गुरुवार, 2 मई 2019

इतिहास का एक बिखरा हुआ अध्याय 👇

भारत यद्यपि सदीयों से सामाजिक असमानताओं का
प्रतिरूप रहा ।
देश में राजतन्त्र , कुलीनतन्त्र और कहीं कहीं गणतन्त्र
का भी सामाजिक गतिविधियों में समायोजन रहा

परन्तु इन सब पर हाबी रही ब्राह्मण वाद की वर्चस्व विधायिका वर्ण व्यवस्था !
जिसकी परिकल्पना व्यवसाय के आधार पर कभी थी परन्तु ई०पू० छठी सदी में --जो पूर्ण रूपेण -जाति-व्यवस्था के रूप में परिणत होकर
ब्राह्मणों द्वारा जन्म के आधार पर निर्धारित हो गयी।
एक विशेष-समुदाय के लोग धार्मिक व्यवस्थाओं के सूत्रधार बनकर धार्मिक ग्रन्थों में स्वयं को आरक्षित रूप में जन्म-जात श्रेष्ठ व समाज के अन्य लोगो से सर्वोपरि होने का विधान पारित करते हैं।

यद्यपि वर्ण व्यवस्था के जातिगत आधारित स्वीकृति
के विरोध में कुछ उदारवादी ब्राह्मण भी मुखर हुए ।
परन्तु उनकी इस बात का विरोध रूढ़िवादीयों ने किया ।

कालान्तरण में समाज में ब्राह्मण वाद के वर्चस्व को देखते हुए 'बहुत से निम्न वर्ग के लोग ब्राह्मण बनने लगे

असली ब्राह्मण कितने हैं ?यह कहना मुश्किल है ?

सत्य बात तो यह है कि रूढ़िवादी परम्पराओं और वर्ण-व्यवस्था को लागू करने वाले भी नकली ब्राह्मण अधिक हो गये क्यों कि उनके आरक्षित स्वार्थों पर आघात था ।
लो जानते थे कि असली मलाई ब्राह्मण बनने में है ।
ब्राह्मण व्यभिचारी होने पर भी पूज्य है।

उन्होनें माना " चातुर्वर्णयं ब्रह्मणा सृष्टं जन्मत: "
अर्थात्‌ ब्रह्मां ने ब्राह्मण जन्म से ही बनाये है ।
ब्राह्मण चाहें व्यभिचारी ही क्यों न हो 'वह पूज्य ही है।
👇
दु:शीलो८पि द्विज: पूजयेत् न शूद्रो विजितेन्द्रिय: क:परीतख्य दुष्टांगा दोहिष्यति शीलवतीं खरीम् ।। पाराशर-स्मृति (192)
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... मन्दिर इनकी आरक्षित पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली नियमित दुकाने हैं ।
... परन्तु ब्राह्मणों के स्वार्थ परक धर्म ने ही वर्ण-व्यवस्था के विधानो की श्रृंखला में समाज को बाँधने की कुत्सित चेष्टा की ।
इसी लिए देश विदेशी आक्रान्ताओं का कोई वार गुलाम बना ।

प्राचीनत्तम संस्कृतियों में धर्ममूलक संस्थाऐं राजनीति को निर्देशित करती रही हैं ।

आप ये भी जानते हो कि राजनीति हा सामाजिक व्यवस्थाओं की निर्देशिका होती है ।
और जातिवाद राजनीति की रीढ़ है ।👇

संवैधानिक व्यवस्थाओं ने जातिगत समुदायों को श्रेणियों में उल्लिखित किया जैसे- 👇
जनरल, अदर-बेकवर्ड काष्ट, सेड्यूल-काष्ट, सेड्यूल-ट्राइव आदि ..

बात हम आधुनिक परिप्रेक्ष्य के सन्दर्भ में करते हैं ।
कि हमारे देश भारत की राजनैतिक दशा आज वही है --जो यूरोपीय देश जर्मनी की यह देश देव-संस्कृति के आदि प्रतिष्ठान भूमि के रूप था और इसकी यह स्थिति  सन् 1944 से पहले की थीं ।👇

जर्मनिक जन-जातियाँ में जातिवाद और नस्लवाद का उन्माद उत्पन्न करने वाला एक नॉर्डिक सिरफिरा था।

जिसे 'मैं आर्य्य शब्द से तो सम्बोधित नहीं करना चाहता क्यों कि आर्य्य शब्द सैमेटिक भाषाओं से प्रादुर्भूत है ।
वह था हिटलर !
हिटलर ने अपने को एहर कहा ।
जिसे कालान्तरण में यूरोपीय इतिहास कारों ने देव-संस्कृति का वाचक बना दिया।
यूरोप में आर्य्य शब्द को जर्मनिक जन-जातियाँ में एरिच (Erisch) तथा Ehre रूपों में उद्धृत किया गया है।

जर्मनिक भाषाओं में "Ehre"(एह्रे) रूप आज भी प्राप्त होता है।

विदित हो कि "एहर" शब्द (अब काव्य या बोली) में अवशिष्ट है।👇

From 1-Middle High German( ēre)
2-Old High German (ēra )-(“honour, fame, sense of honour”).
Cognate with 3-Old Norse (eir )-(“pardon, gentleness”),
4-Old Saxon ēra (“honour, protection, pardon, gift”),
5-Old English ār (“honour, help, pardon”) 6-Latin aes-tumare (“to acknowledge, value”).
From Proto-Germanic aizō. अज् (अर्)
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मध्य उच्च जर्मन भाषाओं में  "ēre", पुरानी उच्च जर्मन “era ("सम्मान, प्रसिद्धि, सम्मान की भावना") से ।
पुराने नॉर्स ईर"eir" ("क्षमा, सज्जनता"),
ओल्ड सेक्सन ēra, ("सम्मान, सुरक्षा, क्षमा, उपहार"), पुरानी अंग्रेज़ी ār ("सम्मान, मदद, क्षमा)"
लैटिन एन्स-तुम्रे ("मानने के लिए, मान के साथ" ")।  प्रोटो-जर्मनिक aizio से साम्य।
संस्कृत धातु अज् से साम्य !
आपको यह भी बतातें की वीर शब्द भी अज् धातु से निर्मित है । एेसा संस्कृत वैय्याकरण सिद्ध करते हैं।
👃🐂💅💅
वीरम् नपुंसकलिङ्ग रूप (अज् + “स्फायितञ्चिवञ्चीति  उणादि सूत्र १ । १३ । इत्यादिना रक् । अजे- र्वीभावः । वीर + अच् वा )
शृङ्गी । नडः । इति मेदिनी  ॥ मरिचम् । पुष्कर- मूलम् । काञ्जिकम् । उशीरम् । आरूकम् । इति राजनिर्घण्टः ॥ वीरशब्दो मेदिन्यां पवर्गीयवकारादौ दृष्टोऽपि वीरधातोरन्तःस्थवकारादौ दर्शनादत्र लिखितः ॥

वीरः, पुं, (वीरयतीति । वीर विक्रान्तौ + पचा- द्यच् । यद्वा, विशेषेण ईरयति दूरीकरोति शत्रून् । वि + ईर + इगुपधात् कः ।
यद्वा, अजति क्षिपति शत्रून् ।
अज + स्फायितञ्चीत्या दिना रक् । अजेर्व्वीः ।) शौर्य्यविशिष्टः । तत्प- र्य्यायः । शूरः २ विक्रान्तः ३ । इत्यमरःकोश ।

अर्थात्‌ वीर का सम्प्रसारित रूप है आर्य्य शब्द ।

एहेर एफ (जननिक एहेर, बहुवचन एहरेन)

सम्मान; आदर
श्रेय
यश

संदर्भ
^ जर्मन भाषा के क्लुज की एटमोलॉजिकल डिक्शनरी में एहर
References
^ Ehre in Kluge's Etymological Dictionary of the German Language, 1891
ehre
एहरे का बहुवचन

Ehre

Ehr (now poetic or dialectal)
Etymology
From Middle High German ēre,
Old High German ēra (“honour, fame, sense of honour”). Cognate with
Old Norse eir (“pardon, gentleness”),
Old Saxon ēra (“honour, protection, pardon, gift”),
Old English ār (“honour, help, pardon”) Latin aes-tumare (“to acknowledge, value”).
From Proto-Germanic *aizō.

Ehre f (genitive Ehre, plural Ehren)

honour;
credit
kudos

Declension of Ehre
Derived terms
Derived terms
References
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^ Ehre in Kluge's Etymological Dictionary of the German Language, 1891
Further reading
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Ehre in Duden online
Pennsylvania German

Ehre

plural of Ehr
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आर्य्य शब्द का प्रयोग जर्मनिक भाषाओं में भारतीय भाषाओं के समान सम्माननीय उपाधि परक अर्थों में हुआ।

अपनी युद्ध ध्वजा पर स्वास्तिक का चिन्ह लगाने वाला
तानाशाह
इसका नाम था अडोल्फ हिटलर !
अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के "वॉन" नामक स्थान पर 20 अप्रैल 1889 को हुआ।

हिटलर को  सम्मान की भाषा में तो सम्बोधित करना ही पड़ेगा (ehre )।
हिटलर "राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कामगार पार्टी" (NSDAP) के नेता थे।

इस पार्टी को प्राय: "नाजी पार्टी" के नाम से जाना जाता है।

सन् 1933 से सन्  1945 तक वह जर्मनी का शासक रहे।
हिटलर को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है।

द्वितीय विश्व युद्ध तब हुआ, जब उनके आदेश पर नात्सी सेना ने रूसी देश पोलैंड पर आक्रमण किया।

नाज़ीवाद की विचार धारा भारतीयों के आर.एस.एस (राष्ट्रीय स्वयम् सेवक संघ) जैसी ही थी ।
जर्मनी की राजनैतिक दशा और दिशा नाज़ीवाद से निर्देशित और प्रेरित होती थी।

जर्मन तानाशाह एडोल्फ़ हिटलर की विचार धारा
महानुभाव वाकपटु नरेन्द्र मोदी के समान थी ।
या कहें इनकी विचार धारा उनके समान है ।

हिटलर यहूदियों से नफरत करता था तो
समस्त आर.एस.एस. व इसकी कार्यवाहिका पार्टी भा.ज.पा. -जैसे मुसलमान , सिक्ख, बोद्ध और एस.टी. एस.सी.तथा यादव जैसी अन्य-पिछड़ी-जातियों से नफरत करता हैं ।
यादव ही पश्चिमीय एशिया के पटल पर यहूदियों के रूप में हैं ।
वेदों में यदु और तुर्वशु को हेय रूप में वर्णित किया गया है।

हिटलर की विचार धारा के समान आर.एस.एस. की विचार धारा भी सरकारों और आम जन के बीच एक नये  रिश्ते की पहल करने में है कि 'वह है  वर्ण व्यवस्था के पक्ष में समाज का समायोजन।

ये बौद्धों , सिक्ख मुसलमान आदि को और शूद्र श्रेणी में निर्धारित कर पिछड़ी जातियों को फिर वर्ण व्यवस्था के विधानों में बाँधने को आतुर हैं ।

काशी (बनारस)के रूढ़िवादी कर्मकाण्डी पुरोहित आज भी वेदों को, स्मृतियों को अपना संविधान मानते है ।
भारत के लोक तन्त्र या गणतन्त्र प्रहरी संविधान को नहीं मानते हैं ।

राजनीति सदैव से धर्म-शास्त्र और धर्म-अध्यक्षों के निर्देशन में क्रियान्वित रही ।

इस के अनुसार सरकार की हर योजना में धर्ममूलक पहल हो परन्तु वह चले  जनता-समाज की भागिदारी या सहमति सेे अत: जनता में धर्म के नाम पर उन्हें साधा जाय ।
इसके लिए एक संस्था आर.एस.एस जुटी हुई है ।
आश्चर्य तो यह है कि इनका धर्म भी केवल वर्ण व्यवस्था के विधानों के अनुसार आचरण या व्यवहार पर बल देता है ।

उदारवादी व्यक्तित्व इस धर्म को कैसे स्वीकार करे !
रूढ़िवादी शासकों को ये बड़ी समस्या है ।
यहाँं धर्म व्यवसाय परक और स्वार्थोन्मुख है ।
ऐसे धर्म में अन्ध-भक्तों की संख्या निरन्तर बड़ी है ।

जैस हिटलर की नीतियों में
कट्टर जर्मन राष्ट्रवाद, देशप्रेम, विदेशी यहूदी विरोध, आर्य और जर्मन हित  विचार धारा के मूल अंग समायोजित थे

वैसे ही
हिन्दुत्व को आप नाज़ीवाद का भारतीय संस्करण समझिए !

आपको पता है कि  नाज़ीवाद के समर्थक यहूदियों से सख़्त नफ़रत करते थें ;
दुनियाँ से उनकी कौम को खत्म कर देना चाहते थे ।
और यूरोप और जर्मनी में हर बुराई के लिये उन्हें ही दोषी मानते थे।

परन्तु यह मात्र रूढ़िवादिता और पूर्व दुराग्रह ही था ।
यह एक उन्माद कहीं न कहीं वेदों में भी ध्वनित हुआ है ।
यदु और तुर्वशु के खिलाफ ।

ऐसे ही भारतीय जनता पार्टी के लोग मुसलमानों या बौद्धों को सभी बुराईयों का मूल मानते हैं ।
कारण ये वर्ण व्यवस्था और जातिवाद को तबज्जो नहीं देते हैं ।

सारी पिछड़ी जातियों को सदीयों से पुरोहितों ने  केवल स्वार्थ सिद्धियों का साधन बनाने के लिए उन्हें धर्म-कर्मकाण्ड और तीर्थों में उद्धार की नसीहत देदी है।
इनसे दान दक्षिणा की अपेक्षा की !
इनसे हर सुविधाओं की अपेक्षा की
ज़र जोरु जमीन सब कुछ..

-जैसे
नाज़ीयों ने केंद्र में अपनी सरकार बनते ही जर्मनी में हिटलर की तानाशाही व्यवस्थाओं को स्थापित किया और फिर यहुदियों के जर्मनी में दुर्दिन हो गये।
उनकी औरतों के साथ दुर्व्यवहार किया जाने लगा ।

उसी प्रकार भारत की राज्य और केन्द्र सरकारों ने ये प्रयोग भी कर डाले 👇

आपको आज देखने को मिलता है कि
मीडिया , न्याय पालिका, विधायिका, कार्यपालिका और चुनाव चुनाव-आयोग ,सी.वी.आई. सारी संवैधानिक शक्तियाँ  तानाशाही की परस्तिश में नत मस्तक हैं ।
सब के सब उसके अनुसार चलते हैं ।

द्वितीय विश्व युद्ध में यहुदियों के क़त्ले-आम के पीछे भी नाज़ीयों का ही हाथ था।
हिटलर राष्ट्र का महान नेता व शासक होने के वजह से लोगो पर अत्याचार करता था।
हिटलर दुनियाँ का सबसे बडा़ नस्लवादी था ।

आप ने देखा की फुलवामा में भारतीय सैनिकों का कत्ल या शहादत पर राजनीति करना ।
तथाकथित नेताओं को राजनैतिक विरयानी पकाने का आधार मिल जाता है ।
शहीदों की लाश पर राजनैतिक रोटियाँ सेकी जाती हैं ।

ये मानना पड़ेगा कि आज देश में संविधान और लोक तन्त्र समाप्त प्राय: हैं ।
तानाशाही शक्तियों ने धाक जमा ली है ।
लोगों को केवल स्वप्न दिखाऐ जारहे हैं ।
प्राय अधिकतर जनता एक असम्भावी आश लेकर अन्ध-भक्तों की तरह मोदी के कल्कि अवतार मान रही है ।
ठीक ही है अन्धों में काणे( कनैटा) तो शासक होते ही हैं ।

मोदी का चरित्र हिटलर का क्लोन है ।
जैसे हिटलर की प्रारम्भिक शिक्षा जर्मनी में लिंज नामक स्थान पर हुई।
पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में हिटलर  वियना चले गए।

कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे।
आपको पता है की मोदी भी चाय बेचा करते थे ।
पिता का लाया भी सिर से उठ जाता है ।

जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्रांस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया। 1918 ई. में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे।

जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ।
परन्तु यह पराजय स्वयं हिटलर की नीतियों के कारण हुआ ।
आप को पता है मोदी ने भी कई आतंकवादीयों को मारा यह वात उन् स्वयं उन्होनें अपने मुख से कही।

आपको यह भी याद होगा कि विश्व-इतिहास में
1918 ई. में हिटलर ने नाजी दल की स्थापना की।
इसका उद्देश्य साम्यवादियों और यहूदियों से सब अधिकार छीनना था।

और यहाँं भारत में संवैधानिक सम्बल आरक्षण पिछड़ी जातियों से छीना ही जा रहा है ।

ये दुनियाँ का सिद्धान्त है कि तथ्यों की समानताऐं समान निष्कर्षों को ही निरूपित करती हैं ।

हिटलर और नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व की समानताओं के आधार पर बुद्धिजीवी निष्कर्ष भी निकाल सकते हैं ।👇

नाज़ीवाद के अनुयायी भी राष्ट्र भक्ति का ढोंग करते थे ।
भारतीय जनता पार्टी के अनुयायी भी राष्ट्र भक्ति का ढोंग करते हैं।

नाज़ीवाद के अनुयायीयों ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया।
ये देश की दुर्गति के लिए पिछड़ी जातियों और मुसलमानों आदि को दोषी मानते हैं ।

परन्तु ये इतिहास को नहीं जानते कि यहाँं की शूद्र अछूत और दबी कुची कौंमें अपने स्वाभिमान और सलामत के लिए सिक्ख, मुसलमान इसाई, या बौद्ध मत की अनुयायी बन जाती हैं ।
ताकि वे शूद्र होने की यातनाऐं से बच सके
परन्तु रूढ़िवादी परम्पराओं के पालक इतिहास कार
यहाँं भी धर्म परिवर्तन का आधार तलवार, धन का लोभ लालच आदि हता कर भारतीय वर्ण व्यवस्था मूलक रूढ़िवादीयों का औचित्य ही मानते हैं ।

हिटलर का हश्र गबाह ही है की हर तानाशाह आखर में तबाह ही है ।
जब हिटलर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाजी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए।
मोदी के भाषणों की
उन्हें भी  आश थी की उनके खाते में भी सायद पन्द्रह पन्द्रह लाख रुपए आ जा जाएगे ।
परन्तु ऐसा हुआ नहीं
आपने तमासा दिखाने वाले बाजीगर देखें होंगे कि
वो पहले आदमी को साँप और और लड़के की बहू लाने की बात करते हैं ।
परन्तु बाद में क्या होता है ?

हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्षाई संधि को समाप्त करने और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें।
उन्हें ख्वाव दिखाए गये।

भारत के हिन्दू राष्ट्र बनाने की ऐसी ही नीति है ।
ये छोटा जातियों पर फिर स्मृतियों का विधान थोपना चाहते हैं ।
सवर्णों को रामराज्य के ख्वाव दिखाए जारहे हैं।
नरेन्द्र मोदी अपनी पत्नी को छोड़कर कहते हैं कि राम ने भी प्रजा और राष्ट्र हित के लिए अपनी पत्नी को त्याग दिया था ।
हम भी उसी मिसाल को कायम करना चाहते हैं ।
मोदी भारत -जैसे रूढ़िवादी देश में  अन्ध-भक्तों में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व है ।

जब हिटलर 1922 ई. में  एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए।
उन्होंने स्वस्तिक (हेकेनक्रूज) को अपने दल का चिह्र बनाया जो कि हिन्दुओ का भी शुभ चिह्र है।

समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धान्तों का प्रचार जनता में किया।

भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई।
1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया।
--जो यहूदियों के प्ति हमदर्द थी ।
इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए। वहीं उन्होंने मीन कैम्फ ("मेरा संघर्ष") नामक अपनी आत्मकथा लिखी।

इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया।
उन्होंने लिखा कि आर्य या सुर स्वेयर "(Sviar) "जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है और जर्मन लोग आर्य हैं।
और मैनुस "(Manus)" इनके आदिम पुरुष हैं ।
हम देने की सन्तान हैं ।
मेनुस् वस्तुत मनु: का जर्मनिक संस्करण हैं ।
यद्यपि मनु की कथाऐं सुमेरियन ,बैबीलॉनियन और सैमेटिक ,हैमेटिक तथा सभी भारोपीय संस्कृतियों में प्राप्त हैं।
और मनु को लियोनार्ड बूली -जैसे उच्च पुरातत्व वेत्ता सुमेरियन संस्कृतियों में मूलत: मानते हैं ।
फिर मनुवाद भारत में होना तो कल्पना मात्र है ।
जर्मन- के लोग भी अपने को मनु की सन्तानें मानते हैं ।
मनु के नाम पर निर्मित विधान भारत में अधिकतर काल्पनिक ही हैं ।
हिन्दुस्तान के नौजवान --जो ग्रामीण या कृषक परिवेश से सम्बन्ध रखते हैं ।
वे उच्च-शिक्षा से वञ्चित हैं ही और बैरोजगार होकर
अपने जीवन को कोसते हैं ।
आज गरीब और गरीब होता जा रहा है
और पैसे वाले और अधिक पैसा वाला होता जा रहा है ।
अधिकारी सामन्तों की भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे हैं
हर सरकारी विभाग में कहीं न कहीं रिश्वतखोरी और जुगाड़वाजी चल रही है ।
ईमानदार मूर्ख और चूतिया समझे जाते हैं
सहनशील बुज़दिल और कायर ।
पूँजीवादीयों ने कानून को अपनी जैब में रखलिया है ।

आपको ये भी पता होगी कि जब सन्
1930-32 में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई।
संसद् में नाजी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई। 1932 के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता नहीं मिली।

जर्मनी की आर्थिक दशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति की।

1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी (समानतावादी) दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा।
हिटलर ने डॉ॰ जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया।
यहूदियों को कत्ल करने के आदेश दे दिए गये
यहूदियों के साथ एेसा अमानवीय व्यवहार मिश्र में भी नहीं हुआ होगा ।

नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया।
--जो प्राय: उदारवादी और हिटलर की मानव हिंसावादी नीतियों के समर्थक नहीं थे ।
ये यहूदियों के हमदर्द थे बस !
कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली।
1934 में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया।

उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के पश्चात् वे राष्ट्रपति भी बन बैठे।
नाजी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया।
यहूदियों को को ढूढ़ ढूढ़ कर कत्ल किया जाने लगा ।
1933 से 1938 तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई।

नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली।

हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया।
प्राय: सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया।

1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर आक्रमण न करने की संधि हुई। उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाजी दल ने वहाँ के चांसलर डॉलफ़स का वध कर दिया।
जर्मनीं की इस आक्रामक नीति से डरकर रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, इटली आदि देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए पारस्परिक संधियाँ कीं।

फ्रांस की पराजय के पश्चात् हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूम सागर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का विचार किया।
इसके पश्चात् जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया।

जब अमरीका द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति बिगड़ने लगी।
परन्तु -जब हिटलर के पापों का घड़ा भर गया तो फिर
हिटलर के सैनिक अधिकारी भी उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे।
क्यों कि सत्ता उपभोग की लालसा उनमें भी जाग गयी थी ।

अन्त में हिटलर की क्रूर क्रियाओं और हिंसावादी नीतियों से लोगों का मोह भंग भी हुआ और

जब रूसियों ने जर्मन-की राजधानी बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल 1945, को आत्महत्या कर ली।
क्यों कि उसे अपराध बोध हो गया था
उसने असंख्य यहूदियों का कत्ल किया ।

हिटलर ने यहूदियों को जातिय रूप से नष्ट करने के लिए
होलोकॉस्ट (Holocaust) की नीति को अपनाया था।
होलोकॉष्ट का अर्थ किसी चीज को समूल जलाकर भष्म कर देना।
होलोकॉस्ट (Holocaust) समूचे यहूदी लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचा-समझा और योजनाबद्ध प्रयास था।
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होलॉकोष्ट का अर्थ रूढ़ हो गया विनाश के लिए

मध्यकालीन तैरहवीं सदी के यूरोपीय इतिहास में  "आग से बलिदान, जला हुआ बलिदान इन अर्थों में होलोकॉष्ट शब्द प्रचलन में आया।

ग्रीक भाषा में होलोकॉस्टन से तात्पर्य "एक चीज़ पूरी तरह से जलगयी यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बनता है " solo/Holo +  "संपूर्ण, अच्छी तरह से रखा हुआ") + kaustos, (kaiein ) = Holocaust का मौखिक विशेषण "जलाने के लिए"
अर्थात्‌ किसी भी वस्तु को पूर्ण रूपेण स्वाहा कर देना ।

मूल रूप से "जले हुए प्रसाद" के लिए बाइबिल का एक शब्द है ।

उसका ये ग्रीक रूपान्तरण है ।
होलोकॉष्ट को  1670 के दशक से "नरसंहार, और बड़ी संख्या में व्यक्तियों का विनाश" के लिए व्यापक आलंकारिक अर्थ दिया गया था।

होलोकास्ट "द्वितीय विश्व युद्ध में यूरोपीय यहूदियों का नाजी नरसंहार,था "।

पहली बार यह 1957 में दर्ज किया गया था, जिसे पहले हिब्रू में शोह "प्रलय" के रूप में जाना जाता था।

1942 से हिटलर की यहूदी नीतियों के सन्दर्भ में अंग्रेजी में ही इस शब्द का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन उनके लिए एक उचित नाम के रूप में नहीं।

1933 में अडोल्फ़ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया।
-जैसे कि भारतीय वेदों में यदु और तुर्वशु को देव-संस्कृति का अनुयायी नहीं माना या उन्हें असुर या दास कहा गया
वैदिक सन्दर्भों में दास का अर्थ असुर या -देव विद्रोही है ।
गुलाम नहीं !

1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया।

उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे।
उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था (ऑस्चविट्ज का केम्प)

यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहाँ बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़कर उन्हें मार डाला जाता।

जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता, जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते।

युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म कर देना था।

विश्व-इतिहास कार होरोडोटस् ,पिलनी जोसेफस ने यहूदियों का मिलान वैदिक यदु जन-जाति से किया
हिब्रू बाइबिल में यहुदह् और तुरबजू नामक पात्रों का वर्णन है।
जिनका मिलान वैदिक पात्र यदुस्तुर्वशुश्च यदु और तुर्वशु से किया गया ।
ऋग्वेद 10/62/10

दाशराज्ञ वर्णन याकूव के दशकबीलों के सरदारों का रूपान्तरण है ।👇

युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे।

यहूदी धर्म का इतिहास करीब 4000 साल पुराना है।
इस धर्म का इतिहास मिस्र के नील नदी से लेकर वर्तमान इराक़  के दजला-फुरात नदी के बीच आरंभ हुआ और आज का इसरायल एकमात्र यहूदी राष्ट्र है।

यहूदी परम्परा के अनुसार, पहले यहूदी मिस्र के फराओं के अन्दर गुलाम बना लिए गये थे।
बाद में मूसा के नेतृत्व में वे इसरायल आ गए।
ईसा के 1100 साल पहले जैकब के 12 संतानों के आधार पर अलग-अलग यहूदी कबीले बने।
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ये दो खेमों या खापों में बँट गए - एक, जो 10 कबीलों का बना था इसरायल कहलाया और दो, जो बाकी के दो कबीलों से बना था वो जुडाया कहलाया।

10 कबीलों वाले इसरायल का क्या हुआ इसका पता नहीं है।

जुडाया पर बेबीलन का अधिकार हो गया।
बाद में ईसापूर्व सन् 800 के आसपास यह असीरिया के अधीन चला गया।
विदित हो कि असीरियन और यहूदियों का समायोजन सैमेटिक जन-जातियों के रूप में है ।
असीरियन जन-जाति भारतीय पुराणों में वर्णित असुर ही हैं ।

फ़ारस के हखामनी शासकों ने असीरियाइयों को ईसापूर्व 530 तक हरा दिया तो यह क्षेत्र फ़ारसी शासन में आ गया।

इस समय जरदोश्त के धर्म का प्रभाव यहूदी धर्म पर पड़ा।
यूनानी विजेता सिकन्दर ने जब दारा तृतीय को ईसापूर्व 330 में हराया तो यह यहूदी ग्रीक शासन में आ गए।

सिकन्दर की मृत्यु के बाद सेल्यूकस के साम्राज्य और उसके बाद रोमन साम्राज्य के अधीन रहने के बाद ईसाइयत का उदय हुआ।

इसके बाद यहूदियों को यातनाएं दी जाने लगी।
सातवीं सदी में इस्लाम के उदय तक उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा।
दुनियाँ की वहुय सी जन-जातियों ने इन्हें सताने का प्रयास किया ।
परन्तु इनकी महानताओं ने सबको नत मस्तक कर दिया ।
ईसा मसीह भी एक यहूदी चरावाहे थे।

उसके बाद तुर्क, मामलुक शासन के समय इनका पलायन इस क्षेत्र से आरंभ हुआ।

बीसवीं सदी के आरंभ में कई यहूदी यूरोप से आकर आज के इसरायली क्षेत्रों में बसने लगे।
विश्व में यह जन जाति प्राचीनत्तम संस्कृतियों को समेटे हुए चरावाहों और यायावरों का जीवन व्यतीत करती रही
भारतीय इतिहास में भी विशेषत वेदौं में सुमेरियन बैबीलॉनियन संस्कृतियों के तत्व विद्यमान हैं।👇

फॉनिशी और यहूदी हैं भारतीय बनिया और यादव "
सामान्यत: पैसा उधार देने वालों अथवा व्यापार करने वाले  भारतीय जन-जाति वणिक है ।
ये मुख्यत: उत्तरी और पश्चिमी भारत में पाई जाती हैं, हालाकि संकीर्ण अर्थ में कई व्यापारी समुदाय बनिए नहीं हैं और विलोमत: कुछ बनिए व्यापारी नहीं हैं।

भारतीय समाज की चतुष्वर्णीय व्यवस्था में असंख्य बनिया उपजातियों, जैसे अग्रवाल, अग्रहरि, लोहिया आदि को वैश्य वर्ण का सदस्य माना जाता है।
--जो 'बहुत बाद के हैं ।

धार्मिक अर्थों में वे सामान्यत: वैष्णव या जैन होते हैं और पूर्णत: शाकाहारी, मद्यत्यागी और आनुष्ठानिक पवित्रता के पालन में परम्परा वादी होते हैं।
बौद्ध/ जैनों कालों में इस प्रकार की अहिंसा वादी भावनाओं की उदय हुआ।

उत्तर वैदिककाल के उल्लेखों में पण, पण्य, पणि जैसे शब्द आए हैं।
--जो पोनिक या फॉनिशियन का रूपान्तरण है।
ऋग्वेद में वर्णन है कि👇

ग्रावाण: सोम ने हि कं सरिवत्ववना वावशु ।
जहि न्यत्रिणं पणिं वृको हीष: ------ऋग्वेद६/६१/१
अर्थात् हे सोम तुम पणियों को मारो अभिषव करने वाले हम तुम्हारा कामना करते हैं ।

ऋग्वेद में ही अन्यत्र देखें---
इयं ददाद्रभस मृण च्युतं दिवो दासं वध्रयश्वाय दाशुषे
चखा दावसं पणिं ताते दात्राणि तषि सरस्वती ।।
                                            ऋग्वेद-६/६१/
और भी देखें---
शतैर्षद्रन पणय इन्द्रात्र ।
दशोणये कवयेsर्क सातौ ।।
अर्थात्- हे इन्द्र युद्ध में बहुत धन देने वाले तुम्हारे सहायक कुत्स से डर कर , सौ बल (सेना) वाले पणि भाग गये ।

ऋग्वेद में एक स्थान पर पणियों के देव बल तथा
आर्यों के सहायक अंगिराओं का प्रतिद्वन्द्वी रूप में वर्णन किया है ।
  उद्गार आजत अंगिरोभ्य आविष्कृण्व,
गुहासती: अर्वाणच् नुनेद बलम् ।।
अर्थात् गुफाओं में अंगिराओं के लिए दास खोजते हुए ,
इन्द्र ने वहाँ से गायों को बाहर प्रेरित किया ।

वेदों में फॉनिशियन लोग असुरों के सहायक अथवा सानिध्य में रहने वाले बताएें गये हैं ।

बल असीरी (असुर) तथा फॉनिशियन (पणि)लोगों का शक्ति और धन का अधिष्ठात्री देवता था ।

मैसॉपोटामिया की संस्कृतियों में यहूदी फॉनिशियन तथा असीरियन संस्कृतियाँ सदीयों से सहवर्ती रहीं हैं ।
भारतीय पुराणों में भी प्राय: यदु को दास ,
तथा असुर से सम्बद्ध बताया है ।

ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त का १०वाँ श्लोकाँश---
उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----
अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक  दौनो दास गायों से घिरे हुए हैं।
गायों से सम्पन्न हैं अत: हम उनकी सराहना करते हैं ।
पुराणों में यादवों को मधु नामक असुर से सम्बद्ध बता कर यादवों को (मधु+अण्)--माधव भी बना दिया ।
कुछ यदु का पुत्र मधु का मूल माधव मानते हैं ।
परन्तु यादवों के असुरों से सम्बन्ध स्पष्टत परिलक्षित होते हैं।
प्राय: गुप्त काल में कृष्ण दर्शन की अधिक प्रतिष्ठा हुई।
  और और गुप्त कालीन राजा कृष्ण को अपना पूर्वज मानते थे ।

आज भी वैश्य वर्ग में वार्ष्णेय वणिक लोग कृष्ण के गोत्र वृष्णि से सम्बद्ध मानते हैं।
परन्तु --जो फॉनिशियन इतिहास से पूर्ण रूपेण अनभिज्ञ और और ब्राह्मण वाद की रूढ़िवादी परम्पराओं में संलग्न हैं ।

विश्व इतिहास साक्षी है ,कि मिश्र में रहने वाले ईसाई मतावलम्बी कॉप्ट (Copt)
भी स्वयं को यहूदी ही बताते है ।

यूनानी नील नदी के क्षेत्र को एगिप्टॉस (egiptos)
टैल ए अमर्ना के कीलाक्षर लिपि में हिकुप्ताह Hicuptah कहा गया ।
मिश्र में प्ताह (Ptah)के मन्दिर को  हिकुप्ताह कहा जाता था ..कुछ इतिहास कारो के अनुसार केमित Kemet मिश्र का पुरातन नाम है ।
इन्ही से कॉप्ट Copt शब्द का विकास हुआ।
Kemet मिश्र का पुरातन नाम है ।
जिसका अर्थ होता है काला -देश ।
अर्थात् कालीमिट्टी से युक्त भूमि इस लिए यह एगिप्टॉस  /अथवा एजिप्टॉस हुआ ।
परन्तु यह अनुमान मात्र है ।
परन्तु ये सब आनुमानिक अवधारणाऐं हैं।

कॉप्ट (Copt) शब्द ग्रीक भाषा में संस्कृत भाषा के रूप गुप्त / गुप्ता का तद्भव है ।

अरब़ी संस्कृति में मिश्र इस देश को मिज़र अथवा मिश्र कहा है ।
क्योंकि हिब्रू बाइबिल में हेम का पुत्र मिज़रैम (Migraime)था ।

संस्कृत पुराणों में यम का पुत्र मित्र: सम्भव है ।

संस्कृत भाषा में सूर्य को भी मित्र कहा गया है ।

पण या पण्य का अर्थ हुआ वस्तु, सामग्री, सम्पत्ति।
बाद में पण का प्रयोग मुद्रा के रूप में भी हुआ।
अंगेजी रूप( pine)
मिश्र के कॉप्ट (Copt) यहूदीयों की एक शाखा थी जो सोने - चाँदी का व्यवसाय करते थे ।

ये लोग कपट या ठगी जैसी क्रियाऐं भी करते थे ।
अत: कर्पट(Crypto) कपट तथा कॉपी जैसे शब्द भारोपीय भाषा परिवार में आये ।

वैसे भी इस्लामीय इतिहास कारों ने क़ुरान शरीफ़ के हवाले से यहूदीयों को सूद-खोर व्यापारी के रूप में वर्णन किया है ।
परन्तु ये बातें यथावत् नहीं । सम्भव है कि ये भी फॉनिशियन संस्से प्रभावोत्पादक हुए हों ।
--और इन्होंने ये परम्परा फोएनशियन जन-जाति से ग्रहण की हो ।

यद्यपि कुछ सीमा तक ये एैसे होगें और कुछ द्वेष वश भी इनके विषय में वर्णित किया गये हैं ।
क्यों कि लिखने वाले तो इनके प्रतिद्वन्द्वीयों में शुमार थे ।

पणि से तात्पर्य व्यापारी समाज के लिए भी था।
पणि उस दौर के महान व्यापारिक बुद्धिवाले लोग थे।
--जो समुद्रीय पोतों द्वारा सूदूर देशों में व्यापार करते थे ।

यहूदी लोग जौहरी का काम करने वाली एक सेमेटिक जन-जाति भी रही है  ।

ग्रीक इतिहास कारों
के अनुसार फॉनिशी लोग यहूदीयों के ही सहवर्ती थे ।
रोमन इतिहास कारो ने इन्हें प्यूनिक कहा है ।
वेदों में इन्हें पणि (पणिक) कहा है ।
जिनको वंशज अधिकतर आज के बनिया वार्ष्णेय आदि हैं
पहले बरसाने के सेनी बनिये वार्ष्णेय लिखने लगे
और अक्रूर जी को अपना पूर्वज कहते हैं ।

कायस्थ शब्द भी कॉर्थेज शब्द से व्युत्पन्न हुआ है।
परन्तु पुराणों पन्थीयों ने इसकी काल्पनिक उत्पत्ति जो ब्रह्मा की काया से उत्पन्न होकर स्थित है के रूप में करदी

और जिन्हें शूद्रों के भी नीचे पञ्चम् वर्ण में पहँचा दिया है
जो पूर्ण रूप से अवैज्ञानिक ही है ।

पणियों की रिश्तेदारी आज के बनिया शब्द से है।
पणि (फिनीशियन) आर्यावर्त में व्यापार करते थे।
सुमेरियन से लेकर सिन्धु नदी के तटों तक ये व्यापारी करते थे ।
उनके बड़े-बड़े पोत चलते थे।
वे ब्याजभोजी थे,आज का 'बनिया' शब्द वणिक का अपभ्रंश ज़रूर है मगर इसके जन्मसूत्र पणि में ही छुपे हुए हैं।

आर्य कृषि करते थे और पणियों का प्रधान व्यवसाय व्यापार और लेन-देन था।
विदित हो की आर्य्य ही आयर हैं और ये ही चरावाहे थे

पणिक या फणिक शब्द से ही वणिक भी जन्मा है। आर्यों ने पणियों का उल्लेख अलग अलग संदर्भों में किया है मगर हर बार उनके व्यापार पटु होने का संकेत ज़रूर मिलता है।

हिन्दी में व्यापार के लिए वाणिज्य शब्द भी प्रचलित है। वाणिज्य की व्युत्पत्ति भी पण  से ही मानी जाती है।
यह बना है वणिज् से जिसका अर्थ है सौदागर, व्यापारी अथवा तुलाराशि।

गौरतलब है कि व्यापारी हर काम तौल कर ही करता है।
इससे ही बना है “वाणिज्य” और “वणिक” जो कारोबारी, व्यापारी अथवा वैश्य समुदाय के लिए खूब इस्तेमाल होता है।

पणिक की वणिक से साम्यता पर गौर करें।
बोलचाल की हिन्दी में वणिक के लिए बनिया शब्द कहीं ज्यादा लोकप्रिय है जो वणिक का ही अपभ्रंश है ,
इसका क्रम कुछ यूं रहा- वणिक, बणिक, बनिआ, बनिया।

संसार को वर्ण-माला- प्रदान करने वाले ये ही लोग थे ।

ये द्रविडों के समानान्तर समद्रीय यात्रा द्वारा व्यापार करते थे ।
वैश्य शब्द का उत्स भी भारोपीय भाषा परिवार का विस पुरानी-अंग्रेजी - (Wicca---जादू या तन्त्र-मन्त्र करने वाला ।
इसी से विकसित शब्द विच witch तथा नॉर्स माइथॉलॉजी में विक्कड(Wicked)--
समुद्रीय डॉकुओं का वाचक रहा ।

संस्कृत भाषा में विश् धातु है जिससे वैश्य शब्द बना है

आगे भी पढ़ते रहें........................
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प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"

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