गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-


अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-


there is a(adverb & conjuction)

Old English þær "in or at that place,
so far as, provided that, in that respect, from

1-Proto-Germanic "thær"
(source also of

2-Old Saxon thar,

3-Old Frisian ther,

4-Middle Low German dar,

5-Middle Dutch daer,

6-Dutch daar,

7-Old High German dar,

8-German da, Gothic þar,

9-Old Norse þar), from
"proto -indo European pie "tar-
"there"
(source also of Sanskrit tar-hi 10-"then" (तर्हि ),

संस्कृत भाषा में तर्हि शब्द विचारणीय -

तद् + र्हिल् ।
तस्मिन् काले इत्यर्थे ।
"उस समय" इस अर्थ में :-

“रक्षांसि वा एनं तर्ह्यालभन्ते यर्हि न जायते”
उद्धृत अंश:-(ऐतरैय ब्राह्मण )।

“यर्हि वाव वो मयार्थो भविता तर्ह्येव वोऽहं पुनरा- गन्तास्मि” (तैत्तीरिय संहिता )।

This article has been edited by Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'.

अंग्रेजी व्याकरण में "इट" और "देयर" का प्रयोग एवं प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय:-

Use of "it" and "There " in English grammar and introduction of interrogative pronoun words: -
___________________________________________

Use of It and There
When a sentence has no subject, then '
It and There' are used as an Introductory Word.

'इट' और 'देयर' का उपयोग करें-
जब किसी वाक्य का कोई विषय (कर्ता) नहीं होता, तब '
'इट' और 'देयर'  'एक परिचायक शब्द के रूप में उपयोग किया जाता है।

e.g. (exempli gratia)( for example)

1- It is a goat.
एक बकरी है ।

2- There is no way.
कोई रास्ता नहीं है ।

In there examples,
Doer is missing।

"देयर" के उदाहरणों में,
कर्ता गायब है।

'It' and 'There' are used as introductory word ।

"इट " और' "देयर" 'परिचयात्मक शब्दों के रूप में उपयोग किया जाता है।

परन्तु 'It' और 'There' का प्रयोग कर्ता के ना होने पर परिचायक शब्द (इंट्रोड़क्टरी वर्ड) के रूप में किया जाता है।

जैसे -  बकरी है ।
कोई रास्ता नही है ।

"इट" और "देयर" 'परिचयात्मक शब्दों के रूप में उपयोग किया जाता है।

Use of It --- 'It' is a third-person, singular neuter pronoun.

इट का प्रयोग -- "इट" अन्य पुरुष ,एक वचन नपुंसक सर्वनाम है ।

'It' can be used for either a Subject or an Object in a sentence.

"इट" का प्रयोग वाक्य' में  दौनों में से किसी के लिए भी किया जा सकता है ; कर्ता या कर्म ।

Its Personal, Possessive and Reflexive form is given below:

"इट" का पुरुष वाचक , अधिकार वाचक ,और निज वाचक रूप नीचे दिया जाता है ।

Singular Pronoun एकवचन सर्वनाम।

Personal subject, Personal object Possessive, Reflexive & Personal

  object, Possessive Reflexive Third neutral,  it , its , itself :- यह, वह, इसका ,इसने अपने आप ,

Plural Pronoun बहुवचन सर्वनाम ।

Third neutral they,  hem, their themselves:-
वे, उनका ,उनके ,उन्होनें ,वे अपने आप --In the absence of subject, 'It' is used as an introductory word.

कर्ता की अनुपस्थिति में "इट" का प्रयोग एक परिचायक शब्द के रूप में किया जाता है।🍉

1-One is to apprise only time say 'seven o'clock'.
एक है केवल समय की सूचना देने के लिए कहैं " सात बजे हैं "

2-Subject is not there and in the absence of Subject in sentence.

जहाँ वाक्य'में कर्ता अनुपस्थित होता है

'seven o'clock' does not sound good.
Here 'It' is used as an introductory word and sentence will be - It is seven o'clock.

कर्ता की अनुपस्थिति में परिचय कराने वाले शब्द के रूप में 'It' का प्रयोग होता है - 💐

जैसे - सात बजे हैं ।
सब्जेक्ट के बिना अनुवाद होगा 'seven O'clock' जो की उचित नही जान पड़ता है अतः ऐसे वाक्यो में 'It' की सहायता ली जाती है ;
और अनुवाद होगा 👇

'It is seven o'clock' ।
'It' is used to talk about time, date, weather.

'It' का प्रयोग समय, तारीख और मौसम के लिये किया जाता है :-
Examples तीन बजे है।
It is three o'clock.

•साढ़े चार बजे थे।
It was half past four.

•सवा एक बजा है ।
It is quarter past one.

•मेरी घड़ी में 'पौने' चार बजे है ।
It is a 'quarter to' fourO' clock by my watch.

•क्या तुम्हारा जन्म दिन है ?
Is it your birthday?

•11 नवंबर था ।
It was 11th November.

•बरसात हो रही है।
It is raining.

•ठंडी हवा चल रही है ।
It is blowing cold air.

•चेरापूँजी में रोज बूंदा बांदी होती है ।
It drizzles daily in chairapunji.

•लीक कर रहा है ।
It is leaking.

•अंधेरी रात थी ।
It was a dark night.

•क्या आज मौसम अच्छा नही है ?
It is not fine weather today?

'It' is used to talk about people- ourselves as well as others.. ______________________________________________💐

'It' का प्रयोग लोगों (अपने और दूसरों) के बारे में बात करने के लिये किया जाता है ।

Examples:- टेलिफोन पर:- मैं हूँ ।

On the telephone:- It is me.- मैं हूँ टेलिफोन पर:- अव्यन हूँ ।

On the telephone:- It's Avyan.

यह " मी" कर्म के रूप में तभी प्रयुक्त होगा ;
जब लोग देख ना सके:- मैं हूँ, तुम्हारा पड़ोसी !

When people cannot see:- It's me, your neighbour:- मैं हूँ, तुम्हारा पड़ोसी

When people cannot see:- टेलीफोन उठाने पर:- हेलो, कौन है ?
On picking phone:- Hello, who is it?

दरवाजा खट खट की आवाज सुनने पर:- कौन है?

On hearing door knocking sound:- Who is it?

I think answer for “Mai" "hu” would be “It’s me”.

मुझे लगता है कि "मैं हूँ " वाक्य के लिए उत्तर "It is me " होगा।

लेकिन यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कैसे और कहाँ करें ! इसका मतलब है कि यह तदनुसार 'इट' बदल जाएगा।

जैसे अगर कोई आपके दरवाजे के बाहर खड़ा है ;
तो आप शायद पूछेंगे कि कौन है ?

तब बाहर खड़ा व्यक्ति आपको इसका जवाब देना चाहेगा ; जैसे कि मैंने उसके नाम का अनुसरण किया।

तो बुद्धिमान की तरह आप अलग-अलग तरीकों से अपने तरीके को बदल सकते हैं।
यह अंग्रेजी भाषा की सुन्दरता है।

You can also use like below
आप नीचे की तरह भी उपयोग कर सकते हैं।

I am there for you.
मैं तुम्हारे लिए वहाँ हूँ।

Hope this will help !!!
आशा है कि यह मदद करेगा !!!
💐
"जब किसी का लैंगिक बोध न किया गया हो ;तो 'इट' का प्रयोग कर दिया जाता हैं ।
'It' is used when Gender (sex) is not known.

'It' is referred for a baby of human also when sex of the baby is not known.

(God has blessed him with a baby.
It is 'he' or 'she'?
भगवान ने उसे एक बच्चे का आशीर्वाद दिया है।
वह लड़का है या लड़की?)

Animals, Birds, Ants, Insects, etc and lifeless things - visible/invisible (Book, Tree, Stone, Statue, mood, threat  etc) are also "referred"  by 'It'.

जब हमे जेंडर (लिंग) का ज्ञान ना हो तो हम 'It' का प्रयोग करते हैं ।
मनुष्य के बच्चे का भी अगर सेक्स मालूम ना हो तो 'It' से सम्बन्धित प्रयोग किया जाता है ।

जानवर, पक्षी, चींटी, कीड़े आदि एवं बेजानदार वस्तु -प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष (किताब, पेड़, पत्थर, मूर्ती, ड़ांट, मूड, आदि)  को 'It' से ही संबोधित किया जाता है ।

Examples:- यह साँप है ।
It is a snake.
यह बिल्ली है ।
It is a cat.
यह मेरी पुस्तक है । It is my book.
क्या यह आम का पेड़ है ?
Is it a mango tree?

यह आजादी की मूर्ति है ।
It is the statue of Liberty.

जब उसने बच्चे को देखा, वह सो रहा था

(It का प्रयोग जब मेल (नर)/ (मादा)फीमेल में अन्तर ना करना हो)

•When he saw the child, it was sleeping.

(Use of It when you are not to differentiate between male or female)

अभय ने अपनी ड्रेस खराब कर दी है ।
Abhay has spoiled his dress.

वह पत्थर था । जिसने उस लड़के को चोटिल किया ।
It was a stone. It injured that boy.

पिताजी ने मुझे झिड़की लगाई ;
इस झिड़की ने मेरा मूड खराब कर दिया ।

(इसने यहाँ 'झिड़की' के लिये प्रयुक्त हुआ है)
Father rebuked me.
It spoiled my mood. (Here 'It' is used for 'Rebuke')

मेरा बहुत अच्छा मूड था ।
यह मेरे नाती की वजह से था ।
('यह' यहाँ 'मूड' के लिये प्रयुक्त हुआ है)
My mood was very good. It was because of my grandson.
(Here 'It' is used for 'mood')

बढ़ते हुए बेटा की ज्यादा देखभाल मत करो ; यह उसे बिगाड़ देगी ।
Don't take much care of your growing son. It will spoil him.
(Here 'It' is used for 'much care')

'It' is used to refer to a Noun which has come before.🌸

'इट' का प्रयोग  उस संज्ञा को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाता है ; जो पहले ही आयी हो।
-le

The Noun can come before in the same sentence or in the same paragraph(s).

-अर्थात्
'It' का प्रयोग पहले आये हुए नाउन (संज्ञा) के लिये किया जाता है ।
'नाउन' उसी वाक्य में या उसी पैरा में जो पहले आता है ।

Examples:-
1-सूर्य उदय हो गया है ;
यह सबको रोशनी देता है ।
The sun has risen; It gives light to everybody.

2-चाँद शाँंत रहने की प्रेरणा देता है ; यह हमेशा प्यार का भी प्रतीक है ।
The moon inspires to be calm.
It is a symbol of love also.

3-यह पुस्तक बहुत रुचिकर है ; यह बहुत कीमती है ।This book is very interesting.
It is very costly.

4-स्टॅच्यू ऑफ लिबर्टी, यह लिबर्टी आइलॅंड़ में स्थित है । इसकी लंबाई 46 मीटर है । इसका निर्माण 1870 मे हुआ था।

(यहाँ नाउन के लिये बाद में हर बार 'It -यह' का प्रयोग हुआ है)

Statue of Liberty is located on Liberty Island.
Its height is 46 meter. It was erected in 1870.
(Here 'It' is used for Noun every time after in the sentences).

5-नल बह रहा है ; इसकी मरम्त करनी पड़ेगी ।
Tap is running. It ( "will have to ")be repaired.
उपर्युक्त वाक्य  द्वित्तीय भाग 'कर्म -वाच्य में बनाया गया हैं ; क्योंकि इसका कर्ता अज्ञात है
इसकी मरम्मत करना पड़ेगी।

6-कार पार्किंग में खड़ी है ;यह सुरक्षित है ।
Car is standing in the parking.
It is safe.
__________________________________________

'It' is used to refer to a Clause which has come before.
'It' का प्रयोग पहले आये हुए वाक्य के एक भाग (उपवाक्य) के लिये किया जाता है ।
Examples :- मैने उसको पदोन्नत किया है और उसको इसका पता है ।
I have promoted him, and he is aware of it .

उसने अपना चेहरा दिखाया था ;
यह उसकी योजनाबद्ध कार्यवाही थी ।
He had shown his face.
It was his planned action.

पिछले महीने से वह लगातार आ रहा है ;
यह इसलिये क्योंकि वह ट्रान्सफर चाहता है ।
He has been visiting daily for the last month.
It for because, he wants transfer.

राँझे ने लैला के लिये अपना जीवन कुर्बान कर दिया है ; इसका जमाने को नहीं पता है।

Ranjhhe  has sacrificed his life for laila.
It is not known to world.

मंजुला ने सारा काम कर लिया था ; यह मेरी जानकारी में था ।
Manjula had completed whole work.
It was in my knowledge.

कितनी खूबसूरत गौरैया है यह!
What a beautiful sparrow it is !

'It' is used to refer to a Phrase or Clause coming after.
'It' का प्रयोग बाद में आने वाले वाक्य के भाग (उपवाक्य)या वाक्यांश के लिये किया जाता है । 👇

Examples:-
•इसकी संभावना है की वह आ सकता है।
•It is possible that he may come.

मुश्किल था उसकी योजना का (पूर्वानुमान) करना ।
It was difficult to (anticipate) his plans.

दु:ख है ; उसके एक्सिडेंट के बारे में जानकर ।
It is sad to know about his accident.

बढ़िया (लायक/उचित ) है वहाँ जाना और शो को देखना ।
It is (worth) to go there and see the show.

आधा घंटा लगेगा वहां जाने में ।
It will take half an hour to reach there.

रुचिकर था आखिर में तुम्हारे भाई से मिलना ।
It was interesting to meet your brother at last.

बहुत बेकार है व्यस्त घंटो में ड्राइविंग।
It is awful driving in peak hours.

बहुत बढ़िया है लंदन में 4D मूवी (देखना )।
It is great (watching) 4D movie in London. ____________________________________________💐

'It' is also used to emphasise Noun or Pronoun.
'It' का प्रयोग किसी चीज (Noun और Pronoun) को महत्व (जोर) देने के लिये भी किया जाता है ।

Examples:- यह मैं था ;  जिसने तुम्हें उसके परिणाम के बारे में बताया ।
It was I, who told you about his result.

यह तुम्ही हो जिसने मुझे चुप रहने को कहा है ।
It is you, who has told me to keep quiet.

यह वो स्थान है ; जहाँ पर हम पहली बार मिले थे ।
It is the place, where we had met for the first time.

यह वो व्यक्ति है; जिसने तुम्हें अपना खून दान किया था ।
It is he, who had donated his blood to you.

यह वो हॉस्पिटल है जहाँ तुम पैदा हुए थे ।
It is the hospital, where you were born.

यह वह ऋतु है ;जब तुम आम का आनंद ले सकते हो ।It is the season, when you can enjoy mango.

यही केवल एक "website" है जहाँ इंग्लिश सीखना इतना आसान है ।
It is the only one website, where English learning is so easy.

तुम्ही हो जिसने अपना वायदा निभाना है ।It is you, who is to keep your commitment.

यह मैं था जो तुम्हें बचाने नदी में कूद गया था ।
It was I, who jumped into the river to save you.

उसके अच्छे कर्म ही थे ;जिसने उसे बचा लिया ।
It was his good Actions only, which saved him.
_________________________________________

  Use of There:-  देअर का प्रयोग :-

The word 'There' has a variety of uses.
It usually signifies 'in that place / that location'.

It is also used as first word (introductory word) in a sentence ;
where it has merely an introductory value and three is no signification of its usual meaning of place.

'यह' शब्द 'There' कई प्रकार से इस्तेमाल होता है । इसका आमतौर पर अर्थ है 'वह स्थान' ।
यह परिचायक शब्द के रूप में भी इस्तेमाल होता है जहाँ इसका अर्थ परिचय से ही सम्बंधित होता है वहां उसके आमतौर वाले अर्थ 'वह स्थान' से कोई लेना देना नही होता ।

'There' is used as introductory word when the verb is intransitive and it is followed by the subject of the sentence.

(Intransitive verb is a verb which does not require an object in sentence.

Intransitive verb can give complete meaning without an object in sentence for it). ____________________________________________

There' परिचायक शब्द के रूप में इस्तेमाल होता है जब क्रिया Intransitive (अकर्मक ) हो और वाक्य का सब्जेक्ट (उद्देश्य) इस क्रिया के बाद आये । (Intransitive क्रिया वह है जिसको वाक्य में ऑब्जेक्ट की जरूरत नहीं होती है ।

Intransitive क्रिया, ऑब्जेक्ट के बिना पूरा अर्थ बता सकती है)💥 ____________________________________________

We use 'There' as a dummy subject with Verb
(TO BE form - Is / Are / Was / Were / Will be/ etc)
followed by a Noun phrase / clause.

हम 'There' का प्रयोग एक ड़म्मी सब्जेक्ट (मूक कर्ता) के तौर पर सहायक क्रिया के साथ और संज्ञा वाक्यांश/(क्लॉज़ (उपवाक्य) से पहले परिचायक शब्द के रूप में करते हैं ।

Word - There Type of Sentence Rule:- PositiveThere + To be Form of Verb (Is / Are / Was / Were / Will be/ been/ etc)
+ Other words......

'There' as a pronoun, is used to introduce a noun or phrase or to talk about things we can see and things that exists.

'There'- सर्वनाम के तौर पर इसका इस्तेमाल, Noun या वाक्यांश या वे वस्तुएं जिन्हें हम देख सकते हैं या जिनका अस्तित्व है, का परिचय कराने में होता है ।

Examples :- मेरे कमरे में एक कंप्यूटर है ।
There is a computer in my room.

कार में चार लोग थे ।There were four persons in  car.

केवल 15 विद्यार्थी सिनेमा हॉल में थे ।There were only 15 students in the cinema hall.

कई लोग इस एलिवेटर में हैं । There are too many people in this elevator.

दोपहर में मीटिंग है ; यह पेट्रोल कीमत में वृद्धि पर केन्द्रित करेगी ।
There is a meeting in the afternoon. It will focus on increase of petrol prices.

हर स्टूडेंट के लिये एक कम्प्यूटर होगा ।
There will be a computer for each student. _______________________________________

सुबह खूब बरसात  थी ।
There was a lot of rain in the morning.

सैंकड़ो प्रकार के फूल पार्क में हैं ।
There are hundred types of flowers in the garden.

कम से कम 20 गार्ड रात को सोसायटी में जरूर होने चाहिये ।
There must be minimum 20 guards at night in the society.

घर पर कोई नही होगा ।There will be none at home.

शादी से पहले करने को बहुत काम हैं ।
There is a lot of work to do before marriage.

कई कारण है उसको प्रोमोशन ना देने के ।
There are many reasons for not granting him promotion.
कुछ ही विरोधी है ।
There are only a few opponents.

कल्पवृक्ष जयपुर में है ।
There is a Kalpvriksh in Jaipur.

लंदन में कई मन्दिर हैं ।There are many temples in London.

प्रशान्त के विवाह-स्वागत में 300 से ज्यादा लोग थे ।
There were more than three hundred people in Prashant's wedding reception.

30 लोग से ज्यादा उसे बधाई देने के लिये लाइन में खड़े थे ।
There were more than 30 people standing in queue to congratulate him.

कई लोग है जो सरकार की योजनांओं का समर्थन करते हैं । There are many people ;
who support the Government's policies.

यदि कोई व्यक्ति लाल बत्ती को पार करता है, कृपया उसे चेतावनी दें ।
If there is a person who tries to cross the red traffic light, please warn him.

'There' as an adverb, is normally used to signify its usual meaning 'in that place / that location' ' There' एड़वर्ब (क्रियाविशेषण) के तौर पर साधारणतः इसका प्रयोग वहाँ के लिए होता है ।

इसके आमतौर पर अर्थ ('वह स्थान') से होता है ।

Examples:- क्या तुम सुनते हो; कि वहां कुत्ता भोंक रहा है ? Do you hear that dog-is barking over there?

क्या मैं वहां बैठ सकता हूँ ?May I please sit there?
कोच चिल्लाया, "वही बाहर रुको!"The coach shouted, "Stay outside there!"

ऑफिस में, उसका कैबिन वहां कोने में था ।In the office, his cabin was there in the corner.

नदी किनारे, वह वहां बैठा करता था ।On the bank of river, he used to sit there.

यदि तुम धूम्रपान करना चाहते हो, वहां जाओ ।
If you want to smoke, go there. ______________________________________________

Sentences of helping verb 'Has/Have/Had', which denotes possession, can also be written by using 'There':-

'Has/Have/Had' वाले वाक्यो को हम 'There' 👇से भी अनुवाद कर सकते है ।
Examples:- एक सप्ताह में सात दिन है ।
- सात दिन है एक सप्ताह में ।
अथवा एक सप्ताह रखता है सात दिन ।

A week has seven days./
There are seven days in a week.

👉
मेरे पास दो कार हैं ।
- दो कार है मेरे पास ।
I have two cars. /-
There are two cars with me.

वर्तिका के पास एक तिपाहिया साईकिल है ।
- एक तिपहिया साईकिल है वर्तिका के पास ।
Vartika has one tricycle. - There is one tricycle with Vartika.

अव्यन की जेब में कुछ नही है । - कुछ नही है अव्यन की जेब में ।
Avyan has nothing in his pocket. /There is nothing in Avyan's pocket.

उनके पास कई खिलौने है ।
- कई खिलौने है उनके पास ।They have many  toys. /There are many toys with them.

Other Usage of There Examples:-
हम यहाँं जरूर अराम करेंगे और वहाँ नही ।
We must rest here and not there.

मेरे बेटे ने नोट किया की ; चिड़ियाघर में दो सफ़ेद टाइगर थे ।My son noted that  there were two white tigers in the zoo.

हम वहां से रोड़ के आखिर तक चले,
फिर कुछ पल के लिये बैठे ।
We walked from there to the end of the road;
then we sat for a while.

ऑफिस में कुछ लोग हैं ।
(सही गिनती नही मालूम)There are some people in the office (don't know exact counting)

फ्रिज में थोड़ा दूध है (सही मात्रा नही मालूम)There is some milk in the fridge. (don't know exact quantity)
कुछ चिल्लर है मेरे पास (सही गिनती नही मालूम)There is some change with me. (don't know exact counting)
कोई पैसा नही है मेरे पर्स में । There is not any money in my purse.

(uncountable noun) कोई लड़की आज क्लास में नही है ।
(negative plural में 'Any' का प्रयोग होता है) There are not any girls in the classroom today.
(plural noun) कोई भी लड़की आज क्लास में नही है ।
('Any' singular countable noun के साथ नहीं आता कोई भी कुँआरी लड़की क्लास में नहीं है)

There is not a single married girl in the class.
कोई भी लड़की आज क्लास में नही है ।
(singular countable noun - Any is not used for singular countable noun)

  ______________________________________________

Definite(निश्चित article [The] का प्रयोग -- USE: It generally points out a particular person, place or thing, which we already know about.
(इस "दा" का प्रयोग किसी विशेष वस्तु, व्यक्ति या स्थान के साथ होता है; जिसके बारे में हम पहले से हीं जानते हो.)
Example of the definite article:-

1. With unique people/object – यूनिक (अद्वित्तीय) लोगो/वस्तुओ के साथ, जो केवल एक है.

For example – The sun, The earth, The moon, The president, The CEO, The world, The sky ।

2. With adjective referring to a whole group of people – जो विशेषण पूरे एक ग्रुप या जाति का बोध कराते हैं या सन्दर्भित करते हैं .

Examples – The old .The young .The rich The poor

3. With famous buildings, museums and monuments – प्रसिद्ध भवन, संग्रलाय और स्मारकों के साथ " The " का प्रयोग ।

Example – The Taj Mahal ,The Qutub Minar, The Eiffel tower

4. With superlative degrees of an adjective –
विशेषण की उत्तम अवस्था के साथ Example – The highest, The most, The lowest, The youngest

5. With ordinal number – क्रमवाचक संख्यायों के साथ Example :–The last chapter, The first time, The second occasion ।

6. With countries, the names of which include kingdom, states or republican :–

ऐसे देश के नाम के साथ जिनमें kingdom, states or republican यह नाम आता हो.

Examples :– The united states ,The united kingdom, The republican of Ireland

7. With countries that have the plural name Examples :–
The Nederlands, The Philippines

8. With river, canals, and oceans – नदी, नहर और सागरों के नाम के साथ Examples :– The Gangas, The Nile, The Antarctic ,The Pacific ।

9. With the names of families – फैमिली के नाम के साथ Examples :– The Ranas ,The Khans, The Tatas 👈👇👉

10. Only से पहले The का प्रयोग तभी किया जाता है. जब sentence में only का इस्तेमाल “एकलौता” ऐसे कहने के लिए किया गया हो.

Examples – The only sun ,The only friend, The only batsmen।

11. “Whole” शब्द के पहले और “All” इस शब्द के बाद भी the इस article का use किया जाता है.

Examples :– All the boys are here.
I wish, to visit the whole world. ______________________________________________

The इस article का use कहाँ नहीं होता.
यह भी जानें !

1-किसी भी disease के नाम से पहले.

2-भाषा के नाम से पहले.
3- प्रॉपर नाउन से पहले the का इस्तेमाल नहीं होता.

4-🍇🍉 :- Breakfast, launch और dinner इनके पहले भी "द" का प्रयोग नहीं होता है ।

5- Hospital, God और school के पहले भी द का प्रयोग नहीं होता है.

तो चलिए इस प्रकार आज हमने article के बारे में सिखा. की कब  इसका प्रयोग (use) करना है.
कब नहीं करना. साथ ही "articles" के example भी देख लिए.

अब कुछ प्रश्नवाचक सर्वनाम शब्दों का परिचय कराया जाता है ।
Now some interrogative pronoun words are introduced.

प्रश्न वाचक शब्द ---
1-क्या (kya) What ।
2-कब (kab) When ।
3-कहाँ (kaha) Where
4-क्यों (kyu) Why
5- कौन (kaun) Who( सजीव या मानवों के लिए)
कौन (kaun) Which निर्जीव या वस्तुओं के लिए)

जिसको (jise) Whoom.

जिसका (jiska)Whose .

कैसे (kaise)How.

कितने (kitne)How many ( गिनती के लिए)

कितने ( kitne)How much (मात्रा के लिए)

-- कौन (pronoun।) शब्द भारोपीय भाषा परिवार में विद्यमान है ।
1-संस्कृत क: । 2-पुरानी अंग्रेज़ी hwa "कौन," कभी-कभी "क्या; कोई भी, कोई; प्रत्येक; जो भी, इन सभी के लिए"
3- आद्य-जर्मनिक भाषा में "ह्वास" से विकसित रूप (ओल्ड सैक्सन में "ह्वे" का स्रोत है ।

4- डेनिश -ह्वो,

5- स्वीडिश- वेम,

6- पुरानी फ़्रिसियाई- ह्वा,

7-डच -वाई,

8-ओल्ड हाई जर्मन- ह्वार,

9-जर्मन- वेर,

10-गोथिक- ह्वो (महिला।)

"कौन"),

11-प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय * kwo-, रिश्तेदार और पूछताछ सर्वनाम के  विस्तृत हुआ रूप ।

12-वैदिक भाषा ( क: ) यह इसके अस्तित्व के लिए सबूत के तौर है: संस्कृत क: "कौन, जो;"

13-अवेस्तान में "को,

14-हित्ति में कुइश "कौन;"

👇15- लैटिन क्विज़ / क्विड "किस सम्मान में, किस हद तक; कैसे, क्यों," क्वा "कहां, किस तरह," qui / quae / quod "कौन, जो;"

16- लिथुआनियाई कास- "कौन;"

17-ओल्ड चर्च स्लाविक -कुटो,

18-रूसी -केटो "कौन;"

19-पुरानी आयरिश -ce( कि)

20-वेल्श पीवी "कौन;"

( पुरानी अंग्रेज़ी hwa, hwæt, hwær, )
आदि रूपों का विकास वैदिक क: ( कौन) के समतुल्य है ।

मकारान्त पुल्लिङ्गः किम् शब्द का पुल्लिंग रूप क: । विभक्ति एकवचन द्विवचनम.
बहुवचनम
प्रथमा:- कः who । कौ  के

द्वितीया :-कम्. whom कौ  कान् ।

तृतीया :-केन काभ्याम् कैः

चतुर्थी :- कस्मै काभ्याम्  केभ्यः

पञ्चमी :-कस्मात् काभ्याम् केभ्यः

षष्ठी कस्य:-whose कयोः. केषाम्

सप्तमी:- कस्मिन् कयोः केषु । _____________________________________________

प्रस्तुति करण:- यादव - योगेश कुमार "रोहि"



हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप । भाग प्रथम

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप । भाग प्रथम मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अपने विचार ,भावनाओं एवं अनुभुतियों को अभिव्यक्त करने के लिए जिन माध्यमों को चुना है वह भाषा है । मनुष्य कभी शब्दों तो कभी संकेत द्वारा संप्रेषणीयता (Communication) का कार्य करता है। अर्थात् अपने मन्तव्य को दूसरों तक पहुँचाता है । किन्तु भाषा उसे ही कहते है ,जो बोली और सुनी जाती हो,और बोलने का तात्पर्य मूक मनुष्यों या पशु -पक्षियों का नही ,बल्कि बोल सकने वाले मनुष्यों से अर्थ लिया जाता है। इस प्रकार - "भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से हम अपने विचारों को वाणी देते हैं । या सोचते हैं; तथा अपने भावों को व्यक्त करते है। " मनुष्य ,अपने भावों तथा विचारों को तीन प्रकार से प्रकट करता है- १-बोलकर (मौखिक ) २-लिखकर (लिखित) तथा ३-संकेत (इशारों )के द्वारा १.मौखिक भाषा :- मौखिक भाषा में मनुष्य अपने विचारों या मनोभावों को बोलकर प्रकट करते है। मौखिक भाषा का प्रयोग तभी होता है,जब श्रोता सामने हो। इस माध्यम का प्रयोग फ़िल्म,नाटक,संवाद एवं भाषण आदि में अधिक सम्यक् रूप से होता है । २.लिखित भाषा:-भाषा के लिखित रूप में लिखकर या पढ़कर विचारों एवं मनोभावों का आदान-प्रदान किया जाता है। लिखित रूप भाषा का स्थायी माध्यम होता है। पुस्तकें इसी माध्यम में लिखी जाती है। ३.सांकेतिक भाषा :- सांकेतिक भाषा यद्यपि भाव अथ वा विचारों की अभिव्यक्ति का स्पष्ट माध्यम तो नहीं है परन्तु यह भाषा का आदि प्रारूप अवश्य है । स्थूल भाव अभिव्यक्ति के लिए इसका प्रयोग अवश्य होता है । ________________________________________ भाषा और बोली Language and Dialect:- भाषा ,जब किसी बड़े भू-भाग में बोली जाने लगती है,तो उससे क्षेत्रीय भाषा विकसित होने लगता है। इसी क्षेत्रीय रूप को बोली कहते है। कोई भी बोली विकसित होकर साहित्य की भाषा बन जाती है। जब कोई भाषा परिनिष्ठित होकर साहित्यिक भाषा के पद पर आसीन होती है,तो उसके साथ ही लोकभाषा या विभाषा की उपस्थिति अनिवार्य होती है। कालान्तरण में ,यही लोकभाषा परिनिष्ठित एवं उन्नत होकर साहित्यिक भाषा का रूप ग्रहण कर लेती है। दूसरे शब्दों में भाषा और बोली को क्रमश प्रकाश और चमक के अन्तर से जान सकते हैं । भाषा हमारे सभा या समितीय विचार-विमर्शण की संवादीय अभिव्यक्त है । जबकि बोली उपभाषा के रूप में हमारे दैनिक गृह-सम्बन्धी आवश्यकता मूलक व्यवहारों की सम्पादिका है जो व्याकरण के नियमों में परिबद्ध नहीं होती है । आज जो हिन्दी हम बोलते है या लिखते है ,वह खड़ी बोली है, इसके पूर्व ब्रज ,शौरसेनी प्राकृत अवधी,,मैथिली आदि बोलियाँ भी साहित्यिक भाषा के पद पर आसीन हो चुकी है। हिन्दी तथा अन्य भाषाएँ :- संसार में अनेक भाषाएँ बोली जाती है। जैसे -अंग्रेजी,रुसी,जापानी,चीनी,अरबी,हिन्दी ,उर्दू आदि। हमारे भारत में भी अनेक भाषाएँ बोली जाती है । जैसे -बंगला,गुजराती,मराठी,उड़िया ,तमिल,तेलगु आदि। हिन्दी भारत में सबसे अधिक बोली और समझी जाती है। हिन्दी भाषा को संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया है। _________________________________________ लिपि (Script):- लिपि का शाब्दिक अर्थ होता है - लेपन या लीपना पोतना आदि अर्थात् जिस प्रकार चित्रों को बनाने के लिए उनको लीप-पोत कर सम्यक् रूप दिया जाता है । उसी प्रकार विचारों को साकार रूप लिपिबद्ध कर भाषायी रूप में दिया जाता है। लिखित या चित्रित करना । ध्वनियों को लिखने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग किया जाता है,वही लिपि कहलाती है। प्रत्येक भाषा की अपनी -अलग लिपि होती है। हिन्दी की लिपि देवनागरी है। हिन्दी के अलावा -संस्कृत ,मराठी,कोंकणी,नेपाली आदि भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती है। व्याकरण ( Grammar):- व्याकरण वह विधा है; जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना या लिखना व पढ़ना जाना जाता है। व्याकरण भाषा की व्यवस्था को बनाये रखने का काम करते है। व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं अशुद्ध प्रयोगों पर ध्यान देता है। इस प्रकार ,हम कह सकते है कि प्रत्येक भाषा के अपने नियम होते है,उस भाषा का व्याकरण भाषा को शुद्ध लिखना व बोलना सिखाता है। यह भाषा के नियमों का विवेचन शास्त्र है । व्याकरण के तीन मुख्य विभाग होते है :- १.वर्ण -विचार :- इसमे वर्णों के उच्चारण ,रूप ,आकार,भेद,आदि के सम्बन्ध में अध्ययन होता है। २.शब्द -विचार :- इसमे शब्दों के भेद ,रूप,प्रयोगों तथा उत्पत्ति का अध्ययन किया जाता है। ३.वाक्य -विचार:- इसमे वाक्य निर्माण ,उनके प्रकार,उनके भेद,गठन,प्रयोग, विग्रह आदि पर विचार किया जाता है। वाक्य विचार(Syntax) की परिभाषा:- वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, 'वाक्य' कहलाता हैै। दूसरे शब्दों में- विचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को 'वाक्य' कहते हैं। सरल शब्दों में- सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है। जैसे- विजय खेल रहा है, बालिका नाच रही हैैै। वाक्य के भाग वाक्य के दो भाग होते है- (1)उद्देश्य (Subject) (2)विद्येय (Predicate) (1)उद्देश्य (Subject):-वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं। सरल शब्दों में- जिसके बारे में कुछ बताया जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे- सौम्या पाठ पढ़ती है। मोहन दौड़ता है। इस वाक्य में सौम्या और मोहन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अन्तर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है जैसे- 'परिश्रम करने वाला व्यक्ति' सदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार 'परिश्रम करने वाला' है। उद्देश्य के भाग- (parts of Subject) उद्देश्य के दो भाग होते है- (i) कर्ता (Subject) (ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द। (2) विधेय (Predicate):- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते है। जैसे- सौम्या पाठ पढ़ती है। इस वाक्य में 'पाठ पढ़ती' है विधेय है क्योंकि सौम्या (उद्देश्य )के विषय में कहा गया है। दूसरे शब्दों में- वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है। इसके अन्तर्गत विधेय का विस्तार आता है। जैसे- नीली नीली आँखों वाली लड़की 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई' । इस वाक्य में विधेय (गई) का विस्तार 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर' है। विशेष-आज्ञासूचक वाक्यों में विधेय तो होता है किन्तु उद्देश्य छिपा होता है। जैसे- वहाँ जाओ। खड़े हो जाओ। इन दोनों वाक्यों में जिसके लिए आज्ञा दी गयी है वह उद्देश्य अर्थात 'वहाँ न जाने वाला '(तुम) और 'खड़े हो जाओ' (तुम या आप) अर्थात उद्देश्य दिखाई नही पड़ता वरन् छिपा हुआ है। विधेय के भाग- (Parts of Predicate) विधेय के छः भाग होते है- (i) क्रिया verb (ii) क्रिया के विशेषण Adverb (iii) कर्म Object (iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द (v) पूरक Complement (vi)पूरक के विशेषण। नीचे की तालिका से उद्देश्य तथा विधेय सरलता से समझा जा सकता है- वाक्य. उद्देश्य. विधेय. गाय घास खाती है- सफेद गाय हरी घास खाती है। सफेद गाय हरी घास खाती है। सफेद -कर्ता विशेषण गाय -कर्ता [उद्देश्य] हरी - विशेषण कर्म घास -कर्म [विधेय] खाती है- क्रिया [विधेय] वाक्य के भेद वाक्य के भेद- रचना के आधार पर रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है- There are three kinds of Sentences Acording to Structure. (i)साधरण वाक्य (Simple Sentence) (ii)मिश्रित वाक्य (Complex Sentence) (iii)संयुक्त वाक्य (Compound Sentence) (i)साधरण वाक्य या सरल वाक्य:-जिन वाक्य में एक ही समापिका क्रिया होती है, और एक कर्ता होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है। दूसरे शब्दों में- जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं। इसमें एक 'उद्देश्य' और एक 'विधेय' रहते हैं। जैसे- सूर्य चमकता है', 'पानी बरसता है। इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात कर्ता और विधेय, अर्थात क्रिया है। अतः, ये साधारण या सरल वाक्य हैं। (ii)मिश्रित वाक्य:-जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक प्रधान उपवाक्य (Priceple Clouse ) तथा शेष आश्रित उपवाक्य (Sub-OrdinateClouse) हों, मिश्रित वाक्य कहलाता है। दूसरे शब्दों में- जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे 'मिश्रित वाक्य' कहते हैं। जैसे- 'वह कौन-सा मनुष्य है, जिसने महाप्रतापी राजा चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम न सुना हों'। दूसरे शब्दों मेें- जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य हो और अन्य आश्रित (गौण) उपवाक्य हों तथा जो आपस में 'कि'; 'जो'; 'क्योंकि'; 'जितना'; 'उतना'; 'जैसा'; 'वैसा'; 'जब'; 'तब'; 'जहाँ'; 'वहाँ'; 'जिधर'; 'उधर'; 'अगर/यदि'; 'तो'; 'यद्यपि'; 'तथापि'; आदि से मिश्रित (मिले-जुले) हों उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं। इनमे एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती है। जैसे- मैं जनता हूँ कि तुम्हारे वाक्य अच्छे नहीं बनते। जो लड़का कमरे में बैठा है वह मेरा भाई है। यदि परिश्रम करोगे तो उत्तीर्ण हो जाओगे। 'मिश्र वाक्य' के 'मुख्य उद्देश्य' और 'मुख्य विधेय' से जो वाक्य बनता है, उसे 'मुख्य उपवाक्य' और दूसरे वाक्यों को आश्रित उपवाक्य' कहते हैं। पहले को 'मुख्य वाक्य' और दूसरे को 'सहायक वाक्य' भी कहते हैं। सहायक वाक्य अपने में पूर्ण या सार्थक नहीं होते, पर मुख्य वाक्य के साथ आने पर उनका अर्थ निकलता हैं। ऊपर जो उदाहरण दिया गया है, उसमें 'वह कौन-सा मनुष्य है' मुख्य वाक्य है और शेष 'सहायक वाक्य'; क्योंकि वह मुख्य वाक्य पर आश्रित है। (iii)संयुक्त वाक्य :-जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले हों, परन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते है। दूसरे शब्दो में- जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है। सरल शब्दों में- जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं। जैसे- वह सुबह गया और शाम को लौट आया। प्रिय बोलो पर असत्य नहीं। उसने बहुत परिश्रम किया किन्तु सफलता नहीं मिली। संयुक्त वाक्य उस वाक्य-समूह को कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों । इस प्रकार के वाक्य लम्बे और आपस में उलझे होते हैं। जैसे- 'मैं ज्यों ही रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।' इस लम्बे वाक्य में संयोजक 'और' है, जिसके द्वारा दो मिश्र वाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य बनाया गया। इसी प्रकार 'मैं आया और वह गया' इस वाक्य में दो सरल वाक्यों को जोड़नेवाला संयोजक 'और' है। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त वाक्यों में प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखता है, वह एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होता, केवल संयोजक अव्यय उन स्वतन्त्र वाक्यों को मिलाते हैं। इन मुख्य और स्वतन्त्र वाक्यों को व्याकरण में 'समानाधिकरण' उपवाक्य भी कहते हैं। _________________________________________ वाक्य के भेद- अर्थ के आधार पर । Kinds of Sentences Acording to meaning अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है- 1- स्वीकारात्मक वाक्य (Affirmative Sentence) 2-निषेधात्मक वाक्य (Negative Sentence) 3- प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence) 4-आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence) 5-संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence) 6-विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence) 7-विधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence) 8- इच्छावाचक वाक्य ( ILLative Sentence) (i)सरल वाक्य :-वे वाक्य जिनमे कोई बात साधरण ढंग से कही जाती है, सरल वाक्य कहलाते है। जैसे- राम ने रावण को मारा। सीता खाना बना रही है। (ii) निषेधात्मक वाक्य:-जिन वाक्यों में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है। जैसे- आज वर्षा नही होगी। मैं आज घर नहीं जाऊँगा। (iii)प्रश्नवाचक वाक्य:-वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट हो, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते है। जैसे- राम ने रावण को क्यों मारा? तुम कहाँ रहते हो ? (iv) आज्ञावाचक वाक्य :-जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है। जैसे- । परिश्रम करो। बड़ों का सम्मान करो। (v) संकेतवाचक वाक्य:- जिन वाक्यों से शर्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते है। जैसे- यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे। पिताजी अभी आते तो अच्छा होता। अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी। (vi)विस्मयादि-बोधक वाक्य:-जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादि-बोधक वाक्य कहते है। जैसे- वाह !तुम आ गये। हाय !मैं लूट गया। (vii) विधानवाचक वाक्य:- जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते है। जैसे- मैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। राम पढ़ रहा है। (viii) इच्छावाचक वाक्य:- जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते है। जैसे- तुम्हारा कल्याण हो। आज तो मैं केवल फल खाऊँगा। भगवान तुम्हें लम्बी आयु दे। वाक्य के अनिवार्य "तत्व " दार्शनिकों के मतानुसार- वाक्य में निम्नलिखित छ: तत्व अनिवार्य है- (1)Significance (2) Eligibility (3) Aspiration (4) Proximity (5) Grade (6) Unrequited (1) सार्थकता (2) योग्यता (3) आकांक्षा (4) निकटता (5) पदक्रम (6) अन्वय (1) सार्थकता- वाक्य में सार्थक पदों का प्रयोग होना चाहिए निरर्थक शब्दों के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। बावजूद इसके कभी-कभी निरर्थक से लगने वाले पद भी भाव अभिव्यक्ति करने के कारण वाक्यों का गठन कर बैठते है। जैसे- तुम बहुत बक-बक कर रहे हो। चुप भी रहोगे या नहीं ? इस वाक्य में 'बक-बक' निरर्थक-सा लगता है; परन्तु अगले वाक्य से अर्थ समझ में आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है। (2) योग्यता - वाक्यों की पूर्णता के लिए उसके पदों, पात्रों, घटनाओं आदि का उनके अनुकूल ही होना चाहिए। अर्थात् वाक्य लिखते या बोलते समय निम्नलिखित बातों पर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए-👇 (a) पद प्रकृति-विरुद्ध नहीं हो : हर एक पद की अपनी प्रकृति (स्वभाव/धर्म) होती है। यदि कोई कहे मैं आग खाता हूँ। हाथी ने दौड़ में घोड़े को पछाड़ दिया। उक्त वाक्यों में पदों की प्रकृतिगत योग्यता की कमी है। आग खायी नहीं जाती। हाथी घोड़े से तेज नहीं दौड़ सकता। इसी जगह पर यदि कहा जाय- मैं आम खाता हूँ। घोड़े ने दौड़ में हाथी को पछाड़ दिया। तो दोनों वाक्यों में योग्यता आ जाती है। (b) बात-समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि के विरुद्ध न हो : वाक्य की बातें समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि सम्मत होनी चाहिए; ऐसा नहीं कि जो बात हम कह रहे हैं, वह इतिहास आदि के विरुद्ध है। जैसे- दानवीर कर्ण द्वारका के राजा थे। महाभारत 25 दिन तक चला। भारत के उत्तर में श्रीलंका है। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु परस्पर मिलकर कार्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं। (3) आकांक्षा- आकांक्षा का अर्थ है- इच्छा। एक पद को सुनने के बाद दूसरे पद को जानने की इच्छा ही 'आकांक्षा' है। यदि वाक्य में आकांक्षा शेष रह जाती है तो उसे अधूरा वाक्य माना जाता है; क्योंकि उससे अर्थ पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। जैसे- यदि कहा जाय। 'खाता है' तो स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या कहा जा रहा है- किसी के भोजन करने की बात कही जा रही है या बैंक (Bank) के खाते के बारे में ? (4) निकटता- बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरन्तर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए वाक्य को स्वाभाविक एवं आवश्यक बलाघात आदि के साथ बोलना पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है। (5) पदक्रम - वाक्य में पदों का एक निश्चित क्रम होना चाहिए। 'सुहावनी है रात होती चाँदनी' इसमें पदों का क्रम व्यवस्थित न होने से इसे वाक्य नहीं मानेंगे। इसे इस प्रकार होना चाहिए- 'चाँदनी रात सुहावनी होती है'। (6) अन्वय - अन्वय का अर्थ है- मेल। वाक्य में लिंग, वचन, पुरुष, काल, कारक आदि का क्रिया के साथ ठीक-ठीक मेल होना चाहिए; जैसे- 'बालक और बालिकाएँ गई', इसमें कर्ता औरक्रिया का अन्वय ठीक नहीं है। अतः शुद्ध वाक्य होगा 'बालक और बालिकाएँ गए'। ________________________________________ वाक्य-विग्रह (Analysis)👇 वाक्य-विग्रह (Analysis)- वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य-विग्रह कहते हैं। इसे 'वाक्य-विभाजन' या 'वाक्य-विश्लेषण' भी कहा जाता है। सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विधेय बनते है।👇 संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतन्त्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्य) बनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते है।👇 सरल वाक्य= 1 उद्देश्य + 1 विधेय संयुक्त वाक्य= सरल वाक्य + सरल वाक्य मिश्र वाक्य= प्रधान उपवाक्य + आश्रित उपवाक्य Simple Sentence = 1 Objective + 1 Remarkable Joint sentence = simple sentence + simple sentence Mixed sentence = principal clause + dependent clause _________________________________________ वाक्य का रूपान्तर-- (Transformation of Sentences) किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में, बिना अर्थ बदले, परिवर्तित करने की प्रकिया को 'वाक्यपरिवर्तन' कहते हैं। हम किसी भी वाक्य को भित्र-भित्र वाक्य-प्रकारों में परिवर्तित कर सकते है और उनके मूल अर्थ में तनिक विकार या परिवर्तन नहीं आयेगा। हम चाहें तो एक सरल वाक्य को मिश्र या संयुक्त वाक्य में बदल सकते हैं।👇 सरल वाक्य- हर तरह के संकटो से घिरा रहने पर भी वह निराश नहीं हुआ। संयुक्त वाक्य- संकटों ने उसे हर तरह से घेरा, किन्तु वह निराश नहीं हुआ। मिश्र वाक्य- यद्यपि वह हर तरह के संकटों से घिरा था, तथापि निराश नहीं हुआ। वाक्य परिवर्तन करते समय एक बात विशेषत: ध्यान में रखनी चाहिए कि वाक्य का मूल अर्थ किसी भी हालत में विकृत( परिवर्तित )न हो। यहाँ कुछ और उदाहरण देकर विषय को स्पष्ट किया जाता है-👇 (क) सरल वाक्य से मिश्र वाक्य सरल वाक्य- उसने अपने मित्र का मकान खरीदा। मिश्र वाक्य- उसने उस मकान को खरीदा, जो उसके मित्र का था। सरल वाक्य- अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं। मिश्र वाक्य- जो लड़के अच्छे होते है, वे परिश्रमी होते हैं। सरल वाक्य- लोकप्रिय विद्वानों का सम्मान सभी करते हैं। मिश्र वाक्य- जो विद्वान लोकप्रिय होते हैं, उसका सम्मान सभी करते हैं। (ख) सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य सरल वाक्य- अस्वस्थ रहने के कारण वह परीक्षा में सफल न हो सका। संयुक्त वाक्य- वह अस्वस्थ था और इसलिए परीक्षा में सफल न हो सका। सरल वाक्य- सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा। संयुक्त वाक्य- सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा। सरल वाक्य- गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी। संयुक्त वाक्य- उसने न केवल गरीब को लूटा, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी। (ग) मिश्र वाक्य से सरल वाक्य👇 मिश्र वाक्य- उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ। सरल वाक्य- उसने अपने को निर्दोष घोषित किया। मिश्र वाक्य- मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था। सरल वाक्य- तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ। मिश्र वाक्य- जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। सरल वाक्य- परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे। (घ) कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य– कर्तृवाचक वाक्य- लड़का रोटी खाता है। कर्मवाचक वाक्य- लड़के से रोटी खाई जाती है। कर्तृवाचक वाक्य- तुम व्याकरण पढ़ाते हो। कर्मवाचक वाक्य- तुमसे व्याकरण पढ़ाया जाता है। कर्तृवाचक वाक्य- मोहन गीत गाता है। कर्मवाचक वाक्य- मोहन से गीत गाया जाता है। (ड़) विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य👇 विधिवाचक वाक्य- वह मुझसे बड़ा है। निषेधवाचक- मैं उससे बड़ा नहीं हूँ। विधिवाचक वाक्य- अपने देश के लिए हर एक भारतीय अपनी जान देगा। निषेधवाचक वाक्य- अपने देश के लिए कौन भारतीय अपनी जान न देगा ? वाक्य रचना के कुछ सामान्य नियम👇 ''व्याकरण-सिद्ध पदों को मेल के अनुसार " यथाक्रम" रखने को ही 'वाक्य-रचना' कहते है।'' वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही 'मेल' कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में मेल, समानता या सादृश्य रखने वाले कहे जाते हैं। निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम हैं। 👇 इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है। सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए👇 (क) क्रम (order), (ख) अन्वय (co-ordination) और (ग) प्रयोग (use) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है। (क) क्रम किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को 'क्रम' अथवा 'पदक्रम' कहते हैं। इसके कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं- (i) हिंदी वाक्य के आरम्भ में कर्ता, मध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए। जैसे- मोहन ने भोजन किया। यहाँ कर्ता 'मोहन', कर्म 'भोजन' और अन्त में किया 'क्रिया' है। (ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए।👇 जैसे-अच्छे लड़के धीरे-धीरे पढ़ते हैं। (iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं। जैसे- मुरारि ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) श्याम के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) पुस्तक निकाली। (iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है। जैसे- हे प्रभु, मुझ पर दया करें। (v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है। जैसे- मेरी नीली कमीज कहीं खो गयी। (vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है। जैसे- वह तेज दौड़ता है। (vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय। जैसे- क्या मोहन सो रहा है ? टिप्पणी- यदि संस्कृत की तरह हिन्दी में वाक्य रचना के साधारण क्रम का पालन न किया जाय, तो इससे कोई क्षति अथवा अशुद्धि नहीं होती। फिर भी, उसमें विचारों का एक तार्किक क्रम ऐसा होता है, जो एक विशेष रीति के अनुसार एक-दूसरे के पीछे आता है। (ख) अन्वय (मेल) 'अन्वय' में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं। कर्ता और क्रिया का मेल (i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्ति रहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होंगे। जैसे- करीम किताब पढ़ता है। सोहन मिठाई खाता है। रीता घर जाती है।👇 __________________________________________ (ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्ति रहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले 'और' संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी जैसे-👇 मोहन और सोहन सोते हैं। आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं। (iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्वसमास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी। जैसे- नर-नारी गये। राजा-रानी आये। स्त्री-पुरुष मिले। माता-पिता बैठे हैं। (iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्ति रहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच 'और' संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुल्लिंग और बहुवचन में होगी। जैसे- राधा और कृष्ण रास रचते हैं। बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं। (v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा। जैसे-👇 एक लड़का, दो बूढ़े और अनेक लड़कियाँ आती हैं। एक बकरी, दो गायें और बहुत-से बैल मैदान में चरते हैं। (vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय 'या' अथवा 'वा' रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी। जैसे- घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा। हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी। मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी। (vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी। जैसे-👇 वह और हम जायेंगे। हरि, तुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे। वह, आप और मैं चलूँगा। विद्वानों का मत है कि वाक्य में पहले मध्यमपुरुष प्रयुक्त होता है, उसके बाद अन्यपुरुष और अन्त में उत्तमपुरुष; जैसे- तुम, वह और मैं जाऊँगा। कर्म और क्रिया का मेल (i) यदि वाक्य में कर्ता 'ने' विभक्ति से युक्त हो और कर्म की 'को' विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार ही होगी। जैसे- आशा ने पुस्तक पढ़ी। हमने लड़ाई जीती। उसने गाली दी। मैंने रूपये दिये। तुमने क्षमा माँगी। (ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति चिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुल्लिंग और अन्यपुरुष में होगी। जैसे- मैंने कृष्ण को बुलाया। तुमने उसे देखा। स्त्रियों ने पुरुषों को ध्यान से देखा। (iii) यदि कर्ता 'को' प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुल्लिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी। जैसे- तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता। अलका को रसोई बनाना नहीं आता। उसे (उसको) समझ कर बात करना नहीं आता। (iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्ति रहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी। जैसे-👇 श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए। तुमने गाय और भैंस मोल ली। (v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी। जैसे- मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी। सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी। मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा। (vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे 'और' से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी। जैसे-👇 मैंने मिठाई और पापड़ खाये। उसने दूध और रोटी खिलाई। संज्ञा और सर्वनाम का मेल- (i) सर्वनाम में उसी संज्ञा के लिंग और वचन होते हैं, जिसके बदले वह आता है; परन्तु कारकों में भेद रहता है। जैसे- प्रखर ने कहा कि मैं जाऊँगा। शीला ने कहा कि मैं यहीं रूकूँगी। (ii) सम्पादक, ग्रन्थ कार, किसी सभा का प्रतिनिधि और बड़े-बड़े अधिकारी अपने लिए 'मैं' की जगह 'हम' का प्रयोग करते हैं। जैसे- हमने पहले अंक में ऐसा कहा था। हम अपने राज्य की सड़कों को स्वच्छ रखेंगे। (iii) एक प्रसंग में किसी एक संज्ञा के बदले पहली बार जिस वचन में सर्वनाम का प्रयोग करे, आगे के लिए भी वही वचन रखना उचित है। जैसे- अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तुमने हमारी पुस्तक लौटा दी हैं। मैं तुमसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (अशुद्ध वाक्य है।) पहली बार अंकित के लिए 'मैं' का और संजय के लिए 'तू' का प्रयोग हुआ है तो अगली बार भी 'तुमने' की जगह 'तूने', 'हमारी' की जगह 'मेरी' और 'तुमसे' की जगह 'तुझसे' का प्रयोग होना चाहिए :👇 अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तूने मेरी पुस्तक लौटा दी है। मैं तुझसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (शुद्ध वाक्य) (iv) संज्ञाओं के बदले का एक सर्वनाम वही लिंग और वचन लगेंगे जो उनके समूह से समझे जाएँगे। जैसे- शरद और संदीप खेलने गए हैं; परन्तु वे शीघ्र ही आएँगे। श्रोताओं ने जो उत्साह और आनंद प्रकट किया उसका वर्णन नहीं हो सकता। (v) 'तू' का प्रयोग अनादर और प्यार के लिए होता है। जैसे-👇 रे नृप बालक, कालबस बोलत तोहि न संभार। धनुही सम त्रिपुरारिधनु विदित सकल संसार।। (गोस्वामी तुलसीदास) तोहि- तुझसे अरे मूर्ख ! तू यह क्या कर रहा है ?(अनादर के लिए) अरे बेटा, तू मुझसे क्यों रूठा है ? (प्यार के लिए) तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूँ। (vi) मध्यम पुरुष में सार्वनामिक शब्द की अपेक्षा अधिक आदर सूचित करने लिए किसी संज्ञा के बदले ये प्रयुक्त होते हैं-👇 (a) पुरुषों के लिए : महाशय, महोदय, श्रीमान्, महानुभाव, हुजूर, हुजुरेवाला, साहब, जनाब इत्यादि। (b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, महाशया, महोदया, देवी, बीबीजी मुसम्मात आदि। (vii) आदरार्थ अन्य पुरुष में 'आप' के बदले ये शब्द आते हैं- (a) पुरुषों के लिए : श्रीमान्, मान्यवर, हुजूर आदि। (b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, देवी आदि। संबंध और संबंधी में मेल (1) संबंध के चिह्न में वही लिंग-वचन होते हैं, जो संबंधी के। जैसे- रामू का घर श्यामू की बकरी (2) यदि संबंधी में कई संज्ञाएँ बिना समास के आए तो संबंध का चिह्न उस संज्ञा के अनुसार होगा, जिसके पहले वह रहेगा। जैसे- मेरी माता और पिता जीवित हैं। (बिना समास के) मेरे माता-पिता जीवित है। (समास होने पर) क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें (1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है। जैसे- वह कौन व्यक्ति है ? वह क्या बनाता है ? (2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए। जैसे- क्या आपको यही बनना था ? (3) यदि 'न' का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और 'न' का प्रयोग वाक्य में अंत में होगा। जैसे- आप बैठिए न। आप मेरे यहाँ पधारिए न। (4) यदि 'न' क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अन्त में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और 'न' वाक्यान्त में होगा। जैसे-👇 वह आज-कल स्वस्थ है न ? आप वहाँ जाते हैं न ? (5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है। जैसे-👇 वह खाकर विद्यालय जाता है। शिक्षक पढ़ाकर घर जाते हैं। (6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारम्भ में आता है। जैसे- वाह ! आपने भी खूब कहा है। ओह ! यह दर्द सहा नहीं जा रहा है। (ग) वाक्यगत प्रयोग- वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश निम्रलिखित हैं-👇 कुछ आवश्यक निर्देश:– (i) एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो। (ii) शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो। (iii) वाक्यरचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये। (iv) वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो। (v) वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए। (vi) वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। (vii) वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पायें। (viii) वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो। (ix) वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं 'यह' और कहीं 'वह', कहीं 'आप' और कहीं 'तुम', कहीं 'इसे' और कहीं 'इन्हें', कहीं 'उसे' और कहीं 'उन्हें', कहीं 'उसका' और कहीं 'उनका', कहीं 'इनका' और कहीं 'इसका' प्रयोग नहीं होना चाहिए। (x) वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए। (xi) वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए। __________________________________________ (xii) परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। परन्तु फिर भी इसका प्रयोग कर सकते है । यह वाक्य अशुद्ध है- उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें 'उसे' के स्थान पर 'मुझे' होना चाहिए। अन्य ध्यातव्य बातें (1) 'प्रत्येक', 'किसी', 'कोई' का प्रयोग- ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते है, बहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- प्रत्येक- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है। प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है। कोई- मैंने अब तक कोई काम नहीं किया। कोई ऐसा भी कह सकता है। किसी- किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता। किसी-किसी का ऐसा कहना है। किसी ने कहा था। टिप्पणी- 'कोई' और 'किसी' के साथ 'भी' अव्यय का प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- कोई भी होगा, तब काम चल जायेगा। यहाँ 'भी' अनावश्यक है। कोई संस्कृत 'कोऽपि' का तद्भव है। ' कोई' और 'किसी' में 'भी' का भाव वर्त्तमान है। (2) 'द्वारा' का प्रयोग- किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता है, तब संज्ञा के बाद 'द्वारा' का प्रयोग होता है; वस्तु (संज्ञा) के बाद 'से' लगता है। जैसे- सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पत्र हुआ। युद्ध से देश पर संकट छाता है। (3) 'सब' और 'लोग' का प्रयोग- सामान्यतः दोनों बहुवचन हैं। पर कभी-कभी 'सब' का समुच्चय-रूप में एकवचन में भी प्रयोग होता है। जैसे- तुम्हारा सब काम गलत होता है। यदि काम की अधिकता का बोध हो तो 'सब' का प्रयोग बहुवचन में होगा। जैसे- सब यही कहते हैं। हिंदी में 'सब' समुच्चय और संख्या- दोनों का बोध कराता है। 👇 'लोग' सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है। जैसे- लोग अन्धे नहीं हैं। लोग ठीक ही कहते हैं। कभी-कभी 'सब लोग' का प्रयोग बहुवचन में होता है। 'लोग' कहने से कुछ व्यक्तियों का और 'सब लोग' कहने से अनगिनत और अधिक व्यक्तियों का बोध होता है। जैसे- सब लोगों का ऐसा विचार है। सब लोग कहते है कि गाँधीजी महापुरुष थे। (4) व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल- यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है, तो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे। जैसे- काशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है। यहाँ कर्ता (काशी) स्त्रीलिंग है। पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था। यहाँ कर्ता (कलकत्ता) पुल्लिंग है। उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था। यहाँ कर्ता पुल्लिंग है। (5) समयसूचक समुच्चय का प्रयोग- ''तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।'' इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है। (6) 'पर' और 'ऊपर' का प्रयोग- 'ऊपर' और 'पर' व्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। किन्तु 'पर' सामान्य ऊँचाई का और 'ऊपर' विशेष ऊँचाई का बोधक है। जैसे- पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ। हिंदी में 'ऊपर' की अपेक्षा 'पर' का व्यवहार अधिक होता है। जैसे- मुझ पर कृपा करो। छत पर लोग बैठे हैं। गोपाल पर अभियोग है। मुझ पर तुम्हारे एहसान हैं। (7) 'बाद' और 'पीछे' का प्रयोग- यदि काल का अन्तर बताना हो, तो 'बाद' का और यदि स्थान का अन्तर सूचित करना हो, तो 'पीछे' का प्रयोग होता है। जैसे- उसके बाद वह आया- काल का अन्तर। मेरे बाद इसका नम्बर आया- काल का अन्तर। गाड़ी पीछे रह गयी- स्थान का अन्तर। मैं उससे बहुत पीछे हूँ- स्थान का अन्तर। (8) (क) नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग- जिस शब्द का अन्तिम वर्ण 'या' है उसका बहुवचन 'ये' होगा। 'नया' मूल शब्द है, इसका बहुवचन 'नये' और स्त्रीलिंग 'नयी' होगा। (ख) गए, गई, गये, गयी का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'गया' है। उपरिलिखित नियम के अनुसार 'गया' का बहुवचन 'गये' और स्त्रीलिंग 'गयी' होगा। (ग) हुये, हुए, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग- मूल शब्द 'हुआ' है, एकवचन में। इसका बहुवचन होगा 'हुए'; ' हुये' नहीं 'हुए' का स्त्रीलिंग 'हुई' होगा; 'हुयी' नहीं। (घ) किए, किये, का शुद्ध प्रयोग- 'किया' मूल शब्द है; इसका बहुवचन 'किये' होगा। (ड़) लिए, लिये, का शुद्ध प्रयोग- दोनों शुद्ध रूप हैं। किन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ 'लिए' आयेगा; जैसे- मेरे लिए उसने जान दी। क्रिया के अर्थ में 'लिये' का प्रयोग होगा; क्योंकि इसका मूल शब्द 'लिया' है। (च) चाहिये, चाहिए का शुद्ध प्रयोग- 'चाहिए' अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए 'चाहिए' का प्रयोग शुद्ध है; 'चाहिये' का नहीं। 'इसलिए' के साथ भी ऐसी ही बात है। _________________________________________ वर्ण -विचार १. वर्ण विचार👇 Vowels - स्वराः Sanskrit Consonants - व्यंजनानि (३३) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ऌ, ए, ऐ, ओ, औ (१३) अयोगवाह : अनुस्वार (अं) और विसर्गः( अः) Dependent - ा, ि, ी, ु, ू, ृ, ॄ, े, ै, ो, ौ Simple- अ, इ, उ, ऋ, ऌ Dipthongs:- ए , ऐ , ओ , औ ह्रस्वाः- अ , इ , उ , ऋ , ऌ , दीर्घाः- आ , ई , ऊ , ॠ , ए , ऐ , ओ , औ स्पर्श – खर मृदु अनुनासिकाः Gutturals:कण्ठय क् ख् ग् घ् ड• Palatals:तालव्य च् छ् ज् झ् ञ् Cerebrals:मूर्धन्य ट् ठ् ड् ढ् ण् Dentals:दन्त्य त् थ् द् ध् न् Labials:ओष्ठय प् फ् ब् भ् म् _______________________________________ श् ष् स् य् र् ल् व् संयुक्त व्यञ्जन = त्र , क्ष , ज्ञ. व्याख्या – सम्यक् कृतम् इति संस्कृतम्। सम् उपसर्ग के पश्चात् कृ धातु के मध्य सेट् आगम तब शब्द बना संस्कार भूतकालिक कर्मणि कृदन्त संस्कृतम् भाषा – संस्कृत और लिपि देवनागरी। उच्चार स्थानह्रस्व – दीर्घ – प्लुत – (स्वर) विचार कण्ठः – (अ‚ क्‚ ख्‚ ग्‚ घ्‚ ं‚ ह्‚ : = विसर्गः ) तालुः – (इ‚ च्‚ छ्‚ ज्‚ झ्‚ ं‚ य्‚ श् ) मूर्धा – (ऋ‚ ट्‚ ठ्‚ ड्‚ ढ्‚ ण्‚ र्‚ ष्) दन्तः (लृ‚ त्‚ थ्‚ द्‚ ध्‚ न्‚ ल्‚ स्) ओष्ठः – (उ‚ प्‚ फ्‚ ब्‚ भ्‚ म्‚ उपध्मानीय प्‚ फ्) नासिका – (ं म्‚ ं ‚ण्‚ न्) कण्ठतालुः – (ए‚ ऐ ) कण्ठोष्ठम् – (ओ‚ औ) दन्तोष्ठम् – (व) जिह्वामूलम् – (जिह्वामूलीय क् ख्) नासिका – (ं = अनुस्वारः) संस्कृत की अधिकतर सुप्रसिद्ध रचनाएँ पद्यमय है अर्थात् छंदबद्ध और गेय हैं। इस लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि इन रचनाओं को पढते या बोलते वक्त किन अक्षरों या वर्णों पर ज्यादा भार देना और किन पर कम। उच्चारण की इस न्यूनाधिकता को ‘मात्रा’ द्वारा दर्शाया जाता है। * जिन वर्णों पर कम भार दिया जाता है, वे हृस्व कहलाते हैं, और उनकी मात्रा १ होती है। अ, इ, उ, लृ, और ऋ ये ह्रस्व स्वर हैं। * जिन वर्णों पर अधिक जोर दिया जाता है, वे दीर्घ कहलाते हैं, और उनकी मात्रा २ होती है। आ, ई, ऊ, ॡ, ॠ ये दीर्घ स्वर हैं। * प्लुत वर्णों का उच्चारण अतिदीर्घ होता है, और उनकी मात्रा ३ होती है जैसे कि, “नाऽस्ति” इस शब्द में ‘नाऽस्’ की ३ मात्रा होगी। वैसे हि ‘वाक्पटु’ इस शब्द में ‘वाक्’ की ३ मात्रा होती है। वेदों में जहाँ 3 संख्या लिखी होती है , उसके पूर्व का स्वर प्लुत बोला जाता है। जैसे ओ३म् * संयुक्त वर्णों का उच्चारण उसके पूर्व आये हुए स्वर के साथ करना चाहिए। पूर्व आया हुआ स्वर यदि ह्रस्व हो, तो आगे संयुक्त वर्ण होने से उसकी २ मात्रा हो जाती है; और पूर्व अगर दीर्घ वर्ण हो, तो उसकी ३ मात्रा हो जाती है और वह प्लुत कहलाता है। * अनुस्वार और विसर्ग – ये स्वराश्रित होने से, जिन स्वरों से वे जुडते हैं उनकी २ मात्रा होती है। परन्तु, ये अगर दीर्घ स्वरों से जुडे, तो उनकी मात्रा में कोई फर्क नहीं पडता। * ह्रस्व मात्रा का चिह्न ‘।‘ है, और दीर्घ मात्रा का ‘ऽ‘। * पद्य रचनाओं में, छन्दों के चरण का अन्तिम ह्रस्व स्वर आवश्यकता पडने पर गुरू मान लिया जाता है। समझने के लिए कहा जाय तो, जितना समय ह्रस्व के लिए लगता है, उससे दुगुना दीर्घ के लिए तथा तीन गुना प्लुत के लिए लगता है। नीचे दिये गये उदाहरण देखिए : राम = रा (२) + म (१) = ३ अर्थात्‌ “राम” शब्द की मात्रा ३ हुई। वनम् = व (१) + न (१) + म् (०) = २ वर्ण विन्यास – १. राम = र् +आ + म् + अ , २. सीता = स् + ई +त् +आ, ३. कृष्ण = क् +ऋ + ष् + ण् +अ _________________________________________ द्वितीय भाग देखें---






हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप । रोहि हिन्दी व्याकरण (भाग एक)

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।
भाग द्वितीय :―
वर्ण विचार (Orthography):–

वर्ण विचार से तात्पर्य वर्णों के रूप में समावेशित स्वर , व्यञ्जन तथा इनके साथ रहने वाले "अयोगवाह ",उत्क्षिप्त तथा सभी -संयुक्त स्वर और व्यञ्जन रूपों के क्रमश: ऊर्ध्व विवेचनाओं से है ।

"Ortho" ग्रीक भाषा का शब्द जिसके व्यापक अर्थ हैं :– 1-सीधा ,2-सत्य, 3-सही,4-आयताकार, 5-नियमित, 6-सच्चा, 7-सही, 8-उचित ।
1-straight, 2-true, 3-correct, 4-rectangular" 5-regular,6-upright, , 7-proper,"
8-Ortho
यह शब्द लैटिन में आर्द्वास (arduus)पुरानी आयरिश में आर्द (Old Irish ard "high") जिसका अर्थ होता है :-उच्च ।

आद्य-भारोपीय  भाषाओं में यह शब्द (Eredh)के रूप में है।
दूसरा शब्द ग्राफी है --जो ग्रीक भाषा के "graphos" से निर्मित है ।
ग्रीक ग्राफेन क्रिया "graphein " =to write --जो अन्य यूरोपीय भाषाओं में निम्न प्रकार से है ।👇
1-Dutch -graaf,
2- German -graph,
3-French -graphe,
4-Spanish -grafo).
संस्कृत में ग्रस् ग्रह् तथा वैदिक रूप गृभ् है । ______________________________________

वर्ण, मात्रा और उच्चारण (Orthography ,Diacritic and Pronunciation) के सन्दर्भों में
वर्ण-विन्यास - वर्तनी (Spelling)(हिज्जे) विचारणीय हैं ।

वर्ण भाषा की उस सबसे छोटी या लघुतम इकाई को कहते हैं, जिसे और खण्डित नहीं किया जा सकता है । जैसे कोई मकान ईंटौं से से बनता है ।
और ईंटौं से दीवारों के रद्दे बनते हैं ।
और उन रद्दौं का व्यवस्थित समूह दीवार है।🐶

जैसे- क्रमश वर्ण ( स्वर तथा व्यञ्जन ) शब्दों का निर्माण करते हैं ।

और शब्दों का वह व्यवस्थित समूह जो एक क्रमिक व अपेक्षित अर्थ को व्यक्त करता है वह वाक्य कहलाता है।

जैसे अनेक दीवारें मिलकर मकान या कोई कमरा बनाती हैं ।
और अनेक वर्ण < शब्द < वाक्यांश <उपवाक्य < वाक्य <गद्यांश या पेराग्राफ बनाते हैं और अनेक गद्यांश ही भाषा हैं ।

वस्तुतः किसी भी भाषा को बोलने के लिए प्रयुक्त होने वाली उस मूल ध्वनि को ही वर्ण कहते हैं जिसे और तोड़ा नहीं जा सकता ।

वर्णमाला (Alphabet) किसी भी भाषा के वर्णों के उस समूह को वर्णमाला कहते हैं, जिसमें उस भाषा में प्रयुक्त होने वाले सारे स्वर व व्यञ्जन व्यवस्थित क्रम से लिखे होते हैं ।

अंग्रेज़ी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्णों के समावेश हैं स्वर (Vowels) -----
स्वरों के भेद (Kinds of Vowels) स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ विशेष अ स्वर : अऽ – वर्तुल अ या दीर्घ विलम्बित अर्द्ध विवृत पश्च स्वर अ॑ – प्रश्लेष अ या दीर्घ अर्द्धसंवृत मध्य विशेष आ स्वर :
ऑ – अर्द्ध विवृत पश्च स्वर आ॑ – प्रश्लेष आ या अर्द्धसंवृत दीर्घ मध्य स्वर ।

व्यञ्जन (Consonants) क वर्ग – क् ख् ग् घ् ङ् च वर्ग – च् छ् ज् झ् ञ् ट वर्ग – ट् ठ् ड् ढ् ड़ ढ़ त वर्ग – त् थ् द् ध् न् प वर्ग – प् फ् ब् भ् म् अन्तःस्थ – य् र् ल् व् उष्म व्यञ्जन – स् ह् संयुक्त व्यञ्जन – क्ष त्र ज्ञ श्र

हिन्दी के समानान्तरण अंगिका वर्णमाला की मुख्य विशेषताएँ  भी हैं :–👇
अंगिका एक भाषा है जो बिहार के पूर्वी, उत्तरी व दक्षिणी भागों, तथा झारखण्ड के उत्तर पूर्वी भागों और पश्चिमीय बंगाल के पश्चिमीय भागों में बोली जाती है।

जिसमें गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, देवघर, कोडरमा, गिरिडीह जैसे जिले सम्मिलित हैं।

यह भाषा बिहार के भी पूर्वी भाग में बोली जाती है जिसमें भागलपुर, मुंगेर, खगड़िया, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, अररिया आदि सम्मिलित हैं।

यह नेपाल के तराई भाग में भी बोली जाती है।
अंगिका भारतीय आर्य भाषा है।

अंगिका भाषा अंगिका भाषा बोली जाती है भारत, नेपाल क्षेत्र बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल कुल बोलने वाले 743,600 भाषा परिवार हिन्द-यूरोपीय हिन्द-ईरानी हिन्द-आर्य पूर्वी समूह के अन्तर्गत बिहारी अंगिका भाषा है।

(क) अंगिका में अ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – अ, अऽ, अ॑

(ख) अंगिका में आ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – आ, ऑ, आ॑

(ग) अंगिका वर्णमाला में हिंदी वर्णमाला के कुछ वर्णों, जैसे :- ऋ, श, ष, ण का समावेश नहीं है ।

उदाहरण के लिए हिन्दी के ऋषि, ऋतु, रमेश, बाण को अंगिका में क्रमश  रिसि, रितु, रमेस, बान लिखेंगें और उच्चारण भी बदले हुए वर्ण की तरह होगा ।

परन्तु आधुनिक काल के अंग्रेज़ी लेखन में ऋ, श, ष, ण का उपयोग हिन्दी वर्णमाला की तरह ही होता है ।
परन्तु बोलने में श, ष का उच्चारण स की तरह एवं ण का उच्चारण न की तरह होता है ।
अंग्रेजी अथवा यूरोपीय भाषाओं तवर्ग न होने के कारण "स"  वर्ण बोलना असम्भव है ।

(ग)अं अर्थात अनुस्वार और अः अर्थात विसर्ग दोनों को अयोगवाह भी कहते हैं

  क्योंकि ये न तो स्वर हैं और न ही व्यञ्जन ।
परन्तु अं और अः को पारम्परिक तौर पर स्वरों के वर्ग में शामिल किया जाता रहा है ।

मूलतः इनका प्रयोग तत्सम शब्दों में स्वर के बाद होता है ।
(घ) अनुस्वार (ं) का प्रयोग ङ् , ञ्, ण् , न् ,म् के बदले में किया जाता है ।

(जैसे – अङ्गिका – अंगिका, चम्पा – चंपा, अङ्ग – अंग, गङगा – गंगा, चञ्चल – चंचल, ठण्डा – ठंडा, कुन्द – कुंद, परम्परा – परंपरा )

(च) विसर्ग का प्रयोग हिन्दी में संस्कृत से आए शब्दों में होता है ।
जैसे – प्रायः, फलतः, निःसन्देह, स्वतः ।

(छ) ऑ – अंगिका के इस स्वर में व् की अल्पध्वनि सुनाई पड़ती है ।
यह स्वर हालाँकि हिन्दी में अंगिका तथा अंग्रेजी से आए शब्दों में होता है ।

परन्तु पारम्परिक रूप से अंग्रेज़ी के स्वर वर्ण के रूप में भी उपयोग होता रहा है ।
जैसे – अंग्रेजी से आये शब्दों में – डॉक्टर, डॉट, ऑफिस, कॉलेज, ऑफ , लॉग ।
अंगिका के मूल शब्दों में – चॉर (चावल), जॉत जिठौत (पति के भाई का पुत्र), छॉउर (छाया) के रूप में है ।।

मात्रा:-💮
स्वरों की मात्राएँ शब्द निर्माण की प्रक्रिया में जब किसी स्वर का प्रयोग किसी व्यंजन के साथ मिलाकर किया जाता है, तो स्वर का स्वरूप बदल जाता है ।

स्वर के इस बदले हुए स्वरूप को
ही मात्रा कहते हैं ।
अंगिका के स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं ।

मात्रा को स्वरों का विशिष्ट चिन्ह (Diacritic) भी कहते हैं

अ – कोई मात्रा नहीं आ – ा इ – ि ई – ी उ – ु ऊ – ू ए – े ऐ – ै ओ – ो औ – ौ अं – ं अः – ः अऽ – ़ऽ अ॑ – ॑ ऑ – ॉ आ॑ – 

वर्ण भेद उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी के वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है –
स्वर और व्यंजन ।
स्वर हिन्दी के जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से स्वत्रन्त्र रूप से बिना किसी बाधा के होता है, उन्हें स्वर कहते हैं ।

बिना किसी बाधा के उच्चारण का मतलब यह है कि स्वरों के उच्चारण के वक्त मुँह से निकलने वाली वायु का प्रवाह सतत रूप से बिना किसी बाधा के होता है ।
आप सतत रूप से किसी भी स्वर वर्ण का उच्चारण देर तलक करके देखें, कहीं भी ठहरने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।

वर्णों का उच्चारण :-  किसी भी भाषा में उच्चारण का बहुत अधिक महत्व है ।
यदि सही उच्चारण नहीं किया जाए तो वर्तनी सम्बन्धी गलतियाँ होने का डर होता है ।

क्योंकि हिन्दी मराठी, मगही, भोजपुरी की तरह अंगिका भी आधुनिक जमाने में देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ।

प्राचीन समय में भले ही यह अंग लिपि में लिखी जाती थी ।

बाद में यह कैथी लिपि में भी
लिखी जाने लगी थी ।

आज के जमाने में भी अंगिका लिखने के लिए कैथी लिपि प्रयोग करने वाले कुछ लोग हैं ।

परन्तु अंगिका को देवनागरी लिपि में लिखने का सर्वाधिक प्रचलन है ।

देवनागरी लिपि की यह विशेषता है कि यह जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है ।

स्वर के उच्चारण – अंगिका या  विहारी हिन्दी भाषा में स्वर को विभिन्न आधार पर कई श्रेणियों में बाँटा गया है, जो निम्नलिखित हैं ।

१. उच्चारण के आधार पर –
(क) निरनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख से होता हो ।
जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।

(ख) अनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख और नासिका दौनों की सहायता से होता हो ।

जैसे – अँ, आँ, इँ, ईं , एँ, ऐं, ओं, औं ।
अंगिका के सभी स्वरों के अनुनासिक रुप प्रयोग में देखने को मिलते हैं ।

२. उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर – इस आधार पर स्वर के दो भेद हैं –  ह्रस्व या एकमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता हो,
लगभग एक मात्रा के समय के बराबर, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं ।

जैसे – अ, इ, उ ।

दीर्घ या द्विमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में अधिक समय लगता हो, लगभग दो मात्राओं के समय के बराबर, या ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं ।

जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
किसी व्यञ्जन का उच्चारण करने पर उसके साथ-साथ अपने आप अ स्वर का उच्चारण हो जाता है ।

सभी व्यंजन स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं ।
जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं होता, तो उसके नीचे (् ) चिन्ह लगाते हैं , जिसे हलन्त कहते हैं ।

किसी व्यञ्जन के साथ ‘अ’ जुड़ने पर उसके नीचे हलन्त नहीं लगता ।

जैसे – क् + अ = क ख् + अ = ख ह् + अ = ह यह स्पष्ट है कि –
(क) अ का कोई मात्रा चिन्ह नहीं होता ।

(ख) स्वर के मात्रा चिन्ह को लगाने के लिए व्यञ्जन का हलन्त चिन्ह हटाने के बाद ही मात्रा
चिन्ह जोड़ते हैं ।

(ग) आ, ई, ओ, औ, अऽ, और ऑ की मात्राएँ व्यञ्जन के बाद लगाई जाती हैं ।

(घ) इ की मात्रा व्यञ्जन के पहले लगाई जाती है ।

(ङ) उ, ऊ, की मात्राएँ व्यञ्जन के नीचे लगाई जाती हैं

(च) ए ,ऐ,अ॑,अं, और अँ की मात्राएँ व्यञ्जन के ऊपर लगाई जाती हैं ।

(छ) र व्यञ्जन में उ एवं ऊ की मात्राएँ नीचे नहीं, बीच में लगती हैं ।

(र् +उ= रु, र् +ऊ=रू )

अंगिका स्वर ध्वनियों की मुख्य विशेषताएँ : -
(१) अंगिका की कुछ व्याकरणिक विलक्षणताएँ हैं, जो हिन्दी सहित बिहार, झारखण्ड की अन्य भाषाओं में दृष्टिगोचर नहीं होती हैं ।
जैसे –

(क) ह्रस्व ए और ओ के प्रयोग की बहुलता

(ख) न॑ का प्रयोग (राम न॑ कहलकै)

(ग) वर्तुल अ का पदान्त में योग ( ओकरऽ, रामऽ, गामऽ)
अंगिका का इस दृष्टि से बँगला से सादृश्य लक्षित होता है ।
(२) स्वर – अ, इ, तथा उ का अति लघु उच्चारण होता है ।
(३) अंगिका में स्वर ए, ओ के दीर्घ रूप के अतिरिक्त ह्रस्व रूप भी मिलते हैं ।
(एकाधटा, ओकरऽ) ।

यहाँ एकाधटा में ए और ओकरऽ में ओ का उच्चारण ह्रस्व रूप में है ।
(४) ऐ और औ दीर्घ एवं सन्ध्यक्षर रूप में उच्चरित होते हैं ।

ऐलै, औरू, आबै छै, जैभौ में ऐ और औ के उच्चारणों की भिन्नता स्पष्ट है ।

पिछले दोनों शब्दों में सन्ध्यक्षर के रूप में ऐ, औ का उच्चारण द्रष्टव्य है ।

(५) अंगिका की सर्वाधिक विशिष्ट स्वरध्वनि अ है । जिसका उच्चारण इतना वर्तुल होता है जितना किसी अन्य भाषाओं में नहीं होता ।

(क) यह प्रायः उन सभी अकारान्त शब्दों के अंत में सुनाई पड़ती है जिसके आगे कोई कारक परसर्ग लगता है ।
जैसे – घरऽ के, गाछऽ के, अनाजऽ मं॑, खमारऽ प॑, ट्रेनऽ मं॑, बसऽ प॑, क्लासऽ मं॑ ।

(ख) लेकिन अगर पद यदि एक अक्षर का है, यानि बिना परसर्ग का है तो आदि अ के रूप में यह अंतिम वर्ण के पहले प्रयुक्त होगा और इसका उच्चारण ओष्ठय होगा ।

जैसे – जऽल, घऽर, बऽल, कऽल, बऽन ।
यहाँ एकाक्षरिक पद में अ पर बलाघात भी लगेगा ।

व्यञ्जन वर्ण वैसे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से होता है ।

व्यञ्जन वर्ण के उच्चारण के वक्त मुख से निकलने वाली वायु के मार्ग में बाधा आती है ।

जिसकी वजह से वह रूक कर या बाधित होकर निकलती है ।

स्वरों की भाँति व्यंजनों के उच्चारण सतत रूप से नहीं हो पाता ।

आप जितनी बार व्यञ्जन का उच्चारण करने का प्रयास करेंगें, उतनी दफा नये सिरे से कोशिश करनी पड़ेगी ।
उदाहरण के लिए – क……क….क……, ह…..ह…..ह । स्पष्ट है कि स्वर की सहायता के बिना हम व्यञ्जन वर्ण लिख तो सकते हैं !
परन्तु बोल नहीं सकते हैं।

अब व्याकरण पर कुछ विचार करते हैं 🔜
_________________________________________

व्याकरण का यूरोपीय भाषाओं में रूपान्तरण ग्रामर शब्द के द्वारा उद्भासित है ।

प्राचीन ग्रीक (γραμμττική ) में
( व्याकरणिक , " लेखन में कुशल " ) क्रियात्मक रूपों से ग्रामर शब्द की अवधारणा का जन्म हुआ।

, लैटिन व्याकरण से, पुरानी फ्रांसीसी में Gramire ( शास्त्रीय भाषा सीखने " ) से ,
मध्य अंग्रेजी Gramer , gramarye , gramery से विकास हुआ।

γράμμα (grámma , " लेखन की रेखा )
से , प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय gerbʰ- वैदिक भाषा में गृभ (नक्काशीदार , खरोंच ) से γράφω  ( ग्रैफो से निकला , जिसका अर्थ :–  लिखें ) से सम्बद्ध।

एक भाषा बोलने और लिखने के लिए नियमों और सिद्धांतों की एक प्रणाली का नाम ग्रामर है।

( अनगिनत , भाषाविज्ञान ) के सन्दर्भों में
शब्दों की आन्तरिक संरचना ( morphology ) का अध्ययन और वाक्यांशों और वाक्य ( वाक्यविन्यास ) के निर्माण में शब्दों का उपयोग मान्य है।

एक भाषा के व्याकरण के नियमों का वर्णन करने वाली एक पुस्तक  ही व्याकरण है।

ग्रामर शब्द का भावार्थ है :- वह ग्रन्थ जो एक औपचारिक प्रणाली के द्वारा एक भाषा के वाक्यविन्यास को निर्दिष्ट करता है।

अधिकतर फ्रैंकिश शब्द ग्रिमा Grima ( मुखौटा, तथा जादूगर ) से आते हैं ।

जिससे ग्रिमेस शब्द की उत्पत्ति भी है।
एक अन्य स्रोत इतालवी शब्द रिमेस ("rhymes की पुस्तक") भी हो सकता है।
जो अन्ततः एक कठिन "जीवन" अपनाया क्योंकि यह फ्रांस चले गए।

किसी भी तरह से, फ्रांसीसी शब्द grimaire शब्द के साथ मिलकर शब्द (grammaire)या ( ग्रामर Grámma) शब्द बना ।

इसी के समानान्तरण यूरोपीय भाषाओं में Spell शब्द का प्रयोग मन्त्र बोलने के लिए भी होता है और भाषाओं की वर्तनी के लिए भी क्योंकि दौनों की गतिविधियाँ समान हैं ।

वैसे भी व्याकरण उच्चारण और वर्तनी का नियामक है
_________________________________________

इस शब्द की अवधारणा एक पुरानी वर्तनी, "लैटिन के अध्ययन" और "गहन और गुप्त विज्ञान" के अर्थ में "व्याकरण" के सुझाव की भी है "।

ग्रीक भाषा में gramma शब्द का अर्थ "letter"( वर्ण)है ।
प्राचीन ग्रीक γραμματικός ( व्याकरणिक , " में सीखना और लिखना सीखना ) से पुरानी फ्रांसीसी gramaire से भी अर्वाचीन फ्रांसीसी grimoire में उधार लिया।

व्याकरण , ग्लैमर और व्याकरण का सन्दर्भित रूप ।
जादू या कीमिया के उपयोग में उसके निर्देशों की एक पुस्तक, विशेष रूप से दैत्यों को बुलाने के लिए भी ग्रामा शब्द रूढ़ रहा है ।

gram:- noun word-forming element,
"that which is written or marked," from Greek gramma
"that which is drawn; a picture, a drawing; that which is written, a character, an alphabet letter, written letter, piece of writing;" in plural, "letters,"

also "papers, documents of any kind," also "learning," from stem of graphein "to draw or write"

(-graphy). Some words with There are from Greek compounds,
others  modern formations.

Alternative -gramme is a French form.। __________________________________________

शब्द विचार की परिभाषा :–
शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा खण्ड है ;
जिसके अन्तर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, सन्धि, विच्छेद, रूपान्तरण, निर्माण आदि से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया जाता है।

शब्द की परिभाषा:- ( Definition of Word :-) वर्णों या अक्षरों से बना ऐसा स्वत्रन्त्र समूह जिसका कोई अर्थ हो, वह समूह शब्द कहलाता है।
वस्तुत समूह शब्द कुछ सीमा तक सार्थक ही है।
क्योंकि एक वर्ण जिसका अर्थ हो उसे भी शब्द कहते हैं जैसे- क= ब्रहमा । ख=आकाश ।

जैसे: लड़का, लड़की, गाय ,घोड़ा आदि।

शब्द विचार का वर्गीकरण:-
1-अर्थ के आधार पर

2-बनावट या रचना के आधार पर

3-प्रयोग के आधार पर

4-उत्पत्ति के आधार पर _________________________________________

1-On the basis of meaning

2-On the basis of texture or composition

3-On the basis of experiment

4-On the basis of origin

अर्थ के आधार पर शब्द के भेद:- अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं :
सार्थक शब्द निरर्थक शब्द

1. सार्थक शब्द: वे शब्द जिनसे कोई अर्थ निकलता हो, सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: गुलाब, आदमी, विषय आदि।

2. निरर्थक शब्द : वे शब्द जिनका कोई अर्थ ना निकल रहा हो या जो शब्द अर्थहीन हो, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: देना-वेना, मुक्का-वुक्का आदि।

रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद:-
(On the basis of texture or composition)

रचना के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं:
१-रूढ़ शब्द 1-Stereo word

२-यौगिक शब्द  2-compound word

३-योगरूढ़ शब्द 3-word form

1. रूढ़ शब्द :- ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं; लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं,
ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं।
जैसे: जल, कल, जप आदि।

2. यौगिक शब्द :-ऐसे शब्द जो किन्हीं दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हों वे शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के खण्ड भी सार्थक होते हैं।
जैसे: स्वदेश : स्व + देश, देवालय : देव + आलय, कुपुत्र : कु + पुत्र आदि।

3. योगरूढ़ शब्द:- ऐसे शब्द जो किन्हीं दो शब्दों के योग से बने हों एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हौं, वे शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।

जैसे: दशानन : दस मुख वाला अर्थात रावण , पंकज : कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल आदि।

  प्राय: बहुव्रीहि समास ऐसे शब्दों के अन्तर्गत आते हैं।

प्रयोग के आधार पर शब्द के भेद प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं।

विकारी शब्द और अविकारी शब्द :-
1. विकारी शब्द : ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन होते हैं,
वे शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं।

जैसे: लिंग : बच्चा पढता है।

—> बच्ची पढ़ती है।

वचन : बच्चा सोता है।
—–> बच्चे सोते हैं।

कारक : बच्चा सोता है।

—> बच्चे को सोने दो।

जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं बच्चा एक शब्द है यह लिंग, वचन एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो रहा है।

अतः यह विकारी शब्दों के अंतर्गत आएगा।

2. अविकारी शब्द : ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक आदि का कोई फर्क नहीं पड़ता एवं जो अपरिवर्तित रहते हैं।
ऐसे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं।

जैसे: तथा, धीरे, किन्तु, परन्तु, तेज़, अधिक आदि। जैसा कि हम जानते हैं
"किन्तु "जैसे शब्द लिंग, वचन कारक आदि बदलने पर भी अपरिवर्तित रहेंगे।

अतः ये उदाहरण अविकारी शब्दों के अंतर्गत आयेंगे। उत्पत्ति के आधार पर शब्द के भेद :–

उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं: तत्सम शब्द , तद्भव शब्द,  देशज शब्द  तथा विदेशी शब्द ।

1. तत्सम शब्द : तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात् ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा में हुई ओर वे हिन्दी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में आने लगे, ऐसे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं।

जैसे: पुष्प, फुल्ल, पुस्तक, पृथ्वी, क्षेत्र, कार्य, मृत्यु, कवि, माता, विद्या, नदी, फल, अग्नि, पुस्तक आदि।

2. तद्भव शब्द : ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलायेंगे।
जैसे: फुल्ल__फूल  दुग्ध —-> दूध अग्नि —-> आग कार्य —> काम  कर्पूर —> कपूर  हस्त —-> हाथ बन्जारा (पन्सारी)__पण्यचारी

3. देशज शब्द :-ऐसे शब्द जो भारत की विभिन्न स्थानीय बोलियों में से हिंदी में आ गए हैं, वे शब्द देशज शब्द कहलाते हैं।

जैसे: पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, थैला, इडली, डोसा, समोसा, चमचम, गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना, खिचड़ी  ,कब्बडी आदि।

ऊपर दिए गए सभी उदाहरण भारत की ही विभिन्न स्थानीय बोलियों में से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं।

ये अब हिन्दी में आ गए हैं।
अतः यह शब्द देशज शब्द कहलायेंगे।

4. विदेशी शब्द:- ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।

मुख्यतः यह विदेशी जातियों से हमारे बढ़ते मिलन से हुआ है।

ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी,अंग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक आदि भाषाओं से आए हैं।

विदेशी शब्दों के उदाहरण निम्न हैं :
अंग्रेजी : –कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल आदि

फारसी :– अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बर्फ, रूमाल, चुगलखोर, आदि।

अरबी :– औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, ख़त, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।

तुर्की :– कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर , ठाकुर ( तक्वुर) आदि।

पुर्तगाली :– अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।

फ्रांसीसी : पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।

चीनी : तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।

यूनानी : टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा, सुरंग आदि।

जापानी : रिक्शा आदि।

1. संज्ञा – किसी वस्तु , प्राणी , भाव व स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं ; जैसे – हिमालय , गाय , मिठास आदि।
_______________________________________

संज्ञा के प्रकार --(kinds of Noun) संज्ञा के प्रकार
ये मूलत: पाँच प्रकार की होती हैं ।
भाषा विज्ञान में, संज्ञा एक विशाल, मुक्त शाब्दिक वर्ग का सदस्य है, जिसके सदस्य वाक्यांश के कर्ता के मुख्य शब्द, क्रिया के कर्म, या पूर्वसर्ग के कर्म के रूप में उपस्थित हो सकते हैं।

शाब्दिक वर्गों को इस सन्दर्भों में परिभाषित किया जाता है कि उनके सदस्य अभिव्यक्तियों के अन्य प्रकारों के साथ किस तरह संयोजित होते हैं।

संज्ञा के लिए भाषावार वाक्यात्मक नियम भिन्न होते हैं। अंग्रेज़ी में, संज्ञा को उन शब्दों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है,
जो उपपद (Articles)और गुणवाचक विशेषणों के साथ होते हैं और संज्ञा वाक्यांश के शीर्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं।

पारम्परिक अंग्रेज़ी व्याकरण में संज्ञा आठ शब्द भेदों में से एक है।

यह शब्द लैटिन के nomen से व्युत्पन्न है,
जिसका अर्थ है नाम ।
संज्ञा जैसे शब्द वर्गों को सबसे पहले संस्कृत व्याकरण तथा डायनाइसियोस थ्रैक्स जैसे प्राचीन यूनानियों ने वर्णित किया और उनके रूपविधान व गुणों के संदर्भ में उनकी परिभाषा दी ।

उदाहरण के लिए, प्राचीन ग्रीक में, संज्ञा व्याकरणिक कारक के लिए क्रियारूप प्रस्तुत करते हैं,
जैसे संप्रदान कारक या कर्म कारक.

संज्ञा (Noun) की विभिन्न परिभाषाएं विद्वानों दी हैं ।

प्राकृतिक भाषा की अभिव्यक्तियों में विभिन्न स्तरों पर विशेषताएं होती हैं।

इनमें औपचारिक विशेषताएं होती हैं, जैसे कि वे किस प्रकार के रूपात्मक उपसर्ग या प्रत्यय लगते हैं और किस अन्य प्रकार की अभिव्यक्तियों के साथ संयोजित होती हैं

लेकिन इनके साथ अर्थगत विशेषताएं भी जुड़ी हैं, यानी उनके अर्थ से संबंधित गुण है।

संज्ञा ( noun )की परिभाषा एक औपचारिक  पारम्परिक व्याकरणमूलक परिभाषा है।

वह परिभाषा, अधिकांशतः, अविवादास्पद मानी जाती है और कतिपय भाषाओं के उपयोगकर्ताओं के लिए अनेक संज्ञाओं को ग़ैर संज्ञाओं से प्रभावी रूप से अंतर समझने का साधन प्रस्तुत करती है।

संज्ञा के भेद –:

1 . व्यक्तिवाचक संज्ञा - गुलाब, दिल्ली, इंडिया गेट, गंगा, राम आदि
2 . जातिवाचक संज्ञा  – गधा, क़िताब, माकन, नदी आदि
3. भाववाचक संज्ञा - सुंदरता, इमानदारी, प्रशन्नता, बईमानी आदि

जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं –

4. द्रव्यवाचक संज्ञा तथा
5. समूहवाचक संज्ञा .
इन दो उपभेदों को मिला कर संज्ञा के कुल 5 प्रकार को जाते हैं|

अब संज्ञा के सभी प्रकार का संक्षेप वर्णन नीचे किया गया है-

व्यक्तिवाचक संज्ञा :- (proper Noun)
जिन शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, विशेष प्राणी, विशेष स्थान या किसी विशेष वस्तु का बोध हो उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है.

जैसे- रमेश (व्यक्ति का नाम), आगरा (स्थान का नाम), बाइबल (क़िताब का नाम), ताजमहल (इमारत का नाम), एम्स (अस्पताल का नाम) इत्यादि.

जातिवाचक संज्ञा :- (Common Noun)
वैसे संज्ञा शब्द जो की एक ही जाति के विभिन्न व्यक्तियों, प्राणियों, स्थानों एवं वस्तुओं का बोध कराती हैं उन्हें जातिवाचक संज्ञाएँ कहते है।

कुत्ता, गाय, हाथी, मनुष्य, पहाड़ आदि शब्द एकही जाति के प्राणियों, वस्तुओं एवं स्थानों का बोध करा रहे है।

जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत निम्नलिखित दो है –

(क) द्रव्यवाचक संज्ञा –

जिन संज्ञा शब्दों से किसी पदार्थ या धातु का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है ।

जैसे – दूध, घी, गेहूँ, सोना, चाँदी, उन, पानी आदि द्रव्यवाचक संज्ञाएँ है।

(ख) समूहवाचक संज्ञा -:

जो शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे – भीड़, मेला, कक्षा, समिति, झुंड आदि समूहवाचक संज्ञा हैँ।

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व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग:

व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ कभी कभी ऐसे व्यक्तियों की ओर संकेत करती हैं, जो समाज में अपने विशेष गुणों के कारण प्रचलित होते हैं।

उन व्यक्तियों का नाम लेते ही वे गुण हमारे मस्तिष्क में उभर आते है, जैस-

हरीशचंद्र (सत्यवादी), महात्मा गांधी (महात्मा), जयचंद (विश्वासघाती), विभीषण (घर का भेदी),
अर्जुन (महान् धनुर्धर) इत्यादि।
कभी कभी बोलचाल में हम इनका इस्तेमाल इस प्रकार कर लेते हैं-

इस देश में जयचंदों की कमी नहीं ।
1. (जयचंद- देशद्रोही के अर्थ में)

2.  कलियुग में हरिशचंद्र कहां मिलते हैं ।
(हरिशचंद्र- सत्यवादी के अर्थ में प्रयुक्त)

3.  हम्हें देश के विभीषणों से बचकर रहना चाहिए । (विभीषण- घर के भेदी के अर्थ में प्रयुक्त)

जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग:-

कमी-कभी जातिवाचक संज्ञाएँ रूढ हो जाती है ।
तब वे केवल एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त होने लगती हैं- जैसे:
पंडित जी हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे।

यहाँ ‘पंडित जी‘ जातिवाचक संज्ञा शब्द है, किंतु भूतपूर्व प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू’ अर्थात् व्यक्ति विशेष के लिए रूढ़ हो गया है ।

इस प्रकार यहाँ जातिवाचक का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग किया गया है बाबू जी ने हरिजनों का उद्धार किया । ( बाबू जी –राष्ट्रपिता गांधी)
नेता जी ने कहा- “तुम मुझे खून दे, मैं तुम्हें आजादी कूँरा ।
(नेता जी – सुभाष चंद्र बोस)

भाववाचक संज्ञा –
जो संज्ञा शब्द गुण, कर्म, दशा, अवस्था, भाव आदि का बोध कराएँ उन्हें भाववाचक संज्ञाएँ कहते है।

जैसे – भूख, प्यास, थकावट, चोरी, घृणा, क्रोध, सुंदरता आदि।
भाववाचक संज्ञाओं का संबंध हमारे
भावों से होता है ।

इनका कोई रूप या आकार नहीं होता ।
ये अमूर्त (अनुभव किए जाने वाले) शब्द होते है।

भाववाचक संज्ञाओं का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग  :

भाववाचक संज्ञाएँ जब बहुवचन में प्रयोग की जाती है, तो वे जातिवाचक संज्ञाएँ बन जाती हैं ; जैसे –

(क) बुराई से बचो । ( भाववाचक संज्ञा)

बुराइयों से बचो । (जातिवाचक संज्ञा)

(ख) घर से विद्यालय की दूरी अधिक नहीं है।
(भाववाचक संझा)

मेरे और उसके बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही है । (जातिवाचक संज्ञा)

द्रव्यवाचक संज्ञाएँ एवं समुहवाचक संज्ञाएँ भी जब बहुवचन में प्रयोग होती हैं तो वे जातिवाचक
संज्ञाएँ बन जाती हैं,
जैसे-

(क) मेरी कक्षा में 50 बच्चे हैं ।
(समूहवाचक संज्ञा)
भिन्न – भिन्न विषयों की कक्षाएँ चल रही है । (जातिवाचक संज्ञा)

(ख) सेना अभ्यास कर रही है।
(समूह -वाचक संज्ञा)
हमारी सारी सेनाएँ वीरता से लडी।
(जातिवाचक संज्ञा)

(ग) रोहन का परिवार यहाँं रहता है।
(समूहवाचक संज्ञा)
परिवारों में अब सुलह नहीं है ।
  ( जातिवाचक वाचक)
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2. सर्वनाम – संज्ञा के स्थान पर काम में आने वाला शब्द सर्वनाम शब्द होता है |

जैसे – राम एक लड़का है |
राम बाजार गया |
राम ने सामान खरीदा |

राम एक लड़का है | वह बाजार गया |
उसने सामान खरीदा |

सर्वनाम के भेद सर्वनाम मुख्यत: दस प्रकार के हैं ।

यह सर्वनाम वाक्य का एक प्रमुख भाग है जैसे क्रिया।

यह एक वाक्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लगभग हम सब हर वाक्य में  एक सर्वनाम का उपयोग करते हैं, इसलिए  हमारे द्वारा वाक्यों में सर्वनाम का सही उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है।

सर्वनाम: - सर्वनाम एक ऐसा शब्द है जो संज्ञा या संज्ञा के समूह का स्थान लेता है।

जिस संज्ञा या संज्ञा के समूह से सर्वनाम का स्थान लिया जाता है, उसे पूर्ववर्ती "Anticedent ," कहा जाता है।

लड़के ने कहा कि वह थका हुआ था।
इस उदाहरण में, सर्वनाम "वह"  संज्ञा (पूर्ववर्ती) "लड़का" का उल्लेख कर रहा है।

ज़हरा ने अली को बुलाया और उसे अपने साथ स्केटिंग जाने के लिए आमंत्रित किया।

इस वाक्य में सर्वनाम "उसके और उसके" हैं।
उसके पूर्वज = अली और उसके पूर्वज = ज़हरा
ज़हरा ने अली को बुलाया और अली को ज़हरा के साथ स्केटिंग करने के लिए आमंत्रित किया।

 = अजीब और दोहराव को रोकने लिए सर्वनाम आवश्यक हैं ।
सर्वनामों के प्रकार

1. व्यक्तिगत सर्वनाम:

एक व्यक्तिगत सर्वनाम जो व्यक्ति या  बोलने वाले सुनने वाले या जिसके विषय में बात कही जाए उस व्यक्ति बताता है।

व्यक्तिगत सर्वनाम दो समूहों में विभाजित हैं: 1-विषय-परक और 2-उद्देश्य-परक।

विषयवाचक सर्वनाम:- एक सर्वनाम जो वाक्य में विषय (कर्ता)के रूप में कार्य करता है (वह, , यह, ये, मैं, हम, आप, वे)।

उद्देश्यवाचक सर्वनाम:- एक सर्वनाम जो वाक्य में ऑब्जेक्ट (कर्म) के रूप में कार्य करता है (उसको उसे, इसको, मुझे, हमें, आपको, उन्हें)।

ट्रैक टीम में तेज धावक वह है।
वह = सर्वनाम = विषय पूरक।

विषय पूरक:– विषय पूरक एक संज्ञा या सर्वनाम है जो क्रिया के विषय को संदर्भित करता है और क्रिया के विषय के बारे में अधिक जानकारी देता है।

जब एक सर्वनाम का उपयोग विषय के पूरक के रूप में किया जाता है; तो इसे एक विषयपरक मामले के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।

बोलने वाले व्यक्ति को संदर्भित करता है = (मैं,  और हम)।
= (आप) बोलने वाले व्यक्ति को संदर्भित करता है।
उस व्यक्ति या बात का संदर्भ देता है जिसके बारे में = (वह, उसका, यह, और वे)

2. पूछताछ( प्रश्नवाचक) के सर्वनाम:

प्रश्नवाचक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जो एक प्रश्न का परिचय देते हैं।
(कौन, क्या, कौन, किसका)।

प्रश्नवाचक सर्वनाम जो प्रश्न प्रस्तुत करता है वह प्रत्यक्ष प्रश्न हो सकता है, इस मामले में, वाक्य एक प्रश्न चिह्न के साथ समापन होता है ।
और यह भी एक अप्रत्यक्ष प्रश्न हो सकता है।

सर्वनाम और उसके प्रकारों के बारे में आप क्या जानते हैं?

विशेष: पूछताछ (प्रश्नवाचक) सर्वनाम और पूछताछ(प्रश्नवाचक) विशेषण के बीच अन्तर।

प्रश्नवाचक सर्वनामों का उपयोग उस चीज़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, जिसमें से कोई प्रश्न पूछा जा रहा हो।

संवादात्मक विशेषण संशोधित करते हैं या किसी संज्ञा का वर्णन करते हैं।🐴

ये किताबें (किसकी) हैं? = प्रश्नवाचक सर्वनाम।
ये (किसकी )किताबे है? = प्रश्नवाचक विशेषण।

(Whose )are these books? = interrogative pronoun.
(Whose) books are these? = interrogative adjective.

3. अनिश्चित सर्वनाम: Indefinite Pronoun

अनिश्चित सर्वनाम वे सर्वनाम हैं जो एक अनिर्दिष्ट व्यक्ति, स्थान, चीज या विचार का उल्लेख करते हैं।

जैसे:-(सभी, कोई भी, दोनों, प्रत्येक, कुछ भी, हर, कई, कोई, आदि ...)।

सभी को आज रात की पार्टी में आमंत्रित किया गया है।
सबका स्वागत है।

स्नातक करने के लिए सभी को परीक्षा देनी होगी।
स्नातक के लिए सभी छात्र उत्साहित थे।

4. सापेक्ष सर्वनाम: Relative pronouns:

एक (सम्बन्ध वाचक) सर्वनाम का उपयोग अधीनस्थ खण्ड को पेश करने के लिए किया जाता है।

एक खण्ड Clause (उपवाक्य)क्या है?

किसी विषय और विधेय वाले शब्दों का समूह कभी-कभी पूर्ण अर्थ देता है कभी-कभी पूर्ण अर्थ नहीं भी देता है, और तब इसे दो समूहों में विभाजित किया जाता है:

स्वतंत्र खड: (Ordinate clause) एक स्वतंत्र खंड वाक्य के रूप में अकेला खड़ा हो सकता है।

अधीनस्थ खंड: (Subordinate clause )एक अधीनस्थ खंड एक वाक्य के रूप में अकेला खड़ा नहीं हो सकता है और यह स्वतंत्र खंड से जुड़ा हुआ होता है।

(कौन, किसका, किसका, और वह)

नोट: जैसा कि आप देख रहे हैं कि इन सर्वनामों में से कुछ भी प्रश्नवाचक सर्वनामों में प्रकट हुए हैं, लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उनका उपयोग वाक्य में कैसे किया जाता है।

याद रखें कि जब ये प्रश्नवाचक शब्द सम्बन्ध वाचक सर्वनाम के रूप में उपयोग किए जाते हैं तो वे एक अधीनस्थ खंड का परिचय देते हैं;
और स्वतंत्र खंड में कुछ विशेष के अधीनस्थ खंड से संबंधित होते हैं।

१-यही वह फिल्म है जिसे उनके द्वारा निर्देशित किया गया था।

२-यह वह आदमी है जो कल मेरे घर आया था।

नोट: याद रखें कि सापेक्ष (सम्बन्ध-वाचक) विशेषणों के साथ सापेक्ष (सम्बन्ध-वाचक) सर्वनामों को न मिलाएं।

विशेषण में एक संज्ञा संदर्भित स्थान होता है (आमतौर पर इसके बाद।)
केवल दो सापेक्ष विशेषण होते हैं,
जो और क्या।

•उसने यह नहीं बताया कि वह क्या पहनने जा रहा था। = संबंधवाचक सर्वनाम।

•उसने यह नहीं बताया कि वह कौन सा सूट पहनने वाली थी। = सम्बन्ध-वाचक विशेषण।

5. संभावित (स्वत्वबोधक) सर्वनाम:
(Possessive pronouns)

संभावित सर्वनाम 'वह सर्वनाम हैं जो स्वामित्व को दर्शाता है।

(उसका, इसका,  मेरा, हमारा, आपका, उनका।)
पहले से ही स्पष्ट की गई जानकारी को दोहराने से बचने के लिए एक अधिकारी सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।
 ये उपयोगी सर्वनाम वाक्य को कम भ्रामक बनाते हैं, जैसा कि आप देखते हैं कि जब आप निम्नलिखित वाक्यों को पढ़ते हैं, जिनके पास सर्वनाम के उदाहरण होते हैं।

यह मेरी कार है, आपकी कार नहीं है।
(दोहराव लगता है)
यह कार मेरी है, आपकी नहीं।

मेरे पास मेरी किताब नहीं थी इसलिए अली ने मुझे अपनी किताब दी।
(दोहराव लगता है)
मेरे पास मेरी किताब नहीं है, इसलिए अली ने मुझे उधार दिया।

6. निज वाचक सर्वनाम ( Reflexive Pronoun)

निजवाचक वह सर्वनाम होते हैं जिनका उपयोग यह दिखाने के लिए किया जाता है कि वाक्य के विषय (कर्ता) को क्रिया की कार्रवाई प्राप्त हो रही है।
(स्वयं,)

वह खुद को संभाल सकती है।
उन्हें अपने कार्य स्वयं करने होंगे।

इसमें प्रकार के सर्वनामों में क्रिया के बाद स्वयं शब्द कर्म के रूप में आता है ।

अर्थात् जो व्यक्ति कर्ता है वही कर्म भी होता है ।
जैसे मोहन ने स्वयं को समझाया ।
हरी ने खुद को गोली मारी ।

7. गहन (प्रभाव सूचक )सर्वनाम:

इन सर्वनामों का उपयोग केवल विषय(कर्ता ) पर जोर देने के लिए किया जाता है।

विशेष: ये सर्वनाम निजवाचक सर्वनाम के समान लगते हैं, लेकिन वे वाक्य में अलग-अलग कार्य करते हैं और हमेशा उस विषय (कर्ता ) के पार्श्ववर्ती (बगल में )रखे जाते हैं जिस पर वे जोर दे रहे हैं।

(स्वयं )
विशेष:–निजवाचक सर्वनाम की अपेक्षा वाक्य' में ये कर्ता के तुरन्त बाद या वाक्य' के अन्त में रखे जाते हैं ।

 आपको खुद पुलिस स्टेशन जाना चाहिए।
हम खुद समस्या का समाधान करेंगे।

8. प्रदर्शनकारी सर्वनाम: (संकेतवाचक) इसे निश्चित या निश्चय वाचक सर्वनाम भी कहते हैं।

एक प्रदर्शनकारी सर्वनाम एक वह सर्वनाम है जो एक वाक्य के भीतर कुछ विशेष को इंगित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

ये सर्वनाम अंतरिक्ष या समय में वस्तुओं को इंगित कर सकते हैं, और वे एकवचन या बहुवचन हो सकते हैं। (यह, वह, ये, वे, कोई नहीं, न ही और ऐसे)

१-यह मेरी माँ की अंगूठी थी।

२-ये अच्छे सोफे हैं, लेकिन वे असहज दिखते हैं।

प्रदर्शनकारी सर्वनाम का उपयोग कैसे करें?
प्रदर्शनकारी सर्वनाम हमेशा संज्ञा की पहचान करते हैं, चाहे उन संज्ञाओं को विशेष रूप से नाम दिया गया हो या नहीं।

मैं यह नहीं मान सकता।
हमें नहीं पता कि "यह" क्या है।
प्रदर्शनकारी सर्वनाम आमतौर पर जानवरों, स्थानों या चीजों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है, हालांकि, उनका उपयोग लोगों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।

यह हसीना के गायन जैसा लगता है।

विशेष : प्रदर्शनकारी विशेषणों को प्रदर्शनकारी सर्वनामों के साथ भ्रमित होकर  न  समझा करें।

एक प्रदर्शनकारी सर्वनाम एक वाक्य में संज्ञा वाक्यांश का स्थान लेता है।
एक विशेषण  हमेशा वाक्य में एक संज्ञा के बाद होता है।
जैसे:-
(ये) मेरे दोस्त के जूते हैं (संकेतवाचक सर्वनाम)
(ये) जूते मेरे दोस्त के हैं। (संकेतवाचक विशेषण)
These are my friend’s shoes.
(Demonstrative Pronoun)

These shoes are his.
(Demonstrative Adjective)

9. पारस्परिक सर्वनाम: (Reciprocal Pronoun)
पारस्परिक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जिनका उपयोग लोगों के आपसी सम्बन्ध को दर्शाने  के लिए किया जाता है।

•(एक दूसरे के)

हमें जीवित रहने के लिए एक दूसरे की मदद करने की आवश्यकता है।
उन्हें एक-दूसरे के फोन नंबर याद थे।

10. वितरण (विभाग सूचक)सर्वनाम: Distributive Pronoun

वितरणवाचक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जो एक समय में एक व्यक्ति, स्थान या चीजों को इंगित करते हैं।
(प्रत्येक, या तो और न ही)

प्रत्येक छात्रों ने किया है।
या तो आप ने किया है।
दोनों में से किसी ने भी ऐसा नहीं किया है।

विशेष: एक वितरण सर्वनाम हमेशा एकवचन होता है और इस तरह, इसे एक एकवचन संज्ञा और क्रिया द्वारा पालन किया जाना चाहिए।

न तो सवाल आसान है। (सही बात)
न तो प्रश्न आसान है (गलत)

सर्वनामों के बिना, हमें संज्ञाओं को दोहराते रहना होगा, और इससे हमारा भाषण और अजीब और दोहराव भरा होगा,
इसलिए आपको अपने वाक्य का निर्माण करने के लिए सर्वनाम और इसके प्रकारों के बारे में सीखना होगा।
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सर्वनाम की परिभाषा( Definition of Pronoun) जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है।

दूसरे शब्दों में- सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते है, जो पूर्वापरसंबध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है। सरल शब्दों में- सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द आते है, उन्हें 'सर्वनाम' कहते हैं।
सर्वनाम यानी सबके लिए नाम।
इसका प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है।
आइए देखें, कैसे?

१-गीता सातवीं कक्षा में पढ़ती है।
वह पढ़ाई में बहुत तेज है।

२-उसके सभी मित्र उससे प्रसन्न रहते हैं।
वह कभी-भी स्वयं पर घमंड नहीं करती।

आपने देखा कि ऊपर लिखे अनुच्छेद में राधा के स्थान पर वह, उसके, उससे, स्वयं, अपने आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।

अतः ये सभी शब्द सर्वनाम हैं।
इस प्रकार, संज्ञा के स्थान पर आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।

मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका आदि सर्वनाम शब्द हैं।

अन्य सर्वनाम शब्द भी इन्हीं शब्दों से बने हैं, जो लिंग, वचन, कारक की दृष्टि से अपना रूप बदलते हैं;

जैसे- गीता नृत्य करती है।
गीता का गाना भी अच्छा होता है।
राधा गरीबों की मदद करती है।
गीता नृत्य करती है।
उसका गाना भी अच्छा होता है।
वह गरीबों की मदद करती है।
आप- अपना, यह- इस, इसका, वह- उस, उसका।

अन्य उदाहरण
(1)'सुभाष' एक विद्यार्थी है।

(2)वह (सुभाष) रोज स्कूल जाता है।

(3)उसके (सुभाष के) पास सुन्दर कलम है।

(4)उसे (सुभाष को )घूमना बहुत पसन्द है।

उपयुक्त वाक्यों में 'सुभाष' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके, उसे शब्द संज्ञा (सुभाष) के स्थान पर प्रयोग किये गए है।

इसलिए ये सर्वनाम है।
संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम की विलक्षणता यह है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है, जिसका वह (संज्ञा) नाम है, वहाँ सर्वनाम में पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है।

'लड़का' कहने से केवल लड़के का बोध होता है, घर, सड़क आदि का बोध नहीं होता; किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है।

रिफ्लेक्सिव( निजवाचक )सर्वनामों को प्रत्यय स्वयं (एकवचन) या स्वयं (बहुवचन) के अतिरिक्त सरल सर्वनामों जैसे मेरे, आपके, उसके, उसे, यह, और हमारे द्वारा जोड़ा जाता है।

मेरा + स्वयं = स्वयं आपका + स्वयं = स्वयं हमारा + स्वयं = स्वयं उन्हें + खुद = खुद को यह + स्वयं = खुद जब विषय (कर्ता) और कर्म एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है, तो ऑब्जेक्ट (कर्म) के लिए एक रिफ्लेक्सिव सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।
जैसे:- मैने अपने आप को काटा।

(यहाँं विषय (कर्ता)और (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है -)

आप खुद को काटते हैं। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - आप)
उसने खुद को काट दिया। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म)एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - वह )

बच्चे खुद को काटते हैं।
हम खुद को काटते हैं।

नोट: जब स्वत्रन्त्र रूप से स्वयं का उपयोग किया जाता है, तो यह एक संज्ञा है और सर्वनाम नहीं है।

एक ईमानदार व्यक्ति अपने आप को सभी व्यर्थों से मुक्त रखता है।
किसी के अलावा किसी के लिए स्वयं का हमेशा महत्वपूर्ण होता है।
इसी के समानान्तरण

प्रभावोत्पादक सर्वनाम (Emphetic Pronoun ) इसका प्रयोग किसी विशेष संज्ञा या कर्ता पर जोर देने के लिए किया जाता है जिसे उन्हें एम्फैटिक (Emphetic Pronoun )सर्वनाम कहा जाता है।

उसने खुद मुझको यह बताया।
मैंने खुद ही नौकरी नहीं छोड़ दी।

उन्होंने स्वयं अपनी गलती स्वीकार की।
हमने खुद की दुर्घटना देखी।

१-प्रतिबिंबित और जबरदस्त सर्वनाम के बीच अन्तर यह है कि यदि विषय की कार्रवाई कर्ता पर प्रतिबिंबित होती है तो एक सर्वनाम एक प्रतिबिंबित( निजवाचक) होता है।

२-दूसरी ओर, भावनात्मक सर्वनाम अथवा जोरदार सर्वनाम, इस कर्ता की कार्रवाई पर जोर देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।

उसने खुद को काट दिया। (Reflexive Pronoun)
यहां विषय और उद्देश्य एक ही व्यक्ति को संदर्भित करती है।)

Emphetic Pronoun जोरदार सर्वनाम)
यहां जबरदस्त सर्वनाम स्वयं ही उस संज्ञा पर जोर देता है।) उसने खुद  केक काट दिया

मैंने खुद प्रिंसिपल से बात की। (जोरदार)
आपको नुकसान के लिए
खुद को दोष देना होगा। (कर्मकर्त्ता)

ध्यान दें कि वाक्य से एक जबरदस्त सर्वनाम हटाया जा सकता है और मूल अर्थ प्रभावित नहीं होगा।
दूसरी तरफ एक रिफ्लेक्सिव ( निजवाचक )सर्वनाम अनिवार्य है।

यदि आप रिफ्लेक्सिव सर्वनाम को हटाते हैं तो वाक्य पूरी तरह से समझ में नहीं आएगा ।

पुरुषवाचक और निश्चयवाचक सर्वनाम को छोड़ शेष सर्वनाम विभक्तिरहित बहुवचन में एकवचन के समान रहते हैं।

सर्वनाम में केवल सात कारक होते है।
सम्बोधन कारक नहीं होता।
कारकों की विभक्तियाँ लगने से सर्वनामों के रूप में विकृति आ जाती है।

जैसे- मैं- मुझको, मुझे, मुझसे, मेरा; तुम- तुम्हें, तुम्हारा; हम- हमें, हमारा; वह- उसने, उसको उसे, उससे, उसमें, उन्होंने, उनको; यह- इसने, इसे, इससे, इन्होंने, इनको, इन्हें, इनसे; कौन- किसने, किसको, किसे।

सर्वनाम की कारक-रचना (रूप-रचना) संज्ञा शब्दों की भाँति ही होती है।

सर्वनाम शब्दों के प्रयोग के समय जब इनमें कारक चिह्नों का प्रयोग करते हैं, तो इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है।

('मैं' उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन- बहुवचन कर्ता मैं, मैंने हम, हमने कर्म मुझे, मुझको हमें, हमको करण मुझसे हमसे सम्प्रदान मुझे, मेरे लिए हमें, हमारे लिए अपादान मुझसे हमसे सम्बन्ध मेरा, मेरे, मेरी हमारा, हमारे, हमारी अधिकरण मुझमें, मुझपर हममें, हमपर

('तू', 'तुम' मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता तू, तूने तुम, तुमने, तुम लोगों ने कर्म तुझको, तुझे तुम्हें, तुम लोगों को करण तुझसे, तेरे द्वारा तुमसे, तुम्हारे से, तुम लोगों से सम्प्रदान तुझको, तेरे लिए, तुझे तुम्हें, तुम्हारे लिए, तुम लोगों के लिए अपादान तुझसे तुमसे, तुम लोगों से सम्बन्ध तेरा, तेरी, तेरे तुम्हारा-री, तुम लोगों का-की अधिकरण तुझमें, तुझपर तुममें, तुम लोगों में-पर

('वह' अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक: - एकवचन बहुवचन कर्ता -वह, उसने वे, उन्होंने कर्म उसे, उसको उन्हें, उनको करण उससे, उसके द्वारा उनसे, उनके द्वारा सम्प्रदान उसको, उसे, उसके लिए उनको, उन्हें, उनके लिए अपादान उससे उनसे सम्बन्ध उसका, उसकी, उसके उनका, उनकी, उनके अधिकरण उसमें, उसपर उनमें, उनपर

('यह' निश्चयवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता यह, इसने ये, इन्होंने कर्म इसको, इसे ये, इनको, इन्हें करण. इससे इनसे सम्प्रदान इसे, इसको इन्हें, इनको अपादान इससे इनसे सम्बन्ध इसका, की, के इनका, की, के अधिकरण इसमें, इसपर इनमें, इन पर

('आप' आदरसूचक)
कारक :-एकवचन. बहुवचन कर्ता. आपनेआप लोगों ने कर्म. आपकोआप लोगों को करण. आपसेआप लोगों से सम्प्रदानआपको, के लिएआप लोगों को, के लिए अपादान आपसेआप लोगों से सम्बन्ध आपका, की, के आप लोगों का, की, के अधिकरण आप में, पर आपलोगों में, पर

('कोई' अनिश्चयवाचक सर्वनाम)
कारक:-एकवचन. बहुवचन कर्ता. कोई, किसने. किन्हीं ने कर्म. किसी को. किन्हीं को करण. किसी सेे. किन्हीं से सम्प्रदान किसी को, किसी के लिए किन्हीं को, किन्हीं के लिए अपादान किसी से किन्हीं से सम्बन्ध किसी का, किसी की, किसी के किन्हीं का, किन्हीं की, किन्हीं के अधिकरण किसी में, किसी पर किन्हीं में, किन्हीं पर

('जो' सम्बन्धवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता जो, जिसने जो, जिन्होंने कर्म. जिसे, जिसको. जिन्हें, जिनको करण जिससे, जिसके द्वारा जिनसे, जिनके द्वारा सम्प्रदान जिसको, जिसके लिए जिनको, जिनके लिए अपादान जिससे (अलग होने)जिनसे (अलग होने) सम्बन्ध जिसका, जिसकी, जिसके जिनका, जिनकी, जिनके अधिकरण जिसपर, जिसमें जिनपर, जिनमें

('कौन' प्रश्नवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता. कौन,. किसने. कौन, किन्होंने कर्म. किसे, किसको, किसके किन्हें,. किनको, किनके करण. किससे, किसके द्वारा किनसे, किनके द्वारा सम्प्रदान किसके लिए, किसकोकिनके लिए, किनको अपादान किससे (अलग होने)किनसे (अलग होने) सम्बन्ध किसका, किसकी, किसके किनका, किनकी, किनके अधिकरण किसपर, किसमें किनपर, किनमें

सर्वनाम का पद-परिचय:- सर्वनाम का पद-परिचय करते समय सर्वनाम, सर्वनाम का भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक और अन्य पदों से उसका सम्बन्ध बताना पड़ता है।

उदाहरण- वह अपना काम करता है।

इस वाक्य में, 'वह' और 'अपना' सर्वनाम है। इनका पद-परिचय होगा- वह- पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ताकारक, 'करता है' क्रिया का कर्ता।

अपना- निजवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'काम' संज्ञा का विशेषण। एक पारस्परिक सर्वनाम क्या है?

एक पारस्परिक सर्वनाम एक वह सर्वनाम है ।
जिसका उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि दो या दो से अधिक लोग किसी प्रकार की कार्रवाई कर रहे हैं या दोनों कार्य-वाही के परिणामों या परिणामों को प्राप्त करने के साथ-साथ दोनों कार्य कर रहे हैं।

किसी भी समय कुछ किया जाता है या बदले में दिया जाता है, पारस्परिक सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।

किसी भी समय पारस्परिक कार्रवाई व्यक्त की जाती है। जब केवल दो पारस्परिक सर्वनाम हैं।
उनमें से दोनों आपको वाक्यों को सरल बनाने की अनुमति देते हैं।

वे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं जब आपको एक ही सामान्य विचार को एक से अधिक बार व्यक्त करने की आवश्यकता होती है।

एक दूसरे एक दूसरे पारस्परिक सर्वनाम उपयोग करने में आसान हैं।
जब आप दो लोगों का सन्दर्भ लेना चाहते हैं, तो आप आम तौर पर "एक-दूसरे का उपयोग करेंगे।

" दो से अधिक लोगों का जिक्र करते समय, उदाहरण के लिए एक व्याख्यान कक्ष में छात्र, आप आम तौर पर "एक दूसरे का उपयोग करेंगे।"

पारस्परिक सर्वनाम (ReciprocalPronouns )
पारस्परिक सर्वनाम के उदाहरण ये सर्वनाम वाक्य के भीतर पुनरावृत्ति को रोकने में मदद करते हैं।

निम्नलिखित उदाहरणों में, पारस्परिक सर्वनाम पहचान की आसानी के लिए इटालिसिस italicize
(तिरछे अक्षर लिखना) किया गया है।

प्रेम और मारिया ने अपने शादी के दिन एक-दूसरे के सोने के छल्ले दिए।

मारिया और प्रेम ने समारोह के अन्त में एक-दूसरे को आलिंगन किया।
टेरी और जैक हॉलवे में एक-दूसरे से बात कर रहे थे।

हम छुट्टियों के दौरान एक दूसरे को उपहार देते हैं।

छात्रों ने अभ्यास भाषण देने के बाद एक-दूसरे को बधाई दी।

बच्चों ने दोपहर बॉल को एक दूसरे को लात मार दिया।

प्रतिवादी ने उन अपराधों के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया जिन पर उनका आरोप लगाया गया था।

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