सस्तु माता सस्तु पिता सस्तु श्वा सस्तु विश्पतिः ।
ससन्तु सर्वे ज्ञातयः सस्त्वयमभितो जनः ॥५॥
ससन्तु सर्वे ज्ञातयः सस्त्वयमभितो जनः ॥५॥
(ऋग्वेद ७/५५/५)
सायण-भाष्य=
सस्तु॑ । मा॒ता । सस्तु॑ । पि॒ता । सस्तु॑ । श्वा । सस्तु॑ । वि॒श्पतिः॑ ।
स॒सन्तु॑ । सर्वे॑ । ज्ञा॒तयः॑ । सस्तु॑ । अ॒यम् । अ॒भितः॑ । जनः॑ ॥५।।
हे सारमेय माता त्वदीया जननी ! "सस्तु स्वपतु । "पिता च "सस्तु। "श्वा सारमेयो भवान् “सस्तु । “विश्पतिः जामाता यद्वा विशां जनानां पालको गृही "सस्तु ।
("सर्वे "ज्ञातयः बन्धवा:) अपि “ससन्तु स्वपन्तु । "अभितः परितः स्थितः "अयम् अपि सर्वः "जनः "सस्तु स्वपतु ॥
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भ्रातृपुत्रस्य पुत्राद्यास्ते पुनर्ज्ञातयः स्मृताः ।।
गुरुपुत्रस्तथा भ्राता पोष्यः परमबान्धवः।।158|
गुरुपुत्रस्तथा भ्राता पोष्यः परमबान्धवः।।158|
•-भाई के पुत्र के पुत्र से पुन: उत्पन्न वे सब पुत्रगण ज्ञाति कहलाते हैं । और गुरु के पुत्र और गुरु भाई तो पोषण करने योग्य परम बान्धव हैं ।158|
इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे सौतिशौनकसंवादे ब्रह्मखण्डे जातिसम्बन्धनिर्णयो नाम दशमोऽध्यायः ।। 10 ।।
वास्तव में ज्ञाति शब्द जाति शब्द का ही रूपान्तरण है ।
(ज-न्) तथा ज्ञा (ज् -ञ् ) धातु मूलत: परस्पर सम्प्रसारित रूप हैं ।
पिता को भी ज्ञाति कहते हैं ।
ज्ञातिः पुल्लिंग शब्द है-( जन् सम्प्रसारणत्वे ज् ञ रूपं भवति तस्य दीर्घश्च ज्ञा+ क्तिन्= ज्ञाति )
सपिण्डादिः के लिए ज्ञाति होता है ।
१ सगोत्रः २ बान्धवः ३ बन्धुः ४ स्वः ५ स्वजनः ६ अंशकः ७ गन्धः ८ दायादः ९ सकुल्यः १० समानोदक:
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स चतुर्व्विधः सप्तमपुरुषपर्य्यन्तं सपिण्डः ततस्त्रिपुरुषपर्य्यन्तं सकुल्यः । तत- श्चतुर्थपुरुषपर्य्यन्तं समानोदकः । जन्मनामस्मृति- पर्य्यन्तमपि समानोदकः । ततः परंगोत्रजः । इति शुद्धितत्त्वम् ॥
अर्थ•--ये चार प्रकार के होते हैं सात पुरुषों के सपिण्ड उसके तीन पुरुषों पर्यन्त समतुल्य उसके चार पुरुषों पर्यन्त समानोदक उसके बाद दूसरे गोत्र के होते हैं ।
यह शुद्धितत्व में वर्णित है ।
अमरकोशः
ज्ञाति पुं।
सगोत्रः
समानार्थक:सगोत्र,बान्धव,ज्ञाति,बन्धु,स्व,स्वजन,
दायाद
2।6।34।2।3
समानोदर्यसोदर्यसगर्भ्यसहजाः समाः। सगोत्रबान्धवज्ञातिबन्धुस्वस्वजनाः समाः॥
“ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्त्वा कन्यायै चैव शक्तितः” (मनुःस्मृति )। ततःपरस्म पुत्रशब्दस्य समासे नाद्युदात्तता।
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शब्दसागरः
ज्ञाति¦ m. (-तिः)
1. A father.
2. A kinsman in general.
3. A distant kins- man, one who does not participate in the oblations of food or water offered to deceased ancestors. E. ज्ञा to know, affix कर्त्तरि करणे वा क्तिन् ; who is known, an acquaintance.
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Apte Sankrit Dictionary -
ज्ञातिः [jñātiḥ], [ज्ञा-क्तिन्]
A paternal relation, a father, brother &c.; agnate relatives collectively.
A kinsman or kindred in general.
A distant kinsman who is not entitled to the oblations offered to deceased ancestors.
A father. -Comp. -कर्मन् n., -कार्यम् the duty of a kinsman. -चेलम् A low-born person; विभिन्न- कर्माशयवाक् कुले नो मा ज्ञातिचेलं भुवि कस्यचिद् भूत् । (Bk.12.78.)
-प्रायः A meal for kinsmen (Mar. जातिभोजन); प्रक्षाल्य हस्ता-वाचम्य ज्ञातिप्रायं प्रकल्पयेत् Ms.3.264. -भावः kin, relationship. -भेदः dissension among relatives. -विद् a. one who has or makes near relatives.
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(Monier-Williams Sanskrit Dictionary)
ज्ञाति m. " intimately acquainted "( cf. Gothic. kno1di) -, a near relation
(" paternal relation " Latin and Sch. ; cf. सम्-बन्धिन्) , kinsman RV. AV. xii , 5 , 44 TBr. ietc.
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Vedic Index of Names and Subjects
'''Jñāti''' (masc.), a word which originally seems to have meant ‘acquaintance,’ Being in all probability derived from ''jñā,'' ‘know,’ not from ''jan,'' ‘beget,’ as would at first sight seem more likely on account of the sense.
''Cf.'' the St. Petersburg Dictionary, ''s.v.'' denotes in the (Rigveda 7. 55, 5,)
seems to refer to the members of the joint family sleeping in the paternal house;
x. 66, 14;
85, 28 (the kinsmen of the bride are meant);
117, 9 (perhaps ‘brother and sister’ are meant by ''jñātī'' here, but ‘kinsfolk’ will do;
''of.'' Muir, ''Sanskrit Texts,'' 5, 432). and later Av. xii. 5, 44 (where Whitney in his Translation renders the word by ‘acquaintances,’ which seems too vague and feeble);
[[तैत्तिरीय|Taittirīya]] [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]], i. 6, 5, 2;
Satapatha [[ब्राह्मण|Brāhmaṇa]], i. 6, 4, 3 (''jñātibhyāṃ vā sakhibhyāṃ, vā,'' ‘where ‘relations’ are contrasted with ‘friends’ or ‘companions’);
ii. 2, 2, 20;
5, 2, 20;
xi. 3, 3, 7, etc. a ‘relation,’ apparently one who was connected by blood on the father's side, though the passages do not necessarily require the limitation. But this sense follows naturally enough from the patriarchal basis of Vedic society.
For the transition from the etymological meaning, ''cf.'' , which in Homer designate ‘brother’ and ‘sister’;
St. Petersburg Dictionary
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gnatus (Latin)
Origin & history
From Proto-Italic *gnātos, from Proto-Indo-European *ǵn̥h₁tós= ("produced, given birth"), from *ǵenh₁- ("to produce, give birth, beget"). जन् धातु वैदिक भाषा में देखें-
Participle
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gnātus (masc.) (fem. gnāta, neut. gnātum)
ज्ञातु: पुल्लिंग -ज्ञाता आ स्त्री लिंग आज्ञा तुम नपुंसक लिंग
Alternative form of (nātus)
Entries with ("gnati")
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гонять: гонять (Russian) Origin & history From Proto-Slavic *goniti, *gnati, from Proto-Indo-European *gʷʰen- ("to kill").संस्कृत रूप हन् घन् Cognate with Albanian gjan ("I hunt")…
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भारोपीय वर्ग की प्राचीन भाषाओं में
जाति अथवा ज्ञाति मूलक जन् (ज्ञा) धातु का रूप
देखें निम्न सन्दर्भों में -
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Sanskrit janati "begets, bears," janah "offspring, child, person," janman- "birth, origin," jatah "born;" संस्कृत जनन्ति-
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Avestan zizanenti जिजानेन्ति - वे जन्म देते हैं "they bear;"
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Greek gignesthai "to become, happen," genos "race, kind," gonos "birth, offspring, stock;". ग्रीक -गिगनेथाई = जन्म होना-
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Latin gignere "to beget," gnasci "to be born," genus (genitive generis) "race, stock, kind; family, birth, descent, origin," genius "procreative divinity, inborn tutelary spirit, innate quality," ingenium "inborn character," possibly germen "shoot, bud, embryo, germ;" लैटिन गिगनेयर= जन्म देना
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Lithuanian gentis "kinsmen;" लिथुआनिया की भाषा में" जेनितस् = जाति का व्यक्ति
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Gothic kuni "race;" जर्मन की पुरानी भाषा गॉथिक में कुनी- कुनबा ,जाति।
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Old English cennan "beget, create," gecynd "kind, nature, race;" सेनन्न= जन्म देना , जाति ।
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Old High German kind "child;" किण्ड=सन्तान
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Old Irish ro-genar जेनर "I was born;"
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Welsh geni "to be born;" जेनि-
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Armenian cnanim क्निम "I bear, I am born."
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भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय प्रथम के श्लोक संख्या बासठ ( 10/1/62) पर स्पष्ट वर्णित है|
ये आभीर या गोप यादवों की शाखा नन्द बाबा आदि के भी वृष्णि कुल से सम्बंधित थे ।
यहाँ ज्ञाति शब्द विचारणीय है ।
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नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्चामीषां च योषितः।
वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥ ६२ ॥
●☆• नन्द आदि यदुवंशीयों की वृष्णि की शाखा के व्रज में रहने वाले गोप और उनकी देवकी आदि स्त्रीयाँ |62|
सर्वे वै देवताप्राया उभयोरपि भारत|
ज्ञातयो बन्धुसुहृदो ये च कंसमनुव्रता:।63||
हे भरत के वंशज जनमेजय ! ये सब यदुवंशी नन्द आदि गोप दौनों ही नन्द और वसुदेव सजातीय (सगे-सम्बन्धी)भाई और परस्पर सुहृदय (मित्र) हैं ! जो तुम्हारे सेवा में हैं| 63||
( गोरखपुर गीताप्रेस संस्करण पृष्ठ संख्या 109)..
ज्ञाति शब्द से ही जाति शब्द का विकास हुआ है । ___________________
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