शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

गोप और ब्राह्मणों की उत्पत्ति भेद -

अहीरों को ही गोपालन वृत्ति (व्यवसाय) के कारण ही समाज में गोप नाम से सम्बोधित किया गया है। गोप सनातन हैं। और ये गोप सदैव गोपों में ही जन्म लेते हैं। जबकि ब्राह्मी सृष्टि में  क्रमानुसार जातीय व्युत्क्रम भी होता है । यद्यपि कर्म सिद्धांत के अधीन तो गोप भी संसार में होते हैं। और इसके मूल में उनकी मनोवृत्ति ( इच्छाऐं ही कारण होती है । परन्तु केवल अहीर या गोपों की जाति में ही इस कर्मानुसार उनके जन्म उच्च निम्न और मध्य सांस्कारिक स्तरों के अनुरूप ही होतो हैं।  अहीर कभी ब्राह्मण अथवा वैश्य अथवा क्षत्रिय अथवा शूद्र होने की बात नहीं करेगा क्योंकि इनमें सभी चारों वर्णों के गुण विद्यमान हैं। शास्त्रों में इनको वैष्णव वर्ण के अन्तर्गत निश्चित किया गया है। जो गोपों की सर्वश्रेष्ठता को जान लेगा वही ज्ञान सम्पन्न है।।
और गोपो की उत्पत्ति के विषय में भी ब्रह्मवैवर्त पुराण  और गर्गसंहिता  में लिखा है कि वे विष्णु अथवा कृष्ण के रोमकूपों से (क्लोनविधि) द्वारा गोप गण कृष्ण के समान रूप वाले उत्पन्न हुए थे। परन्तु संसार में कर्म प्रभाव से उनके स्वरूप और स्तर निरन्तर बदलते रहते हैं।

यद्यपि उत्पन्न होने की प्राणी जगत में अनेक विधियाँ हैं प्राचीन काल में भी विज्ञान रहा होगा -जिसके अनेक साक्ष्य परोक्ष रूप से प्राप्त होते हैं। 

यह समग्र संसार स्वयं में पूर्ण की इकाई (समष्टि) रूप है। जैसी उपनिषद का वचन है ।

"पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्ण मुदच्यते।          पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

शब्दार्थ -  अदः = वह परब्रह्म। पूर्णम् = सब प्रकार से पूर्ण है।  इदम् = यह (जगत् भी)
पूर्णम् = पूर्ण (ही) है। पूर्णात् = उस पूर्ण (परम्ब्रह्म ) से । पूर्णम् =यह पूर्ण।  उदच्यते = उत्पन्न होता है। पूर्णस्य = पूर्ण से।  पूर्णम् = पूर्ण को। आदाय = निकाल देने पर ।  पूर्णम् = पूर्ण। एव = ही।
अवशिष्यते = शेष रहता है।
अर्थ - वह (परब्रह्म ) सब प्रकार से पूर्ण है।  यह  (जगत् ) भी पूर्ण ही है ; क्योंकि यह उस पूर्ण (परब्रह्म ) से ही उत्पन्न  हुआ है।  पूर्ण से पूर्ण को निकाल देने पर भी पूर्ण ही शेष रहता है। जैसे गणित में शून्य से शून्य निकलने पर केवल शून्य ही रह जाता है। शून्य अनन्त का भी प्रतीक है। जैसे शून्य की आकाशय
 परिधि में अनन्त काल तक गति परमात्मा ने अपनी लीलाओं के लिए कर्म सिद्धान्त का विधान संसार में किया जिनके मूल में इच्छाऐं व्याप्त हैं।
और इच्छाओं के मूल में संकल्प और संकल्प के मूल में व्यक्ति का अहं विद्यमान है।

"गोपों की उत्पत्ति ब्रह्मा से नहीं अपितु गोप रूप सनातन विष्णु या नारायण अथवा कृष्ण से ही हुई है। गोलोक में कर्मफल के प्रभाव से रहित गोप कृष्ण के ही समान हैं । लीला हेतु शाप - प्रतिशाप की प्रक्रिया निर्दोष की दोष के प्रति अभि भूत प्रक्रिया है।

परन्तु संसार में कर्म फल के प्रभाव से विभिन्न रूप और छोटे बड़े स्तरों वाले गोप  लोग होते हैं।
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किसी मनुष्य अथवा प्राणी के समान रूप की उत्पन्न होने की जैविक विधि का एक प्रकार क्लोन( Clon) प्रतिरूप-भी है।

क्लोनिंग एक जैविक उत्पादन (विधि) अथवा तकनीक है जिसका उपयोग वैज्ञानिक प्राणीयों की सटीक अनुवांशिक प्रतियां बनाने के लिए किया जा सकता है।


जीन, कोशिकाओं, ऊतकों और यहां तक ​​कि पूरे प्राणी को भी क्लोन विधि द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। 

परन्तु इस प्रक्रिया में भी  स्वभाव और और प्रवृत्ति स्तर भिन्न हो सकते हैं क्योंकि क्लोन सृष्टि में   केवल शारीरिक रूप ही समान होता है।

कुछ क्लोन पहले से ही इस प्रकृति में उपस्थित हैं। बैक्टीरिया जैसे एकल-कोशिका वाले जीव हर बार पुनरुत्पादन करते समय अपनी सटीक ( यथावत सम प्रतिरूप बनाते हैं।

मनुष्यों में, समान जुड़वाँ क्लोन के समान ही होते हैं। वे लगभग समान जीन साझा करते हैं। जब एक निषेचित अण्ड दो रूप में विभाजित होता है तो समान जुड़वाँ (यमन) पैदा होते हैं।

वैज्ञानिक लैब में क्लोन भी बनाते हैं। वे अक्सर जीन का अध्ययन करने और उन्हें बेहतर ढंग से समझने के लिए क्लोन करते हैं।

एक जीन को क्लोन करने के लिए, शोधकर्ता एक जीवित प्राणी से डी.एनए लेते हैं और इसे बैक्टीरिया या खमीर जैसे वाहक में डालते हैं।

डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल(DNA)


डी॰ एन॰ ए॰- जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तन्तुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी॰ एन॰ ए॰ कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। डी० एन० ए० अणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है। 

हर बार जब वह वाहक प्रजनन करता है। तो जीन की एक नई प्रति बनाई जाती है। यह भी एक जैविक उत्पादन विधि है।

प्राणीयो को दो तरीकों में से एक में क्लोन किया जाता है।
पहले को एम्ब्रियो ट्विनिंग ( द्वितीयकरण) कहा जाता है।
वैज्ञानिकों ने पहले एक भ्रूण को आधे में विभाजित किया।
इसके बाद उन दोनों हिस्सों को मां के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है।
भ्रूण का प्रत्येक भाग एक अद्वितीय प्राणी के रूप में विकसित होता है।

और दोनों प्राणी एक ही जीन साझा करते हैं।
दूसरी विधि को सोमैटिक सेल ( कायिक- कोशिका)] न्यूक्लियर ट्रांसफर कहा जाता है। दैहिक कोशिकाएं वे सभी कोशिकाएं हैं जो एक जीव को बनाती हैं, लेकिन यह शुक्राणु या अण्डाणु नहीं हैं।

शुक्राणु और अण्डाणु की कोशिकाओं में गुणसूत्रों का केवल एक सेट होता है ! जो मैथुनी सृष्टि के कारक है और प्रेरक हैं।
और जब वे निषेचन के दौरान जुड़ते हैं, तो माता के गुणसूत्र पिता के साथ मिल जाते हैं।
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दूसरी ओर, दैहिक कोशिकाओं में पहले से ही गुणसूत्रों के दो पूर्ण सेट होते हैं।

एक क्लोन बनाने के लिए, वैज्ञानिक एक पशु अथवा प्र के दैहिक कोशिका से डीएनए को एक अंडे की कोशिका में स्थानांतरित करते हैं जिसका नाभिक और डीएनए हटा दिया गया है।
अंडा एक भ्रूण में विकसित होता है जिसमें कोशिका दाता के समान जीन होते हैं।
फिर भ्रूण को बढ़ने के लिए एक वयस्क महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

"क्लोन का अर्थ होता है जैविक प्रतिरूप  जीवविज्ञान में क्लोन का अपना एक स्वतन्त्र इतिहास है । गोपों की स्वराट्- विष्णु से उत्पत्ति समझने के लिए क्लोन पद्धति को भी स्थूल दृष्टि से समझ लें
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1996 में, स्कॉटिश वैज्ञानिकों ने पहले जानवर, एक भेड़ का क्लोन बनाया, जिसका नाम उन्होंने डॉली रखा। एक वयस्क भेड़ से ली गई उदर कोशिका का उपयोग करके उसे क्लोन किया गया था। तब से, वैज्ञानिकों ने क्लोन किए हैं- गाय, बिल्ली, हिरण, घोड़े और खरगोश।

हालांकि, उन्होंने अभी भी एक मानव का क्लोन नहीं बनाया है। 

आंशिक रूप से, इसका कारण यह है कि एक व्यवहार्य क्लोन का उत्पादन करना मुश्किल है।
प्रत्येक प्रयास में, आनुवंशिक गलतियाँ हो सकती हैं जो क्लोन को जीवित रहने से रोकती हैं।

डॉली को सही साबित करने में वैज्ञानिकों को 276 कोशिशें करनी पड़ीं।
मानव की क्लोनिंग के बारे में नैतिक चिंताएँ भी हैं।

शोधकर्ता कई तरह से क्लोन का उपयोग कर सकते हैं।
क्लोनिंग से बने भ्रूण को स्टेम सेल फैक्ट्री में बदला जा सकता है।
स्टेम कोशिकाएँ कोशिकाओं का एक प्रारम्भिक रूप हैं जो कई अलग-अलग रूप में विकसित हो सकती हैं। कोशिकाओं और ऊतकों के प्रकार।

मधुमेह के इलाज के लिए क्षतिग्रस्त रीढ़ की हड्डी या इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को ठीक करने के लिए वैज्ञानिक उन्हें तंत्रिका कोशिकाओं में बदल सकते हैं।

पशु के क्लोनिंग का उपयोग कई अलग-अलग अनुप्रयोगों में किया गया है।

पशुओं को जीन म्यूटेशन के लिए क्लोन किया गया है जो वैज्ञानिकों को पशुओ में विकसित होने वाली बीमारियों का अध्ययन करने में मदद करता है। अधिक दूध उत्पादन के लिए गायों और सूअरों जैसे पशुओं का क्लोन बनाया गया है।
क्लोन एक प्यारे पालतू जानवर को "पुनर्जीवित" भी कर सकते हैं जो मर चुका है। परन्तु यह सम्भव नहीं लगत

2001 में, सीसी नाम की एक बिल्ली क्लोनिंग के माध्यम से बनाई जाने वाली पहली पालतू जानवर थी। क्लोनिंग एक दिन ऊनी मैमथ या जायंट पांडा जैसी विलुप्त प्रजातियों को वापस ला सकती है।
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1-गुणसूत्र संज्ञा:- कोशिकाओं के केंद्रक में डीएनए और संबद्ध प्रोटीन की लड़ी जो जीव की आनुवंशिक जानकारी को वहन करती है।
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2-क्लोन संज्ञा:-कोशिका या कोशिकाओं का समूह जो आनुवंशिक रूप से अपने पूर्वज कोशिका या कोशिकाओं के समूह के समान है।
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3-डीएनए संज्ञा:-(डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) प्रत्येक जीवित जीव में अणु जिसमें उस जीव पर विशिष्ट आनुवंशिक जानकारी होती है।
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4-भ्रूणसंज्ञा:-विकास के प्रारंभिक चरण में अजन्मा जानवर।
5-जीनसंज्ञा:-डीएनए का वह भाग जो आनुवंशिकता की मूल इकाई है।
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6-प्रतिकृतिसंज्ञा:-
एक सटीक समानप्रति या प्रजनन।
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7-दैहिक कोशिकासंज्ञा:-कोशिकाएं जो जीव के हर हिस्से को बनाती हैं; शुक्राणु या अंडाणु नहीं
8-स्टेम सेलसंज्ञा:-प्रारंभिक कोशिका जो शरीर में किसी भी प्रकार की कोशिका या ऊतक में विकसित हो सकती है।

गोप केवल विष्णु के क्लोन उत्पादन हो सकते हैं जबकि चातुर्वर्ण  का उत्पादन क्लोन विधि नहीं है।  क्योंकि शास्त्रो में गोपों को प्रारम्भ में विष्णु रूप में वर्णित किया गया ।

यह एक प्राकृतिक और वैज्ञानिक मानव सृष्टि प्रक्रिया भी है।

"Cloning is a technique scientists use to make exact genetic copies of living things.

Genes, cells, tissues, and even whole animals can all be cloned.

Some clones already exist in nature. Single-celled organisms like bacteria make exact copies of themselves each time they reproduce.
In humans, identical twins are similar to clones.
They share almost the exact same genes. Identical twins are created when a fertilized egg splits in two.

Scientists also make clones in the lab. They often clone genes in order to study and better understand them.
To clone a gene, researchers take DNA from a living creature and insert it into a carrier like bacteria or yeast. Every time that carrier reproduces, a new copy of the gene is made.

Animals are cloned in one of two ways.
The first is called embryo twinning.
Scientists first split an embryo in half.
Those two halves are then placed in a mother’s uterus.
Each part of the embryo develops into a unique animal, and the two animals share the same genes.
The second method is called somatic cell nuclear transfer. Somatic cells are all the cells that make up an organism, but that are not sperm or egg cells.

Sperm and egg cells contain only one set of chromosomes !
and when they join during fertilization, the mother’s chromosomes merge with the father’s.
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Somatic cells, on the other hand, already contain two full sets of chromosomes.

To make a clone, scientists transfer the DNA from an animal’s somatic cell into an egg cell that has had its nucleus and DNA removed.
The egg develops into an embryo that contains the same genes as the cell donor.
Then the embryo is implanted into an adult female’s uterus to grow.

In 1996, Scottish scientists cloned the first animal, a sheep they named Dolly. She was cloned using an udder cell taken from an adult sheep. Since then, scientists have cloned- cows, cats, deer, horses, and rabbits.

They still have not cloned a human, though. In part, this is because it is difficult to produce a viable clone.
In each attempt, there can be genetic mistakes that prevent the clone from surviving.

It took scientists 276 attempts to get Dolly right.
There are also ethical concerns about cloning a human being.
Researchers can use clones in many ways.
An embryo made by cloning can be turned into a stem cell factory.
Stem cells are an early form of cells that can grow into many different. types of cells and tissues.

Scientists can turn them into nerve cells to fix a damaged spinal cord or insulin-making cells to treat diabetes.
The cloning of animals has been used in a number of different applications.
Animals have been cloned to have gene mutations that help scientists study diseases that develop in the animals. Livestock like cows and pigs have been cloned to produce more milk .
Clones can even “resurrect” a beloved pet that has died. In 2001, a cat named CC was the first pet to be created through cloning. Cloning might one day bring back extinct species like the woolly mammoth or giant panda.
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1-chromosome
Noun
strand of DNA and associated proteins in the nucleus of cells that carries the organism's genetic information.
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2-clone
Noun
cell or group of cells that is genetically identical to its ancestor cell or group of cells.
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3-DNA
Noun
(deoxyribonucleic acid) molecule in every living organism that contains specific genetic information on that organism.
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4-embryo
Noun
unborn animal in the early stages of development.

5-gene
Noun
part of DNA that is the basic unit of heredity.
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6-replica(प्रतिकृति) 

Noun
an exact copy or reproduction. replica is an exact copy of an object, made out of the same raw materials, whether a molecule, a work of art, or a commercial product.

The term is also used for copies that closely resemble the original, without claiming to be identical. 

Also has the same weight and size as original.

प्रतिकृति किसी वस्तु की एक सटीक प्रति है, जो एक ही कच्चे माल से बनी है, चाहे वह अणु हो, कला का काम हो या व्यावसायिक उत्पाद हो।

इस शब्द का प्रयोग उन प्रतियों के लिए भी किया जाता है जो समान होने का दावा किए बिना मूल के समान दिखती हैं।इसका वजन और आकार मूल के समान ही है।

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7-somatic cell
Noun
cells that make up every part of an organism; not a sperm or egg cell

8-stem cell
Noun
early cell that can develop into any type of cell or tissue in the body

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और तो और ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 90 वें सूक्त में जो सम्पूर्ण सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन करता है उसके 12 वें मंत्र (ऋचा) जो  चारो वर्णों के प्रादुर्भाव का उल्लेख है कि-
यही ऋचा यजुर्वेद सामवेद तथा अथर्ववेद में भी है.
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"ब्राह्मणो अस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।

(ऋग्वेद 10/90/12)
श्लोक का अनुवाद:-  इस विराटपुरुष(ब्रह्मा) के  मुख से ब्राह्मण हुआ , बाहू से  क्षत्रिय लोग हुए एवं  उसकी जांघों से वैश्य हुआ एवं दौनों चरण से शूद्रो की उत्पत्ति हुई।-(10/90/12)
अब सभी शात्र-अध्येता जानते हैं कि ब्रह्मा भी विष्णु की सृष्टि हैं। परन्तु हम इन  शास्त्रीय मान्यताओं पर ही आश्रित होकर वर्णव्यवस्था का पालन और आचरण करते हैं । तो विचार करना होगा कि गोप साक्षात् विष्णु के ही शरीर(रोम कूप) से उत्पन्न हैं ।जबकि ब्राह्मण विष्णु की सृष्टि ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हैं ।
इस लिए गोप ब्राह्मणों से श्रेष्ठ और उनके भी पूजय हैं।
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"कृष्णस्य  लोमकूपेभ्य: सद्यो गोपगणो मुने:
"आविर्बभूव रूपेण वैशैनेव च तत्सम:।४१।

(ब्रह्म-वैवर्त पुराण अध्याय -5 श्लोक 41)
अनुवाद:- कृष्ण के रोमकूपों से गोपोंं (अहीरों) की उत्पत्ति हुई है , जो रूप और वेश में उन्हीं कृष्ण ( विष्णु) के समान थे। वास्तव में कृष्ण का ही गोलोक धाम का रूप विष्णु है।
यही गोपों की उत्पत्ति की बात गर्गसंहिता श्रीविश्वजित्खण्ड के ग्यारहवें अध्याय में  यथावत् वर्णित है।
"नन्दो द्रोणो वसुःसाक्षाज्जातो गोपकुलेऽपिसः॥  
गोपाला ये च गोलोके कृष्णरोम समुद्‌भवाः।२१।

"राधारोमोद्‌भवा गोप्यस्ताश्च सर्वा इहागताः॥
काश्चित्पुण्यैःकृतैः पूर्वैः प्राप्ताः कृष्णं वरैःपरैः॥२२॥

इति श्रीगर्गसंहितायां श्रीविश्वजित्खण्डे श्रीनारदबहुलाश्वसंवादे दंतवक्त्रयुद्धे करुषदेशविजयो नामैकादशोऽध्यायः॥११॥
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शास्त्रों में  वर्णन है कि गोप (आभीर) वैष्णव (विष्णु के रोमकूप) से उत्पन्न वैष्णव अञ्श ही थे।
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ब्रह्मक्षत्त्रियविट्शूद्राश्चतस्रो जातयो यथा । स्वतन्त्रा जातिरेका च विश्वस्मिन्वैष्णवाभिधा।४३।।
ब्रह्मवैवर्तपुराण ब्रह्मखण्ड अध्याय- एकादश( ग्यारह)
अनुवाद- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ,और शूद्र जैसे चार वर्ण-और उनके अनुसार जातियाँ हैं । इनसे पृथक स्वतन्त्र एक वर्ण और उसके अनुसार जाति है वह वर्ण इस विश्व में  वैष्णव नाम से है  और उसकी एक स्वतन्त्र जाति है।(१.२.४३)
उपर्युक्त श्लोक में परोक्ष रूप से आभीर जाति का ही संकेत है। जो कि स्वयं विष्णु के रोम कूपों से प्रादुर्भूत वैष्णव वर्ण हैं।

इसी बात का साक्ष्य हमें पद्मपुराण सृष्टि खण्ड के अध्याय 16 में प्राप्त होता है ।जब ब्रह्मा पुष्कर क्षेत्र में यज्ञ करते हैं तब वे उस महायज्ञ में चारों वर्णों के मनुष्यों तथा देवों और ऋषियों और शिव और विष्णु के क्षुद्र विराट रूप को भी आमन्त्रित करते हैं परन्तु गोपों को आमन्त्रित नहीं करते हैं क्योंकि गोप उनकी सृष्टि नहीं हैं।

परन्तु गायत्री गोप कन्या हैं और गोप गायत्री को खोजते हुए ही ब्रह्मा के महायज्ञ में पहुँचते हैं तब विष्णु जो कि गोलोकवासी स्वराट् ( विष्णु/ कृष्ण के एकल ब्रह्माण्डीय क्षुद्र विराट रूप हैं । गोपों को आश्वासन देते हैं। यही विष्णु अपनी पुत्री के समान दत्ता- बनकर गायत्री का कन्यादान करते है। परन्तु गायत्री वैष्णवी शक्ति होने से केवल ब्रह्मा यज्ञ सम्पन्न कराने के लिए ही उनकी पत्नी रूप में नियुक्त होती हैं। वास्तविक पत्नी नहीं जिससे सृष्टि या सन्तान उत्पादन हो-
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जैसे ब्रह्मा की शारीरिक सृष्टि को ब्राह्मण कहा गया उसी प्रकार विष्णु की शारीरिक सृष्टि को भी वैष्णव कहा गया ।
जिस प्रकार  शास्त्रों में ब्राह्मण वर्ण है उसी प्रकार वैष्णव भी ब्रह्मवैवर्त पुराण और नारद पुराण में वर्ण लिखा गया है ।
अहीरों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण गोप  है।
अहीरों का वर्ण चातुर्यवर्ण से पृथक पञ्चम् वर्ण वैष्णव है।

वेदों में इसी लिए विष्णु भगवान को गोप कहा गया है जहाँ पर स्वर्ण पण्डित सींगों वाली गाय रहती हैं।
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त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्यः ।
अतो धर्माणि धारयन् ॥१८॥

(ऋग्वेद १/२२/१८)
(अदाभ्यः) सोमरस रखने के लिए गूलर की लकड़ी का बना हुआ पात्र (धारयन्) धारण करता हुआ ।  (गोपाः) गोपालक रूप, (विष्णुः) संसार का अन्तर्यामी परमेश्वर (त्रीणि) तीन (पदानि) क़दमो से (विचक्रमे) गमन करता है । और ये ही
(धर्माणि) धर्मों को धारण करता है ॥18॥
गोप ही इस लौकिक जगत् में सबसे पवित्र और धर्म के प्रवर्तक तथा धारक थे। और इस लिए गोपों अथवानआभीरों की सृष्टि ब्राह्मी वर्णव्यवस्था से पूर्णत: पृथक है।

अत: ब्रह्मा की वर्णव्यवस्था के माननेवाले पुरोहित! अहीरों को शूद्र तो कहीं वैश्य वर्णन कर उनके व्यक्तित्व का निर्धारण न करें । क्योंकि गोप ब्राह्मी चातुर्वर्ण व्यवस्था से पृथक ही हैं।


परन्तु इनके कार्य सभी चारों वर्णों के होने पर भी ये वैष्णव वर्ण के थे। वैष्णव के अन्य नाम शास्त्रों में भागवत, सात्वत, और पाञ्चरात्र,  आदि भी हैं।
वैष्णवों की महानता का वर्णन तो शास्त्र भी करते हैं।
"ध्यायन्ति वैष्णवाः शश्वद्गोविन्दपदपङ्कजम् ।ध्यायते तांश्च गोविन्दः शश्वत्तेषां च सन्निधौ ।४४।
अनुवाद:-वैष्णव जन सदा गोविन्द के चरणारविन्दों का ध्यान करते हैं और भगवान गोविन्द सदा उन वैष्णवों के निकट रहकर उन्हीं का ध्यान किया करते हैं।।४४।

( सन्दर्भ:- ब्रह्मवैवर्तपुराण -खण्डः अध्याय -११)

वे पेशे से गोपालक थे। तथा गोप नाम से प्रसिद्ध थे। लेकिन साथ ही उन्होंने कुरुक्षेत्र की लड़ाई में भाग लेते हुए क्षत्रियों का दर्जा हासिल किया। इसका प्रमाण निम्न श्लोक है।
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"मत्सहननं तुल्यानाँ , गोपानामर्बुद महत् ।
नारायण इति ख्याता सर्वे संग्राम यौधिन: ।107।

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संग्राम में गोप यौद्धा नारायणी सेना के रूप में अरबों की महान संख्या में हैं ---जो  शत्रुओं का तीव्रता से हनन करने वाले हैं ।
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"नारायणेय: मित्रघ्नं कामाज्जातभजं नृषु ।
सर्व क्षत्रियस्य पुरतो देवदानव योरपि ।108।

(स्वनाम- ख्याता श्रीकृष्णसम्बन्धिनी सेना ।        इयं हि भारतयुद्धे दुर्य्योधनपक्षमाश्रितवती"
महाभारत के उद्योगपर्व अध्याय 7,18,22,में
वर्तमान ये गोप अहीर भी वैष्णव वर्ण के हैं।

अहीर या यादव महान योद्धा हैं, अहीर नारायणी/यादव सेना में थे।

द्वारका साम्राज्य के भगवान कृष्ण की यादव सेना को सर्वकालिक सर्वोच्च सेना कहा जाता है। महाभारत में इस पूरी नारायणी सेना को अहीर जाति के रूप में वर्णित किया गया है।

इससे सिद्ध होता है कि अहीर, गोप और यादव अलग अलग लोग नहीं थे, अपितु सभी पर्यायवाची हैं।

"कुलानि शत् चैकञ्च यादवानां महात्मनाम्।सर्व्वमेककुलं यद्वद्वर्त्तते वैष्णवे कुले।३४.२५५।

अनुवाद:-यादवों के एक सौ एक कुल हैं वह सब विष्णु के कुल में समाहित हैं विष्णु सबमें विद्यमान हैं।

विष्णुस्तेषां प्रमाणे च प्रभुत्वे च व्यवस्थितः।निदेशस्थायिभिस्तस्य बद्ध्यन्ते सर्वमानुषाः।३४.२५६।

अनुवाद:-विष्णु उन सबके प्रमाण में और प्रभुत्व में व्यवस्थित हैं। विष्णु के निर्देशन में सभी यादव मनुष्य प्रतिबद्ध हैं।

इति श्रीमहावायुपुराणे वायुप्रोक्ते विष्णुवंशानुकीर्त्तनं नाम चतुस्त्रिंशोऽध्यायः। ३४।

प्रस्तुतिकरण:- यादव योगेश कुमार रोहि-

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