तत्पुत्रो नन्दसावर्णिः केदारश्च तदात्मजः ।
उत्तानपाद के पुत्र केदार की पुत्री "वृन्दा" थी जिनके नाम से वृन्दावन प्रसिद्ध हुआ।
उन्हीं वृन्दा का राधा की छाया के रूप में कृष्ण के अंश- रायाण गोप से विवाह होने का प्रसंग पुराणों में है।
नकि मूल राधा जो बृषभानुपुत्री थीं उनका रायाण गोप से कभी विवाह नहीं हुआ ।
"आधे अधूरे पुराण पढ़ कर जो लोग राधा की रायाण से शादी दिखा रहे हैं ।
वह निहायत मूर्ख हैं। उन्हें राधा जी को जानने के लिए उन्हीं की शरण में आना चाहिए-
नीचे हम मूल ब्रह्मवैवर्त पुराण से उत्तानपाद के पुत्र केदार की पुत्री वृन्दा के रायाण गोप के साथ विवाह होने का प्रमाण दे रहे हैं।
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उवाच वृन्दां भगवान्सर्वात्मा प्रकृतेः परः ।१३४
श्रीभगवानुवाच-
त्वयाऽऽयुस्तपसा लब्धं यावदायुश्च ब्रह्मणः ।
तदेव देहि धर्माय गोलोकं गच्छ सुन्दरि ।१३५ ।
तन्वाऽनया च तपसा पश्चान्मां च लभिष्यसि ।
पश्चाद्गोलोकमागत्य वाराहे च वरानने ।। १३६ ।
वृषभानसुता त्वं च राधाच्छाया भविष्यसि ।
मत्कलांशश्च रायाणस्त्वां विवाह ग्रहीष्यति ।१३७।
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मां लभिष्यसि रासे च गोपीभी राधया सह ।
राधा श्रीदामशापेन वृषभानसुता यदा ।। १३८ ।।
सा चैव वास्तवी राधा त्वं च च्छायास्वरुपिणी
विवाहकाले रायाणस्त्वां च च्छायां ग्रहीष्यति ।। १३९ ।।
त्वां दत्त्वा वास्तवी राधा साऽन्तर्धाना भविष्यति ।
राधैवेति विमूढाश्च विज्ञास्यन्ति ।।
च गोकुले ।। १४० ।।
स्वप्ने राधापदाम्भोजं न रि पश्यन्ति बल्लवाः ।
स्वयं राधा मम क्रोडे छाया रायाणकामिनी ।१४१ ।।
विष्णोश्च वचनं श्रुत्वा ददावायुश्च सुन्दरी ।
उत्तस्थौ पूर्ण धर्मश्च तप्तकाञ्चनसन्निभः ।।
पूर्वस्मात्सुन्दरः श्रीमान्प्रणनाम परात्परम् ।। १४२।
वृन्दोवाच
देवाः शृणुत मद्वाक्यं दुर्लङ्घ्यं सावधानतः ।
न हि मिथ्या भवेद्वाक्यं मदीयं च निशामय ।१४३ ।
उपर्युक्त संस्कृत श्लोकों का नीचे अनुवाद देखें-
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अनुवाद:- तब भगवान कृष्ण जो सर्वात्मा एवं प्रकृति से परे हैं; वृन्दा से बोले।
श्रीभगवान ने कहा- सुन्दरि! तुमने तपस्या द्वारा ब्रह्मा की आयु के समान आयु प्राप्त की है।
वह अपनी आयु तुम धर्म को दे दो और स्वयं गोलोक को चली जाओ।
वहाँ तुम तपस्या के प्रभाव से इसी शरीर द्वारा मुझे प्राप्त करोगी।
सुमुखि वृन्दे ! गोलोक में आने के पश्चात वाराहकल्प में हे वृन्दे ! तुम पुन: राधा की छायाभूता वृषभानु की कन्या होओगी।
उस समय मेरे कलांश से ही उत्पन्न हुए रायाण गोप ही तुम्हारा पाणिग्रहण करेंगे।
फिर रासक्रीड़ा के अवसर पर तुम गोपियों तथा राधा के साथ मुझे पुन: प्राप्त करोगी।
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स्पष्ट हुआ कि रायाण गोप का विवाह मनु के पौत्र केदार की पुत्री वृन्दा " से हुआ था। जो राधाच्छाया के रूप में व्रज में उपस्थित थी।
जब राधा श्रीदामा के शाप से वृषभानु की कन्या होकर प्रकट होंगी, उस समय वे ही वास्तविक राधा रहेंगी।
हे वृन्दे! तुम तो उनकी छायास्वरूपा होओगी। विवाह के समय वास्तविक राधा तुम्हें प्रकट करके स्वयं अन्तर्धान हो जायँगी और रायाण गोप तुम छाया को ही पाणि-ग्रहण करेंगे;
परंतु गोकुल में मोहाच्छन्न लोग तुम्हें ‘यह राधा ही है’- ऐसा समझेंगे।
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उन गोपों को तो स्वप्न में भी वास्तविक राधा के चरण कमल का दर्शन नहीं होता; क्योंकि स्वयं राधा मेरी हृदय स्थल में रहती हैं !
इस प्रकार भगवान कृष्ण के वचन के सुनकर सुन्दरी वृन्दा ने धर्म को अपनी आयु प्रदान कर दी। फिर तो धर्म पूर्ण रूप से उठकर खड़े हो गये।
उनके शरीर की कान्ति तपाये हुए सुवर्ण की भाँति चमक रही थी और उनका सौंदर्य पहले की अपेक्षा बढ़ गया था। तब उन श्रीमान ने परात्पर परमेश्वर को श्रीकृष्ण को प्रणाम किया।
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ब्रह्मवैवर्तपुराण /खण्डः ४ (श्रीकृष्णजन्मखण्डः)/अध्यायः ८६
प्रस्तुतिकरण- यादव योगेश कुमार रोहि-
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