कौरवों के विनाश के बाद भी
युधिष्ठिर विहार और यात्रा के अवसर पर धृतराष्ट्र को समस्त मनोवांछित वस्तुओं की सुविधा देते थे ।18।
राजा धृतराष्ट्र की सेवा में पहले की भांति उक्त अवसर पर भी रसोइए के काम में निपुण आरालिक, सूपकार और रागखाण्डिक मौजूद रहते थे।19।
अमेध्य या अपवित्र माने गए हैं मांस का कभी भी स्पर्श नहीं करना चाहिए यदि ब्राह्मण इन आठों में से किसी का भी स्पर्श कर ले तो वह वस्त्र सहित जल में प्रवेश कर के स्नान करें।।
( महाभारत आश्रमवासिकपर्व के अन्तर्गत आश्रमवासपर्व) पृष्ठ संख्या -6376
षडशीतिसहस्राणि योजनानां युधिष्ठिर।
मानुषस्य च लोकस्य यमलोकस्य चान्तरम् ।
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(महाभारत आश्वमेधिकपर्व वैष्णवधर्मपर्व) पृष्ठ संख्या -6322
युधिष्ठर पृथ्वी लोक और यमलोक में 86000 योजन का अंतर है।
अब महाभारत कार एक तरफ तो अहीरों की कन्या गायत्री के विषय में वर्णन करता है कि
गायत्री सम्पूर्ण वेदों का प्राण कहलाती है ।
गायत्री वेदों की अधिष्ठात्री देवी है गायत्री के बिना सम्पूर्ण वेद निर्जीव हैं ।👇
( महाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत वैष्णवधर्मपर्व पृष्ठ संख्या -6320👇
तस्मात् तु सर्ववेदानां गायत्री प्राण उच्यते ।
निर्जीवा हीतरे वेदा विना गायत्र्या नृप।।
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महाभारत में वर्णन है कि ब्राह्मण विद्या हीन होने पर भी देवता के समान और परम पवित्र पात्र माना गया है। फिर जो विद्वान है उसके लिए तो कहना ही क्या वह महान देवता के समान है और भरे हुए महासागर के समान सदगुण संपन्न है👇
(महाभारत अनुशासनपर्व के दानधर्मपर्व) पृष्ठ संख्या -6056..
अविद्वांश्चैव विद्वांश्च ब्राह्मणो दैवतं महत्।
प्रणीतश्चाप्रणीतश्च यथाग्निर्दैवतं महत् ।21।
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