सोमवार, 1 मार्च 2021

शतृ

संस्कृत में वर्तमान काल के सातत्य को दर्शाने के लिए परस्मैपदीय क्रिया रूपों में शतृ प्रत्यय होता है ।
(1.) शतृ-प्रत्यय का अत् रूप शेष रहता है । अर्थात् श् और ऋ वर्ण हट जाते हैं ।
 जैसेः–पठ् -शतृ पठत् =पढ़ता हुआ।

१—स: पठन् गच्छति । वह पढ़
 हुआ जाता है ।

(2.) यह वर्तमान काल में होता है । जैसे—पुल्लिंग में पठन् बनता है, जिसका अर्थ- पढता हुआ  ।

 
(3.) इसका केवल परस्मैपद-धातुओं के साथ प्रयोग होता है । जैसेः—लिख्+ शतृ =लिखत् -लिखता हुआ।
(लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे –3.2.123)  उभयपदी धातुओं के साथ भी इसका प्रयोग होता है, जैसेः—पच्-शतृ–पचत् =पता हुआ ।

(4.) इसे “सत्-प्रत्यय” भी कहा जाता है ।(तौ सत्—3.2.127)

(5.) कभी कभार इसका भविष्यत् काल में भी प्रयोग होता है, जैसेः—–करिष्यन्तं देवदत्तं पश्य। करने वाले देवदत्त को देखो ।(लृटः सद्वा—3.3.14)

(6.) इसका विशेषण के रूप में प्रयोग होता है, जैसेः—पढने वाले देवदत्त को देखो—पठिष्यन्तं देवदत्तं पश्य । या पठन्तं देवदत्तं पश्य–पढते हुए देवदत्त को देखो ।
इसमें विशेष यह है कि विशेष्य के अनुसार विशेषण का लिंग, वचन, विभक्ति, पुरुष आदि बदल जाते हैं ।

(7.) जो धातु जिस गण की हो, उस गण का विकरण भी धातु के साथ प्रयोग होता है, जैसेः–पठ्-शप्-शतृः—पठत्
पठ् धातु भ्वादिगण की है, तो शप् विकरण का प्रयोग हुआ ।
इसी प्रकार दिवादिगण की धातु के साथ श्यन्, स्वादि से श्नु आदि।

(8.) शतृ-प्रत्यय से बने शब्दों के रूप भी चलते हैं ।
(क) पुल्लिंग में पठन् बनता है, इसका रूप भवत् (आप) के अनुसार चलता है ।
इसी पठन् का रूप देखेंः—

पठन्——पठन्तौ——-पठन्तः
पठन्तम्—–पठन्तौ—–पठतः
पठता——पठद्भ्याम्—–पठद्भिः
पठते——-पठद्भ्याम्——-पठद्भ्यः
पठतः——-पठद्भ्याम्——-पठद्भ्यः
पठतः——-पठतोः———-पठताम्
पठति——–पठतोः——–पठत्सु
हे पठन्——हे पठन्तौ——हे पठन्तः

(ख) स्त्रीलिंग में नदी के अनुसार इसका रूप चलता हैः—


 
पठन्ती——पठन्त्यौ——-पठन्त्यः
पठन्तीम्—–पठन्त्यौ—–पठन्तीः
पठन्त्या——पठन्तीभ्याम्—–पठद्भिः
पठन्त्यै——-पठन्तीभ्याम्——-पठन्तीभ्यः
पठन्त्याः——-पठन्तीभ्याम्——-पठन्तीभ्यः
पठन्त्याः——-पठन्त्योः———-पठन्तीनाम्
पठन्त्याम्——–पठन्त्योः———पठन्तीषु
हे पठन्ति——हे पठन्त्यौ——हे पठन्त्यः

(ग) नपुंसकलिंग में पठत् का रूप जगत् के अनुसार चलेगाः—

पठत्—–पठन्ती——पठन्ति
पठत्—-पठन्ती——-पठन्ति

शेष पुल्लिंग के अनुसार ही चलेगा ।

(9.) शतृ-प्रत्यय वाले शब्द उगित् होते है, अर्थात् इसका ऋ का लोप हो जाता है, ऋ उक् प्रत्याहार में आता है, अतः ऋ का लोप होने से यह उगित् है। उगितश्च—4.1.6 सूत्र से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय आता है और तब यह ईकारान्त शब्द बन जाता है, जिससे स्त्रीलिंग में इसका रूप नदी के अनुसार चलता है ।

(10.) स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग में नुम् प्रत्यय होता है, जिसका न् शेष रहता है —(शप्श्यनोर्नित्यम्—7.1.81 और आच्छीनद्योनुम्—7.1.80)

भ्वादि. दिवादि., चुरादि. और तुदादिगण की धातु के लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन के रूप में अन्त में ई जोड देते हैंं, जैसेः—गच्छन्ति—गच्छन्ती, पठन्ती,, पिबन्ती,,, दीव्यन्ती,,, तुदन्ती आदि।

अदादि. स्वादि. क्र्यादि. तनादि. जुहोत्यादिगण की धातुओं में लट् लकार प्र. पु. बहुवचन के रूप में केवल ई लगेगा, नुम् नहीं होगा, अतः न् नहीं दिखेगाः–

रुदती, शृण्वती, क्रीणती, कुर्वती, ददती आदि

(11.) किसी धातु से शृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने की सरल उपाय यह है कि जिस धातु का, लट् लकार के प्र. पु. के एकवचन में जो रूप बनता है, उसके “ति” भाग को को “त्” कर दो और यथास्थान “नुम्” का “न्” जोड दो । जैसेः—भू का भवति—शतृ से भवत् (नपुं. ) पु. में भवन्, तथा स्त्री. में भवन्ती बनेगा ।

(12.) शतृ-प्रत्यय भी दो वाक्यों को जोडता है । वाक्य में इसका प्रथम क्रिया के साथ प्रयोग होता है। जैसेः—
सः पठति । सः गच्छति । वह पढते हुए जाता हैः—सः पठन् गच्छति ।

(13.) वाक्य में प्रथम क्रिया के जो शतृ प्रत्यय जुडता है, वह वर्तमान कालिक ही होता है, किन्तु दूसरी क्रिया किसी भी काल में हो सकती है, जैसेः—

वह पढते हुए जाता हैः–स पठन् गच्छति ।
वह पढते हुए जा रहा थाः—व पठन् अगच्छत् ।
वह पढते हुए जाएगा—स पठन् गमिष्यति ।

अभ्यास हेतु कुछ वाक्यः—

(1.) सः गृहं गच्छन् अस्ति ।
(2.) वह पुस्तक पढता हुआ जा रहा हैः—सः पुस्तकं पठन् गच्छति ।
(3.) वह खाते हुए देख रहा है—स खादन् पश्यति ।
(4.) वे दोनों घर जाते हुए हैं—तौ गृहं गच्छन्तौ स्तः।
(5.) वे सब घर जाते पढ रहे थे—-ते गृहं गच्छन्तः पठन्ति स्म ।
(6.) लडकियाँ खेलती हुईं गा रही हैं—बालाः क्रीडन्त्यः गायन्ति ।
(7.) घर जाते हुए मुझे देखो—गृहं गच्छन्तं माम् पश्य ।
(8.) यह पुस्तक पढते हुए मोहन को दे दोः—इदं पुस्तकं पठते मोहनाय देहि ।
(9.) वृक्ष से गिरते हुए फलों को देखो—-वृक्षात् पतन्ति फलानि पश्य ।
(10.) जाती हुई बुढिया हँस रही है—-गच्छन्ती वृद्धा हसति ।
(11.) घर जाती हुई लडकियों से शिक्षिका ने कहा —गहं गच्छन्तीः बालिकाः शिक्षिका अकथयत् ।
(12.) खिलते हुए पुष्पों को सुँघो—विकसन्ति पुष्पाणि जिघ्र ।
(13.) माता धमकाती हुई पुत्री से कहा—जननी तर्जयन्ती पुत्रीम् अकथयत् ।
(14.) रोते हुए बालक को बोलो—रुदन्तं बालकं ब्रूहि ।
(15.) ब्राह्मण को दान देते राजा को देखो—ब्राह्मणाय दानं यच्छन्तं नृपं पश्य ।
(16.) दौडते हुए बालक को बोलो—धावन्तं बालकं वद ।
(17.) खेलते हुए बालकों के साथ तुम भी खेलो—खेलद्भिः (क्रीडद्भिः) बालकैः सह त्वमपि क्रीड (खेल) ।
(18.) खाते हुए मत बोलो—खादन् मा वद ।
(19.) काम करती हुई माता ने पुत्री से पूछा—-कार्यं कुर्वती माता पुत्रीम् अपृच्छत् ।
(20.) जागती पुत्री परीक्षा के लिए पढ रही है—जाग्रती पुत्री परीक्षायै (परीक्षार्थम्) पठति ।
____________________       

शतृ प्रत्ययः

(1.) शतृ-प्रत्यय का अत् शेष रहता है । अर्थात् श् और ऋ हट जाते है । जैसेः–पठ् शतृ पठत्
इसका अर्थः— रहा है, रहे हैं, रही है । जैसे वह पढता हुआ जा रहा हैः—स पठन् गच्छति ।

(2.) यह वर्तमान काल में होता है । जैसे—पुल्लिंग में पठन् बनता है, जिसका अर्थ पढता हुआ है ।

(3.) इसका केवल परस्मैपद-धातुओं के साथ प्रयोग होता है । जैसेः—लिख् शतृ लिखत्
(लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे –3.2.123)  उभयपदी धातुओं के साथ भी इसका प्रयोग होता है, जैसेः—पच्-शतृ–पचत् ।

(4.) इसे “सत्-प्रत्यय” भी कहा जाता है ।(तौ सत्—3.2.127)

(5.) कभी कभार इसका भविष्यत् काल में भी प्रयोग होता है, जैसेः—–करिष्यन्तं देवदत्तं पश्य। करने वाले देवदत्त को देखो ।(लृटः सद्वा—3.3.14)

(6.) इसका विशेषण के रूप में प्रयोग होता है, जैसेः—पढने वाले देवदत्त को देखो—पठिष्यन्तं देवदत्तं पश्य । या पठन्तं देवदत्तं पश्य–पढते हुए देवदत्त को देखो ।
इसमें विशेष यह है कि विशेष्य के अनुसार विशेषण का लिंग, वचन, विभक्ति, पुरुष आदि बदल जाते हैं ।

(7.) जो धातु जिस गण की हो, उस गण का विकरण भी धातु के साथ प्रयोग होता है, जैसेः–पठ्-शप्-शतृः—पठत्
पठ् धातु भ्वादिगण की है, तो शप् विकरण का प्रयोग हुआ ।
इसी प्रकार दिवादिगण की धातु के साथ श्यन्, स्वादि से श्नु आदि।

(8.) शतृ-प्रत्यय से बने शब्दों के रूप भी चलते हैं ।
(क) पुल्लिंग में पठन् बनता है, इसका रूप भवत् (आप) के अनुसार चलता है ।
इसी पठन् का रूप देखेंः—

पठन्——पठन्तौ——-पठन्तः
पठन्तम्—–पठन्तौ—–पठतः
पठता——पठद्भ्याम्—–पठद्भिः
पठते——-पठद्भ्याम्——-पठद्भ्यः
पठतः——-पठद्भ्याम्——-पठद्भ्यः
पठतः——-पठतोः———-पठताम्
पठति——–पठतोः——–पठत्सु
हे पठन्——हे पठन्तौ——हे पठन्तः

(ख) स्त्रीलिंग में नदी के अनुसार इसका रूप चलता हैः—

 
पठन्ती——पठन्त्यौ——-पठन्त्यः
पठन्तीम्—–पठन्त्यौ—–पठन्तीः
पठन्त्या——पठन्तीभ्याम्—–पठद्भिः
पठन्त्यै——-पठन्तीभ्याम्——-पठन्तीभ्यः
पठन्त्याः——-पठन्तीभ्याम्——-पठन्तीभ्यः
पठन्त्याः——-पठन्त्योः———-पठन्तीनाम्
पठन्त्याम्——–पठन्त्योः———पठन्तीषु
हे पठन्ति——हे पठन्त्यौ——हे पठन्त्यः

(ग) नपुंसकलिंग में पठत् का रूप जगत् के अनुसार चलेगाः—

पठत्—–पठन्ती——पठन्ति
पठत्—-पठन्ती——-पठन्ति

शेष पुल्लिंग के अनुसार ही चलेगा ।

(9.) शतृ-प्रत्यय वाले शब्द उगित् होते है, अर्थात् इसका ऋ का लोप हो जाता है, ऋ उक् प्रत्याहार में आता है, अतः ऋ का लोप होने से यह उगित् है। उगितश्च—4.1.6 सूत्र से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय आता है और तब यह ईकारान्त शब्द बन जाता है, जिससे स्त्रीलिंग में इसका रूप नदी के अनुसार चलता है ।

(10.) स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग में नुम् प्रत्यय होता है, जिसका न् शेष रहता है —(शप्श्यनोर्नित्यम्—7.1.81 और आच्छीनद्योनुम्—7.1.80)

भ्वादि. दिवादि., चुरादि. और तुदादिगण की धातु के लट् लकार प्रथम पुरुष बहुवचन के रूप में अन्त में ई जोड देते हैंं, जैसेः—गच्छन्ति—गच्छन्ती, पठन्ती,, पिबन्ती,,, दीव्यन्ती,,, तुदन्ती आदि।

अदादि. स्वादि. क्र्यादि. तनादि. जुहोत्यादिगण की धातुओं में लट् लकार प्र. पु. बहुवचन के रूप में केवल ई लगेगा, नुम् नहीं होगा, अतः न् नहीं दिखेगाः–

रुदती, शृण्वती, क्रीणती, कुर्वती, ददती आदि

(11.) किसी धातु से शृ-प्रत्ययान्त शब्द बनाने की सरल उपाय यह है कि जिस धातु का, लट् लकार के प्र. पु. के एकवचन में जो रूप बनता है, उसके “ति” भाग को को “त्” कर दो और यथास्थान “नुम्” का “न्” जोड दो । जैसेः—भू का भवति—शतृ से भवत् (नपुं. ) पु. में भवन्, तथा स्त्री. में भवन्ती बनेगा ।

(12.) शतृ-प्रत्यय भी दो वाक्यों को जोडता है । वाक्य में इसका प्रथम क्रिया के साथ प्रयोग होता है। जैसेः—
सः पठति । सः गच्छति । वह पढते हुए जाता हैः—सः पठन् गच्छति ।

(13.) वाक्य में प्रथम क्रिया के जो शतृ प्रत्यय जुडता है, वह वर्तमान कालिक ही होता है, किन्तु दूसरी क्रिया किसी भी काल में हो सकती है, जैसेः—

वह पढते हुए जाता हैः–स पठन् गच्छति ।
वह पढते हुए जा रहा थाः—व पठन् अगच्छत् ।
वह पढते हुए जाएगा—स पठन् गमिष्यति ।

अभ्यास हेतु कुछ वाक्यः—

(1.) सः गृहं गच्छन् अस्ति ।
(2.) वह पुस्तक पढता हुआ जा रहा हैः—सः पुस्तकं पठन् गच्छति ।
(3.) वह खाते हुए देख रहा है—स खादन् पश्यति ।
(4.) वे दोनों घर जाते हुए हैं—तौ गृहं गच्छन्तौ स्तः।
(5.) वे सब घर जाते पढ रहे थे—-ते गृहं गच्छन्तः पठन्ति स्म ।
(6.) लडकियाँ खेलती हुईं गा रही हैं—बालाः क्रीडन्त्यः गायन्ति ।
(7.) घर जाते हुए मुझे देखो—गृहं गच्छन्तं माम् पश्य ।
(8.) यह पुस्तक पढते हुए मोहन को दे दोः—इदं पुस्तकं पठते मोहनाय देहि ।
(9.) वृक्ष से गिरते हुए फलों को देखो—-वृक्षात् पतन्ति फलानि पश्य ।
(10.) जाती हुई बुढिया हँस रही है—-गच्छन्ती वृद्धा हसति ।
(11.) घर जाती हुई लडकियों से शिक्षिका ने कहा —गहं गच्छन्तीः बालिकाः शिक्षिका अकथयत् ।
(12.)

खिलते हुए पुष्पों को सुँघो—विकसन्ति पुष्पाणि जिघ्र ।
(13.) माता धमकाती हुई पुत्री से कहा—जननी तर्जयन्ती पुत्रीम् अकथयत् ।
(14.) रोते हुए बालक को बोलो—रुदन्तं बालकं ब्रूहि ।
(15.) ब्राह्मण को दान देते राजा को देखो—ब्राह्मणाय दानं यच्छन्तं नृपं पश्य ।
(16.) दौडते हुए बालक को बोलो—धावन्तं बालकं वद ।
(17.) खेलते हुए बालकों के साथ तुम भी खेलो—खेलद्भिः (क्रीडद्भिः) बालकैः सह त्वमपि क्रीड (खेल) ।
(18.) खाते हुए मत बोलो—खादन् मा वद ।
(19.) काम करती हुई माता ने पुत्री से पूछा—-कार्यं कुर्वती माता पुत्रीम् अपृच्छत् ।
(20.) जागती पुत्री परीक्षा के लिए पढ रही है—जाग्रती पुत्री परीक्षायै (परीक्षार्थम्) पठति ।


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