रविवार, 19 फ़रवरी 2023

यादवों के कुल और उनके कुल पुरोहित-


"आसीन्महिष्मतः पुत्रो भद्रश्रेण्यः प्रतापवान्। वाराणस्यधिपो राजा कथितः पूर्व एव हि ।३२.६।

अनुवाद:-

महिष्मत के पुत्र भद्रसेन ही काशी के प्रथम  प्रतापी यादव राजा थे यह पूर्व ही कहा गया है। इसी परम्परा में कार्तवीर्य अर्जुन भी हुए।

उग्रसेनो महापत्यो विख्यातः कुकुरोद्भवः।कुकुराणामिमं वंशं धारयन्नमितौजसाम्।आत्मनो विपुलं वंशं प्रजावांश्च भवेन्नरः।३४.१३४।

कुलानि शत् चैकञ्च यादवानां महात्मनाम्।
सर्व्वमककुलं यद्वद्वर्त्तते वैष्णवे कुले। ३४.२५५।

यादवों के एक सौ एक कुल हैं वह सब विष्णु के कुल में समाहित हैं विष्णु सबमें विद्यमान हैं।

विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः ।
निदेशस्थायिभिस्तस्य बद्ध्यन्ते सर्वमानुषाः ।

३४.२५६।

विष्णु उन सबके प्रमाण में और प्रभुत्व में व्यवस्थित हैं। विष्णु के निर्देशन में सभी यादव मनुष्य प्रतिबद्ध हैं।

इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्त्तनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः। ३४।

___________________________________

"भीष्मक के कुल परोहित शताननद-गौतम और अहिल्या के पुत्र" 

"गोतमस्य शतानन्दो वेदवेदाङ्गपारगः। आप्तः प्रवक्ता विज्ञश्च धर्मी कुलपुरोहितः। पृथिव्यां सर्वतत्त्वज्ञो निष्णातः सर्वकर्मसु ।१८
अनुवाद:-
गौतम के पुत्र शतानंद  वेदों के अच्छे जानकार थे। वह कुल का एक धर्मी वाक्पटु और ज्ञानी पुरोहित थे
वह पृथ्वी के सभी सत्यों को जानता थे और सभी प्रकार की गतिविधियों में भी निपुण थे ।18। 

        "शतानन्द भीष्मक प्रति उवाच"
राजेन्द्र त्वं च धर्मज्ञो धर्मशास्त्रविशारदः। पूर्वाख्यानं च वेदोक्तं कथयामि निशामय ।१९।
         शतानंद ने भीष्मक से  कहा:
हे राजाओं में श्रेष्ठ, आप धार्मिक सिद्धांतों के ज्ञाता और धार्मिक सिद्धांतों के शास्त्रों के भी विशेषज्ञ हैं।
मेरी बात सुनो मैं तुम्हें वेदों में वर्णित पूर्व आख्यान को सुनाता हूँ ।19।

भुवो भारावतरणे स्वयं नारायणो भुवि । वसुदेवसुतः श्रीमान्परिपूर्णतमः प्रभुः।२०।
भगवान नारायण स्वयं पृथ्वी के भार उतारने के लिए  पृथ्वी पर प्रकट हुए।
वे वासुदेव के पुत्र रूप में इस पृथ्वी पर सबसे समृद्ध और सबसे शक्तिशाली हैं।20।

वह ही निर्देशक और निर्माता हैं और शेष तथा भगवान ब्रह्मा द्वारा उनकी पूजा की जाती है।
वह प्रकाश के सर्वोच्च रूप हैं और अपने भक्तों की कृपा के लिए अवतरित हैं।21।


परमात्मा सभी जीवों की प्रकृति से परे है
वह निष्कलंक और निष्पाप हैं और समस्त कर्मों का साक्षी हैं ।22।

हे राजाओं में श्रेष्ठ, उसने उसे और उसकी पुत्री को सब से उत्तम वर  दिया।
उसे देकर तुम अपने सैकड़ों पूर्वजों के साथ गौलोक में जाओगे। 23।।

अपनी पुत्री को देकर और परलोक में समानता और मुक्ति प्राप्त करें।
विश्वगुरु के गुरु बनो और यहाँ सबके द्वारा पूजे जाओ।24।

सन्दर्भ-:-
इति श्रीब्रह्मवैवर्त श्रीकृष्णजन्मखण्ड उत्तरार्द्ध  रुक्मिण्युद्वाहे
पञ्चाधिकशततमोऽध्यायः।१०५।

आसीन्महिष्मतः पुत्रो भद्रश्रेण्यः प्रतापवान्। वाराणस्यधिपो राजा कथितः पूर्व एव हि ।३२.६।

अनुवाद:-
महिष्मत के पुत्र भद्रसेन ही काशी के प्रथम  प्रतापी यादव राजा थे ! यह पूर्व ही कहा गया है। इसी परम्परा में कार्तवीर्य अर्जुन भी हुए।

वायुपुराण-उत्तरार्धम् -अध्यायः (३२)   

__________________________
उग्रसेनो महापत्यो विख्यातः कुकुरोद्भवः।कुकुराणामिमं वंशं धारयन्नमितौजसाम्।आत्मनो विपुलं वंशं प्रजावांश्च भवेन्नरः।३४.१३४।

कुलानि शत् चैकञ्च यादवानां महात्मनाम्।
सर्व्वमककुलं यद्वद्वर्त्तते वैष्णवे कुले। ३४.२५५।

यादवों के एक सौ एक कुल हैं वह सब विष्णु के कुल में समाहित हैं विष्णु सबमें विद्यमान हैं।२५५।

विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः ।
निदेशस्थायिभिस्तस्य बद्ध्यन्ते सर्वमानुषाः ।३४.२५६।

विष्णु उन सबके प्रमाण में और प्रभुत्व में व्यवस्थित हैं। विष्णु के निर्देशन में सभी यादव मनुष्य प्रतिबद्ध हैं।२५६।

इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्त्तनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः। ३४।

___________________________________     मूलगोत्राणि चत्वारि समुत्पन्नानि पार्थिव।   अङ्गिराः कश्यपश्चैव वसिष्ठो भृगुरेव च॥१७॥

कर्मतोऽन्यानि गोत्राणि समुत्पन्नानि पार्थिव।
नामधेयानि तपसा तानि च ग्रहणं सताम्॥१८॥
~महाभारत शान्ति पर्व(मोक्षधर्म पर्व) अध्याय २९६

पृथ्‍वीनाथ ! पहले अंगिरा, कश्‍यप, वसिष्ठ और भृगु -ये ही चार मूल गोत्र प्रकट हुए थे। अन्‍य गोत्र कर्म के अनुसार पीछे उत्‍पन्‍न हुए हैं। वे गोत्र और उनके नाम उन गोत्र-प्रवर्तक महर्षियों की तपस्‍या से ही साधू-समाज में सुविख्‍यात एवं सम्‍मानित हुए हैं।

विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल में गुरु के नाम से ही गोत्र का नाम होता था
जैसे पुराणों में राहु केतु का गोत्र पैठिनस  पैठिनस ऋषि थे । लेकिन जैमिनी ऋषि के शिष्यत्व में केतु का गोत्र जैमिनी हो गया।

कुछ इतिहासकार मानते हैं गुरु,कुल गुरु या पुरोहित के नाम से ही गोत्र का नाम पड़ जाता था जैसा कि राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा जी उदयपुर राज्य का इतिहास भाग-१ के क्षत्रियों के गोत्र नामक तृतीय अध्याय की परिशिष्ट संख्या ४ में लिखते हैं कि प्राचीन काल में राजाओं का गोत्र वही माना जाता था जो उनका पुरोहित का होता था.

यादवों कुल अनेक थे । जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है। इसी आधार पर उनके कुल पुरोहित भी अनेक गोत्रों से सम्बन्धित थे।             
कुलानि दश चैकञ्च यादवानां महात्मनाम्।
सर्व्वमककुलं यद्वद्वर्त्तते वैष्णवे कुले ।। ३४.२५५।

विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः ।
निदेशस्थायिभिस्तस्य बद्ध्यन्ते सर्वमानुषाः।। ३४.२५६।।

इति प्रसूतिर्वृष्णीनां समासव्यासयोगतः।
कीर्त्तिता कीर्त्तनाच्चैव कीर्त्तिसिद्धिमभीप्सिताम् ।। ३४.२५७ ।।

इति श्रीमहावायुपुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्त्तनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः । ३४ ।
__________________________________
तिस्रः कोट्यस्तु पौत्राणां यादवानां महात्मनाम् ।
सर्वमेव कुलं यच्च वर्त्तन्ते चैव ये कुले ॥ २,७१.२६१ ॥
विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः ।
निदेशस्थायिभिस्तस्य बध्यन्ते सुरमानुषाः ॥ २,७१.२६२ ॥
देवासुराहवहता असुरा ये महाबलाः ।
इहोत्पन्ना मनुष्येषु बाधन्ते ते तु मानवान् ॥ २,७१.२६३ ॥
तेषामुत्सादनार्थाय उत्पन्ना यादवे कुले ।
समुत्पन्नं कुलशतं यादवानां महात्मनाम् ॥ २,७१.२६४ ॥
इति प्रसूतिर्वृष्णीनां समासव्यासयोगतः ।
कीर्त्तिता कीर्त्तनीया स कीर्त्तिसिद्धिमभीप्सता ॥ २,७१.२६५ ॥
इति श्रीब्रह्माण्डे महापुराणे वायुप्रोक्ते मध्यमभागे तृतीय उपोद्धातपदे वृष्णिवंशानुकीर्त्तनं नामैकसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७१॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें