'मेद' से 'मेव' और फिर मेदवाट से मेवात शब्द का विकास हुआ ।

हरियाणा-राजस्‍थान की सीमा से सटे इलाके में रहने वाले "मेव" जाति  के लोग  सदियों से पशुपालन और  कृषि कार्य के लिए जानी जाते रहे हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे यह इलाका लिंचिंग.    ( lynching) (हत्या)

की घटनाओं के लिए कुख्‍यात होने लगा है जैसे गुज़र अहीर और जाट होते हैं ।

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"मेद जनजाति गोपों के समकक्ष ब्राह्मण वाद के द्वेष का भाजन बनी और इस पशुपालक जनजाति को ब्राह्मणों ने शूद्र रूप में घसीटने की कोशिश की यद्यपि ये युद्ध- प्रिय जन जाति के लोग ही थे जो भारत से लेकर  प्राचीन ईरान तक  विद्यमान थे।

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Median or Mede or Medes were an ancient Iranian people who lived in Media, in the northwest of present-day Iran and and south-east Turkey. Historians

मीडियन या मेडे( मेद:) या मेड्स एक प्राचीन ईरानी लोग थे जो मीडिया में रहते थे, जो वर्तमान ईरान के उत्तर-पश्चिम में और दक्षिण-पूर्वी तुर्की में है। इतिहासकारों ने साबित कर दिया है कि मिदियन साम्राज्य और कुछ नहीं बल्कि मांडा( मेद) (साम्राज्य था,
 जो मांडा जाट कबीले द्वारा शासित था
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"मेव" शब्द के उच्चारण से ही  जेहन में जो छवि उभरती है वह कद्दावर, उभरती ललाईं लिए गोरे चिट्टे लोग जो गद्दी जनजाति के समतुल्य हैं ।


शारीरिक रूप में ये ऊंची नाक, चौड़ा माथा और छरहरा शरीर वाले लोग . 
पेशा के तौर पर पशु पालन या खेती बाड़ी करते थे।.
हरियाणा और राजस्थान के कुछ जिलों में फैली मेव आबादी. कुछ दशक पहले तक पहनावा, रहन सहन, बोली बानी, खान-पान यहां तक कि खुशी गमी के रीति रिवाज सब राजस्थानी या हरियाणवी, बहुत हद तक राजपूतों से मेल खाते थे. 
परन्तु अपने स्वाभिमान और सम्मान की खातिर इन्होंने ने ब्राह्मणों की वर्णव्यवस्था में शूद्र रूप में अपने को कभी स्वीकार नहीं किया। इतना ही नहीं जितनी पशुपालक वीर जनजातियाँ थीं उन्होंने पुरोहित वाद की वर्णव्यवस्था को स्वीकार न करके इस्लामिक शरीयत की समानतावादी विचारधारा को स्वेच्छा से ग्रहण किया परन्तु अपना मौलिक जीवन शैली का अन्दाज कभी नहीं बदला अर्थात् इनकी परम्पराऐं गूजरजाट और अहीरों जैसी ही रहीं ।
अहीर' गूजर' और जाटों के समकक्ष यह जनजाति स्वाभिमानी और योद्धा वर्ग की थी।
इतिहास में इन्हें ही मेड़ मेद और 'मेर तथा 'मेव नाम से भी जाना गया ।

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इन मेव के तार जुड़े आर्यों से, यानी मध्य एशिया की ये नस्ल मेद नाम से शुरु हुई ईरान में इनका अस्तित्व था.

इतिहा-

प्रकृति की पूजा करने वाले आर्यों के कई दलों में से एक मेद कबीले के लोग भी तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान, अजरबैजान और ईरान जैसे मध्य एशिया के इलाकों से अफगानिस्तान और सिंध के रास्ते भारत भूमि में आये. 

वैदिक युग में मेद कहलाने वाले ये लोग जब प्राकृत भाषा के युग तक पहुंचे तो मेद शब्द का रूपान्तरण 'मेव रूप में हो गया ।

  'द' वर्ण 'व' में बदल गया और मेद से मेव हो गया.

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 कहते हैं कि कभी मेवाड़ का नाम भी "मेदवाट" अर्थात् मेद जनजाति का (आवृत स्थान)घेरेदार जगह।

 इसी मेदवाट से मेवाड़ शबद का विकास हुआ तो ऐसे में मेवाड़, मारवाड़ और मेवात सभी सहोदर शब्द ही प्रतीत होते हैं

भारतीय भूमि पर आने के बाद ये प्रकृति पूजक मेद फिर ईसवी पूर्व पांच सौ साल पहले तक बौद्ध अनुयायी भी हुए।

सिंध और कंधार से लेकर सरस्वती और सिंधु नदी के आसपास मेवों की खासी आबादी थी. 

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अरब से आये यात्रियों ने अपने यात्रा वृत्तांत में इन मेदों को बौद्ध बताया है।

और इन पशुपालक किसानों के पास दो कूबड़ वाले ऊंट होने की बात लिखी है.।

ये दो कूबड़ वाले ऊंट ही इनके मध्य एशिया से आने की पुष्टि करते हैं।

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क़ासिम का भारत आगमन

अल हज्जाज ने दाहिर से अपने लूटे गये जहाजों के बदले जुर्माने की माँग की थी। 

किन्तु दाहिर ने असमर्थता जताते हुए कहा कि उसका उन लुटेरों पर कोई नियंत्रण नहीं है। दाहिर के इस जवाब से क्रुद्ध होकर ख़लीफ़ा अल हज्जाज ने सिन्ध पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

लगभग 712 में अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन क़ासिम ने 17 वर्ष की आयु में सिन्ध के अभियान का सफल नेतृत्व किया था ।

 इस्लाम की भाईचारा नीति से प्रभावित होकर कुछ मेवों ने इस्लाम की दीक्षा ली और मुसलमान हो गये।

इसके बाद बारहवीं सदी में जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने 1192 में अजमेर से दिल्ली की पैदल यात्रा की तब भी लाखों राजपूतों ने उनके प्रभाव में आकर इस्लाम अपनाया.

मेवों ने धर्म तो कई बदले जैसे ईरानी से हिन्दू फिर बौद्ध  और आज इस्लाम लेकिन परंपराओ  की जड़ें बहुत गहरी रही हैं ।

"नूँह" भारत के हरियाणा राज्य के मेवात ज़िले में स्थित एक नगर है। यहीं के रहने वाले पेशे से सिविल इंजीनियर लेकिन प्रवृत्ति से इतिहासकार सिद्दीक मेव बताते हैं कि अभी भी राजपूतों के 52 गोत्र और 12 पाल मेवों में मौजूद हैं.।

 12 पाल में पांच पाल यदुवंशियों के, चार पाल गूजरों के यानी तंवर या तोमर, दो सूर्यवंशी राजपूतों के और एक चौहानों का है. 

52 गोत्र में से 30 गोत्र तो सीधे राजपूतों वाले हैं. 

बाकी 22 में गूजर, अहीर और जाटों के गोत्र हैं.

"सदियां बीत गईं ;धर्म तो कई बदले लेकिन परंपराएं जड़ों में ऐसी पैठी हैं कि वो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जा रही हैं.

 शादी , जनम -मरण ग़मी  और पर्व में परंपराएं यथावत्  हैं. वो तो अब जाकर दीनी जमातों का असर दिखने लगा है. वरना राजस्थान और हरियाणा के भी कई इलाकों में आज भी शादी ब्याह में दूल्हा-दुल्हन के दरवाजे जाकर राजपूतों की तरह तोरण मारता यानी टीपता है.

 बच्चा पैदा हो तो कुआं पूजते हैं. शादी ब्याह में मामा के यहां से भात आना, चाक पूजन, उबटन हल्दी चढ़ाना, घोड़ी चढ़कर बारात सजाना सब जस का तस ही है।

 लेकिन अब जैसे-जैसे पहचान का मामला तेज हो रहा है मजहबी कट्टरता बढ़ रही है. तीस चालीस बर्ष पहले तक मेवों के नाम भी अर्जुन, कन्हैया, उदय, रणमल, जैसे ही होते रहे हैं

अब माहौल बदल गया है.

हाल तक ईद-बकरीद के साथ होली-दिवाली मनाने वाले मेव अब बड़ी दाढ़ियां रखने लगे हैं.।

पगड़ी साफा की जगह गोल टोपी ने ले ली है. धोती पाजामे की जगह तहमद आ गई है.

सदियों पुरानी कला, संस्कृति, बहादुरी और शौर्य गाथाओं से समृद्ध परंपरा दरक रही है.

 इतिहास में मेवातियों की कई कहानियां चोरी, डकैती और अपराध कथाओं से भी कलंकित मिलती हैं. 

पशुओं की चोरी, लूटपाट और राहजनी के किस्से मेवात में ही नहीं दूरदराज के इलाकों में भी कहे सुनाए जाते हैं.

 दिल्ली और आसपास के इलाकों में लूटपाट और हत्या करने वाले मेवाती गिरोह कुख्यात हैं.

 लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान अब कट्टरता की वजह से हो रहा है.

 इन लोगों में शिक्षा का प्रभाव कम है। लिहाजा इन्हें आसानी से बरगलाकर अपराधिक प्रवृत्तियों में फांस लिया जाता है.

 यहां से आतंकवाद के कई पन्ने भी खुलते हैं. जाहिर है बदलाव सिर्फ धर्म और रहन सहन में ही नहीं बल्कि सोच में भी हो रहा है. 

बदलाव बुरा नहीं होता बल्कि वो सोच बुरी होती है जो ऊंचा उठाने के बजाय नीचे ले जाए.।

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जाट, गुजर्र सरीख गोत्र-पाल के झंझावात में "मेव" मुसलमान भी बुरी तरह उलझे हैं।

 इनके नियमों की अनदेखी का साहस करने वालों की पिटाई से लेकर हत्या तक झेलनी पड़ जाती है।

 कई दफा ऐसे लोगों को जबर्दस्त सामाजी बंदिशें भी ङोलनी पड़ जाती हैं। मेवात के रुपड़ाका में एक मौलवी की इसलिए हत्या कर दी गई थी कि उसने गोत्र में शादी को गलत ठहरा दिया था।


"इस्लाम में दूध के रिश्तों में निकाह जायज नहीं। यानी आम मुसलमान अपने भाई, बहन, चाचा, ताऊ से निकाह नहीं कर सकते हैं । 

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मेव मुसलमानों में इसकी जगह एक गोत्र में लड़की या लड़के के लेन देन का रिवाज नहीं।

 मेव मुसलमानों के बावन गोत्र एवं बारह पालें हैं। जिनमें रिश्तेदारियों को लेकर सख्त कायदे कानून हैं। जब भी किसी ने इसे तोड़ने का प्रयास किया उसे कई तरह की सजा झेलनी पड़ी। 

मेवात के खानपुर घाटी के एक रोडवेज ड्राइवर "जान मोहम्मद" को गोत्र-पाल की धौंस के चलते शादी से ठीक एक रोज पहले बेटी का रिश्ता तोड़ना पड़ा था। 

 ऐसा नहीं करने पर उसे गांव छोड़ने की धमकी दी गई थी।

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उसने भूलवश अपनी लड़की की शादी ऐसे गांव में तय कर दी। जहां से लड़की लाने का रिवाज था।

 गुलालता गांव के छिरकलौत पाल का युवा दंपति पंचायत के भय से पिछले छह साल से दिल्ली में रह रहा। 

उन्होंने नियमों को तोड़कर प्रेम विवाह किया है। इसी तरह के मामले में फंसने के चलते मेवात के एक विधायक को आनन फानन में अपने लड़के का ब्याह सोहना में करना पड़ गया था।

"मेव मुसलमान की पालें: बालौत, लड़ावत, रटावत, देड़वाल, डेमरौत, छिरकलौत, पंदलौत, दूलौत, सींगल, कलीसा, देंगल-

 इनके चौधरियों की बावन गोत्रों के गांवों पर चौधराहट चलती है

-बाकी गोत्र थांबों यानी उपपालों में बंटे हैं

मेवात मुसलमान व रणजी खिलाड़ी: मंसूर आलम: आज भी पाल के चौधरियों की अपने गोत्र पर पकड़ ढीली नहीं हुई है।

हाजी रमजान: शिक्षा एवं इस्लामी प्रभाव बढ़ने से पहले की तुलना में पालों का जोर कम हुआ है।

मेव मुसलमान की पालें: बालौत, लड़ावत, रटावत, देड़वाल, डेमरौत, छिरकलौत, पंदलौत, दूलौत, सींगल, कलीसा, देंगल

- इनके चौधरियों की बावन गोत्रों के गांवों पर चौधराहट चलती है
-बाकी गोत्र थांबों यानी उपपालों में बंटे हैं

मेवात मुसलमान व रणजी खिलाड़ी: मंसूर आलम: आज भी पाल के चौधरियों की अपने गोत्र पर पकड़ ढीली नहीं हुई है।
हाजी रमजान: शिक्षा एवं इस्लामी प्रभाव बढ़ने से पहले की तुलना में पालों का जोर कम हुआ है

मेव उत्तर-पश्चिमी भारत से एक मुस्लिम समुदाय है ये खासकर मेवात के आसपास और हरियाणा के मेवात जिले और राजस्थान में अलवर और भरतपुर जिलों के कुछ हिस्सों में। मेव मेवाती बोलते हैं।

"परम्परा"

मेव आम तौर पर वंशानुक्रम के मुस्लिम कानून का पालन नहीं करते हैं और इसलिए उनके बीच, क्षेत्र के विभिन्न अन्य समुदायों की तरह, रिवाज एक छोटे भाई या चचेरे भाई को एक साधारण निकाह समारोह द्वारा मृतक की विधवा से शादी करवाते हैं।

"इतिहास"

मेव मेवात के निवासी हैं, एक ऐसा क्षेत्र जिसमें हरियाणा के मेवात जिले और राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलवर और भरतपुर जिलों के कुछ हिस्से शामिल हैं, जहाँ मेव एक सहस्राब्दी से रहते आ रहे हैं। एक सिद्धांत के अनुसार, वे हिंदू राजपूत थे जो 12 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच इस्लाम में परिवर्तित हो गए।

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"प्रस्तुति-करण:- यादव योगेश कुमार रोहि" 

सम्पर्क सूत्र :–8077160219"


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