मंगलवार, 11 मई 2021

सत्य का सार

तुच्छ मनुष्यों का स्वभाव होता है कि वे जिसका विरोध और बहिष्कार करते हैं ।
 तो उस पर आक्षेपों का धूल उड़ा देते हैं  भले ही उस में लाख गुण ही क्यों न हों ! 
जैसे सभा या महफिल से जाते हुए को फिर भी धकियाना ये रिवाज धूर्तों का पुराना  है।

इतिहास अपने वैपरीत्य को दोहराता है ।
जैसी मति वैसी गति और फिर परिस्थिति ।

राजपूतों सदियों से जुल्म किये अब जुल्म की इन्तहा है ।
आज बदलते हालात इस बात सी गवाह है ।।

विवेक और निर्णय सापेक्षिक रूप हैं जैसे चमक और प्रकाश संकल्प और आश ।
सुख और उल्लास

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