स्वयं भविष्य पुराण के प्रतिसर्गपर्व में इन्द्र पूजा के प्रसंग में कृष्ण समस्त गोप समाज को इन्द्र की पशु हिंसा मूलक यज्ञ को न करने का दृढ़ आदेश और निर्देश देते हैं।
निम्न श्लोक इसके प्रमाण हैं।
"महदपुण्यं महत्पापं हिंसायज्ञेषु वर्तते ।
अतस्तु भगवान्कृष्णो हिंसायज्ञं कलौ युगे । । 3.4.19.।६०।
"समाप्य कार्तिके मासि प्रतिपच्छुक्लपक्षके ।
अन्नकूटमयं यज्ञं स्थापयामास भूतले । ६१।
अनुवाद:- हिंसा मूलक
यज्ञों में महान पुण्यहीनता और महान पाप होता है। इस लिए भगवान् कृष्ण ने कलियुग के प्रारम्भ में ही इन यज्ञों को समाप्त कर कार्तिक मास की प्रतिपदा के शुक्ल पक्ष को अन्नकूट- यज्ञ की भूतल पर स्थापना की।६०-६१।
"देवराजस्तदा क्रुद्धो ह्यनुजं प्रति दुःखितः ।
व्रजं सप्लावयामास तदा कृष्णः सनातनीम् ।
प्रकृतिं स च तुष्टाव लोकमङ्गलहेतवे ।६२।
अनुवाद :- तब देवराज इन्द्र कृष्ण के प्रति क्रोधित हुए और व्रजं को जल से डुबो दिया तब कृष्ण ने अपनी सनातन प्रकृति को लोक -मंगल
के लिए नियुक्त किया।
सन्दर्भ:-
इति श्रीभविष्ये महापुराणे प्रतिसर्गपर्वणि चतुर्युगखण्डापरपर्याये कलियुगीयेतिहाससमुच्चये कृष्णचैतन्ययज्ञांशशिष्यबलभद्रविष्णुस्वामिमध्वाचार्यादिवृत्तान्तवर्णनं नामैकोनविंशोऽध्यायः । १९
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परन्तु" शिवोSहम् " नामक फेस बुक आइडी धारक
कृष्ण के विषय में भागवत पुराण का प्रक्षिप्त श्लोक लिख रहा है । जो भागवत पुराण के दशम स्कन्ध- के 69 वें अध्याय से है।
जो पूर्णत: नकली और कृष्ण के श्रीमद्भगवद्गीता मूलक सिद्धान्तों के विपरीत है।
देखा जाय तो भविष्य पुराण और भागवत पुराण दोंनो ही पुराण कृष्ण के दो विरोधी रूपों को दिखा रहे हैं।
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