य: कालयवन : ख्यातो गर्गतेजो८भिसंवृत: ।95।
भविष्यति वधस्तस्य मत्त एव द्विजोत्तम।
द्विजोत्तम! गर्गाचार्य की तेज से उत्पन्न होकर शक्तिशाली बना हुआ जो कालयवन नामक विख्यात असुर होगा उसका भी अन्त मेरे ही द्वारा संभव होगा।।।95।
महाभारत के शान्ति पर्व में यास्क का वर्णन है👇
यास्को मामृषिरव्यग्रो नैकयज्ञेषु गीतवान्।
शिपिविष्ट इति ह्यस्माद् गुहनामधरो ह्यहम् ।72।
यास्कमुनि ने शांत चित्त होकर शिपिविष्ट नाम से अनेक यज्ञों में मेरी महिमा का गान किया है अतः मैं इस गुह्यनाम नाम को धारण करता हूं।72।
(शान्ति पर्व मोक्षधर्मपर्व 342वाँ अध्याय )
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