शनिवार, 18 मई 2019

भाटी जाडेजा और अग्निवंशी चौहान-

गल्पवादी पुरोहितों ने अहीरों को ब्राह्मण बनाने के लिए एक काल्पनिक कथा बना डाली !👇

कहावत प्रसिद्ध है कि एक समय राम  विन्ध्याचल के समीप तापी के तट पर आए तब एक समय उनको भालों के समूह ने आकर कहा हमारे कृत्य के निमित्त ब्राह्मणों की आवश्यकता है ।

और तपस्वी ब्राह्मण हमारे कृत्य में आते नहीं इस कारण हमको ब्राह्मण दीजिए यह सुनकर कृपा वश हो रंगनाथ जी ने उनसे कहा कि मैं भूमि में 7 रेखा करता तुम एक एक पर चलो तब जब वे पहली बार रेखा पर खड़े हुए तब रामचंद्र ने उनसे कहा तुम कौन हो ? वे बोले हम भील हैं ।
पर भील कर्म छोड़कर शुद्ध स्वभाव वाले हैं दूसरी रेखा पर खड़े होकर अपने को विश्वकर्मा जाति बताया तीसरे पर शूद्र और चौथी सच्छूद्र  पांचवी वीं पर पर वैश्य और छठवीं पर क्षत्रिय और सातवीं पर में रेखा पर चढ़े तब अपने को ब्राह्मण बताया और सर्वगुण संपन्न हुए तब रामचंद्र जी ने कहा भील जाति के कर्म धर्म में तुम्हारा अधिकार होगा !
और तुम अभीर ब्राह्मण कहलाओगे कानबाई रानुबाई तुम्हारी कुलदेवी हुई बाद में उन्हीं की पूजा करना नवरात्र में प्रतिवर्ष नारा लपेटना अखंड दीपक बालकर पूजा करना इतिहास भिल्लब्राह्मणोत्पत्ति: ( इतिमहाराष्ट्रसम्प्रदाय:)
जाति-भाष्कर पृष्ठ संख्या-(203)( पं०ज्वाला प्रसाद मिश्र मुरादाबादी)
एक बात कि
हस्ती के तीन पुत्र थे
1-अजमीढ़ 2- देवमीढ़ 3-पुरूमीढ़ ये ही भीलों के पूर्वज थे ।

यदु :- भारत की समस्त जातियों में यदुवंश बहुत प्रसिद्ध है यह वंश सोमवंश की उच्च कोटि का है ।
यदुवंश नाश होने पर कृष्ण की संतान जावुलिस्थान () (अफगानिस्तान) तक गई और वहां गजनी तथा समरकंद के देशों को बसाया अधिकतर जादौन पठान लगभग वही है और पीछे फिर भारत को लौटे और पंजाब पर अधिकार जमाया ।

उस समय पंजाब में यह लोग आभीर नाम से प्रसिद्ध हुए पीछे मरुभूमि में भी आई अर्थात जहां सरस्वती थी वहां पर भी यह सभी आभीर रूप में थे और वहां से लंगा, जोहिया,और मोहिला लोगों को निकाल कर संवत 1212 में जैसलमेर बसाया जो कृष्ण की वंश धर लोगों की वर्तमान राजधानी है जिन्हें भाटी कह सकते हैं  भाटी शब्द को रूढ़िवादी पुरोहित यदु शब्द का तद्भव मानते  हैं जबकि भाटी व्रात्य का अपभ्रंश है ।

भाटी राठौड़ों के आक्रमण से यदि इनका अधिकार कम हो गया पर सभा वही है इसी की एक शाखा जाडेजा जाति है लोग अपन को साम्य पुत्र कहते हैं जाडेजा जाति के लोग कई कारणों से सिन्धु के मुसलमानों से ऐसे मिल गए हैं कि अपनी जातीय स्वाभिमान पूर्ण रूपेण खो दिया है यह साम से जाम बन गए हैं और उनका एक छोटा सा राज्य जामनगर या जाम राज्य कहलाता है ।

करौली की राजधानी मथुरा जी जागीर है इसी वंश के राजा हैं मरहटों के बड़े-बड़े सरदार इसी वंश के हैं मराठों के वंश की शाखाएं यदु के वंश में करौली रियासत के राजा आते हैं --जो स्वयं को पाल उपाधि से विभूषित करते पाल का मतलब अहीर  है।
राजस्थान में मध्यकालीन इतिहास कार तथा साहित्यकार जादौं का वर्णन नीच कुल या नीच जातिगत करते हैं क्यों कि जादौन चारण बंजारे
हैं --जो  ड्रम बजाने वाले रहे हैं।
यदुवंश की राजपूतों में काल्पनिक रूपों सात शाखा मानवाई गयीं
यदु:- करौली के राजा।
भाटी:-जैसलमेर के राजा।
जाडेजा:-कच्छभुज के राजा।
समेचा:- सिन्धु के राजा।
मुडैचा:-
विदमन:-
वद्दा:-
सोहा:-
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क्षत्रिय जाति जब निस्तेज हो गई तब ब्राह्मणों अर्बुद (आबू) पर्वत पर नैर्ऋत कोण कोण में एक कुंड खोदा और दैत्यों को पराजित करने के लिए आहुति दी
इसमें मुख्य होता वशिष्ठ थे पहले तो अग्नि कुंड से पुरुष निकला उस की आकृति वीरो जैसी न थी इसी से ब्राह्मणों ने उसे द्वारपाल बनाकर कर बैठा दिया फिर मंत्र पढ़कर आहुति देने से एक पुरुष निकला और हथेली से बनने के कारण उसका नाम चालुक्य हुआ।👊

फिर तीसरा पुरुष निकला उसका नाम परमार  यानी (पृथ्वी हार) पड़ि हार हुआ चौथी बार अग्नि कुंड से एक पुरुष दीर्घ काय उन्नतललाट वाला प्रकट हुआ वह धनुष बाण और तलवार लिए प्रकट हुआ चतुरा कृति होने से उसका नाम चौहान हुआ चतुर आकृति और उसकी आकृति चार मुख होने के कारण उसका नाम चतुरानन यानी चौहान होगा ।
उसने दैत्यों बौद्धों को परास्त किया।
प्रतिहार और परिहार चालुक्य(सोलंकी )और चौहान वंश अग्निकुण्ड से उत्पन्न अग्निवंश है!

जाट यद्यपि 36 राज्यकुलों की सूची में जित वा जाट ने भी स्थान पाया है परंतु  न तो कोई इन्हें राजपूत मानता है और ना इनका किसी राजपूत जाति के साथ विवाह होना पाया जाता है या भारत भर में फैले हुए हैं इनमें भरतपुर के राजा प्रसिद्ध है ।
शेष लोग खेती बाड़ी का काम करते हैं उनके संस्कार भी लोप हो गए हैं तथा इनमें कण्व भी होता है इस कारण उत्तम कक्षा से गिर जाते हैं ।
पंजाब में ये जिट कहे जाते हैं इनकी जाति व आदि निवास स्थान सिंध नदी के पश्चिम तरफ के देश माने गए हैं ।
महाभारत के कर्ण पर्व में जर्तिका नाम की जाति ही आज कल के जाट हैं।
यह आभीरों की ही शाखा है --जो शॉलोमन( शल्य) के साथ उनकी सेना में यौद्धा थे ।

और इनको यदुवंश से निकला हुआ मानते हैं अंग्रेज विद्वान टाड साहब इनको मध्य-एशिया तथा चीन की यूची या यूटी शाखा में मानते हैं यह तक्षक की शाखा भी माने जाते हैं तथा दंतकथा से महादेव जी की जटा से कोई इनकी उत्पत्ति मानते हैं ।

पर एक शिलालेख में पाया जाता है कि जिटवंशी राजा की माता यदुकुल की थी जिसके कारण इनको 36 राजकुलों में भव्य स्थान मिला है ।
ईसा की पांचवी शताब्दी में यह पंजाब में बस गए थे ।
और सन 440 ईसवी में राज करना भी पाया जाता है।

टाडसाहब का कहना है कि "जब यादव लोग शालिवाहन पुर से  बाहर हुए तब सतलज नदी उतरकर मरुस्थल में दाहिया और जोहिया जन-जातियों के सहवर्ती  हुए वहां देरावल राजधानी स्थापित की और यहीं से किसी दबाव के कारण उन्होंने यदु नाम छोड़कर जाट नाम धारण कर लिया ""

यदुकुल के इतिहास में जाटों की बीस शाखा पाई जाती हैं यह लोग बड़े वीर होते हैं इन्होंने महमूद गजनवी का मुकाबला भी किया।
ईस्वी सन 971-1020 के समय में  इनका निवास सिन्धु नदी के पूर्वी किनारे पर था महाराज रणजीतसिंह इसी वंश में थे इस जाति के अकाली नाम धारियों में अभी तक चक्र धारण किया जाता है जिसका व्यवहार भगवान कृष्ण चंद्र जी ने स्वयं किया।
चौधरी का तत्सम चक्रधारि चक्कधारि चौधारी-है।

आहिर राजपूत बन गये ( -जाति-भास्कर पृष्ठ संख्या-(229)

यदुवंशी यह 12 प्रकार की है उनको आगे कहेंगे ।

भविष्य पुराण में अग्नि वंशी क्षत्रियों - चौहान ( चाउ-हुन) सौलंकी ,परमार गहरवाल---
भविष्य पुराण में मध्यम पर्व के बाद प्रतिसर्ग पर्व चार खण्डों में है ।
भविष्य पुराण निश्चित रूप से 18 वीं सदी की रचना है । अत: इसमें आधुनिक राजनेताओं के साथ साथ आधुनिक प्रसिद्ध सन्तों महात्माओं का वर्णन भी प्राप्त होता है ।

एक अभिषेक चौहान --जो मित्र हैं कहते हैं कि
चौहानों की उत्पत्ति गूर्जरों से हुई ...
चौहान वंश की उत्पत्ति के विषय में उनके विचार

"चौहान वंश की उत्पत्ति गुर्जरो के प्राचीन गोत्र चेची(हूण) से हुई है।

किन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार :- (चु - हान) विवाद (200 ईसा पूर्व), के समकक्ष "चू" राजवंश और चीन के "हान" राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई है
जिसमे yuechis यूची चेची / Gujars भी इस विवाद का हिस्सा थे।
गुर्जर जब भारत मे अरब बलों से लड़ते थे ।
जब वे "चू-हान" शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था ।
जो बाद मे चौहान कहा जाने लगा
  किन्तु विद्वानों द्वारा दिया गया तथ्य तर्क पर खरा नही उतरता

कुछ लोगो के अनुसार चौहान की उत्पत्ति कुषाण कुल से हुई ; क्योंकि चौहान वंश के गोत्र कल्शान  की कुशान के साथ स्वर की समानता हैं।
कल्शान की कुषाणों की बैक्टरिया स्थित राजधानी खल्चयान से भी स्वर की समानता हैं।
सभवतः कल्शान खाप का समबंध कुषाण परिसंघ से हैं|

#चौहान_का_उपनाम_के_रूप_में_उपयोग_ठाकुर_व_एक_नोनिया_समाज_भी_करते_है

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