शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

महिष्मत के पुत्र भद्रसेन ही काशी के प्रथम प्रतापी यादव राजा थे यह पूर्व ही कहा गया है। इसी परम्परा में कार्तवीर्य अर्जुन भी हुए।


आसीन्महिष्मतः पुत्रो भद्रश्रेण्यः प्रतापवान्। वाराणस्यधिपो राजा कथितः पूर्व एव हि ।३२.६।

अनुवाद:-
महिष्मत के पुत्र भद्रसेन ही काशी के प्रथम  प्रतापी यादव राजा थे यह पूर्व ही कहा गया है। इसी परम्परा में कार्तवीर्य अर्जुन भी हुए।
उग्रसेनो महापत्यो विख्यातः कुकुरोद्भवः।कुकुराणामिमं वंशं धारयन्नमितौजसाम्।आत्मनो विपुलं वंशं प्रजावांश्च भवेन्नरः।३४.१३४।

कुलानि शत् चैकञ्च यादवानां महात्मनाम्।
सर्व्वमककुलं यद्वद्वर्त्तते वैष्णवे कुले। ३४.२५५।

यादवों के एक सौ एक कुल हैं वह सब विष्णु के कुल में समाहित हैं विष्णु सबमें विद्यमान हैं।

विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः ।
निदेशस्थायिभिस्तस्य बद्ध्यन्ते सर्वमानुषाः ।३४.२५६।

विष्णु उन सबके प्रमाण में और प्रभुत्व में व्यवस्थित हैं। विष्णु के निर्देशन में सभी यादव मनुष्य प्रतिबद्ध हैं।

इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्त्तनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः। ३४।

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"भीष्मक के कुल परोहित शताननद-गौतम और अहिल्या के पुत्र" 

"गोतमस्य शतानन्दो वेदवेदाङ्गपारगः। आप्तः प्रवक्ता विज्ञश्च धर्मी कुलपुरोहितः। पृथिव्यां सर्वतत्त्वज्ञो निष्णातः सर्वकर्मसु ।१८
अनुवाद:- गोतम के पुत्र शतानन्द वेदवेदांग में पारंगत आप्तपुरुष प्रवक्ता विशेष ज्ञाता धार्मिक भीष्मक के कुल पुरोहित थे । ये महर्षि पृथ्वी पर सभी तत्वों के ज्ञाता और सभी कर्मों में निष्णात( पारंगत ) थे।

      "शतानन्द भीष्मक प्रति उवाच"
राजेन्द्र त्वं च धर्मज्ञो धर्मशास्त्रविशारदः। पूर्वाख्यानं च वेदोक्तं कथयामि निशामय ।१९।
राजाओं के अधिपत भीष्मक ! तुम धर्मशास्त्र विशारद और धर्म के ज्ञाता हो।मैं वेदोक्त पूर्व आख्यान कहुँगा जिसे तुम सुनो ू!
भुवो भारावतरणे स्वयं नारायणो भुवि । वसुदेवसुतः श्रीमान्परिपूर्णतमः प्रभुः।२०।
भूमि का भार उतारने के लिए स्वयं नारायण हरि भूमि पर अवतरित हुए हैं‌ जो परिपूर्णतम हैं वर्तमान में वे वसुदेव के पुत्र रूप में हैं।
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विधातुश्च विधाता च ब्रह्मेशशेषवन्दितः ।
ज्योतिःस्वरूपः परमो भक्तानुग्रहविग्रहः ।। २१ ।।

परमात्मा च सर्वेषां प्राणिनां प्रकृतेः परः ।
निर्लिप्तश्च निरीहप्तश्च साक्षी च सर्वकर्मणाम्। २२।
राजेन्द्र तस्मै कन्यां च परिपूर्णतमाय च ।
दत्त्वा यास्यसि गोलोकं पितॄणां शतकैः सह।२३।

लभ सारूप्यमुक्तिं च कन्या दत्त्वां परत्र च ।
इहैव सर्वपूज्यश्च भव विश्वगुरोर्गुरुः ।। २४ ।।

सर्वस्वं दक्षिणां दत्त्वा महालक्ष्मीं च रुक्मिणीम् ।
समर्पणं कुरुविभो कुरुष्व जन्मखण्डनम् ।२५।

विधाता निखितो राजन्संबन्धः सर्वसंमतः ।
द्वारकानगरे कृष्णं शीघ्रं प्रस्थापय द्विजम् ।२६।

कृत्वा शुभक्षणं तूर्ण सर्वेषामपि संमतम् ।
आनीय परमात्मानं भक्तानुग्रहविग्रहम् ।२७।

ध्यानानुरोधहेतुं च नित्यदेहमनुत्तमम् ।
दृष्टिमात्रात्कुरु नृप स्वजन्मकर्मखण्डनम् ।२८।

यं न जानन्ति चत्वारो वेदाः संतश्च देवताः ।
सिद्धेन्द्राश्च मुनीन्द्राश्च देवा ब्रह्मादयस्तथा ।२९।

ध्यायन्ते ध्यानपूताश्च योगिनो न विदन्ति यम् ।
सरस्वती जडीभूता वेदाः शास्त्राणियानि च ।३०।

सहस्रवक्त्रः शेषश्च पञ्चवक्त्रः सदाशिवः ।
चतुर्मुखो जगद्धाता कुमारः कार्तिकस्तथा ।३१।

ऋषयो मुनयश्चैव भक्ताः परमवैष्णवाः ।
अक्षमाः स्तवने यस्य ध्यानासाध्यश्च योगिनाम् । ३२।

बालकोऽहं महाराज तद्गुणं कथयामि किम् ।
शतानन्दवचः श्रुत्वा प्रफुल्लवदनो नृपः।३३।

आनिङ्गनं ददौ तस्मै समुत्थाय जवेन च ।
नानारत्नं मुवर्ण च वस्त्रं च रत्नभूषणम् ।३४।

ददौ तस्मै प्रदानं च प्रसादसुमुखो नृपः ।
गजेन्द्र तुरगं श्रेष्ठं रथं च मणिनिर्मितम् ।३५।

रत्नसिहासनं रम्यं धनं च विपुलं तथा ।
भूमिं च सर्वसस्याढ्यां शश्वद्वृष्टिकरीं शुभाम्।३६।

अकृष्टसाध्यां पूज्यां च ग्रामं सर्वप्रशंसितम् ।
एतस्मिन्नन्तरे रुक्मिश्चुकोप नृपनन्दनः ।३७।

कम्पितोऽधर्मयुक्तश्च रक्तास्यो रक्तलोचनः ।
उवाच पितरं व्रिप्रं सभायामस्थिरस्तदा ।३८।

उत्याय तिष्ठन्पुरतः सर्वेषां च सभासदाम् ।३९।

गौतम के पुत्र शतानंद थे, जो वेदों के अच्छे जानकार थे।
वह परिवार का एक धर्मी वाक्पटु और ज्ञानी पुजारी था
वह पृथ्वी के सभी सत्यों को जानता था और सभी प्रकार की गतिविधियों में निपुण था 18।।

शतानंद ने कहा:
हे राजाओं में श्रेष्ठ, आप धार्मिक सिद्धांतों के ज्ञाता और धार्मिक सिद्धांतों के शास्त्रों के विशेषज्ञ भी हैं।
मेरी बात सुनो मैं तुम्हें वेदों में वर्णित पिछली कहानी सुनाता हूँ 19।।

भगवान नारायण स्वयं पृथ्वी के बोझ को दूर करने के लिए पृथ्वी पर प्रकट हुए।
वासुदेव का पुत्र सबसे समृद्ध और सबसे शक्तिशाली था। 20।।

वह निर्माता और निर्माता हैं और शेष भगवान ब्रह्मा द्वारा उनकी पूजा की जाती है।
वह प्रकाश के सर्वोच्च रूप हैं और अपने भक्तों की कृपा के अवतार हैं। 21।।

परमात्मा सभी जीवों की प्रकृति से परे है
वह निष्कलंक और निष्कलंक है और समस्त कर्मों का साक्षी है 22।।

हे राजाओं में श्रेष्ठ, उसने उसे और उसकी पुत्री को सब से उत्तम उत्तम दिया।
उसे देकर तुम अपने सैकड़ों पूर्वजों के साथ गौलोक में जाओगे। 23।।

अपनी बेटी को देकर और परलोक में समानता और मुक्ति प्राप्त करें।
विश्वगुरु के गुरु बनो और यहाँ सबके द्वारा पूजे जाओ। 24।।

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          (भीष्मक के पुरोहित शतानन्द)

गोतमस्य शतानन्दो वेदवेदाङ्गपारगः।
आप्तः प्रवक्ता विज्ञश्च धर्मी कुलपुरोहितः ।।
पृथिव्यां सर्वतत्त्वज्ञो निष्णातः सर्वकर्मसु ।। १८ ।।

               (शतानन्द उवाच)
राजेन्द्र त्वं च धर्मज्ञो धर्मशास्त्रविशारदः ।
पृर्वाख्यानं च वेदोक्तं कथयामि निशामय ।। १९ ।।

भुवो भारावतरणे स्वयं नारायणो भुवि ।
वसुदेवसुतः श्रीमान्परिबूर्णतमः प्रभुः ।। २० ।।

विधातुश्च विधाता च ब्रह्मेशशेषवन्दितः ।
ज्योतिःस्वरूपः परमो भक्तानुग्रहविग्रहः ।। २१ ।।

इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराण महा श्रीकृष्णजन्मखण्ड उत्तo नारदनाo रुक्मिण्युद्वाहे
पञ्चाधिकशततमोऽध्यायः ।१०५।

              शतानन्द उवाच
राजेन्द्र त्वं च धर्मज्ञो धर्मशास्त्रविशारदः ।
पृर्वाख्यानं च वेदोक्तं कथयामि निशामय ।। १९ ।।

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मूलगोत्राणि चत्वारि समुत्पन्नानि पार्थिव।
अङ्गिराः कश्यपश्चैव वसिष्ठो भृगुरेव च॥१७॥
कर्मतोऽन्यानि गोत्राणि समुत्पन्नानि पार्थिव।
नामधेयानि तपसा तानि च ग्रहणं सताम्॥१८॥
~महाभारत शान्ति पर्व(मोक्षधर्म पर्व) अध्याय २९६

पृथ्‍वीनाथ! पहले अंगिरा, कश्‍यप, वसिष्ठ और भृगु - ये ही चार मूल गोत्र प्रकट हुए थे। अन्‍य गोत्र कर्म के अनुसार पीछे उत्‍पन्‍न हुए हैं। वे गोत्र और उनके नाम उन गोत्र-प्रवर्तक महर्षियों की तपस्‍या से ही साधू-समाज में सुविख्‍यात एवं सम्‍मानित हुए हैं।

विद्वानों के अनुसार प्राचीन काल में गुरु के नाम से ही गोत्र का नाम होता था
जैसे पुराणों में राहु केतु का गोत्र पैठिनस था लेकिन जैमिनी ऋषि के शिष्यत्व में केतु का गोत्र जैमिनी हो गया।

कुछ इतिहासकार मानते हैं गुरु,कुल गुरु या पुरोहित के नाम से ही गोत्र का नाम पड़ जाता था जैसा कि राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा जी उदयपुर राज्य का इतिहास भाग-१ के क्षत्रियों के गोत्र नामक तृतीय अध्याय की परिशिष्ट संख्या ४ में लिखते हैं कि प्राचीन काल में राजाओं का गोत्र वही माना जाता था जो पुरोहित का होता था.

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