए।
इन्दिरा  नेहरू कशमीरी ब्राह्मण कराने सी लड़की थी। और फिरोज भी वैदिक संस्कृति से सम्बन्धित पारसी युवक था ही ।
गाँधी जी प्राचीन सजातीय संस्कृतियों को जोड़ना चाहते थे ।
ईरान से पलायन कर गुजरात के रास्ते  "70000 हजार को करीब मुम्बई में शरणार्थी बनकर आये 
गाँधी जी ने उन्हें आर्य जाति का होने के कारण शरण दिलायी।

भारत में 17 अगस्त को पारसी नया साल मनाया जाता है, जिसे 'जमशेदी नवरोज' के नाम से भी जानते हैं।

 इसी दिन प्राचीन फारस के राजा शहंशाह जमशेद ने पारसी कैलेंडर की शुरुआत की थी। पारसियों (भारत के कई हिस्सों में ईरानी भी कहते हैं) का धर्म असल में ज़रथुस्‍ट्र पंथ कहलाता है, जो एक ईश्वरवाद का सबसे पुराना धर्म है। 

इस धर्म के संस्थापक पैगंबर ज़रथुस्त्र थे, जो करीब 3500 साल पहले प्राचीन ईरान में रहते थे। 7वीं सदी में इस्लाम धर्म के उदय होने से पहले तक ज़रथुस्‍ट्र साम्राज्य और धर्म कई शताब्दियों तक स्थापित रहा था।

लेकिन, इस्लामी लड़ाकों के फारस (ईरान) पर हमले के साथ ही इस साम्राज्य और धर्म दोनों पर संकट की शुरुआत हो गई। उन्हें फारस से खदेड़ा जाने लगा, अपने मूल स्थान पर ही उन्हें अपनी जान सुरक्षित रख पाना असंभव हो गया।

"ईरान से  निकलने को मजबूर हुए पारसी -

फारस में पारसियों के लिए पहले की तरह अपना ज़रथुस्‍ट्र पंथ या जीवन जीने के लिए  अहुर- महत्( मज्दा) सी उपासना और अपनी जिंदगी दोनों को सुरक्षित रखना जरूरी था। 

लेकिन, वे इस्लामिक कट्टरपंथियों के हमले के शिकार होने लगे थे।

 इस्लाम के उदय के साथ फारस में पहले की तरह उनका रहना नामुमकिन हो गया था।

 मुसलमानों के पहले खलीफा अबु बकर ने अपने एक कमांडर खालिद इब्न वालिद को पारसियों के पास यह सन्देश देकर भेजा,'इस्लाम कबूल कर लो और सुरक्षित रहो। 

या जजिया चुकाओ और तुम और तुम्हारे लोग हमारे संरक्षण में आ जाओ, नहीं तो जो भी होगा उसके लिए तुम खुद दोषी होगे, और जहां तक मेरी बात है तो ऐसे लोगों को लाता हूं जो उसी तरह मौत चाहते हैं, जैसे तुम जिंदगी चाहते हो।'

 उम्मयद खलीफा के वर्चस्व के समय में अगले दो दशकों में ही हजारों पारसियों को काट दिया गया या फांसी दे दी गई।

 जब अरब कमांडर साद इब्न वकास ने फारस की राजधानी पर कब्जा किया तो सभी गैर-इस्लामी किताबें, पुस्तकालय जला डाले गए और फारस (ईरान) एक इस्लामिक राज्य बन गया और वहां शरिया कानून लागू हो गया।

तब गुजरात के हिंदू राजा ने पारसीयों को शरण दी थी।

गाँधी जी पारसीयों से प्रेम करते थे और गाँधी उन मुसलमानों से भी सद्भावना रखते थे जो ब्राह्मणों द्वारा शूद्र पतित और शिक्षा धर्म जैसे अधिकारों से वञ्चित होकर मुसलमान ईसाई और बौद्ध धर्म स्वीकार कर रहे थे ।
महात्मा गाँधी कहते थे कि हिन्दू मुस्लिम सिख और ईसाई जितने भी इस देश में हैं वे सब भाई भाई ही हैं । 
परन्तु गाँधी जी सी हत्या कर दी गयी ।
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महात्मा गाँधी और उनकी निर्मला नामक " बकरी की महानता जिसे शास्त्रों ने भी स्वीकारा-  शास्त्रों में बकरी को गाय से भी श्रेष्ठ पशु बताया गया है परन्तु-इस सत्य को न के बराबर लोग जानते हैं ।

विश्व के जन्तु वैज्ञानिकों ने जब बकरी के दूध की गुणवत्ता का अनुसन्धान किया तो वे चमत्कृत हो गये उन्होंने बकरी का दूध संसार के सभी पशुओं नें श्रेष्ठ पाया ।
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कितने शास्त्रों के विद्वान जानते है । कि जिस बकरी के नाम से ब्राह्मण  नफरत करता है ।  और  स्वयं को यादवों के पाल्य पशु गौ से जोड़ता है। परन्तु ब्राह्मण को बकरी ही पालनी
 चाहिए यही शास्त्रों  का विधान है । 

गाय  तो यादव लोग ही पालते थे सदियों से -परन्तु ब्राह्मण गाय पाले तों उनके लिए हेय ही है क्यों की गाय ब्रह्मा के उदर से ही उत्पन्न हुई थी 
और बकरी ( अजा) ब्रह्मा के मुख से और ब्राह्मण भी -

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः ।

ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रोऽजायतः ॥

(ऋग्वेद संहिता, मण्डल 10, सूक्त 90, ऋचा 12)

(ब्राह्मणः अस्य मुखम् आसीत् बाहू राजन्यः कृतः ऊरू तत्-अस्य यत्-वैश्यः पद्भ्याम् शूद्रः अजायतः ।)

यदि शब्दों के अनुसार देखें तो इस ऋचा का अर्थ यों समझा जा सकता है:

सृष्टि के मूल उस परम ब्रह्म का मुख ब्राह्मण था, बाहु क्षत्रिय के कारण बने, उसकी जंघाएं वैश्य बने और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुआ ।


अत: गाय को क्षत्रिय और वैश्य से सम्बन्धित कर दिया गया -

सृष्टि के प्रारम्भ ब्रह्मा ने  अपने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं और वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया ।
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ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने को कारण ही बकरियाँ  पशुओं में मुख्य( श्रेष्ठ) हैं ।

मुखे आदौ भवः यत् प्रथमकल्पे अमरः कोश - श्रेष्ठे च ।
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और दोनों पैरों से घोड़ो और तुरंगो, गदहों और नील गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य  जातियाँ उत्पन्न हुईं ।

बकरी ब्राह्मणों की सजातीय  इसीलिए है कि 
ब्राह्मण भी ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न हुए हैं।

 अग्नि, इन्द्र ,ब्राह्मण और अजा ये सभी पहले उत्पन्न हुए और विराट पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए इसी लिए इन्हें मुख्य कहा गया।
 "अग्रजायते ब्रह्मण:मुखात् इति अजा।

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(ऋग्वेद मण्डल दश सूक्त नवति ऋचा द्वादश)
१०/९०/ १ से १२ तक ऋग्वेद मैं वर्णन है कि

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥१॥

पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥

एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥

त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥

तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः॥६॥

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये॥७॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशून् ताँश्चक्रे वायव्यानारण्यान्ग्राम्याश्च ये॥८॥

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥९॥
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तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजा अवयः।१०॥
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यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्य कौ बाहू का ऊरू पादा उच्येते।११।

ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत॥१२॥

मुखतोऽजाः सृजन्सो वै वक्षसश्चावयोऽसृजत् गावश्चैवोदराद्ब्रह्मा  पुनरन्याँश्च निर्ममे ।1.107.३० । 

पादतोऽश्वांस्तुरङ्गांश्च रासभान्गवयान्मृगान् ।उष्ट्रांश्चैव वराहांश्च श्वानानन्यांश्च जातयः 1.107.३१।

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ब्रह्मा ने मुख से बकरियाँ उत्पन्न कीं ।
वक्ष से भेड़ों को  और उदर से गायों को उत्पन्न किया   
।३०।
और दोनों पैरों से घोड़ो और तुरंगो गदहों और नील गाय तथा ऊँटों को उत्पन्न किया और भी इसी प्रकार सूकर(वराह)कुत्ता जैसी अन्य जातियाँ उत्पन्न हुईं ।३१।
 सन्दर्भ-(विष्णु धर्मोत्तर पुराण खण्ड प्रथम अध्याय (१०७)

अन्य बहुतायत पुराणों में भी वेदों के सन्दर्भों का ही हवाला दिया गया है ।
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अवयो वक्षसश्चक्रे मुखतोजाः स सृष्टवान् ।
सृष्टवानुदराद्गाश्च पार्श्वभ्यां च प्रजापतिः ।४८।

पद्भ्यां चाश्वान्समातङ्गान्रासभान्गवयान्मृगान्।
उष्ट्रानश्वतरांश्चैव न्यङ्कूनन्याश्च जातयः। ४९।

विष्णु पुराण प्रथमाँश पञ्चमो८ध्याय (५) 
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में भी बकरी और ब्राह्मण ब्रह्मा जी के मुख से उत्पन्न हुए हैं ।
ततः स्वदेहतोऽन्यानि वयांसि पशवोऽसृजत् ।
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मुखतोऽजाः ससर्जाथ वक्षसश्चावयोऽसृजत्॥४८.२५॥
गावश्चैवोदराद् ब्रह्मा पार्श्वाभ्याञ्च विनिर्ममे ।
पद्भ्याञ्चाश्वान् स मातङ्गान् रासबान् शशकान् मृगान्॥४८.२६॥
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बकरी को शास्त्रों में सर्वाधिक श्रेष्ठ पशु माना गया है ब्राह्मण भी प्रारम्भिक काल में बकरी ही पालते थे ।क्यों कि बकरी ब्रह्मा के मुख से निकली- जो ब्राह्मणों की सजातीय है।

दु:ख तो तब होता है जब बकरी पालने वाले हजरत ईसा' हजरत मूसा और राम,और  भगवान श्रीकृष्ण जैसे महानायक थे ;  परन्तु आज के जाहिल बकरी को तुच्छ पशु मानते हैं और कहते हैं की बकरी तो पाल (गड्ढरि) समाज के  लोगों का पालने का काम रिवाज सदीयों पुराना है ।
कुछ विरोधी लोग गाँधी जी को अपनी नि

गड्डरिक, प्राकृत गड़डरि -एक जाति जो भेड़ें पालती और उनके ऊन से कंबल बुनती हैं । 
हिब्रू भाषा नें गडेरी जिसका अर्थ ईश्वर का भक्त होता है ।

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महात्मा गाँधी शास्त्रों के सार को जानते थे 
इसी लिए बकरी माता को पालने का उनका कार्य उनके  शास्त्रों का तत्वज्ञानी होने कि प्रमाण है ।

सांख्य दर्शन में बकरी( अजा) को ही संसार की आदि माता कहा है ।
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अजामेकां लोहितशुक्लकृष्णां वह्वी: प्रजा सृजामानां सरूपा:।

अजो हि एको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामजोऽन्य:॥

सन्दर्भ-श्वेताश्वेतरउपनिषद-४/५]

यहाँ लोहित शुक्ल कृष्ण रंग ( वर्ण)क्रमश: रजस, सत्त्व तथा तमस-त्रिगुण के लिए प्रयुक्त है। इन तीन रंगों वाली अथवा

इन तीन गुणों से युक्त एक अजा ( बकरी)  है ; इसका भोग करता हुआ  एक अज (बकरा) है।

तथा भोग रहित एक और अज तत्त्व (परमात्मा) है। 

इस प्रकार यह उपनिषदवाक्य त्रिगुणात्मक प्रसवधर्मि (सृजन करने वाली) प्रकृति का उल्लेख भी  अजा के रूप में करता है।

परमात्मा को मायावी कहकर प्रकृति को ही माया कहा गया है। इस प्रसंग में पुन: मायावी और माया से बन्धे हुए अन्य तत्त्व जीवात्मा का उल्लेख भी है।

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बकरी सदीयों से अनके संस्कृतियों में पाली जाती रही है। इसका दूध प्राणी मात्र को लिए अमृत तुल्य व आसानी से पच जाने वाला है।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किरण कि

बकरी के दूध में (लिपिड कण) प्रचुर जबकि गाय के दूध में काफी छोटे होते हैं। 

लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है।

इनका प्रमुख कार्य शरीर में उर्जा संरक्षण करना, ऊतकों की कोशिका झिल्ली बनाना और हार्मोन और विटामिन के अभिन्न अवयव निर्माण करना होता है।

बड़ी संख्या में छोटे व्यास के साथ वसा' ग्लोबुल्स होने से बकरी का दूध अधिक सुपाच्य होता है। 
इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फोस्फोरस की उच्च मात्रा सम्यक होती है।

इसमें पॉलीअनसेचुरेटेड वसा( PUFA )की उच्च मात्रा है। 

जो (LDL) एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है।

यह हृदय रोग, जठरांत्र रोगों और एलर्जी की रोकथाम में मददगार है।

इसके अलावा पाचन विकार, दमा, अल्सर, एलर्जी, सूखा रोग, क्षय रोग में भी बकरी सा दूध लाभकारी है।
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शोधों को अनुसार-
बकरी का दूध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे शरीर को कोई बीमारी अटैक नहीं कर पाती है। 
यह एलर्जी के लिए भी फायदेमंद है।

बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन( ए) की मात्रा ज्यादा होती है। विटामिन( ए) ही प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।
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बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा जैसे तत्व गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है।

यही तत्व आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।

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बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है 
और बिमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| महात्मा गाँधी इस गुणवत्ता को जानते थे ।

बकर सा दूध पचाने में आसान है –जबकि कुछ लोगों को गाय के दूध से गैस और सूजन या फुलावट की समस्या होती है| 

बकरी का दूध इन उदर से सम्बंधित विकारों का समाधान है| 
ऐसा इसलिए है क्योंकि बकरी के दूध में फैट के तत्व छोटे होते हैं और ये गाय के दूध की अपेक्षा जल्दी टूट या पच भी जाते हैं|

 इसके अलावा बकरी के दूध में मौजूद पोटेशियम की मात्रा मानव शरीर में क्षारीय गुण पैदा करता है|

 जबकि गाय के दूध में इन पोषक तत्वों की कमी होती है जिससे गैस जैसी समस्या पैदा होती है|
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इसका प्राकृतिक रूप से एकरूप होने का गुण अर्थात होमाजनाइज़्ड जिसका मतलब है एक रूपता  बकरी को दूध में प्रचुर रूप नें पाया जाता है| 

गाय के दूध में फैट होता है जिसकी पानी जैसी परत इसकी सतह पर आ जाती है| 

इसको दूर करने के लिए गाय के दूध के साथ एक प्रक्रिया करनी होती है जिसे "होमाजनाइजेशन कहा जाता है, इससे फैट के अणु ख़त्म हो जाते हैं| 

इससे क्रीम बनती है और दूध होमोजेनेस और अच्छी तरह मिला हुआ बनता है|
होमाजनाइजेशन के नुकसान भी हैं| 

इससे दूध में तथा साथ ही साथ हमारे शरीर में फ्री रेडिकल्स इकट्ठे होते हैं| 
ये आगे चलकर स्वास्थ्य से सम्बंधित परेशानियां पैदा करते हैं| 

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जबकी बकरी का दूध प्राकृतिक रूप से होमोग्नाइज़्ड होता है और इसके साथ अन्य कोई प्रक्रिया करने की आवश्यकता नहीं होती है|

इसलिए बकरी का दूध आपको होमाजनाइजेशन से दूर रखता है|

इससे एलर्जी कम होती है-  गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे "कैसिइन" कहते हैं| 

गाय के दूध से बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|

परन्तु इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है| 
बकरी के दूध में 'कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

 इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|

 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है
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बकरी का दूध ज्यादा सफ़ेद होता है। 
ये इसलिए की इसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा होती है।
विटामिन ए प्रतिरक्षा और एंटीबॉडी प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करता है।

बकरी के दूध में पोटेशियम, कैल्शियम, क्लोराइड, फास्फोरस, सेलेनियम, जिंक और तांबा गाय के दूध की तुलना में ज्यादा होते है। 

यह आंत्र सूजन को कम करने और कोलाइटिस से राहत देता है।
यह हम पूर्व में ही बता चुके हैं ।

बकरी के दूध में गाय के दूध से ज्यादा पौष्टिक और स्वास्थ्यकर तत्व होते हैं| 

बकरी के दूध का नियमित सेवन आपको ताकतवर बनाता है और बिमारियों  से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है| 

बकरी का दूध कई रोगों के उपचार एवं रोकथाम में लाभदायक है, जैसे कि-
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अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन "ए" की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है|

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है | 

बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। 
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 
शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है ।
जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है!

इससे एलर्जी कम होती है- गाय के दूध में हाई लेवल मिल्क प्रोटीन होता है जिसे कैसिइन कहते हैं| 
बहुत से बच्चों को इस दूध से एलर्जी होती हैं, परिणामस्वरूप उलटी, दस्त, खुजली आदि होते हैं|
 इन एलेर्जीज से बचने के लिए बकरी के दूध को एक विकल्प के रूप में लिया जा सकता है|

बकरी के दूध में कैसिइन की मात्रा काफी कम होती है|

‘लेक्टोज इंटॉलरेंस‘जैसी समस्या नहीं: लेक्टोज को भी मिल्क शुगर के रूप में जाना जाता है|

इस लेक्टोज को पचाने के लिए मनुष्य शरीर में एक एंजाइम पैदा होता है जिसे लेक्टेस कहते हैं|
 जिन लोगों में लेक्टेस की कमी होती है उनमे ‘लेक्टोज इंटॉलरेंस’ जैसी समस्या रहती है|

बकरी के दूध में लेक्टोज की मात्रा कम होती है जिससे यह पचाने में आसान रहता है|

अधिक पोषक:बकरी के दूध में विटामिन ए की अधिकता होती है जिसे मानव शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित कर लिया जाता है| 

इसमें विटामिन बी-2 और राइबोफ्लेविन की मात्रा भी अधिक होती है जिसे प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे तत्व भी आसानी से पच जाते हैं|

 बकरी के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम और फास्फोरस की भी अधिकता होती है| यह एंटीबॉडीज का निर्माण कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है|

 बकरी का दूध बायो-आर्गेनिक सोडियम का भी अच्छा स्त्रोत है जो पाचन क्षमता बढ़ाने वाले एन्जाइम्स पैदा करता है|

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं। यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है। 

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं। 

इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

एचआईवी के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीडि़त मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। 

सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध। 

जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

11.इम्यूनिटी -
बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर को बढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण——

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।
एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

इस तरह से बकरी का दूध डेंगू से बचने के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। 

हरे पौधों और पत्ति‍यों को आहार के रूप में ग्रहण करने के कारण इसके दूध में भी औषधीय गुण होते हैं, और यह कई तरह की बीमारियों को दूरकरने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

यही कारण है कि जो व्यक्ति नियमित तौर पर बकरी का दूध पीता है, उसे बुखार जैसी समस्याएं नहीं होती।

बकरी के दूध में विटामिन और मिनरल्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो बीमारियों से लड़ने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं।

विटामिन बी6, बी12, विटामिन डी, फोलिक एसिड और प्रोटीन से भरपूर बकरी का दूध शरीर को पुष्ट कर, प्रतिरक्षी तंत्र को मजबूत करता है, 

जिससे बीमारियों की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।

एक अन्य शोध के अनुसार किसी बच्चे को बकरी का दूध पिलाने पर उसकी रोधप्रतिरोधक क्षमता में इस कदर इजाफा होता है,

 कि उसके बीमार होने की संभावना नहीं के बराबर होती है।

हालांकि 1 साल से छोटे बच्चों को बकरी का दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्यों‍कि इससे उन्हें एलर्जी का खतरा होता है।

बकरी के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन, गाय या भैंस के दूध में मौजूद प्रोटीन की तुलना में बेहद हल्का होता है। 
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जहां गाय के दूध का पाचन लगभग 8 घंटे में होता है, वहीं बकरी का दूध पचने में महज 20 मिनट का समय लेता है।

बकरी का दूध अपच की समस्या को दूर कर शरीर में उर्जा का संचार करता है। 

इसके अलावा इसमें मौजूद क्षारीय भस्म आंत्र तंत्र में अम्ल का निर्माण नहीं करता जिससे थकान, मसल्स में खिंचाव, सिर दर्द आदि की समस्या नहीं होती।

डेंगू के इलाज व डेंगू से बचाव में बकरी का दूध बेहद कारगर उपाय है।

डेंगू रोग के उपचार में–डेंगू बीमारी से हम हर साल एक समस्या के रूप में रुबरु होते हैं।
यह रोग जमे हुए पानी में पनपने वाले एडीज मच्छर के काटने से होता है।

बीमारी से बचने के लिए सतर्क और सावधान रहें तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाएं।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना।

शोध में पाया गया है कि बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक है।

मधुमेह के रोग के उपचार में– बकरी के दूध का सेवन करने से शरीर में मौजूद एसिड आसानी से पच जाता है जिससे उच्च रक्तचाप, कैंसर और मुधमेह आदि का इलाज आसानी से हो सकता है।

बकरी के दूध में कई गुण होते हैं जो शरीर के आलस्य को दूर करने के साथ-साथ थकान, मांसपेशियों का खिचाव, सिर दर्द और वजन का बढ़ना आदि की समस्याओं को आसानी से ठीक कर देता है।

रोग–प्रतिरोधक क्षमता बढाने में–शोध में पता चला है कि बकरी के दूध में सेलेनियम की अधिक मात्रा होती है जिससे यह दूसरे दुधारू पशुओं की तुलना में तीन गुना अधिक सेलेनियम प्रदान करती है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देता है।

"एचआईवी" के रोग के उपचार में– बकरी के दूध में मौजूद गुण से एचआईवी एड्स से पीड़ित मरीजों को लंबे समय तक बचाया जा सकता है। सीडी 4 काउन्टस को बढ़ाता है बकरी का दूध।

 जो एचआईवी पीडि़त रोगीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

बकरी के दूध में सेलेनियम नामक एक मिनरल पाया जाता है जो बॉडी के इम्यून पावर को बढ़ाने में मददगार होता है।
स्ट्रॉन्ग इम्यूनिटी बॉडी को कई तरह के रोगों से दूर रखती है।
 बहुत से डॉक्टर भी बकरी का दूध पीने की सलाह देते हैं।

डेंगू से बचाव में फायदेमंद है बकरी का दूध, जानिए कारण———

डेंगू से बचने के लिए सावधानियां तो आवश्यक है ही, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना भी बेहद जरूरी है।
इसके लिए जरूरी है रक्त कणिकाओं की संख्या में इजाफा होना। 

एक शोध के अनुसार बकरी का दूध रक्तकणों को बढ़ाने में मदद करता है, जो डेंगू से लड़ने के लिए बेहद आवश्यक हैं।

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प्रस्तुति- करण 
यादव योगेश कुमार" रोहि" - 8077160219 हैं।

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