बुधवार, 19 जून 2024

विसर्ग सन्धि के विधान-


विसर्ग के पहले (अ ह्रस्व स्वर) हो और आगे वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण, य, र, ल, व या ह में से कोई एक हो, तो विसर्ग (ओ) में बदल जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि अकार युक्त विसर्ग के बाद हश् प्रत्याहार का वर्ण होने पर विसर्ग का ओकार हो जाता है। 
अधः + गति = अधोगति, यशः + दा = यशोदा, मनः + योग = मनोयोग, तेजः+ राशि = तेजोराशि, तेजः + मय = तेजोमय, वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध, मनः + हर = मनोहर आदि इसके उदाहरण हैं।

मनोकामना शब्द इस नियम के अनुसार दोषपूर्ण है। वनोवास शब्द अशुद्ध माना जाता है। जबकि यह शुद्ध है।

कई बार यदि विसर्ग के पहले (अ) हो और बाद में भी (अ) हो तो विसर्ग "ओ" में बदल जाता है तथा बाद का अ लुप्त हो जाता है। इसी नियम से मनः और अनुकूल मिलकर मनोनुकूल बनाते हैं। मनः और अनुसार मिलकर मनोनुसार बनाते हैं।

यदि विसर्ग के पहले (अ) या (आ )को छोड़कर कोई दूसरा स्वर ( इउएऐओऔ) हो तो और आगे अच् (कोई स्वर) या हश् प्रत्याहार (वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण, य, र, ल, व और ह) का कोई वर्ण हो, तो विसर्ग का (र् ) होता है, 

जैसे निः + आशा = निराशा, दुः + उपयोग = दुरुपयोग, निः + दोष = निर्दोष आदि।

(अ) के बाद विसर्ग हो और बाद में कोई स्वर हो, तो विसर्ग का र् होता है। पुनः + उक्ति = पुनरुक्ति, पुनः+ उत्थान = पुनरुत्थान, पुनः + ईक्षण पुनरीक्षण आदि इसके उदाहरण हैं।

यदि अकार, इकार या उकार के बाद विसर्ग हो और आगे र वर्ण हो, तो अकार, इकार और उकार का दीर्घ हो जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है। निः + रोग = नीरोग, निः + रज = नीरज, निः + रस= नीरस, निः + रव = नीरव, दुः + राज = दूराज आदि इसके उदाहरण हैं।

निः, दुः आदि को निर्, दुर् भी लिखा जा सकता है। अकार के बाद विसर्ग हो और उसके बाद (अ) को छोड़कर दूसरा स्वर हो, तो कई बार विसर्ग का लोप हो जाता है और सन्धि नहीं होती, जैसे अतः + एव = अतएव। हिन्दी में सन्धि के नियम पूरी तरह संस्कृत पर आधारित हैं। हिन्दी की अपनी सन्धि कुछ अलग प्रवृत्ति रखती है।


विसर्ग सन्धि के निम्नलिखित भेद होते हैं –

यदि विसर्ग के पहले (अ) या (आ )को 
नियम: अतोरोहप्लुतादप्लुते - यदि विसर्ग के पहले ह्रस्व 'अ' तथा बाद ह्रस्व 'अ' हो तो विसर्ग का “उ” हो जाता है और फिर इन दोनों (विसर्ग से पहले 'अ' + 'उ' = ओ) हो जाता है बाद वाले अ का पूर्व रूप अवग्रह (s) हो जाता है। 

अर्थात् उत्व सन्धि के बाद गुण-सन्धि और पररूप सन्धि होती है।
[अप्लुत अ + रू + अप्लुत अ = रू का उत्वादेश (उ)]
कः + अपि = कोऽपि (विसर्ग का 'उ' हो जाता है, अ+उ = ओ, बाद वाले 'अ' का अवग्रह (ऽ))
विसर्ग सन्धि के उदाहरण
राम: + अवदत् = रामोऽवदत्
राम: + अयम् = रामोऽयम्
रामः + अवदत् - रामोऽवटत्
रामः + अस्ति = रामोऽरित
कः + अपि - कोऽपि
रामः + अत्र = रामोऽत्र
सूर्यः + अपि - सूर्योऽपि
इन्द्रः + अपि = इन्द्रोऽपि
यश: + अभिलाषा - यशोऽभिलाषा
सः + अत्र = सोऽत्र
चन्द्रः + अपि = चन्द्रोऽपि

नियम: उत्वसन्धिः -'हशि च' ह्रस्व अकार से परे हश् प्रत्याहार (वर्ग के 3, 4, 5 एवं ह्, य्, व्, र्, ल्) वर्ण होने ह्रस्व अकार (अ) के आगे रेफ के स्थान पर उकार (उ) आदेश होता है।
 विशेष- ‘अ: + हश् (वर्ग के 3,4,5, ह्, य्, व्, र्, ल्)' इस स्थिति में विसर्ग के स्थान पर ओकार (ओ) की मात्रा होती है। अर्थात् इस उत्वसन्धि के बाद गुणसन्धि होती है।
शिवः + वन्द्यः = शिवो वन्द्यः
 रामः + हसति = रामो हसति
बाल: + याति = बालो याति
बुधः + लिखति = बधो लिखति
 बाल: + रौति = बालो रौति
नम: + नम:= नमो
 राम: + जयति = रामो जयति
क्षीणः + भवति = क्षीणों भवति
मनः + हरः = मनोहर:
यशः + दा - यशोदा
मानः + हि = मानोहि
बालः + वदति = बालोवदति
बालः + हसति = बालोहसति
मनः + रथः = मनोरथः
शिवः + वन्द्यः = शिवोवन्द्यः

नियम:सत्व-सन्धि-'विसर्जनीयस्य  सः।' यदि विसर्ग के सामने खर् वर्ण (वर्ग के 1, 2, श्, ष्, स्) हो, तो विसर्ग के स्थान पर सकार हो जाता है।
जैसे-
कः + चित् = कश्चिद्
रामः + च = रामश्च
धनु + टंकार - धनुष्टंकार
निः + ष्ठा - निष्ठा
नमः + अस्ते = नमस्ते
दु: + तर – दुस्तर
विष्णुः त्राता = विष्णुस्त्राता
निः + छलः = निश्छल:

नियम: विसर्ग संधि वा शरि' यदि विसर्ग के सामने शर् वर्ण (श् ष् स्) हो, तो विसर्ग के स्थान पर विकल्प विसर्ग आदेश होता है। यथा
हरिः + शेते = हरिः शेते/हरिश्शेते
निः + सन्देहः = निःसन्देह/निस्सन्देह
नृपः + षष्ठः = नृपः षष्ठ:/नृपष्षष्ठः
________________
नियम: विसर्ग का रेफ (रुत्व सन्धि)-'इचोऽशि विसर्गस्य रेफः।' इच् (अ, आ को छोडकर असम स्वर) के आगे विसर्ग के सामने अश् (स्वर एवं व्यंजन) होने पर विसर्ग के स्थान पर रेफ आदेश होता है
 मुनिः + इति = मुनि + र् + इति - मुनिरिति
भानु: + भानु: + असौ = भानु + र् + असौ = भानुरसौ
तै: + आगतम् = तै + र् + आगतम् -तैरागतम्
 धेनु: + गच्छति – धेनु + र् + गच्छति – धेनुर्गच्छति
एतै: + भक्षितम् = एतै + र् + भक्षितम् = एतैर्भक्षितम्

नियम: रुत्व सन्धि में अव्यय और ऋकारान्त शब्द के सम्बोधन और सम्बन्धी में अकार और आकार के सामने भी विसर्ग के स्थान पर रेफ आदेश होता है। यथा
 पुनः + अत्र = पुन + र् + अत्र = पुनरत्र
प्रातः + गच्छति = प्रात + र् + गच्छति = प्रातर्गच्छति
पितः + वन्दे = पित + र् + वन्दे = पिप्रातर्गच्छ
मातः + वन्दे = मात + र् + वन्दे मातर्वन्दे

 विसर्ग का लोप (लोप-सन्धि)

नियम: 'आतोऽशि विसर्गस्य लोपः' अर्थात् आकार से परे विसर्ग का अश् (स्वर या व्यंजन) परे होने पर विसर्ग लोप होता है
बाला: + अत्र = बाला + अत्र = बाला अत्र
लता: + एधन्ते = लता + एधन्ते= लता एधन्ते  ता: + गच्छन्ति = ता + गच्छन्ति = ता गच्छन्ति
वृद्धाः + यान्ति = वृद्धा + यान्ति = वृद्धा यान्ति बालाः + हसन्ति = बाला + हसन्ति = बाला हसन्ति
नियम:'अतोऽनत्यचि विसर्गलोप:'-अकार (अ) से परे विसर्ग का अकार को छोड़कर स्वर परे होने पर लोप होता है।
रामः + आगच्छति = राम + आगच्छति = राम आगच्छति।
कृष्णः + एति = कृष्ण + एति = कृष्ण एति।
बाल: + इच्छति = बाल + इच्छति = बाल इच्छति।

नियम: 'एतत्तदोः सुलोपोऽकोरनञ्समासे हलि' अर्थात् नञ्समास को छोडकर 'एष: स: इन दोनों पदों के विसर्ग के  सामने अकार (अ) के अतिरिक्त अन्य वर्ण होने पर लोप होता है।
 एष: + इच्छति = एष + इच्छति = एष इच्छति
एषः + गच्छति = एष + गच्छति = एष गच्छति
स: + आगच्छति = स + आगच्छति = स आगच्छति
स: + तत्र = स + तत्र _= स तत्र
 एषः + विष्णुः = एष +विष्णुः = एष विष्णुः
स: + शम्भुः स + शम्भुः = स शम्भुः
नियम: 'रोरि' रेफ परे होने पर स्वर से आगे के विसर्ग (:) का लोप होता है, तथा लोप करने पर पूर्व स्वर का दीर्घ हो जाता है।

कविः + रचयति = कवि + रचयति = कवी रचयति (विसर्ग का लोप तथा प्रथम पद के स्वर का दीर्घ होना)
भानु: + राजते भानु + राजते = भानु राजते (विसर्ग का लोप तथा प्रथम पद के स्वर का दीर्घ होना)
पुनः + रमते = पुन + रमते =पुना रमते (विसर्ग का लोप तथा प्रथम पद के स्वर का दीर्घ होना)
हरिः + रम्यः = हरि + रम्यः हरी रम्यः (विसर्ग का लोप तथा प्रथम पद के स्वर का दीर्घ होना)
शम्भु: + राजते = शम्भु + राजते शम्भू राजते (विसर्ग का लोप तथा प्रथम पद के स्वर का दीर्घ होना)


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