आचाराधेन तत्साम्याद्- आभीराश्च स्मृता इमे ।।
आभीरा: शूरजातीया गोमहिषादि वृत्तय: ।।
घोषादि शब्द पर्याया: पूर्वतो न्यूनतां गता: ।।९।।
भाषानुवाद–आचरण में आभीर भी वैश्यों के समान जाने जाते हैं । ये शूर जातीया होते हैं ।
तथा गाय भैस के पालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।
इन्हें घोष भी कहा जाता है ये पूर्व कथित वैश्यों से कुछ नयून माने जाते हैं ।९।।
किञ्चिद् अभीर तो न्यूनाश्च छागादि पशुवृत्तय:।
गोष्ठप्रान्त कृतावासा: पुष्टांगा गुर्जरा: महाबला: स्मृता :।।१०।
भाषानुवाद – अहीरों से कुछ हीन बकरी आदि पशुओं को पालन करने वाले तथा गोष्ठ की सीमा पर वास करने वाले गोप ही गुर्जर कहलाते हैं
ये भी प्राय हृष्ट-पुष्टांग वाले महाबली होते हैं ।१०।
वास्तव में उपर्युक्त रूप में वर्णित तथ्य की अहीर और गुर्जरों के यदुवंश से उत्पन्न होकर भी वैश्य और शूर वीर होने के हैं ।
गोपालन करने से ये से ही वैश्य होने के तथ्य
शास्त्र सम्मत व युक्ति- युक्त नहीं हैं ।
क्योंकि गाय तो राजा महाराजा और ऋषि मुनि भी पालते रहे हैं।
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सन्दर्भ ग्रन्थ -: वैष्णव ग्रन्थ श्रीश्रीराधागणोद्श्यदीपिका"
गोपाल चम्पू , श्री वृन्दावन चम्पू आदि-
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