रविवार, 14 अप्रैल 2019

प्रेम का •👠👠 ~ वैज्ञानिक विवेचन~ ~ ..योगेश कुमार रोहि की मसिधर से ......./

👠👠• प्रेम का •👠👠
     ~ वैज्ञानिक विवेचन~ ~
..योगेश कुमार रोहि की मसिधर से ......./
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प्रेम का परिणाम संभोग है
  क्यों कि जिस वस्तु से हम प्रेम करते हैं इसका तात्पर्य है कि हम उसका उपभोग या आस्वादन करें !अर्थात् जीवन रूपी 🌺पुष्प की सुगन्ध🌷प्रेम है ।

तथा सौन्दर्य इस पुष्प का झरता हुआ पराग है !
इस पुष्प का मकरन्द /रस प्रेम से उत्पन्न आनन्द है !

तात्पर्य यह कि सौन्दर्य आवश्यकता मूलक अवधारणा हैं जिसकी हमको आवश्यकता है वह हमारे लिए सुन्दर है ।
यही कारण है की पुरुष को काम उत्तेजना के क्षणों स्त्रीयाँ सुन्दर दिखाई देने लगती है !
और स्त्रीयों को पुरुष के बल की आकाँक्षा होती है ।
पुरुष तो स्त्री के मात्र कोमलता रूपी सौन्दर्य का सहज आकाँक्षी है और स्त्रीयाँ पुरुष के सुन्दरता की नहीं उसके पौरुष्य /शक्ति की आकाँक्षी हैं ।

पुरुष का जब पौरुष जाग्रत होता है ।
तब उसे स्त्री की कोमलता में ही सौन्दर्य दिखाई देता है।
यह काम की उत्तेजना के  कठोर क्षण होते हैं जो उसकी विवेचना शक्ति को निर्देशित करता हैं ।

जबकि उत्तेजना शून्य क्षणों में स्त्रीयाँ इतनी सुन्दर नहीं लगती हैं जितनी की उत्तेजना के क्षणों में।
और सौन्दर्य आवश्यकता मूलक दृष्टि-कोण है ।
स्त्री और पुरुष के मिलने पर जो प्रतिक्रिया होती है
वह ऋणात्मक और धनात्मक आवेशों की प्रतिक्रिया है
और प्रतिक्रिया एक ग्रहणीयता है ।

यह मेरा अपना अर्थात् "योगेश कुमार रोहि"  का  प्रमाणित सिद्धान्त है ।

कि पुरुष की दृष्टि जो स्त्री सौन्दर्य का प्रतिमान है ।
....वह प्रतिमान केवल स्त्री की कोमलता है

..स्त्री की कोमलता और सौन्दर्य परस्पर सापेक्ष तथा सामानान्तर भाव हैं ।
स्त्रीयों को भावनाओं के स्तर पर पुरुषों की अपेक्षा उच्च-स्थान प्राप्त है ।
      श्रृद्धा भावनाओं और हृदय का प्रधान पक्ष है ।
इसके विपरीत विचार पुरुषों का प्रबल होता है ।

..इसके विपरीत पुरुष स्वभाव से ही परुष अर्थात् कठोर है अब उसके नीरस और कठोर मन को .जिस सम्पूरक भाव की आवश्यकता है वह स्त्री का कोमलता रूपी सौन्दर्य ही है ।
...स्वयम् कोमल शब्द भारोपीय Indoeuropian भाषाओं में Comely के रूप में विद्यमान् है अर्थात् काम प्रद =pleasing .grace full.तथा comic --- आनन्द दायक ।
...पुरानी फ्रेंच में "Cyme" काइम शब्द से कॉमली शब्द विकसित हुआ है ...जो संस्कृत में काम शब्द के रूप में है ...स्त्री सौन्दर्य और भावना प्रधान है जो पुरुष के लिए ऋणात्मक है तथा स्वयम् पुरुष शक्ति और विचार प्रधान है ...यह शक्ति उसका काम भाव / पौरुष ही है .....इसी लिए. ...मेरी यह पक्ति कितनी सार्थक है ...
इसका निर्णय  स्वयम् आप करें 👇
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तू हुश्न की मलिका बाला ,        
                     मैं इश्क शाहञ्शाह !!!!
तुझको जुरूरत है मेरी ..
                    मुझको भी तेरी चाह ...
.मेरी मञ्जिल तुझ तक ..
और तेरी मञ्जिल भी मुझ तक ..
                    दौनों मिलकर बनाऐं राह !!
अर्थात् स्त्री पुरुष दौनों परस्पर मिलकर स्वयम् को पूर्ण व आप्त काम करते हैं ..दौनों को एक दूसरे की आवश्यकता है !
प्रेम एक ऊर्जा है एक विद्युत धारा है ...तथा पौरुष्य और सौन्दर्य ऋणात्मक तथा धनात्मक आवेश है पुरुष और स्त्री दौनों के लिए ..और स्त्री और पुरुष का मिलना ही फॉल्ट या स्पार्किंग है   ...
यह प्रेम  भी  कहीं कामेच्छा ही तो नहीं? फ्रायड की मानें तो प्रेम भी सेक्स का ही एक रूप है।
फिर सच्चे प्रेम की बात करने वाले नाराज हो जाएँगे।
वे कहते हैं कि प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है।
तब फिर ‘मिलन’ का अर्थ क्या? शरीर का शरीर से मिलन या आत्मा का आत्मा से मिलन में क्या फर्क है? प्रेमशास्त्री कहते हैं कि देह की सुंदरता के जाल में फँसने वाले कभी सच्चा प्रेम नहीं कर सकते।
कामशास्त्र मानता है कि शरीर और मन दो अलग-अलग सत्ता नहीं हैं बल्कि एक ही सत्ता के दो रूप हैं। तब क्या संभोग और प्रेम भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?
धर्मशास्त्र और मनोविज्ञान कहता है कि काम एक ऊर्जा है। इस ऊर्जा का प्रारंभिक रूप गहरे में कामेच्छा ही रहता है।
इस ऊर्जा को आप जैसा रुख देना चाहें दे सकते हैं। यह आपके ज्ञान पर निर्भर करता है। परिपक्व लोग इस ऊर्जा को प्रेम या सृजन में बदल देते हैं।
शरीर भी कुछ कहता है :
किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही लड़के और लड़कियों में एक-दूसरे के प्रति जो आकर्षण उपजता है उसका कारण उनका विपरीत लिंगी होना तो है ही, दूसरा यह कि इस काल में उनके सेक्स हार्मोंस जवानी के जोश की ओर दौड़ने लगते हैं। तभी तो उन्हें राजकुमार और राजकुमारियों की कहानियाँ अच्छी लगती हैं। फिल्मों के हीरो या हीरोइन उनके आदर्श बन जाते हैं।
आकर्षित करने के लिए जहाँ लड़कियाँ वेशभूषा, रूप-श्रृंगार, लचीली कमर एवं नितम्ब प्रदेशों को उभारने में लगी रहती हैं, वहीं लड़के अपने गठे हुए शरीर, चौड़े कंधे और रॉक स्टाइलिश वेशभूषा के अलावा बहादुरी प्रदर्शन के लिए सदा तत्पर रहते हैं। आखिर वह ऐसा क्यूँ करते हैं? क्या यह यौन इच्छा का संचार नहीं है?
आनंद की तलाश :
दर्शन कहता है कि कोई आत्मा इस संसार में इसलिए आई है कि उसे स्वयं को दिखाना है और कुछ देखना है। ...योगेश्वर श्री कृष्ण ने स्वयम् श्री मद्भगवद् गीता में कहा है ...द्वन्द्वः सामासिकस्य च -अर्थात् द्वन्द्व-- स्त्री और पुरुष का युगल रूप ..सृष्टि के समग्र विपरीत पदार्थ  मेरी विभूति द्वन्द्व का स्वरूप हैं यह द्वन्द्व परमाणु में इलैक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन के समान है  ।
यादव योगेश कुमार "रोहि" की मसिधर से ज्ञान की गहराईयों में प्रेषित यह प्रेम प्रद सन्देश.......

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