यह स्थाई भाव इन्द्रियों से सम्पूर्ण शक्ति संग्रहीत करके स्वाभिमान का प्रहरी बनकर और प्रतिद्वंद्वीयों के समक्ष तनकर उत्साह नामक स्थाई भाव का जागरण करते हुए वीर रस का भी सृजन करता है ।
युद्ध के मैदान में वीरों का सारथी क्रोध ही है ।
अन्यथा विना क्रोध के वीरता ही समाप्त हो जाऐगी
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