शुक्रवार, 12 मार्च 2021

लकार व धातुरूप

संस्कृत में " लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् , लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " – ये दस लकार होते हैं। 

•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है 

इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार,  ओ३म् =अकार, उकार, मकार इत्यादि)। 

•• इन दस लकारों में से 
आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है- 
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए  " टित् " लकार कहे जाते हैं  अर्थात ट् व्यञ्जन जिनके अन्त(इत्) में हो उन्हें टित् और अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्'  व्यजञ्न  होता है।

•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिवति, खादति पिवामि खादामि  पिवेत्  आदि रूप सिद्ध किये जाते हैं 
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है। 
जैसे – 
 जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे, 
•  अनद्यतन परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।
(१) लट् लकार ( वर्तमान काल ) 
जैसे :- श्यामः खेलति । = श्याम खेलता है।
(२) लिट् लकार ( अनद्यतन परोक्ष भूतकाल  Historical past) जो अपने साथ न घटित होकर किसी इतिहास का विषय हो । 
 जैसे :-- रामः रावणं ममार । = राम ने रावण को मारा

(३) लुट् लकार ( अनद्यतन भविष्यत् काल ) जो आज का दिन छोड़ कर आगे होने वाला हो । 
 जैसे :-- सः परश्वः विद्यालयं गन्ता । = वह परसों विद्यालय जायेगा ।
(४) लृट् लकार ( सामान्य भविष्य काल ) जो आने वाले किसी भी समय में होने वाला हो । 
जैसे :--- रामः इदं कार्यं करिष्यति । = राम यह कार्य करेगा। वह कल अलीगढ़ जाएगा। स: श्वस् अलीगढ़म् गमिष्यति।
(५) लेट् लकार ( यह लकार केवल वेद में प्रयोग होता है, ईश्वर की प्रार्थना के लिए, क्योंकि वह किसी काल में बंधा नहीं है। )
(६) लोट् लकार ( ये लकार आज्ञा, अनुमति लेना, प्रशंसा करना, प्रार्थना आदि में प्रयोग होता है । ) 
 जैसे :- • भवान् गच्छतु । = आप जाइए । ;
• सः क्रीडतु । = वह खेले । ; 
• त्वं खाद । = तुम खाओ । ; 
• किमहं वदानि ? = क्या मैं बोलूँ ?

(७) लङ् लकार ( अनद्यतन प्रत्यक्ष भूत काल Direct past -perfect ) आज का दिन छोड़ कर किसी अन्य दिन जो हुआ हो । 
 जैसे :- भवान् तस्मिन् दिने भोजनमपचत् । = आपने उस दिन भोजन पकाया था।
_____________________________   
(८) लिङ् लकार = इसमें दो प्रकार के लकार होते हैं :--
(क) आशीर्लिङ् ( किसी को आशीर्वाद देना हो । ) 
जैसे :- • भवान् जीव्यात् । = आप जीओ । ; 
• त्वं सुखी भूयात् । = तुम सुखी रहो।
(ख) विधिलिङ् ( किसी को विधि बतानी हो ।)
जैसे :- • भवान् पठेत् । = आपको पढ़ना चाहिए। ; 
• अहं गच्छेयम् । = मुझे जाना चाहिए।

(९) लुङ् लकार ( सामान्य भूत काल past indefinite) जो कभी भी बीत चुका हो । 
 जैसे :- अहं भोजनम्   अबभक्षम् ।= मैंने खाना खाया।
_______________
(१०) लृङ् लकार ( ऐसा भूत काल जिसका प्रभाव वर्तमान तक हो) जब किसी क्रिया की असिद्धि हो गई हो   जैसे :- यदि त्वम् अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् भवितुम् अर्हिष्यत् । = यदि तू पढ़ता तो विद्वान् बनता।

~ लट् लकार वर्तमान काल में,

~ लेट् लकार केवल वेद में,

~ भूतकाल में लुङ् लङ् और लिट्, 

~ विधि और आशीर्वाद में लिङ् और लोट् लकार तथा 

~ भविष्यत् काल में लुट् लृट् और लृङ् लकारों का प्रयोग किया जाता है।)



•• लट् लिट् लुट् लृट् लेट् लोट् 

•• लङ् लिङ् लुङ् लृङ् ॥ 

इनमें लेट् लकार केवल वेद में प्रयुक्त होता है । लोक के लिए नौ लकार शेष रहे । 

अब इन नौ लकारों में लिङ् के दो भेद होते हैं :-- 
आशीर्लिङ् और विधिलिङ् । 
______________
इस प्रकार लोक में दश के दश लकार हो गए ।
अत्‍यन्‍तापह्नवे लिट् वक्‍तव्‍य: । वा. ।
सत्‍यवाक्‍यस्‍य अपह्नवे (निमीलनेच्‍छायाम्) लिट् लकारस्‍य प्रयोग: भवति ।  यथा -
अपि कलिंगेष्‍ववस: ? नाहं  कलिङ्गान् जगाम ।
(क्‍या तुम कलिंग में रहे ?  नहीं मैं कभी कलिङ्ग देश में नहीं गया) ।

अरे ! किमिति मे पुस्‍तकं मलिनीकृतवान् असि ? नाहं ददर्श ते पुस्‍तकम् I
(अरे ! तूने मेरी पुस्‍तक क्‍यों गन्‍दी कर दी ? नहीं, मैंने नहीं की, मैंने तुम्‍हारी पुस्‍तक देखी तक नहीं है) ।

उत्‍तमपुरुषे लिट् लकार: नैव भवति, किन्‍तु स्‍वप्‍नावस्‍थायां उन्‍मत्‍तावस्‍थायां च उत्‍तमपुरुषे अपि लिट् लकारस्‍य प्रयोग: भवति । यथा -

अहम् उन्‍मत्‍त: सन् वनं विचचार ।
(मैंने पागलपन की दशा में जंगल में भ्रमण किया) ।

अप्‍यहं निद्रित: सन् विललाप ?
(क्‍या मैं निद्रित अवस्‍था में विलाप कर 

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