शनिवार, 27 अप्रैल 2019

महाभारत के लेखक गणेश-

आदिपर्व प्रथमो८ध्याय ( अनुक्रमणिका पर्व)
लेखको भारतस्यास्य भव त्वं गणनायक ।
मयैव प्रोच्यामानस्य मनसा कल्पिततस्य च।।77।

श्रुत्वैतत् प्राह विघ्नेशो यदि मे लेखनी क्षणम्।
लिखतो नावतिष्ठेत तदा स्यां लेखको हि अहम्।78।

व्यासो८प्युवाच तं देवमबुद्ध्वा मा लिख क्वचित् ।
ओमित्युक्त्वा गणेशो८पि बभूव किस लेखक:।79।

अर्थात्‌ गणनायक आप मेरे द्वारा निर्मित इस महाभारत ग्रन्थ के लेखक बन जाइये ; 'मैं बोलकर सिखाता जाऊँगा  मैंने मन ही मन इसकी रचना कर ली है ।77।

यह सुनकर विघ्नराज गणेश जी ने कहा –व्यास जी !
यदि क्षण भर के लिए भी मेरी लेखनी न रुके तो 'मैं इस ग्रन्थ का लेखक बन सकता हूँ।78।

व्यास जी ने भी गणेश जी से कहा –बिना समझे किसी भी प्रसंग में एक अक्षर भी मत लिखिएगा । गणेश जी ने "ऊँ" कहकर स्वीकार किया और लेखक बन गये ।।79।

महाभारत में वर्णित जन जातियाँ
प्रवृत्तिस्तत्र चाख्याता यत्र भीमस्य लुब्धकै:।
क्षेप युक्तैर्वचोभिश्च धर्मराजस्य धीमत:। २८४।
प्रजाति समुत्थितो यत्रधार्तराष्ट्रो८त्यमर्षण:।
भीमेन गदया युद्धं तत्रासौ कृतवान् सह ।।२८५।
(महाभारत आदि पर्व)
किन्तु लोधों ने भीमसेन से दुर्योधन की यह चेष्टा बतला दी ।तब धर्म राज के आक्षेप युक्त वचनों से अत्यधिक क्रोध में भर कर धुर्योधन सरोवर से बाहर निकला और भीम से गदा युद्धं किया ।
यह प्रसंग सल्य पर्व में है ।

कलश: सागर ।
बलं ददामि सर्वेषां कमैर्तद् ये समास्थिता:।
क्षोभ्यतामं कलश: सर्वैर्मन्दर: परिवर्त्यताम् ।३१।
महाभारत आदि पर्व आस्तीक पर्व १८वाँ अध्याय।
जो लोग इस कार्य में लगे हुए हैं मैं उनको शक्ति देरहा हूँ। सभी -पूरी शक्ति से मन्दरांचल को घुमावैं और सागर को क्षुब्ध करदें ।

मेकला द्राविडा लाटा : पौण्ड्रा: कान्वशिरास्तथा ।
शौण्डिका दरदा दार्वाश्चौरा : शबराबर्बरा :।१७।
किराता यवनाश्चैव तास्ता: क्षत्रिय जातय: ।
वृषलत्वमनुप्राप्ता  ब्राह्मणानाम् अमरषणात्।१९।
मेकला द्राविडा लाटा पौण्ड्रा कान्वशिरा शौण्डिका दरदा दार्वाश्चौरा शबराबर्बरा किरात यवन ये सब पहले क्षत्रिय थे ।परन्तु ब्राह्मणों से वैर करने से शूद्र हो गये ।
महाभारत अनुशासन पर्व दानधर्म पर्व  ३५ वाँ अध्याय

चार: सुविहित: कार्य आत्मनश्च परस्य वा ।
पाषण्डांस्तापसादींश्च परराष्ट्रेषु योजयेत् ।63।
                                 (सम्भव पर्व )139 वाँ अध्याय
भलीभाँति जाँच परख कर अपने तथा शत्रु को राज्य में गुप्तचर रखें  ।शत्रु के राज्य में ऐसे गुप्तचर नियुक्त करें
--जो पाषण्ड वेश धारी अथवा तपस्वी हों ।

महाभारत में यूनानी राजा का वर्णन 👇
त्रिवर्षकृतयज्ञस्तु गन्धर्वाणामुपल्वे
अर्जुप्रमुखै: पार्थै: सौवीर समरे हत :।20।
न शशाक वशे  कर्तुं यं पाण्डुरपि वीर्यवान् ।
सो८र्जुनेन वशं नीतो राजा ८८सीद् यवनाधिप:।21
सौवीर देश को राजा , --जो गन्धरवों के  उपद्रव करने पर भी लगातार तीन वर्षों तक बिना  किसी बिघ्न-बाधा के  यज्ञ करता रहा । युद्ध में अर्जुुन आदि पाण्डवों के हाथ मारा गया । पराक्रमी राजा पाण्डु भी जिसे वश में नहीं ला सकते थे । उस यूनान के राजा (दत्तमित्र)को भी जीत कर अर्जुुन ने अपने अधीन कर लिया ।20-21।

राजा सुदास या कल्माषपाद --जो अयोध्या के राजा थे
उनकी पत्नी दमयन्ती राजा की आज्ञा के अनुसार
पुत्र की कामना से वशिष्ठ के पास गयी और वशिष्ठ ने उसके साथ नियोग कर अशमक नामक पुत्र उत्पन्न किया ।👇

तत: प्रविष्टे राजर्षौ तस्मिंस्तत् परमुत्तमम् ।
राज्ञस्तस्याज्ञया देवी वसिष्ठमुपचक्रे ।। 43।
ऋतावथ महर्षि: स सम्बभूव तया सह ।
देव्या दिव्येन विधिना वसिष्ठ: श्रेष्ठ भागृषि:।44।
ततस्तस्यां समुत्पन्ने  गर्भे स मुनिसत्तम:
राज्ञाभिवादितस्तेन जगाम मुनिराश्रमम् ।45।
अर्थात्‌ राजर्षि कल्माषपाद के उस उत्तम नगर में प्रवेश करने पश्चात् उक्त महाराज की आज्ञा के अनुसार महारानी दमयन्ती  महर्षि वसिष्ठ के समीप गयीं।43।
तत्पश्चात् महर्षि वसिष्ठ ने ऋतुकाल में शास्त्र की देवीय विधि के अनुसार  महारानी के साथ नियोग किया 44।
उसके बाद रानी की कोख में गर्भ स्थापित हो जाने पर
राजा से पूजित होकर वसिष्ठ
अपने आश्रम को लौट गये ।45।
महाभारत आदिपर्व चैत्ररथपर्व छिहत्तरवाँ अध्याय

महाभारत बौद्ध काल की रचना है 👇
इसके लिए प्रमाण यह श्लोक है ।
कच्चित् स्वनुष्ठिता तात वार्ता ते साधुभि: जनै:।
वार्तायां संश्रितस्तात लोको८यं सुखमेधते ।।80।
तात तुम्हारे राज्य में अच्छे पुरुषों ( साधुओं)  द्वारा वार्ता(   ) – कृषि , गोरक्षा, तथा व्यापार का  काम अच्छी तरह किया जाता है न ?
क्यों कि उपर्युक्त वार्ता वृत्ति पर रहने वाले लोग ही सुख-पूर्वक उन्नति करते हैं ।

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धर्म-मर्यादाओं में स्त्रीयों को बाँधने वाले मनुष्य ने
कभी भी महिलाओं को विश्वास और श्रृद्धा की दृष्टि से नहीं देखा हमेशा उसे उपभोग की वस्तु ही समझा 👇
कच्चित् स्त्रिय:सान्त्वयसि कच्चित् ताश्च सुरक्षिता:
कच्चित् श्रद्दधास्यासां कच्चिद् गुह्यं न भाषसे ।84।
सभापर्व- (लोकपालसभाख्यानपर्व) पञ्चम् अध्याय
अर्थात्‌ तुम स्त्रीयों को सान्त्वना देकर संतुष्ट रखते हो न? क्या वे तुम्हारे यहाँं पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं ?
तुम उनपर पूर्ण विश्वास तो नहीं करते ? और विश्वास करके उन्हें कोई गुप्त बात तो नहीं बता देते ? ।84।

ईप्सितश्च गुण: स्त्रीणामेकस्या बहुभर्तृता ।
तं च प्राप्तवती कृष्णा न सा भेदययितुं क्षमा ।।8।
स्त्रीयों का यह अभीष्ट गुण है  कि  एक स्त्री में अनेक पुरुषों से सम्बन्ध स्थापित करने की रुचि होती है । पाण्डवों के साथ द्रोपदी (कृष्णा) को यह लाभ स्वत: प्राप्त है । अत: उसके मन में भेद उत्पन्न नहीं किया जा सकता ।8।
महाभारत विदुरागमन राज्यलम्भपर्व
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रामठान् हारहूणांश्च प्रतीच्याश्चैव ये नृपा:।12
तान् सर्वमान्य सवशे चक्रे शासनादेव पाण्डव:।
तत्रस्थ : प्रेषयामास वासुदेवाय भारत ।।13।
सभापर्व-(राजसूयपर्व) बत्तीसवाँ अध्याय
रामठ हार, हूण तथा --जो पश्चिमीय नरेश थे ।उनसबको पाण्डु कुमार नकुल ने आज्ञा मात्र से ही अपने अधीन कर लिया ।भारत वहीं रहकर उन्होनें वसुदेव नन्दन कृष्ण के पास गयी भेजा ।।

महाभारत के सभा पर्व के अन्तर्गत अर्घाभिहरण पर्व में वर्णन है कि परशुराम ने काश्मीर ,दरद, कुन्तिभोज,क्षुद्रक(शूद्र),,मालव, शक,चेदि, काशि, करुष,ऋषिक, क्रथ, कैशिक,अंग, वंग कलिंग ,मागध, काशी, कौसल, रात्रायण ,वीतिहोत्र , किरात, तथा मार्तिकावत् ,–इनको  तथा अन्य हजारों राजेश्वरों को प्रत्येक देश में तीखे वाणों से मार कर यम लोक भेज दिया ।👇
काश्मीरान् दरदान् कुन्तीन् क्षुद्रकान् मालवान् शकान् ।चेदि, काशि, कारुषांश्च ऋषिकान् क्रथकैशिकान् ।।
अंगान् वंगान् कलिंगांश्च मागधान् काशिकोसलान्
रात्रायणान् वीतिहोत्रान्  किरातान् मातिकावतान्
एतानन्यांश्च राजेन्द्रान् देशे देशे सहस्रश:
निकृत्त्यनिशितैर्बाणै: सम्प्रदाय  विवस्वते।।

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युद्ध काल में राजा लोग अपने जोश उत्पादन के लिए
नग्न नर्तकियों को नचाते और उनपर गीत गबाते थे ।जिन्हें आधुनिक भाषा में चीयरस्गर्ल कहते हैं ।👇

सुबन्धुरं रथं राजन्नास्थाय  भरतर्षभ ।।
नग्निकानां कुमारीणां गायन्तीनामुपाश्रृणोत् ।।

भरत-श्रेष्ठ युधिष्ठर तदन्तर सुन्दर रथ पर सौभविमान के साथ युद्ध करने वाले ।शक्तिशाली वीर परशुराम ने गीत गाती हुई नग्निका कुमारियों के मुख से यह सुना ।

महाभारत में  भी  अन्य पुराणों की तरह कल्कि अवतार का वर्णन है ।
--जो बौद्ध मतावलम्बी पाषण्ड मत के अनुयायीयों का वध करेंगे ।👇महाभारत सभापर्व- अर्घाभिहरण पर्व

कल्की विष्णु यशा नाम भूयश्चोत्पत्स्यते हरि :।
कलेर्युगान्ते सम्प्राप्ते धर्मे शिथिलतां गते।।
पाखण्डिनां गणानां हि वधार्थे भरतर्षभ:।
धर्मस्य च विवृद्धि अर्थ विप्राणां हितकाम्यया ।।

कलियुग के अन्त में जब धर्म शिथिल हो जाएगा ।उस समय भगवान् विष्णु पाखण्डीयों के वध और धर्म की वृद्धि के लिए  ब्राह्मणों के हित की कामना से पुन: कल्कि अवतार लेंगे ।

मौर्य वंश का सूत्रपात मुर दैत्य से हुआ  👇
प्रागज्योतिषपुर का राजा मुरस्य दश चात्मजा:।
नैर्ऋताश्च यथा मुख्या: पालयन्त उपासते ।।
प्रागज्योतिषपुर का राजा भौमासुर ,मुर के दशपुत्र तथा प्रधान-प्रधान राक्षस उस अन्त पुर की रक्षा करते हुए सदा उसके समीप ही रहते ।
महाभारत सभापर्व-अर्घाभिहरण पर्व अड़तालीस वाँ अध्याय ( दक्षिणात्यपाठ)

कैराता दरदा दर्वा: शूरा वै यमकास्तथा ।
औदुम्बरा दुर्विभागा: पारदा बाह्लिकै: सह ।13।
काश्मीराश्च कुमाराश्च घोरका हंसकायना:।
शिबित्रिगर्त यौधेया राजन्या भद्रकेकया :।14।
अम्बषा: कौकुरास्तार्क्ष्या वस्रपा: पह्लवै: सह।
वशातलाश्च मौलया: सह क्षुद्रकमालवै:।15।
शौण्डिका: कुकुराश्चैव शकाश्चैव विशाम्पते।
अंगा वंगाश्च पुण्ड्राश्च शाणवत्या गयास्तथा।16।
अहार्षु: क्षत्रिया वित्तं शतशो८जात शत्रवे ।17।
(महाभारत सभापर्व-द्यूतपर्व  )
किरात, दरद,दर्व,शूर, यमक,औदुम्बर,दुर्विभाग, पारद, बाह्लीक,काश्मीर , कुमार ,घोरक,हंसकायन ,शिबि, त्रिगर्त,यौधेय, भद्र , कैकय ,अम्बष्ठ ,कौकुर ,तार्क्ष्य,वस्रप, पह्लव,वशातल ,मौलेय, क्षुद्रकमालवै,मालव, शौण्डिक, कुक्कर,शक, अंग,वंग ,औड्र, शाणवत्या और गय –ये उत्तम कुल में उत्पन्न श्रेष्ठ एवं शस्त्रधारी क्षत्रिय राजकुमार सैकड़ों की संख्या में युधिष्ठर को 'बहुत सी धन समर्पित कर रहे थेेेे ।

त्यजेत् कुलार्थे पुरुषं ग्रामस्यार्थे कुलं तयजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथ्वी त्यजेत् ।।11।
(महाभारत सभापर्व-द्यूतपर्व)

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