शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

राम और अहीरों का पारस्परिक विरोध-

अभिवादन के तौर पर " राम-राम बोलना भी हम यादवों पर थोपा गया है" और फिर राम एक ऐतिहासिक नहीं अपितु प्रागैतिहासिक पात्र हैं ।
जिनका जीवन काल मिथको के भँवर में समाया हुआ है । जिनका जन्म और जीवन अस्वाभाविक व इतिहास की सीमाओं से परे है ।

👇-सुमेर, मिश्र, ईरान ईराक, दक्षिणी अमेरिका, कम्बोडिया, इण्डोनेशिया तथा थाईलेण्ड की संस्कृतियों में भी राम का वर्णन उनकी लोक परम्पराओं के अनुरूप है ।

राम का वर्णन भारतीय संस्कृति में सुमेरियन संस्कृति से ही आयात है ।
परन्तु पुष्यमित्र सुँग काल में राम के मिथकीय चरित्रों का सृजन पुरोहितों द्वारा अपनी मान्यताओं और लोकाचारों के अनुरूप किया गया ।  
भारतीय पुरोहितों ने तो द्वेषवश अहीरों का हत्यारा तक राम को लिख डाला।

👇-फिर अहीर राम को क्यों महिमा मण्डित करें ।          राम ने तो अहीरों को खत्म करने के लिऐ अग्नि बाण चलाया इसलिए अहीर क्यों बनाऐं राम मन्दिर ?

यद्यपि राम का युद्ध अहीरों से कभी नहीं हुआ परन्तु पुष्यमित्र शूंग कालीन पाखण्डी ब्राह्मणों नें अपनी रामायण मे लिखा है कि जड़ अथवा चेतनाहीन समु्द्र द्वारा राम से यह कहने पर कि पापी अहीर मेरा जल पीकर मुझे अपवित्र करते हैं।

इसलिए इन अहीरों को मारिये तो राम अपना अग्नि बाण अहीरों पर छोड़ देते हैंँ।

 कमाल की बात तो ये  है कि जड़ अथवा चेतनाहीन समुद्र भी राम से बाते करता है और राम समु्द्र के कहने पर सम्पूर्ण अहीरों को अपने अमोघ बाण से त्रेता युग में ही मार देते हैं।

परन्तु अहीर मरते नहीं रामबाण भी निष्फल ही हो जाता है ।

और अहीर  आज भी पूरे भारत में छाऐ हुऐ हैं। अहीरों के मारने में तो राम का अग्निबाण भी फेल हो गया।

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निश्चित रूप से अहीरों (यादवों) के विरुद्ध इस प्रकार से लिखने में ब्राह्मणों की धूर्त बुद्धि ही दिखाई देती है।

ब्राह्मणों ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन धर्म ग्रन्थों के रूप में इस कारण से किया है ताकि अहीरों को लोक मानस में हेय व दुष्ट घोषित किया जा सके"।

वाल्मिकी रामायण के युद्ध काण्ड में और तुलसी दास की रामचरित मानस के सुंदर काण्ड में  अहीरों को जिस हीनता और नीचता पूर्वक वर्णन  किया है ।

उसका वर्णन  अवैज्ञानिक व मिथ्या और अस्वाभाविक तो है ही।

समुद्र जिसमें चेतना ही नहीं है वह भी अहीरों का शत्रु बना हुआ है।

अहीरों को वैदिक काल में भी यदु और तुरसु के रूप में  नकारात्मक और हेय रूप मे वर्णन इस बात का प्रबल साक्ष्य है कि अहीर कभी भी पुरोहित वाद की धूर्तता के समक्ष नतमस्तक नहीं हुए ।


👇गायत्री, दुर्गा और राधा जैसी महान शक्तियों को अहीरों की जाति  में जन्म लेने का सौभाग्य मिला   

पद्म पुराण सृष्टि खण्ड और स्कन्द पुराण नागर और प्रभास माहात्म्य खण्डों में वर्णन है कि  स्वयं विष्णु भगवान ब्रह्मा के साथ गायत्री के विवाह के सन्दर्भ में स्वयं एक पिता के समान अहीरों की कन्या गायत्री का कन्यादान ब्रह्मा को करते हैं ।

और गायत्री के माता-पिता बन्धु-बान्धवों को आश्वासन ही नहीं अपितु वरदान भी देते हैं कि द्वापर युग में नन्द और वसुदेव आदि गोपों (अहीरों ) के सानिध्य में मेरा अवतरण होगा।

पद्म पुराण के लेखक ने ये बाते तत्कालीन अवधारणाओं के अनुरूप ही लिखीं थीं।

पद्म पुराण में गायत्री को कई मर्तबा यादवी, आभीर -कन्या तथा गोप कन्या भी कहा है।

त्रेता काल में भी अहीर लोग व्रजप्रदेश में ही निवास करते थे ।

और कुछ आभीर आवर्त देश में भी रहते थे । परन्तु धूर्तों ने द्वेष और काल्पनिकता की सरहदें ही पार कर दीं हैं ।

कि  निर्जीव समुद्र राम से बातें भी करता है।     और समुद्र के निवेदन पर राम ने द्रुमकुल्य देश में अहीरों को बिना कारण ते मारा फिर भी अहीर मरे नहीं ।

👇ब्राह्मणों ने राम को ही अहीरों का हत्यारा' बना दिया।                  वाल्मिकी और तुलसीदास के अनुसार राम ने अहीरों को त्रेता युग में ही अपने रामबाण से "द्रुमकुल्य" देश में मार दिया था लेकिन फिर भी अहीर  आज कलयुग में करोड़ों की संख्या में मजबूती से जिन्दा है।

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अहीरों को कोई नहीं जीत सकता; अहीर अजेय हैं। अत: अहीरों से भिड़ने वाले नेस्तनाबूद हो जाऐगे। अहीरों को वैसे भी हिब्रू बाइबिल और भारतीय पुराणों में देव स्वरूप और ईश्वरीय शक्तियों से युक्त माना है। 

हिन्दू धर्म के अनुयायी बने हम अहीर हाथ जोड़ कर इन काल्पनिक तथ्यों को सही माने बैठे हैं क्योंकि मनन-रहित और विवेकहीन श्रृद्धा (आस्था) ने हमें इतना दबा दिया है कि हमारा मन गुलाम हो गया। यह पूर्ण रूपेण  अन्धभक्ति है। आश्चर्य ही नहीं घोर आश्चर्य है।

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महर्षि वाल्मीकिजी अपनी रामायण के युद्ध-काण्ड  के २२वें सर्ग में लिखते हैं:


👇"उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम।

द्रुमकुल्य इतिख्यातो लोके ख्यातो यथाभवान्।३२।        उग्रदर्शनं कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव:।        आभीर प्रमुखा:पापा: पिवन्ति सलिलम् मम।३३।

तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि:।अमोघ क्रियतां रामोऽयं तत्र शरोत्तम:।३४।

तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन:।    मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।।

अर्थात् समुद्र राम से बोला हे प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं उसी प्रकार मेरे उत्तर दिशा की ओर द्रुमकुल्य नाम का बड़ा ही प्रसिद्ध देश है ।३२।

वहाँ आभीर (अहीर) जाति के बहुत से मनुष्य निवास करते हैं जिनके कर्म तथा रूप बड़े भयानक हैं; सबके सब पापी और लुटेरे हैं।        वे लोग मेरा जल पीते हैं ।३३।

उन पापाचारियों का मेरे जल से स्पर्श होता रहता है। इस पाप को मैं सह नहीं सकता हूँ।

हे राम आप अपने इस उत्तम अग्निवाण को वहीं सफल कीजिए/ अर्थात्‌ वाण छोड़िए ।३४।

समुद्र का यह वचन सुनकर समुद्र के दिखाए मार्ग के अनुसार अहीरों के उसी देश द्रुमकुल्य की दिशा में राम ने वह अग्निवाण छोड़ दिया ।३५।

तुलसी दासजी भी इसी पुष्य मित्र सुंग की परम्पराओं का अनुसरण करते हुए राम और समुद्र के सम्वाद रूप में लिखते हैं:

"आभीर यवन किरात खल अति अघ रूपजे

अर्थात्  आभीर (अहीर), यवन (यूनानी) और किरात ये दुष्ट और पाप रूप हैं ! हे राम इनका वध कीजिए।                                          (गीता प्रैस गोरखपुर ने इस पंक्तियों को बदल दिया है)

निश्चित रूप से ब्राह्मण समाज ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन किया है । 

क्योंकि अहीरों ने कभी भी ब्राह्मणों का वर्चस्व समाज में स्थापित नहीं होने दिया।

वर्णव्यवस्था में अहीरों ने कभी भी अपने आप को समायोजित नहीं किया भले ही ब्राह्मण समाज ने अपने आप ही उन्हें शूद्र वर्ण के रूप में निम्न पायदान पर स्थापित करना चाहा !

राम को अहीरों का हत्यारा वर्णित करने के मूल मे पुरोहित समाज का यही दुरुदेश्य रहा है ।

 ताकि इन पर सत्य का आवरण चढ़ा कर अपनी काल्पनिक बातों को सत्य व प्रभावोत्पादक बनाया जा सके ।

👇अब आप ही बताओ, केवल निर्जीव जड़ समु्द्र के कहने पर त्रेता युग में राम अहीरों को मारने के लिऐ अपना राम-वाण  अहीरों के "द्रुमकुल्य" देश पर चला देते हैं, लेकिन अहीरों का संहार करने में रामवाण भी निष्फल हो जाता है।                          फिर भी राम मन्दिर बनाने के लिए अहीर तो करें अपना बलिदान और मन्दिरों के रूप में धर्म की दुकान चलाऐं पाखण्डी, कामी और धूर्त ब्राह्मण। दान दक्षिणा हम चढ़ाऐं और और ब्राह्मण उससे ऐशो-आराम करें।                          इससे बड़ी मूर्खता और क्या हो सकती है ?  

(द्रुमकुल्य) 

द्रुमकुल्य भारत और श्रीलंका के बीच के समुद्र के उत्तर की ओर स्थित एक देश था।             रामायण काल में यहाँ आभीरों का निवास था।

रामायण में  उल्लेख है कि 

समुद्र की प्रार्थना पर श्रीराम ने अपने चढ़ाए हुए बाण को, जिससे वह समुद्र को दंडित करना चाहते थे, द्रुमकुल्य की ओर फेंक दिया था।     जिस स्थान पर वह बाण गिरा था, वहाँ समुद्र सूख गया और मरुस्थल बन गया, किन्तु यह स्थान राम के वरदान से पुन: हरा-भरा हो गया-


'उत्तरेणावकाशोऽस्ति कश्चित् पुण्यतरो मम, द्रुमकुल्य इतिख्याता लोके ख्यातो यथा भवान्। उग्रदर्शनकर्माणां बहवस्तत्र दस्यव:, आभारप्रमुखा: पापा: पिबन्ति सलिलं मम।        तैर्न तत्त्स्पर्शन पापं सहेय पाकर्मिभि:, अमोघ: क्रियता राम अयं तत्र शरोत्तम:।                       तेन तन्मरुकान्तारं पृथिव्या किल विश्रुतम्, निपातित: शरो यत्र बज्राशिनसमप्रभ:।

 विख्यात त्रिषु लोकेषु मरुकान्तारमेक्च, शोषयित्वात् तं कुक्षि रामो दशरथात्मज:।   

वर तस्मै ददौविद्वान् मखेऽमरविक्रम:, पशव्यश्चाल्परोगश्च फलमूलरसायुत:,           बहुस्नेहो बहुक्षीर: सुगंधिर्विविधौषधि:

अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड में भी द्रुमकुल्य का उल्लेख है-              'रामोत्तरप्रदेशे तु द्रुमकुल्य इति श्रुत:'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 455 | 

वाल्मीकि रामायण, युद्ध काण्ड 22, 29-30-31-33-37-38. 

अध्यात्म रामायण, युद्ध काण्ड 3, 81

राम नाम को आधार पर जिस पकार भगवाधारी गैंग एक उग्रवाद को अंजाम दे रहा है ।          जातिवाद का उन्माद और दंगा-फसाद फैला रहा है । यह भी सर्वविदित है अभी अयोध्या में "राम मन्दिर ट्रस्ट में रूढ़िवादी ब्राह्मण समाज के परामर्श स्वरूप किसी भी यादव को संरक्षक सदस्य मनोनीत नहीं किया गया।  

और राम मन्दिर ट्रस्ट का चन्दा-घोटाला भी अभी प्रकाशन में आ गया है । 

यदि राम ने अपनी गर्भ वती पत्नी को किसी रजत के कहने मात्र से भयंकर जंगल में त्याग दिया या सम्भूक नामक निम्न जाति के व्यक्ति को तपस्या करने से रोकते हुए बोध कर दिया तो फिर राम का भगवान होना भी सन्दिग्ध और अमान्य ही है । 

 

-ऐसे राम को हम नहीं मानते भले ही कोई लाख कुतर्क पेश करे उनके निर्दोषीकरण के लिए ।


"राम-नाम का अभिवादन के रूप में उत्तरभारतीयों पर आरोपण अकबर के समय में हुआ था । मुग़ल सम्राट सलीमजादे का विवाह सबन्ध स्थापित होने पर मुगल बादशाह अकबर ने आमेर नाम का एक नया राज्य बनाकर राजा "भारमल" को सौप दिया वहीं आमेर- राज्य का राज कवि गोस्वामी तुलसीदास  को मनोनीत किया  गया। 

आमेर का राजा ख़ुद को श्री राम का वंशज मानते थे इसलिये राजा "भारमल" के कहने पर तुलसीदास ने रामचरितमानस नामक ग्रन्थ अवधी बोली में लिखा था ।


एक मर्तबा अकबर ख्वाजा चिश्ती की दरगाह पर मन्नत माँगने व्रजभूमि से होते हुए अजमेर जा रहा था साथ में तुलसीदास भी थे यहाँ चारों तरफ यादवो_के_इष्टदेव भगवान श्री_कृष्ण की मंदिरों में पूजा अर्चना भजन कीर्तन का कृष्ण- नाद सुन और वहाँ कि रौनक देख कर तुलसीदास ने श्री कृष्ण पर कटाक्ष किया ।

" व्रजभूमि के पेड़ पौधे का पत्ता पत्ता भी राधे -कृष्ण राधे- कृष्ण का नाम जप रहें है हेैं।

 तुलसीदास इस भूमि पर राम से क्यों बेर किया जा रहा है तभी अकबर ने एक अध्यादेश जारी कर जन अभिवादन  में "जय_श्री_कृष्ण की जगह राम राम की " परम्परा लागू कर दी और आज्ञा का उल्लंघन करने पर कठोर दंड की जोगवाई की सजा के डर के चलते लोगो ने जय श्री कृष्ण की जगह राम- राम परम्परा को अपना लिया और जो कालान्तर में समाज पर रूढ़ होगयी। 


शिष्टाचार में जय श्री कृष्ण बोलना शुरू करे ,जैसे गुजरात मे आपस मे आहिर लोग जय मोरलीधर जरूर बोलते है। भार वाट भी जोकि अहीरों की एक पिछड़ी शाखा है ।                              अपने पारस्परिक अभिवादन में "जय मुरलीधर" का ही उच्चारण करती है।    
और अन्य जातियों भी आहिरों से बात करने मिलने से पहले जय मोरलीधर अवश्य बोलते है 

बोलों मेरे साथ जय श्री कृष्ण  जय मोरलीधर

"जय मुरलीधर - राधे- राधे !



2 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान में दृष्टिगत साक्ष्यों के आधार पर अहीर शूद्र है......जैसे इतिहास पुराण मेरे सामने नहीं है......समाज सामने है, जिसमे यादव ना तो ब्राम्हण (मिश्रा, शुक्ला,तिवारी,दूबे आदि )में आता है।
    यादव क्षत्रिय(राजपूत,ठाकुर, चंदेल,सोमबंसी, वाघेला,आदि) में नहीं आता है।
    यादव वैश्य(केसरवानी, गुप्ता,जायसवाल, अग्रवाल आदि) में नही आता ।
    अंत मे बचा सिर्फ शूद्र (SHOODRA) तो यादव या अहीर सिर्फ शूद्र में ही आ सकता है..... सूर्यवंशी और चंद्रवंशी जैसी बातें अपने आपमें हास्यस्पद है क्या कहीं सूर्य और चंद्र भी बच्चे देते हैं जो उनका वंश चले???????!!!!!!
    आंख कान खुला रखो सब सामने दिख रहा है...शूद्रों का सबसे बड़ा लक्षण अपने सरनेम में ही शादी करने का वो अहीरों में स्पष्ट है और दूसरा दिहाड़ी लेबर का कार्य इलाहाबाद के मेरे खुद के मकान में आज तक जो दिहाड़ी कार्य करने वाले लेबर किराएदार रहे है उनमें केवट,कुर्मी, कोइरी, अहीर,चमार,लोहार,कोहार,धोबी, धरिकार, पाल, भील, कोल,गोंड, बैगा आदि रहे है और रह भी रहे है.....अंत मे यदि अहीर क्षत्रिय है तो वर्तमान में तथाकथित क्षत्रिय समझे जाने वाले वाघेला, राणा, राजपूत, सोमवंशी, चंदेल, परमार,जडेजा, चौहान,आदि में अहीर लोगों की शादियां क्यों नहीं होती हैं??????अहीरों की चर्चा जानवर चराने वालों से चलती है जानवर चराने वाले लोग क्षत्रिय नहीं होते .... क्षत्रिय लोग राज करते थे गोबर नहीं उठाते थे....यदि जो भी अहीर होगा ईमानदारी से विचार करेगा तो अपने आप को शूद्रों में ही पाएगा....

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