शुक्रवार, 26 मार्च 2021

आर्य -

अल्लाह शब्द अरबी में अल-इलाह के रूप में है जो हिब्रू बाइबिल के के इलॉहि एवं एलॉहिम का रूपान्तरण है।

 एल /अलि सैल्टिक  जन-जातियों  का आदि देव था

-शाडृ ( शाल्-शार्-शाड्= श्लाघायाम्

 
श्लाघायाम्
 शाडत इत्यादि (लडयोरैक्यात् )शालत इति काश्यपः अत एव मैत्रेये रूपशाली शालेत्युदाहृतं, "लस्य'' इत्यत्र भाष्यकैयटयोः शालेति श्यतेर्लप्रत्यये व्युत्पादनीयः 
( शालीनः, अधृष्टः ) "शालीनकौपीने अधृष्टाकार्ययोः'' इति खञि निपातितः गवां शाला, ( गोशालं, गोशाला )

कत्थने । (भ्वा०-आत्म०-सक०-सेट् ) कत्थने प्रशंसायाम्
  शालते गुणिनं गुणी ।
ऋ  अशशालत् ।

निघण्टुः । २ । २० ॥ स्तोत्रम्  स्तुति नमन आदि ।
यथा  ऋग्वेदे । ७।१६ ।१ । “एना वो अग्निं नमस् ओर्जो नपातमा हुवे
हिब्रू परम्पराओं से नि:सृत ईसाईयों और मुसलमानों के मजहबी उशूलात ( नियम) वस्तुत किन्हीं सन्दर्भों में  सुमेरियन माइथॉ लॉजी तथा वैदिक संस्कृतियों से प्रभावित हैं
इस्लाम का मुअज्जिन अजान लगाते हुए  कहता है: " हय्या अलस्स सलात!
एहि अरये शलतात्।
अर्थात् आओ अल्लाह के लिए स्तुति करें !
अर्थात् सलाम अथवा नमाज जैसे- शब्द सैमेटिक होकर भी असीरियन तो हैं ही वैदिक सन्दर्भों में भी विद्यमान हैं

प्रमाणित तथ्यों के तुलनात्मक विवेचन से स्पष्ट है कि यहूदी यदुवंशी रूप हैं । अत: ईश्वरीय अवतार की भावना केवल अतिरञ्जना पूर्ण ही है ।
यह यहूदियों में केवल ईश्वरीय प्रतिनिधि या दूत के रूप में ही थी ।
नवी जैसे- शब्द सुमेरियन तथा भारोपीय भाषाओं में हैं
क्यों ईश्वर कभी भी पूर्ण अवतार नहीं लेता है ।

नबु (अक्कडियन: क्यूनिफॉर्म: नबु   स सीरियाई: ܢܒܘ) संस्कृति में  साक्षरता के प्राचीन मेसोपोटामियन संरक्षक देवता, तर्कसंगत कला, शास्त्र और ज्ञान का अधिष्ठात्री देवता है।

Nabu---
साक्षरता का देव, तर्कसंगत कला, शास्त्रीयता और ज्ञान
का प्रतिनिधि ।

मध्य हाई जर्मन में नाच ("छोटी नाव") से सम्बद्ध पुराने हाई जर्मन नाहो से, प्रोटो-जर्मनिक ।
नक्को से। संज्ञेय में डच अक ("बार्क") और पुराना नॉर्स नक्कवी शामिल हैं।

जर्मनिक भाषाओं में नौका शब्द कुछ व्यतिरेक से प्राप्त होता है ।

नचेन एम (जेनेटिव नाकेंस, बहुवचन नाचेन)

(पुरातन, काव्य, dialectal) छोटी नाव जिसे अन्तर्देशीय पात्रा हेतु समुद्र- के जलसमूह पर प्रयोग किया जाता है ।

समानार्थी
क्हान

धातु रूप में  ب ب (nbw), हालांकि सीधे इसके गठन से संबंधित नहीं है, लेकिन अरामाईक ने कहा है कि हमला (n'ḇiyyā) (पूर्ण रूप: nְבִי (n'ḇī)) जिसकी जड़ को संज्ञेय है अरबी मूलक्रिया ن ب ء (नबी')। हिब्रू נָבִיא (naví) की तुलना करें।

सुमेरियन भाषाओं में नबी का अर्थ नेता ,आँख भी है ।
जिसमे नेतृत्व का भाव हो वही नबी अथवा गुरू है

  अरि-और यह हाथ में आरा लिए हुए युद्ध का देवता है ।
आर्य शब्द अपने प्रारम्भिक काल में वीरता सूचक विशेषण है।
असुर संस्कृति के अनुयायी ईरानी स्वयं को आर्य कहते हैं ; और देवों को दुष्ट व दुरात्मा कहते हैं ।
और ईरान शब्द स्वयं आर्याण का तद्भव हो तो आर्य शब्द का -जाति सूचक विशेषण होना इतिहास कारों की आर्य शब्द के जन-जातिगत प्रायौगिकता में  एक भ्रान्ति मूलक अवधारणा ही है ।  
   आर्यों का ईश्वर अरि संज्ञा से अभिहित था !
और आर्य चरावाहे थे । जिन्होंने कृषि और ग्रामीण संस्कृति को जन्म दिया । ।
     इस लिए आर्यों को ईश्वर (अरि) का पुत्र भी कहा गया । जैसा  कि व्युत्पत्ति- के द्वारा भी सिद्ध है ।
      ऋ (अर् ) + ण्यत् -- आर्य --{ वीर अथवा यौद्धा ।
वैदिक सन्दर्भों में अरि ईश्वर का वाचक शब्द है ।
  तारानाथ वाचस्पत्य ने ऋग्वेद के प्रथम मण्डल
के १२६ वें सूक्त के ५वाँ श्लोकाँश (ऋचा) को इस सन्दर्भ में उद्धृत भी  किया है ,जो  दृष्टव्य है !
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"पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन् युक्ताँ  अष्टौ
            अरिधायसो गा: ।
सुबन्धवो ये विश्वा इव  व्रा
          अनस्वन्त:श्रवण एषन्त पज्रा: ।५।
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पूर्वाम् । अनु । प्रऽयतिम् । आ । ददे । वः । त्रीन् । युक्तान् । अष्टौ । अरिऽधायसः । गाः ।

सुऽबन्धवः । ये । विश्याःऽइव । व्राः । अनस्वन्तः । श्रवः । ऐषन्त । पज्राः ॥५

इदानीमानीतं धनं बन्धुभ्यो निवेदयन्नाह । हे “सुबन्धवः “पूर्वां “प्रयतिं पूर्वप्रदानम् “अनु तमनुसृत्य वक्ष्यमाणानि रथादीनि “वः युष्मदर्थम् “आ “ददे स्वीकृतवानस्मि । यद्वा । पूर्वां प्रयतिं प्रदेयं रथादिकम् अनु दानक्रमेणैव आ ददे प्रतिगृहीतवानस्मि । कानि तानीति । “त्रीन् “अष्टौ च “युक्तान् चतुर्भिश्चतुर्भिरश्वैर्धनैर्वा युक्तान् रथानिति शेषः । अत्र संख्यापृथग्निर्देशो न विवक्षितः । तथा “अरिधायसः अरिभिरीश्वरैर्धारणीयाः बहुमूल्याः असंख्याताः “गाः च आ ददे । अत्र वक्ष्यमाणानि पूर्वं प्रतिगृहीतादधिकानीति युक्तम् । पूर्वमेव पित्रे निवेदितानां पुनर्बन्धुभ्यो निवेदनासंभवात् वधूमन्तो दश रथासो अस्थुः ' ( ऋ. सं. १, १२६. ३ ) इति दशानां रथानामुक्तत्वात् अत्र च त्रीनष्टौ इत्येकादशानां वक्ष्यमाणत्वात् वधूविशिष्टानाम् अन्येभ्यो दातुमनुचितत्वाच्च अन्यानीति युक्तम् । उक्तानामेव अनुवदनपक्षे दशवधूयुक्ता रथा एको धनपूर्णं इति विवेकः । उक्तानामेव रथादीनां पुनरभिधानं प्रकृष्टत्वज्ञापनार्थम् । सर्वे ब्राह्मणा आगता वसिष्ठश्चागत इतिवत् । इदानीं परोक्षेणाह । सुबन्धवः शोभना विद्यायोनिसंबन्धिनः येषां ते तथोक्ताः । यद्वा । शोभनबान्धवोपेताः परस्परमनुरागयुक्ता इत्यर्थः । विशः प्रजाः । तत्र भवाः "विश्याः । व्रियन्त इति “व्राः व्राताः ॥ तकारलोपश्छान्दसः ॥ विशां व्राता यथा परस्परमनुरागवन्तः तथा एतेऽपीत्यर्थः। “पज्राः अन्नवन्तोऽङ्गिरसः संतानप्रभवा ये सन्ति ते सर्वे सुबन्धवः “अनस्वन्तः शकटवन्तः हविर्धानशकटोपलक्षितसोमयागवन्तः सन्तः “श्रवः सर्वत्र श्रूयमाणां कीर्तिम् “ऐषन्त इच्छन्ति इच्छन्तु वा । तदर्थम् आ ददे इति शेषः ॥



   वाचस्पत्य कोश के अनुसार ...
इस का स्पष्टीकरण इस प्रकार है -- कि  अरिभि:अर्थात्  ईश्वरै: धार्य्यते - धा -
असुन पृ० युट्
ईश्वर धार्य्ये---- अष्टौ अरि धायसो गा:
अरिधायस: " अरिभि: ईश्वरै: धार्य्यमाणा " -- 
(सायण भाष्य )
अरि शब्द    "ऋृ " धातु मूलक है । ऋ + इन्  =अरि - ऋ- गतिप्रापणयो: हिंसायाम् च - गमन करना, प्राप्त करना तथा हिंसा करना ।
अरि - शब्द के परवर्ती अर्थ  हैं ! चक्र का अरा ,   चक्र , तथा शत्रु( वैरी) आदि,  परन्तु अरि का शत्रु अर्थ ही कालान्तरण में अधिक  रूढ़ होकर रह गया है ।
.........

परन्तु हमारा विश्लेष्य विषय वैदिक अरि शब्द है ।
अरि शब्द पैशाची असीरियन  तथा फॉनिशियन भाषा में  तथा पश्चिमीय एशिया की मैसॉपोटमिया की  संस्कृतियों में अलि अथवा एल रूप में परिवर्तित हो कर प्रतिष्ठित हो गया है ।
सुमेरियन संस्कृति से यह शब्द हिब्रू परम्पराओं में समायोजित हुआ ।
जिससे कालान्तरण में एल का बहुवचन रूप एलोहिम हुआ ।
तथा इलाह तथा अल् इलाह जैसे ईश्वर वाची शब्द भी यहीं अरब़ी संस्कृति में विस्थापित हुए औरअलि इल्लाह अल उल्लाह आदि रूपों में  विकसित हुए ।
कैन्नानाइटी संस्कृति  तथा मैसॉपोटमिया की सेरगॉन से पहले की संस्कृति में  में एल (el) सबसे बडा़ देव -सत्ता है ।
फॉनिशियन ,सीरियायी तथा उग्रेटिक तथा अक्काडियन , हिब्रू आदि संस्कृतियों में यह अरि ही एल हो गया है ।
पुरातन एमॉराइट तथा अक्काडियन भाषा में यह शब्द इसी (ila)  के रूप में है।
आरमेनियन भाषा में इलु के रूप में भी यह ईश्वर वाची है ।
नॉर्स माइथॉलॉजी में उल (Ull)--- god of archery and skiing"  के रूप में अरि ही है इस्लामीय शरीयत में तौहीद का प्रतीक अल्लाह वैदिक अरि का ही विकसित रूप है । तथा स्वयं तौहीद जिसके मूल में वाहिद शब्द विद्यमान है |
वाहिद शब्द भी  वैदिक शब्द वृहद् ---( ब्रह्म )का  रूपान्तरण है ।
यूनानी पुराणों में युद्ध के अधिष्ठात्री देवता का नाम अरि: है ।
Ares (/ˈɛəriːz/; Ancient Greek: Ἄρης, Áres [árɛːs]) is the Greek god of war. He is one of the Twelve Olympians, the son of Zeus and Hera.
In Greek literature, he often represents the physical or violent and untamed aspect of war, in contrast to his sister, the armored Athena, whose functions as a goddess of intelligence include military strategy and generalship.
Ares
God of war

Greek god of the prestigious war in all its moral violence, cruelty, confusion and destruction.
This time: Greek war god.
Identified by the Romans as Mars;
Whom he named as Mars.
 Literally it means: - "Destroyer is.
"In the Vedic languages, the word" Ari: "is similar to the word.

In the old French of 1300 AD, "Violence" is similar to ire Ayre
 The Greek word diamond is "Divine, Sacred," in which the existing word is comparable.
Lithuanian Ayisto "violent passion").
Sanskrit weapon

Originally, the word Arya was developed.
Whose original meaning is The warrior

अपनी सभी यौद्धिक हिंसाओं , क्रूरता, भ्रम और विनाश में प्रतिष्ठित युद्ध का यूनानी देवता।
यह अरि: यूनानी युद्ध देवता ।
मंगल ग्रह के रूप में रोमनों द्वारा पहचाना गया;
जिसे उन्होनें मार्स नाम दिया।
शाब्दिक रूप से इसका अर्थ:-" विध्वंसक है ।
"  वैदिक भाषाओं में प्रचलित "अरि: " शब्द से साम्य है

1300 ईस्वी की पुरानी फ्रांसीसी में ire आयरे से साम्य " हिंसा"
ग्रीक हिरोस "दिव्य, पवित्र," के रूप में विद्यमान शब्द तुलना करने योग्य है ।
लिथुआनियाई अइस्त्रा "हिंसक जुनून")।
संस्कृत अस्त्र ।

अरि: से आर्य शब्द विकसित हुआ ।
जिसका मूल अर्थ होता हैं । यौद्धा
अपनी सभी यौद्धिक हिंसाओं , क्रूरता, भ्रम और विनाश में प्रतिष्ठित युद्ध का यूनानी देवता।
यह अरि: यूनानी युद्ध देवता ।
मंगल ग्रह के रूप में रोमनों द्वारा पहचाना गया;
जिसे उन्होनें मार्स नाम दिया।
शाब्दिक रूप से इसका अर्थ:-" विध्वंसक है ।
"  वैदिक भाषाओं में प्रचलित अरि: से साम्य।

1300 ईस्वी की पुरानी फ्रांसीसी में ire आयरे से साम्य " हिंसा"
ग्रीक हिरोस "दिव्य, पवित्र,"
लिथुआनियाई अइस्त्रा "हिंसक जुनून")।
संस्कृत अस्त्र ।

जिसका अर्थ है (एक अनन्त ब्रह्म ) जो निरन्तर बढ़ा हुआ है .... संस्कृत भाषा में ब्रह् तथा व्रह् एक ही धातु के दो रूपान्तरण हैं ।बृहिर् (बृह्) -बृद्धौ शब्दे च
१/४९० (पाणिनि धातु पाठ) अन्यत्र   , वृह् - भासार्थ भाषार्थ वा
......................................................
लौकिक संस्कृत में अवतरित हरि शब्द भी अरि अथवा अलि के ही इतर रूप हैं----     आर्य शब्द अरि शब्द मूलक है .... आर्य कौन थे ? इस विषय पर एक बृहद् विश्लेषण प्रस्तुत है -- योगेश कुमार रोहि के गहन सांस्कृतिक शोधों पर आधारित ----
🌏🌏 भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द किसी न किसी रूप में है ही
विश्व इतिहास का यह सर्वविदित  तथ्य है ।
... ~•~ आर्य कौन थे  ?
  तथा कहाँ से उन्होंने प्रस्थान किया ।
ऐसे प्रश्न सदीयों से मानव इतिहास में जिज्ञासा के विषय रहे हैं । 🌏🌏 •••• भारत तथा यूरोप की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में व्यवहृत है ! ………… पारसीयों पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता ए जेन्द़  में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है जैसे –सिरोज़ह प्रथम- के यश्त ९ पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त २५ पर …अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ है ——-€ …तीव्र वाण (Arrow ) चलाने वाला यौद्धा —यश्त ८. स्वयं ईरान शब्द आर्यन् शब्द का तद्भव रूप है । ईरानी आर्यों की संस्कृति मैसॉपोटमिया की सुमेरियन शाखा असीरियन से अनुप्राणित है ये ईरानी
..  भारतीय आर्यों के ये आर्य चिर काल  सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी भी अवश्य रहे  !
ये असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे।
तो भारतीय देव संस्कृति के , यद्यपि देव तथा असुर शब्द अपने प्रारम्भिक काल में ईश्वरीय सत्ता के ही वाचक थे ।
परन्तु कालान्तरण में ये दो विरोधी रूपों में प्रकट हुए ।
देव शब्द का अर्थ ईरानीयों की भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में रूढ़ हो गया ।
जबकि भारतीय आर्यों में असुर शब्द के अर्थ की दुर्गति हुई है ।
वैदिक सन्दर्भों में असुर का अर्थ  उच्च अर्थों में ही  है ।जो ईश्वर की सर्वोपरि सत्ता का वाचक है ।
व्युत्पत्ति-मूलक दृष्टि से असुर शब्द के अर्थ हैं -
१- प्राणवान् २- प्रकाशक ३- सत्तावान् ।
ऋग्वेद में असुर -- सूर्य ,अग्नि ,वरुण तथा शिव का भी वाचक है ।
…ईरानी तथा भारतीय समान रूप से  अग्नि के अखण्ड उपासक आर्य थे । यही इनकी सांस्कृतिक समझता का एक पक्ष है ।
… स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है —-जैसे वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः ऋग्वेद १/५४/३. तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में …त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि .असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४ तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४. ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं ...
जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है .. पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण ..अहुर ….के रूप में किया है….अतः आर्य विशेषण.. असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था ….और उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर Adolf-Hitler स्वयं को शुद्ध नारादिक nordic आर्य कहता था , और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था ।
नॉरादिक ब्राह्मण समुदाय आज भी गुजरात में रहता है
वेदों मे भी यह तथ्य उच्च स्वर में ध्वनित है कि कि हमारे वीर (आर्य) उत्तरी में हुए ।
           "अस्माकं वीरा: उत्तरे भवन्ति
उत्तरी ध्रुव से आये होने से ये नॉरादिक कहलाए
  .....
सुर अथवा स्वीअर एक भारोपीय आर्य जन- जाति थी ।
जिसका सम्बन्ध जर्मनों तथा भारतीय आर्यों से समान रूप से था ।
दौनों के सांस्कृतिक प्रतीक भी समान ही थे ।जैसे भारतीय आर्यों में स्वास्तिक ।
विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन- क्रूज. (Haken- cruez )अर्थात् हुक - क्रॉस कहते थे ।
स्वयं जर्मनिक जन-जातियाँ भी भारतीयों के समान ओ३म् शब्द का उच्चारण ऑमी( omi )
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में वुध के लगभग २०० नामों मे ऑमी omi भी एक नाम है
सैमेटिक भाषाओं में आमीन् (Amen )
के रूप में यह एक धार्मिक क्रियाओं एक उच्चारण होने वाले अव्यय (interjection) के रूप में है ।
जिसके अर्थ है - एसा ही हो ( एवमस्तु ) it be so
ऑमी शब्द को ..
  उत्तरी जर्मनों के प्राचीन धार्मिक साहित्य स्केलडिक एवम् एड्डिक संस्करणों में
के रूप में अपने सर्वोपरि व राष्ट्रीय देव वुध (woden)
के लिए प्रयोग करते है
…जर्मन वर्ग की भाषाओं में संस्कृत भाषा के नब्बे प्रतिशत शब्द  विद्यमान है ।
स्वयं  आर्य शब्द के बहुत से रूप भी हैं जैसे ----- ऐरे Ehere जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है ..जर्मन भाषाओं में ऐह्रे Ahere तथा Herr शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे ।
…और इसी हर्र Herr शब्द से यूरोपीय भाषाओं में..प्रचलित सर ….Sir …..शब्द का विकास हुआ. और आरिश Arisch शब्द तथा आरिर् Arier स्वीडिश डच आदि जर्मन भाषाओं में श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है ….. इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द. …आर्च Arch तथा आर्क Arck के रूप मे है जो हिब्रू तथा अरबी भाषा में आक़ा होगया है…ग्रीक मूल का शब्द हीरों Hero भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है और वीरः शब्द स्वयं आर्य शब्द का प्रतिरूप है जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर Wer के रूप में है ।
..तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द Vir के रूप में है………
ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं !
….हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है.. लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…Arien तथा Aryen दौनों रूपों में …इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो Ario के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ Ariano भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen ऐरियल-ऐनन के रूप में है .. रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में Aryika के रूप में है.. कैटालन भाषा में Ari तथा Arica दौनो रूपों में है । कैटालन रोमन मूल की भारोपीय वर्ग की भाषा है ।
स्वयं रूसी भाषा में आरिजक Arijec अथवा आर्यक के रूप में है , इधर पश्चिमीय एशिया की सैमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः Ariacoi तथाAri तथा अरबी भाषा में हिब्रू प्रभाव से म-अारि. M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में.. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी Oriyoyi रूप. …इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् Arice के रूप में है .वेलारूस की भाषा मेंAryeic तथा Aryika दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .Aria–iin..के रूप में है ।
….. आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं…. परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव आर्यों की संस्कृति से हुआ उस के विषय में हम कुछ कहते हैं ।

देव संस्कृति के अनुयायीयों  का आगमन काल  ।
अनेक विद्वानों के अनुसार भिन्न- भिन्न- कालावधियों में हुआ है ।

भारत में देव संस्कृति का आगमन 1500 ई.पू. से कुछ पहले हुआ। देव संस्कृति के अनुयायीयों के आगमन के विषय में विद्धानों में मतभेद है।
विक्टरनित्ज ने इनके आगमन की तिथि के 2500 ई.पू० निर्धारित की है जबकि बालगंगाधर तिलक ने इसकी तिथि 6000 ई.पू. निर्धारित की है।
जर्मनिक विद्वानों में मैक्समूलर के अनुसार इनके आगमन की तिथि 1500 ई.पू. है। देव-संस्कृति के मूल निवास के सन्दर्भ में सर्वाधिक प्रमाणिक मत आल्पस पर्व के पूर्वी भाग में स्थित यूरेशिया का है। वर्तमान समय में मैक्समूलर ने मत स्वीकार्य हैं।
देव संस्कृति के उपासक आर्यो के आगमन काल में -
आर्यों के आदि स्थल पर विभिन्न मत
आर्यों के आदि स्थल
आदि (मूल स्थान)  मत
सप्तसैंधव क्षेत्र  डॉ. अविनाश चंद्र, डॉ. सम्पूर्णानन्द
ब्रह्मर्षि देश  पं गंगानाथ
मध्य देश  डॉ. राजबली पाण्डेय
कश्मीर  एल.डी. कल्ला
देविका प्रदेश (मुल्तान)  डी.एस. त्रिवेदी
उत्तरी धु्रव प्रदेश बाल गंगाधर तिलक
हंगरी (यूरोप) (डेन्यूब नदी की घाटी)  पी गाइल्स
दक्षिणी रूस  नेहरिंग गार्डन चाइल्ड्स
जर्मनी  पेन्का
यूरोप  फिलिप्पो सेस्सेटी, सर विलियम जोन्स
पामीर एवं बैक्ट्रिया  एडवर्ड मेयर एवं ओल्डेन वर्ग जे.जी. रोड
मध्य एशिया मैक्समूलर
तिब्बत  दयानन्द सरस्वती
हिमालय (मानस)  के.के. शर्मा
डॉ. अविनाश चन्द्र द्रास ने अपनी पुस्तक 'Rigvedic India' (ऋग्वैदिक इंडिया) में भारत में सप्त सैंधव प्रदेश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
महामोपाध्याय पं. गंगानाथ झा ने भारत में ब्रहर्षि देश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना हैं।
डॉ.राजबली पाण्डेय ने भारत में मध्य देश को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
एल.डी. कल्ला ने भारत में कश्मीर अथवा हिमालय प्रदेश आर्यों का मूल निवास स्थान माना है।
श्री डी.एस. त्रिवेदी ने मुल्तान प्रदेश में देविका नदी के आस पास के क्षेत्र को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने तिब्बत को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
यह वर्णन इनकी पुस्तक 'सत्यार्थ प्रकाश' एवं 'इण्डियन हिस्टोरिकल ट्रेडिशन' में मिलता है।
मैक्स मूलर ने मध्य एशिया को आर्यो का मूल निवास स्थान बताया।
परन्तु आर्य शब्द के विषय में ये समस्त धारणाऐं  निर्मूल है व विवादास्वद हैं ।
क्यों कि  आर्य विशेषण लिखित प्रमाणों में असुर संस्कृति के उपासक ईरानीयों का वाचक था।
जैसे आर्याण से ईरान ।
ईरान के लोग  देव का अर्थ दुष्ट व दुरात्मा कहते हैं ।।
अत: आर्य देव थे दास असुर थे ।
इस सिद्धान्त में कितना दम है ?

मैक्स मूलर ने इसका उल्लेख  'लेक्चर्स ऑन द साइंस ऑफ़ लैंग्युएजेज' में किया है। कि देव-संस्कृति का आगमन  मक
जे.जी.रोड आर्यो का आदि देश बैक्ट्रिया मानते है।
बाल गंगाधर तिलक ने उत्तरी ध्रुव को आर्यो का मूल निवास माना है। यह वर्णन इनकी पुस्तक 'The Arctic (Home of the Aryans') में मिलता है।
पी. गाइल्स ने यूरोप में डेन्यूब नदी की घाटी एवं हंगरी को आर्यो का मूल निवास स्थान माना है।
पेन्का ने जर्मनी को आर्यो का मूल निवास स्थान बताया है।
एडवर्ड मेयर, ओल्डेनवर्ग, कीथ ने मध्य एशिया के पामीर क्षेत्र को आर्यो का मूल स्थान माना है।
नेहरिंग एवं गार्डन चाइल्स ने दक्षिणी रूस को आर्यो का मूल स्थान माना है।

….विदित हो कि यह समग्र तथ्य
…… यादव योगेश कुमार "रोहि" के शोधों पर……. आधारित हैं ..⚡⚡भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर …..संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा ….अथवा वीरः |आर्य शब्द की व्युत्पत्ति Etymology संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन प्राचीनत्तम हैं .. १–गमन करना Togo २– मारना to kill ३– हल (अरम्) चलाना …. Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना… ..प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे …. इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं !
पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कात्स्न्र्यम् धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च..परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा .अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. identity.यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =togo के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर Err है …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशःAraval तथा Aravalis हैं अर्थात् कृषि कार्य.सम्बन्धी …..आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य ही थे …सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था। …🐂🌿आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे ।….यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए .जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी(घास के मैदान )देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे …क्यों किअब भी . संस्कृत तथा यूरोप की सभी भाषाओं में…. ग्राम शब्द का मूल अर्थ ग्रास-भूमि तथा घास है …..इसी सन्दर्भ यह तथ्य भी प्रमाणित है कि आर्य ही ज्ञान और लेखन क्रिया के विश्व में प्रथम प्रकासक थे …ग्राम शब्द संस्कृत की ग्रस् …धातु मूलक है..—–ग्रस् +मन् प्रत्यय..आदन्तादेश..ग्रस् धातु का ही अपर रूप ग्रह् भी है जिससे ग्रह शब्द का निर्माण हुआ है अर्थात् जहाँ खाने के लिए मिले वह घर है इसी ग्रस् धातु का वैदिक रूप… गृभ् …है गृह ही ग्राम की इकाई रूप है ..जहाँ ग्रसन भोजन की सम्पूर्ण व्यवस्थाऐं होती हैं ।
👣👣👣 सर्व प्रथम आर्यों ने घास केे पत्तों पर लेखन क्रिया की थी.. क्यों कि वेदों में गृभ धातु का प्रयोग ..लेखन उत्कीर्णन तथा ग्रसन (काटने खुरचने )केेे अर्थ में भी प्रयुक्त है… यूरोप की भाषाओं में देखें–जैसे ग्रीक भाषा में ग्राफेन Graphein तथा graphion = to write वैदिक रूप .गृभण..इसी से अंग्रेजी मेंGrapht और graph जैसे शब्दों का विकास हुआ है पुरानी फ्रेन्च मेंGraffe लैटिन मेंgraphiumअर्थात् लिखना .ग्रीक भाषा मेंgrammaशब्द का अर्थ वर्ण letterरूढ़ हो गया .जिससे कालान्तरण में ग्रामर शब्द का विकास हुआ.. आर्यों ने अपनी बुद्धिमता से कृषि पद्धति का विकास किया अनेक ध्वनि संकेतों काआविष्कार कर कर अनेक लिपियों को जन्म दिया …अन्न और भोजन के अर्थ में भी ग्रास शब्द यूरोप की भाषाओं में है पुरानी नॉर्स ,जर्मन ,डच, तथा गॉथिक भाषाओं में Gras .पुरानी अंग्रेजी में gaers .,green ग्रहण तथा grow, grasp लैटिन granum- grain स्पेनिस् grab= to seize … सभी विद्वानों से निवेदन करता हूँ !कि इस सन्देश को समीक्षात्मक दृष्टि से अवश्य देखें !
               ओ३म

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     भारतीय पुरातन संस्कृति के उदारत्तम रूप का
एक अवलोकन यहाँ प्रस्तुत किया गया,
   जो निश्पक्ष रूप से है । किसी मत या सम्प्रदाय पर
आधारित नहीं है --- समग्र तथ्य योगेश कुमार रोहि
   ग्राम - आजा़दपुर - पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद
अलीगढ़---के सौजन्य से हैं ।
           [   सम्पर्क- सूत्र ---8077160219 ]

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