रविवार, 5 सितंबर 2021

पीनियल है हमारे भावानुभूतियों का परावर्तक-

पीनियल ग्रंथि है हमारे भावानुभूतियों की परावर्तक- 

Pineal gland
Illu pituitary pineal glands.jpg

पीनियल ग्रंथि (जिसे पीनियल पिंडएपिफ़ीसिस सेरिब्रिएपिफ़ीसिस या "तीसरा नेत्र" भी कहा जाता है) पृष्ठवंशी  (कशेरुकीय )मस्तिष्क में स्थित एक छोटी-सी अंतःस्रावी ग्रंथि है। 

यह सेरोटोनिन और  मेलाटोनिन को पैदा करती है, जोकि जागने/सोने के क्रम  तथा मौसमी गतिविधियों का नियन्त्रण करने वाला हार्मोन है।

_________________

पीनियल ग्रन्थि का आकार एक छोटे से पाइन शंकु से मिलता-जुलता है (इसलिए तदनुसार नाम) और यह मस्तिष्क के केंद्र में दोनों गोलार्धों के मध्य, खांचे में सिमटी रहती है, जहां दोनों गोलकार चेतकीय पिंड जुड़ते हैं।


मानव में पीनियल ग्रंथी लाल-भूरे रंग की और लगभग चावल के दाने के बराबर आकार वाली (5-8 मि॰मी॰), ऊर्ध्व छोटे से उभार के ठीक पीछे, पार्श्विक चेतकीय पिंडों के बीच, स्ट्रैया मेड्युलारिस के पीछे अवस्थित है। यह अधिचेतक का हिस्सा है।

पीनियल ग्रंथि ऊर्ध्व नाड़ीग्रन्थि ग्रीवा से एक संवेदी तंत्रिका-प्रेरण प्राप्त करती है।

तथापि, स्फ़ीनोपैलाटिन और कर्णपरक कंडरापुटी से एक परासंवेदी तंत्रिका-प्रेरण भी मौजूद होता है।

 इसके अतिरिक्त, कुछ तंत्रिका तंतु पीनियल डंठल (केंद्रीय तंत्रिका-प्रेरण) के माध्यम से पीनियल ग्रंथी में घुसते हैं। अंततः, त्रिपृष्ठी नाड़ीग्रंथि के ऊतकों में विद्यमान न्यूरॉन इस ग्रंथि में उन तंत्रिका तंतुओं के साथ तंत्रिका-प्रेरण करते हैं, जिनमें न्यूरोपेप्टाइड, (PACAP) होता है। मानव के छोटे स्रावी कोशों में कॉर्पोरा अरेनेशिया (या "एसरवुली," या "ब्रेन सैंड" मस्तिष्क की वालुका) नामक किरकिरा पदार्थ होता है। रासायनिक विश्लेषण दर्शाता है कि यह पदार्थ कैल्शियम फ़ॉस्फ़ेट, कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम फ़ॉस्फ़ेट के मिश्रण से बना है।

__________

 विदित हो कि सन् 2002 ईस्वी  में, कैल्शियम कार्बोनेट के केल्साइट रूप के निक्षेपों को वर्णित किया गया था।

पीनियल ग्रंथि में कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरसऔर फ्लोराइड  निक्षेप को बढ़ती उम्र के साथ जोड़ा गया है।

मेलाटोनिन N-असीटाइल-5-मीथॉक्सी-ट्रिप्टमाइन है, जोकि एमिनो एसिड ट्रिप्टोफ़न से व्युत्पन्न है, केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली में कुछ अन्य कार्य भी करता है।

_______________

 पीनियल ग्रंथि द्वारा मेलाटोनिन हार्मोन का उत्पादन अंधेरे में  होता है और प्रकाश से अवरुद्ध होता है। 

दृष्टिपटल की प्रकाशसंवेदी कोशिकाएं प्रकाश का पता लगा लेती हैं और सीधे SCN को संकेत देती है, जहां उसका अनुक्रम 24 घंटों के प्राकृतिक चक्र से संबंध रखता है। SCN से निकले हुए तंतु परीनिलयी केंद्रक (PVN) तक जाते हैं, जो जैविक चक्रीय संकेतों को आगे सुषुम्ना नाड़ी तक  प्रेषित करते हैं। और संवेदी प्रणाली के माध्यम से आगे जाते हुए ऊर्ध्व ग्रीवा गंडिका (SCG) तक और वहां से पीनियल ग्रंथि तक जाते हैं। 

______________

मानव शरीर में पीनियल ग्रंथि की गतिविधि स्पष्ट नहीं है; आम तौर पर इसे जैवचक्रीय अनुक्रम निद्रा विकार के उपचार के लिए दिया जाता है।


तत्वमीमांसा और दर्शन  के अुसार -

पीनियल ग्रंथि की स्रावी गतिविधि को केवल सापेक्ष रूप में समझा जा सकता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, मस्तिष्क में गहरे स्थान पर उसकी अवस्थिति ने दार्शनिकों को इसके विशेष महत्व को सुझाया. इस संयोजन ने उसके अनुभूत क्रियाकलापों के कारण उसे मिथक, अंधविश्वास तथा इंद्रियातीत सिद्धांतों से जोड़ते हुए "रहस्यमयी" ग्रंथि मानने की ओर रुझान दिखाया है।

रेने डेसकार्टेस. मकमकम नामक विद्वान  ने,  पीनियल ग्रंथि के अध्ययन के लिए अपना अधिकांश समय समर्पित किया है,

 उन्होंने उसे "आत्मा का आसन" कहा. उनका मानना था कि यह शरीर और मन  के बीच का संगम-स्थल है। 

डेसकार्टेस द्वारा ऐसा मानने के कारण से संबंधित प्रासंगिक उद्धरण है, निम्न है ।

My view is that this gland is the principal seat of the soul, and the place in which all our thoughts are formed.

 The reason I believe this is that I cannot find any part of the brain, except this, which is not double. 

Since we see only one thing with two eyes, and hear only one voice with two ears, and in short have never more than one thought at a time, it must necessarily be the case that the impressions which enter by the two eyes or by the two ears, and so on, unite with each other in some part of the body before being considered by the soul.

 Now it is impossible to find any such place in the whole head except this gland; moreover it is situated in the most suitable possible place for this purpose, in the middle of all the concavities; and it is supported and surrounded by the little branches of the carotid arteries which bring the spirits into the brain.

 (29 जनवरी 1640, AT III:19–20, CSMK 143)


मेरा विचार है कि यह ग्रंथि आत्मा का प्रमुख आसन है, और वह स्थान जहाँ हमारे सभी विचार बनते हैं। मेरे ऐसा मानने का कारण यह है कि मुझे मस्तिष्क का कोई भी भाग नहीं मिल रहा है, सिवाय इसके, जो दोहरा नहीं है। चूँकि हम दो आँखों से केवल एक ही चीज़ देखते हैं, और दो कानों से केवल एक आवाज़ सुनते हैं, और संक्षेप में एक समय में एक से अधिक विचार कभी नहीं होते हैं, यह आवश्यक रूप से ऐसा होना चाहिए कि दोनों आँखों से या उसके द्वारा प्रवेश करने वाले प्रभाव दो कान, और इसी तरह, आत्मा द्वारा विचार किए जाने से पहले शरीर के किसी हिस्से में एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं। अब इस ग्रंथि को छोड़कर पूरे सिर में ऐसी कोई जगह मिलना असंभव है; इसके अलावा, यह इस उद्देश्य के लिए सबसे उपयुक्त संभावित स्थान पर, सभी अंतरालों के बीच में स्थित है; और यह कैरोटिड धमनियों की छोटी शाखाओं से समर्थित और घिरा हुआ है जो आत्माओं को मस्तिष्क में लाती हैं।[25] (२९ जनवरी १६४०, एटी ३:१९-२०, सीएसएमके १४३)

बारूक डी स्पिनोज़ा ने बाद में इसका खंडन किया:

For he [Descartes] maintained, that the soul or mind is specially united to a particular part of the brain, namely, to that part called the pineal gland, by the aid of which the mind is enabled to feel all the movements which are set going in the body, and also external objects, and which the mind by a simple act of volition can put in motion in various ways ... Such is the doctrine of this illustrious philosopher (in so far as I gather it from his own words); it is one which, had it been less ingenious, I could hardly believe to have proceeded from so great a man. Indeed, I am lost in wonder, that a philosopher, who had stoutly asserted, that he would draw no conclusions which do not follow from self-evident premisses, and would affirm nothing which he did not clearly and distinctly perceive, and who had so often taken to task the scholastics for wishing to explain obscurities through occult qualities, could maintain a hypothesis, beside which occult qualities are commonplace. What does he understand, I ask, by the union of the mind and the body? (Baruch de Spinoza, Ethics; part 5)[28]
_____________
 उन्होंने [डेसकार्टेस] ने कहा था, कि आत्मा या मन विशेष रूप से मस्तिष्क के एक विशेष भाग से जुड़ा हुआ है, अर्थात् उस भाग से जिसे पीनियल ग्रंथि कहा जाता है, जिसकी सहायता से मन उन सभी आंदोलनों को महसूस करने में सक्षम होता है जो निर्धारित हैं शरीर में जा रहा है, और बाहरी वस्तुओं को भी, और जिसे मन एक साधारण इच्छा से विभिन्न तरीकों से गति में डाल सकता है ... इस महान दार्शनिक का सिद्धांत ऐसा है (जहां तक ​​​​मैं इसे अपने शब्दों से इकट्ठा करता हूं) ); यह वह है, जो कम सरल था, मैं शायद ही विश्वास कर सकता था कि मैं इतने महान व्यक्ति से आगे बढ़ा हूं। वास्तव में, मैं आश्चर्य में खो गया हूं, कि एक दार्शनिक, जिसने दृढ़ता से दावा किया था, कि वह कोई निष्कर्ष नहीं निकालेगा जो स्वयं-स्पष्ट आधारों का पालन नहीं करता है, और किसी भी चीज की पुष्टि नहीं करेगा जिसे उसने स्पष्ट रूप से और स्पष्ट रूप से नहीं देखा था, और जिसने ऐसा किया था गूढ़ गुणों के माध्यम से अस्पष्टताओं की व्याख्या करने की इच्छा रखने वाले विद्वानों को अक्सर कार्य करने के लिए लिया जाता है, एक परिकल्पना को बनाए रख सकता है, जिसके अलावा गूढ़ गुण सामान्य हैं। मन और शरीर के मिलन से वह क्या समझता है, मैं पूछता हूँ? (बरुच डी स्पिनोज़ा, एथिक्स; भाग 5)[28]
___________

"पीनियल- के तीसरी आंख" की अवधारणा फ़्रांसीसी लेखक जार्जेस बटेल के दर्शन का केंद्र रही है, जिसे विद्वान साहित्यकार डेनिस होलियर ने अपने अध्ययन( अगेन्स्ट आर्किटेक्चर )में सविस्तार विश्लेषित किया।

इस रचना में होलियर ने चर्चा की कि कैसे बटेल ने "पीनियल आंख" की अवधारणा को पश्चिमी तर्क में एक अंध-बिंदु और अतिक्रमण तथा उन्माद के संदर्भ में प्रयोग किया।

 यह वैचारिक युक्ति उनके अतियथार्थवादी ग्रंथ (द जेसुवे और द पीनियल आई )में स्पष्ट रूप से वर्णित है।

क्या है सेरोटोनिन

सेरोटोनिन एक तरह का रसायन है, जो दिमाग में पाया जाता है। यह रसायन (अमीनो एसिड ट्रिप्टोफैन) से बना होता है। इस अमीनो एसिड को आप भोजन के जरिए भी ग्रहण कर सकते हैं।

 यह नट्स, पनीर और अलसी के बीज जैसे खाद्य पदार्थों में पाया जाता है। 

जब शरीर में ट्रिप्टोफैन की कमी होने लगती है, तो सेरोटोनिन का लेवल कम हो जाता है। इसी के कारण आप चिंता, अवसाद, तनाव ग्रस्त रहने लगते हैं। सेरोटोनिन को फील गुड  हार्मोन’ (सुखद अनुभूति श्राव)(Feel good hormone) भी कहा जाता है।

 सेरोटोटिन (Serotonin )आपके मूड, भूख, नींद, सीखने की  प्रवृत्ति और स्मरण संबंधी कार्यों को नियंत्रित करता है।






मस्तिष्क जन्तुओं के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण केन्द्र है। यह उनके आचरणों का नियमन एंव नियंत्रण करता है। स्तनधारी प्राणियों में मस्तिष्क सिर में स्थित होता है तथा खोपड़ी द्वारा सुरक्षित रहता है। यह मुख्य ज्ञानेन्द्रियों, आँखनाकजीभ और कान से जुड़ा हुआ, उनके करीब ही स्थित होता है। मस्तिष्क सभी रीढ़धारी प्राणियों में होता है परंतु अमेरूदण्डी प्राणियों में यह केन्द्रीय मस्तिष्क या स्वतंत्र गैंगलिया के रूप में होता है। कुछ जीवों जैसे निडारिया एंव तारा मछली में यह केन्द्रीभूत न होकर शरीर में यत्र तत्र फैला रहता है, जबकि कुछ प्राणियों जैसे स्पंज में तो मस्तिष्क होता ही नही है। उच्च श्रेणी के प्राणियों जैसे मानव में मस्तिष्क[मृत कड़ियाँ] अत्यंत जटिल होते हैं। मानव मस्तिष्क में लगभग १ अरब (१,००,००,००,०००) तंत्रिका कोशिकाएं होती है, जिनमें से प्रत्येक अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से १० हजार (१०,०००) से भी अधिक संयोग स्थापित करती हैं। मस्तिष्क सबसे जटिल अंग है।[1]

भारत की प्राचीन पाण्डुलिपियों में मस्तिष्क का चित्रण

मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है। बडे-बड़े तंत्रिकीय रोगों से निपटने के लिए आण्विक, कोशिकीय, आनुवंशिक एवं व्यवहारिक स्तरों पर मस्तिष्क की क्रिया के संदर्भ में समग्र क्षेत्र पर विचार करने की आवश्यकता को पूरी तरह महसूस किया गया है। एक नये अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्तिष्क के आकार से व्यक्तित्व की झलक मिल सकती है। वास्तव में बच्चों का जन्म एक अलग व्यक्तित्व के रूप में होता है और जैसे जैसे उनके मस्तिष्क का विकास होता है उसके अनुरुप उनका व्यक्तित्व भी तैयार होता है।[2]

मस्तिष्क (Brain), खोपड़ी (Skull) में स्थित है। यह चेतना (consciousness) और स्मृति (memory) का स्थान है। सभी ज्ञानेंद्रियों - नेत्र, कर्ण, नासा, जिह्रा तथा त्वचा - से आवेग यहीं पर आते हैं, जिनको समझना अर्थात् ज्ञान प्राप्त करना मस्तिष्क का काम्र है। पेशियों के संकुचन से गति करवाने के लिये आवेगों को तंत्रिकासूत्रों द्वारा भेजने तथा उन क्रियाओं का नियमन करने के मुख्य केंद्र मस्तिष्क में हैं, यद्यपि ये क्रियाएँ मेरूरज्जु में स्थित भिन्न केन्द्रो से होती रहती हैं। अनुभव से प्राप्त हुए ज्ञान को सग्रह करने, विचारने तथा विचार करके निष्कर्ष निकालने का काम भी इसी अंग का है।

मस्तिष्क की रचना

मस्तिष्क में ऊपर का बड़ा भाग प्रमस्तिष्क (hemispheres) कपाल में स्थित हैं। इनके पीछे के भाग के नचे की ओर अनुमस्तिष्क (cerebellum) के दो छोटे छोटे गोलार्घ जुड़े हुए दिखाई देते हैं। इसके आगे की ओर वह भाग है, जिसको मध्यमस्तिष्क या मध्यमस्तुर्लुग (midbrain or mesencephalon) कहते हैं। इससे नीचे को जाता हुआ मेरूशीर्ष, या मेदुला औब्लांगेटा (medulla oblongata), कहते है।

प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क झिल्लियों से ढके हुए हैं, जिनको तानिकाएँ कहते हैं। ये तीन हैं: दृढ़ तानिका, जालि तानिका और मृदु तानिका। सबसे बाहरवाली दृढ़ तानिका है। इसमें वे बड़ी बड़ी शिराएँ रहती हैं, जिनके द्वारा रक्त लौटता है। कलापास्थि के भग्न होने के कारण, या चोट से क्षति हो जाने पर, उसमें स्थित शिराओं से रक्त निकलकर मस्तिष्क मे जमा हो जाता है, जिसके दबाव से मस्ष्तिष्क की कोशिकाएँ बेकाम हो जाती हैं तथा अंगों का पक्षाघात (paralysis) हो जाता है। इस तानिका से एक फलक निकलकर दोनों गोलार्धो के बीच में भी जाता है। ये फलक जहाँ तहाँ दो स्तरों में विभक्त होकर उन चौड़ी नलिकाओं का निर्माण करते हैं, जिनमें से हाकर लौटनेवाला रक्त तथा कुछ प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भी लौटते है।

प्रमस्तिष्क

इसके दोनों गोलार्घो का अन्य भागों की अपेक्षा बहुत बड़ा होना मनुष्य के मस्तिष्क की विशेषता है। दोनों गोलार्ध कपाल में दाहिनी और बाईं ओर सामने ललाट से लेकर पीछे कपाल के अंत तक फैले हुए हैं। अन्य भाग इनसे छिपे हुए हैं। गोलार्धो के बीच में एक गहरी खाई है, जिसके तल में एक चौड़ी फीते के समान महासंयोजक (Corpus Callosum) नामक रचना से दोनों गोलार्ध जुरे हुए हैं। गोलार्धो का रंग ऊपर से घूसर दिखाई देता है।

गोलार्धो के बाह्य पृष्ठ में कितने ही गहरे विदर बने हुए हैं, जहाँ मस्तिष्क के बाह्य पृष्ठ की वस्तु उसके भीतर घुस जाती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो पृष्ठ पर किसी वस्तु की तह को फैलाकर समेट दिया गया है, जिससे उसमें सिलवटें पड़ गई हैं। इस कारण मस्तिष्क के पृष्ठ पर अनेक बड़ी छोटी खाइयाँ बन जाती हैं, जो परिखा (Sulcus) कहलाती हैं। परिखाओं के बीच धूसर मस्तिष्क पृष्ठ के मुड़े हुए चक्रांशवतद् भाग कर्णक (Gyrus) कहलाते हैं, क्योंकि वे कर्णशुष्कली के समान मुडे हुए से हैं। बडी और गहरी खाइयॉ विदर (Fissure) कहलाती है और मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को पृथक करती है। मस्तिष्क के सामने, पार्श्व तथा पीछे के बड़े-बड़े भाग को उनकी स्थिति के अनुसार खांड (Lobes) तथा खांडिका (Lobules) कहा गया है। गोलार्ध के सामने का खंड ललाटखंड (frontal lobe) है, जो ललाटास्थि से ढँका रहता है। इसी प्रकार पार्श्विका (Parietal) खंड तथा पश्चकपाल (Occipital) खंड तथा शंख खंड (temporal) हैं। इन सब पर परिशखाएँ और कर्णक बने हुए हैं। कई विशेष विदर भी हैं। चित्र 2. और 3 में इनके नाम और स्थान दिखाए गए हैं। कुछ विशिष्ट विदरों तथा परिखाओं की विवेचना यहाँ की जाती है। पार्शिवक खंड पर मध्यपरिखा (central sulcus), जो रोलैडो का विदर (Fissure of Rolando) भी कहलाती है, ऊपर से नीचे और आगे को जाती है। इसके आगे की ओर प्रमस्तिष्क का संचालन भाग है, जिसकी क्रिया से पेशियाँ संकुचित होती है। यदि वहाँ किसी स्थान पर विद्युतदुतेजना दी जाती है तो जिन पेशियों को वहाँ की कोशिकाओं से सूत्र जाते हैं उनका संकोच होने लगता है। यदि किसी अर्बुद, शोथ दाब आदि से कोशिकाएँ नष्ट या अकर्मणय हो जाती हैं, तो पेशियाँ संकोच नहीं, करतीं। उनमें पक्षघात हो जाता है। दस विदर के पीछे का भाग आवेग क्षेत्र है, जहाँ भिन्न भिन्न स्थानों की त्वचा से आवेग पहुँचा करते हैं। पीछे की ओर पश्चकपाल खंड में दृष्टिक्षेत्र, शूक विदर (calcarine fissure) दृष्टि का संबंध इसी क्षेत्र से है। दृष्टितंत्रिका तथा पथ द्वारा गए हुए आवेग यहाँ पहुँचकर दृष्ट वस्तुओं के (impressions) प्रभाव उत्पन्न करते हैं।

नीचे की ओर शंखखंड में विल्वियव के विदर के नीचे का भाग तथा प्रथम शंखकर्णक श्रवण के आवेगों को ग्रहण करते हैं। यहाँ श्रवण के चिह्रों की उत्पत्ति होती है। यहाँ की कोशिकाएँ शब्द के रूप को समझती हैं। शंखखंड के भीतरी पृष्ठ पर हिप्पोकैंपी कर्णक (Hippocampal gyrus) है, जहाँ गंध का ज्ञान होता है। स्वाद का क्षेत्र भी इससे संबंधित है। गंध और स्वाद के भाग और शक्तियाँ कुछ जंतुओं में मनुष्य की अपेक्षा बहुत विकसित हैं। यहीं पर रोलैंडो के विदर के पीछे स्पर्शज्ञान प्राप्त करनेवाला बहुत सा भाग है।

ललाटखंड अन्य सब जंतुओं की अपेक्षा मनुष्य में बढ़ा हुआ है, जिसके अग्रिम भाग का विशेष विकास हुआ है। यह भाग समस्त प्रेरक और आवेगकेंद्रों से संयोजकसूत्रों (association fibres) द्वारा संबद्ध है, विशेषकर संचालक क्षेत्र के समीप स्थित उन केंद्रों से, जिनका नेत्र की गति से संबंध है। इसलिये यह माना जाता है कि यह भाग सूक्ष्म कौशलयुक्त क्रियाओं का नियमन करता है, जो नेत्र में पहुँचे हुए आवेगों पर निर्भर करती हैं और जिनमें स्मृति तथा अनुभाव की आवश्यकता होती है। मनुष्य के बोलने, लिखने, हाथ की अँगुलियों से कला की वस्तुएँ तैयार करने आदि में जो सूक्ष्म क्रियाएँ होती हैं, उनका नियंत्रण यहीं से होता है।

प्रमस्तिष्क उच्च भावनाओं का स्थान माना जाता है। मनुष्य के जो गुण उसे पशु से पृथक् कते हैं, उन सबका स्थान प्रमस्तिष्क है।

पार्श्व निलय (Lateral Ventricles) - यदि गोलार्धो को अनुप्रस्थ दिशा में काटा जाय तो उसके भीतर खाली स्थान या गुहा मिलेगी। दोनों गोलार्धो में यह गुहा है, जिसको निलय कहा जाता है। ये गोलार्धो के अग्रिम भाग ललाटखंड से पीछे पश्चखंड तक विस्तृत हैं। इनके भीतर मस्तिष्क पर एक अति सूक्ष्म कला आच्छादित है, जो अंतरीय कहलाती है। मृदुतानिका की जालिका दोनों निलयों में स्थित है। इन गुहाओं में प्रमस्तिष्क मेरूद्रव भरा रहता है, जो एक सूक्ष्म छिद्र क्षरा, जिसे मुनरो का छिद्र (Foramen of Munro) कहते हैं, दृष्टिचेतकां (optic thalamii) के बीच में स्थित तृतीय निलय में जाता रहता है।

____________________

प्रमस्तिष्क प्रांतस्था (Cerebral Cortex)- प्रमस्तिष्क के पृष्ठ पर जो धूसर रंग के पदार्थ का मोटा स्तर चढ़ा हुआ है, वह प्रांतस्था कहलाता है। इसके नीचे श्वेत रंग का अंतस्थ (medulla) भाग है। उसमें भी जहाँ तहाँ धूसर रंग के द्वीप और कई छोटी छोटी द्वीपिकाएँ हैं। इनको केंद्रक (nucleus) कहा जाता है।

प्रांतस्था स्तर विशेषकर तंत्रिका कोशिकाओं का बना हुआ है, यद्यपि उसमें कोशिकाओं से निकले हुए सूत्र और न्यूरोम्लिया नामक संयोजक ऊतक भी रहते हैं, किंतु इस स्तर में कोशिकाओं की ही प्रधानता होती है।

स्वयं प्रांतस्था में कई स्तर हाते हैं। सूत्रों के स्तर में दो प्रकार के सूत्र हैं: एक वे जो भिन्न भिन्न केंद्रों को आपस में जोड़े हुए हैं (इनमें से बहुत से सूत्र नीचे मेरूशीर्ष या मे डिग्री के केंद्रों तथा अनुमस्तिष्क से आते हैं, कुछ मस्तिष्क ही में स्थित केंद्रों से संबंध स्थापित करते हैं); दूरे वे सत्र हैं जे वहाँ की कोशिकाओं से निकलकर नीचे अंत:-संपुट में चे जाते हैं और वहाँ पिरामिडीय पथ (pyramidial tract) में एकत्र हाकर मे डिग्री में पहुँचते हैं।

मनुष्य तथा उच्च श्रेणी के पशुओं, जैसे एप, गारिल्ला आदि में, प्रांतस्था में विशिष्ट स्तरों का बनना विकास की उन्नत सीमा का द्योतक है। निम्न श्रेणी के जंतुओं में न प्रांतस्था का स्तरीभवन ही मिलता है और न प्रमस्तिष्क का इतना विकास होता है।

अंततस्था - यह विशेषतया प्रांतस्था की काशिकाओं से निकले हुए अपवाही तथा उनमें जनेवाले अभिवाही सूत्रों का बना हुआ है। इन सूत्रपुंजों के बीच काशिकाओं के समूह जहाँ तहाँ स्थित हैं और उनका रंग धूसर है। अंंतस्था श्वेत रंग का है।

अनुमस्तिष्क

मस्तिष्क के पिछले भाग के नीचे अनुमस्तिष्क स्थित है। उसके सामने की ओर मघ्यमस्तिष्क है, जिसके तीन स्तंभों द्वारा वह मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है। बाह्य पृष्ठ धूसर पदार्थ से आच्छादित होने के कारण इसका रंग भी धूसर है और प्रमस्तिष्क की ही भाँति उसके भीतर श्वेत पदार्थ है। इसमें भी दो गोलार्ध हैं, जिनका काटने से बीच में श्वेत रंग की, वृक्ष की शाखाओं की सी रचना दिखाई देती है। अनुमस्तिष्क में विदरों के गहरे होने से वह पत्रकों (lamina) में विभक्त हे गया है। ऐसी रचना प्रशाखारूपिता (Arber vitae) कहलाती है।

अनुमस्तिष्क का संबंध विशेषकर अंत:कर्ण से और पेशियों तथा संधियों से है। अन्य अंगों से संवेदनाएँ यहाँ आती रहती हैं। उन सबका सामंजस्य करना इस अंग का काम है, जिससे अंगों की क्रियाएँ सम रूप से होती रहें। शरीर को ठीक बनाए रखना इस अंग का विशेष कर्म है। जिन सूत्रों द्वारा ये संवेग अनुमतिष्क की अंतस्था में पहुँचते हैं, वे प्रांतस्था से गोलार्ध के भीतर स्थित दंतुर केंद्रक (dentate nucleus) में पहुँचते हैं, जो घूसर पदार्थ, अर्थात् कोशिकाओं, का एक बड़ा पुंज है। वहाँ से नए सूत्र मध्यमस्तिष्क में दूसरी ओर स्थित लाल केंद्रक (red nucleus) में पहुँचते हैं। वहाँ से संवेग प्रमस्तिष्क में पहुँच जाते हैं।

मध्यमस्तिष्क (Mid-brain)

अनुमस्तिष्क के सामने का ऊपर का भाग मध्यमस्तिक और नीचे का भाग मेरूशीर्ष (Medulla oblongata) है। अनुमस्तिष्क और प्रमस्तिष्क का संबंध मध्यमस्तिष्क द्वारा स्थापित होता है। मघ्यमस्तिष्क में होते हुए सूत्र प्रमस्तिष्क में उसी ओर, या मध्यरेखा को पार करके दूसरी ओर को, चले जाते हैं।

मध्यमस्तिष्क के बीच में सिल्वियस की अणुनलिका है, जो तृतिय निलय से चतुर्थ निलय में प्रमस्तिष्क मेरूद्रव को पहुँचाती है। इसके ऊपर का भाग दो समकोण परिखाओं द्वारा चार उत्सेधों में विभक्त है, जो चतुष्टय काय या पिंड (Corpora quadrigemina) कहा जाता है। ऊपरी दो उत्सेधों में दृष्टितंत्रिका द्वारा नेत्र के रेटिना पटल से सूत्र पहुँचते हैं। इन उत्सेधों से नेत्र के तारे में होनेवाली उन प्रतिवर्त क्रियाओं का नियमन होता है, जिनसे तारा संकुचित या विस्तृत होता है। नीचे के उत्सेधों में अंत:कर्ण के काल्कीय भाग से सूत्र आते हैं और उनके द्वारा आए हुए संवेगों को यहाँ से नए सूत्र प्रमस्तिष्क के शंखखंड के प्रतिस्था में पहुँचाते हैं।

मेरूरज्जु से अन्य सूत्र भी मध्यमस्तिष्क में आते हैं। पीड़ा, शीत, उष्णता आदि के यहाँ आकर, कई पुंजो में एकत्र होकर, मेरूशीर्ष द्वारा उसी ओर को, या दूसरी ओर पार होकर, पौंस और मध्यमस्तिष्क द्वारा थैलेमस में पहुँचते हैं और मस्तिष्क में अपने निर्दिष्ट केंद्र को, या प्रांतस्या में, चले जाते हैं।

अणुनलिका के सामने यह नीचे के भाग द्वारा भी प्रेरक तथा संवेदनसूत्र अनेक भागों को जाते हैं। संयोजनसूत्र भी यहाँ पाए जाते हैं।

पौंस वारोलिआइ (Pons varolii)- यह भाग मेरूशीर्ष और मध्यमस्तिष्क के बीच में स्थित है और दोनों अनुमस्तिष्क के गोलार्धों को मिलाए रहता है। चित्र में यह गोल उरूत्सेध के रूप में सामने की ओर निकला हुआ दिखाई देता है। मस्तिष्क की पीरक्षा करने पर उसपर अनुप्रस्थ दिशा में जाते हुए सूत्र छाए हुए दिखाई देते हैं। ये सूत्र अंत:संपुट और मध्यमस्तिष्क से पौंस में होते हुए मेरूशीर्ष में चले जाते हैं। सब सूत्र इतने उत्तल नहीं हैं। कुछ गहरे सूत्र ऊ पर से आनेवाले पिरामिड पथ के सूत्रों के नीचे रहते हैं। पिरामिड पथों के सूत्र विशेष महत्व के हैं, जो पौंस में होकर जाते हैं। अन्य कई सूत्रपुंज भी पौंस में होकर जाते हैं, जो अनुदैर्ध्य, मध्यम और पार्श्व पंज कहलाते हैं। इस भाग में पाँचवीं, छठी, सातवीं और आठवीं तंत्रिकाओं के केंद्रक स्थित हैं।

मेरूशीर्ष (Medulla oblongata) - देखने से यह मे डिग्री का भाग ही दिखाई देता है, जो ऊपर जाकर मध्यमस्तिष्क और पौंस में मिल जाता है; किंतु इसकी रचना मेरूरज्जु से भिन्न है। इसके पीछे की ओर अनुमस्तिष्क है। यहाँ इसका आकार मेरुरज्जु से दुगना हो जाता है। इसके चौड़े और चपटे पृष्ठभाग पर एक चौकोर आकार का खात बन गया है, जिसपर एक झिल्ली छाई रहती है। यह चतुर्थ निलय (Fourth ventricle) कहलाता है, जिसमें सिलवियस की नलिका द्वारा प्रमस्तिष्क मेरूद्रव आता रहता है। इसके पीछे की ओर अनुमस्तिष्क है।

मेरूशीर्षक अत्यंत महत्व का अंग है। हृत्संचालक केंद्र, श्वासकेंद्र तथा रक्तसंचालक केन्द्र चतुर्थ निलय में निचले भाग में स्थित हैं, जो इन क्रियाओं का नियंत्रण करते हैं। इसी भाग में आठवीं, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं मस्तिष्कीय तंत्रिकाओं के केन्द्र भी स्थित हैं। यह भाग प्रमस्तिष्क, अनुमस्तिष्क तथा मध्यमस्तिष्क से अनेक सूत्रों द्वारा जुड़ा हुआ है और अनेक सूत्र मेरूरज्जु में जाते और वहाँ से आते हैं। ये सूत्र पुंजों में समूहित हैं। ये विशेष सूत्रपुंज हैं:

1. पिरामिड पथ (Pyramidal tract), 2. मध्यम अनुदैर्ध्यपुंज (Median Longitudinal bundles), तथा 3. मध्यम पुंजिका (Median filler)।

पिरामिड पथ में केवल प्रेरक (motor) सूत्र हैं, जो प्रमस्तिष्क के प्रांतस्था की प्रेरक कोशिकाओं से निकलकर अंत:संपुट में होते हुए, मध्यमस्तिष्क और पौंस से निकलकर, मेरूशीर्षक में आ जाते हैं और दो पुंजों में एकत्रित होकर रज्जु की मध्य परिखा के सामने और पीछे स्थित होकर नीचे को चले जाते हैं। नीचे पहुँचकर कुछ सूत्र दूसरी ओर पार हो जाते हैं और कुछ उसी ओर नीचे जाकर तब दूसरी ओर पार होते हैं, किंतु अंत में सस्त सूत्र दूसरी ओर चले जाते हैं। जहाँ वे पेशियों आदि में वितरित होते हैं। इसी कारण मस्तिष्क पर एक ओर चोट लगने से, या वहाँ रक्तस्राव होने से, उस ओर की कोशिकाआं के अकर्मणय हो जाने पर शरीर के दूसरी ओर की पेशियों का संस्तंभ होता है।

मध्यम अनुदैर्ध्य पुंजों के सूत्र मघ्यमस्तिष्क और पौंस में होते हुए मेरूशीर्ष में आते हैं और कई तंत्रिकाआं के केंद्र को उस ओर तथा दूसरी ओर भी जोड़ते हैं, जिससे दोनों ओर की तंत्रिकाओं की क्रियाओं का नियमन सभव होता है।

'मध्यम पुंजिका में केवल संवेदन सूत्र हैं। चह पुंजिका उपर्युक्त दोनों पुंजों के बीच में स्थित है। ये सूत्र मेरुरज्जु से आकर, पिरामिड सूत्रों के आरपार होने से ऊपर जाकर, दूसरी ओर के दाहिने सूत्र बाईं ओर और वाम दिशा के सूत्र दाहिनी ओर को प्रमस्तिष्क में स्थित केंद्रो में चले जाते हैंं



न्यूरोबायोलॉजिकल सिद्धांत 

मस्तिष्क संरचना की तंत्रिकाओं की मैपिंग से मिली जानकारी से, मानव भावनाओं की न्यूरोबायोलॉजिकल व्याख्या यह है कि भावना एक प्रिय या अप्रिय स्थिति है जोस्तनधारी के मस्तिष्क में पैदा होती है। यदि इसकी सरीसृपों से तुलना की जाये तो भावनाओं का विकास, सामान्य हड्डियों वाले जंतु का स्तनधारी के रूप में बदलने के समान होगा, जिनमेंं न्यूरोकैमिकल (उदाहरण के लिए डोपामाइन, नोराड्रेनेलिन और सेरोटोनिन) में मस्तिष्क की गतिविधि के स्तर के अनुसार उतार-चढ़ाव आता है, जो कि शरीर के हिलने डुलने, मनोभावों तथा मुद्राओं में परिलक्षित होता है।

उदाहरण के लिए, प्यार की भावना को स्तनधारी के मस्तिष्क के पेलियोसर्किट की अभिव्यक्ति माना जाता है (विशेष रूप से सिंगुलेट जाइरस मॉड्यूल की), जिससे देखभाल, भोजन कराने और सोंदर्य जैसी भावनाओं का बोध होता है। पेलियोसर्किट शारीरिक भावनाओं को तंत्रिकाओं द्वारा प्रदर्शित करने का माध्यम है जो बोलने के लिए बनी कोर्टिकल तंत्रिका से लाखों वर्ष पहले बनी थी। इसमें पहले से बने हुए रास्ते या मस्तिष्क के अगले हिस्से, ब्रेन स्टेम तथा मेरु रज्जुमें तंत्रिका कोशिकाओं का जाल होता है। इनका उदभव क्रियाएं नियंत्रित करने के लिए स्तनधारियों के पूर्वजों से भी पहले हुआ है, लगभग जबड़ेरहित मछली के समय के आस पास.

माना जाता है कि, स्तनधारी के मस्तिष्क के विकसित होने से पहले, जानवरों की ज़िन्दगी, स्वचालित, सचेत और नपी तुली थी। सरीसृपों का शरीर दृष्टि के संवेदी संकेतों, आवाज़, स्पर्श, रसायन, गुरुत्वाकर्षण के प्रति, पूर्व निर्धारित शरीर क्रियाओं और मुद्राओं के साथ प्रतिक्रिया करता है। रात में सक्रिय होने वाले स्तनधारियों के आगमन के साथ, लगभग 180 मिलियन वर्ष पहले, गंध ने एक प्रभावी तंत्रिका के रूप में दृष्टि का स्थान ले लिया और सूंघने वाली तंत्रिका के माध्यम से प्रतिक्रिया करने के और रास्ते बने, जो कि माना जाता है कि आगे चल कर स्तनधारियों की भावनाओं और भावनात्मक याददाश्त के रूप में विकसित हुए. जुरासिक काल में, स्तनधारियों ने सरीसृपों की तुलना में अपनी सूंघने की क्षमता का सफलतापूर्वक उपयोग किया - इसीलिए स्तनधारियों के मस्तिष्क कीघ्राण तंत्रिका का भाग सरीसृपों की तुलना में बड़ा होता है। ये गंध धीरे धीरे तंत्रिकाओं का खाका बनाती गयीं जिससे आगे चल कर हमारे मस्तिष्क की संरचना बनी.

माना जाता है कि भावनाएं मस्तिष्क के उस क्षेत्र की कार्यशीलता से संबंधित है जो हमें निर्देश देता है, हमारे व्यवहार को प्रेरित करता है और हमारे इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं के महत्त्व की व्याख्या करता है। ब्रोका (1878), पेपेज़ (1937) और मैक्लीन (1952) की महत्वपूर्ण खोजें बताती हैं कि भावनाएं मस्तिष्क के मध्य में संरचनाओं के समूह से जुड़ी होती है, जिसे लिम्बिक सिस्टम कहते हैं, जिसमे हाइपोथालामस, सिंगुलेट कोर्टेक्स, हिप्पोकाम्पि और अन्य संरचनाएं शामिल हैं। हाल ही में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि इसमें से कुछ लिम्बिक संरचनाएं, दूसरों के विपरीत, भावनाओं से उस तरह से सीधी नहीं जुड़ी हैं जबकि कुछ गैर लिम्बिक संरचनाएं अधिक महत्व की पाई गयीं हैं।

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स 

इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि बांया प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स उस उत्तेजना से क्रियाशील होता है जो सकारात्मक सोच से उत्पन्न होती है।[6] यदि आकर्षक उत्तेजना मस्तिष्क के चुनिंदा हिस्से को सक्रिय कर पाए तो तर्क पूर्ण ढंग से उल्टा होना चाहिए, अर्थात अधिक सकारात्मक ढंग से निर्णय लेने के लिए मस्तिष्क के उस हिस्से की चुनिंदा क्रियाशीलता को उत्तेजना उत्पन्न करनी चाहिए. इसका प्रदर्शन माध्यम आकर्षण वाले उत्तेजक दृश्यों[7] के साथ किया गया था और बाद में इसका विस्तार करके नकारात्मक उत्तेजना को शामिल करके इसे दोहराया गया।[8]

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में न्यूरोबायोलॉजिकल मॉडलों ने भावनाओं के दो विपरीत परिणाम बताए. वैलेंस मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, जो एक नकारात्मक भावना है, दाहिने प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स को क्रियाशील करेगा. डायरेक्शन मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, एक दृष्टिकोण की भावना है, अतः बाएँ प्रीफ्रंटल को क्रियाशील करेगा. दूसरे मॉडल को समर्थन मिला ।[9]

हालांकि अभी भी कई सवाल अनुत्तरित हैं कि प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में दृष्टिकोण की बेहतर विपरीत परिभाषा क्या है, दूर जाना (डायरेक्शन मॉडल), बिना किसी प्रतिक्रिया के, किन्तु ताकत तथा प्रतिरोध (मूवमेंट मॉडल) या बिना किसी प्रतिक्रिया के निष्क्रिय परिणाम (एक्शन टेंडेंसी मॉडल). शर्माने[10] तथा व्यवहार संबंधित बाधाओं[11] पर हुए शोधों से एक्शन टेंडेंसी मॉडल को समर्थन मिला है (निष्क्रियता दाहिने प्रीफ्रंटल की क्रियाशीलता से संबंधित है। सभी चारों मॉडलों द्वारा उत्पन्न विपरीत तथ्यों की जांच करने वाले शोधों ने भी एक्शन टेंडेंसी मॉडल का समर्थन किया है।[12][13]

होम्योस्टेटिक भावनाएं 

एक और स्नायविक दृष्टिकोण, जो 2003 में बड क्रेग द्वारा वर्णित किया गया, भावनाओं की दो श्रेणियों के बीच का अंतर बताता है। "प्राचीन भावनाओं" में वासना, क्रोध और डर शामिल है और वे वातावरण के उन कारकों से उत्पन्न होते हैं, जो हमें प्रेरित करते हैं। (उपरोक्त उदाहरणों में मैथुन/हिंसा/भागना). "होम्योस्टेटिक भावनाएं" शरीर की आंतरिक अवस्था द्वारा उत्पन्न ज़ज्बात हैं, जो हमारे व्यवहार को व्यवस्थित करते हैं। प्यास, भूख, गर्म या ठंडा अनुभव करना (आंतरिक तापमान), नींद से वंचित महसूस करना, नमक खाने की इच्छा तथा हवा की इच्छा, ये सभी होम्योस्टेटिक भावनाओं के उदाहरण हैं; इनमें से प्रत्येक शारीरिक प्रणाली द्वारा दिया गया संकेत है जो कहता है कि "सब कुछ ठीक नहीं है। पियो/खाओ/छाया में जाओ/कुछ गरम पहनो/सो जाओ/नमकीन टुकड़ा चाटो/सांस लो." इसमें से किसी भी प्रणाली का संतुलन खराब होने पर, हम होम्योस्टेटिक भावना का अनुभव करने लगते हैं और यह भावना हमें वही कराती है, जो उस प्रणाली का संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। दर्द एक होम्योस्टेटिक भावना है जो हमें बताती है "सब कुछ ठीक नहीं है। पीछे हटो और बचो"।[14][15]

संज्ञानात्मक सिद्धांत

कुछ ऐसे सिद्धांत हैं जो तर्क देते हैं कि, संज्ञानात्मक क्रिया - एक निर्णय, मूल्यांकन या विचार - किसी भावना को उत्पन्न करने के लिए आवश्यक है। रिचर्ड लॉरस के अनुसार यह इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए आवश्यक है कि भावना किसी चीज़ के बारे में या जानबूझ कर पैदा होती है। इस प्रकार की संज्ञानात्मक क्रिया चेतन या अवचेतन हो सकती हैं तथा वैचारिक प्रक्रिया का रूप ले सकती है या नहीं ले सकती है।

यहाँ लॉरस का एक प्रभावशाली सिद्धांत है : भावना एक बाधा है जो निम्न क्रम में उत्पन्न होती है : 1.) संज्ञानात्मक मूल्यांकन-व्यक्ति उस घटना का तर्कपूर्ण आकलन करता है जो भावना को इंगित करती है। 2. शारीरिक बदलाव - संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप जैविक बदलाव होते हैं, जैसे, दिल की धड़कन का बढ़ना या पिट्यूटरी एड्रिनिल की प्रतिक्रिया. 3. क्रिया - व्यक्ति भावना को अनुभव करता है और प्रतिक्रिया चुनता है। उदाहरण के लिए: जेनी एक साँप देखती है। 1.) जेनी सांप को देखती है, जिसके कारण उसे डर लगता है 2.) उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगता है। एड्रिलिन का रक्त में प्रवाह तेज़ हो जाता है। 3. जेनी चिल्लाती है और भाग जाती है। लॉरस ज़ोर देकर कहते हैं कि भावनाओं की गुणवत्ता और तीव्रता को संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये प्रतिक्रियाएं बचाव रणनीति बनाती हैं जो व्यक्ति और उसके वातावरण के बदलाव के अनुसार भावनात्मक प्रतिक्रिया बनती है।

भावनाओं से संबंधित कुछ सिद्धांत ये तर्क देते हैं कि भावना के उत्पन्न होने के लिए निर्णय, मूल्यांकन या विचारों के रूप में संज्ञानात्मक क्रिया आवश्यक है। एक प्रमुख दार्शनिक व्याख्याता राबर्ट सी.सोलोमन हैं (उदाहरण के लिए, द पैशन, इमोशन एंड द मीनिंग ऑफ लाइफ, 1993). इसका दूसरा उदाहरण है, निको फ्रिज्दा द्वारा प्रस्तावित एक सिद्धांत जिसके अनुसार मूल्याकन की वजह से प्रवृत्तियां घटित होती है। यह सुझाव भी दिया गया है कि भावनाएं (अनुभव के ज्ञान, जज्बातों और आन्तरिक प्रतिक्रियाओं को प्रभावित करती है) आमतौर पर सूचना को क्रियान्वित करने तथा व्यवहार को प्रभावित करने के लिए शॉर्टकट की तरह प्रयुक्त होती हैं।[16]

अवधारणात्मक सिद्धांत



न्यूरोबायोलॉजिकल सिद्धांतसंपादित करें

मस्तिष्क संरचना की तंत्रिकाओं की मैपिंग से मिली जानकारी से, मानव भावनाओं की न्यूरोबायोलॉजिकल व्याख्या यह है कि भावना एक प्रिय या अप्रिय स्थिति है जोस्तनधारी के मस्तिष्क में पैदा होती है। यदि इसकी सरीसृपों से तुलना की जाये तो भावनाओं का विकास, सामान्य हड्डियों वाले जंतु का स्तनधारी के रूप में बदलने के समान होगा, जिनमेंं न्यूरोकैमिकल (उदाहरण के लिए डोपामाइन, नोराड्रेनेलिन और सेरोटोनिन) में मस्तिष्क की गतिविधि के स्तर के अनुसार उतार-चढ़ाव आता है, जो कि शरीर के हिलने डुलने, मनोभावों तथा मुद्राओं में परिलक्षित होता है।

उदाहरण के लिए, प्यार की भावना को स्तनधारी के मस्तिष्क के पेलियोसर्किट की अभिव्यक्ति माना जाता है (विशेष रूप से सिंगुलेट जाइरस मॉड्यूल की), जिससे देखभाल, भोजन कराने और सोंदर्य जैसी भावनाओं का बोध होता है। पेलियोसर्किट शारीरिक भावनाओं को तंत्रिकाओं द्वारा प्रदर्शित करने का माध्यम है जो बोलने के लिए बनी कोर्टिकल तंत्रिका से लाखों वर्ष पहले बनी थी। इसमें पहले से बने हुए रास्ते या मस्तिष्क के अगले हिस्से, ब्रेन स्टेम तथा मेरु रज्जुमें तंत्रिका कोशिकाओं का जाल होता है। इनका उदभव क्रियाएं नियंत्रित करने के लिए स्तनधारियों के पूर्वजों से भी पहले हुआ है, लगभग जबड़ेरहित मछली के समय के आस पास.

माना जाता है कि, स्तनधारी के मस्तिष्क के विकसित होने से पहले, जानवरों की ज़िन्दगी, स्वचालित, सचेत और नपी तुली थी। सरीसृपों का शरीर दृष्टि के संवेदी संकेतों, आवाज़, स्पर्श, रसायन, गुरुत्वाकर्षण के प्रति, पूर्व निर्धारित शरीर क्रियाओं और मुद्राओं के साथ प्रतिक्रिया करता है। रात में सक्रिय होने वाले स्तनधारियों के आगमन के साथ, लगभग 180 मिलियन वर्ष पहले, गंध ने एक प्रभावी तंत्रिका के रूप में दृष्टि का स्थान ले लिया और सूंघने वाली तंत्रिका के माध्यम से प्रतिक्रिया करने के और रास्ते बने, जो कि माना जाता है कि आगे चल कर स्तनधारियों की भावनाओं और भावनात्मक याददाश्त के रूप में विकसित हुए. जुरासिक काल में, स्तनधारियों ने सरीसृपों की तुलना में अपनी सूंघने की क्षमता का सफलतापूर्वक उपयोग किया - इसीलिए स्तनधारियों के मस्तिष्क कीघ्राण तंत्रिका का भाग सरीसृपों की तुलना में बड़ा होता है। ये गंध धीरे धीरे तंत्रिकाओं का खाका बनाती गयीं जिससे आगे चल कर हमारे मस्तिष्क की संरचना बनी.

माना जाता है कि भावनाएं मस्तिष्क के उस क्षेत्र की कार्यशीलता से संबंधित है जो हमें निर्देश देता है, हमारे व्यवहार को प्रेरित करता है और हमारे इर्द गिर्द होने वाली घटनाओं के महत्त्व की व्याख्या करता है। ब्रोका (1878), पेपेज़ (1937) और मैक्लीन (1952) की महत्वपूर्ण खोजें बताती हैं कि भावनाएं मस्तिष्क के मध्य में संरचनाओं के समूह से जुड़ी होती है, जिसे लिम्बिक सिस्टम कहते हैं, जिसमे हाइपोथालामस, सिंगुलेट कोर्टेक्स, हिप्पोकाम्पि और अन्य संरचनाएं शामिल हैं। हाल ही में हुए अनुसंधानों से पता चला है कि इसमें से कुछ लिम्बिक संरचनाएं, दूसरों के विपरीत, भावनाओं से उस तरह से सीधी नहीं जुड़ी हैं जबकि कुछ गैर लिम्बिक संरचनाएं अधिक महत्व की पाई गयीं हैं।

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्ससंपादित करें

इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि बांया प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स उस उत्तेजना से क्रियाशील होता है जो सकारात्मक सोच से उत्पन्न होती है।[6] यदि आकर्षक उत्तेजना मस्तिष्क के चुनिंदा हिस्से को सक्रिय कर पाए तो तर्क पूर्ण ढंग से उल्टा होना चाहिए, अर्थात अधिक सकारात्मक ढंग से निर्णय लेने के लिए मस्तिष्क के उस हिस्से की चुनिंदा क्रियाशीलता को उत्तेजना उत्पन्न करनी चाहिए. इसका प्रदर्शन माध्यम आकर्षण वाले उत्तेजक दृश्यों[7] के साथ किया गया था और बाद में इसका विस्तार करके नकारात्मक उत्तेजना को शामिल करके इसे दोहराया गया।[8]

प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में न्यूरोबायोलॉजिकल मॉडलों ने भावनाओं के दो विपरीत परिणाम बताए. वैलेंस मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, जो एक नकारात्मक भावना है, दाहिने प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स को क्रियाशील करेगा. डायरेक्शन मॉडल ने भविष्यवाणी की कि गुस्सा, एक दृष्टिकोण की भावना है, अतः बाएँ प्रीफ्रंटल को क्रियाशील करेगा. दूसरे मॉडल को समर्थन मिला ।[9]

हालांकि अभी भी कई सवाल अनुत्तरित हैं कि प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में दृष्टिकोण की बेहतर विपरीत परिभाषा क्या है, दूर जाना (डायरेक्शन मॉडल), बिना किसी प्रतिक्रिया के, किन्तु ताकत तथा प्रतिरोध (मूवमेंट मॉडल) या बिना किसी प्रतिक्रिया के निष्क्रिय परिणाम (एक्शन टेंडेंसी मॉडल). शर्माने[10] तथा व्यवहार संबंधित बाधाओं[11] पर हुए शोधों से एक्शन टेंडेंसी मॉडल को समर्थन मिला है (निष्क्रियता दाहिने प्रीफ्रंटल की क्रियाशीलता से संबंधित है। सभी चारों मॉडलों द्वारा उत्पन्न विपरीत तथ्यों की जांच करने वाले शोधों ने भी एक्शन टेंडेंसी मॉडल का समर्थन किया है।[12][13]

होम्योस्टेटिक भावनाएंसंपादित करें

एक और स्नायविक दृष्टिकोण, जो 2003 में बड क्रेग द्वारा वर्णित किया गया, भावनाओं की दो श्रेणियों के बीच का अंतर बताता है। "प्राचीन भावनाओं" में वासना, क्रोध और डर शामिल है और वे वातावरण के उन कारकों से उत्पन्न होते हैं, जो हमें प्रेरित करते हैं। (उपरोक्त उदाहरणों में मैथुन/हिंसा/भागना). "होम्योस्टेटिक भावनाएं" शरीर की आंतरिक अवस्था द्वारा उत्पन्न ज़ज्बात हैं, जो हमारे व्यवहार को व्यवस्थित करते हैं। प्यास, भूख, गर्म या ठंडा अनुभव करना (आंतरिक तापमान), नींद से वंचित महसूस करना, नमक खाने की इच्छा तथा हवा की इच्छा, ये सभी होम्योस्टेटिक भावनाओं के उदाहरण हैं; इनमें से प्रत्येक शारीरिक प्रणाली द्वारा दिया गया संकेत है जो कहता है कि "सब कुछ ठीक नहीं है। पियो/खाओ/छाया में जाओ/कुछ गरम पहनो/सो जाओ/नमकीन टुकड़ा चाटो/सांस लो." इसमें से किसी भी प्रणाली का संतुलन खराब होने पर, हम होम्योस्टेटिक भावना का अनुभव करने लगते हैं और यह भावना हमें वही कराती है, जो उस प्रणाली का संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। दर्द एक होम्योस्टेटिक भावना है जो हमें बताती है "सब कुछ ठीक नहीं है। पीछे हटो और बचो"।[14][15]



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें