रविवार, 23 मई 2021

वृष्णि गोप

कृष्ण  जी वृष्णि थे।
वृष्णि गोत्र अहीरो मे नही है ये कहने वाले महामूढ़मति हैं  ।
स्वयं भागवत पुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय के बासठ तिरेसठ वें श्लोकों में नन्द और वसुदेव को सजातीय वृष्णि वंशी कहा है ।

नन्दाद्या ये व्रजे गोपा याश्च आमीषां च योषितः ।
 वृष्णयो वसुदेवाद्या देवक्याद्या यदुस्त्रियः॥६२॥

सर्वे वै देवताप्राया उभयोरपि भारत ।
 ज्ञातयो बन्धुसुहृदो ये च कंसं अनुव्रताः॥६३॥
~श्रीमद्भागवतपुराणम्/स्कन्धः १०/पूर्वार्धः/अध्यायः १

परीक्षित् ! इधर भगवान् नारद कंस के पास आये और उससे बोले कि 'कंस ! व्रजमें रहनेवाले नन्द आदि गोप, उनकी स्त्रियां, वसुदेव आदि वृष्णिवंशी यादव, देवकी आदि यदुवंश की स्त्रियाँ और नन्द, वसुदेव दोनों सजातीय बन्धु- बान्धव और सगे-सम्बन्धी-सब- के-सब देवता है जो इस समय तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, वे भी देवता ही है। 

उन्होंने यह भी बतलाया कि "दुष्टों  के  कारण पृथ्वी का भार बढ़ गया है। इसीलिए देवताओं की और से अब उनके वध की तैयारी की जा रही है।


कृष्ण  के पास भैसो का उल्लेख  नही मिलता।
ग्वाल, गोपाल आदि गाय से सम्बंधित  शब्द है।

कुछ मूढ़मति कहते कि  इतिहासकार  टोड ने कहा कि  5 वी सदी मे अहीर इस देश मे बाहर से आये।
जोकि सिमिलर समान रहन सहन वाली ग्वाल जाति मे (इन्टरमिक्स )भीतर मिल गये हो गये।

मार्कण्डेय पुराण के मूर्ति रहस्य प्रकरण में आदि शक्ति की छः अंगभूत देवियों का वर्णन है उसमे से एक नाम नंदा का भी है:-
इस देवी की अंगभूता छ: देवियाँ हैं –१- नन्दा, २-रक्तदन्तिका, ३-शाकम्भरी, ४-दुर्गा, ५-भीमा और ६-भ्रामरी. ये देवियों की साक्षात मूर्तियाँ हैं, इनके स्वरुप का प्रतिपादन होने से इस प्रकरण को मूर्तिरहस्य कहते हैं...

दुर्गा सप्तशती में देवी दुर्गा को स्थान स्थान पर नंदा और नंदजा कहकर संबोधित किया है जिसमे की नंद आभीर की पुत्री होने से देवी को नंदजा कहा है-
 "नन्द आभीरेण जायते इति देवी नन्दा विख्यातम्"

                  ऋषिरुवाच
नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा।
सा स्तुता पूजिता ध्याता वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥१॥
~श्रीमार्कण्डेय पुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये
मूर्तिरहस्यं

अर्थ – ऋषि कहते हैं – राजन् ! नन्दा नाम की देवी जो नन्द से उत्पन्न होने वाली है, उनकी यदि भक्तिपूर्वक स्तुति और पूजा की जाए तो वे तीनों लोकों को उपासक के अधीन कर देती हैं|

आप को बता दें गर्ग संहिता, पद्म पुराण आदि ग्रन्थों में नन्द को आभीर कह कर सम्बोधित किया है:-

आभीरस्यापि नन्दस्य पूर्वं पुत्रः प्रकीर्तितः ॥
वसुदेवो मन्यते तं मत्पुत्रोऽयं गतत्रपः॥१४॥

~गर्गसंहिता/खण्डः ७ (विश्वजित्खण्डः)/अध्यायः ०७
इति श्रीगर्गसंहितायां श्रीविश्वजित्खण्डे श्रीनारदबहुलाश्वसंवादे गुर्जरराष्ट्राचेदिदेशगमनं नाम सप्तमोऽध्यायः ॥७॥

नारद और बहुलाक्ष ( मिथिला) के राजा में संवाद चलता है तब नारद बहुलाक्ष से  शिशुपाल और उद्धव के संवाद का वर्णन करते हैं 
 अर्थात् यहाँ संवाद में ही संवाद है 👇

अर्थ:- दमघोष पुत्र  शिशुपाल  उद्धव जी से कहता हैं कि कृष्ण वास्तव में नन्द अहीर का पुत्र है ।
उसे वसुदेव ने वरबस अपना पुत्र माने लिया है उसे इस बात पर तनिक भी लाज ( त्रप) नहीं आती है।

मैं फिलिस्तीन हूँ.... 1

मध्यपूर्व के एक छोटे से इलाके को फिलिस्तीन कहा जाता है। यहां के इतिहास की शुरुआत नवपाषाण काल से होती है।  लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य ईसा पूर्व 2000 से ही मिलते है जब बाहर के कबीलों और हमलावरों ने यहां अपने कदम रखे। तब इस क्षेत्र को कनान के नाम से जाना जाता था। ईसा से 2000 पहले कई कबीले उत्तर और पक्षिमोत्तर से आये। आगंतुकों में सबसे पहले हिकसास से परन्तु वे ईसा पूर्व 1600 के आसपास यहां से निकल दिए गए। नृवंशशास्त्रयों की खोजों के मुताबिक उसके बाद हित्तियों का आगमन हुआ।  उत्तर से दूसरे भी कई प्रवासी आये इनमे ईसा पूर्व  13 वीं सदी के उत्तरार्ध में फिलिस्तीनी आये जो ईजियन थे और यूनान व ईजियन दीपों से भगाए हुए थे। वे पश्चिम एशिया के समुद्र तट के किनारे से होते हुए आज के फिलिस्तीन इज़राइल केक्षेत्र में बस गए। इस क्षेत्र को फिलिस्तीन का नाम इन्हीं से मिला।
दूसरी ओर  ऐसा विश्वास किया जाता है कि ईसा पूर्व  19 सदी तक यानी चार हज़ार वर्ष पहले यहां अब्राहम आये थे जिसे मुस्लिम और ईसाई अपना पैगम्बर मानते हैं जब कि यहूदी अपना पहला पूर्व पुरुष मानते हैं।
जिसने भी बाइबल पढ़ा होगा, उसे पता है कि बाइबल में अब्राहम का जन्मस्थल आजका इराक है, जहां से वे भटक कर कनान यानी आज के फिलिस्तीन पहुचे थे। इसके बाद इसे पूर्व 13 सदी में मोजेज मुस्लिम मतानुसार पैगम्बर मूसा ने फिलिस्तीन के सिनाई क्षेत्र में 10 उपदेश दिए। लेकिन अभी तक यहां यहूदी, मुस्लिम ईसाई धर्म अलग अलग अस्तित्व नही था। बाद में इन्ही के 20 उपदेशों के आधार पर यहूदी धर्म की बुनियाद पड़ी। मिश्र के आठवें राजवंश के राजा टुटमॉस तृतीय ने ईसा पूर्व 1479 में पहली बार इस भुभाग पर कब्ज़ा किया। 
फिलिस्तीन और अरब- इज़राइल संघर्ष के लेखक महेंद्र मिश्र लिखते हैं कि इस क्षेत्र में यहूदियों के बसने की प्रक्रिया ईसा पूर्व 1150 से 850 के बीच हुई। यहूदी इतिहास के विशेषज्ञ सर लियोनार्ड क्ले, जिन्हों ने इराक के उर नामक स्थान के खोज कर अब्राहम का जन्मस्थ प्रमाणित किया है, के अनुसार  अब्राहम अपने साथ अपने पारिवारिक देवता को भी साथ लाये थे। उसी के आधार पर आस्थावश आगे चलकर एकेश्वरवादी धर्म जूड़ा, हिब्रू या यहूदी धर्म का जन्म हुआ।
यहां बसने वाले तमाम लोगों व खानाबदोशों ने खुद को कब अरब कहना शुरू किया यह स्पष्ट नहीं, परन्तु यह तय है कि ये भभाग फुंयाँ के तीन सबसे बड़े धर्मों का जन्मस्थल है। रोचक तथ्य ये है के इनमे अब्राहम यानी इब्राहीम अलै. मोजेज यानी मूसा अलै. यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के पैगम्बर मने जाते हैं। लेकिन फिलिस्तीनी व अन्य भी प्रारंभ से यहूदियत की बरबरियत का शिकार रहे है, जो स्वयं उनकी पवित्र किताबों में साफ साफ दर्ज है। इसका जिक्र रात की किश्त में।


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