शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

विचार प्रवाह--


"लव , तलब और मतलब ये दुनियाँ के उशूलात है ।

जबानीऔर जोश के सहचर जिन्दगी़ के जज्बात है ।

चोला ,भगवा लेकर भी       मन की पुरानी हालात है 

भाँग, चिलम और धतूरा        तो कहीं बाबाओं के दारु हाथ है !

सामर्थ्य के अनुरूप जिन्दा़ रहने के लिए परिस्थितियों से समझौता करना ही चाहिए परिस्थितियाँ प्रकृति निर्मित हैं।

 परन्तु स्वाभिमान से कभी समझौता नही करना चाहिए स्वाभिमान स्वाबलम्बन और स्वतन्त्रता का प्रहरी है 

'विद्वान' ! श्रोता की मनोस्थिति जान कर उसके अनुरूप ही उसकी वर्तमान कालिक समस्या के समाधान हेतु बोलता है ।

अन्यथा अपनी ही बात दूसरों को उनके न चाहते हुए भी थोपने वाले विक्षिप्त और घमण्डी हैं

प्रिय निशा तुम मदिरा की प्याली हो !

गोैरी हो खूब सूरत हो .ज्ञान से थोड़ी खाली हो !

अपने सौन्दर्य अवलोकन से .खलबली मचाने बाली हो !

सब मुरीद हैं तुम्हारे हुश्न के ही .

तुम मूरत हुश्न की निराली हो !!

       मैं योगेश कुमार रोहि आपके सौन्दर्य की प्रशंसा करता हूँ !! केवल निश्पक्ष दृष्टि कोण से .यदि मैने मिथ्या कथन किया हो ! तो क्षमा प्रार्थी हूँ !!

ये बात हमने किससे कही थी हमे हें ध्यान नहीं !




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