महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे।
महाभारत ग्रंथ का लेखन गणेश जी ने महर्षि वेदव्यास से सुन सुनकर किया था। एसा महाभारत में वर्णन है और एक स्थथान पर यह भी वर्णन है की महाभारत स्वयं व्यास ने से लिखा ।
पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य, हुुुए तो चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए।
इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए।
इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। उन्होने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की, ऐसा माना जाता है।
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लेखको भारतस्यास्य भव त्वं गणनायक ।
मयैव प्रोच्यामानस्य मनसा कल्पिततस्य च।।77।
श्रुत्वैतत् प्राह विघ्नेशो यदि मे लेखनी क्षणम्।
लिखतो नावतिष्ठेत तदा स्यां लेखको हि अहम्।78।
व्यासो८प्युवाच तं देवमबुद्ध्वा मा लिख क्वचित् ।
ओमित्युक्त्वा गणेशो८पि बभूव किस लेखक:।79।
अर्थात् गणनायक आप मेरे द्वारा निर्मित इस महाभारत ग्रन्थ के लेखक बन जाइये ; 'मैं बोलकर सिखाता जाऊँगा मैंने मन ही मन इसकी रचना कर ली है ।77।
यह सुनकर विघ्नराज गणेश जी ने कहा –व्यास जी !
यदि क्षण भर के लिए भी मेरी लेखनी न रुके तो 'मैं इस ग्रन्थ का लेखक बन सकता हूँ।78।
व्यास जी ने भी गणेश जी से कहा –बिना समझे किसी भी प्रसंग में एक अक्षर भी मत लिखिएगा । गणेश जी ने "ऊँ" कहकर स्वीकार किया और लेखक बन गये ।।79।
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पुराण शब्द का निर्वचन 'पुराणं पंचलक्षणम् ' के अनुसार १.सृष्टि की उत्पत्ति ,२.विनाश ,३.वंशपरम्परा ,४.मनुओं का वर्णन तथा ५.विशिष्ट व्यक्तियों के चरित्र --यह पाँच विषय जिस ग्रन्थ में मुख्यतया वर्णित हों उन्हें पुराण कहते हैं ।
उक्त पांचों विषय सभी पुराणों में थोड़े भेद के साथ मिलते ही हैं ।
एक ही व्यक्ति इन पाँच विषयों को थोड़े भेद के साथ अठारह अलग अलग ग्रंथों में क्यों लिखेगा ? जबकि सृष्टि उत्पत्ति ,विनाश ,वंश ,मनु वर्णन आदि सभी पुराणों में एक ही है जो कि मूल पुराण का विषय है । लोग कोरी भावुकता से निर्णय लेने लगते हैं कि सभी पुराण कृष्णद्वैपायन व्यास जी की रचना हैं । जबकि पुराणों में स्पष्ट लिखा है --
मत्प्रसादादसंदिग्धा तव वत्स भविष्यति।।
ततश्च प्राह भगवान्वसिष्ठो वदतां वरः।। ६४.११९ ।।
पुलस्त्येन यदुक्तं ते सर्वमेतद्भविष्यति।।
अथ तस्य पुलस्त्यस्य वसिष्ठस्य च धीमतः।। ६४.१२೦ ।।
प्रसादाद्वैष्णवं चक्रे पुराणं वै पराशरः।।
षट्प्रकारं समस्तार्थसाधकं ज्ञानसंचयम्।। ६४.१२१ ।।
षट्साहस्रमितं सर्वं वेदार्थेन च संयुतम्।।
चतुर्थं हि पुराणानां संहितासु सुशोभनम्।। ६४.१२२ ।।
एष वः कथितः सर्वे वासिष्ठानां समासतः।।
प्रभवः शक्तिसूनोश्च प्रभावो मुनिपुंगवाः।। ६४.१२३ ।।
इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे वासिष्ठकथनं नाम चतुःषष्टिमोऽध्यायः।। ६४ ।।
ततश्च प्राह भगवान्वसिष्ठो वदतां वरः।। ६४.११९ ।।
पुलस्त्येन यदुक्तं ते सर्वमेतद्भविष्यति।।
अथ तस्य पुलस्त्यस्य वसिष्ठस्य च धीमतः।। ६४.१२೦ ।।
प्रसादाद्वैष्णवं चक्रे पुराणं वै पराशरः।।
षट्प्रकारं समस्तार्थसाधकं ज्ञानसंचयम्।। ६४.१२१ ।।
षट्साहस्रमितं सर्वं वेदार्थेन च संयुतम्।।
चतुर्थं हि पुराणानां संहितासु सुशोभनम्।। ६४.१२२ ।।
एष वः कथितः सर्वे वासिष्ठानां समासतः।।
प्रभवः शक्तिसूनोश्च प्रभावो मुनिपुंगवाः।। ६४.१२३ ।।
इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे वासिष्ठकथनं नाम चतुःषष्टिमोऽध्यायः।। ६४ ।।
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वशिष्ठ और पुलस्त्य के वरदान से 'विष्णुपुराण' पराशर जी ने बनाया ।
अर्थात् विष्णु पुराण ऋषि पाराशर की रचना है जो कि २६ वे व्यास थे ।
व्यासजी ने एक ही पुराण संहिता की रचना की थी ,जो शिष्य परम्परा से १८ भेद हो गए ,तभी सभी पुराणों का विषय -
'सर्गश्च प्रतिसर्गश्च ,वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंश्यानुचरितं चैव पुराणं पंचलक्षणम् ।।'
महाभारत के सम्बन्ध में महाभारत के आदि पर्व में ही कहा कि इसके लेखन के लिये वेद व्यास ने गणेशजी से निवेदन करते हैं -
लेखको भारतस्यास्य भव त्वं गणनायक ।
मयैव प्रोच्यमानस्य मनसा कल्पितस्य च ।।
महाभारत आदिपर्व- १|७७
अर्थ-_"हे गणनायक ! तुम मेरे द्वारा निर्मित महाभारत के लेखक हो जाइये । मैंने मन ही मन इसकी रचना कर ली है।
तब गणेशजी एक शर्त पर स्वीकृति देते हैं कि-
श्रुत्वैतत् प्राह विघ्नेशो यदि मे लेखनी क्षणम्।
लिखतो नावतिष्ठेत तदा स्यां लेखको ह्यहम्॥
( महाभारत आदिपर्व- १|७८
यह सुन कर विघ्नेश गणेश ने कहा यदि मेरी लेखनी क्षण भर भी न रुके तो मैं तो मै इसका लेखक होउँगा ।
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