_________________________________
(भतृहरिनीतिशतक)-गाली देनी परम्परा मानवीय संस्कृति का प्राचीन विधान है ।
गाली देने की हमारे देश में मनोविज्ञान और शास्त्रीय परम्परा है।
गालि भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखती है
गाली वैश्विक बहुआयामी मानव व्यवहार से सम्बद्ध भड़ास निस्तारक का साधन ही नही है। अपितु अपने क्रोध शमन का सैदान्तिक निदानक भी है ।
कुछ विचारक इसे अनैतिक त्रुटि के रूप में रूप में देखते हैं । और कुछ सद्भाव विध्वंसक भी मानते हैं।
लेकिन इसके कुछ अन्य भी प्रयोग हैं । जैसे कि व्यक्ति को जब अपनी भड़ास निकालने के लिये अन्य कोई भी साधन नहीं मिलता है। तो वह गालि नामक सुलभ संसाधन का प्रयोग बड़ी सहजता से कर लेता है !
और वह गाली का प्रयोग कर के अपने अहम तुष्टि और विरोध की सशक्त पुष्टि करता है !
दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि जब हमारे विचार, हमारा सामर्थ किसी अन्य व्यक्ति के विचार और सामर्थ्य से नहीं मिलता है तो हम उसे गाली देकर अपने मन का विरोध प्रकट कर संतोष प्राप्त कर लेते हैं !
गाली विरोध मूलक क्रोध की भाषा है।
अधिकतर गालियाँ यौन सम्बन्धों से सम्बन्धित हैं हमारी अधिकतर देशी गालियाँ माँ बहन मूलक हैं अधिकतर गालियाँ स्त्रीयों की यौनिकता पर आघात करती हैं।
अधिकतर गालियाँ यौन सम्बन्धों से सम्बन्धित हैं हमारी अधिकतर देशी गालियाँ माँ बहन मूलक हैं अधिकतर गालियाँ स्त्रीयों की यौनिकता पर आघात करती हैं।
गालियाँ हमारी मनो वासना ओ के निष्तारण से फ्टी वाल्व (Safety valve) -सुरक्षा द्वार) है जो मानव मन में कई परतों में जमे हुए क्रोध- विरोध और प्रतिशोध को बाहर निकालती है। यदि गालियाँ समाज से बहिष्कृत कर दी जाऐं तो समाज बीमार हो जाऐगा। गालियों की नालियों से ही मन की गन्दगी बाहर निकलती है अन्यथा मानव मन में सड़ान्ध हो जाय।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें