सोमवार, 12 फ़रवरी 2024

कार्तवीर्य शौर्य गाथा



हैहय वंशावली परिचय “हैहय-कथा” का पहला भाग


हैहय वंशावली परिचय:

हैहयराज कार्तृवीर्य सहस्रार्जुन, सोमवंशीय क्षत्रिय थे। उनका जन्म पुरुरवा वंश में हुआ था। इस वंश में राजा नहुष और ययाति जैसे महान पराक्रमी, कलाप्रेमी, धर्मात्मा, तपस्वी और लोक-हितकारी राजा हुए थे।



अत्रेः पत्‍न्यनसूया त्रीन् जज्ञे सुयशसः सुतान् ।
दत्तं दुर्वाससं सोमं आत्मेशब्रह्मसम्भवान् ॥ १५ ॥


विदुर उवाच -
अत्रेर्गृहे सुरश्रेष्ठाः स्थित्युत्पत्त्यन्तहेतवः ।
किञ्चित् चिकीर्षवो जाता एतदाख्याहि मे गुरो ॥ १६।

मनु जी ने अपनी दूसरी कन्या देवहूति कर्दम जी को ब्याही थी।

अत्रि की पत्नी अनसूया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा नाम के तीन परम यशस्वी पुत्र हुए। ये क्रमशः भगवान् विष्णु, शंकर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे।

सन्दर्भ-

(श्रीमद्भागवतपुराण स्कन्धः४- अध्याय१-)

 

, किन्तु ‘विष्णु पुराण’ के अंश 4, अध्याय 6, श्लोक संख्या 3 और 4 में सोमवंश का वर्णन महर्षि पराशर ने इस प्रकार लिखा है-

“श्रूयता मुनिशार्दूल वंश प्रथित तेजसः सोमस्यानु।
कृमात्ख्याता यत्रोर्वीयपतोभवन ॥। 3 ॥
अयं हि वशतिवल पराक्रम द्युतिशील चेष्टा वाभ्ररति गुणान्वितैर्नहुषययाति । 
कार्तवीर्यार्जुनादि मिर्भूपालैश्लगुणान्वितैर्नकृतस्तम
कथयामि श्रूयताम ॥ 4॥” – (विष्णु पुराण 4/6/3-4) 

अर्थात् हे मुनि, शार्दूल के समान परम तेजस्वी चन्द्रमा के वंश को सुनो, जिसमें अनेक विख्यात राजा हुए हैं। यह वंश, नहुष, ययाति, कार्तवीर्यार्जुन आदि अनेक अतिबली, पराक्रमशील, कान्तिमान, क्रियावान और सद्गुण सम्पन्न राजाओं से अलंकृत हुआ है, मैं उसका वर्णन करता हूँ।

चन्द्रवंश का अभ्युदय 

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, ‘सहस्रार्जुन का सोम-वंश चन्द्रमा से प्रारम्भ होता है| चन्द्रमा का पुत्र ‘बुध’ था, बुध ने  ‘इला’ से विवाह किया | इला और बुध को ‘पुरूरवा’ नामक पुत्र प्राप्त हुआ, यह बालक रूप और गुण में अत्यन्त मेधावी था। 

स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी से इसका प्रेम था। उर्वशी के गर्भ से पुरूरवा को छह पुत्र प्राप्त हुए  ‘आयु’, ‘अमावसु’, ‘विश्वावसु’, ‘श्रुतायु’ और ‘अयुतायु’ ।

आयु का विवाह राहु की कन्या प्रभा के साथ हुआ था। उससे आयु को पाँच पुत्र प्राप्त हुए – ‘नहुष’, ‘क्षत्रवृद्ध’, ‘दम्भ’, ‘रजि’ और ‘अनेना’ । 

आयु के प्रथम पुत्र नहुष के छह पुत्र हुए – ‘याति’, ‘ययाति’, ‘संयति, ‘अयाति’, ‘वियाति’ और ‘कृति’ । 

नहुष के दूसरे पुत्र ययाति ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से और असुर राज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया था। देवयानी से ‘यदु’ और ‘तर्वसु’ दो पुत्र हुए और शर्मिष्ठा से ‘द्रह्यु’, ‘अनु’ और ‘पुरु’ तीन पुत्र हुए

चन्द्रवंश की इस परम्परा में जो अन्य महत्त्वपूर्ण पुत्र हुए| उनमें राजा पुरूरवा के दूसरे पुत्र अमावसु की वंशावली में ‘जह्नु’, ‘आयु’ के प्रपौत्र ‘शौनक ऋषि’ हुए | ‘धन्वंतरि’; धन्वंतरि की वंशावली में ‘राजा दिवोदास’, दिवोदास; की वंशावली में ‘सुदास’, ‘प्रतर्दन’, ‘अलर्क’ और ‘मार्गभूमि’ आदि हुए। 

मार्गभूमि से ही आगे धर्म का प्रचार हुआ।

लाखों वर्ष पुरानी गौरवमयी परम्परा

वोल्गा के तट पर ‘अस्त्राखान’ नामक एक हिन्दुओं का अग्नि- मन्दिर है । यह कास्पियन सागर के तट पर था। कश्यप ऋषि के नाम से ही इस सागर का यह नाम पड़ा था।

पुराणों में अत्रि का अर्थ  घर्म’  (प्रभाकर) भी कहा जाता है। ये अत्रि ऋषि आर्यों के एक कबीले के स्वामी थे। उनके पास प्रचुर मात्रा में पशुधन था। उनकी धर्म की वसु नामक स्त्री से आठ व उत्पन्न हुए थे ।

इन आठ वसुओं में ‘चन्द्र’ द्वितीय वसु थे।

वसु (वसु).—महाविष्णु का एक नाम। (महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय 149, श्लोक 25)।

वसु (वसु).—एक राजा। उनका जन्म उत्तानपाद में सुनृता द्वारा हुआ था। एक बार गाय की बलि को लेकर साधुओं के बीच विवाद पैदा हो गया और इस समस्या के समाधान के लिए साधु राजा वसु के पास पहुंचे, जिन्होंने उन्हें अपनी धारणा बताई कि गाय की बलि, वास्तव में, वध का मामला था और इस तरह यह था। वर्जित किया जाए. चूँकि साधु राजा से सहमत नहीं हो सके, उन्होंने उसे शाप दिया "राजा को पाताल में जाने दो। तब वसु ने बहुत कठोर तपस्या की और स्वर्ग प्राप्त किया। (मत्स्य पुराण, 143, 18-25)।



ययाति के प्रथम पुत्र यदु से ही ‘यदुवंश’

ययाति के प्रथम पुत्र यदु से ही ‘यदुवंश’ का प्रदुर्भाव हुआ था, इन्हें ययाति के राज्य का दक्षिण-पश्चिम भाग प्राप्त हुआ था। उनकी भेंट सूर्यवंशी हर्यश्व से हुई। हर्यश्व ने यदु की दृढ़ता और साहस को देखकर उसे अपना दत्तक पुत्र बना लिया और उसे अपना राज्य भी सौंप दिया। 

यदु ने अपने पराक्रम से राज्य का विस्तार किया। उसने नाग जाति के राजाओं से सन्धि कर ली और उनके सहयोग से पश्चिमी समुद्र तट तक अपना साम्राज्य फैला लिया ।

यदु के पाँच पुत्र हुए- ‘पद्मवर्ण’, ‘मुचकुन्द’, ‘माधव, ‘सरस’ और ‘हरित’। ये पाँचों पुत्र नाग – कन्याओं से थे । परन्तु यदु की क्षत्रिय रानियाँ भी थीं उनसे भी यदु के पाँच पुत्र थे- ‘सहस्रजित’, ‘क्रोष्टा’, ‘पयोद’, ‘नील’ और ‘अंजिक’ । इनमें सहस्रजित और क्रोष्टा के वंशज ही प्रसिद्ध हुए हैं । 

राज हा परम यशस्वी और सहस्त्रजित के इसी वंश में आगे चलकर ‘सहस्त्रार्जुन’ ने जन्म लिया था और क्रोष्टा के वंश में भगवान श्रीकृष्ण’ ने जन्म लिया था। ‘यदु-वंश’, ‘चंद्र-वंश’ की सर्वाधिक प्रसिद्ध शाखा थी। कौरव-पांडव और कृष्ण तथा सहस्रार्जुन का जन्म इसी शाखा में हुआ था । 

यदु के पुत्र ‘सहस्रजित’ का पुत्र ‘शतजित’ हुआ। उसके तीन पुत्र – ‘हैहय’, ‘महाहय’ और ‘वेणुहय’ हुएये तीनों धर्मात्मा और शक्तिशाली थे। इनमें भी ‘हैहय’ सबसे अधिक प्रतापी, बलवान, तेजवान, नीति-निपुण और प्रजापालक राजा थे| इनकी दस रानियों से सौ पुत्र हुए थे। सभी धनुर्विद्या में अत्यन्त निपुण थे ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें