शनिवार, 20 अप्रैल 2019

शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,👃चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

महाभारत के रचयिता गणेश देवता (भाग पञ्चम्)
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शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,
चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ- प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

यद्यपि ब्राह्मणों द्वारा लिखे गये पुराण, महाभारत और वाल्मीकि रामायण आदि -ग्रन्थों पर सभी पुष्यमित्र सुंग की रूढ़ि वादी परम्पराओं के अनुयायी ब्राह्मणों ने ठप्पा (मौहर) लेखन की व्यास जी की लगाई है।
जैसे कि कृष्ण द्वैपायन व्यास ने सारे ग्रन्थ लिखे हों।
झूँठ अस्वाभाविक व प्रकृति के नियमों के विरुद्ध होता है।
परन्तु पुराणों तथा महाभारत का लेखन अनेक व्यक्तियों द्वारा किया गया है।
ये किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं क्यों कि इनमें विरोधाभास है ।
कोई एक व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर खड़ा होकर
परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न बातें नहीं कहेगा।
सत्य केवल एक रूप है उसका कोई विकल्प नहीं
जबकि झूँठ ( मिथ्या) है 'वह अनेक रूप धारणाओं करने वाला बहुरूपिया है ।
   केवल ऋग्वेद प्रथम और दशम मण्डल को छोड़कर अन्य सभी मण्डल प्राचीनत्तम हैं।

इसी लिए इनकी कथाओं में परस्पर विरोधाभासी रूप भी होने से असत्य हैं।
पुराण इत्यादि किंवदन्तियों पर आधारित रचनाऐं हैं।

भाषाओं के शब्दों का ऐैतिहासिक व्युत्पत्ति मूलक विश्लेषण भी इतिहास का सम्पूरक रूप है।
अब हिन्दु धर्मावलम्बी महाभारत को गणेश जी के द्वारा लिखित रचना मानते हैं ।
परन्तु महाभारत में यूनानी शब्दों का प्रयोग है ।👇

महाभारत में सुरंग शब्द का आगमन ई०पू० 323 में आगत यूनानीयों की भाषा से है ।

महाभारत में सुरुंगा शब्द यूनानीयों का-- तथा पाषण्ड शब्द बौद्ध कालीन शब्द है ।
बाद में पाषण्ड का रूप पाखण्ड होगया ।
नीचे सुरंग शब्द का व्युत्पत्ति विश्लेषण करेंगे👇
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पुरोचनाद् रक्षमाणा : संवत्सरमतन्द्रिता:।
सुरुंगां कारयित्वा तु विदुरेण प्रचोदिता : ।२२।

पुरोचन से रक्षित हो सदा सजग रहकर उन्होंने एक वर्ष तक वहाँ निवास किया ।
फिर विदुर की प्रेरणा से पाण्डवों ने एक सुरंग खुदवाई ।
(महाभारत आदि पर्व ६१ वाँ अध्याय )

सुरुंगां विविशुस्तूर्णं मात्रा सार्धम् अरिंदमा: ।१२।
(महाभारत आदि पर्व सम्भव पर्व १४७ वाँ अध्याय)

यदु शिष्यो८सि मे वीर वेतनं दीयताम् मम ।५४।
            (महाभारत में वेतन शब्द प्रयोग)
यह शब्द भी संस्कृत भाषा में आगत है ।
क्यों कि संस्कृत भाषा में इसकी व्युत्पत्ति अनिश्चत है ।👇
वेतन= अज--तनन् वीभावः
१ कृतकर्मणोमृतौ (अमरः कोश)।
मृतिशब्दे दृश्यम् । २ जीवनोपाये (हेमचन्द्र कोश ) ।

महाभारत आदि पर्व सम्भव पर्व१३१वाँ अध्याय

त्रि वर्ष कृत यज्ञस्तु गन्धर्वाणामुपप्लवे ।
अर्जुन प्रमुखै: पार्थै: सौवीर : समरे हत:।२०।
न शशाक वशे कर्तुं यं पाण्डुरपि वीर्यवान् ।
सो८र्जुनेन वशं नीतो राजा८८सीद् यवनाधिप: ।२१।

महाभारत आदि पर्व सम्भव पर्व  १३८वाँ अध्याय।
सौवीर देश का राजा , जो गन्धर्वों के उपद्रव के बाद भी तगातार -तीन वर्षों तक यज्ञ करता रहा।
वह युद्ध मे अर्जुन के साथ मारा गया।
पाण्डु भी जिसे न जीत सके
उस यवन देश (यूनान) के राजा को जीत कर अर्जुन ने अपनी अधीन कर लिया।
यह वर्णन ई०पू० 323 बाद का है ।

चार : सुविहित: कार्य आत्मनश्च परस्य वा ।
पाषण्डांस्तापसादींश्च परराष्ट्रेषु योजयेत् ।६३।

महाभारत आदि पर्व सम्भव पर्व १३८वाँ १४९ अध्याय
( पाषण्ड शब्द अशोक कालीन बौद्धों का पवित्र सम्प्रदाय था ।
--जो कालान्तरण में बौद्ध मत के पतन के बाद दिखावे के अर्थ में रूढ़ हो जाता है।

प्रमाण तो यह मिलता है कि यूनानीयों ने सुरंग शब्द का प्रयोग चौदहवीं शताब्दी से किया है।
और महाभारत में यह इसी समय सम्पादित हुआ।

ग्रीक पुरातन कथाओं में सुरंग एक अप्सरा विशेषः है
भाषाविज्ञानी संस्कृत के सुरंग शब्द का विकास ग्रीक भाषा के सिरिंक्स (syrinx) से ही मानते हैं।
प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु (swer)से बने सिरिंक्स का अर्थ होता है:- ट्यूब, नलिका या पाईप जैसी रचना।

ग्रीक में ही सिरिंक्स का रूपान्तरण सिरिंग (syringe) में हुआ।

लैटिन में भी इसका यही रूप रहा जिसने अंग्रेजी में सिरिंज (Syringe) का रूप लिया जिसका मतलब भी पाईप या नलिका होता है।

आधुनिक चिकित्सा में इञ्जेक्शन लगाने के उपकरण को सिरिञ्ज कहा जाता है ;
जो एक खोखली, पतली ट्यूब जैसी रचना होती है।

ग्रीक भाषा के सिरिंक्स में मूलतः बांस के पोले पाईप का भाव था जिसे फूंक मारकर बजाया जाता है।

किसी नलिका को फूंकने पर वायु तरंगे उसकी दीवारों से टकराती हैं जिससे स्वर पैदा होता है।
(स्वर+अञ्ज)= स्वर उत्पादक।

भाषा विज्ञानियों का मानना है ग्रीक का सिरिंक्स शब्द मूल रूप से हिब्रू से आया है।

हिब्रू में एक त्र्यक्षर मूलक धातु है s-r-k या s-r-q जिसमें फुसफुसाने, फूंकने का भाव है ।

जो सीधे सीधे पाईप जैसी संरचना से जुड़ता है।
हिब्रू में मेस्रोकिता और स्रीका जैसे वाद्य हैं जो संस्कृत सुषिर वाद्यों की श्रेणी में आते हैं।

और फूंक से बजते हैं।
स्पष्टत: सिरिंक्स में जो पाईप या नलिका का भाव है । वह हिब्रू मूल से आ रहा है।
जल प्रबन्धन प्रणाली के रूप में सिरिंक्स ने ही सेमिटिक परिवार की भाषाओं जैसे सीरियक, अरबी आदि में स्थान बनाया।
ग्रीक भाषा में भी इसकी व्युत्पत्ति- दृष्टव्य है।👇
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ΕΤΥΜΟΛΟΓΙΑ-- etymology
From Greek mythology, as recorded by Ovid.
(Syrinx was a nymph,)
who when pursued by the god Pan,
  fled to the river edge.
Calling on help from the river nymphs, she was transformed in a hollow water reed (which were later to become Pan's pipes).

Syringos was therefore the term for a hollow tube and later became used for medical syringes which are also essentially hollow tubes.
The spinal cord abnormality, syringomyelia derives from this same root.
Categories: Medical etymology |of
( Medical Dictionary )
syringe (noun.)
"narrow tube for injecting a stream of liquid," early 15th century  (earlier suringa, late 14th century), from Late Latin syringa, from Greek syringa, accusative of syrinx "tube, hole, channel, shepherd's pipe," related to syrizein "to pipe, whistle, hiss," from PIE root *swer- Sanskrit स्वर् (see susurration).
Originally a catheter for irrigating wounds; the application to hypodermic needles is from 1884. Related: Syringeal.
susurration (noun)
"a whispering, a murmur," century 1400, from Latin susurrationem (nominative susurratio), from past participle stem of susurrare "to hum, murmur," 
स्वर करना ,भिनभिनाना।
from susurrus "a murmur, whisper," a reduplication of the PIE (Proto-Indo-europian) imitative *swer- "to buzz, whisper"
(source also of Sanskrit (svarati) "sounds, resounds," Greek (syrinx )"flute," Latin (surdus) "dull, mute," Old Church (Slavonic svirati )"to whistle," (Lithuanian surma) "pipe, shawm," German (schwirren) "to buzz," Old English (swearm) "a swarm").

This message has been Composed /edited by Yadav Yogesh kumar 'Rohi....
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अर्थात्  ग्रीक पौराणिक कथाओं से सिरिञ्ज का यह सन्दर्भ उद्धृत है ।
जो कि  माथॉलिष्ट (पुराण शास्त्री) ओविड द्वारा दर्ज किया गया था।
सिरिंक्स एक अप्सरा थी ;
जिसका भगवान पान द्वारा पीछा किया, वह नदी किनारे से भाग गयी  नदी नालों से सहायता के लिए पुकारने से, उसे खोखले पानी के रीड (जो बाद में पान की पाइप बनने के लिए प्रयुक्त हुआ) सिरिञ्ज में बदल दिया गया

इसलिए सिरिञ्ज एक खोखले ट्यूब के लिए रूढ़ शब्द होगय था।
और बाद में मेडिकल सिरिञ्ज के लिए भी उपयोग किया जाता है ;जो कि वास्तव में खोखले ट्यूब हैं ।
रीढ़ की हड्डी की असामान्यता, (syringomyelia) इसी मूल  से निकला शब्द है ।

श्रेणियाँ: चिकित्सा व्युत्पत्ति |
(चिकित्सा शब्दकोश )
सिरिंज (संज्ञा)
"तरल की एक धारा इंजेक्शन के लिए संकीर्ण ट्यूब," जल्दी 15 वीं सदी (पूर्व स्वरण , देर 14 सदी), ग्रीक सिरिञ्ज से, लैटिन सिरिञ्ज से, सिरिंक्स "ट्यूब, छेद, चैनल, चरवाहा के पाइप" के अनुक्रियात्मक, "पाईप, सीटी, हील, मूल-भारोपीय रूप से" (Susurration )। मूल रूप से सिंचाई के लिए एक कैथेटर;।

सशक्तिकरण (संज्ञा)
"एक फुसफुसाते हुए, एक बड़बड़ाहट," सदी 1400 वीं, लैटिन ससुरात्रेम (नामित संसूर्य) से, पिछले कृत्रिम श्वास से "स्वर सोर , बड़बड़ाहट" के सूसुर "एक बड़बड़ाहट, कानाफूसी" से, मूल-भारोपीय रूप अानुकरणिक * स्वेरेयर "बज़, कानाफूसी" (स्रोत से भी) संस्कृत (svarati)स्वरयति "की आवाज़, (resounds," ग्रीक( syrinx) "बांसुरी," लैटिन (surdus )"सुस्त, मूक," पुराने चर्च स्लाविक श्वेरटी "सीटी," लिथुआनियाई (surma) "पाइप, शाम," जर्मन (schwirren) "buzz करने के लिए," पुराने अंग्रेजी swearm "एक झुंड")।

संस्कृत भाषा में सृ--अङ्गच् नि० (सिँध) सन्धो हला० । २ कैवर्त्तिकायाम् राजनि० ।
सुरङ्गा ।

सीँध इति सुरङ्ग इति च भाषा ।
तत्पर्य्यायः । 
सन्धिला २ सन्धिः ३ ।
इति जटाधरः ॥
(यथा महाभारते । १। १४९ । ११। 
ज्ञात्वा तु तद्गृहं सर्व्वमादीप्तं पाण्डु नन्दनाः।
सुरुङ्गां विविशुस्तूर्णं मात्रा सार्द्ध मरिन्दमाः ॥  “
हिन्दी में सुरंग शब्द का अर्थ भूमिगत मार्ग, खोखला स्थान, नाली, आदि होता है।

सुरंग शब्द का रूढ़ अर्थ भूमिगत मार्ग या मानव निर्मित गुफा-कन्दरा से ही लगाया  लगाया जाता रहा है । जबकि पश्चिमी एशिया में सुरंग एक सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से विकसित जलप्रबंध व्यवस्था का नाम है।

भूमध्यसागरीय देशों में लगभग सभी स्थानों पर यह -व्यवस्था  है।
इसका प्रारम्भ सीरिया से माना जाता है; विद्वानों की एेसी मान्यता है ।
भारत के कर्नाटक में ही सुरंगम् नाम की जलप्रबंध व्यवस्था उसी तरह स्थिर है जैसी पश्चिम एशिया में है।
वैसे राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी कुछ स्थानों पर यह व्यवस्था है।

सुरंग शब्द भारोपीय भाषा परिवार से सम्बद्ध है ।
और सेमिटिक भाषा परिवार में भी है।
विभिन्न भाषा परिवारों में बोली जाने वाली भाषाओं की प्रकृति में चाहे भिन्नता कितनी भी होती हो परन्तु उनमें शब्द निर्माण की प्रकृति और स्थितियां समान होती हैं।

नहर, कैनाल जैसे शब्दों में यह साफ हो चुका है ।
प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की (swer) धातु जिसका संस्कृत रूप है स्वृ जिससे स्वर शब्द बना है।
स्वृ :--शब्द,उपतापयोः

- स्वरति समो गम्यृछि (1329)
तङ्-संस्वरते सवरतिसूति (7244) इति वेट्-स्वरिता स्वर्ता सनीवन्तर्ध (7249) इति सिस्वरिषति सुस्वूर्षति स्वरः शॄस्वृस्निहि (उ0 111) इत्युः-स्वरुर्वज्रम् स्वारयति चुरादौ स्वर आक्षेपे (10251)
अदन्तः [ स्वरयति ] 901
है। बाद में इसमें नाली, पोला स्थान, भूमिगत मार्ग, खदान या गुहा जैसे भाव उद्भूत हुए।
गुफा, सुरंग आदि में संकीर्ण और समानान्तर भित्तियों  के कारण ध्वनि गुञजायमान होती है ।

भाषाविज्ञानी संस्कृत के सुरंग शब्द का विकास ग्रीक भाषा के सिरिंक्स syrinx से भी मानते हैं। प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु swer बने सिरिंक्स का अर्थ होता है ट्यूब, नलिका या पाईप जैसी रचना। ग्रीक में ही सिरिंक्स का रूपांतर सिरिंग syringe में हुआ। लैटिन में भी इसका यही रूप रहा जिसने अंग्रेजी में सिरिंज Syringe का रूप लिया जिसका मतलब भी पाईप या नलिका होता है।
आधुनिक चिकित्वा में इंजेक्शन लगाने के उपकरण को सिरिंज कहा जाता है जो एक खोखली, पतली ट्यूब जैसी रचना होती है।
ग्रीक भाषा के सिरिंक्स में मूलतः बांस के पोले पाईप का भाव था जिसे फूंक मारकर बजाया जाता है।
किसी नलिका को फूंकने पर वायु तरंगे उसकी दीवारों से टकराती हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है।
महाभारत,पुराण रामायण आदि ग्रन्थ इसी काल में लिखे गये।
प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"
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इतना ही नहीं रूढ़ि वादी अन्ध-विश्वासी ब्राह्मणों ने यूनान वासीयों की उत्पत्ति नन्दनी गाय की यौनि से बता डाली है।👇

असृजत् पह्लवान् पुच्छात् 
प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् (द्रविडान् शकान्)।

योनिदेशाच्च यवनान् शकृत: शबरान् बहून् ।३६।
मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: ।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान्
सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७।
यवन, शकृत,शबर,पोड्र,किरात,सिंहल,खस,द्रविड,पह्लव,चिंबुक, पुलिन्द, चीन , हूण,तथा केरल आदि जन-जातियों की काल्पनिक व्युत्पत्तियाँ-
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नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये ।
तथा धनों से द्रविड और शकों को।
यौनि से यूनानीयों को  और गोबर से शबर उत्पन्न हुए।

कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र किरात यवन सिंहल बर्बर और खसों की -सृष्टि ।३७।
ब्राह्मण -जब किसी जन-जाति की उत्पत्ति-का इतिहास न जानते तो उनके विभिन्न चमत्कारिक ढ़गों से उत्पन्न कर देते ।
अब इसी प्रकार की मनगड़न्त उत्पत्ति अन्य पश्चिमीय एशिया की जन-जातियों की कर डाली है देखें--नीचे👇
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चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८।

इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक  ,पुलिन्द, चीन ,हूण केरल, आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई ।
(महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय)
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भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् ।
दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् ।

तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी अट्टालिका वाली है ।
महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय ।
वाल्मीकि रामायण के बाल काण्डके चौवनवे सर्ग में वर्णन है कि 👇
-जब विश्वामित्र का वशिष्ठ की गो को बलपूर्वक ले जाने के सन्दर्भ में दौनों की लड़ाई में हूण किरात शक यवन आदि जन-जाति उत्पन्न होता हैं ।

अब इनके इतिहास को यूनान या तीन में या ईरान में खोजने की आवश्यकता नहीं।
👴...

तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सुरभि: सासृजत् तदा ।
तस्या हंभारवोत्सृष्टा: पह्लवा: शतशो नृप।।18।

राजकुमार उनका 'वह आदेश सुनकर उस गाने उस समय वैसा ही किया उसकी हुंकार करते ही सैकड़ो पह्लव जाति के वीर उत्पन्न हो गये।18।

पह्लवान् नाशयामास शस्त्रैरुच्चावचैरपि।
विश्वामित्रार्दितान् दृष्ट्वा पह्लवाञ्शतशस्तदा ।20
भूय एवासृजद् घोराञ्छकान् यवनमिश्रतान् ।।
तैरासीत् संवृता भूमि: शकैर्यवनमिश्रतै:।21

उन्होंने छोटे-बड़े कई तरह के अस्त्रों का प्रयोग करके उन पहलवानों का संहार कर डाला विश्वामित्र द्वारा उन सैकडौं पह्लवों को पीड़ित एवं नष्ट हुआ देख उस समय उस शबल गाय ने पुन: यवन मिश्रित जाति के भयंकर वीरों को उत्पन्न किया उन यवन मिश्रित शकों से वहां की सारी पृथ्वी भर गई 20 -21।

ततो८स्त्राणि महातेजा विश्वामित्रो मुमोच ह।
तैस्ते यवन काम्बोजा बर्बराश्चाकुलीकृता ।23।

तब महा तेजस्वी विश्वामित्र ने उन पर बहुत से अस्त्र छोड़े उन अस्त्रों की चोट खाकर वे यवन कांबोज और बर्बर जाति के योद्धा व्याकुल हो उठे 23
अब इसी बाल-काण्ड के पचपनवें सर्ग में देखें---
कि यवन गाय की यौनि से उत्पन्न होते हैं
और गोबर से शक उत्पन्न हुए।

योनिदेशाच्च यवना: शकृतदेशाच्छका: स्मृता।
रोमकूपेषु म्लेच्‍छाश्च हरीता सकिरातका:।3।
यौनि देश से यवन शकृत् देश यानि( गोबर के स्थान) से शक उत्पन्न हुए  रोम कूपों म्लेच्‍छ, हरित ,और किरात उत्पन्न हुए।3।

यह सर्व विदित है कि बारूद का आविष्कार चीन में हुआ
बारूद की खोज के लिए सबसे पहला नाम चीन के एक व्यक्ति ‘वी बोयांग‘ का लिया जाता है।
कहते हैं कि सबसे पहले उन्हें ही बारूद बनाने का आईडिया आया.
माना जाता है कि वी बोयांग ने अपनी खोज के चलते तीन तत्वों को मिलाया और उसे उसमें से एक जल्दी जलने वाली चीज़ मिली. बाद में इसको ही उन्होंंने ‘बारूद’ का नाम दिया.

300 ईसापूर्व में ‘जी हॉन्ग’ ने इस खोज को आगे बढ़ाने का फैसला किया और कोयला, सल्फर और नमक के मिश्रण का प्रयोग बारूद बनाने के लिए किया. इन तीनों तत्वों में जब उसने पोटैशियम नाइट्रेट को मिलाया तो उसे मिला दुनिया बदल देने वाला ‘गन पाउडर‘ बन गया ।

ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय" सूर्य्यः वंश वर्णन" में एक प्रसंग है ।👇
बाहोर्व्यसनिन : पूर्व्वं हृतं राज्यमभूत् किल।
हैहयैंस्तालजंघैश्च शकै: सार्द्ध द्विजोत्तमा: ।35।
यवना: पारदाश्चैव काम्बोजा : पह्लवास्तथा।
एते ह्यपि गणा: पञ्च हैहयार्थे पराक्रमम् ।36।

लोमहर्षण जी ने कहा हे ब्राहमणों यह बाहू राजा पहले बहुत ही व्यसनशील था ।
इसलिए शकों के साथ हैहय और तालजंघो ने इसका राज्य से छीन लिया ।
यवन ,पारद, कम्बोज और पह्लव यह भी पांच गण थे जो  हैहय यादवों के लिए अपना पराक्रम दिखाया करते थे ।
अर्थात्‌ उनके सहायक थे ।

इसी अध्याय में अागे वर्णन है कि
शका यवन कम्बोजा: पारदाश्च द्विजोत्म।
कोणि सर्पा माहिषिका दर्वाश्चोला: सकेरला:।50।
सर्वे ते क्षत्रिया विप्रा धर्म्मस्तेषां निरीकृत: ।
वसिष्ठ वचनाद्राज्ञा सगरेण महात्मना।51।
(ब्रह्म-पुराण के पाँचवें अध्याय सूर्य्यः वंश वर्णन में)

शक यवन कांबोज पारद कोणि सर्प माहिषक दर्व: चोल केरल यह है विप्रो क्षत्रिय ही रहे हैं कि उनका धर्म निराकृत कर दिया गया था और क्योंकि यह सभी अपने प्राणों की रक्षा के लिए वशिष्ठ जी की शरण में चले गए थे ।इसलिए वसिष्ठ जी के वचनों से महात्मा सगर ने फिर मारा नहीं था केवल उनके धर्म को परिवर्तित कराकर क्षत्रिय ही बना रहने दिया था 50-51

तोमरा हंसमार्गाश्च काश्मीरा: करुणास्तथा।
शूलिका : कहकाश्चैव मागधाश्च तथैव च।50।
ए ते देशा उदीच्यास्तु प्राच्यान् देशान्निवोधत।
अंधा वाम अंग कुरावाश्च वल्लकाश्च  मखान्तका: 51।

तथापरे जनपदा प्रोक्ता दक्षिणापथवासिन: ।
पूर्णाश्च केरलाश्चैव मोलांगूलास्तथैव च ।54।
ऋषिका मुषिकाश्चैव कुमारा रामठा शका: ।
महाराष्टा माहिषका कलिंंगाश्चैव सर्व्वश:।55।
आभीरा: शहवैसिक्या अटव्या सरवाश्च ये ।
पुलिन्दश्चैव मौलेया वैदर्भा दन्तकै: सह ।56।

तोमर हंस मार्ग कश्मीर करुण शूलिक कुहक, मगध यह सब देश उदीच्य हैं अर्थात उत्तर दिशा में होने वाले हैं आप जो देश प्राच्य अर्थात्‌ पूर्व दिशा में हैं उनको भी समझ लो आंध्र वामांग कुराव, बल्लक , मखान्तक 51।

तथा दूसरे जनपद दक्षिणा पथ गामी हैं पूर्ण, केरल गोलंगमून ऋषिक मुषिक ,कुमार रामठ, शक ,महाराष्ट्र माहिषक ,शक कलिंग वैशिकी के सहित आभीर अटव्य,सरव, पुलिन्द,मोलैय और दंतको के सहित वेदर्भ यह सब दक्षिण दिशा के भाग में जनपद हैं। 54-56

वाल्मीकि रामायण बाल-काण्ड अष्टादश: अध्याय टमें वर्णित है ।
चारणाश्च सुतान् वीरान् ससृजुर्वनचारिण: ।
वानरान् सुमहाकायान् सर्वान् वै वनचारिण:।।२३।
देवताओं का गुण गाने वाले बनवासी चारणों ने बहुत से  विशालकाय वानर पुत्र उत्पन्न किए वे सब जंगली फल फूल खाने वाले थे ।23।
अब वानर जब वन के वरों से उत्पन्न हुए हैं ।
तो वानरों को नर का पूर्वज क्यों माना जाय ।

वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि
कि -जब राजा दशरथ की अवस्था साठ हजार वर्ष की हो गयी तब राम का जन्म हुआ।
(बीसवाँ सर्ग बाल-काण्ड)
षष्टिर्वर्षसहस्राणि जातस्य मम कौशिक।10
कृच्छ्रेणोत्पादितश्चायं न रामं नेतुमर्हसि।
हे कुशिक नन्दन !मेरी अवस्था साठ हजार वर्ष की हो गयी ।इस बुढ़ापे में में बड़ी कठिनाई से पुत्र प्राप्ति हुई है अत आप राम को न ले जाऐं।
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प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार "रोहि"

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