तुच्छ मनुष्यों का स्वभाव होता है कि वे जिसका विरोध और बहिष्कार करते हैं ।
तो उस पर आक्षेपों का धूल उड़ा देते हैं भले ही उस में लाख गुण ही क्यों न हों !
जैसे सभा या महफिल से जाते हुए को फिर भी धकियाना ये रिवाज धूर्तों का पुराना है।
इतिहास अपने वैपरीत्य को दोहराता है ।
जैसी मति वैसी गति और फिर परिस्थिति ।
राजपूतों सदियों से जुल्म किये अब जुल्म की इन्तहा है ।
आज बदलते हालात इस बात सी गवाह है ।।
विवेक और निर्णय सापेक्षिक रूप हैं जैसे चमक और प्रकाश संकल्प और आश ।
सुख और उल्लास
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें