रविवार, 11 फ़रवरी 2024

भरद्वाज की उत्पत्ति-


पुराण और इतिहास (महाकाव्य इतिहास)

भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि ग्रन्थों में ...


एक बार बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी  ममता से मैथुन करना चाहा।
उस समय ममता के  गर्भ में जो बालक था ,उसने बृहस्पति से मना किया। किन्तु बृहस्पति ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया  क्यों कि बृहस्पति कामोत्तेजित हो गये थे।

और बृहस्पति ने उस बालक से कहा:- तू अन्धा हो जा ऐसा शाप सुनकर बालक गर्भ से निकल भागा !
तब बृहस्पति ने  बलपूर्वक  ममता का गर्भाधान कर दिया। उतथ्य की पत्नी ममता इस बात से डर गई कि कही मेरा पति मेरा त्याग न कर दे।
बृहस्पति द्वारा ममता से ( अर्थात भाई की पत्नी) के जबरन बलात्कार के परिमाण स्वरूप जो सन्तान जन्म हुई 'वह भरद्वाज कहलायी  और माता - पिता द्वारा त्याग देने से इस वर्णसंकर (द्वाज) सन्तान का भरण( लालन पालन)   मरुद्गणों ने किया तथा  और देवताओं ने इसका द्वाज नाम रखा। अर्थात्  उतथ्य और बृहस्पति दोनों का पुत्र द्वाज है। और बृहस्पति और ममता  दोनों उसको छोड़कर चले गए। इसका लालन पालन मरुदगणों ने किया अतः नाम भरद्वाज रखा गया ।

और आज --जो स्वयं को भारद्वाज कहते हैं वे ब्राह्मण इन्हीं भरद्वाज की सन्तानें हैं ।

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भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि ग्रन्थों में इस प्रकार दर्शायी गयी है !👇
भरद्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
भरद्वाजः-( भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
अर्थात् दो पुरुषों अर्थात् बृहस्पति और उनके छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता से उत्पन्न सन्तान= द्वाज । और आकाशवाणी द्वारा यह कहने पर कि "भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: ततः पृषोदरादित्वात् द्वाजः सङ्करः।

अब ये कथाऐं शास्त्रों में उस समय समायोजित हुईं जब समाज में अवैध यौनाचार भी स्वीकृत हो गया था।

यद्यपि लिखने वालों ने अपने मनोवृत्तियों का ही प्रकाशन शास्त्रीय सम्मति से करना चाहा।

भरद्वाज के जन्म की यह कथा एक पुराण में नही अपितु अनेक पुराणों में इसी प्रकार है 

जैसे - वायुपुराण () विष्णु पुराण () हरिवंश पुराण() महाभारत ()भागवतपुराण() देवीभागवतपुराण() आदि 

यद्यपि यह कथा कई कारणों से सैद्धान्तिक नहीं है। क्यों चोरी और सीना जोरी जैसी बात तो यही है कि बृहस्पति पहले तो ममता के साथ बलात्कार करता है परन्तु उसके मना करने पर उसे शाप देने की धमकी भी देता है। और गर्भस्थ शिशु के मना करने पर भी बृहस्पति उसे अन्ना होने की शाप देते हैं।

निस्संदेह इस प्रकार की शास्त्रीय आख्यानों ने भारतीय समाज में धर्म की आढ़ मे व्यभिचार को पनपने को बढ़ावा ही दिया है।

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भागवतपुराण 9/20/36, में भरद्वाज की उत्पत्ति का प्रसंग इस प्रकार है ।
एक वार बृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता के साथ उसको पहले से भी गर्भवती होने पर बलात्कार करना चाहा उस समय गर्भस्थ शिशु ने मना किया परन्तु बृहस्पति नहीं माने काम वेग ने उन्हें बलात्कार करने के लिए विवश कर दिया ।

गर्भस्थ शिशु ने मना करने पर
बृहस्पति नें बालक को शाप दे दिया की तू दीर्घ काल तक अन्धा (तमा) हो जाय । भागवतपुराण स उद्धृत मूल संस्कृत पाठ निम्न है !  👇
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बृहस्पतेरग्रजस्योतथ्यस्य ममताख्या पत्नी गर्भिण्यासीत् तस्यां बृहस्पतिः कामाभिभूतो वीर्य्यं व्यसृजत् ।
तच्च गर्भं प्रविशद्गर्भस्थेन स्थानसङ्कोचभयात् पार्ष्णिप्रहारेणापास्तं बहिः पतितमपि अमोघ वीर्य्यतया बृहस्पतेर्भरद्वाजनामपुत्त्रोऽभूत् ।
गर्भस्थश्च बृहस्पतिना तस्मादेवापराधादन्धो भवेति शप्तो दीर्घतमा नामाभवत् !

यह सुनकर बालक तो निकल भागा परन्तु बृहस्पति ने ममता के साथ बलात्कार करके उसे पुन: गर्भ वती कर दिया  तब वह बालक उत्थ्य और बृहस्पति दौनों की सन्तान होने से
भरद्वाज कहलाया ।
शाप के कारण 'वह बालक दीर्घतमा कहलाया -
फिर बृहस्पति बोले ममता से ! 
हे मूढे ममते द्बाजं द्वाभ्यामावाभ्यां जातमिमं पुत्त्रं त्वं भर रक्ष ।
अर्थात् हे ममता मुझ बृहस्पति और उतथ्य द्वारा उत्पन्न इस पुत्र का तू पालन  कर !

एवं बृहस्पतिनोक्तेव ममता तमाह हे बृहस्पते !
द्वाजं द्बाभ्यां जातमिममेकाकिनी किमित्यहं भरिष्यामि । त्वमिमं भरेति परस्परमुक्त्वा तं पुत्त्रं त्यक्त्वा यस्मात् पितरौ ममताबृहस्पती ततो यातौ 
ततो भरद्वाजाख्योऽयम् ।

पाठान्तरे एवं विवदमानौ ।
यद्दुःखात् यन्निमित्ताद् दुःखात् पितरौ यातावित्यर्थः । तदेवं ताभ्यां त्यक्तो मरुद्भिर्भृतः ।
मरुत्सोमाख्येन च यागेनाराधितैर्मरुद्भिस्तस्य वितथे पुत्त्र- जन्मनि सति दत्तत्वाद्बितथसंज्ञाञ्चावाप ।
इति विष्णुपुराण ४ अंशे १९ अध्यायः।

(द्वादशद्बापरेऽसावेव व्यासः ।
यथा, देवीभागवते । १ । ३ । २९ ।
“एकादशेऽथ त्रिवृषो भरद्वाजस्ततःपरम् ।
त्रयोदशे चान्तरिक्षो धर्म्मश्चापि चतुर्द्दशे ॥
यथा च भावप्रकाशस्य पर्व्वूर्खण्डे प्रथमे भागे ।
“रोगाः कार्श्यकरा वलक्षयकरा देहस्य चेष्टाहराः दृष्टा इन्द्रियशक्तिसंक्षयकराः सर्व्वाङ्गपीडाकराः । धर्म्मार्थाखिलकाममुक्तिषु महाविघ्नस्वरूपा बलात् प्राणानाशु हरन्ति सन्ति यदि ते क्षेमं कुतः प्राणिनाम् ॥ तत्तेषां प्रशमाय कश्चन विधिश्चिन्त्यो भवद्भिर्बुधै- र्योग्यैरित्यभिधाय संसदि भरद्वाजं मुनिं तेऽब्रुवन् ।
त्वं योग्यो भगवन् !

ज्येष्ठस्य भ्रातुरुतथ्यस्य पत्न्यां ममतायां वृहस्पतिना जनिते मुनिभेदे । तदुत्पत्तिकथा विष्णु पु० ४ अं० १९ अ० । भाग० ९ । २० अ० ।
द्वाजशब्दे ३७९५ पृ० तन्निरुक्ति- रुक्ता । भा० अनु० ९३ अ० अन्यथा निर्वचनमुक्तं यथा “भरेऽसुतान् भरेऽशिष्यान् भरे देवान् भरे द्विजान् 
भरे भार्य्या भरद्वाजं भरद्वाजोऽस्वि शोभने!” । “प्रजा वै वाजस्ता एष विभर्त्ति यद्बिभर्त्ति तस्याद्भरद्वाज इति श्रुत्यनुसारेण खनामाह ।




अर्थात् बड़े भाई उतथ्य की पत्नी ममता से बृहस्पति द्वारा बलात्कार से  उत्पन्न सन्तान भरद्वाज।
(जन् + डः)
ततः पृषोदरादित्वात् द्वाजः =सङ्करः ।
भ्रियते मरुद्भिरिति ।
भृ + अप् = भरः । भरश्चासौ द्बाजश्चेति कर्म्मधारयः) मुनिविशेषः ।

श्लोक  9.20.34  
तस्यासन् नृप वैदर्भ्य: पत्‍न्यस्तिस्र: सुसम्मता:
जघ्नुस्त्यागभयात् पुत्रान् नानुरूपा इतीरिते॥ ३४ ॥
शब्दार्थ
तस्य—उसकी (भरत की); आसन्—थीं; नृप—हे राजा परीक्षित ! वैदर्भ्य:—विदर्भ की कन्याएँ; पत्न्य:—पत्नियाँ; तिस्र:—तीन; सु-सम्मता:—अत्यन्त मनोहर तथा उपयुक्त; जघ्नु:—मार डाला; त्याग-भयात्—त्यागे जाने के भय से; पुत्रान्—अपने पुत्रों को; न अनुरूपा:—अपने पिता की तरह न होने से; इति—इस तरह; ईरिते—विचार करते हुए पर ।.
अनुवाद
हे राजा परीक्षित, महाराज भरत की तीन मनोहर पत्नियाँ थीं जो विदर्भ के राजा की पुत्रियाँ थीं। जब तीनों के सन्तानें हुईं तो वे राजा के समान नहीं निकलीं, अतएव इन पत्नियों ने यह सोचकर कि राजा उन्हें कृतघ्न रानियाँ समझकर त्याग देंगे, उन्होंने अपने अपने पुत्रों को मार डाला।
श्लोक  9.20.35  
तस्यैवं वितथे वंशे तदर्थं यजत: सुतम् ।
मरुत्स्तोमेन मरुतो भरद्वाजमुपाददु: ॥ ३५ ॥
शब्दार्थ
तस्य—उसके; एवम्—इस प्रकार; वितथे—परेशान होकर; वंशे—सन्तान उत्पन्न करने में; तत्-अर्थम्—पुत्र प्राप्ति के लिए; यजत:— यज्ञ सम्पन्न करते हुए; सुतम्—एक पुत्र को मरुत्-स्तोमेन—मरुत्स्तोम यज्ञ करने से; मरुत:—मरुत्गण देवता; भरद्वाजम्—भरद्वाज को; उपाददु:—भेंट कर दिया ।.
अनुवाद
सन्तान के लिए जब राजा का प्रयास इस तरह विफल हो गया तो उसने पुत्रप्राप्ति के लिए मरुत्स्तोम नामक यज्ञ किया। सारे मरुत्गण उससे पूर्णतया सन्तुष्ट हो गये तो उन्होंने उसे भरद्वाज नामक पुत्र उपहार में दिया।

श्लोक  9.20.36  
अन्तर्वत्‍न्यां भ्रातृपत्‍न्यां मैथुनाय बृहस्पति: ।
प्रवृत्तो वारितो गर्भं शप्‍त्वा वीर्यमुपासृजत् ॥ ३६ ॥
शब्दार्थ:-
अन्त:-वत्न्याम्—गर्भवती; भ्रातृ-पत्न्याम्—भाई की पत्नी से; मैथुनाय—संभोग की इच्छा से; बृहस्पति:—बृहस्पति नामक देवता; प्रवृत्त:—प्रवृत्त; वारित:—मना किया गया; गर्भम्—गर्भ के भीतर के पुत्र को; शप्त्वा—शाप देकर; वीर्यम्—वीर्य; उपासृजत्— स्खलित किया ।.
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अनुवाद
बृहस्पति देव ने अपने भाई की पत्नी ममता पर मोहित होने पर उसके गर्भवती होते हुए भी उसके साथ संभोग करना चाहा। उसके गर्भ के भीतर के पुत्र ने मना किया लेकिन बृहस्पति ने उसे शाप दे दिया और बलात् ममता के गर्भ में वीर्य स्थापित कर दिया।
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"क्या अपराधी निरपराध को शाप देने की सामर्थ्य रखता है।
तात्पर्य
इस संसार में संभोग की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि देवताओं के गुरु तथा अत्यन्त पंडित बृहस्पति ने भी अपने भाई की गर्भवती पत्नी के साथ संभोग करना चाहा। जब उच्चतर देवताओं के समाज में ऐसा हो सकता है तो मानव समाज के विषय में क्या कहा जाये ? संभोग की इच्छा इतनी प्रबल है कि बृहस्पति जैसा विद्वान व्यक्ति भी विचलित हो सकता है।

श्लोक  9.20.37  

तं त्यक्तुकामां ममतां भर्तुस्त्यागविशङ्किताम् ।
नामनिर्वाचनं तस्य श्लोकमेनं सुरा जगु:॥ ३७॥
 
शब्दार्थ
तम्—नवजात शिशु को; त्यक्तु-कामाम्—त्यागने की इच्छा से; ममताम्—ममता को; भर्तु: त्याग-विशङ्किताम्—अवैध पुत्र उत्पन्न करने के कारण अपने पति द्वारा छोड़े जाने से अत्यन्त भयभीत; नाम-निर्वाचनम्—नामकरण संस्कार; तस्य—उस बालक का; श्लोकम्—श्लोक; एनम्—इस; सुरा:—देवतागण ने; जगु:—घोषित किया
 
अनुवाद
ममता अत्यन्त भयभीत थी कि अवैध पुत्र उत्पन्न करने के कारण उसका पति उसे छोड़ सकता है अतएव उसने बालक को त्याग देने का विचार किया। लेकिन तब देवताओं ने उस बालक का नामकरण करके सारी समस्या हल कर दी।
 
तात्पर्य
वैदिक शास्त्र के अनुसार जब भी बालक उत्पन्न होता है तो जातकर्म तथा नामकरण संस्कार किये जाते हैं जिनमें विद्वान ब्राह्मण ज्योतिषगणना के अनुसार कुण्डली बनाते हैं। किन्तु ममता ने जिस पुत्र को जन्म दिया था वह बृहस्पति द्वारा उत्पन्न अवैध पुत्र था क्योंकि ममता तो उतथ्य की पत्नी थी, किन्तु बृहस्पति ने बलपूर्वक उसे गर्भवती बना दिया था।
अतएव बृहस्पति को भर्ता बनना पड़ा। वैदिक संस्कृति के अनुसार पत्नी पति की सम्पत्ति होती है और अवैध मैथुन द्वारा उत्पन्न पुत्र द्वाज कहलाता है। हिन्दू समाज में ऐसे पुत्र को दोगला कहा जाता है।
ऐसी स्थिति में बालक को उचित संस्कार द्वारा नाम दे पाना कठिन होता है। इसीलिए ममता चिन्तित थी, किन्तु देवताओं ने बालक को एक उपयुक्त नाम भरद्वाज प्रदान किया जिसका अर्थ था कि यह बालक अवैध रूप से उत्पन्न है और इसका पालन ममता तथा बृहस्पति दोनों को करना चाहिए।
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श्लोक  9.20.38  
मूढे भर द्वाजमिमं भर द्वाजं बृहस्पते ।
यातौ यदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् ॥ ३८॥
 
शब्दार्थ
मूढे—हे मूर्ख स्त्री; भर—पालन करोद्वाजम्—दोनों के बीच अवैध सम्बन्ध से उत्पन्न; इमम्—इस बालक को; भर—पालो; द्वाजम्—अवैध जन्म लेने के कारण; बृहस्पते—हे बृहस्पति; यातौ—छोडक़र चले गये; यत्—क्योंकि; उक्त्वा—कहकर; पितरौ— माता पिता दोनों; भरद्वाज:—भरद्वाज नामक; तत:—तत्पश्चात्; तु—निस्सन्देह; अयम्—यह बालक ।.
 
अनुवाद
बृहस्पति ने ममता से कहा, “अरी मूर्ख! यद्यपि यह बालक अन्य पुरुष की पत्नी और किसी दूसरे पुरुष के वीर्य से उत्पन्न हुआ है, किन्तु तुम इसका पालन करो।” यह सुनकर ममता ने उत्तर दिया, “अरे बृहस्पति, तुम इसको पालो।” ऐसा कहकर बृहस्पति तथा ममता उसे छोडक़र चले गये। इस तरह बालक का नाम भरद्वाज पड़ा।

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श्लोक  9.20.39  

चोद्यमाना सुरैरेवं मत्वा वितथमात्मजम् ।
व्यसृजन् मरुतोऽबिभ्रन् दत्तोऽयं वितथेऽन्वये ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
चोद्यमाना—प्रोत्साहित किये जानेपर (कि बालक को पालो); सुरै:—देवताओं द्वारा; एवम्—इस प्रकार; मत्वा—मानकर; वितथम्—निष्प्रयोजन; आत्मजम्—अपने पुत्र को; व्यसृजत्—त्याग दिया; मरुत:—मरुत्गण ने; अबिभ्रन्—बच्चे का पालन किया; दत्त:—दिया गया; अयम्—यह; वितथे—निराश; अन्वये—महाराज भरत का वंश में  ।.
 
अनुवाद
यद्यपि देवताओं ने बालक को पालने के लिए प्रोत्साहित किया था, किन्तु ममता ने अवैध जन्म के कारण उस बालक को व्यर्थ समझ कर उसे छोड़ दिया। फलस्वरूप, मरुत्गण देवताओं ने बालक का पालन किया और जब महाराज भरत सन्तान के अभाव से निराश हो गए तो उन्हें यही बालक पुत्र-रूप में भेंट किया गया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद्भागवत के नवम स्कन्ध के अन्तर्गत “पूरु का वंश” नामक बीसवें अध्याय के भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुए।
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भागवतपुराण 9,20,36, में भरद्वाज की उत्पत्ति का प्रसंग इस प्रकार है । एक वार बृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता के साथ उसको पहले से भी गर्भवती होने पर बलात्कार करना चाहा  उस समय गर्भस्थ शिशु ने मना किया परन्तु बृहस्पति नहीं माने काम वेग ने उन्हें विवश कर दिया ।
बृहस्पति नें बालक को शाप दे दिया की तू दीर्घ काल तक अन्धा (तमा) हो जाय ।

यह सुनकर बालक तो निकल भागा परन्तु बृहस्पति ने ममता के साथ बलात्कार करके उसे पुन: गर्भवती कर दिया  तब वह बालक उतथ्य और बृहस्पति दौनों की सन्तान होने से
भरद्वाज कहलाया ।

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माता भस्त्र पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः ।
भरस्व पुत्रं दुष्यंतमावमंस्थाश्शकुंतलाम् ।१२ ।
रेतोधाः पुत्रो नयति नरदेव यमक्षयात् ।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुंतला ।१३ ।
भरतस्य पत्नित्रये नव पुत्रा बभूवुः ।१४ ।
नैते ममानुरूपा इत्यभिहितास्तन्मातरः परित्यागभयात्तत्पुत्राञ्जघ्नुः ।१५ ।
ततोस्य वितथे पुत्रजन्मनि पुत्रार्थिनो मरुत्सोमयाजिनो दीर्घतमसः पार्ष्ण्यपास्तद्बृहस्पतिवीर्यादुतथ्यपत्न्यां ममतायां समुत्पन्नो भरद्वाजाख्यः पुत्रो मरुद्भिर्दत्तः ।१६ ।
तस्यापि नामनिर्वचनश्लोकः पठ्यते ।१७ ।
मूढे भर द्वाजमिमं भरद्वाजं बृहस्पते।
यातौ यदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् इति ।।।१८ ।
भरद्वाजस्स तस्य वितथे पुत्रजन्मनि मरुद्भिर्दत्तः ततो वितथसंज्ञामवाप ।१९ ।
वितथस्यापि मन्युः पुत्रोऽभवत् ।२० ।
बृहत्क्षत्रमहावीर्यनगरगर्गा अभवन्मन्युपुत्राः ।२१ ।
नगरस्य संकृतिस्संकृतेर्गुरुप्रीतिरंतिदेवौ ।२२ ।
गर्गाच्छिनिः ततश्च गार्ग्याश्शैन्याः क्षत्रोपेता द्विजातयो बभूवु ।२३ । इति विष्णुपुराणे ४ अंशे १९ अध्यायः

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देवीभागवतरुराणे-।१। ३ । २९ ।
“एकादशेऽथ त्रिवृषो भरद्वाजस्ततःपरम् ।
त्रयोदशे चान्तरिक्षो धर्म्मश्चापि चतुर्द्दशे ॥

 ।

 “शाण्डिल्यः काश्यपश्चैव वात्स्यः सावर्णकस्तथा । भरद्वाजो गौतमश्च सौकालीनस्तथापरः ॥
इत्यादि गोत्रशब्दे द्रष्टव्यम् ॥

भृ + शतृ । भरत् + वाजः । संभ्रियमाणहविर्लक्षणान्नेयज- मानादौ, त्रि ।
यथा, ऋग्वेदे । १ । ११६ । १८ ।
“यदयातं दिवोदासाय वर्त्तिर्भरद्वाजायाश्विना हयन्ता ॥” “भरद्वाजाय संभ्रियमाणहविर्लक्षणान्नाय यज- मानाय ।” इति तद्भाष्ये सायनाचार्य्यः )

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  मत्स्य पुराण (मत्स्यपुराण)
( पुरुवंश प्रकरण अध्याय 49) - 
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दौष्यन्तिं प्रति राजानं वागूचे चाशरीरिणी।
माता भस्त्रा पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः।। ४९.१२ ।।

भर स्वपुत्रं दुष्यन्त! मावमंस्थाः शकुन्तलाम्।
रेतोधां नयते पुत्रः परेतं यमसादनात्।।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला।। ४९.१३ ।

भरतस्य विनष्टेषु तनयेषु पुरा किल।
पुत्राणां मातृकात् कोपात् सुमहान् संक्षयः कृतः।। ४९.१४ ।

ततो मरुद्भिरानीय पुत्रः स तु बृहस्पतेः।
संक्रामितो भरद्वाजो मरुद्बिर्भरतस्य तु।४९.१५।
   
ऋषय ऊचुः।
भरतस्य भरद्वाजः पुत्रार्थं मारुतैः कथम्।
संक्रामितो महातेजास्तन्नो ब्रूहि यथातथम्।। ४९.१६ ।।

सूत उवाच।
पत्न्यामापन्नसत्वायामुशिजः सः स्थितो भुवि।
भ्रातुर्भार्य्यां सद्रृष्ट्वा तु बृहस्पतिरुवाच ह।। ४९.१७ ।

उपतिष्ठ स्वलङ्कृत्य मैथुनाय च मां शुभे!।
एव मुक्ताऽब्रवीदेनं स्वयमेव बृहस्पतिम्।४९.१८।

गर्भः परिणतश्चायं ब्रह्म व्याहरते गिरा।
अमोघरेतास्त्वञ्चापि धर्मञ्चैवं विगर्हितम्।। ४९.१९ ।

एवमुक्तोऽब्रवीदेनां स्वयमेव बृहस्पतिः।
नोपदेष्टव्यो विनयस्त्वया मे वरवर्णिनि!। ४९.२०।

धर्षमाणः प्रसह्यैनां मैथुनायोपचक्रमे।
ततो बृहस्पतिं गर्भो धर्षमाणमुवाच ह।४९.२१।

सन्निविष्टो ह्यहं पूर्वमिह नाम बृहस्पते!।
अमोघरेताश्च भवान् नावकाश इह द्वयोः।४९.२२।

एवमुक्तः स गर्भेण कुपितः प्रत्युवाच ह।
यस्मात्त्वमीद्रृशे काले सर्वभूतेप्सिते सति।।
अभिषेधसि तस्मात्त्वं तमो दीर्घं प्रवेक्ष्यसि।। ४९.२३।

ततः कामं सन्निवर्त्य तस्यानन्दाद् बृहस्पतेः।
तद्रेतस्त्वपतद् भूमौ निवृत्तं शिशुकोऽभवत्।। ४९.२४ ।।

सद्यो जातं कुमारं तु द्रृष्ट्वा तं ममताऽब्रवीत्।
गमिष्यामि गृहं स्वं वै भरस्वैनं बृहस्पते।। ४९.२५।

एवमुक्त्वागता सा तु गतायां सोऽपि तं त्यजन्।
मातापितृभ्यां त्यक्तन्तु द्रृष्ट्वा तं मारुतः शिशुम्
जगृहुस्तं भरद्वाजं मरुतः कृपया स्थिताः।। ४९.२६।

तस्मिन् काले तु भरतो बहुभिः ऋतुभि र्विभुः।
पुत्रनैमित्तिकैर्यज्ञैरयजत् पुत्रलिप्सया।४९.२७।

यदा स यजमानस्तु पुत्रं नासादयत् प्रभुः।
ततः क्रतुं मरुत्सोमं पुत्रार्थे समुपाहरत्।४९.२८।

तेन ते मरुतस्तस्य मरुत्सोमेन तुष्टुवुः।
उपनिन्युर्भरद्वाजं पुत्रार्थं भरताय वै।४९.२९।

दायादोऽङ्गिरसः सूनो रौरसस्तु बृहस्पतेः।
संक्रामितो भरद्वाजो मरुद्भिर्मरुतं प्रति।४९.३०।
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भरतस्तु भरद्वाजं पुत्रं प्राप्य विभुरब्रवीत्।
आदावात्महितायः त्वं कृतार्थोऽहं त्वया विभो।। ४९.३१।

पूर्वं तु वितथो तस्मिन् कृते वै पुत्रजन्मनि।
ततस्तु वितथो नाम भरद्वाजो नृपोऽभवत्।। ४९.३२।

तस्मादपि भरद्वाजाद् ब्राह्मणाः क्षत्रिया भुवि।
द्व्यामुष्यायणकौलीनाः स्मृतास्ते द्विविधेन च। ४९.३३।

ततो जाते हि वितथे भरतश्च दिवं ययौ।
भरद्वाजो दिवं यातो ह्यभिषिच्यसुतं ऋषिः। ४९.३४।
_____
दायादो वितथस्यासीद् भुवमन्युर्महायशाः।
महाभूतोपमाः पुत्रा श्चत्वारो भुवमन्यवः।। ४९.३५।

बृहत् क्षेत्रो महावीर्यः नरो गर्गश्च वीर्य्यवान्।
नरस्य संकृतिः पुत्रस्तस्य पुत्रो महायशाः।। ४९.३६।

गुरुधीरन्तिदेवश्च सत्कृत्यान्तावुभौ स्मृतौ।
गर्गस्य चैव दायादः शिबिर्विद्वानजायत।। ४९.३७।

स्मृताः शैव्यास्ततो गर्गाः क्षत्रोपेता द्विजातयः।
आहार्यतनयश्चैव धीमानासीदुरुक्षवः।। ४९.३८ ।।

तस्य भार्या विशाला तु सुषुवे पुत्रकत्रयम्।
त्र्युषणं पुष्करिं चैव कविं चैव महायशाः।। ४९.३९।

उरुक्षवाः स्मृता ह्येते सर्वे ब्राह्मणताङ्गताः।
काव्यानान्तु वरा ह्येते त्रयः प्रोक्ता महर्षयः।। ४९.४० ।।

गर्गाः संकृतयः काव्याः क्षत्रोपेताद्विजातयः।
संभृताङ्गिरसो दक्षाः बृहत् क्षत्रस्य च क्षितिः।। ४९.४१।

बृहत्क्षत्रस्य दायादो हस्ति नामा बभूव ह।
तेनेदं निर्मितं पूर्वं पुरन्तु गजसाह्वयम्।। ४९.४२ ।।
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अनुवाद:-
इसी दुष्यन्त-पुत्र भरतके विषयमें आकाशवाणी ने राजा दुष्यन्त से कहा था- 'दुष्यन्त ! माता का गर्भाशय तो एक चमड़े के थैले के समान है, उसमें गर्भाधान करने के कारण पुत्र पिताका ही होता है; अतः जो जिससे पैदा होता है, वह उसका आत्मस्वरूप ही होता है। इसलिये तुम अपने पुत्रका भरण-पोषण करो और शकुन्तला का अपमान मत करो। 

पुत्र अपने मरे हुए पिताको यमपुरी के कष्टों से छुटकारा दिलाता है। इस गर्भका आधान करनेवाले तुम्हीं हो, शकुन्तला ने यह बिलकुल सच बात कही है। पूर्वकालमें भरत के सभी पुत्रोंका विनाश हो गया था। माता के कोप के कारण उनके पुत्रों का यह पुत्र का महासंहार हुआ था। यह देखकर मरुद्गणों ने बृहस्पतिके पुत्र भरद्वाजको लाकर भरत के हाथों में समर्पित किया था। बृहस्पति अपने इस पुत्र को वन में छोड़कर चले गये थे ।। 12-256॥

इस प्रकार माता-पिता द्वारा त्यागे गये उस शिशुको | देखकर मरुद्गणों का हृदय द्रवित  हो गया, तब उन्होंने उस भरद्वाज नामक शिशु को उठा लिया। उसी समय राजा भरत पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से अनेकों ऋतुकाल के अवसरों पर पुत्रनिमित्तक यज्ञों का अनुष्ठान करते आ रहे थे, परंतु जब उन सामर्थ्यशाली नरेश को उन यज्ञों के करने से भी पुत्रकी प्राप्ति नहीं हुई, तब उन्होंने पुत्र प्राप्तिके निमित्त 'मरुत्स्तोम' नामक यज्ञ का अनुष्ठान प्रारम्भ किया। राजा भरत के उस मरुत्स्तोम यज्ञ से सभी मरुद्गण प्रसन्न हो गये। तब वे उस भरद्वाज नामक शिशु को साथ लेकर भरत को पुत्ररूप में प्रदान करने के लिये उस यज्ञ में उपस्थित हुए वहाँ उन्होंने अङ्गिरा पुत्र बृहस्पति के औरस पुत्र भरद्वाज को भरत के हाथों में समर्पित कर दिया।

तब राजा भरत भरद्वाज को पुत्ररूप में पाकर इस प्रकार बोले-'विभो। पहले तो आप (इस शिशुको लेकर) आत्महित की ही बात सोच रहे थे, परंतु अब इसे पाकर मैं आपकी कृपा से कृतार्थ हो गया हूँ।' पुत्र जन्मके हेतु किये गये पहलेके सभी यह वितथ (निष्फल) हो गये थे, इसलिये वह भरद्वाज राजा वितथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस भरद्वाज से भी भूतलपर ब्राह्मण और क्षत्रिय- दोनों प्रकार के पुत्र उत्पन्न हुए, जो द्वयामुष्यायण और कौलीन नामसे विख्यात हुए ll 26-33 ॥
_______________
तदनन्तर वितथ के पुत्ररूप में प्राप्त हो जाने पर राजा भरत (उसे राज्याभिषिक्त करके) स्वर्गलोकको चले गये।

राजर्षि भरद्वाज भी यथासमय अपने पुत्रको राज्यपर अभिषिक्त करके स्वर्गलोक सिधारे।
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महायशस्वी भुवमन्यु वितधका पुत्र था। भुवमन्यु के बृहत्क्षत्र, महावीर्य, नर और वीर्यशाली गर्ग नामक चार पुत्र थे।

जो वायु आदि चार महातत्त्वोंके समान थे। नर का पुत्र संकृति हुआ। संकृति के दो पुत्र महायशस्वी गुरुधी और रन्तिदेव हुए। 

वे दोनों सत्कृति के गर्भसे उत्पन्न हुए बतलाये जाते हैं।
_____ 
 गर्गके पुत्ररूपमें विद्वान् शिवि उत्पन्न हुआ।
 उसके वंशधर जो क्षत्रियांशसे युक्त द्विज थे,

शैव्य और गर्ग के नामसे विख्यात हुए। शिविके आहार्य तनय और बुद्धिमान् उरुक्षव नामक दो पुत्र थे । उरुक्षवकी पत्नी विशाला ने त्र्यरुण, पुष्करि - और महायशस्वी कवि- इन तीन पुत्रोंको जन्म दिया।

ये सभी उरुक्षव कहलाते हैं और अन्तमें ब्राह्मणत्वको प्राप्त हो गये थे।

काव्यके वंशधरों (भार्गव गोत्र-प्रवरों) में ये तीनों महर्षि कहे गये हैं। इस प्रकार गर्ग, संकृति और कवि के वंशमें उत्पन्न हुए लोग क्षत्रियांशसे युक्त ब्राह्मण थे। 

अङ्गिरागोत्रीय बृहत्थाम ने भी इस समृद्धिशालिनी पृथ्वीका शासन किया था। बृहत्क्षत्र का हस्ति नामक पुत्र हुआ। 

उसी ने पूर्वकालमें इस हस्तिनापुर नामक नगरको बसाया था। 

इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते अनुषङ्गपादो नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः ।। ३७।। इत्यनुषङ्गपादः ।।

             भरद्वाज की उत्पत्ति- 
_____________________
शकुन्तलायां भरतो यस्य नाम्ना तु भारतम्।
दुष्यन्तं प्रति राजानं वागुवाचाशरीरिणी ।। ३७.१३० ।।
माता भस्त्रा पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः।
भरस्व पुत्रं दुष्यन्तं सत्यमाह शकुन्तला ।। ३७.१३१।।
रेतोधाः पुत्रं नयति नरदेव यमक्षयात्।
त्वञ्चास्य धाता गर्भस्य मावमंस्थाः शकुन्तलाम् ।। ३७.१३२ ।।
भरतस्त्रिसृषु स्त्रीषु नव पुत्रानजीजनत्।
नाभ्यनन्दच्च तान् राजा नानुरूपान्ममेत्युत ।। ३७.१३३ ।।
ततस्ता मातरः क्रुद्धाः पुत्रान्निन्युर्यमक्षयम्।
ततस्तस्य नरेन्द्रस्य विततं पुत्रजन्म तत् ।। ३७.१३४।
ततो मरुद्भिरानीय पुत्रस्तु स बृहस्पतेः।
सङ्क्रामितो भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्विभुः ।। ३७.१३५ ।।
________  
तत्रैवोदारहन्तीदं भरद्वाजस्य धीमतः।
जन्मसङ्क्रमणञ्चैव मरुद्भिर्भरताय वै ।। ३७.१३६ ।।
पत्न्यामासन्नगर्भायामशिजः संस्थितः किलः।
भ्रातुर्भार्यां स दृष्ट्वाथ बृहस्पतिरुवाच ह।
अलंकृत्य तनुं स्वान्तु मैथुनं देहि मे शुभे ।। ३७.१३७।।
_________________            
एवमुक्ताऽब्रवीदेन मन्तर्वत्नी ह्यहं विभो।
गर्भः परिणतश्चायं ब्रह्म व्याहरते गिरा ।३७.१३८।

अमोघरेतास्त्वञ्चापि धर्मश्चैव विगर्हितः।
एवमुक्तोऽब्रवीदेनां स्मयमानो बृहस्पतिः । ३७.१३९ ।

विनयो नोपदेष्टव्यस्त्वया मम कथञ्चन।
हर्षमाणः प्रसह्यैनां मैथुनायोपचक्रमे ।। ३७.१४०।
ततो बृहस्पतिं गर्भो हर्षमाणमुवाच ह।
सन्निविष्टो ह्यहं पूर्वमिह तात बृहस्पते ।३७.१४१।

अमोघरेताश्च भवान्नावकाशोऽस्ति च द्वयोः।
एवमुक्तः स गर्भेण कुपितः प्रत्युवाच ह ।। ३७.१४२ ।।

यस्मान्मामीदृशे काले सर्वभूतेप्सिते सति।
प्रतिषेधसितत्तस्मात् तमो दीर्घं प्रवेक्ष्यसि ।३७.१४३।

पादाभ्यान्तेन तच्छन्नं मातुर्द्वारं बृहस्पतेः।
तद्रेतस्तु तयोर्मध्ये निवार्यः शिशुकोऽभवत् ।। ३७.१४४ ।।
सद्यो जातं कुमारन्तं दृष्ट्वाऽथ ममताऽब्रवीत्।
गमिष्यामि गृहं स्वं वै भरद्वाजं बृहस्पते ।। ३७.१४५ ।

एवमुक्त्वा गतायां स पुत्रन्त्यजति तत्क्षणात्।
भरस्व बाढमित्युक्तो भरद्वाजस्ततोऽभवत् ।। ३७.१४६ ।।

मातापितृभ्यां संत्यक्तं दृष्ट्वाथ मरुतः शिशुम्।
गृहीत्वैनं भरद्वाजं जग्मुस्ते कृपया ततः ।। ३७.१४७ ।।

तस्मिन् काले तु भरतो मरुद्भिः क्रतुभिः क्रमात्।
काम्यनैमित्तिकैर्यज्ञैर्यजते पुत्रलिप्सया ।३७.१४८ ।

यदा स यजमानो वै पुत्रान्नासादयत् प्रभुः ।
यज्ञं ततो मरुत्सोमं पुत्रार्थे पुनराहरत् ।। ३७.१४९।
तेन ते मरुतस्तस्य मरुत्सोमेन तोषिताः।
भरद्वाजं ततः पुत्रं बार्हस्पत्यं मनीषिणम् ।। ३७.१५० ।।
भरतस्तु भरद्वाजं पुत्रं प्राप्य तदाब्रवीत्।
प्रजायां संहृतायां वै कृतार्थोऽहं त्वया विभो ।। ३७.१५१ ।।

पूर्वन्तु वितथं तस्य कृतं वै पुत्रजन्म हि।
ततः स वितथो नाम भरद्वाजस्तथाऽभवत् ।। ३७.१५२ ।।

तस्माद्दिव्यो भरद्वाजो ब्राह्मण्यात् क्षत्रियोऽभवत्।
द्विमुख्यायननामा स स्मृतो द्विपितृकस्तु वै ।३७.१५३।
__________________     
ततोऽथ वितथे जाते भरतः स दिवं ययौ।
वितथस्य तु दायादो भुवमन्युर्बभूव ह ।। ३७.१५४।
महाभूतोपमाश्चासंश्चत्वारो भुवमन्युजाः।
बृहत्क्षत्रो महावीर्यो नरो गाग्रश्च वीर्यवान् ।। ३७.१५५ ।।
नरस्य सांकृतिः पुत्रस्तस्य पुत्रौ महौजसौ।
गुरुवीर्यस्त्रिदेवश्च सांकृत्याववरौ स्मृतौ ।। ३७.१५६ ।।
दायादाश्चापि गाग्रस्य शिनिबद्धात् बभूव ह।
स्मृताश्चैते ततो गाग्र्याः क्षात्रोपेता द्विजातयः ।। ३७.१५७ ।।
महावीर्यसुतश्चापि भीमस्तस्मादुभक्षयः।
तस्य भार्या विशाला तु सुषुवे वै सुतांस्त्रयः ।। ३७.१५८ ।।

त्रय्यारुणिं पुष्करिणं तृतीयं सुषुवे कपिम्।
कपेः क्षत्रवरा ह्येते तयोः प्रोक्ता महर्षयः ।३७.१५९।

गाग्राः सांकृतयो वीर्याः क्षात्रोपेता द्विजातयः।
संश्रिताङ्गिरसं पक्षं बृहत्क्षत्रस्य वक्ष्यति ।। ३७.१६० ।।
बृहत्क्षत्रस्य दायादः सुहोत्रो नाम धार्मिकः।
सुहोत्रस्यापि दायादो हस्ती नाम बभूव ह।
तेनेदं निर्मितं पूर्वं नाम्ना वै हास्तिनं पुरम् ।। ३७.१६१।
हस्तिनश्चापि दायादास्त्रयः परमधार्मिकाः।
अजमीढो द्विमीढश्च पुरुमीढस्तथैव च ।। ३७.१६२।
_   
अजमीढस्य पुत्रास्तु शभाः शुभकुलोद्वहाः।
तपसोऽन्ते सुमहतो राज्ञो वृद्धस्य धार्मिकाः ।। ३७.१६३ ।।
भरद्वाजप्रसादेन श्रृणुध्वं तस्य विस्तरम्।
अजमीढस्य केशिन्यां कण्ठः समभवत्किल ।। ३७.१६४ ।।
मेधातिथिः सुतस्तस्य तस्मात् कण्ठायना द्विजाः।
अजमीढस्य धूमिन्यां जज्ञे बृहद्वसुर्नृपः ।। ३७.१६५ ।।

__________________
इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते अनुषङ्गपादो नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः ।। ३७।। इत्यनुषङ्गपादः ।।

दुष्यन्तं प्रति राजानं वागुवाचाशरीरिणी ।
माता भस्त्रा पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः ।। ११ ।।
भरस्व पुत्रं दुष्यन्त मावमंस्थाः शकुन्तलाम् ।
रेतोधाः पुत्र उन्नयति नरदेव यमक्षयात् ।। १२ ।।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला ।
भरतस्य विनष्टेषु तनयेषु महीपतेः ।। १३ ।।
मातॄणां तात कोपेन मया ते कथितं पुरा ।
बृहस्पतेराङ्गिरसः पुत्रो राजन् महामुनिः ।
संक्रामितो भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्विभुः ।।१४ ।।
अत्रैवोदाहरन्तीमं भरद्वाजस्य धीमतः ।
धर्मसंक्रमणं चापि मरुद्भिर्भरताय वै ।। १५ ।।
अयाजयद् भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्हि तम् ।
पूर्वं तु वितथे तस्य कृते वै पुत्रजन्मनि ।। १६ ।।
ततोऽथ वितथो नाम भरद्वाजसुतोऽभवत् ।
ततोऽथ वितथे जाते भरतस्तु दिवं ययौ ।। १७ ।।
वितथं चाभिषिच्याथ भरद्वाजो वनं ययौ ।
स राजा वितथः पुत्राञ्जनयामास पञ्च वै ।। १८ ।।
सुहोत्रं च सुहोतारं गयं गर्गं तथैव च ।
कपिलं च महात्मानं सुहोत्रस्य सुतद्वयम् ।। १९ ।।
काशिकश्च महासत्त्वस्तथा गृत्समतिर्नृपः ।
तथा गृत्समतेः पुत्रा ब्राह्मणाः क्षत्रिया विशः ।। 1.32.२० ।।
______________________________
इति श्रीमहाभारते खिलभागे हरिवंशे हरिवंशपर्वणि पूरुवंशानुकीर्तने द्वात्रिंशोऽध्यायः ।। ३२ ।।
प्रस्तुति यादव योगेश कुमार रोहि-
दूरभाष:- 8077160219

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स्रोत : विज्डम लाइब्रेरी: भागवत पुराण

भारद्वाज (भारद्वाज):—बृहस्पति ने अपने भाई (उतथ्य) की पत्नी मन्मता को बलपूर्वक गर्भवती कर दिया। क्योंकि बृहस्पति और ममता दोनों उसकी देखभाल नहीं करना चाहते थे (उसके अवैध जन्म के कारण), बच्चे को भारद्वाज कहा गया था। अंततः देवताओं ने उसे भरत (दुष्मंत का पुत्र) को दे दिया क्योंकि वह एक पुत्र की इच्छा रखता था। ( भागवत पुराण 9.20.36 देखें )

भारद्वाज को मरुत देवताओं ने जन्म दिया था, उन्हें वितथ के नाम से जाना जाता था। उनका एक पुत्र था जिसका नाम मन्यु रखा गया। ( भागवत पुराण 9.21.1 देखें )

स्रोत : Archive.org: पौराणिक विश्वकोश

1) भारद्वाज (भारद्वाज)।—दीर्घतमस का दूसरा नाम। **

**) दीर्घतमस को भारद्वाज भी कहा जाता है। लेकिन पौराणिक ख्याति के भारद्वाज दीर्घतमस नहीं हैं। दीर्घतमस वह पुत्र है जिसे बृहस्पति ने अपने भाई की पत्नी ममता से अवैध रूप से प्राप्त किया था। तब ममता के गर्भ में एक और वैध बच्चा था। यह जानकर देवताओं ने उन्हें 'भारद्वाज' कहा जिसका अर्थ है 'दो का खामियाजा भुगतना' और इसलिए बृहस्पति के पुत्र का नाम भारद्वाज भी पड़ गया। इस पुत्र का वास्तविक नाम दीर्घतमस या वितथ था। दीर्घतमस भारद्वाज नहीं हैं जो द्रोण के पिता थे। प्रसिद्ध भारद्वाज अत्रि के पुत्र थे। दीर्घतमस या वितथ, दुष्यन्त के पुत्र भरत के दत्तक पुत्र थे। (भागवत और कम्पारामायण। विवरण के लिए भारत I और दीर्घतमस के अंतर्गत देखें। ( वेट्टम मणि द्वारा लिखित पौराणिक विश्वकोश से भारद्वाज की कहानी पर पूरा लेख देखें )

2) भारद्वाज (भारद्वाज)।—पुराण प्रसिद्धि के ऋषि भारद्वाज। सामान्य जानकारी। कंपा रामायण के अयोध्या कांड में कहा गया है कि यह ऋषि अत्रि महर्षि के पुत्र थे। वह कई हजारों वर्षों तक जीवित रहे। वह वाल्मिकी और श्री राम की कहानी से जुड़े हुए हैं। भारद्वाज कई वर्षों तक वाल्मिकी के शिष्य रहे। जब शिकारी ने क्रौंच जोड़े में से एक को मार डाला तो वह वाल्मिकी के साथ मौजूद था। जब वाल्मिकी और भारद्वाज तमसा नदी के तट पर पहुंचे, तो उस दिन वाल्मिकी ने भारद्वाज से इस प्रकार कहा: "देखो, भारद्वाज, यह कितना साफ घाट है। पानी शुद्ध और साफ है। अपना पानी का जग यहां रखो और मुझे मेरा वल्कल दे दो।" . हम यहीं इस पवित्र जल में उतरेंगे"। तब वाल्मिकी शिष्य से वल्कल लेकर जंगल के पेड़ों की सुंदरता को निहारते हुए किनारे पर चले और रास्ते में उन्हें ऐतिहासिक क्रौंच युगल मिला। (सर्ग 2, बाल कांड, वाल्मीकी रामायण)।

3) भारद्वाज (भारद्वाज)।—अग्नि के सबसे बड़े पुत्र, शमु। (श्लोक 5, अध्याय 219, वन पर्व, महाभारत)।

4) भारद्वाज (भारद्वाज).—एक प्रसिद्ध ऋषि। पुरु वंश के राजा भरत के कोई पुत्र नहीं था और जब वह दुःख में अपने दिन बिता रहे थे तो मरुत्त ने भरत को यह भारद्वाज पुत्र के रूप में दिया। भारद्वाज जो जन्म से ब्राह्मण थे, बाद में क्षत्रिय बन गये। (मत्स्य पुराण 49. 27-39 एवं वायु पुराण 99. 152158)।

5) भारद्वाज (भारद्वाज)। - अंगिरस वंश से जन्मे एक महर्षि। वह यवक्रीत के पिता और विश्वामित्र के पुत्र रैभ्य के मित्र थे।

एक बार रैभ्य ने कृत्या की रचना की और उस कृत्या ने भारद्वाज के पुत्र यवक्रीत को मार डाला। अपने पुत्र के वियोग को सहन करने में असमर्थ भारद्वाज आग में कूदकर अपनी जान देने की तैयारी कर रहे थे, तभी अर्वावसु ने यवक्रीत को जीवित कर दिया और ऋषि को दे दिया। अपने पुत्र के पुनः प्राप्त होने पर अत्यधिक प्रसन्न होकर भारद्वाज ने पृथ्वी पर अपना जीवन समाप्त कर लिया और स्वर्ग चले गए। (महाभारत, वन पर्व, 165-168)

6) भारद्वाज (भारद्वाज)।—एक ब्रह्मर्षि जो पूर्वमन्वंतर में रहते थे। वह गंगा तट पर रहकर कठोर तपस्या कर रहे थे। एक दिन वह विशेष प्रकार का यज्ञ करने की इच्छा से अन्य ऋषियों के साथ नदी में स्नान करने गये। वहां उन्होंने दिव्य सुंदरी घृतची को स्नान के बाद पूरी भव्यता के साथ खड़े देखा। भारद्वाज का वीर्यपात हो गया और उससे उनकी पुत्री श्रुतावती का जन्म हुआ। (अध्याय 47, शल्य पर्व, महाभारत)।

7) भारद्वाज (भारद्वाज)। - सभी शास्त्रों में पारंगत एक महान विद्वान। वह 'धर्मसूत्र' और 'श्रौतसूत्र' के रचयिता हैं। (बॉम्बे का विश्व विद्यालय पांडु लिपि में लिखी उनकी कृति श्रौतसूत्र की हस्तलिखित प्रति रखता है)।

8) भारद्वाज (भारद्वाज).—एक महर्षि। उन्होंने ही सत्यवान के पिता द्युमत्सेन को आश्वस्त किया था कि वह (सत्यवान) दीर्घायु होंगे। (वन पर्व, अध्याय 288, श्लोक 16)।

9) भारद्वाज (भारद्वाज)।—उपनिषदों में वर्णित गुरुओं के एक विशेष संप्रदाय का सामूहिक नाम। बृहदारण्यक उपनिषद गुरुओं के इस संप्रदाय को भारद्वाज, पाराशर्य, वालक, कौशिक, ऐतरेय, असुरायण और बैजवापायन के शिष्यों के रूप में संदर्भित करता है।

10) भारद्वाज (भारद्वाज)।—एक व्याकरणशास्त्री। सामवेद के प्रतिशाख्य श्लोक के अनुसार ब्रह्मा ने ही सबसे पहले व्याकरण विज्ञान की रचना की थी। यह विज्ञान ब्रह्मा द्वारा दूसरों को निम्नलिखित क्रम में सिखाया गया था: ब्रह्मा ने बृहस्पति को, उन्होंने इंद्र को, इंद्र ने भारद्वाज को और उन्होंने अपने शिष्यों को।

पाणिनि ने भारद्वाज की व्याकरणिक अवधारणाओं की चर्चा की है। ङ्कप्रतिशाख्य और तैत्तिरीय ने इस वैयाकरण के मत उद्धृत किये हैं।

11) भारद्वाज (भारद्वाज).-प्राचीन भारत में निवास का एक स्थान। (श्लोक 68, अध्याय 9, भीष्म पर्व, महाभारत)।

स्रोत : Archive.org: शिव पुराण - अंग्रेजी अनुवाद

शिवपुराण 2.2.27 के अनुसार भारद्वाज (भारद्वाज) एक ऋषि (मुनि) का नाम है जो एक बार दक्ष के एक महान यज्ञ में शामिल हुए थे । तदनुसार जैसा कि ब्रह्मा ने नारद को बताया:-"[...] एक बार दक्ष द्वारा एक महान यज्ञ शुरू किया गया था, हे ऋषि। उस यज्ञ में भाग लेने के लिए, शिव ने दिव्य और स्थलीय ऋषियों और देवताओं को आमंत्रित किया था और वे शिव की माया से मोहित होकर उस स्थान पर पहुँचे। [भारद्वाज, ...] और कई अन्य लोग अपने पुत्रों और पत्नियों के साथ मेरे पुत्र दक्ष के यज्ञ में पहुंचे।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: पुराण सूचकांक

1ए) भारद्वाज (भारद्वाज)। - इसे विटथ भी कहा जाता है: एक सिद्ध; 1 भरत का पुत्र हुआ; जब बृहस्पति के भाई की पत्नी ममता गर्भवती थी, तब बृहस्पति ने उसके साथ संभोग किया; भ्रूण उसके लिए बाधा बन रहा था, उसने भ्रूण में बच्चे को शाप दिया; अपने पति द्वारा तलाक के डर से, जब देवताओं ने कहा "भरद्वाजम्" यानी 'दो से पैदा हुए बच्चे को पालो', तो ममता ने बच्चे को त्याग दिया, और इसलिए वह भारद्वाज बन गए; फिर भी उसने उसे त्याग दिया; मरुतों द्वारा पोषित होकर उसे भरत को सौंप दिया गया; मन्यु के 2 पिता; 3 वैवस्वत युग के एक ऋषि; 4 युधिष्ठिर के राजसूय के लिए आमंत्रित; 5 मरते हुए भीष्म को बुलाया; 6 कृष्ण को देखने के लिए स्यमंतपञ्चक आये; 7 परीक्षित को प्रायोपवेश का अभ्यास करते देखने आये; 8 ने परशुराम के यज्ञ में भाग लिया। सृंजय से पुराण सुना और गौतम को सुनाया। 9

1बी) वैवस्वत युग के एक ऋषि; एक योगी ; बृहस्पति का पुत्र, ममता द्वारा इसे प्राप्त करने से इनकार करने पर यौन द्रव्य से उत्पन्न हुआ; अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिया गया, मरुतों द्वारा पाला गया जिन्होंने उसे भरत को दे दिया जो उसे चाहता था; इसलिए उनसे दो जातियाँ ब्राह्मण और वैश्य उत्पन्न हुईं; क्षत्रिय बन गया; गोवर्धन में 1 निवास जहां उन्होंने फूल और पेड़ लगाए; वर्ष के कुछ भाग के लिए सूर्य के साथ रहता है; 2 एक ऋषिका; एक मन्त्रकृत; 3 अ पंचार्षेय; द्वयमुष्यायण गोत्र; 4 बृहस्पति, गर्ग और भारद्वाज वंश के बीच कोई वैवाहिक संबंध नहीं। 5 त्रिपुरम् को जलाने के लिए शिव की स्तुति की; 6 19वें वेद-व्यास; जटामालि, भगवान का अवतार । 7

1सी) बृहस्पति और मरुत्त का एक पुत्र; तब पैदा हुआ जब दीर्घतमस पहले से ही गर्भ में था; मरुतों द्वारा भरत के पास लाया गया और उनका पुत्र विटथ बना; 1 मन्यु के पिता । 2

1डी) बृहस्पति के पुत्र; अंगिरस की एक शाखा; 1 अंगिरस शाखा का एक मंत्रकृत; 2 आयुर्वेद के जनक, जिसे उन्होंने आठ भागों में संकलित किया और अपने शिष्यों को प्रदान किया; 3 सात ऋषियों में से एक। 4

1e) तपस्या के महीने की अध्यक्षता करने वाले एक ऋषि; 1 कार्तिक मास में सूर्य के रथ में। 2

1एफ) एक उत्तरी साम्राज्य; एक जनजाति। *

1 ग्राम) अमित्रजीत का एक पुत्र और धर्मी का पिता। *

1ज) 12वें द्वापर के वेद-व्यास। *

2ए) भारद्वाज (भारद्वाज)।- शरत् ऋतु में सूर्य के साथ। *

2बी) बृहस्पति का एक पुत्र; 1 अंगिरसा की एक शाखा; 2 गर्भा द्वारा एक ऋषि; 3 एक मन्त्रकृत; एक मंत्र ब्राह्मण कारक. 4

2सी) कश्यपपाद में श्राद्ध किया और दो हाथ काले और सफेद उभरे हुए पाए, और संदेह महसूस करते हुए अपनी मां से पूछा, जिन्होंने कहा कि काला हाथ उनके पिता का था; लेकिन श्वेत हाथ ने विरोध किया कि वह निर्माता था; काले ने कहा, कि वह क्षेत्र का स्वामी है; भारद्वाज ने उसे बुरे चरित्र का पाया। *

स्रोत : जाटलैंड: महाभारत काल के लोगों और स्थानों की सूची

भारद्वाज (भारद्वाज) महाभारत में वर्णित एक नाम है ( cf. I.63.89, I.63, I.61.63) और यह लोगों और स्थानों के लिए उपयोग किए जाने वाले कई उचित नामों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। नोट: महाभारत (भारद्वाज का उल्लेख करते हुए) एक संस्कृत महाकाव्य है जिसमें 100,000 श्लोक (छंद) हैं और यह 2000 वर्ष से अधिक पुराना है।

स्रोत : शोधगंगा: सौरपुराण - एक आलोचनात्मक अध्ययन

भारद्वाज (भारद्वाज) वैवस्वतमन्वंतर में सात ऋषियों ( सप्तर्षि ) में से एक का नाम है : 10 वीं शताब्दी के सौरपुराण के अनुसार, चौदह मन्वंतरों में से एक: शैव धर्म को दर्शाने वाले विभिन्न उपपुराणों में से एक। - तदनुसार, "वर्तमान, सातवां मन्वंतर वैवस्वत है [अर्थात्, वैवस्वतममन्वंतर ]। इस मन्वंतर में , पुरंदर इंद्र हैं जो असुरों के गर्व का दमन करने वाले हैं; देवता आदित्य, रुद्र, वसु और मरुत हैं। सात ऋषि हैं वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।

पुराण पुस्तक आवरण
संदर्भ जानकारी

पुराण (पुराण, पुराण) ऐतिहासिक किंवदंतियों, धार्मिक समारोहों, विभिन्न कलाओं और विज्ञानों सहित प्राचीन भारत के विशाल सांस्कृतिक इतिहास को संरक्षित करने वाले संस्कृत साहित्य को संदर्भित करता है। अठारह महापुराणों की कुल संख्या 400,000 से अधिक श्लोक (छंदीय दोहे) हैं और ये कम से कम कई शताब्दियों ईसा पूर्व के हैं।

विदेशी भारत पर प्रासंगिक पुस्तकों से पुराण के संदर्भ में भारद्वाज का अर्थ खोजें

व्याकरण (संस्कृत व्याकरण)

स्रोत : विकिस्रोत: संस्कृत व्याकरण का एक शब्दकोश

1) भारद्वाज (भारद्वाज)। - मतभेद दिखाने के लिए पाणिनि द्वारा अपने नियमों में उद्धृत एक प्राचीन व्याकरण; सी एफ ऋतो भारद्वाजस्य ( ऋतो भारद्वाजस्य ) VII. 2.63;

2) भारद्वाज - पाणिनि के दिनों में एक देश का नाम। कृष्णपर्णाद्भारद्वाजे ( कृष्णपर्णाद्भारद्वाजे ) पी. IV. 2.145,

व्याकरण पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

व्याकरण (व्याकरण, व्याकरण) संस्कृत व्याकरण को संदर्भित करता है और वेदों के साथ अध्ययन किए जाने वाले छह अतिरिक्त विज्ञानों (वेदांग) में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। व्याकरण शब्दों और वाक्यों का सही संदर्भ स्थापित करने के लिए संस्कृत व्याकरण और भाषाई विश्लेषण के नियमों से संबंधित है।

विदेशी भारत पर प्रासंगिक पुस्तकों से व्याकरण के संदर्भ में भारद्वाज का अर्थ खोजें

नाट्यशास्त्र (नाट्यशास्त्र और नाट्यशास्त्र)

स्रोत : बुद्धि पुस्तकालय: नाट्य-शास्त्र

नाट्यशास्त्र अध्याय 35 के अनुसार, भारद्वाज (भारद्वाज) एक ऋषि का नाम है जो भरत के साथ थे जब उन्होंने नाट्यवेद का पाठ किया था । तदनुसार, उन्होंने निम्नलिखित प्रश्न पूछे, "हे श्रेष्ठ ब्राह्मण (अर्थात द्विज का बैल), हमें उस भगवान के चरित्र के बारे में बताएं जो प्रारंभिक (पूर्वरंग) में प्रकट होता है । वहां [संगीत वाद्ययंत्रों की] ध्वनि क्यों लगाई जाती है? लागू होने पर यह किस उद्देश्य की पूर्ति करता है? इससे कौन सा देवता प्रसन्न होता है और प्रसन्न होकर क्या करता है? संचालक खुद पाक-साफ होकर दोबारा मंच पर स्नान क्यों करते हैं? हे श्रीमान, नाटक स्वर्ग से धरती पर कैसे आ गया? आपके वंशज शूद्र क्यों कहलाये?”

नाट्यशास्त्र पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

नाट्यशास्त्र (नाट्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र ) प्रदर्शन कलाओं की प्राचीन भारतीय परंपरा ( शास्त्र ), ( नाट्य -नाट्य, नाटक, नृत्य, संगीत) और साथ ही इन विषयों से संबंधित एक संस्कृत कार्य के नाम को संदर्भित करता है। यह नाटकीय नाटकों ( नाटक ), रंगमंच के निर्माण और प्रदर्शन, और काव्य कार्यों ( काव्य ) की रचना के नियम भी सिखाता है ।

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पंचरात्र (नारायण की पूजा)

स्रोत : शोधगंगा: शिव का प्रतीकात्मक निरूपण (पंचरात्र)

भारद्वाज (भारद्वाज) या भारद्वाजसंहिता एक वैष्णव आगम ग्रंथ का नाम है , जिसे पंचरात्र आगमों के मुनिप्रोक्त समूह के सात्विक प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया गया है । वैष्णवगम आगमों (परंपरागत रूप से संचारित ज्ञान) के तीन वर्गों में से एक का प्रतिनिधित्व करते हैं  - पंचर आगमों के ग्रंथों को दो संप्रदायों में विभाजित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि भगवान वासुदेव ने ग्रंथों के पहले समूह को प्रकट किया, जिन्हें दिव्य कहा जाता है और अगले समूह को मुनिप्रोक्त कहा जाता है, जिन्हें आगे तीन भागों में विभाजित किया गया है।  । सात्विक (जैसे, भारद्वाज-संहिता)। बी । राजस. सी । तमसा.

स्रोत : शोधगंगा: कश्यप संहिता- विष चिकित्सा पर पाठ (पी)

भारद्वाज (भारद्वाज) वैष्णव आगमों के पंचरात्र प्रभाग के ईश्वरसंहिता में वर्णित पांच उपदेशकों में से एक को संदर्भित करता है। - ईश्वरसंहिता को सत्त्वसंहिता का व्युत्पन्न कहा जाता है जो भागवत पुराण का सार है। [...] ईश्वरसंहिता (आई.21) में कहा गया है कि शांडिल्य, औपगायन, मौंजयान, कौशिका और भारद्वाज महत्वपूर्ण उपदेशक थे जिन्होंने पांच दिन और रातों के लिए व्यक्तिगत रूप से लोगों को पंचरात्र सिद्धांत का उपदेश दिया था।

पंचरात्र पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

पंचरात्र (पंचरात्र, पंचरात्र) हिंदू धर्म की एक परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है जहां नारायण का सम्मान किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। वैष्णववाद से संबंधित क्लोज़ले के अनुसार, पंचरात्र साहित्य में कई वैष्णव दर्शनों को समाहित करने वाले विभिन्न आगम और तंत्र शामिल हैं।

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धर्मशास्त्र (धार्मिक कानून)

स्रोत : प्राच्य: पशु और पशु उत्पाद जैसा कि स्मृति ग्रंथों में परिलक्षित होता है

भारद्वाज (भारद्वाज) पक्षी "स्काईलार्क" ( अलाउदा गुलगुला ) को संदर्भित करता है। - कई प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में पक्षियों का वर्णन किया गया है कि उनके साथ प्रख्यात विद्वानों द्वारा विस्तृत व्यवहार किया गया है। इन पक्षियों [अर्थात, भारद्वाज] को लगभग कई स्मृतियों में उन्हें मारने के प्रायश्चितों को निर्दिष्ट करने और उनके मांस को श्राद्ध संस्कार में पितरों (पितरों) को संतुष्टि देने के लिए आहार सामग्री के रूप में उपयोग करने के संदर्भ में सूचीबद्ध किया गया है। इन्हें विशेष रूप से मनुस्मृति, पाराशरस्मृति [अध्याय VI], गौतमस्मृति [अध्याय 23], शततपस्मृति [II.54-56], उषानास्मृति [IX.10-IX.12], याज्ञवल्क्यस्मृति [I.172-I] में विस्तृत किया गया है। 175] , विष्णुस्मृति [51.28-51.29], उत्तरांगिरसस्मृति [X.16]।

धर्मशास्त्र पुस्तक आवरण
संदर्भ जानकारी

धर्मशास्त्र (धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र) में आजीविका (धर्म), समारोह, न्यायशास्त्र (कानून का अध्ययन) और अधिक के धार्मिक आचरण के संबंध में निर्देश (शास्त्र) शामिल हैं। इसे स्मृति के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो हिंदू जीवनशैली से संबंधित पुस्तकों का एक महत्वपूर्ण और आधिकारिक चयन है।

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आयुर्वेद (जीवन का विज्ञान)

रसशास्त्र (कीमिया और हर्बो-खनिज तैयारी)

स्रोत : बुद्धि पुस्तकालय: रस-शास्त्र

भारद्वाज (भारद्वाज) या भारद्वाजरसा एक आयुर्वेदिक नुस्खे का नाम है जिसे रसजलनिधि (अध्याय 13, पांडु: एनीमिया और कमला: पीलिया ) के पांचवें खंड में परिभाषित किया गया है। इन उपचारों को आईट्रोकेमिस्ट्री के रूप में वर्गीकृत किया गया है और ये रसशास्त्र (चिकित्सा कीमिया) के नाम से जाने जाने वाले प्राचीन भारतीय विज्ञान का हिस्सा हैं । हालाँकि, चूंकि यह एक आयुर्वेद उपचार है , इसलिए इसे सावधानी के साथ और ग्रंथों में निर्धारित नियमों के अनुसार लिया जाना चाहिए।

तदनुसार, ऐसे व्यंजनों (उदाहरण के लिए, भारद्वाज-रस ) का उपयोग करते समय: " खनिज ( उपरस ) , जहर ( विषा ) , और अन्य दवाओं (जड़ी-बूटियों को छोड़कर), जिन्हें दवाओं के अवयवों के रूप में जाना जाता है, को विधिवत शुद्ध और भस्म किया जाना चाहिए, जैसे मामला, ग्रंथों में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार हो सकता है।" ( इयाट्रो रासायनिक दवाओं का परिचय देखें )

पशुचिकित्सा (पशुओं का अध्ययन एवं उपचार)

स्रोत : शोधगंगा: महाकाव्यों में पशु साम्राज्य (तिर्यक) का चित्रण एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

भारद्वाज (भारद्वाज) ग्रेटर कूकल ( सेंट्रोपस सिनेंसिस ) को संदर्भित करता है, मृगपक्षीशास्त्र (मृग-पक्षी-शास्त्र) या हमसदेव द्वारा लिखित "जानवरों और पक्षियों का प्राचीन भारतीय विज्ञान" जैसे वैज्ञानिक ग्रंथों के अनुसार, जिसमें विभिन्न प्रकार और विवरण शामिल हैं। रामायण और महाभारत जैसे संस्कृत महाकाव्यों में देखे गए पशु और पक्षी।

आयुर्वेद पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

आयुर्वेद (आयुर्वेद, आयुर्वेद) भारतीय विज्ञान की एक शाखा है जो चिकित्सा, हर्बलिज्म, टैक्सोलॉजी, शरीर रचना विज्ञान, सर्जरी, कीमिया और संबंधित विषयों से संबंधित है। प्राचीन भारत में आयुर्वेद का पारंपरिक अभ्यास कम से कम पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व से चला आ रहा है। साहित्य आमतौर पर विभिन्न काव्य छंदों का उपयोग करके संस्कृत में लिखा जाता है।

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योग (दर्शनशास्त्र विद्यालय)

स्रोत : ब्रिल: शैववाद और तांत्रिक परंपराएँ (योग)

17वीं शताब्दी के हठयोगसंहिता के अनुसार, भारद्वाज (भारद्वाज) सात ऋषियों में से एक को संदर्भित करता है: हठयोग पर एक संकलन जो हठप्रदीपिका से बड़े पैमाने पर उधार लिया गया है। शुरुआती छंद (1.2-3) दुनिया में हठयोग का प्रसार करने के लिए सात ऋषियों, अर्थात् मार्कंडेय, भारद्वाज, मारीचि, जैमिनी, पराशर, भृगु और विश्वामित्र को स्वीकार करते हैं। [...] ऐसा प्रतीत होता है कि हठयोगसंहिता घेरासंहिता (अठारहवीं शताब्दी) का आधार रही है, [...]

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संदर्भ जानकारी

योग को मूल रूप से हिंदू दर्शन (आस्तिक) की एक शाखा माना जाता है, लेकिन प्राचीन और आधुनिक दोनों योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक को जोड़ते हैं। योग विभिन्न शारीरिक तकनीकों को सिखाता है जिन्हें आसन (आसन) के रूप में भी जाना जाता है, जिनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों (जैसे, ध्यान, चिंतन, विश्राम) के लिए किया जाता है।

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सामान्य परिभाषा (हिन्दू धर्म में)

स्रोत : अपम नापत: भारतीय पौराणिक कथाएँ

भगीरथ सौर वंश के राजा, दिलीप के पुत्र और राम के पूर्वज थे। वह ककुत्स्थ के पिता हैं।

स्रोत : विकीपीडिया: हिंदू धर्म

भारद्वाज ऋषि (ऋषि) अंगिरसा के वंशज सबसे महान हिंदू संतों (महर्षियों) में से एक थे, जिनकी उपलब्धियाँ पुराणों में विस्तृत हैं। वह वर्तमान मन्वन्तर में सप्तर्षियों (सात महान ऋषियों या ऋषियों) में से एक हैं; अन्य हैं अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, कश्यप।

ऋषि भारद्वाज वैदिक काल के ऋषि थे। उन्होंने असाधारण विद्वत्ता प्राप्त की। उनमें ध्यान की महान शक्ति थी। वह आयुर्वेद के लेखक भी हैं। उनका आश्रम आज भी पवित्र प्रयाग (इलाहाबाद) में विद्यमान है।

भारद्वाज गुरु द्रोणाचार्य के पिता और महाकाव्य महाभारत के अश्वत्थामा के दादा भी थे। भारद्वाज भारत में ब्राह्मणों के सबसे प्रतिष्ठित गोत्रों में से एक है।

व्युत्पत्ति विज्ञान: भारद्वाज को भारद्वाज भी कहा जाता है (संस्कृत: भारद्वाज, आईएएसटी: भारद्वाज)

बौद्ध धर्म में

थेरवाद (बौद्ध धर्म की प्रमुख शाखा)

स्रोत : पाली कानोन: पाली उचित नाम

1. भारद्वाज. कस्पा बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों में से एक। जी43; बु.xxv.39; SNA.i.293.

2. भारद्वाज थेरा। वह भारद्वाजगोट्टा के थे और राजगृह के ब्राह्मण थे। उन्होंने अपने बेटे कान्हादिन्ना को एक निश्चित शिक्षक के अधीन अध्ययन करने के लिए तक्कशिला भेजा, लेकिन, वहाँ रास्ते में, लड़के की मुलाकात एक थेरा से हुई, उसने आदेश में प्रवेश किया, और एक अरिहंत बन गया। भारद्वाज ने भी वेलुवन में बुद्ध का उपदेश सुना, भिक्षु बन गए और अरहंत पद प्राप्त किया। बाद में, जब कान्हादिन्ना ने राजगृह में बुद्ध से मुलाकात की, तो वह अपने पिता से मिले और उनसे उनकी उपलब्धियों के बारे में जाना।

इकतीस कप पहले, भारद्वाज ने पचेका बुद्ध सुमना से मुलाकात की और उन्हें एक वल्लिकारा फल दिया (थाग.vss.177 8; थागा.आई.302एफ)। वह, शायद, अपदान के वल्लिकाराफलदायका के समान है। Ap.ii.416; लेकिन वही अपादान छंद भल्लिया (थग.आई.49) के अंतर्गत दिए गए हैं।

3. भारद्वाज थेरा। वह राजगृह में रहने वाले भारद्वाज वंश में सबसे बड़े थे और उनकी पत्नी धनंजनी ब्राह्मणी थीं। पत्नी बुद्ध की एक समर्पित अनुयायी थी और वह लगातार बुद्ध, उनकी शिक्षाओं और आदेश की प्रशंसा करती थी। इस पर नाराज होकर भारद्वाज बुद्ध के पास गए और एक प्रश्न पूछा। वह जवाब से इतना प्रसन्न हुआ कि वह ऑर्डर में शामिल हो गया और कुछ ही समय बाद अरिहंत (Si160f) बन गया, उसके कई भाई उसके उदाहरण का अनुसरण कर रहे थे। (भारद्वाज 5 देखें)

4. भारद्वाज. एक युवा ब्राह्मण, तारुक्खा का शिष्य। उनके और वासेत्था के बीच एक चर्चा से तेविज्जा सुट्टा (Di235), और वासेत्था सुट्टा (SN., p.115ff.; M.ii.197f) का प्रचार हुआ।

भारद्वाज बाद में बुद्ध के अनुयायी बन गए (Di252; SN., पृष्ठ 123)। अगन्ना सुत्त का उपदेश उन्हें और वासेत्था को तब दिया गया था जब वे पूरी तरह से भिक्षु बनने से पहले परिवीक्षा अवधि से गुजर रहे थे (D.iii.80)।

बुद्धघोष कहते हैं (DA.iii.860) कि उन्होंने वासेत्थ सुत्त के समापन पर बुद्ध को अपने शिक्षक के रूप में स्वीकार किया और तेविज्जा सुत्त के अंत में आदेश में प्रवेश किया। बाद में, अगन्ना सुत्त की शिक्षाओं पर ध्यान करते हुए, वे अरिहंत बन गए (DA.iii.872)। बुद्धघोष के अनुसार, भारद्वाज पैंतालीस करोड़ (DA.iii.860) के एक कुलीन परिवार से थे।

5. भारद्वाज. एक ब्राह्मण कुल का नाम; इस वंश से संबंधित लगभग बीस व्यक्तियों का उल्लेख पिटकों में मिलता है। राजगृह में रहने वाले एक परिवार में, सबसे बड़े का विवाह धनंजनी ब्राह्मण से हुआ और बाद में वह अरिहंत बन गया। (भारद्वाज 3 देखें)

उसके भाइयों:

अक्कोसाका भारद्वाज, असुरिंदका भारद्वाज, बिलांगिका भारद्वाज और संगरव भारद्वाज ने उनका अनुसरण किया (Si160ff.; SA.i.175ff.; MA.ii.808)।

सावत्थी में रहने वाले कई अन्य भारद्वाज ने वहां बुद्ध से मुलाकात की, और आदेश में शामिल हो गए और अरिहंत बन गए; अर्थात,

अहिंसाका भारद्वाज,

संदर्भ जानकारी

थेरवाद बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है, जिसके विहित साहित्य के रूप में पाली सिद्धांत ( टिपिटक ) है, जिसमें विनय-पिटक (मठ के नियम), सुत्त-पिटक (बौद्ध उपदेश) और अभिधम्म-पिटक (दर्शन और मनोविज्ञान) शामिल हैं।

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महायान (बौद्ध धर्म की प्रमुख शाखा)

स्रोत : बुद्धि पुस्तकालय: महाप्रज्ञापारमिता शास्त्र

दूसरी शताब्दी के महाप्रज्ञपारमिताशास्त्र अध्याय 36 के अनुसार, भारद्वाज (भारद्वाज) श्रावस्ती के एक ब्राह्मण का नाम है। - तदनुसार, “बुद्ध श्रावस्ती में एक दिन भिक्षा मांग रहे थे। वहाँ पो-लो-टू-चे कबीले (भारद्वाज) का एक ब्राह्मण रहता था । कई बार बुद्ध उनके पास भिक्षा मांगने गये। ब्राह्मण ने निम्नलिखित विचार किया: 'यह श्रमण बार-बार क्यों आता है जैसे कि वह एक ऋणदाता ( ऋण ) हो?'"

ध्यान दें: यहां महाप्रज्ञपारमिताशास्त्र स्पष्ट रूप से संयुक्त से दो सूत्रों का संयोजन कर रहा है : 1) संयुक्त का उदयसुत्त, और 2) संयुक्त का सुंदरिकासुत्त।

महायान पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

महायान (महायान, महायान) बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जो बोधिसत्व (आध्यात्मिक आकांक्षी/प्रबुद्ध प्राणी) के मार्ग पर ध्यान केंद्रित करती है। मौजूदा साहित्य विशाल है और मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में रचा गया है। ऐसे कई सूत्र हैं जिनमें से कुछ सबसे पुराने विभिन्न प्रज्ञापारमिता सूत्र हैं।

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तिब्बती बौद्ध धर्म (वज्रयान या तांत्रिक बौद्ध धर्म)

स्रोत : विज्डम लाइब्रेरी: तिब्बती बौद्ध धर्म

1) भारद्वाज (भारद्वाज) एक श्रावक का नाम है जिसका उल्लेख 6ठी शताब्दी मंजुश्रीमूलकल्प में शिक्षाओं में भाग लेने के रूप में किया गया है: मंजुश्री (ज्ञान के बोधिसत्व) को समर्पित सबसे बड़े क्रिया तंत्रों में से एक, जो मुख्य रूप से बौद्ध धर्म में अनुष्ठानिक तत्वों से संबंधित ज्ञान के विश्वकोश का प्रतिनिधित्व करता है। . इस पाठ की शिक्षाएँ मंजुश्री से उत्पन्न हुई हैं और बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा बड़े दर्शकों (भारद्वाज सहित) की उपस्थिति में सिखाई गई थीं।

2) भारद्वाज (भारद्वाज) एक गरुड़ का नाम भी है जिसका उल्लेख 6वीं शताब्दी के मंजुश्रीमूलकल्प में शिक्षाओं में भाग लेने के लिए किया गया था।

तिब्बती बौद्ध धर्म पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

तिब्बती बौद्ध धर्म में निंग्मा, कदम्पा, काग्यू और गेलुग जैसे स्कूल शामिल हैं। उनका साहित्य का प्राथमिक सिद्धांत दो व्यापक श्रेणियों में विभाजित है: कांग्यूर, जिसमें बुद्ध के शब्द शामिल हैं, और तेंग्यूर, जिसमें विभिन्न स्रोतों की टिप्पणियाँ शामिल हैं। गूढ़ विद्या और तंत्र तकनीकें ( वज्रयान ) स्वतंत्र रूप से एकत्रित की जाती हैं।

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भारत का इतिहास और भूगोल

स्रोत : भारत क्या है: एपिग्राफिया इंडिका खंड XXIX (1951-1952)

भारद्वाज (भारद्वाज) एक नायक और सुल्की शाही परिवार के शुरुआती पूर्वज का नाम है, जिसे संभवतः चक्रवर्ती के अनुसार पूर्वी चालुक्य राजवंश के साथ पहचाना जाता है। - तदनुसार, एक सुल्की प्रमुख के मासेर शिलालेख में कहा गया है कि "एक निश्चित नायक, द्वारा सुशोभित ग्रंथी-त्रिका , भारद्वाज नाम से, धाता (ब्रह्मा) के हाथ से गिरी पानी की एक बूंद से निकली, जिसने शूलकिवंश को सुशोभित किया और शत्रु राजाओं के लिए एक वास्तविक मृत्यु थी। चन्द्रकुल में शुल्क के कुल में राजा नृसिंह का उदय हुआ। वह विद्या-द्वादश के स्वामी थे और उनका स्थायी निवास उनके कुलग्राम में था, जिसे एलापुरा के आसपास गोलाहाटी-चाणकी कहा जाता था। ”

भारत का इतिहास पुस्तक कवर
संदर्भ जानकारी

भारत का इतिहास भारत के देशों, गांवों, कस्बों और अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ पौराणिक कथाओं, प्राणीशास्त्र, शाही राजवंशों, शासकों, जनजातियों, स्थानीय उत्सवों और परंपराओं और क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान का पता लगाता है। प्राचीन भारत में धार्मिक स्वतंत्रता थी और यह धर्म के मार्ग को प्रोत्साहित करता था, जो बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म में आम अवधारणा है।

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भारत और विदेश की भाषाएँ

मराठी-अंग्रेजी शब्दकोश

स्रोत : डीडीएसए: द मोल्सवर्थ मराठी एंड इंग्लिश डिक्शनरी

भारद्वाज (भारद्वाज).—एम (एस) एक पक्षी, जिसे सोना-कावड़ा और कुक्कटकुंभ भी कहा जाता है ।

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज).—एम (एस) कुक्कुड़ा-कुंभ के अंतर्गत वर्णित पक्षी । 2 रत्नागिरि के आसपास ब्राह्मणों की एक जनजाति या उसका एक व्यक्ति।

स्रोत : डीडीएसए: आर्यभूषण स्कूल शब्दकोश, मराठी-अंग्रेजी

भारद्वाज (भारद्वाज).— एम ए लार्क।

संदर्भ जानकारी

मराठी एक इंडो-यूरोपीय भाषा है जिसके (मुख्य रूप से) महाराष्ट्र भारत में 70 मिलियन से अधिक देशी भाषी लोग हैं। कई अन्य इंडो-आर्यन भाषाओं की तरह, मराठी, प्राकृत के प्रारंभिक रूपों से विकसित हुई, जो स्वयं संस्कृत का एक उपसमूह है, जो दुनिया की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है।

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संस्कृत शब्दकोष

स्रोत : डीडीएसए: व्यावहारिक संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

भारद्वाज (भारद्वाज).—

1) सात ऋषियों में से एक का नाम; एके सुतान् एके शिष्यान् एके देवान् एके दोजान्। पूर्ण भार्यां भारद्वाजां भारद्वाजेऽस्मि शोभने ( भरे सुतां भरे शिष्यान् भरे देवान् भरे द्विजं | भरे भार्यां भारद्वाजां भारद्वाजस्मि शोभने ) || एमबी.

2) एक आकाश-लार्क।

व्युत्पन्न रूप: भारद्वाजः (भारद्वाजः)।

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज).—[ भारद्वाजस्यापत्यम् अण् ]

1) कौरवों और पांडवों के सैन्य गुरु द्रोण का नाम; यदाश्रौषं दृश्यहम्भेद्यमण्यैर्भारद्वाजेनात्तशस्त्रेण गुप्तम् ( यदाश्रौषां व्यूहमाभेद्यमण्येरभारद्वाजेनात्तस्त्रेण गुप्तम् ) महाभारत (बॉम्बे) 1.1.19.

2) अगस्त्य का।

3) मंगल ग्रह.

4) सात ऋषियों में से एक।

5) एक आकाश-लार्क।

6) कौटिल्य द्वारा उल्लिखित शासन विज्ञान पर लेखक का नाम; कौ. ए.1.15.

-जाम एक हड्डी.

-जी जंगली कपास झाड़ी.

-जः कौटिल्य द्वारा राजपुत्ररक्षा ( राजपुत्ररक्षा ) के संबंध में उल्लिखित अर्थशास्त्र ( अर्थशास्त्र ) विद्यालयों में से एक ; कौ. ए.1.17.

व्युत्पन्न रूप: भारद्वाजः (भारद्वाजः)।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: एडगर्टन बौद्ध हाइब्रिड संस्कृत शब्दकोश

भारद्वाज (भारद्वाज)।—(भरा° की तुलना करें, मलालासेकरा (पाली उचित नामों का शब्दकोश) में पाली के लिए दर्ज एकमात्र रूप), (1) शाक्यमुनि के एक शिष्य का नाम (नामों की सूची में; यह स्पष्ट नहीं है कि कई पाली में से कौन सा भार° नाम के शिष्यों का अर्थ है): सद्धर्मपुण्डरीक 2.6; सुखावतिव्यूह 92.8, पिण्डोला भार° भी देखें; (2) बुद्ध का गोत्र-नाम चंद्र-सूर्यप्रदीप: सद्धर्मपुंडारिका 18.5; (3) यक्ष का नाम: महा-मयूरी 236.26; (4) एक भिक्षु का नाम, शाक्यमुनि के पूर्व अवतार: मूल-सर्वस्तिवाद-विनय i.211.3 एफएफ।

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज)।—(= पाली आईडी; भार° भी देखें), (1) बुद्ध कश्यप के दो प्रमुख शिष्यों में से एक का नाम (= मालाशेखर में पाली आईडी 1 (पाली उचित नामों का शब्दकोश)): महावस्तु i.307.4, 17; (2) बौद्ध धर्म अपनाने वाले एक ब्राह्मण का नाम, जो वसिष्ठ 1 (= मलालाशेखर (पाली उचित नामों का शब्दकोश) में आईडी 4) से जुड़ा है: कर्मविभंग (और कर्मविभंगगोपदेश) 157.6। पिंडोला भार° भी देखें।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: शब्द-सागर संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

भारद्वाज (भारद्वाज).—एम. ( jaḥ ) 1. एक स्काई लार्क। 2. एक मुनि का नाम. 3. बृहस्पति का पुत्र। ई. भरत पालन और वाजा एक पंख: भी भारद्वाज.

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज).—एम.

-jaḥ ) 1. कौरवों और पांडुओं के सैन्य गुरु द्रो4ना का एक नाम। 2. सात ऋषियों में से एक। 3. अगस्त्य मुनि का एक नाम । 4. बृहस्पति का पुत्र। 5. एक आकाश-लार्क. एन।

-जां ) एक हड्डी। एफ। ( -जी ) जंगली-कपास। ई. भारद्वाज ए लार्क, और एएन प्लोनास्टिक या व्युत्पन्न संबंध; बाद वाले मामले में यह ऋषि भारद्वाज की एक किंवदंती को संदर्भित करता है, जिसे उनके जन्म के समय उनके प्राकृतिक माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के परिणामस्वरूप एक लार्क ने पाला था।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: बेन्फ़ी संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

भारद्वाज । राष्ट्रपति. भृ , -वाज , म का। एक मुनि का नाम, [महाभारत से जॉनसन के चयन] 1, 1.

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज).—यानी भारद्वाज + ए , आई. संरक्षक नाम, एम. 1. द्रोण का विशेषण। 2. सात ऋषियों में से एक। 3. अगस्त्य. 4. वृहस्पति के पुत्र। द्वितीय. एम। एक स्काईलार्क, [ पंचतंत्र ] 157, जंगली कपास। चतुर्थ. एन। एक हड्डी।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: कैपेलर संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

भारद्वाज (भारद्वाज)।—[पुल्लिंग] फ़ील्ड-लार्क, [नाम] एक ऋषि का।

--- या ---

भारद्वाज (भारद्वाज).—[स्त्री.] मैं भारद्वाज से संबंधित या उनके वंशज; [पुल्लिंग] [बहुवचन] [नाम] लोगों का या = अनुक्रम।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: औफ़्रेक्ट कैटलॉग कैटलॉगम

1) भारद्वाज (भारद्वाज) जैसा कि औफ़्रेख्त के कैटलॉग कैटालॉगोरम में वर्णित है: - भारद्वाज देखें।

2) भारद्वाज (भारद्वाज):-कालेयाकुतुहलप्रहसन। प्रतिवेदन। आठवीं.

3) भारद्वाज (भारद्वाज):—वास्तुतत्त्व।

4) भारद्वाज (भारद्वाज):—वेदपादस्तोत्र।

5) भारद्वाज (भारद्वाज):—भारद्वाज की तुलना करें।

6) भारद्वाज (भारद्वाज):- कात्यायनश्रौतसूत्र 1, 6, 21 में, तैत्तिरीयप्रतिशाख्य 17, 3 में, पाणिनि 7, 2, 63 में उद्धृत।

7) भारद्वाज (भारद्वाज):—खगोलशास्त्री। बृहत्संहिता में वराहमिहिर द्वारा उद्धृत। डब्ल्यू.पी . 249.

8)भारद्वाज(भारद्वाज):—1. श्रौतसूत्र. बी. 1, 186. हौग. 26. विरोध. 6522. 8136. द्वितीय, 1878. 1916. 1936. चावल। 210. डब्ल्यू. 1448.
-[टिप्पणी] गोपालभट्ट द्वारा। Oppert. द्वितीय, 1917. परिभाषासूत्र एल. 1368. के. 10. परिभाषसूत्र। बी. 1, 186. हौग. 26. पवित्रेष्टिसूत्र। एन.पी. सातवीं, 8. पवित्रेष्टिहौत्र। एन.पी. Ix, 4. पैत्रमेधिकसूत्र। बर्नेल. 20^बी (और—[टिप्पणी])। 2. गृह्यसूत्र. एल. 1395 ([खंडित]). पीटर्स. 3, 362. बुहलर 553.
-[टिप्पणी] कपार्डिस्वामिन द्वारा। ब्यूहलर 553.
-[टिप्पणी] भट्ट रंग द्वारा गृह्यप्रयोगवृत्ति। बीआरएल. 32.
-[टिप्पणी] भारद्वाजीयभाष्यकृत। भास्करमिश्र बीपी द्वारा उद्धृत। 28.

9) भारद्वाज (भारद्वाज):—उपलेखपंजिका। डब्ल्यू.पी . 8. बी. 1, 198.

10) भारद्वाज (भारद्वाज):—श्रौतसूत्र। पीटर्स. 4, 3. आरजीबी. 79 (9 प्रश्न और दसवें का एक भाग)।

11) भारद्वाज (भारद्वाज):—वृत्तसार।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: मोनियर-विलियम्स संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

1) भारद्वाज (भारद्वाज):—[= भारद-वाज ] [ भरद > भारा से ] म। भारद -) 'गति या शक्ति (उड़ान की) धारण करना', एक स्काईलार्क, [रामायण]

2) [ बनाम ...] एक ऋषि का नाम ([संरक्षक] बार्हस्पत्य के साथ, [ऋग्-वेद vi, 1-30; 37-43; 53-74; ix, 67. 1-3; x) के कथित लेखक , 137, 1], और दिवा-दास के पुरोहित, जिनके साथ वह शायद समान हैं; बीएच° को 7 ऋषियों में से एक और कानून-पुस्तक के लेखक के रूप में भी माना जाता है), [ऋग्वेद] आदि आदि। ( जस्य अ-दारा-श्रुत और अ-दारा-श्रितौ , अर्कौ , उपहावौ , गधम , नकानि , पृश्नी , प्रशस्तम् , बृहत् , मौक्षे , यज्ञयज्ञम् , लोमनि , वाज-कर्मियम् , वाज -भृत् , विषमनि , व्रतम् , सुन्ध्युः और सैंदुक्षितानि नाम सामंस का, [अरेष्य-ब्राह्मण])

3) [ बनाम ...] एक अर्हत का, [बौद्ध साहित्य]

4) [ बनाम ...] एक जिले का, [पाणिनि 4-2, 145]

5) [ बनाम ...] अग्नि का, [महाभारत]

6) विभिन्न लेखकों के [ बनाम ...], [कैटलॉग]

7) [ बनाम ...] [बहुवचन] भारद्वाज की जाति या परिवार, [ऋग्वेद]

8) भारद्वाज (भारद्वाज):—mf( ī ) n. भरद्वाज, [शतपथ-ब्राह्मण] आदि आदि से आने वाला या उससे संबंधित।

9) एम. [संरक्षक] [से] भरद-वाजा [गण] बिदादि

10) विभिन्न पुरुषों के नाम ([विशेष रूप से] भजनों के कथित लेखकों के नाम, जैसे कि ज़िश्वान, गर्ग, नारा, पायु, वसु, शसा, शिरिंबिथ, शूनहोत्र, सप्रथ, सु-होत्र क्यूवी; लेकिन अन्य के भी जैसे द्रोण के, अगस्त्य का, शौन्या का, सुकेशन का, सत्य-वाह का, शूष वाहनेय का, 7 ऋषियों में से एक का, बृहस्पति-पति आदि के पुत्र का, और वैदिक विद्यालय के कई लेखकों और शिक्षकों का [बहुवचन]), [ऋग्वेद-अनुक्रमणिका; महाभारत; कैटलॉग; इंडियन विजडम, सर एम. मोनियर-विलियम्स 146, 161 आदि द्वारा]

11) मंगल ग्रह, [सीएफ. कोशकार, विशेष. जैसे अमरसिंह, हलायुध, हेमचंद्र, आदि।]

12) एक स्काईलार्क, [पंचतन्त्र]

13) [बहुवचन] लोगों का नाम , [विष्णु-पुराण]

14) एन. एक हड्डी, [cf. कोशकार, विशेष. जैसे अमरसिंह, हलायुध, हेमचंद्र, आदि।]

15) विभिन्न सामनों के नाम , [अर्षेय-ब्राह्मण]

16) एक स्थान का, [पाणिनि 4-2, 145] ([वेरिया लेक्टियो] भर के लिए )।

स्रोत : कोलोन डिजिटल संस्कृत शब्दकोश: येट्स संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश

1) भारद्वाज (भारद्वाज):—[ bhara-dvaja ] (jaḥ) 1. म. एक स्काईलार्क; एक ऋषि; वृहस्पति के पुत्र .

2) भरद्वाज (भारद्वाज):— (जः) 1. म. द्रोण, अगस्त्य या बृहस्पति का एक नाम ; एक लार्क. एफ। जंगली कपास. एन। एक हड्डी।

स्रोत : डीडीएसए: पाइया-सद्दा-महन्नावो; एक व्यापक प्राकृत हिंदी शब्दकोश (एस)

संस्कृत भाषा में भारद्वाज (भारद्वाज) प्राकृत शब्दों से संबंधित है: भरदाये , भारददाय ।

[संस्कृत से जर्मन]

भारद्वाज जर्मन में

संदर्भ जानकारी

संस्कृत, जिसे संस्कृतम् ( saṃskṛtam ) भी कहा जाता है, भारत की एक प्राचीन भाषा है जिसे आमतौर पर इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार (यहां तक ​​कि अंग्रेजी!) की दादी के रूप में देखा जाता है। प्राकृत और पाली के साथ घनिष्ठ रूप से संबद्ध, संस्कृत व्याकरण और शब्दों दोनों में अधिक विस्तृत है और दुनिया में साहित्य का सबसे व्यापक संग्रह है, जो अपनी सहयोगी भाषाओं ग्रीक और लैटिन से कहीं अधिक है।

विदेशी भारत पर प्रासंगिक पुस्तकों से संस्कृत के संदर्भ में भारद्वाज का अर्थ खोजें

कन्नड़-अंग्रेजी शब्दकोश

स्रोत : अलार: कन्नड़-अंग्रेजी संग्रह

भारद्वाज (ಭರದ್ವಾಜ):—

1) [संज्ञा] = ಭರತಪಕ್ಷಿ [भारतपक्षी ] -1.

2) [संज्ञा] एक प्रसिद्ध ऋषि का नाम, जिनका वंश ಭಾರದ್ವಾಜ [भारद्वाज ] के नाम से जाना जाता है ।

--- या ---

भारद्वाज (ಭಾರದ್ವಾಜ):—

1) [संज्ञा] जिसका संबंध ऋषि भारद्वाज से है।

2) [संज्ञा] इस ऋषि के परिवार का एक वंशज।

3) [संज्ञा] द्रोण, भारत के दो महान महाकाव्यों में से एक, महाभारत में मार्शल आर्ट के प्रसिद्ध शिक्षक थे।

4) [संज्ञा] एक और महान पौराणिक ऋषि, जिन्हें सात प्रसिद्ध ऋषियों में से एक माना जाता है।

5) [संज्ञा] अलाउडिडे परिवार की लार्क मिराफ्रा कैंटिलन्स, घरेलू गौरैया से आकार में छोटी, हल्के धनुषाकार शरीर, गहरे भूरे धब्बों के साथ हल्के भूरे पंख, सुस्त सफेद स्तन, सफेद भौंह, छोटी, कुछ हद तक कांटेदार पूंछ, भूरे पैर और चोंच , वह जमीन पर घोंसला बनाता है; बुश-लार्क गाना.

6) [संज्ञा] मंगल ग्रह।

संदर्भ जानकारी

कन्नड़ एक द्रविड़ भाषा है (इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार के विपरीत) जो मुख्य रूप से भारत के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में बोली जाती है।

विदेशी भारत पर प्रासंगिक पुस्तकों से कन्नड़ के संदर्भ में भारद्वाज का अर्थ खोजें

यह भी देखें (प्रासंगिक परिभाषाएँ)

आंशिक मिलान: भरद , भर , द्वज , वाज ।

+2 ) से शुरू होता है: भारद्वाज शिक्षा , भारद्वाज सुत्त , भारद्वाजधन्वंतरि , भारद्वाजगर्गपरिणयप्रतिशेधवदर्थ , भारद्वाजगर्ग्यपरिणयप्रतिशेधवदर्थ , भारद्वाजग्निसमधनादिस्मर्तप्रयोग , भारद्वाजगृह्य , भारद्वाजक , भारद्वाजकी , भारद्वाजप्रदुर्भव , भारद्वाजप्रवरस का , भारद्वाजप्रयोग , भारद्वाजरस , भारद्वाजसंहिता , भारद्वाजासन , भारद्वाजशिक्षा , भारद्वाजश्रद्धकाण्डव्याख्य भारद्वाजश्रद्धप्रयोग , भारद्वाजस्मृति , भारद्वाजसूत्र ।

इसके साथ समाप्त होता है: अग्गिका भारद्वाज , अहिंसाका भारद्वाज , अक्कोसाका भारद्वाज , अंगनिका भारद्वाज , असुरिंदका भारद्वाज , बालकृष्ण भारद्वाज , जटा भारद्वाज , कलिंग भारद्वाज , काशी भारद्वाज , कटहारा भारद्वाज , नवकमिका भारद्वाज , पिंडोला-भारद्वाज , शुद्धिका भारद्वाज , सुंदरिका भारद्वाज , उद्द्योतक भारद्वाज ।

पूर्ण पाठ ( +339 ) : देववर्णिनी , भारद्वाजयान , भारद्वाजक , श्रुतवती , भारद्वाजसंहिता , भारद्वाजशिक्षा , भारद्वाजिय , भारद्वाजप्रवृस्का , भारद्वाजसूत्र , भारद्वाजस्मृति , भारद्वाजगर्गपरिणयप्रतिषेधवदर्थ , भारद्वाजप्रदुर्भव , भारद्वाजधन्वन्तरि , भरद्वाजगर्ग्यपरिणयप्रतिशेधवदर्थ , वितथ , कुमारशिरस , अत्रिभारद्वजिका सुकेशिन , यवकृत , भारद्वाजी 

प्रासंगिक पाठ

खोज में 129 पुस्तकें और कहानियाँ मिलीं जिनमें भारद्वाज, भार-द्वाज, भार-द्वाज, भरद्वाज, भरद्वाज, भरद्वाज, भरद्वाज; (बहुवचनों में शामिल हैं: भारद्वाज, द्वाज, द्वाज, वाज, वाज, भारद्वाज, भारद्वाज)। आप अंग्रेजी पाठ्य अंश वाले पूर्ण अवलोकन पर भी क्लिक कर सकते हैं। सर्वाधिक प्रासंगिक लेखों के लिए नीचे सीधे लिंक दिए गए हैं:

ऋग्वेद (अनुवाद और भाष्य) (एचएच विल्सन द्वारा)

शंकर की टिप्पणी के साथ प्रश्न उपनिषद (एस. सीतारमा शास्त्री द्वारा)

श्लोक 6.1 < [प्रश्न VI - सोलह कलाओं (भागों) का पुरुष]

श्लोक 1.1 < [प्रश्न I - चंद्रमा और सूर्य के आध्यात्मिक मार्ग]

श्लोक 6.3 < [प्रश्न VI - सोलह कलाओं (भागों) का पुरुष]

पूर्वावलोकन दिखाएं

बृहदारण्यक उपनिषद (स्वामी माधवानंद द्वारा)

तेम्बेस्वामी की द्विसहश्री (सारांश और अध्ययन) (उपाध्याय मिहिरकुमार सुधीरभाई द्वारा)

मेधातिथि की टीका के साथ मनुस्मृति (गंगनाथ झा द्वारा)

श्लोक 10.107 < [धारा XIII - संकट के समय में ब्राह्मण]

श्लोक 4.118 < [धारा XIII - अध्ययन के लिए अयोग्य दिन]

श्लोक 4.107 < [धारा XIII - अध्ययन के लिए अयोग्य दिन]

+ 5 और अध्याय / पूर्वावलोकन दिखाएं

भारतीय चिकित्सा का इतिहास (और आयुर्वेद) (श्री गुलाबकुंवरबा आयुर्वेदिक सोसायटी द्वारा)

अध्याय 3 - भारद्वाज की कहानी < [भाग 1 - भारत में चिकित्सा का इतिहास]

अध्याय 4 - आत्रेय की कहानी < [भाग 1 - भारत में चिकित्सा का इतिहास]

अध्याय 2 - आयुर्वेद की कहानी < [भाग 1 - भारत में चिकित्सा का इतिहास]

+ 5 और अध्याय / पूर्वावलोकन दिखाएं

 

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