सोमवार, 6 मई 2019

अहीरों के इतिहास का सच ! नवीनत्तम संस्करण

अहीरों को ब्राह्मण समाज ने उनके ही यदु वंश में कितना समायोजन और कितना सम्मान दिया है ?
यह हम्हें अच्छी तरह से ज्ञात है !

---मैं भी असली घोषी अहीर जन समुदाय से  हूँ ।
मैंने भी उन रुढ़ि वादी ब्राह्मणों और राजपूत लोगों के द्वारा जन-जाति गत अपमान कितनी वार सहा है ?
वह मुझे सब याद है; इन लोगों ने हम्हें समाज में कभी भी सम्मान जनक स्थिति में नहीं रहने दिया-

--ये ही लोग स्वयं को क्षत्रिय ,ठाकुर तथा ब्राह्मण कह कर समाज में उच्च उच्च रूप में प्रतिष्ठित करते हैं ।
इनके मिथ्या अहं-तुष्टिकरण का कोई मानवीय महत्व नहीं ।

यद्यपि जाटव या चमार समाज यदि हिन्दू समाज के स्वयंभू ठेकेदारों से आज ख़फा हैं  तो उन्हें भी समाज के इन्हीं लोगों से कोई  कष्ट रहा होगा ? ।

क्यों कि बिना क्रिया के कोई प्रतिक्रिया नहीं होती"

और यह छुपा हुआ भी नहीं है इन लोगों के साथ जुल्म करने वाले  कोई और नहीं यही स्वयंभू समाज के ठेकेदार ब्राह्मण और राजपूत  ( नकली क्षत्रिय) समाज के लोग ही रहे हैं ।
प्राचीनत्तम भारत का इतिहास देख लो पुराणों महाभारत व वाल्मीकि रामायण आदि में ही नहीं सम्पूर्ण स्मृतियों में विधान ही शूद्रो के नियमन को लेकर बनाए गये ।
हर जुल्म का भी अन्त होता है ।
  और 'वह भी ज्वलन्त होता है ।
और जुल्म की प्रति क्रिया तो होगी ही !

और हमारी उन लोगों से कोई शिकायय भी नहीं !
क्यों वे लोग जुल्म सहने की सरहदें पार सर चुके हैं

और ---जो लोग आज यह कहरहे हैं कि
अहीर चोर-लुटेरे होते हैं !
उन्हें अहीरों को चोर नहीं डकैट कहना चाहिए
तब तो अहीरों का सम्मान भी है ।
क्यों डकैत विद्रोही या बागी होते थे ।
जमीदार और बेईमानों के खिलाफ!

चोर कहकर अहीरों का अपमान करने की असफल चेष्टा  हैं ।

अब कुछ कुत्ते भौकने लगे हैं
अहीरों की सामाजिक गतिविधियों में उच्चता को देखकर कि अहीरों ने यादव टाइटल कुछ समय पहले से लगाना प्रारम्भ कर दिया है ।
परन्तु अहीर विशेषण जातिगत नहीं अपितु शौर्य का वाचक है ।
और यादव इनका वंश है ।
भारतीय पुरोहितों का एक षड्यन्त्र रहा कि अन्य जन-जातियों को केवल व्यवसाय परक विशेषण से सम्बोधित किया और स्वयं को वंशगत विशेषण से
कालान्तरण लोग अपने वंशगत विशेषण को भूल ही गये ।

वैसे प्राचीनत्तम विश्व-इतिहास में ऐबर नामक सैमेटिक संस्कृतियों में कोई प्रागैतिहासिक पुरुष हुए हैं ।
हिब्रू बाइबिल जबूर ,तोराह आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त सुमेरियन पुरा-कथाओं में भी ऐबर नामक पूर्व पुरुष का वर्णन है।

उसी वंश में यादव हुए
पश्चिमीय एशिया में यादवों को यहूदियों से तादात्म्य-एकरूपता की जाती है ।
हिब्रू संस्कृतियों यहुदह् को यदु कहा गया है ।

अज्ञानता जनित रोग से पीडित लोग भौंका करते हैं कि
अहीर अपने को यादव लिखने लगे और कहाकरते हैं

कि अहीरों ने यादव शब्द जादौन ठाकुरों की उपाधि को चुरा लिया है।

अहीर तो ग्वाला अथवा गोप होते हैं ।

तो इतिहास जान लो मूर्खो !
भौकने से पहले

जादौं चारण बन्जारों का एक कबीला है जिसे राजस्थान में देखा जाता है ।
जैसलमेर और अजमेर में ये लोग ड्रम बजाने वाले  हैं ।
यही राजपूतों के रूप में प्रतिष्ठित हो जाते है ।
दल असल ये लोग अफगानिस्तान के जादौन पठानों से विकट का सम्बन्ध रखते हैं।
परन्तु प्राचीन भारत में इनको नीच जाति कहा ।

करौली रियासत के सभी यदुवंशी शासक पाल उपाधि लगाते थे !
और पाल गोपाल अहीरों की सदीयों पूर्व की उपाधि है

करौली के शासक ठाकुर या सिंह अपने नाम के बाद नहीं लगाते थे ।।
क्यों ठक्कुर / ठाकुर शब्द भारतीय भाषाओं में 977 ईस्वी में तुर्को के माध्यम से प्रवेश करता है ।
और सौलहवीं सदी तक खूब समृद्ध हो जाता है।
तुर्की आरमेेनियन और फारसी भाषाओं में ताक्वुर tekvur उपाधि स्वायत्त अर्द्ध स्वायत्त सामन्तों की थी ।

हिन्दी के प्राचीनत्तम कोशों में जादौं एक नीच जाति है ।

तो जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है ।
मुसलमान पठानों में मनिहार--बन्जारों का ही रूपान्तरण है ।
क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर ---जो 16 वीं सदी की संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द रूप में विकसित हुआ संस्कृत और फारसी बहिन बहिन होने से जदौन लोगों की बोली (क्षेत्रिय भाषा) डिंगल और पिंगल प्रभाव वाली राजस्थानी व्रज करौली क्षेत्रों की रही है ।

और जादौन पठानों की भाषा पश्तो , पहलवी पर -पूरी प्रभाव है ।
जादौन पठान यहूदीयों की शाखा होने से यदुवंशी तो हैं ही ।
परन्तु अहीरों को ये अपना भाई स्वीकार नहीं करते हैं । और कहते हैं कि हमारा गोपों से सम्बन्ध नहीं है ।
परन्तु मैं केवल अहीरों को ही यादव मानता हूँ और यादव सदीयों से गोपालन करने वाले रहे हैं ।

इसी लिए गोप विशेषण केवल यादवों को रूढ़ हो गया । हिन्दू समाज की ब्राह्मण वर्ण-व्यवस्था में अहीरों को क्षत्रिय कभी माना ही नहीं गया ! निश्चित रूप में यादवों के इतिहास को विकृत करने में हिन्दू धर्म के उन ठेकेदारों का हाथ है ।
---जो अहीरों को हमेशा हीन बना रहना चाहते हैं । और अहीरों ने भी इनकी दासता स्वीकार न करके दस्यु अथवा विद्रोही बनना स्वीकार किया !

आइए देखें--- यादवों को कैसे वीर अथवा यौद्धा जन जाति से शूद्र बनाया गया है ।

एक वार सभी अहीर वीर इस सन्देश को ध्यान पूर्वक पढ़ें! और उसके वाद सुझावात्मक प्रति क्रिया दें !
आपका भाई यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र०

अब विचार विश्लेषण करते हैं कि ब्राह्मण समाज तथा ख़ुद को असली यदुवंशी क्षत्रिय कहने वाले जादौन पठान तथा अन्य राज-पूत अहीरों को यादव नहीं मानते हैं और उन्हें चोर , लुटेरा मानकर गालियाँ देत रहते हैं ।
और कहते हैं कि अहीरों अथवा गोपों ने प्रभास क्षेत्र में- यदुवंशी स्त्रीयों सहित अर्जुन को लूट लिया था ।
इस लिए ये यदुवंशी नहीं हैं ।

अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि गोपों ने प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपिकाओं सहित क्यों लूट लिया था ? इसी प्रश्न का पौराणिक सन्दर्भों पर आधारित उत्तर प्रस्तुत करते हैं ! सभी यादव बन्धु इस लेख को पूर्ण मनोयोग से पढें _______________________________________________
" जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा ;
कृष्ण के पास युद्ध में सहायता माँगने के लिए गये तो ; श्री कृष्ण ने उन्हें प्रस्तावित किया कि आप दौनों मेरे लिए समान रूप में माननीय हो !

आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए :- एक ओर तो मेरी गोपों (यादवों )की नारायणी सेना होगी !

महाभारत वनपर्व मार्कण्डेय समस्यापर्व पृष्ठ 1489

गोप नारायणी सेना वो यौद्धा थे जिनकी संख्या उस समय दस करोड़ थी ।👇
जब दुर्योधन और अर्जुन कृष्ण के पास सहायता के लिए जाते हैं तो कृष्ण स्वयं को अर्जुन के लिए और अपने नारायणी सेना जिसकी संख्या 10 करोड़ थी ! उसे दुर्योधन को  युद्ध सहायता के लिए देते हैं ।

कृष्ण दुर्योधन से कहते हैं कि नारायणी सेना के गोप (आभीर)सबके सब मेरे जैसे ही बलिष्ठ शरीर वाले हैं।

कृष्ण ने ऐसा दुर्योधन से कहा उन सब की नारायणी संज्ञा है वह सभी युद्ध में बैठकर लोहा लेने वाले हैं ।17

एक और तो वे  10 करोड़ सैनिक युद्ध के लिए उद्धत रहेंगे और दूसरी ओर से मैं अकेला  रहूंगा ।

परंतु मैं ना तो युद्ध करूंगा और ना कोई शस्त्र ही धारण करूंगा ।18
हे अर्जुन इन दोनों में से कोई एक वस्तु जो तुम्हारे मन को अधिक रुचिकर लगे ! तुम पहले उसे चुनो क्योंकि धर्म के अनुसार पहले तुम ही अपनी मनचाही वस्तु चुनने के अधिकारी हो ।19👇

मत्संहननतुल्यानां गोपानां अर्बुदं महत् ।
नारायणा इतिहास ख्याता : सर्वे संग्रामयोधिन:।18

ते वा युधि दुराधर्षा भवन्त्वेकस्य सैनिका:।
अयुध्यमान: संग्रामे न्यस्तशस्त्रो८हमेकत:।19।

आभ्यान्यतरं पार्थ यत् ते हृद्यतरं मतम्।
तद् वृणीतां भवानग्रे प्रवार्यस्त्वं धर्मत:।20।
भागवत पुराण में वर्णित अर्जुुन को परास्त करने वाले यही गोप थे ।👇

आदिपर्व प्रथमो८ध्याय ( अनुक्रमणिका पर्व)
यद्यपि आभीर शब्द गोपोंं का ही विशेषण है
परन्तु महाभारत में अहीरों को गोप शब्द से भी पृथक करने की दश्चेष्टा की गयी है।

एक स्थान पर सरस्वती नदी के नष्ट या अदृश्य
होने का कारण अहीरों और शूद्रों को पता दिया है ।

महाभारत में परस्पर विरोधी व भिन्न-भिन्न बातें होना सिद्ध करता है कि यह अनेक पुरोहितों की रचना है ।
गणेश देवता को इसका लेखक घोषित कर दिया गया।

                       वैशम्पायन उवाच 👇
ततोविनशनं राजन् जगामाथ हलायुध:
शूद्राभीरान् (शूद्र-आभीरान्) प्रति द्वेषाद् यत्र नष्टा सरस्वती ।1।
तस्मात् तु ऋषयो नित्यं प्राहुर्विनशनेति च।

महाभारत शल्यपर्व के अन्तर्गत गदापर्व पृष्ठ संख्या 4233,37वाँ अध्याय ।

वैशम्पायन जी कहते हैं हे राजन् ! उद्पानतीर्थ से चलकर हलधारी बलराम विनशन तीर्थ आये।

जहाँ शूद्रों और अहीरों के प्रति द्वेष होने से सरस्वती नदी वहाँ से चली गयी ।
इसलिए ऋषिगण उसे विनशन तीर्थ कहते हैं
ब्राह्मणों ने कल्पना की कि गायत्री देवी जो ब्रह्मा की पत्नी है आभीरों की कन्या है 'वह सरस्वती को सहन नहीं हुआ और 'वह अहीरों से द्वेष करते हुए वहाँ से अदृश्य हो गयी ।
पद्म-पुराण सृष्टि खण्ड में गायत्री देवी का वर्णन है

👊👊👊👊👊
गोप नारायणी सेना वो यौद्धा थे जिनकी संख्या उस समय दस करोड़ थी ।👇
जब दुर्योधन और अर्जुन कृष्ण के पास सहायता के लिए जाते हैं तो कृष्ण स्वयं को अर्जुन के लिए और अपने नारायणी सेना जिसकी संख्या 10 करोड़ थी ! उसे दुर्योधन को  युद्ध सहायता के लिए देते हैं ।

कृष्ण दुर्योधन से कहते हैं कि नारायणी सेना के गोप (आभीर)सबके सब मेरे जैसे ही बलिष्ठ शरीर वाले हैं।

कृष्ण ने ऐसा दुर्योधन से कहा उन सब की नारायणी संज्ञा है वह सभी युद्ध में बैठकर लोहा लेने वाले हैं ।17

एक और तो वे  10 करोड़ सैनिक युद्ध के लिए उद्धत रहेंगे और दूसरी ओर से मैं अकेला  रहूंगा ।

परंतु मैं ना तो युद्ध करूंगा और ना कोई शस्त्र ही धारण करूंगा ।18
हे अर्जुन इन दोनों में से कोई एक वस्तु जो तुम्हारे मन को अधिक रुचिकर लगे ! तुम पहले उसे चुनो क्योंकि धर्म के अनुसार पहले तुम ही अपनी मनचाही वस्तु चुनने के अधिकारी हो ।19👇

और दूसरी और ---मैं स्वयं नि:शस्त्र रहुँगा ! दौनों विकल्पों में जो आपको अच्छा लगे उसका चयन कर लो ! " तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप - सेना को चयन किया !

और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को ! गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही इसमें कोई सन्देह नहीं !
गोप निर्भाक होने से ही अभीर कहलाते थे ।

अ = नहीं भीर: = भीरु अथवा कायर अर्थात् अहीर या अभीर वह है ---जो कायर न हो इसी का अण् प्रत्यय करने पर आभीर इसी लिए दुर्योधन ने उनका ही चुनाव किया !
और समस्त यादव यौद्धा तो अर्जुन से तो पहले से ही क्रुद्ध थे !
क्योंकि यादवों की वीरता को धता बता कर अर्जुन ने धोखे से बलराम तथा कृष्ण की बहिन सुभद्रा का अपहरण कर लिया था " कहते हैं कि इस अपहरण के लिए कृष्ण की सहमति थी ... परन्तु ये तो यादवों अथवा समस्त गोपों के पौरुष को ललकारना ही था और गोप अथवा यादव इसे यदु वंश का अपमान समझ रहे थे ।
बलराम भी इस अपमान जनक घटना से अर्जुन पर कुपित थे परन्तु कृष्ण के अनुनय-विनय करने पर शान्त होगये।
परन्तु गोप अति क्रोधित थे ।
यही कारण था कि ; गोपों (अहीरों)ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।

क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे
और कृष्ण का देहावसान हो गया था और बलदाऊ भी नहीं रहे थे ।

फिर तो इन यदुवंशी गोपों ने अर्जुन पर तीव्रता से आक्रमण कर तीर कमानों से उसे परास्त कर दिया । बहुत से यादव यौद्धा तो पहले ही आपस में लड़ कर मर गये थे ।
ये केवल कृष्ण से सम्बद्ध थे ।

गोपों ने केवल अर्जुन से ही युद्ध किया था ।
नकि कृष्ण की रानियों अथवा यदुवंशी गोपिकाओं के रूप में वधूओं को नहीं लूटा था केवल यदुवंश की सभी स्त्रीयों को अर्जुन के साथ न जाने के लिये कहा !

परन्तु ---जो साथ चलने के लिए सहमत नहीं हुईं थी उन्हें प्रताडित कर चलने के लिए कहा !
बहुत सी गोपिकाऐं स्वेैच्छिक रूप से गोपों के साथ वृन्दावन तथा हरियाणा में चलीं गयी ।

और यादव अथवा अहीर स्वयं ही ईश्वरीय शक्तियों (देवों) के अंश थे ;
तब प्रभास क्षेत्र में अर्जुन इनका मुकाबला कैसे कल सकता था ?

क्योंकि अहीरों का मुकाबला तो त्रेता युग में राम भी नहीं कर पाये थे।
पाखण्डी ब्राह्मणों ने वाल्मीकि-रामायण के युद्ध काण्ड के 22 में सर्ग में राम के द्वारा समु्द्र के रहने मात्र से उत्तर में स्थित द्रुमकुल्य देश में अमोघ वाणों से मार दिया था ।

परन्तु अहीरों को राम फिर भी नहीं मार पाये वास्तविक रूप में ये सारी काल्पनिक मनगढ़न्त कथाऐं मात्र हैं ।

यद्यपि अवान्तर काल में बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन ही है ---जो अहीरों को हेय सिद्ध करने के लिए जोड़ा गया ।

एक वार तुलसी जैसे रूढ़ वादी सन्त कवि से भी नहीं रहा गया तो कह दिया " निर्मल मन अहीर विश्वासा " यादव किसी के साथ विश्वास घात कभी नहीं करते थे ।

क्यों कि यह क्षात्र-धर्म के विरुद्ध भी था ।
गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ; एेसा वर्णन है । महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना वर्णित की गयी है । निश्चित रूप से वह मूल भाव से मेल नहीं खाती है । क्योंकि यहाँ अर्जुन और यादवों (गोपों) के युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन नहीं है ; और अहीरों को अशुभ-दर्शी तथा पापकर्म करनेवाला, लोभी के रूप में वर्णन करना महाभारत कार की अहीरों के प्रति विकृतिपूर्ण अभिव्यक्ति मात्र है ।

इसी प्रकार का वर्णन विष्णु पुराण आदि में भी है । इतना ही नहीं भागवतपुराण में तो पुराण कार ने आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा गोपों को अर्जुन सहित गोपिकाओं को लूटने वाला बता गया है । और गोपों को दुष्ट विशेषण से अभिव्यक्ति किया है । अहीरों अथवा गोपों ने अर्जुन सहित कृष्ण की 16000 गोपिकाओं के रूप में पत्नियों को लूटा था अथवा नहीं एेसा वर्णन मात्र कल्पना रञ्जित ही है ।

निश्चित रूप से गोपों द्वारा अर्जुन को परास्त करने की घटना तो रही होगी ; परन्तु स्त्रीयाँ लूटने और धन लूटने की घटना काल्पनिक व मनगढ़न्त ही हैं ।

कुछ मूर्ख रूढ़ि वादी ब्राह्मणों ने यादवों के प्रति द्वेष स्वरूप गलत रूप में उन्हें प्रस्तुत करने के लिए ही बहुत सी काल्पनिक घटनाओं का समायोजन उनके साथ कर दिया है। क्योंकि अर्जुन और यादवों (गोपों) के मध्य पूर्व -युद्ध की पृष्ठ-भूमि को वर्णित ही नहीं किया है । यादवों की किसी कन्या का अपहरण उस समय उनकी प्रतिष्ठा का विषय था ।

जैसा कि हर स्वाभिमानी समाज का होता भी है । अब गोपों ने भी एक स्त्री के अप हरण में अर्जुन के साथ चलने वाली हजारों स्त्रीयों का अपहरण किया ! और वे स्त्रीयाँ वृष्णि वंशी गोपों की पत्नी रूप में गोपिकाऐं ही थीं । तब भी आश्चर्य क्या ?
परन्तु इनकी घटनाओं के विस्तार में कल्पना मात्र ही है । क्योंकि गोप गोपिकाओं का अपहरण क्यों करने लगे ? ________________________________________
और इसी लिए कुछ मूर्खों को अहीरों के विषय में यह कहने का अवसर मिल जाता है कि " अहीरों ने गोपिकाओं सहित प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
परन्तु जिसे द्वेष वश कुछ अर्जुन और नाराणी सेना के गोपों की यौद्धिक घटनाओं को जो दुर्योधन की पक्ष लेने वाली थी ।

रूढ़ि वादीयों ने गलत रूप में प्रस्तुति करण किया है । कि जैसे सत्य में ही अहीरों ने अर्जुन सहित यदुवंशी गोपिकाओं को लूट लिया हो!। ________________________________________________

और राजपूत इस बात को अहीरों (गोपों) के यादव न होने के रूप में प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं । और मूर्ख स्वयं को यदुवंशी होने की दलील देते हैं। महाभारत के विक्षिप्त (नकली )मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय का वही श्लोक यह है और जिसका प्रस्तुती करण ही गलत है । _________________________________________________

ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस ।
आभीरा मन्त्रामासु समेत्यशुभ दर्शना ।। 47।

अर्थात् उसके बाद उन सब पाप कर्म करने वाले लोभ से युक्त अशुभ दर्शन अहीरों ने अापस में सलाह करके एकत्रित होकर वृष्णि वंशीयों गोपों की स्त्रीयों सहित अर्जुन को परास्त कर लूट लिया ।।
महाभारत मूसल पर्व का अष्टम् अध्याय का यह 47 श्लोक है।
निश्चित रूप से यहाँ पर युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन ही नहीं है ।
और इसी बात को बारहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ -भागवत पुराण के प्रथम अध्याय स्कन्ध एक में श्लोक संख्या 20 में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना का वर्णन किया गया है । इसे भी देखें--- ________________________________________

"सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन
सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।।

अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् ।
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०। __________________________________________

हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा प्रिय मित्र -नहीं ,नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ ।
कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था ।
परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया। और मैं अर्जुन कृष्ण की गोपिकाओं अथवा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका! (श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय एक श्लोक संख्या २०) पृष्ठ संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण देखें- महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है। कि गोप शब्द ही अहीरों का विशेषण है।
हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है ।
यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से आज तक अवशिष्ट रूप में मिलती है ।

महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को भी गोप ही कहा गया है।
और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर)के घर में बताया है ।
प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है। यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है । _______________________________________

वसुदेवदेवक्यौ च कश्यपादिती।
तौच वरुणस्य गोहरणात् ब्रह्मणः
शापेन गोपालत्वमापतुः।

यथाह (हरिवंश पुराण :- ५६ अध्याय ) "
इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१

येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२

द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण:
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३

ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४

वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।

तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।

देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७। सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति। ___________________________________________ गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें--- अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय।
उपर्युक्त संस्कृत भाषा का अनुवादित रूप इस प्रकार है :-हे विष्णु !
महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा ।२१।
कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया है ।
उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२।

तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३। इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।

हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं।
मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं। कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं २४-२७। (उद्धृत सन्दर्भ --) यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित--- पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण)
अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया है । ______________________________________________
गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९।

अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की रक्षा करनें में समर्थ है । वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) क्यों हुए ? अर्थात् अहीरों के घर में जन्म क्यों ग्रहण किया ? ।९।
हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण) सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य . तथा गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण की कृति में भी वराहोत्पत्ति वर्णन " नामक पाठ चालीसवाँ अध्याय में है ।

और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सत्ता गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या हैं ।
और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है ।

देखें--- उसके लिए निम्न श्लोकों में - और अनेक भारतीय पुराणों में जैसे अग्नि- पुराण,पद्मपुराण आदि में अहीरों को देवताओं के रूप में अवतरित किया है ; और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री को भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या के रूप में भी वर्णन किया गया है। वहाँ भी अहीर (आभीर) तथा गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची रूप में वर्णित हैं।
ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी गायत्री अहीर ( गोप ) की कन्या हैं ।
और ज्ञान के अधिष्ठाता कृष्ण भी अहीर( गोप) वसुदेव के पुत्र " देखें प्रमाणों के दायरे में --- पुराणों के ही आधार पर --- _______________________________________________
पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड के अध्याय 16 में गायत्री को नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर)की कन्या के रूप में वर्णित किया गया है । _______________________________________________

" स्त्रियो दृष्टास्तु यास्त्व , सर्वास्ता: सपरिग्रहा : आभीरः कन्या रूपाद्या शुभास्यां चारू लोचना ।७। न देवी न च गन्धर्वीं , नासुरी न च पन्नगी । वन चास्ति तादृशी कन्या , यादृशी सा वराँगना ।८। ______________________________________________

अर्थात् जब इन्द्र ने पृथ्वी पर जाकर देखा तो वे पृथ्वी पर कोई सुन्दर और शुद्ध कन्या न पा सके परन्तु एक नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या गायत्री को सर्वांग सुन्दर और शुद्ध देखकर आश्चर्य चकित रह गये ।७। उसके समान सुन्दर कोई देवी न कोई गन्धर्वी न सुर और न असुर की स्त्री ही थी और नाहीं कोई पन्नगी (नाग कन्या ) ही थी। इन्द्र ने तब उस कन्या गायत्री से पूछा कि तुम कौन हो ? और कहाँ से आयी हो ? और किस की पुत्री हो ८। _________________________________________________
गोप कन्यां च तां दृष्टवा , गौरवर्ण महाद्युति:।
एवं चिन्ता पराधीन ,यावत् सा गोप कन्यका ।।९।

पद्म पुराण सृष्टि खण्ड अध्याय १६ १८२ श्लोक में इन्द्र ने कहा कि तुम बड़ी रूप वती हो , गौरवर्ण वाली महाद्युति से युक्त हो इस प्रकार की गौर वर्ण महातेजस्वी कन्या को देखकर इन्द्र भी चकित रह गया कि यह गोप कन्या इतनी सुन्दर है !

यहाँ विचारणीय तथ्य यह भी है कि पहले आभीर-कन्या शब्द गायत्री के लिए आया है फिर गोप कन्या शब्द ।

अत: अहीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय हैं । जो कि यदुवंश का वृत्ति ( व्यवहार मूलक ) विशेषण है  क्योंकि यादव प्रारम्भिक काल से ही गोपालन वृत्ति ( कार्य) से सम्बद्ध रहे है ।
आगे के अध्याय १७ के ४८३ में इन्द्र ने कहा कि यह ________________________________________________
गोप कन्या पराधीन चिन्ता से व्याकुल है ।९।
देवी चैव महाभागा , गायत्री नामत: प्रभु ।
गान्धर्वेण विवाहेन ,विकल्प मा कथाश्चिरम्।१०। १८४ श्लोक में विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभो इस कन्या का नाम गायत्री है ।
अब यहाँ भी देखें--- देवीभागवत पुराण :--१०/१/२२ में भी स्पष्टत: गायत्री आभीर अथवा गोपों की कन्या है ।
और गोपों (अहीरों) को देवीभागवतपुराण तथा महाभारत , हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है । _________________________________________________
" अंशेन त्वं पृथिव्या वै , प्राप्य जन्म यदो:कुले । भार्याभ्याँश संयुतस्तत्र , गोपालत्वं करिष्यसि ।१४। अर्थात् अपने अंश से तुम पृथ्वी पर गोप बनकर यादव कुल में जन्म ले !और अपनी भार्य वस्तुत आभीर और गोप शब्द परस्पर पर्याय वाची हैं पद्म पुराण में पहले आभीर- कन्या शब्द आया है फिर गोप -कन्या भी गायत्री के लिए .. तथा अग्नि पुराण मे भी आभीरों (गोपों) की कन्या गायत्री को कहा है । _______________________________________________
आभीरा स्तच्च कुर्वन्ति तत् किमेतत्त्वया कृतम्
अवश्यं यदि ते कार्यं भार्यया परया मखे ।४०। एतत्पुनर्महादुःखं यद् आभीरा विगर्दिता
वंशे वनचराणां च स्ववोडा बहुभर्तृका ।५४।
आभीर इति सपत्नीति प्रोक्तवंत्यः हर्षिताः
(इति श्रीवह्निपुराणे (अग्नि पुराणे )ना नान्दीमुखोत्पत्तौ ब्रह्मयज्ञ समारंभे प्रथमोदिवसो नाम षोडशोऽध्यायः संपूर्णः)
अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं।
यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है । और सुनो ! गो-पालन यदु वंश की परम्परागत वृत्ति ( कार्य ) होने से ही भारतीय इतिहास में यादवों को गोप ( गो- पालन करने वाला ) कहा गया है ।

वैदिक काल में ही यदु को दास सम्बोधन के द्वारा असुर संस्कृति से सम्बद्ध मानकर ब्राह्मणों की अवैध वर्ण-व्यवस्था ने शूद्र श्रेणि में परिगणित किया था । तो यह दोष ब्राह्मणों का ही है ।
यदु की गोप वृत्ति को प्रमाणित करने के लिए ऋग्वेद की ये ऋचा सम्यक् रूप से प्रमाण है ।
ऋग्वेद भारतीय संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व- संस्कृतियों में प्राचीनत्तम है । ___________________________________________
" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा
यदुस्तुर्वश्च च मामहे । (ऋ०10/62/10)

अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनों दास गायों से घिरे हुए हैं ; गो-पालन शक्ति के द्वारा सौभाग्य शाली हैं हम उनका वर्णन करते हैं ।
(ऋ०10/62/10/) विशेष:- व्याकरणीय विश्लेषण - उपर्युक्त ऋचा में दासा शब्द प्रथमा विभक्ति के अन्य पुरुष का द्विवचन रूप है ।
क्योंकि वैदिक भाषा ( छान्दस् ) में प्राप्त दासा द्विवचन का रूप पाणिनीय द्वारा संस्कारित भाषा लौकिक संस्कृत में दासौ रूप में है ।
परिविषे:-परित: चारौ तरफ से व्याप्त ( घिरे हुए) स्मद्दिष्टी स्मत् दिष्टी सौभाग्य शाली अथवा अच्छे समय वाले द्विवचन रूप ।
गोपर् ईनसा सन्धि संक्रमण रूप गोपरीणसा :- गो पालन की शक्ति के द्वारा ।
गोप: ईनसा का सन्धि संक्रमण रूप हुआ गोपरीणसा जिसका अर्थ है शक्ति को द्वारा गायों का पालन करने वाला ।
अथवा गो परिणसा गायों से घिरा हुआ यदु: तुर्वसु: च :- यदु और तुर्वसु दौनो द्वन्द्व सामासिक रूप ।

मामहे :- मह् धातु का उत्तम पुरुष आत्मने पदीय बहुवचन रूप अर्थात् हम सब वर्णन करते हैं ।

अब हम इस तथ्य की विस्तृत व्याख्या करते हैं । यहाँ एक तथ्य विचारणीय है कि असुर शब्द का पर्याय वैदिक सन्दर्भों में दास शब्द है ।
दास शब्द देव संस्कृति के विरुद्ध रहने वाले दाहिस्तान Dagestan को निवासीयों का विशेषण है । ---जो ईरानी असुर संस्कृति के अनुयायी तथा अहुर-मज्दा (असुर महत्) में आस्था रखने वाले हैं ।

पुराणों में भी कहीं गोपों को क्षत्रिय कहा गया है; तो स्मृति-ग्रन्थों में उन्हीं गोपो को शूद्र रूप में वर्णित कर दिया है ।
अब निश्चित रूप से आभीर और गोप परस्पर पर्याय वाची रूप हैं।
यह शास्त्रीय पद्धति से प्रमाणित भी है । अब स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र कह कर वर्णित किया गया है। यह भी देखें--- व्यास -स्मृति )तथा सम्वर्त -स्मृति में एक स्थान पर लिखा है ।

स्मृति-ग्रन्थों की रचना काशी में में बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में लिखीं गयी ।

गोपों में हीन भावना भलने के लिए उन्हें शूद्र कन्या में क्षत्रिय से उत्पन्न कर दिया । ------------------------------------------------------------- " क्षत्रियात् शूद्र कन्यानाम् समुत्पन्नस्तु य: सुत: ।
स गोपाल इति ज्ञेयो भोज्यो विप्रैर्न संशय: ----------------------------------------------------------------- अर्थात् क्षत्रिय से शूद्र की कन्या में उत्पन्न होने वाला पुत्र गोपाल अथवा गोप होता है ।
और विप्रों के द्वारा उनके यहाँ भोजान्न होता है इसमे संशय नहीं .... फिर पाराशर स्मृति में वर्णित है कि..गोप अर्थात् अहीर शूद्र हैं । __________________________________________ वर्द्धकी नापितो गोप: आशाप: कुम्भकारक: ।
वणिक् किरात: कायस्थ: मालाकार: कुटुम्बिन:

एते चान्ये च बहव शूद्र:भिन्न स्व कर्मभि: चर्मकारो
भटो भिल्लो रजक: पुष्करो नट: वरटो मेद।

चाण्डालदास श्वपचकोलका: ।।११।।
एतेsन्त्यजा समाख्याता ये चान्ये च गवार्शना:
एषां सम्भाषणाद् स्नानंदर्शनादर्क वीक्षणम् ।।१२।। ----------------------------------------------------------------- वर्द्धकी (बढ़ई) , नाई , गोप , आशाप , कुम्हार ,वणिक् ,किरात , कायस्थ, माली , कुटुम्बिन, ये सब अपने कर्मों से भिन्न बहुत से शूद्र हैं ।
चमार ,भट, भील ,धोवी, पुष्कर, नट, वरट, मेद , चाण्डाल ,दाश,श्वपच , तथा कोल (कोरिया)ये सब अन्त्यज कहे जाते हैं ।
और अन्य जो गोभक्षक हैं वे भी अन्त्यज होते हैं । इनके साथ सम्भाषण करने पर स्नान कर सूर्य दर्शन करना चाहिए तब शुद्धि होती है । _______________________________________

अभोज्यान्ना:स्युरन्नादो यस्य य: स्यात्स तत्सम: नापितान्वयपित्रार्द्ध सीरणो दास गोपका:।।४९।।

शूद्राणामप्योषान्तु भुक्त्वाsन्न नैव दुष्यति । धर्मेणान्योन्य भोज्यान्ना द्विजास्तु विदितान्वया:।५०।।

(व्यास-स्मृति) नाई वंश परम्परा व मित्र ,अर्धसीरी ,दास ,तथा गोप ,ये सब शूद्र हैं ।
तो भी इन शूद्रों के अन्न को खाकर दूषित नहीं होते ।।
जिनके वंश का ज्ञान है ;एेसे द्विज धर्म से परस्पर में भोजन के योग्य अन्न वाले होते हैं ।५०। _____________________________________________
(व्यास- स्मृति प्रथम अध्याय श्लोक ११-१२) ------------------------------------------------------------------ स्मृतियों की रचना काशी में हुई , वर्ण-व्यवस्था का पुन: दृढ़ता से विधान पारित करने के लिए काशी के इन ब्राह्मणों ने रूढ़ि वादी पृथाओं के पुन: संचालन हेतु स्मृति -ग्रन्थों की रचना की जो पुष्यमित्र सुंग की परम्पराओं के अनुगामी थे ।

देखें--- निम्न श्लोक दृष्टव्य है इस सन्दर्भ में.. _________________________________________ " वाराणस्यां सुखासीनं वेद व्यास तपोनिधिम् । पप्रच्छुमुर्नयोSभ्येत्य धर्मान् वर्णव्यवस्थितान् ।।१।। __________________________________________ अर्थात् वाराणसी में सुख-पूर्वक बैठे हुए तप की खान वेद व्यास से ऋषियों ने वर्ण-व्यवस्था के धर्मों को पूछा । -------------------------------------------------------------- निश्चित रूप इन विरोधाभासी तथ्यों से ब्राह्मणों के विद्वत्व की पोल खुल गयी है । जिन्होंने योजना बद्ध विधि से समाज में ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित कर के लिए सारे -ग्रन्थों पर व्यास की मौहर लगाकर अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है ।
देव संस्कृति के विरोधी दास अथवा असुरों की प्रशंसा असंगत बात है ; अत:मह् धातु का अर्थ प्रशंसायाम् के सन्दर्भों में नहीं है ।
ऋग्वेद के प्राय: ऋचाओं में यदु और तुर्वसु का वर्णन नकारात्मक रूप में ही हुआ है !
दास शब्द ईरानी भाषाओं में दाहे शब्द के रूप में विकसित है ।
---जो एक ईरानी असुर संस्कृति से सम्बद्ध जन-जाति का वाचक है -जो वर्तमान में दाहिस्तान Dagestan को आबाद करने वाले हैं ।
दाहिस्तान Dagestan वर्तमान रूस तथा तुर्कमेनिस्तान की भौगोलिक सीमाओं में है ।
दास अथवा दाहे जन-जाति सेमेटिक शाखा की असीरियन (असुर) जन जातियों से निकली हुईं हैं । यहूदी और असीरियन दौनों सेमेटिक शाखा से सम्बद्ध हैं ।
हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर रूप में ही वर्णन करता है । यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत् वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से विख्यात है ।

इतना कुुछ शास्त्रीय प्रमाण होने को बावजूद भी रूढ़ि वादी लोग चिल्ला चिल्ला कर कहते रहते हैं कि अहीरों को बुद्धि 12 बजे आती है ।

इतना ही नहीं अहीरों के सीधेपन को मूर्खता औ सहन शीलता को कमजोरी समझ कर इनका उपहास उड़ाने वाले भी समाज में चौराहे चौराहे पर खड़े मिल-जाते हैं। नि:सन्देह जिस यदु वंश में गायत्री सदृश्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी का जन्म नरेन्द्र सेन अहीर के घर में हुआ हो ।

और उन्हीं अहीरों के समाज में कृष्ण का जन्म हुआ हो फिर अहीरों को मूर्खों की उपधियाँ क्यों दी गयी ? अहीरों को पृथ्वी पर ईश्वरीय शक्तियाँ का रूप माना गया है ।
समस्त ब्राह्मणों की साधनाऐं गायत्री के द्वारा सिद्ध होने वाली हैं और वह गायत्री नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या है ।

भागवत पुराण :--१०/१/२२ में स्पष्टत: गायत्री आभीर अथवा गोपों की कन्या है । और गोपों को भागवतपुराण तथा महाभारत हरिवंश पुराण आदि मे देवताओं का अवतार बताया गया है । उपर्युक्त श्लोकों में पहले आभीर शब्द है फिर गोप शब्द एक ही कन्या गायत्री के वर्णन में ।

" आभीरा स्तच्च कुर्वन्ति तत् किमेतत्त्वया कृतम्
अवश्यं यदि ते कार्यं भार्यया परया मखे !।४०। एतत्पुनर्महादुःखं यद् आभीरा विगर्दिता वंशे वनचराणां च स्ववोडा बहुभर्तृका ५४ आभीर इति सपत्नीति प्रोक्तवंत्यः हर्षिताः (इति श्रीवह्निपुराणे (अग्नि पुराणे )ना नान्दीमुखोत्पत्तौ ब्रह्मयज्ञ समारंभे प्रथमोदिवसो नाम षोडशोऽध्यायः संपूर्णः) ______________________________________________
कुछ पुराणों ने गोपों (यादवों ) को क्षत्रिय भी स्वीकार किया है ।
ब्रह्म पुराण में वर्णन है कि " नन्द क्षत्रियो गोपालनाद् गोप : अर्थात् नन्द क्षत्रिय गोपलन करने ही गोप कहलाते हैं ।
( इति ब्रह्म पुराण) और भागवतपुराण में भी यही संकेत मिलता है
"वसुदेव उपश्रुत्वा,भ्रातरं नन्दमागतम् । पूज्य:सुखमाशीन: पृष्टवद् अनामयम् आदृत:।47।

भा०10/5/20/22 यहाँ स्मृतियों के विधान के अनुसार अनामयं शब्द से कुशलक्षेम क्षत्रिय जाति से पूछी जाती है ।
ब्राह्मणं कुशलं पृच्छेत् बाहु जात: अनामयं ।
वैश्य सुख समारोग्यं , शूद्र सन्तोष नि इव च।63।

ब्राह्मण: कुशलं पृच्छेत् क्षात्र बन्धु: अनामयं ।
वैश्य क्षेमं समागम्यं, शूद्रम् आरोग्यम् इव च।64।

संस्कृत ग्रन्थ नन्द वंश प्रदीप में वर्णित है कि नन्द का जन्म यदुवंशी देवमीढ़ के वंश में हुई "
नन्दोत्पत्तिरस्ति तस्युत, यदुवंशी नृपवरं देवमीढ़ वंशजात्वात ।65।
भागवतपुराण के दशम् स्कन्ध अध्याय 5 में नन्द के विषय में वर्णन है ।
यदुकुलावतंस्य वरीयान् गोप: पञ्च प्राणतुल्येषु । पञ्चसुतेषु मुख्यमस्य नन्द राज:। 67।

प्रसिद्ध पर्जन्य गोप के प्रणों के सामान -प्रिय पाँच पुत्र थे जिसमें नन्द राय मुख्य थे ।

अब ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरखण्ड राधा हृदय अध्याय 6 में वर्णित है कि " जज्ञिरे वृष्णि कुलस्थ, महात्मनो महोजस: नन्दाद्या वेशाद्या: श्री दामाश्च सबालक: ।68। अर्थात् यदुवंश की वृष्णि शाखा में उत्पन्न नन्द आदि गोप तथा श्री दामा गोप आदि बालक सहित थे ब्रह्म वैवर्त पुराण श्री कृष्ण जन्म खण्ड अ०13,38,39,में सर्वेषां गोप पद्मानां गिरिभानुश्च भाष्कर: पत्नी पद्मावते समा तस्य नाम्ना पद्मावती सती ।।

तस्या: कन्या यशोदात्वं लब्धो नन्दश्च वल्लभा: ।94।
जब गर्गाचार्य नन्द जी के घर गोकुल में राम और श्याम का नामकरण संस्कार करने गए थे ; तब गर्ग ने कहा कि नंद जी और यशोदा तुम दोनों उत्तम कुल में उत्पन्न हुए हो; यशोदा तुम्हारे पिता का नाम गिरिभानु गोप है और माता का नाम पद्मावती सती है तुम नन्द जी को पति रूप पाकर कृतकृत्य हो गईं हो! _______________________________________________

विकीपीडिया के लिए अालेखित तथ्य विचार-विश्लेषण -- यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र० सम्पर्क 8077160219.. ______________________________________________

परन्तु कालान्तरण में स्मृति-ग्रन्थों में गोपों को शूद्र रूप में वर्णित करना यादवों के प्रति द्वेष भाव को ही इंगित करता है । परन्तु स्वयं वही संस्कृत -ग्रन्थों में गोपों को परम यौद्धा अथवा वीर के रूप में वर्णन किया है । गोप शूद्र नहीं अपितु स्वयं में क्षत्रिय ही हैं । जैसा की संस्कृति साहित्य का इतिहास 368 पर वर्णित है _______________________________________________
अस्त्र हस्ताश़्च धन्वान: संग्रामे सर्वसम्मुखे । प्रारम्भे विजिता येन स: गोप क्षत्रिय उच्यते ।। यादव: श्रृणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरे : मुक्ति यदूनां गोपानं सर्व पापै: प्रमुच्यते ।102। _______________________________________
अर्थात् जिसके हाथों में अस्त्र एवम् धनुष वाण है । ---जो युद्ध को प्रारम्भिक काल में ही विजित कर लेते हैं वह गोप क्षत्रिय ही रहे जाते हैं । जो गोप अर्थात् आभीर यादवों के चरित्रों का श्रवण करता है । वह समग्र पाप -तापों से मुक्त हो जाता है ।।102।

8 टिप्‍पणियां:

  1. Apni bani h yadav hi kul jati ka janani h kyo ki yadav bhagvan ka ansh h

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  2. Apni bani h yadav hi kul jati ka janani h kyo ki yadav bhagvan ka ansh h

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  3. 1920 se pahle Ahir khud ko yadav kyu nhi likhte the number do btau tumko kon hai yaduvansi rajput hote hai pahle kshatriya kaha jata tha kalantr me rajput kr name se jane jane lge

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  4. Bhut sunder lekh hai yoges ji ummid hai ki lekh se dhrm ke pakhandi thekedaro ki aankhe khul jayegi bhut bhut dhanyvad.

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  5. Yadav chatriya the or hai Rejangla ke veer or yogender yadav is bat ka taza udaharan hai .

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  6. इतिहास करो कब तक गलतफहमी में जिओगे। अहीर हो अहीर ही रहो। असली यदुवंशी जादौन भाटी ओर जडेजा राजपूत हैं। ओर जैसलमेर राजघराने हैं। दूसरी बात राजपूतों से जलना छोड़ दो।

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  7. अहीर पहले क्या थे लेकिन ज्यादातर आज के जमाने में सिर्फ और सिर्फ चोर,लुटेरे,और अपराधी किस्म के हैं जो अपने आप में शर्म की बात है

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