Read Surah Anfal - Ayat 11 [9:11] with Hindi translation by Suhel Farooq Khan and Saifur Rahman Nadwi
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Juz
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10- Wa A'lamu
Surahs
9-Surah Taubah |
9:1
بَرَآءَةٌ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
Baraatun mina Allahi warasoolihi ila allatheena AAahadtum mina almushrikeena
(ऐ मुसलमानों) जिन मुशरिकों से तुम लोगों ने सुलह का एहद (एका) किया था अब ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ से उनसे (एक दम) बेज़ारी है
9:2
فَسِيحُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُخْزِى ٱلْكَٰفِرِينَ
Faseehoo fee alardi arbaAAata ashhurin waiAAlamoo annakum ghayru muAAjizee Allahi waanna Allaha mukhzee alkafireena
तो (ऐ मुशरिकों) बस तुम चार महीने (ज़ीकादा, जिल हिज्जा, मुहर्रम रजब) तो (चैन से बेख़तर) रूए ज़मीन में सैरो सियाहत (घूम फिर) कर लो और ये समझते रहो कि तुम (किसी तरह) ख़ुदा को आजिज़ नहीं कर सकते और ये भी कि ख़ुदा काफ़िरों को ज़रूर रूसवा करके रहेगा
9:3
وَأَذَٰنٌ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلنَّاسِ يَوْمَ ٱلْحَجِّ ٱلْأَكْبَرِ أَنَّ ٱللَّهَ بَرِىٓءٌ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ وَرَسُولُهُۥ فَإِن تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ وَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
Waathanun mina Allahi warasoolihi ila alnnasi yawma alhajji alakbari anna Allaha bareeon mina almushrikeena warasooluhu fain tubtum fahuwa khayrun lakum wain tawallaytum faiAAlamoo annakum ghayru muAAjizee Allahi wabashshiri allatheena kafaroo biAAathabin aleemin
और ख़ुदा और उसके रसूल की तरफ से हज अकबर के दिन (तुम) लोगों को मुनादी की जाती है कि ख़ुदा और उसका रसूल मुशरिकों से बेज़ार (और अलग) है तो (मुशरिकों) अगर तुम लोगों ने (अब भी) तौबा की तो तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है और अगर तुम लोगों ने (इससे भी) मुंह मोड़ा तो समझ लो कि तुम लोग ख़ुदा को हरगिज़ आजिज़ नहीं कर सकते और जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उनको दर्दनाक अज़ाब की ख़ुश ख़बरी दे दो
9:4
إِلَّا ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ثُمَّ لَمْ يَنقُصُوكُمْ شَيْـًٔا وَلَمْ يُظَٰهِرُوا۟ عَلَيْكُمْ أَحَدًا فَأَتِمُّوٓا۟ إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ إِلَىٰ مُدَّتِهِمْ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ
Illa allatheena AAahadtum mina almushrikeena thumma lam yanqusookum shayan walam yuthahiroo AAalaykum ahadan faatimmoo ilayhim AAahdahum ila muddatihim inna Allaha yuhibbu almuttaqeena
मगर (हाँ) जिन मुशरिकों से तुमने एहदो पैमान किया था फिर उन लोगों ने भी कभी कुछ तुमसे (वफ़ा एहद में) कमी नहीं की और न तुम्हारे मुक़ाबले में किसी की मदद की हो तो उनके एहद व पैमान को जितनी मुद्द्त के वास्ते मुक़र्रर किया है पूरा कर दो ख़ुदा परहेज़गारों को यक़ीनन दोस्त रखता है
9:5
فَإِذَا ٱنسَلَخَ ٱلْأَشْهُرُ ٱلْحُرُمُ فَٱقْتُلُوا۟ ٱلْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَٱحْصُرُوهُمْ وَٱقْعُدُوا۟ لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَخَلُّوا۟ سَبِيلَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
Faitha insalakha alashhuru alhurumu faoqtuloo almushrikeena haythu wajadtumoohum wakhuthoohum waohsuroohum waoqAAudoo lahum kulla marsadin fain taboo waaqamoo alssalata waatawoo alzzakata fakhalloo sabeelahum inna Allaha ghafoorun raheemun
फिर जब हुरमत के चार महीने गुज़र जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ पाओ (बे ताम्मुल) कत्ल करो और उनको गिरफ्तार कर लो और उनको कैद करो और हर घात की जगह में उनकी ताक में बैठो फिर अगर वह लोग (अब भी शिर्क से) बाज़ आऎं और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दे तो उनकी राह छोड़ दो (उनसे ताअरूज़ न करो) बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
9:6
وَإِنْ أَحَدٌ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ٱسْتَجَارَكَ فَأَجِرْهُ حَتَّىٰ يَسْمَعَ كَلَٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُۥ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْلَمُونَ
Wain ahadun mina almushrikeena istajaraka faajirhu hatta yasmaAAa kalama Allahi thumma ablighhu mamanahu thalika biannahum qawmun la yaAAlamoona
और (ऐ रसूल) अगर मुशरिकीन में से कोई तुमसे पनाह मागें तो उसको पनाह दो यहाँ तक कि वह ख़ुदा का कलाम सुन ले फिर उसे उसकी अमन की जगह वापस पहुँचा दो ये इस वजह से कि ये लोग नादान हैं
9:7
كَيْفَ يَكُونُ لِلْمُشْرِكِينَ عَهْدٌ عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ رَسُولِهِۦٓ إِلَّا ٱلَّذِينَ عَٰهَدتُّمْ عِندَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ فَمَا ٱسْتَقَٰمُوا۟ لَكُمْ فَٱسْتَقِيمُوا۟ لَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ
Kayfa yakoonu lilmushrikeena AAahdun AAinda Allahi waAAinda rasoolihi illa allatheena AAahadtum AAinda almasjidi alharami fama istaqamoo lakum faistaqeemoo lahum inna Allaha yuhibbu almuttaqeena
(जब) मुशरिकीन ने ख़ुद एहद शिकनी (तोड़ा) की तो उन का कोई एहदो पैमान ख़ुदा के नज़दीक और उसके रसूल के नज़दीक क्योंकर (क़ायम) रह सकता है मगर जिन लोगों से तुमने खानाए काबा के पास मुआहेदा किया था तो वह लोग (अपनी एहदो पैमान) तुमसे क़ायम रखना चाहें तो तुम भी उन से (अपना एहद) क़ायम रखो बेशक ख़ुदा (बद एहदी से) परहेज़ करने वालों को दोस्त रखता है
9:8
كَيْفَ وَإِن يَظْهَرُوا۟ عَلَيْكُمْ لَا يَرْقُبُوا۟ فِيكُمْ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً يُرْضُونَكُم بِأَفْوَٰهِهِمْ وَتَأْبَىٰ قُلُوبُهُمْ وَأَكْثَرُهُمْ فَٰسِقُونَ
Kayfa wain yathharoo AAalaykum la yarquboo feekum illan wala thimmatan yurdoonakum biafwahihim wataba quloobuhum waaktharuhum fasiqoona
(उनका एहद) क्योंकर (रह सकता है) जब (उनकी ये हालत है) कि अगर तुम पर ग़लबा पा जाएं तो तुम्हारे में न तो रिश्ते नाते ही का लिहाज़ करेगें और न अपने क़ौल व क़रार का ये लोग तुम्हें अपनी ज़बानी (जमा खर्च में) खुश कर देते हैं हालॉकि उनके दिल नहीं मानते और उनमें के बहुतेरे तो बदचलन हैं
9:9
ٱشْتَرَوْا۟ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنًا قَلِيلًا فَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِهِۦٓ إِنَّهُمْ سَآءَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
Ishtaraw biayati Allahi thamanan qaleelan fasaddoo AAan sabeelihi innahum saa ma kanoo yaAAmaloona
और उन लोगों ने ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फायदे) हासिल करके (लोगों को) उसकी राह से रोक दिया बेशक ये लोग जो कुछ करते हैं ये बहुत ही बुरा है
9:10
لَا يَرْقُبُونَ فِى مُؤْمِنٍ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً وَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُعْتَدُونَ
La yarquboona fee muminin illan wala thimmatan waolaika humu almuAAtadoona
ये लोग किसी मोमिन के बारे में न तो रिश्ता नाता ही कर लिहाज़ करते हैं और न क़ौल का क़रार का और (वाक़ई) यही लोग ज्यादती करते हैं
9:11
فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَإِخْوَٰنُكُمْ فِى ٱلدِّينِ وَنُفَصِّلُ ٱلْءَايَٰتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
Fain taboo waaqamoo alssalata waatawoo alzzakata faikhwanukum fee alddeeni wanufassilu alayati liqawmin yaAAlamoona
तो अगर (अभी मुशरिक से) तौबा करें और नमाज़ पढ़ने लगें और ज़कात दें तो तुम्हारे दीनी भाई हैं और हम अपनी आयतों को वाक़िफकार लोगों के वास्ते तफ़सीलन बयान करते हैं
9:12
وَإِن نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَٰنَهُم مِّنۢ بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُوا۟ فِى دِينِكُمْ فَقَٰتِلُوٓا۟ أَئِمَّةَ ٱلْكُفْرِ إِنَّهُمْ لَآ أَيْمَٰنَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَنتَهُونَ
Wain nakathoo aymanahum min baAAdi AAahdihim wataAAanoo fee deenikum faqatiloo aimmata alkufri innahum la aymana lahum laAAallahum yantahoona
और अगर ये लोग एहद कर चुकने के बाद अपनी क़समें तोड़ डालें और तुम्हारे दीन में तुमको ताना दें तो तुम कुफ्र के सरवर आवारा लोगों से खूब लड़ाई करो उनकी क़समें का हरगिज़ कोई एतबार नहीं ताकि ये लोग (अपनी शरारत से) बाज़ आएँ
9:13
أَلَا تُقَٰتِلُونَ قَوْمًا نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَٰنَهُمْ وَهَمُّوا۟ بِإِخْرَاجِ ٱلرَّسُولِ وَهُم بَدَءُوكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ أَتَخْشَوْنَهُمْ فَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَوْهُ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
Ala tuqatiloona qawman nakathoo aymanahum wahammoo biikhraji alrrasooli wahum badaookum awwala marratin atakhshawnahum faAllahu ahaqqu an takhshawhu in kuntum mumineena
(मुसलमानों) भला तुम उन लोगों से क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने अपनी क़समों को तोड़ डाला और रसूल को निकाल बाहर करना (अपने दिल में) ठान लिया था और तुमसे पहले छेड़ भी उन्होनें ही शुरू की थी क्या तुम उनसे डरते हो तो अगर तुम सच्चे ईमानदार हो तो ख़ुदा उनसे कहीं बढ़ कर तुम्हारे डरने के क़ाबिल है
9:14
قَٰتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ
Qatiloohum yuAAaththibhumu Allahu biaydeekum wayukhzihim wayansurkum AAalayhim wayashfi sudoora qawmin mumineena
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा
9:15
وَيُذْهِبْ غَيْظَ قُلُوبِهِمْ وَيَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
Wayuthhib ghaytha quloobihim wayatoobu Allahu AAala man yashao waAllahu AAaleemun hakeemun
और उन मोनिनीन के दिल की क़ुदरतें जो (कुफ्फ़ार से पहुचॅती है) दफ़ा कर देगा और ख़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़ुदा बड़ा वाक़िफकार (और) हिकमत वाला है
9:16
أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تُتْرَكُوا۟ وَلَمَّا يَعْلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَٰهَدُوا۟ مِنكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَا رَسُولِهِۦ وَلَا ٱلْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةً وَٱللَّهُ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ
Am hasibtum an tutrakoo walamma yaAAlami Allahu allatheena jahadoo minkum walam yattakhithoo min dooni Allahi wala rasoolihi wala almumineena waleejatan waAllahu khabeerun bima taAAmaloona
क्या तुमने ये समझ लिया है कि तुम (यूं ही) छोड़ दिए जाओगे और अभी तक तो ख़ुदा ने उन लोगों को मुमताज़ किया ही नहीं जो तुम में के (राहे ख़ुदा में) जिहाद करते हैं और ख़ुदा और उसके रसूल और मोमेनीन के सिवा किसी को अपना राज़दार दोस्त नहीं बनाते और जो कुछ भी तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है
9:17
مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَن يَعْمُرُوا۟ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ شَٰهِدِينَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِم بِٱلْكُفْرِ أُو۟لَٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَٰلُهُمْ وَفِى ٱلنَّارِ هُمْ خَٰلِدُونَ
Ma kana lilmushrikeena an yaAAmuroo masajida Allahi shahideena AAala anfusihim bialkufri olaika habitat aAAmaluhum wafee alnnari hum khalidoona
मुशरेकीन का ये काम नहीं कि जब वह अपने कुफ़्र का ख़ुद इक़रार करते है तो ख़ुदा की मस्जिदों को (जाकर) आबाद करे यही वह लोग हैं जिनका किया कराया सब अकारत हुआ और ये लोग हमेशा जहन्नुम में रहेंगे
9:18
إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا ٱللَّهَ فَعَسَىٰٓ أُو۟لَٰٓئِكَ أَن يَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُهْتَدِينَ
Innama yaAAmuru masajida Allahi man amana biAllahi waalyawmi alakhiri waaqama alssalata waata alzzakata walam yakhsha illa Allaha faAAasa olaika an yakoonoo mina almuhtadeena
ख़ुदा की मस्जिदों को बस सिर्फ वहीं शख़्स (जाकर) आबाद कर सकता है जो ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लाए और नमाज़ पढ़ा करे और ज़कात देता रहे और ख़ुदा के सिवा (और) किसी से न डरो तो अनक़रीब यही लोग हिदायत याफ्ता लोगों मे से हो जाऎंगे
9:19
أَجَعَلْتُمْ سِقَايَةَ ٱلْحَآجِّ وَعِمَارَةَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ كَمَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَجَٰهَدَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا يَسْتَوُۥنَ عِندَ ٱللَّهِ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّٰلِمِينَ
AjaAAaltum siqayata alhajji waAAimarata almasjidi alharami kaman amana biAllahi waalyawmi alakhiri wajahada fee sabeeli Allahi la yastawoona AAinda Allahi waAllahu la yahdee alqawma alththalimeena
क्या तुम लोगों ने हाजियों की सक़ाई (पानी पिलाने वाले) और मस्जिदुल हराम (ख़ानाए काबा की आबादियों को उस शख़्स के हमसर (बराबर) बना दिया है जो ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत के दिन पर ईमान लाया और ख़ुदा के राह में जेहाद किया ख़ुदा के नज़दीक तो ये लोग बराबर नहीं और खुदा ज़ालिम लोगों की हिदायत नहीं करता है
9:20
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ ٱللَّهِ وَأُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَآئِزُونَ
Allatheena amanoo wahajaroo wajahadoo fee sabeeli Allahi biamwalihim waanfusihim aAAthamu darajatan AAinda Allahi waolaika humu alfaizoona
जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (ख़ुदा के लिए) हिजरत एख्तियार की और अपने मालों से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जिहाद किया वह लोग ख़ुदा के नज़दीक दर्जें में कही बढ़ कर हैं और यही लोग (आला दर्जे पर) फायज़ होने वाले हैं
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Surah Yaseen Ayat al Kursi Surah Rehman Surat Mulk Surah Kahf Surah Baqara Surah Fatiha
मुशरिक– मुशरिक शब्द “शिर्क” से बना है | शिर्क का मतलब है “साझीदार(शरिक) बनाना” | जो अल्लाह के साथ किसी और को साझीदार बनाता है उसे ‘मुशरिक’ कहा जाता है |शिर्क को इस्लाम मे सबसे बड़ा पाप कहा गया है|बेशक अल्लाह क्षमा नही करता जो उसका साझी ठहराये और उसके सिवा जिसको चाहे क्षमा कर दे और जिसने अल्लाह का साझीदार ठहराया तो उसने बड़ा गुनाह कर लिया| [Qur’an 4:48] शिर्क मुख्यतः दो तरीके का होता है –
1. एक से ज्यादा अल्लाह/ ईश्वर/ गॉड मे विश्वास करना|
2. अल्लाह के गुण(सिफत) मे किसी और को साझीदार बनाना| मूर्तिपूजक अक्सर अल्लाह के गुण मे किसी महापुरुष, जानवर, आकृति को साझीदार बना लेता है | उदाहरण के लिये कई मूर्तिपूजक अल्लाह के सिवा किसी और को धन देनेवाला, शक्ति देनेवाला, कण-कण मे समाया हुआ मान लेता है| जबकि सच्चाई यह है कि एक अल्लाह के सिवा कोई धन, शक्ति देनेवाला नही और ना ही कोई हर जगह मौजूद है| यही कारण है कि मुशरिक शब्द का अनुवाद कई बार ‘मूर्तिपूजक’ किया जाता है |
दावाह– इसे अज्ञानतावश ‘दावा’ उच्चारण किया जाता है | दावाह का अर्थ है “निमंत्रण देना” | इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिये ‘दावाह’ शब्द का प्रयोग होता है |अगले भाग मे कुछ और इस्लामिक शब्दों के सही अर्थ जानेंगे |
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