शनिवार, 20 अप्रैल 2019

इतिहास के प्रक्षेप (भाग एक)

इतिहास पूर्वाग्रहों से प्रेरित होकर जब-जब लिखा जाता है ; तो गलत को भी सही मानकर इतिहास कारों के द्वारा महिमा मण्डित किया जाता है ।
और प्रतिद्वन्द्वीयों के प्रत्येक औचित्य या सही बात को खण्डित किया जाता है।

वस्तुत यह भावना ऐैतिहासिकता की मानकता को तो निषिद्ध करती ही है अपितु केवल चारण या कहें भाट पद्धति का दिग्दर्शन करती है ।

  क्यों कि इतिहास यथार्थ के धरातल पर नहीं अपितु "सत्य" के भाव से -प्रेरित होकर ही अधिक लिखा गया ।
सत्य में सद् की भावना होती है ।

   सत्ता (अस्तित्व) के भाव को कहाँ जोड़ा जाता है ?
अब सत्य और यथार्थ में अन्तर हो गया है ।
यथार्थ का मतलब जैसा है वैसा ही बताना।
और किसी के भले के लिए झूँठ बोलना

अब सत्य को ये लोग सुन्दर कहते हैं।
और ये सुन्दर ही इन्हें कल्याण कारी दिखाई देती है। "सत्यं शिवं सुन्दरं "
परन्तु इन सब को समझने के लिए आपको सौन्दर्य की व्याख्या करनी पड़ेगी ।

सौन्दर्य वस्तुत केवल एक आवश्यकता मूलक दृष्टि -कोण है ।
मनुष्यों ने अपनी आवश्यकता या कहें स्वार्थों के आधार पर सौन्दर्य स्वीकार किया ।

सौन्दर्य कोई विज्ञान का अंग (अवयव) नहीं आपको ज्ञात होना चाहिए कि जिस अनुपात में कोई वस्तु जब -जब हमको आवश्यक होती है ।
'वह उसी अनुपात में हम्हें सुन्दर भी दिखती ।
सौन्दर्य परिवर्तन शील है ।
भारतीय पुराण भी इसी का प्रतिरूप हैं👇
आइए पुराणों के अन्तर्गत भविष्य पुराण को देखते हैं
अब पुराणों का लेखन इतिहास त है नहीं
यह तो चारण या भाटों वाली पद्धति है ।
अब कुछ रूढ़िवादी या कहें  अन्ध-भक्त पुराणों की काल्पनिक मनगड़न्त कथाओं में जन-जातियों का इतिहास खोजते हैं ।
जैसे पृथ्वीराज चौहान को चापिहान लिखना जैसे चौहान शब्द चापिहान का ही तद्भव रूप हो ! परन्तु मूर्ख लेखक को शब्द व्युत्पत्ति का कोई ऐैतिहासिक ज्ञान नहीं था ।
जबकि चौहान शब्द तुर्की चीनी शब्द चाउ-हुन से व्युपन्न है । ____________________________________________
भारतीय पुरोहितों की प्राय यह पद्धति रही है कि
जिस जन-जाति के उत्पत्ति श्रोत और वंश का कोई ज्ञान न हो तो उसे ये चमत्कारिक ढंग से उत्पन्न कर देते हैं ।
या फिर स्वयं ब्राह्मणों से ही नियोग द्वारा उत्पन्न बना देते हैं । और --जो इनकी हर उचित अनुचित बात की अनुमोदन करता है उसे ये क्षत्रिय और
--जो विरोध करता है उसे शूद्र बना देते हैं ।👇

चौहान परमार सौलंकी प्रतिहार गहरवाल आभीर गुर्ज्जरः जाट आदि इसी प्रकार की जन-जातियाँ हैं
यहाँं पर हम केवल अभी अग्निवंशी क्षत्रियों की उत्पत्ति पर विचार करेंगे!  👇
___________________________________________

चौहान अग्निकुल के अन्तर्गत क्षत्रियों की शाखा विशेष—इसके मूल पुरूष के सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उसके चार हाथ थे और उसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये वशिष्ठ जी के यज्ञकुण्ड से हुई थी ।

प्रायः आज से एक हजार वर्ष पहले मालवे और राजपूताने में इस जाति के राजाओं का राज्य था

और पीछे इसका विस्तार दिल्ली तक हो गया था । भारत के प्रसिद्ध अतिम सम्राट पृथ्वीराज इसी चौहान जाति के थे।
कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि इस जाति के मूल पुरूष माणिक्य नामक एक राजा थे जो लगभग ईस्वी सन् ८०० में अजमेर में राज्य करते थे ।
इस जाति के क्षत्रिय प्रायः सारे उत्तरीयभारत में फैले  हैं
परन्तु चौहान मंगोलिया के (चाउ-हुन ) श्वेत-हूण का तद्भव रूप है ।
अत: चौहान की भारतीय व्युत्पत्ति काल्पनिक व मनगड़न्त है ।

'चौहान , चाह्वाण आदि शब्द राजस्थान के शाम्बर क्षेत्र से सम्बद्ध होने से या शाम्बर झील राजस्थान में नमक के लिए प्रसिद्ध रही है उससे सम्बद्ध होने से इसी से चौहान शब्द का विकास मान लिया है।

परन्तु यह भी भ्रान्ति मूलक व्युत्पत्ति है।
क्यों कि यह झील भी चौहान वंश के शासकों ने बाद में खुदवायी थी ।
चौहान मंगोलिया के (चाउ-हुन ) श्वेत-हूण का तद्भव रूप है । _____________________________________

डॉ. डी. आर. भण्डारकर राजपूतों को गुर्जर मानकर उनका संबंध श्वेत-हूणों के स्थापित करके विदेशी वंशीय उत्पत्ति को और बल देते हैं।

--जो कि पूर्ण रूपेण संगत नहीं इसकी पुष्टि में वे बताते हैं कि पुराणों में गुर्जर और हूणों का वर्णन विदेशियों के सन्दर्भ में मिलता है।

इसी प्रकार उनका कहना है कि अग्निवंशीय प्रतिहार, परमार, चालुक्य और चौहान भी गुर्जर थे। 🌸

क्योंकि राजोर अभिलेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। 👇
चौहान शब्द भारतीय इतिहास में चौथी शताब्दी ईस्वी में उद्भासित होता है ।
जिसका वर्ण-विन्यास चाउ-हुन है ( श्वेत-हूण)
(चाउ Châu + हुन hun) ,चाहल (यूरोपीय इतिहास का भारतीय भाषाओं चौहान और चोल संस्करण के रूप हैं ।
चाहल शब्द ही चालुक्य होकर बाद में सौलंकी बन गया ) है ।
ये लोग कैस्पियन समुद्र के पूर्व में बसे हुए थे।

यही वह अवधि थी जब चाहल (चोल) गजनी क्षेत्र में ज़बुलिस्तान पर कब्जा कर रहे थे।

यह वंश मध्य एशियाई है और मूल निवासीयों के साथ अन्तःक्रिया के कारण यह भारतीय, ईरानी और तुर्की भी हो गया है।
अर्थात्‌ यह तुर्को का सहवर्ती है ।
इस यूरोपीय ऐैतिहासिक बेबसाइट से पढ़े👇

इस उपनाम के बारे में और पढ़ें चौहान उपनाम वितरण  25% पत्रक ।
जनसंख्या डेटा © Forebears के अनुसार--- ________________________________________ -घटनाओं से पूर्ण स्क्रीन 2014 क्षेत्र में घटना आवृत्ति रैंक रखें भारत 1,592,334 1: 482 53 इंग्लैंड 9150 1: 6076 861 संयुक्त राज्य अमेरिका 3,730 1: 96,850 10,829 संयुक्त अरब अमीरात 2,679 1: 3,425 428 सऊदी अरब 2,0 9 2 1: 14,751 2,0 9 5 पाकिस्तान 1,719 1: 101,474 3310 कनाडा 1,677 1: 21,943 3006 ओमान 1,549 1: 2,547 505 केन्या 1,349 1: 34,128 4126 फिजी 943 1: 948 108 सभी राष्ट्र दिखाओ चौहान उपनाम अर्थ $ 100 वंशावली डीएनए परीक्षण जीतने की संभावना के लिए इस उपनाम पर जानकारी जमा करें ।
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डीएनए परीक्षण एवं जानकारी करने वाले उपयोगकर्ता ओं द्वारा प्रस्तुत संदर्भ चौथी शताब्दी ईस्वी में व्हाइट हूण, चाहल्स (चालुक्य) (यूरोपीय इतिहास का चोल संस्करण) के वंशज, ।
हालांकि, यह नाम चोल शब्द को एक और कबीले द्वारा साझा किया जाता है और यह अंतर मिश्रण होता है;।

इसलिए यह वंश मिश्रित है।

चाहल (चोल) नाम लेबनान, इज़राइल और मध्य एशियाई देशों के मूल निवासीयों के रूप में पाया जा सकता है।👇

- hsingh1861 ध्वन्यात्मक रूप से समान नाम उपनाम समानता घटना Prevalency Chaouhan 93 307 / Chauahan 93 253 / Chauhaan 93 243 / Chauhana 93 94 / Chauhanu 93 60 / Chauehan 93 46 / Chauohan 93 35 / Chauhann 93 21 / Chaauhan 93 18 / Chauhani 93 15 /
बंगाली में चौहान চৌহান cauhana

हिंदी में चौहान चौहान cauhana 98.92 सभी अनुवाद दिखाएं मराठी में चौहान  cauhana
77.03 चौहाण cauhana 16.16

छगन chagana 1.99

चोहान cohana 1.23
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तिब्बती में चौहान ཅུ་ ཝཱན ་. chuwen 66.67 ཅུ་ ཧན ་. chuhen 33.33

उडिया में चौहान େଚୗହାନ ecahana 60.75

ଚୗହାନ୍ 14.52 ecahan ଚଉହାନ ca'uhana 6.99 େଚୖହାନ ecahana 4.84 େଚୖାହାନ ecaahana 3.23 େଚୗହାଣ ecahana 2.15 ଚୗହନ ecahana 2.15 େଚୗାନ ecaana 2.15
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अरबी में चौहान شوهان shwhan -

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Chauhan Surname User-submission: Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) --- in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea.
This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish. Chauhan Surname Meaning Submit Information on This Surname for a Chance to Win a $100 Genealogy DNA Test DNA test information User-submitted Reference Descandants of White Huns, the Chahals (Chols of European history) in the fourth century AD, were settled on the east of Caspian sea.
This was the period when Chahals were occupying Zabulistan in the Ghazni area. Ancestry is Central Asian and due to interbreeding with natives it is Indian, Iranian, and Turkish. However, the name Chahal is shared by another clan and inter mixing has occurred; so ancestry is mixed. The name Chahal can be found native to Lebanon, Israel and Central Asian countries. - hsingh1861 Phonetically Similar Names SurnameSimilarityIncidencePrevalency Chaouhan93307/ Chauahan93253/ Chauhaan93243/ Chauhana9394/ Chauhanu9360/ Chauehan9346/ Chauohan9335/ Chauhann9321/ Chaauhan9318/ Chauhani9315/ SHOW
ALL SIMILAR SURNAMES Chauhan Surname Transliterations TransliterationICU LatinPercentage of Incidence Chauhan in Bengali চৌহানcauhana- Chauhan in Hindi चौहानcauhana98.92 SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Marathi चौहानcauhana77.03 चौहाणcauhana16.16 छगनchagana1.99 चोहानcohana1.23 SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Tibetan ཅུ་ཝཱན།chuwen66.67 ཅུ་ཧན།chuhen33.33 Chauhan in Oriya େଚୗହାନecahana60.75 େଚୗହାନ୍ecahan14.52 ଚଉହାନca'uhana6.99 େଚୖହାନecahana4.84 େଚୖାହାନecaahana3.23 େଚୗହାଣecahana2.15 େଚୗହନecahana2.15 େଚୗାନecaana2.15

SHOW ALL TRANSLITERATIONS Chauhan in Arabic شوهان(shwhan-सौहान ) The surname statistics are still in development, sign up for information on more maps and data SUBSCRIBE By signing up to the mailing list you will only receive emails specifically about surname reference on Forebears and your information will not be distributed to 3rd parties. Footnotes Surname distribution statistics are generated from a global sample of 4 billion people Rank: Surnames are ranked by incidence using the ordinal ranking method; the surname that occurs the most is assigned a rank of 1; surnames that occur less frequently receive an incremented rank; if two or more surnames occur the same number of times they are assigned the same rank and successive rank is incremented by the total preceeding surnames Similar: Surnames listed in the "Similar Surnames" section are phonetically similar and may not have any relation to Chauhan WEBSITE INFORMATION AboutContactCopyrightPrivacyCredits RESOURCES Forenames Surnames Genealogical Resources England & Wales Guide © Forebears 2012-2018 ________________________________________________

हमारे इन ऐैतिहासिक लेखों और टिप्पणियों के द्वारा हजारों लोगों को प्राचीन व्यवस्था और वर्तमान दशा को समझने में दृष्टि प्राप्त होगी ।

वास्तव में भारतीय वेदों का निर्धारण सुमेरियन पुरा-कथाएें से तादात्म्य-(एकरूपता) स्थापित करके प्राप्त होता  है ।

यहाँं ये बाते केवल काल्पनिक उड़ाने नहीं हैं
विष्णु ( पिस-नु),ब्रह्मा,(ए ब्राहम) मनुु (नूह)यम, (यमा) अरि,(इलु)पूषण (पोसीडॉन) इन्द(इ-न-द-र-उ)वरुण उरन्ना अनिल (एनालिल) सुर हुर्रियन)बरम (ब्राह्मण) असुर(असीरियन)  रामा (राम) (दशरथ-तसरत)ये पात्र सुमेरियन पुरा-कथाओं( मेसोपोटामिया वर्तमान (इराक-ईरान)की प्राचीनत्तम संस्कृतियों में प्राप्त हैं ।

हमने मनु एक ऐैतिहासिक परिचय- नामक थेसिस में सप्रमाण इन तथ्यों का उल्लेख भी किया है ।

हमारे अनुवादों का आधार भाषा -विज्ञान और सांस्कृतिक एक रूपता मूलक विशेषण है ।

यदि ये दौनों तथ्य इतिहास में नहीं होंगे तो इतिहास चारण या भाटों की चाटुकारिता पूर्ण  अतिरञ्जना होगी

अत: संस्कृतियों का मिलान और अपेक्षा कृत प्राचीनता अति आवश्यक है ।

मित्रों ! आपके इस उत्साह वर्धन ने हम्हें सत्य के प्रति और भी आग्रही बना दिया है ।

_______________________________________ भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।
भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है। अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों ,महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है । _______________________________________

प्रारम्भिक रूप में राजा प्रद्योत कुरुक्षेत्र में यज्ञ करके म्लेच्‍छों का विनाश करता है।
परन्तु कलि युग मानव रूप धारण कर स्वयं ही म्लेच्‍छों के रूप में राज करता है ; तभी भगवान अपनी पूजा से प्रसन्न होकर कलि को को वरदान देते हैं !
और कलि से कहते हैं कि कई दृष्टियों से तुम अन्य युगों में श्रेष्ठ हो ।
तभी इसी वरदान के प्रभाव से आदम नामक पुरुष तथा हव्यवती ( हव्वा) नामकी स्त्री से म्लेच्‍छों के वंश की वृद्धि होती है।
कलि युग में तीन हजार वर्ष व्यतीत होने पर भारत में विक्रमादित्य का आविर्भाव होता है।
इसी समय रूद्रकिंकर वैताल का आगमन होता है । इसके बाद श्री सत्यनाराण व्रत की कथा है ।
भारतीय धरा पर सत्य -नारायण की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में श्रीसत्य-नारायण की कथा छ: अध्यायों में वर्णित है---👇

यह कथा स्कन्द पुराण की प्रचलित कथा से मिलती है इसी खण्ड के अन्तिम अध्यायों में पितृ शर्मा और उनके वंश में चार पुत्रों १- व्याणि २-मीमांसक ३ वररुचि ४ पणिनी आदि की रोचक कथाऐं प्राप्त होती हैं।
मध्यचरित्र के महात्म्य में कात्यायन और मगध के राजा महानन्द की कथा तथा उत्तर- चरित में योगाचार्य पतञ्जलि काे चरित्र का वर्णन है ।

भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व के तृत्तीय खण्ड में वलदेव के अंशावतारी आल्हा तथा कृष्ण के अंशावतारी ऊदल के चरित्र का आनुमानिक विवरण है ।

तथा जयचन्द और पृथ्वी राज चौहन की वीरगाथाओं का वर्णन है ।

इसी खण्ड में शकों के अधीश शालिवाहन ने हिमालय पर्वत के हिमशिखर पर गौर वर्ण के एक सुन्दर पुरुष को देखा ; जो श्वेताम्बर (श्वेत-वस्त्र) धारण किए हुआ था । जिसने अपना नाम ईसा- मसीह बताया ।

शालिवाहन के वंशज अन्तिम दशवें राजा भोज हुए ।जिनके साथ महामद ( मोहम्मद -इस्लाम के पैगम्बर) का वर्णन है । राजा भोज ने मरुस्थल ( मदीन) में स्थित महादेव का दर्शन किया ; तथा भक्ति भाव पूर्वक पूजन- स्तुति की -- भगवान शिव ने प्रकट होकर म्लेच्‍छों से दूषित उस स्थान को त्याग कर महाकालेश्वर तीर्थ में जाने की आज्ञा प्रदान की -- तत्पश्चात देशराज आदि राजाओं के जन्म की कथा है ।

पृथ्वी राज चापहानि ( चौहान) की वीरगति प्राप्त होने के सहोड्डीन ( मोहम्मद गौरी) के द्वारा कोतुकोद्दीन (कतुबुद्दीन ऐबक)को दिल्ली का शासन सौंप कर इस देश से धन लूटकर ले जाने का विवरण प्राप्त है। प्रतिसर्ग पर्व का अन्तिम चतुर्थ खण्ड है ।

जिस में सर्व प्रथम आन्ध्र: वंशीय राजाओं के वंश का वर्णन है ।
तदन्तर राजपूताना और दिल्ली नगर के राजवंशों का इतिहास प्राप्त होता है जो कुछ कल्पना रञ्जित है ।
राजस्थान के प्रमुख नगर अजमेर की कथा मिलती है जो काल्पनिक रूप से वर्णित की गयी है ।

अज ( अजन्में ) ब्रह्मा के द्वारा रचित होने से तथा देवी लक्ष्मी (रमा) के शुभ आगमन से से रम्य या रमणीय यह नगर अजमेर नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

यह भारत का तल्कालीन सबसे सुन्दर नगर माना गया कृष्ण वर्मा के पुत्र उदयन ने उदय पुर नामक नगर बसाया ।
और कान्यकुब्ज ( कन्नौज) नगर की कथा भी विचित्र है  एक वार राजा प्रणय की कथा से प्रसन्न होकर भगवती शारदा प्रसन्न होकर कन्या रूप में वर्णन वादन करती हुई आई ,और राजा प्रणय को वरदान रूप में यह नगर प्रदान किया ।

इस लिए यह नगर कान्यकुब्ज हुआ  चित्र-कूट का निर्माण भी भगवती की कृपा से हुआ वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता इस लिए उसका नाम कलिञ्जर हुआ। _______________________________________________

" नगरं चित्रकूटाद्रौ चकार कलिनिर्जरम् ।
कलिर्यत्र भवेदबद्धो नगरे८स्मिन् सुर प्रिये।।
अत: कलिंजरो नाम्ना प्रसिद्धो८भून्महीतले ।।
प्रतिसर्ग पर्व (4/4/3-4) इसी प्रकार बंगाल के राजा भोगवर्मा ने महाकाली की उपासना की तब भगवती काली ने प्रसन्न होकर एक सुन्दर नगर उत्पन्न किया जो कलिकाता पुरी कहलाया ।
इसी क्रम में वर्णन है दिल्ली नगर पर पठानों  के शासन का अन्त - तैमूर लंग द्वारा भारत पर आक्रमण और लुटने का वर्णन है।
कलियुग में अवतीर्ण होने वाले विभिन्न आचार्य सन्तों का वर्णन है जैसे -- सातवीं सदी के शंकराचार्य रामानन्द , निम्बादित्य, श्रीधर पाठक, विष्णु स्वामी, वाराहमिहिर ,भट्टोजिदीक्षित ,धन्वन्तरि, चैतन्य महाप्रभु , रामानुज ,श्रीमध्वाचार्य ,गोरखनाथ । आदि का विस्तृत चरित्र-विवरण है।
ये सभी सूर्य के अंश से उत्पन्न बताए गये हैं।
इन्हें ही द्वादश आदित्य( सूर्य) कहा गया है ।
इसी श्रृंखला में सूरदास का वर्णन है। 👇
भारतीय इतिहास के अनुसार सूरदास का जन्म इस प्रकार है ।
👇 सूरदास का जन्म १४७८ ईस्वी में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। तुलसीदास , कबीर ,नरसी मेहता ,पीपा ,नानक, रैदास ,नामदेव, रंक्कण , धन्नाजाटभगत , आदि की कथाऐं आती है। तथा इसी श्रृंखला में सन्यासीयों के विभिन्न अखाड़ों के नाम जैसे आनन्द , गुरू, पुरी, वन,आश्रम, पर्वत,भारती एवं नाथ आदि दशनामी दश साधुओं की जन्म कथा है। इसी में हनुमान के द्वारा सूर्य के निकलने की कथा है । अन्तिम अध्याय में मुगलों का वर्णन है - जैसे बाबर, हुमायूँ ,अकबर, शाहजहाँ , जहाँगीर , तथा औरंगजेब आदि प्रमुख मुगल शासकों का वर्णन है।
इसी क्रम में वीर शिवाजी की वीरता का वर्णन भी है। फिर ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया और उसके पार्लियामेण्ट का वर्णन हुआ है ।
रानी विक्टोरिया को भविष्य पुराण में विकटावती कहा गया है । ब्रिटिश इतिहास के अनुसार----👇

महारानी विक्टोरिया(Victoria) का जन्म 24 मई 1819 को हुआ, और वो प्रिंस एडवर्ड की बेटी थी। जो उस समय केण्ट और स्ट्रैथैर्न के शासक थे । उनकी मौत के बात जर्मनी में पैदा हुई उनकी माँ ने रानी विक्टोरिया (Queen Victoria )की देखभाल की और उन्हें 18 साल की उम्र में सिंहासन एक तरह से विरासत में ही मिला । उस समय इंग्लैंड में संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional monarchy) था ! जिसमें सम्राट के हाथ में पूरी शक्ति नहीं होती है | Victoria ने Albert of Saxe-Coburg and Gotha से 1840 में शादी की .... _______________________________________________
भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोकों की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए, परन्तु वर्तमान में कुल 14,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। भारतीय प्राच्य विद्या के रूढ़िवादी विद्वानों के अनुसार भविष्य पुराण में मूलतः पचास हजार श्लोक विद्यमान थे। ______________________________________________
परन्तु श्रव्य परम्परा पर निर्भरता और अभिलेखों के लगातार विनष्टीकरण के परिणामस्वरूप वर्तमान में केवल 129 अध्याय और अठ्ठाइस हजार श्लोक ही उपलब्ध रह गए हैं।
यह पुराण ब्रह्म, मध्यम, प्रतिसर्ग तथा उत्तर- इन 4 प्रमुख पर्वों में विभक्त है-। ऐैतिहासिक घटनाओं का वर्णन प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है। ---जो बड़ी चालाकी से भविष्य की घटना के रूप में निर्धारित कर दी गयीं हैं । परन्तु इसे पुराण में अनेक शब्द व्युत्पत्ति मूलक प्रक्षिप्तियाँ इसकी काल्पनिकताओं की पोल खोलतीहैं। ________________________________________________

मित्रों ! विश्व की प्राचीन पुरा-कथाओं की भिन्नता तो सहज है परन्तु उनका किसी बिन्दु पर मिलान उनकी पूर्व कालिक एक मूल को अभिव्यक्त करता है।

अत: हम्हें समानताओं के आधार पर अन्वेषण का मार्ग-निश्चित करना चाहिए !

मिथकों में भिन्नता तो इसलिए हुईं क्यों कि कालान्तरण में जब सजातिय बन्धु बान्धव दूर देशों मे विकीर्ण हो गये धीरे धीरे लोग अपने मूल स्वरूप को भूलने लगे
और इतने भूल गये कि साम से सॉम और फिर सोम का अर्थ चन्द्रमा कर दिया गया।
और आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ लोग स्वयं को चन्द्र वंशी सूर्य वंशी और अग्निवंशी भी कह रहे हैं ।

यम हेम था --जो विवस्वान् अथवा विवस्वत् ( जिसे ईरानीयों ने वैवनघत) कर दिया का पवित्र था ।
ये लोग सूर्य के उपासक थे तो कालान्तरण में इन्हें सूर्य वंशी कर दिया ।
अब आप बताऐं कि सूर्य और चन्द्रमा का तो कोई मिलान और समानता ही नहीं
फिर 'वह सूर्य तारा है ।
-जो पृथ्वी से साढ़े तेरह लाख गुना बड़ी है ।
और उपग्रह चन्द्रमा पृथ्वी का ही 1/4 भाग।
परन्तु लोग जो स्वयं को शिक्षित कहते हैं चन्द्र वंशी और सूर्य वंशी लिख रहे हैं ।
इतना ही नहीं चौहान परिमार सोलंकी गहरबाल ये अग्नि वंशी कर दिए --
क्या ये इतिहास है ?

आज पुन: विचार करने की आवश्यकता है ।

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