बुधवार, 9 जनवरी 2019

दुहिता शब्दः और उसका व्युपत्ति विवेचन -

         दुहिता "दो कुलों की हित- कारणी "  _______________________________________
महर्षि दयानन्द ने निरुक्त को आधार मान कर यह व्युत्पत्ति दुहिता शब्द की " दूरे हिता इति दुहिता " अर्थात् दूर देश में ही जिसका हित सम्भव है 'वह दुहिता  है ।☘
दुहितृ शब्द के प्रथमा विभक्ति एकवचन का रूप दुहिता है ।
परन्तु  (द्वि+ हित + तृच् ) लड़की के लिए संस्कृत में दुहितृ शब्द का चलन है।
हमारी व्युत्पत्ति के अनुसार -दुहिता शब्द की व्युत्पत्ति इस रूप में प्राकृतिक है :- " द्वे हिते यया सा पितृ ग्रहेव पति ग्रहेव च इति दुहिता कथ्यते "
अर्थात् जिसके द्वारा पति तथा पिता दौनौं के गृहों ( कुलों )का हित सम्पादित होता है।:- वह दुहिता है ---
देवर शब्द की व्युत्पत्ति के साम्य सादृश्य पर वास्तव में पुत्री इसी लिए दुहिता संज्ञा से अभिहित की गयी है सामाजिक तथा सांस्कृतिक विश्लेषणों से भी यह बात पूर्ण रूपेण सार्थक व प्रमाणित भी है ।
... अत: प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण की आवश्यकता नहीं -
दुहिता का सबसे अधिक हित भाव पिता के ही प्रति होता है तथा उसके बाद पति के हितभाव की सम्पादिका है .

  विदित ही है कि व्युत्पत्ति शास्त्र के विश्लेषक मनीषीयों  में महर्षि यास्क ने इसकी तीन व्युत्पत्ति दर्शायी हैं-
(1) 'दूरे हिता भवति' अर्थात्‌  जिसका दूर में ही हित होता है ।
(2) 'दुहिता दुर्हिता' अर्थात्‌ सुन्दर एवं सुयोग्य वर खोजकर  जिसका हितसाधन करना अत्यन्त दुर्लभ हो 
(3) 'दोग्धेर्वादुहिता' अर्थात् दोहन करने से -दुहिता अर्थात्‌ कन्या सदैव पिता से कुछ न कुछ दोहन करती है, इसलिए दुहनेवाली होने से वह दुहिता कही जाती है।
(4) गावो दोग्धेर्वा अर्थात् --जो गायें को दुहती है ।

... परन्तु यह व्युत्पत्ति आनुमानिक तथा काल्पनिक है , दुहिता शब्द की वास्तविक व सार्थक व्युत्पत्ति हमने  भारोपीय भाषा के तीन हज़ार शब्दों की व्युत्पत्ति श्रृंखला के सन्दर्भ में की है ।
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जो दुहिता के जीवन की वास्तविकता को अभिव्यञ्जित करती है !

"निरूक्त में लिखा है कि कन्या का 'दुहिता' नाम इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश (स्थान) में होने से हितकारी होता है, निकट करने में नहीं |" 
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 
( सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ समुल्लास ) में  केवल रूढ़िवादी परम्पराओं के अनुरूप स्वीकृत दी है ।
वैसे भी आर्य - समाजीयों में वेदों में इतिहास को स्वीकार नहीं किया जाता है।
परन्तु इतिहास का सशक्त श्रोत केवल वेद ही हैं ।
हिन्दी भाषाओं की स्थानीय बोलीयों में  कहीं धी तो कहीं धिय आदि रूपों में है ।
समस्त भारत - यूरोपीय भाषाओं में यह शब्द विद्यमान है ।
फारसी में (दुख़्तर) के रूप में अंग्रेजी में डॉटर (Doughter) तो ग्रीक में दुग्दर आदि . दुहितृ शब्द के भारोपीय भाषा में प्राप्त रूपों का आँशिक विवरण निम्न है ।
वैकल्पिक रूपों का निरूपण ----
(dafter) दाफ्तर (अप्रचलित)
डूटर (अप्रचलित)
व्युत्पत्ति --
मध्य इंग्लिश में डॉट्टर(doughter) शब्द से, पुरानी अंग्रेज़ी डोह्टर(dōhtor) का रूप, प्रोटो-जर्मनिक  डुहटिर(duhtēr) (गॉथिक (dauhtar) (दौहतर), स्कॉट्स(dochter) डूटर, वेस्टफ्रिशिया (dochter) डचटर,
डच(dochter )डचटर,
जर्मन (Tochter)टूचटर,
स्वीडिश (dotter)डॉट्टर) से साम्य प्रोटो-इंडो-यूरोपीय (dhugh₂tḗr ) डूघट्टर से
( प्राचीन यूनानी θυγάτηρ (thugátēr), गोलियों (प्राचीन -फ्रॉञ्च )में duxtīr, tocharian a cakar, tocharian b tkaser, लिथुआनियाई duktė, अर्मेनियाई դուստր (धूल), फारसी دختر (doχtar) दुख़्तर
संस्कृत दुहितृ (duhitṛ)) की तुलना करें ।
समानता पूर्ण रूपेण है ।
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Alternative  forms वैकल्पिक अवस्थाऐं
dafter (obsolete)
douȝter (obsolete)
Etymology-- व्युत्पत्ति -
From Middle English (doughter), from Old English (dōhtor,) from Proto-Germanic (duhtēr☘ ) ।
compare Gothic: - (dauhtar), Scots :-dochter,।
West Frisian :-dochter,
Dutch dochter, German Tochter,
Swedish dotter), from Proto-Indo-European dhughtḗr (compare ..
Ancient Greek (θυγάτηρ) (thugátēr),
Gaulish (duxtīr,) Tocharian
A (ckācar,) Tocharian
B (tkācer,
(Lithuanian duktė̃,
Armenian (դուստր)(dustr),
Persian دختر‎ (doχtar),
Sanskrit दुहितृ (duhitṛ)
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.. ज्ञान की गहराईयों में प्रेषित यह महान सन्देश योगेश कुमार "रोहि" की जानिब से.. सम्पर्क- सूत्र 8077160219 ☎.....
महर्षि दयानन्द ने निरुक्त को आधार मान कर यह व्युत्पत्ति दुहिता शब्द की " दूरे हिता इति दुहिता अर्थात् दूर देश में ही जिसका हित सम्भव है!
परन्तु यह व्युत्पत्ति आनुमानिक तथा काल्पनिक है .... निश्चित रूप इस प्रकार आनुमानिक व्युत्पत्ति करने के मूल मे तत्कालिक समाज की पुत्रीयों के प्रति भावना ध्वनित होती है

महर्षि दयानन्द वस्तुत दुहिता शब्द की यह व्युत्पत्ति स्वयं नहीं की, अपितु यास्क की व्युत्पत्ति उद्धृत की है .. महर्षि दयानन्द के आर्य- समाज के रूप में सुधारात्मक प्रयासों को क्रियान्वित किया और इस कारण ही आज भारतीय संस्कृति जीवन्त है !
परन्तु वेदों के भाष्य करनें में इन्होंने शब्दों की व्युत्पत्ति की धातु योगज शैली अपनाकर केवल कींचड़ को साफ करने का ही उपक्रम किया ।
और अर्थ का अनर्थ है ।
     परन्तु कींचड़ का अस्तित्व बना रहा ।
वास्तव में पुत्री इसी लिए दुहिता संज्ञा से अभिहित की गयी है। यह सामाजिक तथा सांस्कृतिक विश्लेषणों से भीे यह बात पूर्ण रूपेण सार्थक व प्रमाणित भी है .... दुहिता का सबसे अधिक हित भाव पिता के ही प्रति होता है तथा उसके बाद पति के हितभाव के
प्रति - समर्पित है दुहिता शब्द की रूढ़िवादी व्युत्पत्ति कोश ग्रन्थों में इस प्रकार है ।
           
यो दोग्धि विवाहादिकाले धनादिकमाकृष्य गृह्णातीति । यद्बा  दोग्धि गा इति ।
आर्षकाले कन्यासु एव गोदोहनभारस्थितेस्तथात्वम् ।
दुह +  तृच् :- दुहितृ duhitṛ । तृच् उणादि प्रत्ययः  “नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृपातृभ्रातृजामातृमातृपितृदुहितृ
दुह् + तृच् उणादि । २।९६। इति तृच् ।
निपातनात् गुणाभावः) कन्या । इत्यमरःकोश

वस्तुत - दुहिता शब्द की व्युत्पत्ति मूल रूप से यास्क की न होकर भिन्न काल खण्ड की भौतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक दशा को पुत्रीयों के प्रति-ध्वनित करती  हैं। यास्क इसके संकलन-कर्ता हो सकते हैं।
तीसरी व्युत्पत्ति  गोपालक जन-जातियों की उस युग की स्मृतियों को प्रतिबिम्बित करती है जब समाज पूर्ण रूप से पितृसत्ता के अधीन न हुआ था।
मातृ सत्ता पर आधारित था ।
जैसा कि सैमेटिक संस्कृतियों की असीरियन शाखा में  है ।
सम्पत्ति का हस्तान्तरण पिता से पुत्र को न होकर माता से पुत्री को होता रहा होगा।
पशु ही पशुपालक जन-जातियों की सम्पत्ति के एकमात्र रूप थे।
पशु और गौ शब्द परस्पर पर्याय वाची रूप थे ।
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तब ये आर्य गोप अथवा गौश्चर के रूप थे ।
और आभीर जाट गुज्जर आदि जन-जाति जातियाँ सजातिय रूप में विश्व के प्रारम्भिक चरावाहे रहे ।
और कालान्तरण में यही कृषक हुए ।
ये चरावाहे आरी या आरे से युद्ध तथा कृषि क्रियाऐं करनें में बड़े कुशल थे । कालान्तरण में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर का वाचक हुआ।
गोपिकाओं की भूमिका वस्तुत -दुहिता की भूमिका रही है ।
निश्चित रूप से तब दूध दुहने का काम लड़कियाँ ही सम्पन्न करती रही होंगी।
अकारण नहीं है कि वैदिक संस्कृत में दुहितृ शब्द का अर्थ दुहनेवाली है।
गो शब्द भी भारोपीय वर्ग की भाषाओं में है ।
यह संस्कृत गौ: द्वारा प्रदान किए गए अपने अस्तित्व का अवधारणा मूलक स्रोत अथवा साक्ष्य हैं।
ग्रीक बॉस,bous
लैटिन बोस,bos,
पुराना आयरिश बो,bo
लातवियाई गुओव्स,guovs
अर्मेनियाई गौस,gaus
पुरानी अंग्रेज़ी घन,cu
जर्मन कुह,Kuh
पुराने नॉर्स कीर,kyr
स्लोवाक होवाडो hovado

 जैसे लिथुआनियाई कार्वो, ओल्ड चर्च स्लावोनिक क्राव का सम्बन्ध भी गो शब्द से है ।
It is the hypothetical source of evidence for its existence is provided by 
Sanskrit- gaus,
Greek- bous,
Latin -bos,
Old Irish- bo,
Latvian -guovs,
Armenian -gaus,
Old English -cu,
German- Kuh,
Old Norse -kyr,
Slovak -hovado
Sumerian -Gu
  " Other "cow" words sometimes are from roots meaning "horn, horned,"
such as Lithuanian karvė, Old Church Slavonic krava.
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This research is explained by Yadav Yogesh Kumar "Rohi"

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