बाह्लीक कुरुवंशी राजा प्रतीप के तीन पुत्रों शान्तनु, देवापि और बाह्लीक में से एक तथा सोमदत्त आदि सात पुत्रों का पिता था।
यह बाह्लीक बह्लीक देश का राजा था।
बाह्लीक कुरुओं में अग्रणी था।
मगध के राजा जरासंध ने बाह्लीक को मथुरा के दक्षिण द्वार पर तथा गोमंत के दक्षिण में नियुक्त किया था। बाह्लीक के पुत्रों ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में तथा महाभारत के युद्ध के समय दुर्योधन की सेना में सक्रिय भाग लिया था तथा इनकी बहनें रोहिणी तथा पौरवी वसुदेव को ब्याही गई थीं।
राजा बाह्लीक का वध अपने ( प्रपौत्र )भीम के हाथों १४ वें दिन महाभारत के युद्ध में हुआ।
वसुदेव की अर्द्धागिनी तथा बलराम की माता का नाम रोहिणी जिन्होंने देवकी के सातवें गर्भ को दैवी विधान से ग्रहण कर लिया था और उसी से बलराम की उत्पत्ति हुई थी। यदु वंश का नाश होने पर जब वसुदेव ने द्वारिका में शरीर त्यागा तो रोहिणी भी उनके साथ सती हुई थी।
वसुदेव देवकी के साथ जिस समय कारागृह में बन्दी थे, उस समय ये नन्द के यहाँ थीं और वहीं इन्होंने बलराम को जन्म दिया।
कृष्णभक्ति-काव्य में वात्सल्य की दृष्टि से रोहिणी का चरित्र यशोदा के चरित्र की छाया मात्र है।
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भागवतपुराण 9.22.12, 18; 10.49.2; वायुपुराण 99.234; विष्णुपुराण 4.20.9; 5.35.12.27 ↑ भागवतपुराण 10.52,11 (9) ↑ ब्रह्माण्डपुराण 3.71.163
महाभारत व पुराणों से ज्ञात होता है कि प्राग्-ऐतिहासिक काल में चेदिराज वसु के पुत्र बृहदर्थ ने गिरिव्रज को राजधानी बनाकर मगध में अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया था।
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दक्षिणी बिहार के गया और पटना जनपदों के स्थान पर तत्कालीन मगध-साम्राज्य था। इसके उत्तर में गंगानदी, पश्चिम में सोन नदी, पूर्व में चम्पा नदी तथा दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वतमाला थी। बृहद्रथ के द्वारा स्थापित राजवंश को बृहद्रथ-वंश कहा गया।
श्री कृष्ण के 16108 रनिया थी जिनमे से प्रत्येक के 10-10 पुत्र थे और एक बेटी रुक्मणि से थी जिसका नाम चारुमति था, जबकि बलराम जी के रेवती से सिर्फ एक पुत्र था जिसका नाम शठ था. एक बेटी भी थी जिसका नाम शशिकला था जो की अभिमन्यु से ब्याही गई थी.
वेदव्यास कृत हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण की 14 माये (यशोदा इसके अन्यथा ही है) बताई गई है जिसमे से रोहिणी समेत पांच सगी बहने कौरववंशी बाह्लीका की पुत्रिया थी. बहिलका हस्तिनापुर के राजा शांतनु के बड़े भाई थे जिन्होंने की सन्यास ले लिया था और इस लिहाज से वासुदेव जी भीष्म पितामह के जीजा थे.
देवकी समेत 7 बहने सगी थी जो की वासुदेव जी को ब्याही गई थी, हालाँकि आकाशवाणी से अपनी मौत की बात को सुनकर बाकी बहनो को तो छोड़ दिया था कंस ने लेकिन देवकी और वासुदेव को कैद कर लिया था. श्री कृष्ण के जन्म के बाद कंस ने मुक्त कर दिया था दोनों को लेकिन श्री कृष्ण के उनके ही पुत्र होने की बात पता चलने पर पुनः जैन में डाल दिया था.
वेदव्यास कृत हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण की 14 माये (यशोदा इसके अन्यथा ही है) बताई गई है जिसमे से रोहिणी समेत पांच सगी बहने कौरववंशी बाह्लीका की पुत्रिया थी. बहिलका हस्तिनापुर के राजा शांतनु के बड़े भाई थे जिन्होंने की सन्यास ले लिया था और इस लिहाज से वासुदेव जी भीष्म पितामह के जीजा थे.
देवकी समेत 7 बहने सगी थी जो की वासुदेव जी को ब्याही गई थी, हालाँकि आकाशवाणी से अपनी मौत की बात को सुनकर बाकी बहनो को तो छोड़ दिया था कंस ने लेकिन देवकी और वासुदेव को कैद कर लिया था. श्री कृष्ण के जन्म के बाद कंस ने मुक्त कर दिया था दोनों को लेकिन श्री कृष्ण के उनके ही पुत्र होने की बात पता चलने पर पुनः जैन में डाल दिया था.
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